राजस्थान के प्रमुख ऐतिहासिक युद्ध

Estimated reading: 1 minute 90 views

(1) अजमेर का युद्ध :- सन् 1024 में महमूद गजनवी ने अजमेर पर आक्रमण कर गढ़बिठली पर घेरा डाला लेकिन गजनवी के घायल हो जाने पर वह अन्हिलवाड़ा चला गया।

(2) आनासागर का युद्ध :- सन् 1135 में अजमेर शासक अर्णोराज एवं मुस्लिम आक्रमणकारियों के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें अर्णोराज की विजय हुई। अर्णोराज ने इस विजय के उपलक्ष्य में युद्ध स्थल पर आनासागर झील का निर्माण करवाया।

(3) माउंटआबू का युद्ध :- सन् 1178 में मोहम्मद गौरी एवं आबू के परमार शासक धरणीवराह धारावर्ष के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें मोहम्मद गौरी की पराजय हुई। कुछ इतिहासकार यह युद्ध मोहम्मद गौरी को अन्हिलपाटन के राजा मूलराज द्वितीय द्वारा पराजित होना बताते हैं।

(4) कायन्द्रा का युद्ध :- सन् 1178 में मोहम्मद गौरी एवं नाडोल के कीर्तिपाल चौहान के मध्य कायन्द्रा (सिरोही राज्य) में यह युद्ध हुआ जिसमें मोहम्मद गौरी घायल हो गया।

(5) गहड़वालों का युद्ध :- सन् 1185 में पृथ्वीराज चौहान एवं जयचन्द के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें पृथ्वीराज चौहान की विजय हुई।

(6) तराईन का प्रथम युद्ध :- सन् 1191 में पृथ्वीराज चौहान एवं मोहम्मद गौरी के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें पृथ्वीराज चौहान की विजय हुई। वर्तमान में तराईन नामक स्थल हरियाणा में करनाल के निकट स्थित है।

(7) तराईन का द्वितीय युद्ध :- सन् 1192 में पृथ्वीराज चौहान एवं मोहम्मद गौरी के मध्य हुए इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार हुई एवं पृथ्वीराज चौहान को बन्दी बना लिया गया। गौरी ने अजमेर आकर पृथ्वीराज के पुत्र गोविन्दराज को गद्दी पर बिठाया।

(8) चन्दावर का युद्ध :- सन् 1194 में कन्नौज के शासक जयचन्द एवं मोहम्मद गौरी के मध्य हुए इस युद्ध में जयचन्द की पराजय हुई एवं जयचन्द इस युद्ध में मारा गया।

(9) भूताला का युद्ध :- सन् 1226-27 में मेवाड़ शासक जैत्रसिंह एवं इल्तुतमिश के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें मेवाड़ शासक जैत्रसिंह विजय हुआ। भूताला नामक स्थान वर्तमान में राजसमंद जिले में नाथद्वारा के निकट स्थित है।

(10)  रणथम्भौर का युद्ध :- सन् 1301 में दिल्ली सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी एवं रणथम्भौर शासक हम्मीरदेव चौहान के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें अलाउद्दीन खिलजी की विजय हुई। इस युद्ध में हम्मीरदेव के सेनापति रणमल एवं रतिपाल ने विश्वासघात कर खिलजी का साथ दिया। इस युद्ध के समय राजस्थान का प्रथम साका (केसरिया-हम्मीरदेव, जौहर-रंगदेवी) हुआ। इस युद्ध में अलाउद्दीन खिलजी का एक सेनापति नुसरत खाँ मारा गया। इस युद्ध में प्रसिद्ध इतिहासकार अमीर खुसरो उपस्थित था। अलाउद्दीन खिलजी ने 11 जुलाई 1301 ई. को रणथम्भौर दुर्ग पर अधिकार कर लिया।

