विभिन्न अवस्थाओं में शारीरिक विकास का आशय स्पष्ट करो।

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मानव जीवन का प्रारम्भ अथवा आरम्भ उसके पृथ्वी पर जन्म लेने से पहले ही प्रस्फुटित होने लगता है। वर्तमान समय में गर्भधारण की स्थिति से ही मानवीय जीवन का प्रारम्भ माना है जाता है । माँ के गर्भ में बच्चा 280 दिन अथवा 10 चन्द्रमास तक विकसित होकर परिपक्वावस्था प्राप्त करता है। इसलिए शारीरिक दशा का विकास गर्भकाल में निश्चित किया जा सकता है।


1. भ्रूणावस्था में शारीरिक विकास :

शुक्राणु एवं डिम्ब के संयोग से गर्भ स्थापित होता है। इस अवस्था को वैज्ञानिकों ने भ्रूणावस्था कहा है। इस अवस्था में बालक का शारीरिक विकास तीन अवस्थाओं में विकसित होकर पूर्ण होता है-

1. डिम्बावस्था- इस अवस्था में पहले डिम्ब उत्पादन होता है। इस समय अण्डे के आकार का विकास होता है। इस समय उत्पादन कोष में परिवर्तन होने लगते हैं। इस अवस्था है में कई रासायनिक क्रियाएँ पैदा होती हैं जिससे कोषों में विभाजन होना शुरू हो जाता है।

2. भ्रूणीय अवस्था- इस अवस्था में डिम्ब का विकास प्राणी के रूप में होने लगता है । इस समय डिम्ब की थैली में पानी हो जाता है तथा उसे पानी की थैली की संज्ञा दी जाती है । यह झिल्ली प्राणी के गर्भावस्था में, विकसित होने में सहायता देती है। जब दो माह व्यतीत हो जाते हैं तो प्रथम सिर का निर्माण, फिर नाक, मुँह आदि का बनना प्रारम्भ होने लगता है। इसके बाद शरीर का मध्य भाग तथा टाँगें एवं घुटने विकसित होने लगते हैं।

3. भ्रूणावस्था- गर्भावस्था में द्वितीय माह से लेकर जन्म लेने की अवस्था को भ्रूणावस्था कहते हैं। तृतीय चन्द्र माह के अन्त तक भ्रूण 3 1/2 इंच लम्बा, 3/4 ओंस भार का होता है। दो माह के पश्चात् 10 इंच लम्बा, भार 7 से 10 ओंस हो जाता है। आठवें माह तक लम्बाई 16 से 18 इंच, भार 4 से 5 पौण्ड हो जाता है। जन्म के समय इसकी लम्बाई 20 इंच के लगभग एवं भार 7 या 7 1/2  पौण्ड हो जाता है। विकास की इसी अवस्था में त्वचा, अंग आदि बन जाते हैं तथा बच्चे की धड़कन सरलता से सुनी जा सकती है।

2. शैशवावस्था में शारीरिक विकास :

बालक का शैशवकाल जन्म से 6 वर्ष तक का माना जाता है। इस समय वह अपने माता-पिता तथा संबंधियों पर पूर्ण रूप से निर्भर होता है। उसका सम्पूर्ण व्यवहार मूल प्रवृत्यात्मक होता है, उसके शारीरिक विकास का निर्धारण वंशानुक्रमीय तथा पर्यावरणीय तत्वों पर निर्भर है । अतः शैशवावस्था में शारीरिक विकास निम्न तरह से होता है-

1. भार तथा लम्बाई- विभिन्न तथ्यों से स्पष्ट हो चुका है कि जन्म के समय लड़की का भार लड़कों से ज्यादा तथा लम्बाई में लड़के अपेक्षाकृत लड़कियों से ज्यादा लम्बे होते हैं। जन्म के समय शिशु का भार 5 से 8 पौंड तक होता है। 4 माह में 14 पौंड,8 माह में 18 पौंड, 12 माह में 21 पौंड एवं शैशवावस्था की समाप्ति पर 40 पौंड भार विकसित हो जाता है। जन्म के समय शिशु की लम्बाई लगभग 20 इंच होती है। एक वर्ष में 27 से 28 इंच तक, दो वर्ष में 31 इंच तथा शैशवावस्था की समाप्ति तक 40 से 42 इंच तक लम्बाई विकसित होती है

2. हड्डियाँ- जन्म के समय शिशु की हड्डियाँ मुलायम तथा लचीली होती हैं। इन छोटी-छोटी हड्डियों की कुल संख्या 270 होती है। जब शिशु को फॉस्फोरस, कैल्सियम तथा खनिज पदार्थों से युक्त भोजन दिया जाता है तब ये हड्डियाँ मजबूत और कड़ी होती जाती हैं एवं शिशु का धीरे-धीरे अंगों पर नियंत्रण बढ़ता जाता है । बालिकाओं की बजाय बालकों की हड्डियों में तीव्र विकास होता है।

