चौहान वंश

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शाकम्भरी एवं अजमेर के चौहान

  • चौहानों का प्रारम्भिक राज्य नाडोल (पाली) था।
  • पृथ्वीराज रासो में चौहानों को ‘अग्निकुण्ड’ से उत्पन्न बताया गया।
  • पं. गौरीशंकर हीराचंद ओझा चौहानों को सूर्यवंशी मानते हैं। पृथ्वीराज विजय एवं हम्मीर महाकाव्य ग्रन्थ में भी इन्हें सूर्यवंशी माना है।
  • कर्नल टॉड ने चौहानों को विदेशी (मध्य एशियाई) माना है।
  • डॉ. दशरथ शर्मा बिजोलिया लेख के आधार पर चौहानों को ब्राह्मण वंशी मानते हैं।
  • चौहानों का मूल स्थान जांगलदेश मे शाकम्भरी (सांभर) के आसपास सपादलक्ष माना जाता है- इनकी राजधानी अह्छित्रपुर (नागौर) थी।
  • शाकम्भरी के चौहान वंश का संस्थापक वासुदेव को माना जाता है जिसने 551 ई. के आसपास राज्य स्थापित किया। 
  • बिजौलिया शिलालेख के अनुसार सांभर झील का निर्माण वासुदेव द्वारा करवाया गया।
  • अजयपाल ने सातवीं शताब्दी में सांभर कस्बा बसाया तथा तारागढ़ पहाड़ी पर अजयमेरु दुर्ग का निर्माण करवाया।
  • पुष्कर में वाकपति राज प्रथम के समय का अभिलेख मिला है जिसमें इसके वंशज सिंहराज द्वारा प्रतिहारों तथा तोमरों  को पराजित करने का उल्लेख मिलता है।
  • सिंहराज के भाई लक्ष्मण ने नाडोल में चौहान वंश की स्थापना की।
  • विग्रहराज द्वितीय प्रारम्भिक चौहान शासकों में सर्वाधिक शक्तिशाली शासक माना जाता है।
  • विग्रहराज द्वितीय ने प्रतिहारों से अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित की तथा चालुक्य शासक मूलराज प्रथम को पराजित किया।
  • इसने भड़ौच तक अपना राज्य विस्तार करते हुए वहाँ अपनी कुलदेवी आशापुरा देवी के मन्दिर का निर्माण करवाया।
  • विग्रहराज द्वितीय का उत्तराधिकारी दुर्लभराज द्वितीय हुआ जिसे शक्राई अभिलेख में महाराजाधिराज कहा गया है।

प्रमुख चौहान शासक

अजयराज

  • यह पृथ्वीराज प्रथम का पुत्र था।
  • इसने 1113 ई. मे अजयमेरू (अजमेर) नगर बसाया।
  • इसी नगर को राजधानी बनाया एवं इसमें तारागढ़ नामक दुर्ग बनाया।
  • इसने दिगम्बरों व श्वेताम्बरों के मध्य शास्त्रार्थ की अध्यक्षता की थी।
  • अजयराज ने सोने व चाँदी के सिक्के चलाये जिनमें से कुछ सिक्कों पर इसकी रानी सोमलवती का नाम भी मिलता है। 
  • डॉ. गोपीनाथ शर्मा के अनुसार अजयराज के शासनकाल को ही चौहानों का साम्राज्य निर्माण काल कहा जा सकता है।

अर्णोराज

  • तुर्क आक्रमणकारियों को बुरी तरह हराया
  • अजमेर में आनासागर झील का निर्माण करवाया।
  • इसने चौलुक्य जयसिंह की पुत्री कांचन देवी से विवाह किया था।
  • अर्णोराज शैव मतावलम्बी था।
  • गुजरात के चालुक्य शासक कुमारपाल तथा अर्णोराज के मध्य संघर्ष हुआ।
  • प्रबंध चिन्तामणि के अनुसार अर्णोराज ने गुजरात के सामन्तों में फूट डाली तथा कुमारपाल को असमंजस की स्थिति में डाल दिया।
  • कुमारपाल ने अर्णोराज को माउण्ट आबु के निकट युद्ध में पराजित किया।
  • अर्णोराज ने पुष्कर में वराह मंदिर का निर्माण करवाया।
  • इसके समय के प्रमुख विद्वानों में देवबोध तथा धर्मघोष का नाम मिलता है।
  • अर्णोराज की हत्या उनके पुत्र जगदेव के द्वारा कर दी गई।

विग्रहराज चतुर्थ (बीसलदेव/कवि बांधव) (1158-1163 ई.)