(11)  चित्तौड़ का युद्ध :- सन् 1303 में चित्तौड़ शासक रतनसिंह एवं दिल्ली सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के मध्य हुए इस युद्ध में अलाउद्दीन खिलजी की विजय हुई। इस युद्ध में राणा रतनसिंह युद्ध करते मारे गए एवं उनकी पत्नी पद्‌मिनी ने जौहर किया। इस युद्ध में प्रसिद्ध योद्धा गोरा एवं बादल शहीद हुए थे। इतिहासकार अमीर खुसरो भी इस युद्ध में उपस्थित था। इस युद्ध में चित्तौड़ का प्रथम साका एवं राजस्थान का दूसरा साका हुआ था। चित्तौड़ विजय के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ का शासन अपने पुत्र खिज्र खाँ को सौंपकर चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद कर दिया। इस युद्ध के साथ चित्तौड़ की ‘रावल शाखा’ के शासन का अंत हुआ।

(12)  सिवाना का युद्ध :- सन् 1308 में अलाउद्दीन खिलजी एवं सिवाना शासक सीतलदेव पंवार के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें सीतलदेव वीरगति को प्राप्त हुआ एवं खिलजी की विजय हुई। खिलजी ने सिवाना का नाम बदलकर खैराबाद रखा। सिवाना वर्तमान में बाड़मेर जिले में स्थित है।

(13)  13 वर्षीय युद्ध :- सन् 1298-1311 के मध्य अलाउद्दीन खिलजी एवं कान्हड़देव सोनगरा के मध्य लड़े गए युद्ध जिसमें अलाउद्दीन खिलजी विजय हुआ।

(14)  जालौर का युद्ध :- सन् 1311-12 में अलाउद्दीन खिलजी एवं जालौर के चौहान शासक कान्हड़देव सोनगरा के मध्य लड़े गए इस युद्ध में कान्हड़देव एवं उसके पुत्र वीरमदेव लड़ते हुए शहीद हो गए एवं खिलजी की विजय हुई। खिलजी ने जालौर को जीतने के बाद इसका नाम बदलकर जलालाबाद रख दिया। कान्हड़देव की पराजय का प्रमुख कारण उसके सरदार ‘बीका दहिया’ का विश्वासघात करना था।

(15)  भटनेर का युद्ध :- सन् 1398 में भटनेर के भाटी राजपूत शासक राय दुलचन्द एवं तैमूर के मध्य लड़े गए इस युद्ध में तैमूर की विजय हुई। तैमूर ने भटनेर नगर को जलाकर भस्म कर दिया एवं वहाँ की जनता को क्रूर तरीके से मौत के घाट उतार दिया। इस युद्ध के समय मुस्लिम महिलाओं ने भी जौहर किया था।

(16)  नागौर का युद्ध :- सन् 1423 में नागौर के भाटियों, साँखलों एवं मुसलमानों ने जोधपुर शासक राव चूड़ा से यह युद्ध लड़ा जिसमें राव चूड़ा वीरगति को प्राप्त हुआ।

(17)  सारंगपुर का युद्ध :- सन् 1437 में मेवाड़ शासक महाराणा कुंभा एवं मालवा (मांडू) सुल्तान महमूद खिलजी प्रथम के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें महाराणा कुंभा की विजय हुई। कुंभा ने इस युद्ध की विजय के उपलक्ष्य में चित्तौड़ दुर्ग में विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया। विजय स्तम्भ भगवान विष्णु को समर्पित 9 मंजिला इमारत है। सारंगपुर वर्तमान में मध्यप्रदेश के शाजापुर में स्थित है।

(18)  कुंभलगढ़ का युद्ध :- सन् 1443 में महाराणा कुंभा एवं मालवा सुल्तान महमूद खिलजी के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें महमूद खिलजी पराजित हुआ।

(19)  कोसाणा का युद्ध :- सन् 1492 में जोधपुर शासक सातलदेव एवं अजमेर के मल्लू खाँ के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें यमन सेनापति घडूला मारा गया। तब से मारवाड़ में घडूले के मेले का प्रचलन प्रारम्भ हुआ।

(20)  खातौली का युद्ध :- सन् 1517 में दिल्ली सुल्तान इब्राहिम लोदी एवं मेवाड़ के महाराणा सांगा के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें महाराणा सांगा की विजय हुई। खातौली नामक स्थान वर्तमान में बूँदी जिले में स्थित है।

