शिक्षण प्रक्रिया में पाठ्य-पुस्तक भूमिका

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अर्वाचीन शिक्षा पाठ्य-पुस्तकों पर आधारित है। प्राचीन काल में जब मुद्रणकाल का विकास नहीं हुआ था, तब समस्त विषयों की शिक्षा मौखिक रूप से हुआ करती थी। आधुनिक युग ज्ञान, विज्ञान एवं तकनीकी के अत्याधिक विकास के कारण मौखिक शिक्षा देना असम्भव ही नहीं, दुष्कर कार्य है यदि यह कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति न होगी कि भाषा की पुस्तकें तो साधन साध्य दोनों रूपों में प्रयोग की जाती है। बच्चों को उनके उच्चारण को शु करने, पठन कला में निपुण करने, उनकी बोध एवं कल्पना शक्ति का विकास करने, उनकी रचनात्मक वृत्ति को सचेष्ट करने और उन्हें विविध विषयों का ज्ञान करा कर उनका चरित्र निर्माण करने के हेतु प्रयोग करते है।

पाठ्य-पुस्तक कया है

प्राचील काल में भारत कि पुस्तक के लिए ग्रन्थ शब्द का प्रचलन था। ग्रन्थ का शाब्दिक अर्थ है- ‘गूँधना’, ‘बाँधना’ क्रम से रखना आदि। पल्कुलों गीं में आचार्य लोग ‘ताड़पत्रा” या ‘भोजपत्रा” को अपने शिष्यों के समक्ष क्रम से रखते थे। उनमें बीच में छेद करके किसी धागे से गूँध भी देते थे। इसीलिए इन्हें ‘ग्रन्थ कहा जाता था। फ़ॉँसीसी अंग्रेजी के श्ठववाश्‌ शब्द की व्युत्पत्ति जर्मन भाषा की ‘वीक’ शब्द से हुई है। जिसका अर्थ है- वृक्ष। फ्राँसीसी भाषा में इसका सम्बन्ध वृक्ष की छाल या तख्ती पर लिखने से है।

पाठ्य-पुस्तक की परिभाषा

पाठ्य-पुस्तक की संज्ञा प्रत्येक पुस्तक को नहीं दी जा सकती है, इसी तथ्य को मद्देनजर रखते हुए गुड महोदय के मतानुसार- “एक निश्चित पाठ्यक्रम के अध्ययन के प्रमुख साधन के रूप में एक निश्चित शैक्षिक स्तर पर प्रयुक्त करने के लिए एक निश्चित विषय पर व्यवस्थित ढंग से लिखी हुई पुस्तक पाठ्य-पुस्तक है।” क्रानबैक के विचारानुसार- पाठ्यपुस्तक प्रायः अप्रौढ़ छात्रों के लिए लिखी जाती है।

पाठ्य-पुस्तकों के उद्देश्य

प्रिय छात्रो पाठ॒य-पुस्तकों को साध्य मान लेने से इनको रटना एवं सम्पूर्ण शिक्षा को किताबी बना देना महत्त्वपूर्ण हो जाता है, किन्तु यहाँ पाठ॒य-पुस्तकों का उद्देश्य रटना नहीं है। पाठय-पुस्तकों के उद्देश्य निम्नलिखित है-

  1. छात्रों की काल्पनिक शक्ति को विकसित करना।
  2. विषय विविधता के बारे में ज्ञान कराना।
  3. स्वाध्याय के प्रति रूचि उत्पन्न करना।
  4. पाठय-पुस्तकों के माध्यम से ज्ञान की सीमा को विस्तृत करना।
  5. ज्ञान को व्यावहारिक रूप देने की प्रेरणा प्रदान करना।
  6. सत्य, असत्य का विर्वक कराना
  7. शुभ-अशुभ का ज्ञान कराना।

पाठ्य-पुस्तकों की आवश्यकता (उपयोगिता)

पाठय-पुस्तकों की आवश्यकताएं निम्नलिखित हैं।

  1. पाठय-पुस्तकेँ शिक्षक का मार्गदर्शन करती है।
  2. पुस्तकें ज्ञान-प्राप्ति का सशक्त साधन है, पुस्तकों के सहारे व्यक्ति बिना गुरू के भी अपना ज्ञानार्जन कर सकता है।
  3. पुस्तक अनेक सूचनाओं का संग्रह है।
  4. जान प्राप्ति के लिए पुस्तकंएे सर्व-सुलभ एवं मितव्ययी साधन है।
  5. पुस्तकें अर्जित ज्ञान का स्थायीकरण है।
  6. पुस्तकें मौलिक चिन्तन की सशक्त पृष्ठभूमि तैयार करती है।
  7. पुस्तकांए से छात्रों मैं स्वाध्याय की भावना जागृत होती है।
  8. उच्च कक्षाओं के लिए पुस्तक अनिवार्य है।
  9. छात्रा व शिक्षक दोनों को ही पुस्तकों के माध्यम से पाठ्यक्रम का ज्ञान रहता है।
  10. पुस्तकें ज्ञान के साथ-साथ मनोरंजन करती है।