  • विग्रहराज चतुर्थ, जिसे बीसलदेव भी कहा जाता है शाकम्भरी व अजमेर का महान् चौहान शासक था।
  • उसका शासनकाल सपादलक्ष का स्वर्णयुग माना जाता है।
  • इसने ढिल्लिका (दिल्ली) के तोमर शासक को हराकर अपने अधीन सामन्त बना लिया।
  • उसने संस्कृत भाषा मे ‘हरिकेली’ नामक नाटक की रचना की।
  • हरिकेली नामक नाटक की विषय वस्तु में अर्जुन व शिव के मध्य युद्ध का वर्णन है।
  • नरपति नाल्ह द्वारा रचित ग्रंथ ‘बीसलदेव रासो’ में रानी राजमती के कहने पर बीसलदेव द्वारा उड़ीसा के राजा से हीरे लाने का प्रसंग का सौन्दर्यात्मक वर्णन किया है। यह एक श्रेष्ठ शृंगार काव्य है।
  • समकालीन लोग इसे ‘कवि बान्धव’ नाम से पुकारते थे।
  • सोमदेव बीसलदेव का दरबारी कवि था, जिसने ‘ललित विग्रहराज’ ग्रंथ की रचना की।
  • उसने अजमेर मे संस्कृत विद्यालय की स्थापना की जिसे बाद मे कुतुबुद्दीन ऐबक ने तोड़कर कर ‘ढाई दिन का झोपड़ा‘ बनवा दिया।
  • उसने बीसलपुर नामक कस्बे व झील का निर्माण करवाया।
  • इसने एकादशी के दिन पशु वध पर प्रतिबंध लगाया।

पृथ्वीराज तृतीय (राय पिथौरा) (1177-1192 ई.)

  • चौहान वंश का अन्तिम शक्तिशाली शासक पृथ्वीराज तृतीय था जिसका जन्म 1166 ई. में हुआ।
  • इसके पिता का नाम सोमेश्वर तथा माता का नाम कर्पूरीदेवी था। कर्पूरीदेवी दिल्ली शासक अनंगपाल तोमर की पुत्री थी।
  • अपने पिता की मृत्यु के बाद मात्र 11 वर्ष की आयु में पृथ्वीराज तृतीय अजमेर के शासक बने। इस समय उसका सुयोग्य प्रधानमंत्री कदम्बवास/कैमास था।
  • पृथ्वीराज तृतीय ने अपनी योग्यता व वीरता से शासन के समस्त अधिकार अपने हाथ में लिये तथा अपने आस-पास के शत्रुओं को समाप्त करते हुए ‘दलपुंगल (विश्व विजेता)’ की उपाधि धारण की।
  • पृथ्वीराज तृतीय के प्रमुख सैनिक अभियान :- 
  • पृथ्वीराज के शासन संभालने के बाद उसके चाचा अपरगांग्य ने शासन प्राप्ति हेतु विद्रोह किया जिसे परास्त कर उसकी हत्या कर दी गई।
  • शासन प्राप्ति के लिए पृथ्वीराज के चचेरे भाई नागार्जुन ने विद्रोह किया अत: पृथ्वीराज ने अपने मंत्री कैमास की सहायता से नागार्जुन को पराजित कर गुडापुरा तथा उसके आस-पास के क्षेत्र अपने अधिकार में कर लिये।
  • भण्डानकों का दमन :-
  • भरतपुर-मथुरा क्षेत्र के आस-पास में रहने वाले भण्डानकों ने विद्रोह किया। 1182 ई. में पृथ्वीराज ने इनके विद्रोह का दमन किया जिसका उल्लेख जिनपति सूरि ने किया है।
