सिंचाई परियोजनाएँ

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राजस्थान में सिंचित क्षेत्र निम्न प्रकार से हैं :-

सिंचित क्षेत्रफल %

कुओं द्वारा – 69.88 सर्वाधिक सिंचाई – जयपुर

नहरों द्वारा – 28.86 सर्वाधिक सिंचाई – गंगानगर

तालाब व अन्य साधनों द्वारा – 1.26 भीलवाड़ा में।

  • सिंचाई परियोजनाएं तीन प्रकार की होती हैं- (i) वृहद् स्तर (ii) मध्यम स्तर (iii) लघु स्तर।   
  • बहुउद्देशीय- वह परियोजना, जिसके अनेक उद्देश्यों जैसे- पेयजल विद्युत, सिंचाई एवं अन्य कार्य़ों हेतु जल उपलब्ध होता है।
  • वृहद्- वह परियोजना, जिसमें कृषि योग्य कमाण्ड क्षेत्र 10 हजार हैक्टेयर से अधिक हो।
  • मध्यम- वह परियोजना, जिसमें कृषि योग्य कमाण्ड क्षेत्र 2 हजार से अधिक तथा 10 हजार हैक्टेयर तक हो।
  • लघु- वह परियोजना, जिसमें कृषि योग्य कमाण्ड क्षेत्र 2 हजार हैक्टेयर तक हो।

IGNP (राजस्थान नहर) :

  • 1948 में बिकानेर रियासत में पानी की आवश्यकता विषय पर कंवरसैन ने IGNP की रूपरेखा बनाई।
  • उद्घाटन- 31 मार्च, 1958 में गृहमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने किया।
  • प्रारूप (रूपरेखा)– राजस्थान फीडर हरिके बैराज (सतलज व्यास संगम) से मसीता वाली (हनुमानगढ़) तक है। इसकी कुल लम्बाई 204 किमी. है।
  • यह पंजाब-हरियाणा में 170 किमी. तथा राजस्थान में 34 किमी. है।
  • मुख्य नहर : इसके दो भाग हैं- (i) प्रथम भाग- मसीतावाली (हनुमानगढ़) से पूंगल, छतरगढ़ (बीकानेर) तक। इसकी लम्बाई 189 किमी. है।

(ii) द्वितीय भाग- पूंगल, छतरगढ़ से मोहनगढ़ (जैसलमेर) तक आता है। इसकी लम्बाई 256 किमी. है।

  • अतः मुख्य नहर की लम्बाई 189 + 256 = 445 किमी. है तथा Ignp की कुल लम्बाई 649 किमी. है।
  • IGNP के निर्माण के प्रथम चरण का कार्य 1958 से जून, 1975 तक चला जिसमें राजस्थान फीडर तथा मुख्य नहर का प्रथम भाग तथा प्रथम लिफ्ट (बीकानेर लूणकरणसर लिफ्ट नहर- बीकानेर) कैनाल बनी।
  • यह बीकानेर तथा गंगानगर को सींचती है। 1989 में इसका नाम बदलकर ‘कंवरसेन लिफ्ट नहर‘ रख दिया।
  • प्रथम चरण :1986 में पूरा तथा 1 जनवरी, 1987 को पानी मोहनगढ़ पहुंचा।
  • 2 नवम्बर, 1984 को इसका नाम बदलकर IGNP रखा गया। इसकी 9 शाखाएं हैं इन शाखाओं में से रावतसर (हनुमानगढ़) शाखा पूर्व की तरफ है तथा शेष सभी पश्चिम की ओर है।
  • शाखाएँ : (i) रावतसर शाखा- हनुमानगढ़ (नहर के बांयी तरफ) (ii) सूरतगढ़ शाखा-गंगानगर (iii) अनूपगढ़ शाखा-गंगानगर (iv) पूगल शाखा-बीकानेर (v) दन्तौर शाखा-बीकानेर (vi) बिरसलपुर शाखा-बीकानेर (vii) चारणवाला शाखा- बीकानेर-जैसलमेर (viii) शहीद बीरबल शाखा- जैसलमेर (ix) सागरमलगोपा शाखा-जैसलमेर।
  • IGNP की उप शाखाएँ : (i) लीलवा ‘दीघाह‘ (मोहनगढ़ से निकलती है)