(21)  बाड़ी का युद्ध :- सन् 1518-19 में मेवाड़ शासक महाराणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को पराजित कर बूँदी राज्य को जीता। बाड़ी नामक स्थान वर्तमान में धौलपुर जिले में है। इस युद्ध को ‘धौलपुर का युद्ध’ भी कहा जाता है।

(22)  गागरोन का युद्ध :- सन् 1519 में मेवाड़ शासक महाराणा सांगा व मालवा सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें महमूद खिलजी की पराजय हुई।

(23)  बयाना का युद्ध :- 16 फरवरी 1527 ई. को राणा सांगा एवं बाबर के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें राणा सांगा की विजय हुई। बयाना वर्तमान में भरतपुर जिले में है।

(24)  खानवा का युद्ध :- 17 मार्च 1527 ई. को खानवा में राणा सांगा एवं मुगल शासक बाबर के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें बाबर की विजय हुई। बाबर ने इस युद्ध को ‘जिहाद’ (धर्मयुद्ध) घोषित किया। इस युद्ध में डूंगरपुर के रावल उदयसिंह, रावत रतन सिंह चूडावत और हसन खाँ मेवाती जैसे वीर सेना नायक वीरगति को प्राप्त हुए। बाबर ने इस युद्ध में तुलुगुमा पद्धति को अपनाया। भारत में पहली बार इस युद्ध में बारूद का प्रयोग किया गया। खानवा वर्तमान में भरतपुर जिले के रूपवास तहसील में स्थित है। इस युद्ध में सांगा को घायलावस्था में कालपी ले जाया गया जहाँ सांगा के सरदारों द्वारा ही सांगा को विष दे दिया गया। बसवा (दौसा) नामक स्थान पर राणा सांगा की मृत्यु हो गई। मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) में महाराणा सांगा की छतरी निर्मित है। खानवा युद्ध से पूर्व राणा सांगा ने ‘पाती पेरवन’ नामक परंपरा का निर्वहन किया जिसमें सभी राजपूत शासकों को अपनी तरफ से लड़ने का निमंत्रण दिया जाता है।

(25)  चित्तौड़ का दूसरा युद्ध :- सन् 1534 में मेवाड़ शासक विक्रमादित्य एवं गुजरात सुल्तान बहादुर शाह के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें बहादुर शाह विजयी हुआ। इस युद्ध से पूर्व विक्रमादित्य की माता एवं संरक्षिका रानी कर्णावती (कर्मावती) ने हुमायूँ को सहायता के लिए अनुरोध करते हुए राखी भेजी थी लेकिन हुमायूँ समय पर सहायता नहीं कर सका। इस युद्ध में चित्तौड़ का दूसरा साका हुआ जिसमें केसरिया देवलिया रावत बाघसिंह एवं जौहर रानी कर्मावती के नेतृत्व में किया गया।

(26)  बिलग्राम का युद्ध :- सन् 1540 में अफगान शासक शेरशाह सूरी एवं हुमायूँ के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें हुमायूँ की हार हुई।

(27)  पाहेबा / साहेबा का युद्ध :- सन् 1541-42 में जोधपुर के शासक राव मालदेव एवं बीकानेर शासक राव जैतसी के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें राव मालदेव की विजय हुई। पाहेबा नामक स्थान वर्तमान में जोधपुर जिले के निकट फलोदी में स्थित है।

(28)  रायसीन का युद्ध :- सन् 1543 में चौहान पूर्णमल एवं शेरशाह सूरी के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें शेरशाह की विजय हुई।

(29)  गिरि सुमेल का युद्ध :- मारवाड़ शासक मालदेव एवं अफगान शासक शेरशाह सूरी के मध्य यह युद्ध सन् 1544 में लड़ा गया जिसमें शेरशाह सूरी की विजय हुई। इस युद्ध में मालदेव के वीर सेना नायक जैता एवं कूंपा वीरगति को प्राप्त हुए। इस युद्ध के बाद शेरशाह ने कहा कि ‘एक मुट्‌ठी भर बाजरे के लिए मैं पूरी हिन्दुस्तान की बादशाहत को खो देता’। गिरि सुमेल नामक स्थान वर्तमान में पाली जिले के जैतारण के निकट स्थित है।