  • महोबा के चन्देलों पर विजय :-   
  • 1182 ई. में महोबा के चन्देल शासक परमार्दिदेव को पृथ्वीराज ने युद्ध में पराजित किया। इस युद्ध में परमार्दिदेव के विश्वस्त सेनानायक आल्हा व ऊदल वीरगति को प्राप्त हुए।
  • पृथ्वीराज ने महोबा का क्षेत्र अपने राज्य में मिला लिया तथा पन्जुनराय को महोबा का अधिकारी बनाया।
  • चालुक्यों पर विजय :-
  • 1884 ई. के आसपास पृथ्वीराज तृतीय तथा गुजरात के शासक भीमदेव द्वितीय के प्रधानमंत्री जगदेव प्रतिहार के मध्य युद्ध हुआ जिसके बाद दोनों में संधि हो गई।
  • तराइन का प्रथम युद्ध (1191 ई.) :-
  • पृथ्वीराज तृतीय के समय मुहम्मद गौरी गजनी का गवर्नर था।
  • तराइन का प्रथम युद्ध पृथ्वीराज तृतीय तथा मुहम्मद गौरी के मध्य 1191 ई. में हुआ जिसमें मुहम्मद गौरी पराजित हुआ।
  • इस युद्ध में दिल्ली के गोविन्द राज ने मुहम्मद गौरी को घायल कर दिया जिसके बाद गौरी युद्ध के मैदान को छोड़कर गजनी की ओर चला गया।
  • पृथ्वीराज ने इस विजय के बाद भागती हुई गौरी की सेना का पीछा नहीं किया तथा गौरी को जाने दिया जो की इतिहास में उसकी सबसे बड़ी भूल मानी जाती है।     
  • तराइन का द्वितीय युद्ध (1192 ई.) :-   
  • तराइन का द्वितीय युद्ध पृथ्वीराज तृतीय तथा मुहम्मद गौरी के मध्य 1192 ई. में हुआ जिसमें पृथ्वीराज तृतीय पराजित हुआ।
  • इस युद्ध में पृथ्वीराज के साथ मेवाड़ शासक समरसिंह तथा दिल्ली के गोविन्दराज थे।
  • हसन निजामी ने अपनी पुस्तक में गौरी द्वारा पृथ्वीराज के पास संधि हेतु दूत भिजवाने तथा अपनी अधीनता स्वीकार करने का प्रस्ताव भेजने का उल्लेख किया है।
  • इस युद्ध के बाद अजमेर तथा दिल्ली पर गौरी का अधिकार हो गया।
  • गौरी ने अजमेर का शासन कर के बदले पृथ्वीराज के पुत्र गोविन्दराज को सौंप दिया।
  • तराइन का द्वितीय युद्ध भारतीय इतिहास में एक निर्णायक घटना है जिसके बाद भारत में स्थाई मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना हुई।
  • मुहम्मद गौरी भारत में मुस्लिम साम्राज्य का संस्थापक बना।
  • तराइन के दोनों युद्धों का उल्लेख पृथ्वीराज रासो, तबकात-ए-नासिरी तथा ताजुल मासिर में मिलता है।
  • पृथ्वीराज तृतीय को भारत का अन्तिम हिन्दू सम्राट तथा रायपिथोरा के नाम से जाना जाता है।
  • पृथ्वीराज के दरबार में चन्द्रबरदाई, जनार्दन, जयानक, वागीश्वर, विद्यापति गौड़ तथा पृथ्वीभट्‌ट जैसे विद्वानों को आश्रय प्राप्त था।