 (ii) गड़रारोड़ उपशाखा (सागरमल गोपा शाखा से निकलती है) – इसका नाम पहले बरकतुल्ला खां तथा अब बाबा रामदेव रखा गया है।

  • द्वितीय चरण : इसमें 6 लिफ्ट नहर बनाई गई।
  • वर्तमान में सबसे बड़ी लिफ्ट नहर – बीकानेर में लूणकरणसर।
  • परियोजना में सबसे बड़ी लिफ्ट नहर (प्रस्तावित) – गंधेली-साहवा।   
नहर का नाम परिवर्तित नाम   सिंचित जिले
1. बीकानेर-लूनकरणसर लिफ्ट नहरकँवरसेन लिफ्ट नहर (सबसे लम्बी लिफ्ट नहर)  बीकानेर एवं गंगानगर
2. गंधेली-साहवा लिफ्ट नहरचौधरी कुम्भाराम आर्यबीकानेर, हनुमानगढ़ व चूरू
3. गजनेर लिफ्ट नहरपन्नालाल बारूपाल बीकानेर, नागौर
4. बांगड़सर लिफ्ट नहर (भैरूदान छंगाणी) व वीर तेजाजीबीकानेर
5. कोलायत लिफ्ट नहरकरणीसिंह                     बीकानेर, जोधपुर
6. फलौदी गुरू जम्भेश्वरजैसलमेर, बीकानेर, जोधपुर
7. पोकरण जयनारायण व्यास   जोधपुर, जैसलमेर
  • कुल लिफ्ट नहरे ‘7‘ हैं। एक प्रथम चरण में तथा छः द्वितीय चरण में।
  • 2011-12 में इन लिफ्ट नहरों व IGNP को पूरा कर लिया जायेगा।
  • यह 8 जिलों की सिंचाई व 10 जिलों को पेयजल उपलब्ध कराती है। जिले- गंगानगर, जैसलमेर, बीकानेर, जोधपुर, हनुमानगढ़, नागौर, सीकर, चूरू, बाड़मेर सिंचाई व झुन्झुनूं में पेयजल के लिए।
  • गंग नहर : 5 सितम्बर, 1921 को गंगासिंह द्वारा शीलान्यास। राज्य की प्रथम नहर सिंचाई परियोजना
  • यह सतलज नदी पर हुसैनीवाला (पंजाब) से शिवपुर (गंगानगर) तक है।
  • इसकी कुल लम्बाई 129 किमी. है। पंजाब में 112 किमी. है तथा गंगानगर में 17 किमी. है।
  • चूने से निर्मित।
  • सिंचाई क्षमता 3.08 लाख हैक्टेयर।

– लोकार्पण – लार्ड इरविन के द्वारा 1927 में।

– गंगनहर लिंक कैनाल (चैनल) – निर्माण 1980 में।

उद्देश्य- गंगनहर की मरम्मत के दौरान गंगानगर के लोगों को सिंचाई सुविधा देने के लिए इसका निर्माण किया गया।

– 2000 से इसकी मरम्मत शुरू हुई जो 2008 तक पूर्ण।

– यह लिंक कैनाल लोहगढ़ (हरियाणा) से साधुवाली (गंगानगर) तक बनाई गई।

  • गुड़गांव नहर : ओखला बैराज यमुना नदी पर बना हुआ है।

– इस बैराज से गुड़गांव नहर बनाई गई है जो भरतपुर के ‘जुरहरा‘ गांव से राजस्थान में प्रवेश करती है।

– यह भरतपुर की ‘डींग‘ व ‘कामा‘ दो तहसीलों को यह सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराती है।

  • भरतपुर नहर : आगरा के 111 किमी. वाले माइल स्टोन से भरतपुर नहर निकलती है।

– इसकी लम्बाई 28 किमी. है इसमें से 12 किमी. उत्तरप्रदेश में तथा 16 किमी. भरतपुर में है।

  • बीसलपुर बांध :बनास नदी पर। दायीं व बायीं नहर दो नहरें निकाली गई है। लाभान्वित जिला टोंक है। अजमेर व जयपुर का पेयजल का सुविधा। बहुद्देशीय परियोजना। 
  • जाखम बांध : जाखम नदी पर, यह अनूपपुरा गांव के पास प्रतापगढ़ में है।