(30)  हरमाड़ा का युद्ध :- सन् 1557 में जयपुर के पास स्थित हरमाड़ा के मैदान में मारवाड़ शासक मालदेव एवं अजमेर के पठान सेना नायक हाजी खाँ की संयुक्त सेना ने मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह एवं मेड़ता के जयमल राठौड़ की सेनाओं को हराकर मेड़ता पर पुन: अधिकार कर लिया।

(31)  चित्तौड़गढ़ का तीसरा युद्ध :- फरवरी 1568 ई. में अकबर एवं मेवाड़ शासक उदयसिंह के मध्य यह युद्ध लड़ा गया। उदयसिंह ने किले की रक्षा का भार बदनौर जागीरदार जयमल राठौड़ एवं आमेट जागीरदार पत्ता (फता) सिसोदिया को सौंपकर स्वयं उदयपुर चले गये। इस युद्ध में जयमल व पत्ता वीरता से लड़ते हुए शहीद हुए एवं चित्तौड़ दुर्ग में फुल कंवर के नेतृत्व में रानियों ने जौहर किया। अकबर ने 25 फरवरी 1568 को चित्तौड़ दुर्ग पर अधिकार स्थापित कर लगभग 30 हजार लोगों का कत्लेआम कर दिया एवं चित्तौड़ को जीतकर उसका नाम मोमिनाबाद रख दिया।

(32)  हल्दीघाटी का युद्ध :- 18 जून 1576 को गोगुन्दा के निकट हल्दीघाटी में मुगल शासक अकबर के सेनापति मानसिंह एवं महाराणा प्रताप के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें महाराणा प्रताप की हार हुई। प्रताप की तरफ से लड़ने वाले प्रमुख सेनापतियों में हकीम खाँ सूर, झाला मानसिंह,  पूँजा भील, रामसिंह तंवर आदि प्रमुख थे। प्रसिद्ध इतिहासकार बदायूँनी भी इस युद्ध में उपस्थित था। कर्नल टॉड ने इस युद्ध को ‘मेवाड़ की थर्मोपॉली’ कहा है। अबुल फजल ने इस युद्ध को ‘खमनौर का युद्ध’ एवं बदायूँनी ने इस युद्ध को ‘गोगुन्दा का युद्ध’ कहा है। हल्दीघाटी वर्तमान में राजसमंद जिले में है। कुछ इतिहासकार इस युद्ध को 21 जून 1576 से प्रारम्भ मानते हैं।

(33)  कुम्भलगढ़ का युद्ध :- सन् 1578 में महाराणा प्रताप एवं अकबर सेनापति शाहबाज खाँ के मध्य यह युद्ध लड़ा गया। इस युद्ध में शाहबाज खाँ ने कुम्भलगढ़ दुर्ग पर अधिकार स्थापित कर लिया।

(34)  दिवेर का युद्ध :- सन् 1582 में महाराणा प्रताप एवं अकबर सेनापति सेरिमा सुल्तान खाँ के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें महाराणा प्रताप की निर्णायक जीत हुई। कर्नल टॉड ने इस युद्ध को ‘मेवाड़ का मेराथन’ कहा है।

(35)  मतीरे की राड़ का युद्ध :- सन् 1644 में नागौर शासक अमरसिंह एवं बीकानेर शासक कर्णसिंह के मध्य मतीरे की बेल को लेकर यह युद्ध लड़ा गया जिसमें नागौर शासक अमरसिंह विजयी रहा। हालांकि इस युद्ध की अंतिम परिणति अमरसिंह राठौड़ की मृत्यु के रूप में हुई थी।