रणथम्भौर के चौहान

  • 13 वीं शताब्दी में यहाँ पर चौहान वंश का शासन था।
  • पृथ्वीराज तृतीय के पुत्र गोविन्द राज ने यहाँ पर तराइन के द्वितीय युद्ध के पश्चात चौहान वंश की स्थापना की।
  • यहाँ के शासक वीरनारायण ने दिल्ली सुल्तान इल्तुतमिश के रणथम्भौर पर हुए आक्रमण को विफल कर दिया लेकिन इल्तुतमिश ने दिल्ली में इसका वध करवा दिया।
  • वागभट्ट ने पुन: रणथम्भौर दुर्ग पर अधिकार कर पुन: यहाँ चौहान वंश का शासन स्थापित किया।      

हम्मीर देव (1282 ई. – 1301 ई.)

  • रणथम्भौर का सर्वाधिक प्रतापी शासक हम्मीर देव चौहान हुआ जो 1282 ई. में यहाँ का शासक बना।
  • हम्मीर देव के शासनकाल के बारे में जानकारी कवि जोधराज द्वारा रचित ‘हम्मीर रासो’, नयनचन्द्र सूरी द्वारा रचित ‘हम्मीर महाकाव्य’ व ‘सुर्जन चरित’ ,चन्द्रशेखर द्वारा रचित ‘हम्मीर हठ’ तथा व्यास भाँडउ द्वारा रचित ‘हम्मीरायण’ आदि ग्रन्थों से मिलती है।
  • अमीर खुसरो तथा जियाउद्दीन बरनी द्वारा रचित ग्रंथों से भी यहाँ की तत्कालीन स्थितियों के बारे में जानकारी मिलती है।
  • हम्मीर देव ने शासक बनने के बाद सर्वप्रथम भीमरस के शासक अर्जुन को परास्त कर माण्डलगढ़ को अपने अधीन किया तथा परमार शासक भोज को भी पराजित किया।
  • हम्मीर देव ने मेवाड़ के शासक समरसिंह को भी परास्त कर अपना राज्य विस्तार किया।
  • दिल्ली शासक जलालुद्दीन खिलजी ने हम्मीर देव की विजयों से चिन्तित होकर 1290 ई. में रणथम्भौर पर आक्रमण कर झाँइन के दुर्ग पर अधिकार कर लिया।
  • इसके बाद जलालुद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर दुर्ग को अपने अधीन करने के लिए कई प्रयास किये लेकिन सफल नहीं हो सका तथा वापस दिल्ली लौट गया।
  • जलालुद्दीन के दिल्ली लौटने के बाद हम्मीर देव ने झाँइन दुर्ग पर पुन: अधिकार कर लिया।
  • जलालुद्दीन ने 1292 ई. में पुन: रणथम्भौर पर अधिकार करने के लिए एक असफल प्रयास किया तथा सफलता न मिलने पर जलालुद्दीन ने कहा कि ‘ऐसे दस दुर्गों को भी मैं मुसलमान के एक बाल के बराबर भी महत्व नहीं देता’।
  • 1296 ई. में अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का शासक बना तथा 1299 ई. में अलाउद्दीन ने अपने सेनानायक उलूग खाँ तथा नुसरत खाँ के नेतृत्व में रणथम्भौर पर आक्रमण के लिए विशाल सेना भेजी जिसने झाँइन दुर्ग पर अधिकार किया।
  • हम्मीर देव ने इस सेना से मुकाबला करने के लिए अपने सेनानायक भीमसिंह एवं धर्मसिंह के नेतृत्व में सेना भेजी।
  • इस संघर्ष में हम्मीर देव के सेनानायक भीमसिंह वीरगति को प्राप्त हुए तथा शेष सेना वापस रणथम्भौर लौट गई।
  • इस संघर्ष में नुसरत खाँ के मारे जाने के बाद अलाउद्दीन स्वयं सेना लेकर रणथम्भौर आया तथा हम्मीर देव के सेनानायक रतिपाल तथा रणमल को प्रलोभन देकर अपनी ओर मिला लिया।
  • हम्मीर देव तथा अलाउद्दीन के मध्य हुए युद्ध में हम्मीर देव तथा इसके कई सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए तथा इसकी रानी रंगदेवी ने अन्य वीरांगनाओं के साथ जौहर किया।
  • 1301 ई. में रणथम्भौर पर अलाउद्दीन खिलजी का अधिकार हो गया।
  • रणथम्भौर का यह युद्ध राजस्थान का पहला साका माना जाता है।
  • इस युद्ध में मुस्लिम इतिहासकार हम्मीर खुसरो भी उपस्थित था तथा इस बारे में उसने लिखा कि ‘आज कुफ्र का घर इस्लाम का घर हो गया’।
  • रणथम्भौर दुर्ग पर अलाउद्दीन खिलजी द्वारा आक्रमण के प्रमुख कारण अलाउद्दीन खिलजी का महत्वकांक्षी होना, हम्मीर देव द्वारा राजकर न देना तथा अलाउद्दीन के विद्रोही सेनानायक मुहम्मदशाह को हम्मीर देव द्वारा शरण देना आदि थे।
  • हम्मीर देव एक महान यौद्धा एवं सेनानायक था जिसने कुल लड़े गये 17 युद्धों में से 16 युद्धों में विजय प्राप्त की थी।

जालौर के चौहान

  • जालौर का प्राचीन नाम जाबालीपुर था जो गुर्जर प्रदेश का एक भाग था। 
  • पूर्व में यहाँ प्रतिहारों का शासन था।  डॉ. दशरथ शर्मा के अनुसार प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम ने जालौर को अपनी राजधानी बनाया तथा जालौर दुर्ग का निर्माण भी करवाया। 
  • प्रतिहारों के बाद परमारों ने इस क्षेत्र में अपना शासन स्थापित किया।
  • जालौर में चौहान वंश की स्थापना नाडोल के शासक अल्हण के पुत्र कीर्तिपाल चौहान द्वारा 1182 ई. में की गई।
  • सुन्धा पर्वत अभिलेख में कीर्तिपाल को ‘राजेश्वर’ कहा गया है तथा इसी के वंशज सोनगरा चौहान कहलाये।
  • समर सिंह ने जालौर दुर्ग को आैर अधिक सुदृढ़ बनाया तथा अपनी पुत्री का विवाह गुजरात के चालुक्य शासक भीमदेव द्वितीय के साथ किया।
  • उदयसिंह यहाँ का शक्तिशाली शासक था जिसने इल्तुतमिश के आक्रमण को विफल कर दिया था।
  • उदयसिंह के बाद चाचिंग देव जालौर का शासक बना।
  • सामंत सिंह के शासन काल में दिल्ली सुल्तान फिरोजशाह तुगलक ने जालौर पर आक्रमण के लिए सेना भेजी लेकिन वह जालौर विजय करने में असफल रहा।