इसके नीचे (दक्षिण में) ‘नागलिया पिक अप वीयर‘ बांध बना है।

इस पिक अप वीयर से दो नहरें निकाली गई हैं। इससे लाभान्वित जिला प्रतापगढ़ है।

  • राजीव गांधी सिद्धमुख-नोहर परियोजना : 2002 को लोकार्पण सिद्धमुख (चूरू) तथा नोहर (हनुमानगढ़) में। 113 गांव लाभावन्वित।

– भाखड़ा नहर की फेफाणा शाखा से निकाली गई नहर ‘नोहर‘ तक तथा भिराणी से निकाली गई नहर ‘सिद्धमुख‘ तक आती है।

– यह EEC ‘यूरोपीय आर्थिक समुदाय‘ के सहयोग से निर्मित है।

  • सिद्धमुख-रतनपुरा वितरिका परियोजना : सिद्धमुख नहर से यह शाखा निकाली गई है। यह भी हनुमानगढ़ व चूरू को लाभान्वित करेगी।
  • नर्मदा नहर : इस नहर में राजस्थान का हिस्सा .5 MAF या 5 लाख एकड़ फीट है।
  • इस जल के उपयोग हेतु सरदार सरोवर बांध से नर्मदा नहर निकाली गई।
  • बालेरा, वांक, रतौडा, कैरिया, गांधव, जैसला, मानकी आदि इस नहर की प्रमुख वितरिकाएं है। 1541 गाँव लाभान्वित।

– राजस्थान में ‘सीलू‘ (जालौर) नामक स्थान से प्रवेश। 18 मार्च, 2008 को ‘सीलू‘ में पानी पहुंचा था। इसका लोकार्पण लालपुरा (सांचौर) में वसुंधरा राजे ने 27 मार्च, 2008 को किया।

– यह जालौर व बाड़मेर को पानी उपलब्ध कराती है। यह भारत की पहली सिंचाई परियोजना है जिसमें फव्वारा पद्धति को अनिवार्य किया गया है।

  • ईसरदा बांध : सवाई माधोपुर में बनास नदी पर स्थित। लाभान्वित जिलें- टोंक, सवाई माधोपुर तथा जयपुर शहर को पेयजल मिलेगा।
  • भीखाभाई सागवाड़ा साइफन नहर : डूंगरपुर में माही नदी पर स्थित। डूंगरपुर व बांसवाड़ा लाभान्वित जिले।
  • यमुना जल सिंचाई परियोजना (प्रस्तावित) : यमुना जल सिंचाई समझौता 1994 में हुआ। यह हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश व दिल्ली के बीच हुआ।
  • राजस्थान को 1.119 BMC पानी दिया गया।
  • इस परियोजना से तीन नहरें निकाली जायेंगी-

(i) पश्चिमी यमुना नहर (ii) जवाहरलाल नेहरू नहर (iii) लुहारू नहर।

  • तीन लाभान्वित जिले – भरतपुर, झुन्झुनूं व चूरू।

महत्वपूर्ण तथ्य :

  • रावी- व्यास जल समझौता : 1955 में हुआ। यह पंजाबा, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश तथा दिल्ली के बीच हुआ।
  • इस समझौते को 1984 में इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद पंजाब ने इसे तोड़ दिया।
  • 1986 में ‘इराड़ी कमिशन‘ ने राजस्थान को 8.6 MAF पानी आवंटित किया।
  • राजस्थान को मिलने वाला कुल पानी : 7.59 MAF – IGNP में, .33 – MAF गंग नहर में, .21 MAF भाखड़ा नहर में, .34 MAF सिद्धमुख नहर में तथा .13 MAF नोहर नहर में प्राप्त होता है।
  • व्यास परियोजना का उद्देश्य : शीतकाल में IGNP को सतत् पानी उपलब्ध कराना।
  • व्यास परियोजना पर स्थित पौग व पन्डोह बांधों के द्वारा IGNP व भाखड़ा नागल में पानी पहुंचाया जाता है।