(36)  धरमत का युद्ध :- सन् 1658 में धरमत (मध्य प्रदेश) नामक स्थान पर शाहजहाँ के पुत्र औरंगजेब एवं दारा शिकाेह के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें औरंगजेब विजयी रहा इस युद्ध में शाहपुरा नरेश सुजानसिंह एवं कोटा नरेश मुकुन्दसिंह धरमत के युद्ध में मारे गये।

(37)  सामूगढ़ का युद्ध :- सन् 1658 में औरंगजेब एवं दारा शिकोह के मध्य लड़े गए इस युद्ध में दारा शिकोह की पराजय हुई। इस युद्ध में बूँदी का राव शत्रुशाल मारा गया।

(38)  खजुवा का युद्ध :- सन् 1659 में औरंगजेब एवं शाह शूजा के मध्य यह युद्ध लड़ा गया। इस युद्ध के प्रारम्भ होने से पूर्व जोधपुर नरेश जसवंत सिंह शाह सूजा के ईशारे पर औरंगजेब की शाही सेना पर लूटमार कर मारवाड़ चला गया।

(39)  दौराई का युद्ध :- सन् 1659 में औरंगजेब एवं दारा शिकोह के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें औरंगजेब विजयी रहा। औरंगजेब ने इस युद्ध में तारागढ़ (अजमेर) पर कब्जा कर लिया। दौराई नामक स्थान वर्तमान में अजमेर जिले के निकट स्थित है।

(40)  30 वर्षीय युद्ध :- 1678 ई. में जमरूद में महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु के पश्चात मारवाड़ पर अधिकार स्थापित करने के लिए  सन् 1678-1707 के मध्य औरंगजेब एवं जोधपुर शासक अजीतसिंह के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें अजीतसिंह विजयी रहा। इस युद्ध में जोधपुर की सेना का नेतृत्व वीर दुर्गादास ने किया।

(41)  जाजऊ का युद्ध :- सन् 1707 में औरंगजेब के पुत्रों मुअज्जम एवं आजम के मध्य यह युद्ध लड़ा गया। इस युद्ध में कोटा का रामसिंह मारा गया।

(42)  पीलसूंद का युद्ध :- जयपुर शासक सवाई जयसिंह एवं मराठों के मध्य लड़ा गया जिसमें मराठों की हार हुई। यह युद्ध सन् 1715 में लड़ा गया।

(43)  मंदसौर का युद्ध :- सन् 1733 में जयपुर शासक सवाई जयसिंह एवं मराठों के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें मराठों की विजय हुई एवं सवाई जयसिंह ने मराठों को चौथ कर देने का समझौता किया।

(44)  रामपुरा का युद्ध :- सन् 1735 में जयपुर शासक सवाई जयसिंह एवं मराठों के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें मराठों की विजय हुई।

(45)  गंगवाणा का युद्ध :- सन् 1741 में जोधपुर शासक अभयसिंह एवं जयपुर नरेश जयसिंह के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें जोधपुर की सेना ने जयपुर की सेना को काफी नुकसान पहुँचाया।

(46)  बिचोड़ का युद्ध :- सन् 1745 में बूँदी नरेश उम्मेदसिंह एवं जयपुर की सेना के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें बूँदी नरेश उम्मेदसिंह विजयी रहा। बिचोड़ नामक स्थान वर्तमान में बूँदी जिले में है।

(47)  राजमहल का युद्ध :- सन् 1747 में जयपुर शासक ईश्वरीसिंह एवं माधोसिंह, मराठा व कोटा की संयुक्त सेना के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें ईश्वरीसिंह की जीत हुई। राजमहल नामक स्थान वर्तमान में टोंक जिले में स्थित है। ईश्वरीसिंह ने राजमहल युद्ध में विजय के पश्चात जयपुर के त्रिपोलिया बाजार में ईसरलाट (सरगासूली) का निर्माण करवाया।

(48)  मानपुरा का युद्ध :-  सन् 1748 में जयपुर नरेश ईश्वरीसिंह एवं अहमदशाह अब्दाली के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें ईश्वरीसिंह विजय हुआ।