कान्हड़ देव

  • 1305 ई. में कान्हड़ देव सोनगरा जालौर का शासक बना।
  • कान्हड़ देव शक्तिशाली एवं पराक्रमी शासक था जिसने जालौर राज्य का विस्तार किया।
  • दिल्ली से गुजरात व मालवा जाने के मार्ग में जालौर एक महत्वपूर्ण केन्द्र के रूप में था।
  • दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के लिए कान्हड़ देव का जालौर के शक्तिशाली शासक के रूप में होना असहनीय था।
  • कान्हड़ देव ने गुजरात जा रही अलाउद्दीन की सेना को अपने राज्य से गुजरने नहीं दिया तथा साथ ही कान्हड़ देव ने अपने सेनानायक जेता देवड़ा के नेतृत्व में गुजरात आक्रमण करके वापस आ रही अलाउद्दीन की सेना पर आक्रमण कर दिया। इस घटना से अलाउद्दीन अत्यधिक नाराज हुआ।
  • अलाउद्दीन ने 1305 ई. के आसपास अपने सेनापति के नेतृत्व में जालौर दुर्ग पर आक्रमण के लिए सेना भेजी, परन्तु कान्हड़ देव की सेना ने इस आक्रमण को विफल कर दिया।
  • 1308 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने पुन: जालौर आक्रमण के लिए सेना भेजी तथा उसी मार्ग में स्थित सिवाणा के दुर्ग पर आक्रमण किया परन्तु सातलदेव सोनगरा ने इस आक्रमण को विफल कर दिया। इस संघर्ष में अलाउद्दीन का सेनापति नाहरखाँ मलिक मारा गया।
  • इस घटना के पश्चात अलाउद्दीन खिलजी स्वयं सेना लेकर सिवाणा पहुँचा।
  • कान्हड़दे प्रबंध के अनुसार अलाउद्दीन ने कान्हड़ देव के सैनिक भावले परमार को लालच देकर अपनी ओर मिला लिया तथा दुर्ग के पेयजल स्रोत में गौ रक्त मिलाकर अपवित्र करवा दिया।
  • पेयजल स्रोत के अपवित्र होने तथा रसद सामग्री की कमी के कारण वीर सातलदेव सोनगरा तथा अन्य राजपूत सैनिकों ने केसरिया बाना पहनकर अलाउद्दीन की सेना पर आक्रमण कर दिया तथा मातृभूमि की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हुए।
  • इस प्रकार अलाउद्दीन का सिवाणा दुर्ग पर अधिकार हो गया तथा इस दुर्ग का नाम खैराबाद रख दिया। दुर्ग का आधिपत्य अलाउद्दीन खिलजी ने कमालुदीन गुर्ग को सौंप दिया।

अलाउद्दीन खिलजी का जालौर आक्रमण :-

  • सिवाणा दुर्ग पर अधिकार के बाद अलाउद्दीन की सेना ने वहाँ के लोगों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया जिस कारण कान्हड़ देव की सेना ने अलाउद्दीन खिलजी की सेना पर आक्रमण कर दिया तथा उसके सेनानायक शम्स खाँ को बंदी बना लिया।
  • वर्ष 1311 में अलाउद्दीन खिलजी स्वयं जालौर आक्रमण के लिए सेना लेकर पहुँचा तथा कमालुद्दीन गुर्ग के नेतृत्व में दुर्ग पर घेरा डाला गया।
  • बीका दहिया द्वारा मुस्लिम सेना को दुर्ग मंे प्रवेश का गुप्त मार्ग बता दिया गया जिससे अलाउद्दीन खिलजी की सेना गुप्त मार्ग से दुर्ग में प्रवेश कर गई।
  • कान्हड़ देव तथा अलाउद्दीन खिलजी की सेना में भीषण संघर्ष हुआ। कान्हड़ देव, उसका पुत्र वीरम देव व अन्य राजपूत यौद्धा इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए तथा महिलाओं ने जौहर किया।
  • इस प्रकार 1311-12 ई. में अलाउद्दीन खिलजी का जालौर दुर्ग पर अधिकार हो गया।
  • कान्हड़ देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के मध्य इस युद्ध की जानकारी पद्मनाभ द्वारा रचित ‘कान्हड़दे प्रबंध’ तथा ‘वीरमदेव सोनगरा की वात’ में मिलती है।