मध्यम सिंचाई परियोजनाएँ

  • झालावाड़ : छापी मध्यम सिंचाई परियोजना (छापी नदी पर)।

   – चाँवली मध्यम सिंचाई परियोजना (चँवली नदी पर)।

      – भीमसागर मध्यम सिंचाई परियोजना (उजाड़ नदी पर)।

  • दसवीं पंचवर्षीय योजना में प्रस्तावित व अब निर्माणाधीन परियोजनाएं :

     – पिपलाद मध्यम सिंचाई परियोजना।

     – गांगरोण मध्यम सिंचाई परियोजना। – आहू नदी पर झालावाड़ में 

     – राजगढ़ मध्यम सिंचाई परियोजना। – कन्थारी – आहू सगंम झालावाड़ 

  • बारां : (i) परवन मध्यम सिंचाई परियोजना, (ii) बैथली मध्यम सिंचाई परियोजना, (iii) बिलास मध्यम सिंचाई परियोजना। (iv) ल्हासी सिंचाई परियोजना
  • कोटा : (i) सावन भादो मध्यम सिंचाई परियोजना (ii) आलनिया मध्यम सिंचाई परियोजना (iii) हरिशचन्द्र सागर मध्यम सिंचाई परियोजना- पुराना नाम कालीसिंध। यह कोटा व झालावाड़ (15 : 3) के बीच। तकली बांध (रामगंज मण्डी)।
  • बूंदी : गुढ़ा, पबैलपुरा, चाकण तथा गरदड़ा में।
  • भीलवाड़ा : मेजा (कोठारी नदी पर), अडवान (मांसी नदी पर) शाहपुरा में, खारी बांध (आसीन्द के पास) खारी नदी पर।
  • नारायण सागर : खारी नदी पर अजमेर में।
  • जोधपुर : जसवंत सागर (लूनी नदी पर)।
  • टोंक : टोरड़ी सागर (खारी नदी पर)।
  • राजसमंद : राजसमंद (गोमती नदी पर) व नन्दसमंद (बनास नदी पर)।
  • जालौर : बाँकली बांध (सुकड़ी नदी पर) व बाड़ी सेदड़ा (बांड़ी नदी पर)।
  • पाली : जवाई बांध। सेई बाँध।
  • उदयपुर : (i) जयसमंद तथा (ii) सेई परियोजना- इसके अन्तर्गत उदयपुर जिले की ‘कोटड़ा‘ तहसील में सेई बांध बनाया गया तथा अरावली में सुरंग बनाकर इसका पानी जवाई में डाला गया है।

     (iii) सोम-कागदर-खैरवाड़ा तहसील में सोम नदी पर। कागदर गांव के पास खारी नदी पर।

  • डूंगरपुर : सोम-कमला-अम्बा। लाभान्वित जिले डूंगरपुर तथा उदयपुर।
  • सिरोही : वेस्ट बनास बांध तथा सुकली सेलवाड़ बांध।
  • भरतपुर : बंध बारेठा बांध तथा अजान बांध। मोती झील।
  • धौलपुर : पार्वती बांध।
  • करौली : पांचना बांध, काली सील तथा इंदिरा सागर लिफ्ट योजना।
  • सवाईमोधापुर : मोरेल बांध, पीपलदा, सूरवाल तथा मोरा सागर।