पाठ्य-पुस्तकों के गुण या विशेषताएं

पाठ्य-पुस्तकों को हम मुख्यतः दो विशेषताओं के आधार पर विभाजित करते हैं।

  • 1. आन्तरिक विशेषताएं
  • 2. बाह्य विशेषताएं
  • 1 आन्तरिक विशेषताओं को हम तीन भागों में विभाजित करते हैं।
  1. सामान्य विशेषताएं
  2. भाषा सम्बन्धी विशेषताएं
  3. शैली सम्बन्धी विशेषताएं

सामान्य विशेषतायें:

1. मनोवैज्ञानिकः पुस्तकों को बाल-कैन्द्रित होना चाहिए। बालकों की मनःस्थिति, रूचि, प्रवृत्ति, क्षमता का ध्यान रखना चाहिए।

2. रुचिकरः पाठय-पुस्तक ऐसी हो कि छात्रा उसमें रूचि लें। विषय-वस्तु रूचिकर होगी तो छात्रा उसे पढ़ने के लिए लालयित रहेंगे।

3. विविधताः नाटक, लेख, कहानी, संवाद, कविता, यात्रा विवरण जीवनकथा आदि पुस्तक से होने से पुस्तक सरस व विविधता पूर्ण हो जाती है। विविधता से ज्ञान में व्‌ > होती है और पाठ मैं रोचकता बनी रहती है।

4. मॉलिकः पुस्तक मौलिक होनी चाहिए। यदि सम्पादित हो तो संकलनकत्र्ता कै व्यक्तित्व की अपैक्षा मूल लेखकों के व्यक्तित्व की स्पष्ट झाँकी परिलक्षित होनी चाहिए।

5. शिक्षाप्रद एवं प्रेरणादायकः पुस्तक की विषय-वस्तु शिक्षाप्रद एवं प्रेरणादायक होनी चाहिए। विषय का चयन इस प्रकार सम्पन्न किया जाए कि उनसे छात्रों का मानसिक विकास के साथ-साथ नैतिक एवं चारित्रिक विकास भी हो। पाठ का उददैश्य निरा उपदेशात्मक नहीं होना चाहिए। पुस्तक ज्ञानवर्धक, शिक्षाप्रद, प्रोत्साहन प्रदान करने वाली हां? ताकिछात्रों का अपेक्षित विकास हो।

आषा सम्बन्धी विशेषताएं

पाठ्य-पुस्तकों की भाषा सम्बन्धी विशेषताएं अग्रलिखित हैं:

1. स्तरानुकूत्रः पुस्तक की विषय-वस्तु के अतिरिक्त भाषा भी बालकों की कक्षा रूचि उम्र एवं स्तरानुकूल होनी चाहिए मानसिक स्तर के अनुसार भाषा का स्वरूप पुस्तक की विशेष विशेषता होती है। बोधगम्यता के लिए भी उपयुक्त भाषा आवश्यक है।

2. सरल्रः भाषा चाहै मौखिक हो या लिखित, सरल अवश्य हो सरल भाषा कक्षा के सभी छात्रों के लिए सम्प्रेषणीय होती है।

3. स्पष्टः भाषा मौखिक हो या लिखित स्पष्टता का होना उसका मुख्य गुण है। भाषा की स्पष्टता तथ्यों को बोधगम्य बना देती है।

4. तत्सम शब्दावली: प्रारम्भिक कक्षाओं की भाषा तद्भव शब्दों को लेकर प्रवाहित हो सकती है। माध्यमिक एवं उच्च कक्षाओं की भाषा तत्सम शब्दावली में हो। पुस्तकीय भाषा तदभव से तत्सम की ओर उन्मुख होनी चाहिए।

5. क्रमब व श्रृंखत्राब: पुस्तकें क्रमब व श्रृंखलाब हो पाठ विश्रृंखल न हो। पाठों का आपस में तारतम्य हो। क्रमब पाठ के अभाव मं0 क्रमब ज्ञान भी नहीं दिया जा सकता।

6. संक्षिप्तताः पुस्तक आकार-प्रकार मैं बड़ी होना, यह उसका दुर्गण है, पुस्तक मैं अनावश्यक तथ्यों का उल्लंघन हो। आवश्यक तथ्यों का क्रमब वर्संक्षिप्त विवरण ही पुस्तक को आदर्श पुस्तक की श्रेणी में लाती है।

7. शब्दावलीः हिन्दी पुस्तकों के 75 से 80 प्रतिशत शब्द तो वहीं? हो, जो पिछली कक्षाओं में प्रयुकत हो चुके हों, 20 सै 25 प्रतिशत नए शब्द हो और उनका प्रयोग बार-बार हो ताकि छात्रों का अनवरत अभ्यास हो जाए। एम वेस्ट नामक
विद्वान के मतानुसार– “ज्यों-ज्यों बालक की उम्र एवं मानसिक स्तर विकसित होता जाए, त्यों-त्यों उनके लिए सरल से कठिन पर उपयोगी शब्दों की उनके पाठों मैं व्यवस्था की जाये।”