नाडोल के चौहान

▪ शाकंभरी के चौहान शासक वाक्पतिराज के पुत्र लक्ष्मण चौहान ने 960 ई. के आसपास चावड़ा राजपूतों के आधिपत्य को समाप्त कर नाडोल में चौहान वंश की स्थापना की।

▪ शाकंभरी से निकलने वाली यह चौहानों की सबसे प्राचीन शाखा थी।

▪ लक्ष्मण चौहान ने नाडोल में अपनी कुलदेवी आशापुरा देवी के मंदिर का निर्माण करवाया।

▪ सुंधा पर्वत अभिलेख से ज्ञात होता है कि यहाँ के शासक बलीराज ने मालवा शासक मुंज काे पराजित किया था।

▪ हेमाचार्य सूरी के ग्रंथ ‘द्वयाश्रय काव्य’ के अनुसार यहाँ के शासक महेन्द्र ने अपनी बहिन के विवाह हेतु स्वयंवर का आयोजन किया था।

▪ महेन्द्र के बाद अणहिल्ल नाडोल का शासक बना जिसने गुजरात शासक भीमदेव प्रथम को पराजित किया।

▪ किराडु अभिलेख के अनुसार अल्हण देव जैन धर्मावलम्बी था जिसने हर माह की अष्टमी, एकादशी तथा चतुर्दशी के दिन जीव हिंसा पर रोक लगाई थी।

▪ अल्हण के पुत्र कीर्तिपाल ने ही जालौर में चौहान वंश की स्थापना की थी। कालांतर में जालौर के चौहान शक्तिशाली होते गये तथा 13वीं शताब्दी के प्रांरभ में नाडोल राज्य को अपने राज्य में मिला लिया।

सिरोही के चौहान

  • सिरोही का प्राचीन नाम अर्बुदांचल था। कर्नल जेम्स टॉड ने सिरोही का मूलनाम ‘शिवपुरी’ बताया है।
  • सिरोही में देवड़ा शाखा के चौहानों का संस्थापक लुम्बा था जो जालौर के चाैहानों की देवड़ा शाखा का वंशज था।
  • लुम्बा ने परमारों से आबू एवं चंद्रावती का क्षेत्र जीतकर स्वतंत्र राज्य की स्थापना की तथा चंद्रावती को अपनी राजधानी बनाया।
  • चन्द्रावती गुजरात जाने के मार्ग में स्थित होने के कारण यहाँ पर मुस्लिम आक्रमण होते थे जिस कारण शिवभान ने सरणवा पहाड़ी पर दुर्ग का निर्माण करवाया तथा 1405 ई. में शिवपुरी नगर की स्थापना की।
  • शिवभान के बाद उसका उत्तराधिकारी सहसमल हुआ जिसने 1425 ई. में सिरोही नगर की स्थापना कर उसे अपनी राजधानी बनाया।
  • सहसमल के समय मेवाड़ का शासक राणा कुंभा था, सहसमल ने मेवाड़ के कुछ क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था।
  • राणा कुंभा ने सहसमल के विरुद्ध डोडिया नरसिंह के नेतृत्व में सेना भेजकर वापस अपने क्षेत्रों पर तथा सिरोही के पूर्वी भाग पर अधिकार कर लिया।
  • 1451 ई. में लाखा देवड़ा सिरोही का शासक बना। इसने मेवाड़ के अधीन अपने कई क्षेत्र वापस अधिकार में कर लिए जब राणा कुंभा गुजरात व मांडु के शासकों के विरुद्ध अभियान में व्यस्त था।
  • लाखा ने मेवाड़ शासक उदा के समय आबू का क्षेत्र भी वापस अपने अधीन कर लिया।
  • लाखा ने कालिका माता की मूर्ति सिरोही में स्थापित करवाई।
  • लाखा ने लाखनाव तालाब का निर्माण करवाया।
  • यहाँ के शासक जगमाल ने बहलोल लोदी के विरुद्ध युद्ध में मेवाड़ शासक रायमल का साथ दिया।
  • जगमाल ने जालौर शासक मजीद खाँ को भी हराया था।
  • जगमाल ने सिरोही आये मेवाड़ राजकुमार पृथ्वीसिंह को जहर दे दिया जिस कारण पृथ्वीसिंह की मृत्यु हो गई।
  • सिरोही शासक अखैराज को ‘उडना अखैराज’ के नाम से भी जाना जाता है।
  • रायसिंह ने भीनमाल पर अधिकार करने के लिए आक्रमण किया था जिसके दौरान उनकी मृत्यु हो गई थी।
  • सिरोही शासक महाराव सुरताण ने सिरोही का आधा राज्य अकबर को सौंपकर उनकी अधीनता स्वीकार की। अकबर ने सेवा में आये महाराणा प्रताप के भाई जगमाल को यह क्षेत्र दिया था।
  • जगमाल ने पूरा सिरोही अपने अधिकार में करने के उद्देश्य से आक्रमण किया। 1583 ई. में दोनों सेनाओं के मध्य युद्ध हुआ जिसमें महाराव सुरताण विजयी हुए तथा इन्होंने सिरोही दुर्ग पर अधिकार कर लिया। 
  • इस युद्ध में कवि दुरसा आढ़ा उपस्थित थे।
  • महाराव सुरताण ने मारवाड़ शासक राव चंद्रसेन को अपने राज्य में संरक्षण दिया था।
  • उदयभान अपने पिता महाराव अखैराज II को कैद कर स्वयं शासक बन गया मेवाड़ शासक राजसिंह ने अपनी सेना भेजकर उदयभान काे शासक हटाकर वापस अखैराज II को शासक बनाया।
  • 1705 ई. में महाराव मानसिंह सिराेही के शासक बने जिन्होंने सिरोही मे पक्के लोहे की तलवारें बनवाना आरंभ करवाया।
  • सिरोही की ये पक्के लोहे की तलवारें ‘मानसाही’ नाम से प्रसिद्ध हुई।
  • महाराव शिवसिंह के समय 11 सितम्बर, 1823 को सिरोही राज्य की संधि अंग्रेजों के साथ हुई।
  • राजस्थान एकीकरण के छठे चरण में जनवरी, 1950 में सिरोही का राजस्थान में  विलय किया गया जबकि 1 नवम्बर, 1956 को आबू-दिलवाड़ा का भी राजस्थान में विलय कर दिया गया।

