मरुस्थलीकरण

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मरुस्थलीकरण की समस्या सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त है। विश्व की कुल जनसंख्या का छठवाँ हिस्सा मरुस्थलीकरण समस्या से प्रभावित है। राजस्थान शुष्क जलवायु, अकाल एवं सूखे से प्रभावित है तथा साथ ही इसमें विस्तृत थार का मरुस्थल, अत्यधिक मानव और पशु दबाव वाला होने के कारण इसमें मरुस्थलीकरण की समस्या और भी अधिक बलवती दृष्टिगत होती है।

सन् 1952 में “Symposia on Indian Desert’ का आयोजन किया जिसमें थार मरुस्थल की उत्पत्ति, पूर्व में इसका विस्तार आदि पर विस्तृत चर्चा की गई।

सन् 1977 में काजरी के तत्वावधान में एक ग्रन्थ “Arid Zone Research and Development’ का सम्पादन हुआ। उसमें विस्तार से मरुस्थलीकरण समस्या पर विचार प्रकट किये गये।

सन् 1977 में नैरोबी में तथा सन् 1992 में रियो-डी-जेनेरो में UNCOD सम्मेलन आयोजित किये गये जिसमें मरुस्थलीकरण समस्या को सर्वाधिक महत्व दिया गया।

मरुस्थलीकरण :-

उपजाऊ एवं अमरुस्थलीय भूमि का क्रमिम रूप से शुष्क प्रदेश अथवा मरुस्थल में परिवर्तित हो जाने की प्रक्रिया ही मरुस्थलीकरण है। मरुस्थलीकरण प्राकृतिक परिघटना है जो जलवायवीय परिवर्तना या दोषपूर्ण भूमि उपयोग के कारण होती है। यह क्रमबद्ध परिघटना है जिसमें मानव द्वारा भूमि उपयोग पर दबाव के कारण परिवर्तन होने से पारितंत्र का अवनयन होता है।

मैन के अनुसार “मरुस्थलीकरण जलवायवीय, मृदीय एवं जैविक कारकों की अन्तर्क्रिया से उत्पन्न होता है।’

 मरुस्थलीकरण स्थायी प्रकृति का होता है।

  • संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के अनुसार अविवेकपूर्ण मानवीय क्रियाओं ने 1.30 करोड़ वर्ग क्षेत्रफल पर मरुस्थलीय भूमि पैदा कर दी है।
  • सर्वप्रथम ऑबरविले ने 1949 में मरुस्थलीकरण समस्या की ओर संकेत किया तथा मरुस्थलीकरण समस्या को मानव द्वारा प्रभावित एवं मृदा कटाव की प्रक्रिया द्वारा उपजाऊ भूमि को बंजर, अनुपजाऊ भूमि में परिवर्तन करना बताया।

मरुस्थलीकरण के कारण :-

1. वनोन्मूलन

2. अनियंत्रित पशुचारण

3. संसाधनों का अतिदोहन

4. भूजल स्तर में गिरावट

5. निरन्तर वर्षा की कमी

6. निरन्तर सूखा पड़ना

7. जलवायु परिवर्तन

8. भूमि का अलाभप्रदकर उपयोग

9. वायु अपरदन में वृद्धि

10. उच्च वायुदाब क्षेत्र का होना

11. भू-क्षरण

12. जलवायु कठोरता – उच्च तापमान, न्यून वर्षा

13. जनसंख्या वृद्धि

14. प्रति चक्रवात की स्थिति

मरुस्थलों की विशेषता :-

1. वर्षा का अभाव। (15-25 सेमी वार्षिक वर्षा)

2. तापमान की विसंगति (उष्ण मरुस्थल में अत्यधिक व शीत मरुस्थल में शून्य)।

3. मिट्‌टी में उर्वरकता व जैविक तत्वों का अभाव

4. पशुओं के चारे का अभाव

5. निरन्तर सूखा

6. वन्य जीवों का अभाव

7. बलुई रेतीली मिट्‌टी की अधिकता

मरुस्थलीकरण के परिणाम :-

1. वनस्पति की कमी

2. जनसंख्या की कमी

3. कृषि का अन्त होना

4. जलवायु का शुष्क होना

5. खनिज तेल, गैस एवं कोयला के भण्डार

6. भूमि प्रदूषण

7. पेयजल के स्रोतों का सूखना जारी

8. नदियों व झीलों में गाद का भराव

9. वनों का तीव्र विनाश

10. निरन्तर अकाल की कमी

मरुस्थलीकरण रोकने के उपाय :-

1. वृक्षारोपण

2. कम जल की आवश्यकता वाले अच्छे किस्म के वृक्ष लगाना

3. अनियंत्रित पशु चारण पर रोक

4. वृक्षों की कटाई पर रोक

5. नहरों का विकास

6. टपकन सिंचाई, खड़ीन पद्धति

7. वर्षा के पानी का उपयोग

8. वनस्पति पटि्टयों के रूप में लगाना

9. वैज्ञानिक ढंग से नये चारागाहों का विकास

10. पशु संख्या पर नियंत्रण

11. ऊर्जा के अन्य साधनों का विकास

12. हरित पट्‌टी का विकास

13. भूमि संरक्षण आदि

मरुस्थलीकरण रोकने हेतु उपाय :-

1. 1951-52 में भारतीय विज्ञान परिषद द्वारा मरुस्थल के संसाधनों के संरक्षण तथा विकास का प्रयास किया गया।