शैली सम्बन्धी विशेषताएँ:- अग्रलिखित है-

1. भिन्नताः पुस्तकों की शैली में विभिन्नता का होना आवश्यक है। इससे पदों मं> नवीनता एवं रूचि बनी रहती है, इस का यह लाभ है कि छात्रा विभिन्न शैलियों की सम्यक्‌ जानकारी प्राप्त कर लेते हैं।

2. प्रभावोत्पादकताः पुस्तकों में ऐसे अध्यायों का चयन होना चाहिए, जिनकी शैली आकर्षक एवं प्रभावोत्यादक हो।

3. स्तरानुकूलः पुस्तक की शैली कक्षा और बालकों के स्तरानुकूल होनी चाहिए। छोटी कक्षाओं की शैली विवरणात्मक, संवादात्मक, कथात्मक हो, एवं उच्च कक्षाओं की शैली भावात्मक एवं तर्क प्रधान हो।

बाहय विशेषताएं

पुस्तकों की बाह्य विशेषताएं छात्रों को प्रभावित करती है। पुस्तकों की बाह्य विशेषताएं निम्न है-

1. आवरण एवं आकारः पुस्तक का नाम स्वरूप एवं आकार आकर्षक होना चाहिए। आकर्षक आवरण बालकों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करता है। रंग-बिरंगे चित्रा छोटे-बालकों को प्रभावित करते हैं।

2. कागज एवं मुद्रणः पुस्तक को सुन्दर व आकर्षक बनाने मैं कागज एवं मुद्रण का विशिष्ट स्थान है। मजबूत एवंपतले कागज, जिनके एक पृष्ठ की छपाई दूसरे पृष्ठ को प्रभावित न करे, अच्छे माने जाते हैं। पाठय-पुस्तकेँ प्रायः 28 पौंड भार के कागज पर किन्तु प्रारम्भिक कक्षाओं की पुस्तक 32 से 40 पौंड भार कै कागज पर छपती है। मुद्रण भी आधुनिक हो। टाईप आकर्षक हो।

3. सिलाईः पुस्तक की सिलाई सशक्त होनी चाहिए, वहीं सिलाई उत्तम है जिसके सम्पादित होने पर भी भली-भाँति खुले एवं बंद हो जाये।

4. चित्र: छोटे बच्चों की पुस्तकों मैं चित्रा व रंगीन चित्रों की अधिकता होने से पाठ कै सहजग्राहय होने की सम्भावना होती है। इसमें छात्रा पुस्तक की और आकृष्ट होते हैं और रुचि पूर्वक पाठ तैयार करते हैं।

5. सन्दर्भः पाठय-पुस्तकों में सन्दर्भों का होना आवश्यक है। पाठ को तैयार करने में सन्दर्भ के होने से छात्रों को अपेक्षित सहायता मिलती है।

6. टिप्पणियां: नवीन ज्ञान एवं शिक्षण सामग्री के स्पष्टीकरण कै लिए टिप्पणियां दी जाती है। पुस्तकों कै अध्याय को सरल एवं सुगम बनाने के लिए टिप्पणी से सहयोग प्राप्त होता है।

7. शब्द-व्याख्याः अभ्यास के प्रश्नों से पूर्व पुस्तकां2 मैं प्रयुक्त कठिन व गूढ़ शब्दों की व्याख्या दे दी जाती है ताकि छात्रों को अपेक्षित सहायता मिल सके।

8. परिचय: पुस्तकों के प्रत्येक अध्याय के प्रारम्भ में कवि व लेखक का संक्षिप्त परिचय अवश्य देना चाहिए। इससे बालकों को पाठ समझने में यथेष्ठ सहायता प्राप्त होती है।
9. अभ्यासर्थथ प्रश्नः प्रत्येक अध्याय के अन्त में छात्रों के ज्ञान-परीक्षण के लिए अभ्यासार्थ प्रश्न पूछे जाते हैं। इससे पुनरावृत्ति होती है, ज्ञानार्जन होता है, ग <हकार्य सम्पादित होता है। परीक्षा के इष्टिकोण से छात्रों की तैयारी हो जाती है।

10. विषय-सूचीः पुस्तक के प्रारम्भ मैं विषय-सूची दे दी जाती है, जिससे छात्रों को साल भर में होने वाली शिक्षण- क्रिया के बारे मैं पता रहता है।

11. ग्रंथानुक्रमणिकाः पुस्तक के अन्त मैं ग्रंथानुक्रमणिका दी जाती है, जिससे छात्रों को यह पता चलता है लेखक ने पुस्तक लिखते समय किन-किन ग्रन्थों की सहायता से पुस्तक सम्पादित की है।

12. मूल्यः पुस्तक का मूल्य अधिक ना हो, जिससे सभी छात्रा उसे सरलतापूर्वक खरीद सकंछे।

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