हाड़ौती के चौहान

  • हाड़ौती क्षेत्र में मध्यकाल तक मीणा जाति का शासन था।
  • 1241 ई. के लगभग देवा चौहान ने मीणा शासक जैता को पराजित कर हाड़ौती में चौहान वंश की स्थापना की।
  • देवा चौहान नाडोल के चाैहानों का ही वंशज था।
  • देवा ने अपने राज्य का विस्तार किया तथा गंगेश्वरी देवी के मंदिर का निर्माण करवाया।
  • पूर्व में हाड़ौती का क्षेत्र बूंदी के क्षेत्र में ही आता था। मीणा शासक बूंदा मीणा के नाम पर बूंदी नामकरण हुआ।
  • देवा ने अपने जीवनकाल में ही अपने पुत्र समरसिंह को राज्य सौंप दिया।
  • समरसिंह ने अपने पुत्र जैत्रसिंह के सहयोग से कोटिया भीलों को पराजित कर कोटा का भू-भाग अपने अधीन कर लिया था जिस पर शासन का अधिकार अपने पुत्र जैत्रसिंह को दिया।
  • यहाँ के शासक नापूजी ने अपने राज्य का विस्तार दक्षिण में पाटन तथा उत्तर में टोडा तक किया।
  • नापूजी की मृत्यु 1304 ई. में अलाउद्दीन खिलजी के विरुद्ध युद्ध करते समय हुई।
  • राव वीर सिंह के समय मेवाड़ शासक क्षेत्रसिंह ने बूंदी पर आक्रमण कर बूंदी पर अधिकार कर लिया था।
  • मेवाड़ शासक राणा लाखा ने हामूजी के शासनकाल में बूंदी पर आक्रमण किया जिसे हामूजी ने परास्त कर दिया।
  • राणा लाखा ने शपथ ली कि वे बूंदी दुर्ग पर अधिकार करने पश्चात ही अन्न जल ग्रहण करेंगे। राणा लाखा के इस प्रण को पूरा करने के लिए बूंदी के दुर्ग की मिट्‌टी की प्रतिकृति बनाई गई जिसे राणा लाखा ने ध्वस्त कर अपना प्रण पुरा किया।
  • यहाँ के शासक नारायण दास ने मेवाड़ महाराणा सांगा से अच्छे सम्बन्ध स्थापित किए तथा खानवा के युद्ध में राणा सांगा का साथ दिया।
  • बूंदी शासक सूरजमल की हत्या मेवाड़ शासक रतनसिंह II ने शिकार खेलते समय कर दी।
  • सूरजमल के बाद राव सूरताण सिंह शासक बना जो मालवा सुल्तान के बूंदी आक्रमण के समय रायमल खींची की शरण में चला गया।
  • सुरजन सिंह ने अपने राज्य का विस्तार किया तथा कोटा को पठानों के अधिकार से स्वतंत्र कर पुन: बूंदी राज्य में मिलाया।
  • राव सुरजन सिंह ने रायमल खींची से बूंदी के क्षेत्र वापस जीते तथा रणथम्भौर दुर्ग पर अधिकार किया।
  • मुगल शासक अकबर रणथंभौर दुर्ग अपने अधीन करना चाहता था लेकिन कई दिनों के घेरे के पश्चात भी वह दुर्ग नहीं जीत सका।
  • कच्छवाहा शासक भगवंतदास ने मध्यस्थता कर 1569 में अकबर तथा सुरजन सिंह के मध्य संधि करवाई तथा सुरजन सिंह को अकबर की अधीनता के लिए राजी किया।
  • इस प्रकार रणथंभौर पर मुगलों का अधिकार हो गया।