(49)  बगरू का युद्ध :- सन् 1748 में माधोसिंह कच्छवाहा ने मल्हार राव होल्कर, उदयपुर महाराणा एवं जोधपुर शासक अभयसिंह के साथ मिलकर जयपुर शासक ईश्वरीसिंह से यह युद्ध लड़ा जिसमें ईश्वरीसिंह पराजय हुआ।

(50)  पीपाड़ का युद्ध :- बख्तसिंह एवं रामसिंह के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें रामसिंह विजयी हुआ। इस युद्ध में रामसिंह की सहायता जयपुर नरेश ईश्वरीसिंह ने की।

(51)  गंगारड़ा का युद्ध :- सन् 1754 में लड़े गए इस युद्ध में जयप्पा सिंधिया ने बीकानेर शासक गजेसिंह, जोधपुर शासक विजयसिंह एवं किशनगढ़ के बहादुरसिंह को परास्त किया।

(52)  मेड़ता का युद्ध :- सन् 1754 में यह युद्ध मराठा एवं विजयसिंह राठौड़ के मध्य लड़ा गया जिसमें मराठों की विजय हुई।

(53)  कांकोड़ का युद्ध :- सन् 1759 में रणथम्भौर दुर्ग पर कब्जा करने के लिए जयपुर एवं होल्कर की सेना के मध्य यह युद्ध लड़ा गया। कांकोड़ का मैदान सवाईमाधोपुर जिले में स्थित है।

(54)  भटवाड़ा का युद्ध :- सन् 1761 में रणथम्भौर दुर्ग पर आधिपत्य को लेकर जयपुर शासक माधोसिंह प्रथम एवं कोटा शासक शत्रुशाल के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें कोटा शासक शत्रुशाल विजयी हुए। इस युद्ध में कोटा राज्य का सेनापति झाला जालिमसिंह था।

(55)  माबन्ड़ा का युद्ध :- सन् 1767 में लड़े गए इस युद्ध में जयपुर एवं मराठा की संयुक्त सेनाओं ने जोधपुर एवं भरतपुर की संयुक्त सेना को हराया।

(56)  कामा का युद्ध :- सन् 1768 में लड़े गए इस युद्ध में माधोसिंह ने जवाहर सिंह को हराया।

(57)  लक्ष्मणगढ़ का युद्ध :- सन् 1778 में मिर्जा नजफ खाँ एवं अलवर के प्रतापसिंह के मध्य यह युद्ध लड़ा गया। यह युद्ध दो महीने तक चला। अंत में अलवर नरेश प्रतापसिंह का नजफ खाँ से समझौता हो गया।

(58)  उज्जैन का युद्ध :- सन् 1769 में महाराजा अरिसिंह एवं महाराणा राजसिंह द्वितीय के पुत्र रतनसिंह के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें महाराणा अरिसिंह की पराजय हुई। मराठों ने इस युद्ध में रतनसिंह का पक्ष लिया।

(59)  तुंगा का युद्ध :- सन् 1787 में लालसोट के निकट लड़े गए इस युद्ध में जयपुर शासक प्रतापसिंह एवं जोधपुर शासक विजयसिंह ने मिलकर मराठा सरदार महादजी सिंधिया को परास्त किया। तुंगा नामक स्थान वर्तमान में दौसा जिले में स्थित है।

(60)  हड़क्याखाल का युद्ध :- सन् 1788 में लड़े गए इस युद्ध में मराठों ने सिसोदियाओं को परास्त किया।

(61)  पाटण का युद्ध :- सन् 1790 में मराठा सरदार महादजी सिंधिया की सेना ने इस युद्ध में जोधपुर नरेश, जयपुर नरेश एवं इस्माइल बेग को परास्त किया।

(62)  मेड़ता का दूसरा युद्ध :- सन् 1790 में जोधपुर नरेश एवं मराठों के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें जोधपुर नरेश विजयसिंह मराठों से परास्त हुआ।