राजस्थान की प्रमुख पेयजल परियोजनाएँ

  • मानसी वाकल परियोजना- मानसी वाकल नदी पर उदयपुर के निकट गोराण गाँव में मानसी वाकल बांध का निर्माण। यह देश की सबसे लम्बी जल सुरंग है। अरावली की पहाड़ियों में यह दूसरी सुरंग है जिससे उदयपुर शहर को जलापूर्ति की जायेगी।
  • देवास द्वितीय परियोजना- साबरमती की सहायक वाकल नदी पर झाडोल तहसील के आकोदड़ा गांव में आकोदड़ा बांध और गिरवा तहसील के मादड़ी गांव में मादड़ी बांध बनाना प्रस्तावित है। जिसका मुख्य उद्देश्य उदयपुर की झीलों को भरना व उदयपुर को पेयजल आपूर्ति करना है।
  • बघेरी का नाका परियोजना- राजसमंद जिले के माचीन्द गांव के निकट बनास नदी पर बांध का निर्माण कर इस जिले को पेयजल आपूर्ति की जायेगी।
  • नागौर लिफ्ट योजना- इस योजना के तहत इन्दिरा गांधी नहर की कनासर वितरिका के पानी से बीकानेर के कोलायत व नोखा तथा नागौर जिले को पेयजल उपलब्ध होगा।
  • राज्य की जल नीति- जल संसाधनों की आवश्यकता के अनुरूप अनुकूलतम उपयोग के लिए मंत्रिमण्डल ने 19 सितम्बर, 1999 को राज्य की जल नीति को मंजूरी दी।
  • राष्ट्रीय जल नीति, 2002 – राष्ट्रीय जलसंसाधन परिषद् ने 11 अप्रेल, 2002 को राष्ट्रीय जल नीति को मंजूरी दी। इस नीति में ‘सबके लिए पेयजल‘ की व्यवस्था को सर्वाच्च प्राथमिकता दी गई है तथा राज्यों से अपेक्षा की गई है कि वे जल संसाधन के एकीकृत प्रबंधन और विकास के मकसद से संस्थागत उपाय करें।
  • नवीन जल नीति-: 2010
  • तेलीया पानी- जब पानी में कार्बोनेट की मात्रा अधिक एवं लवणीयता कम हो तो उसे तेलीया पानी कहते हैं। ऐसे पानी से सिंचाई करने से मृदा में क्षारीयता बढ़ जाती है। इसके उपचार हेतु जिप्सम का उपयोग किया जाता है।

– राजस्थान में देश के कुल सतही जल का मात्र 1.16 प्रतिशत है। (15.86 MAF)

– राजस्थान की प्रथम सिंचाई परियोजना :- गंगनहर। (1927)

– सेम समस्या समाधान हेतु जिप्सम का प्रयोग किया जाता है।

– सेई बाँध परियोजना जवाई नदी पर निर्मित है।

– बीसलपुर परियोजना :- टोंक में बनास नदी पर राजस्थान की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना।

– जाखम परियोजना :- प्रतापगढ़ में (1962 ई.)

 जाखम बाँध :- राजस्थान का सबसे ऊँचा बाँध (81 मीटर)

– पाँचना बाँध :- करौली में 5 छोटी-छोटी नदियों (भद्रावती, बरखेड़ा, अटा, भैसावट तथा माची) के संगम पर अमेरिका के आर्थिक सहयोग से मिट्‌टी से निर्मित बाँध।

– आपणी परियोजना :- झुंझुनूं, चूरू व हनुमानगढ़ जिलों से सम्बन्धित परियोजना। ग्रामीण पेयजल आपूर्ति से सम्बन्धित इस योजना में जर्मनी की KFW संस्था का वित्तीय सहयोग रहा।

– सोम-कमला-अम्बा परियोजना :- डूंगरपुर (2001-02, सोमनदी पर)

– नारायण सागर परियोजना :- अजमेर। (खारी नदी पर)

– छापी परियोजना :- झालावाड़ में छापी नदी (परवन की सहायक नदी) पर निर्मित परियोजना।

– बिसाल सिंचाई परियोजना :- कोटा में।

– पार्वती जल विद्युत परियोजना :- राजस्थान व हिमाचल प्रदेश की संयुक्त परियोजना।

– पश्चिमी बनास परियोजना :- सिरोही।

– मेजा बाँध 1972 में कोठारी नदी पर भीलवाड़ा में निर्मित।

– बांकली बाँध :- जालौर में सूकड़ी नदी पर निर्मित।

– तेलिया पानी :- जिस सिंचाई के जल में कार्बोनेट की मात्रा अधिक होती है, तेलिया पानी कहा जाता है।