  • खुर्रम ने अपने पिता जहाँगीर के शासनकाल में विद्रोह कर दिया था जिसके कारण खुर्रम को बुरहानपुर में कैद कर लिया गया। इस समय राव रतन सिंह व इनके पुत्र माधोसिंह ने खुर्रम की सहायता की तथा शाही दरबार में उपस्थित होने के आदेश पर खुर्रम को गुप्त रूप से भगा दिया।
  • शाहजहाँ (खुर्रम) ने 1631 में माधोसिंह को कोटा का स्वतंत्र शासक घोषित किया।
  • इस प्रकार बूंदी रियासत का एक भाग कोटा स्वतंत्र रियासत बना तथा माधोसिंह वहाँ के पहले स्वतंत्र शासक बने।
  • बहादुर शाह जफर ने बूंदी शासक बुद्ध सिंह को कोटा पर अधिकार करने की स्वीकृति दे दी क्योंकि उत्तराधिकार युद्ध में बुद्ध सिंह ने उनका साथ दिया था।
  • बुद्ध सिंह ने कोटा पर आक्रमण किया परंतु वहाँ के शासक महाराव भीमसिंह ने उन्हें पराजित किया।
  • 1713 में कोटा महाराव भीमसिंह ने बूंदी की सेना को पराजित कर बूंदी राज्य पर अधिकार कर लिया।
  • 1715 में शाही सेना की सहायता से बूंदी को वापस स्वतंत्र करवाया गया।
  • 1719 में महाराव भीम सिंह ने पुन: बूंदी पर अधिकार कर लिया लेकिन 1720 में भीमसिंह की मृत्यु के बाद कोटा के दीवान भगवानदास ने बूंदी का शासन वापस बुद्ध सिंह को सौंप दिया।
  • 1733 ई. में जयपुर के सवाई जयसिंह ने बूंदी पर अधिकार करने के उद्देश्य से आक्रमण कर बुद्ध सिंह को वहाँ से भगा दिया तथा करवर के जगीरदार सालिम सिंह के पुत्र दलेल सिंह को बूंदी का शासक बना दिया।
  • राजस्थान में मराठों का सर्वप्रथम प्रवेश बूंदी में हुआ जब 1734 में बुद्धसिंह की रानी ने अपने पुत्र उम्मेद सिंह काे शासक बनाने के पक्ष में मराठा सरदार मल्हारराव होल्कर व राणोजी को आमंत्रित किया।
  • 12 अप्रैल, 1734 को मल्हारराव होल्कर ने बूंदी पर अधिकार कर यहाँ का शासन उम्मेद सिंह को सौंप दिया लेकिन सवाई जयसिंह ने पुन: बूंदी पर अधिकार कर दलेलसिंह को शासक बना दिया। 
  • 1 अगस्त, 1748 को पेशवा बाजीराव, उम्मेदसिंह, कोटा महाराव के दूत तथा ईश्वरी सिंह के भाई माधो सिंह ने बगरू के युद्ध में जयपुर शासक ईश्वरी सिंह को पराजित किया तथा बूंदी का शासन उम्मेद सिंह को सौंप दिया।
  • 1770 ई. में उम्मेद सिंह ने अपने पुत्र अजीत सिंह को शासनभार सौंपकर संन्यास ग्रहण कर लिया।
  • 1818 ई. में बूंदी शासक विष्णु सिंह ने ईस्ट इंडिया कम्पनी के साथ सुरक्षा संधि सम्पन्न की।
  • 25 मार्च, 1948 को बूंदी का विलय राजस्थान संघ में किया गया।

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