(63)  डंगा का युद्ध :- सन् 1790 में मेड़ता के पास सिंधिया के सेना नायक डी. बोइन ने इस युद्ध में जोधपुर शासक विजयसिंह की सेना को परास्त किया। इस युद्ध के परिणामस्वरूप 5 जनवरी 1791 में सांभर की संधि हुई जिसके अनुसार अजमेर शहर तथा दुर्ग की मरम्मत एवं 60 लाख रुपये मराठों को देना तय हुआ।

(64)  लाखेरी का युद्ध :- सन् 1793 में लड़े गए इस युद्ध में होल्कर की सेना मराठों से परास्त हो गई।

(65)  मालपुरा का युद्ध :- सन् 1800 में लड़े गए इस युद्ध में लकवादादा ने जयपुर की सम्मिलित सेना को परास्त किया। बीकानेर शासक सूरतसिंह ने जयपुर की सहायता के लिए सेना भेजी थी।

(66)  लसवाड़ी का युद्ध :- सन् 1803 में लॉर्ड वेलेजली के सेनापति लॉर्ड लेक एवं मराठों के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें मराठों की हार हुई। अलवर राज्य ने इस युद्ध में अंग्रेजों का साथ दिया। लसवाड़ी नामक स्थान वर्तमान में अलवर जिले में स्थित है।

(67)  बनास का युद्ध :- सन् 1804 में जसवंतराव होल्कर एवं कर्नल मॉनसन के मध्य यह युद्ध लड़ा गया जिसमें कर्नल मॉनसन के बहुत से सैनिक मारे गए।

(68)  बैर का युद्ध :- सन् 1805 में लड़े गए इस युद्ध में लॉर्ड लेक ने होल्कर, सिंधिया तथा अमीर खाँ की सम्मिलित सेना को परास्त किया।

(69)  गींगोली का युद्ध :- सन् 1807 में नागौर जिले में परबतसर के पास गींगोली नामक स्थान पर हुए इस युद्ध में जयपुर शासक जगतसिंह एवं अमीर खाँ पिण्डारी की संयुक्त सेनाओं ने जोधपुर के शासक मानसिंह को हराया। यह युद्ध मेवाड़ की राजकुमारी कृष्णाकुमारी के विवाह को लेकर हुआ था।

(70)  मांगरोल का युद्ध :- सन् 1821 में लड़े गए मांगरोल के युद्ध में कोटा नरेश महारावल किशोरसिंह जालिमसिंह से परास्त होकर नाथद्वारा चला गया। इस युद्ध में अंग्रेजों ने जालिमसिंह का साथ दिया।

(71)  बासमणी का युद्ध :- सन् 1835 में बीकानेर एवं जैसलमेर के नरेशों के मध्य यह युद्ध लड़ा गया। अंत में यह युद्ध आपसी समझौते के साथ खत्म हुआ।

(72)  कुआड़ा का युद्ध :- 9 अगस्त 1857 को लड़े गए इस युद्ध में अंग्रेजों ने तांत्या टोपे को परास्त किया।

(73)  बिथोड़ा का युद्ध :- 8 सितम्बर 1857 को आउवा के निकट बिथोड़ा नामक स्थान पर आउवा ठाकुर कुशालसिंह के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने जोधपुर सेना एवं अंग्रेज कैप्टन हीथकोट की संयुक्त सेना को परास्त किया। बिथोड़ा नामक स्थान पाली में है।

(74)  चेलावास का युद्ध :- 18 सितम्बर 1857 को चेलावास नामक स्थान पर क्रांतिकारियों एवं अंग्रेजों के मध्य युद्ध लड़ा गया जिसमें क्रांतिकारी कुशालसिंह के नेतृत्व में विजयी रहे। इस युद्ध में मारवाड़ पॉलिटिकल एजेंट मैक मेशन की हत्या कर दी गई। इस युद्ध को ‘काला-गोरा का युद्ध’ भी कहा जाता है।(75)  आउवा का युद्ध :- सन् 1858 में लड़े गए इस युद्ध में कर्नल होम्स के नेतृत्व में अंग्रेजी सेनाओं ने ठाकुर कुशालसिंह को परास्त किया।

Leave a Comment

CONTENTS