2. सन् 1957 में “मरुस्थलीय वृक्षारोपण’ और “मृदा संरक्षण’ स्टेशन, जोधपुर की स्थापना की गई।

3. 1959 में जोधपुर में “काजरी’ की स्थापना की गई।

4. 1966 में “मरु विकास बोर्ड’ की स्थापना की गई।

5. सन् 1974-75 में “सूखा संभाव्य क्षेत्र कार्यक्रम’ (DPAP) शुरू किया गया।

6. मरु विकास कार्यक्रम (DDP) 1977-78 में शुरू किया। केन्द्र चालित स्कीम। यह कार्यक्रम राज्य के 16 मरु जिलों के 85 खण्डों में संचालित किया जा रहा है। यह कार्यक्रम राष्ट्रीय कृषि आयोग की सिफारिश पर चलाया गया।

मरुस्थलीकरण से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथ्य :-

  • रेगिस्तान का मार्च :- रेगिस्तान (मरुस्थल) के क्षेत्रफल का विस्तार होना।
  • पश्चिमी राजस्थान की प्रमुख पर्यावरणीय समस्या :- मरुस्थलीकरण।
  • सूखे से मरुस्थलीकरण की क्रिया का सूत्रपात नहीं होता है। सूखे से मात्र भूमि प्रबंधन के असंगत हानिकारक प्रभावों को ही प्रोत्साहन मिलता हैं।
  • मरुस्थलीकरण प्रमुखत: अतिचारण, अतिवन विदोहन, अति हलन, अनुचित मृदा एवं जल प्रबन्धन और भूमि प्रदूषण द्वारा ही प्रारम्भ एवं प्रोत्साहित होता है।
  • राजस्थान के 12 जिले शुष्क रेतीले मैदान (मरुस्थलीय क्षेत्र) में आते हैं।
  • भारत में ICAR के आंकलन के अनुसार लगभग 187.7 मिलियन हैक्टेयर भूमि या राज्य का 57.1% भौगोलिक क्षेत्रफल किसी न किसी रूप में भूमिहृास से पीड़ित है।
  • राजस्थान में वनों का विनाश सर्वाधिक 1975 से 1982 के बीच में हुआ।
  • भारत के मरुस्थलीकरण एवं भूअवनयन एटलस (ISRO-2007) के अनुसार राजस्थान में मरुस्थलीकरण से प्रभावित क्षेत्र – 67%
  • 17 जून :- मरुस्थलीकरण का सामना करने के लिए विश्व दिवस (WDCD)।
  • 2019 का विषय :- Let’s Grow the future Together.
  • मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने के लिए “संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेशन’ (UNCCD) का गठन किया गया है। भारत UNCCD का हस्ताक्षरकर्ता है।
  • UNCCD से संबंधित COP-14 की मेजबानी भारत करेगा। COP-14 का आयोजन 29 अगस्त से 14 सितम्बर 2019 के बीच दिल्ली में होगा।
  • ऑपरेशन खेजड़ा :- मरुस्थल विकास को रोकने के लिए सरकार द्वारा सन् 1991 में प्रारम्भ किया गया अभियान।
  • राजस्थान में बंजर भूमि विकास कार्यक्रम को क्रियान्वित करने का उत्तरदायित्व :- ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज विकास का।
  • रेगिस्तान के प्रसार को रोकने के लिए उपयोगी वृक्ष :- खेजड़ी
  • पन्नाधाय जीवन अमृत योजना :- 2006 (LIC द्वारा)
  • मरुकरण संघाती कार्यक्रम :- 1999-2000 (राजस्थान के 10 जिलों में संचालित)
  • मरुगोचर योजना :- 2003-04 (10 जिलों में संचालित)
  • काजरी (CAZRI) का पूरा नाम :- Central Arid Zone Research Institute.
  • राजस्थान में “सीडा’ की सहायता से “एकीकृत बंजर भूमि विकास परियोजना’ 1991 में डूंगरपुर जिले में शुरू की गई।
  • हमारे देश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 12.13% भाग शुष्क मरुस्थल तथा 29.13% भाग अर्द्ध शुष्क मरुस्थल के अन्तर्गत आता है।
  • राजस्थान में 250 मिमी. वर्षा रेखा (25 Cm) मरुस्थलीय भाग को दो भौगोलिक प्रदेशों में विभाजित करती हैं।
  • राजस्थान राज्य पर्यावरणीय नीति :- 2010
  • दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर विस्तृत अरावली पर्वत श्रेणी राजस्थान के पूर्वी क्षेत्रों की ओर मरुस्थलीकरण के प्रसार को सीमित करती है।
  • शुष्क वन अनुसंधान संस्थान (आफरी) :- जोधपुर में (1988 में स्थापित)
  • राजस्थान का 61.11% भू-भाग मरुस्थलीय क्षेत्र के अन्तर्गत आता है।

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