– अजान बाँध :- भरतपुर में गम्भीर नदी पर निर्मित।

– मोती झील :- “भरतपुर की जीवन रेखा’ की उपमा।

– तलवाड़ा झील :- हनुमानगढ़

– चूलिया देह परियोजना :- करौली।

– हथियादेह परियोजना :- बाराँ।

– भीमसागर परियोजना :- झालावाड़।

– वागन परियोजना :- चित्तौड़गढ़।

– आलनिया परियोजना :- कोटा।

– पीपलदा परियोजना :- सवाई माधोपुर।

– सरेरी परियोजना :- भीलवाड़ा।

– कछावन परियोजना :- बारां।

– बतीसा नाला सिंचाई परियोजना :- सिरोही।

– रेवा पेयजल परियोजना :- झालावाड़।

– ईसरदा बाँध परियोजना :- सवाई माधोपुर।

– ओराई परियोजना :- चित्तौड़गढ़।

– जाडला बाँध :- कठूमर (अलवर)

– मदान बाँध :- भरतपुर।

– चिकलवास बाँध :- राजसमन्द।

– रैणी बाँध :- अलवर।

– पीथमपुरी झील :- सीकर।

– कालाखोह बाँध :- दौसा।

– माधोसागर बाँध :- दौसा।

– पार्वती बाँध :- धौलपुर।

– सांकड़ा बाँध :- अलवर।

– सोम कागदर परियोजना :- उदयपुर।

– कालीसिल बाँध :- करौली।

– चिकसाना नहर घना पक्षी विहार (भरतपुर) से होकर गुजरती है।

– पहल परियोजना :- नवम्बर 1991 को सीडा (स्वीडन) के सहयोग से प्रारम्भ।

– राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना :- जनवरी, 2001 से शुरू। मार्च 2013 में समाप्त।

– राज्य की जल नीति :- 2010

– कमान्ड क्षेत्र विकास कार्यक्रम :- 1974-75। (भारत सरकार व विश्व बैंक द्वारा सहायता प्राप्त)

– स्वजल धारा योजना :- 25 दिसम्बर 2002 को शुरू।

– सिंचाई प्रबन्धन व प्रशिक्षण संस्थान :- कोटा।

– सुजलम परियोजना :- बाड़मेर जिले के चयनित गाँवों में खारे पानी को मीठा बनाने की परियोजना। यह BARC (भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर) एवं जोधपुर स्थित रक्षा अनुसंधान प्रयोगशाला के संयुक्त प्रयासों से संचालित की गई।

– मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान :- 27 जनवरी 2016 को गर्दनखेड़ी (झालावाड़) से शुरूआत।

 4 वर्षों में 21 हजार गाँवों को जल स्वावलम्बी बनाने का लक्ष्य।

– फोर वाटर कन्सेप्ट :- वर्षा जल, सतही जल, भू-जल, मृदा जल।

– राजस्थान नदी बेसिन एवं जल संसाधन योजना प्राधिकरण :- 5 मई, 2015

– हाइड्रोलोजी एंड वाटर मैनेजमेंट इन्स्टीट्यूट :- बीकानेर।

– राजस्थान जल क्षेत्र पुन: सरंचना परियोजना :- 21 मई, 2002 (विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित)

– राजस्थान लघु सिंचाई सुधारीकरण परियोजना :- 31 मार्च 2005 से दिसम्बर 2015 तक संचालित।

 जापान अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (जायका) द्वारा वित्त पोषित।

– एकीकृत जलग्रहण विकास कार्यक्रम :- 1989 से शुरू।

– इन्दिरा गाँधी नहर के पूर्ण होने पर राजस्थान का 16.17 लाख हैक्टेयर क्षेत्र सिंचाई से लाभान्वित होगा।

– इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना में नहरों में पानी के प्रवाह के आकलन व नियंत्रण हेतु “स्काडा सिस्टम’ स्थापित किया गया है।

– 2 नवम्बर, 1984 को राजस्थान नहर परियोजना का नाम बदलकर इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना कर दिया।

– सावन-भादो झील :- सिरोही।

 सावन -भादो नहर परियोजना :- कोटा।

 सावन-भादो महल :- डीग (भरतपुर)।

 सावन-भादो कड़ाईयां :- देशनोक (बीकानेर)।

– नौलखा झील :- बूँदी।

 नौलखा महल :- उदयपुर।

 नौलखा बावड़ी :- डूंगरपुर।

 नौलखा द्वार :- रणथम्भौर।

 नौलखा मंदिर :- पाली।

 नौलखा बुर्ज :- चित्तौड़गढ़।

 नौलखा दुर्ग :- झालावाड़।

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