3. सिर तथा मस्तिष्क- नवजात शिशु के सिर का अनुपात शरीर की लम्बाई की बजाय चौथाई होता है। जन्म के समय मस्तिष्क का भार 350 ग्राम होता है। यह भार दो वर्ष में दुगुना तथा 6 वर्ष में 1260 ग्राम हो जाता है।

4. अन्य अंग- शिशु के जन्म से 5 या 6 वें माह में नीचे की तरफ अस्थायी दाँत निकलते हैं। एक वर्ष में लगभग आठ दाँत तथा 4 वर्ष तक अस्थायी सभी दाँत निकल आते हैं। शिशु की माँसपेशियों का भार शरीर के भार का 23% होता है। शिशु की हृदय की धड़कन एक मिनट में 140 बार होती है। शैशवावस्था के अंत तक हृदय की धड़कन की संख्या 100 रह जाती है। शिशु की टाँगों तथा भुजाओं का विकास बहुत ही तीव्र गति से होता है। इस अवस्था में यौनांगों का विकास बहुत ही मन्द गति से होता है ।


3. बाल्यावस्था में शारीरिक विकास :

बाल्यावस्था का काल 6 से 12 वर्ष तक माना जाता है। कोल तथा मोरगेन ने लिखा है-“विकास ही परिवर्तनों का आधार है। अगर बालक का शारीरिक विकास नहीं होता, तो वह कभी प्रौढ़ नहीं हो सकता। अतः हम यहाँ पर क्रो तथा क्रो के अनुसार बाल्यावस्था में होने वाले शारीरिक विकास का निम्न तरह से वर्णन करेंगे-

1. भार तथा लम्बाई- इस अवस्था में बालिकाओं तथा बालकों के भार में उतार-चढाव रहता है । 9 अथवा 10 वर्ष की आयु तक बालक भार में ज्यादा रहते हैं, जबकि इसके बाद बालिकाएँ शारीरिक भार में ज्यादा होती जाती हैं। बाल्यावस्था के अन्त तक इनका भार 80 से 95 पौंड तक होता है । इस अवस्था में लम्बाई 2 से लेकर 3 इंच तक ही बढ़ती है।

2. हड्डियाँ तथा दाँत- इस अवस्था में हड्डियों में मजबूती तथा दृढ़ता आती है। इनकी संख्या 350 तक बढ़ जाती है। दाँतों में स्थायित्व आना शुरू हो जाता है । दाँतों की संख्या 32 होती है। बालकों की बजाय बालिकाओं के दाँतों का स्थायीकरण शीघ्र होता है ।

3. सिर तथा मस्तिष्क- बाल्यावस्था में सिर तथा मस्तिष्क में परिवर्तन होता रहता है। 5 वर्ष की आयु में 95% होता है। इसी तरह से 9 वर्ष की आयु में बालक के मस्तिष्क का भार शरीर के भार का 90% होता है ।

4. अन्य अंग- बालक की माँसपेशियों का विकास बहुत ही धीरे-धीरे होता है । हृदय की धड़कन में कमी होती है। चिकित्सकों ने एक मिनट में 85 बार धड़कन को माना है । बालक तथा बालिकाओं की शारीरिक बनावट में अन्तर स्पष्ट होना शुरू हो जाता है। आयु के 11 तथा 12वें वर्ष में यौनांगों का तीव्रता के साथ विकास होता है।


4. किशोरावस्था में शारीरिक विकास :

विभिन्न मनोवैज्ञानिकों तथा शरीरशास्त्रियों ने किशोरावस्था को सबसे जटिल अवस्था माना है। अत: हालिंगवर्थ ने लिखा है- “व्यापक दन्त कथा यह है कि हर बालक बदल रहा है। जैसे ही परिपक्वता आती है, लोक वार्ताओं में वर्णित व्यक्तित्व उभरता है।”

अत: हम यहाँ पर किशोरावस्था में शारीरिक विकास का वर्णन निम्न तरह से करेंगे-

1. भार तथा लम्बाई- किशोरावस्था में बालक तथा बालिकाओं के भार और लम्बाई में तीव्रता के साथ वृद्धि होती है। 18 वर्ष के अन्त तक लड़कों का भार लड़कियों के भार से लगभग 25 पौण्ड ज्यादा हो जाता है। शरीरशास्त्रियों के अवलोकनों से स्पष्ट हो चुका है कि लड़कियों की लम्बाई 16 वर्ष तक परिपक्व हो जाती है, जबकि लड़कों की 18 वर्ष तक परिपक्व हो जाती है।

2. हड्डियाँ तथा दाँत- सम्पूर्ण शरीर में हड्डियों का ढाँचा पूर्ण हो जाता है। हड्डियों में मजबूती आ जाती है तथा छोटी-छोटी हड्डियाँ भी एक-दूसरे से जुड़ जाती हैं। इस अवस्था में दाँतों का स्थायीकरण हो जाता है। लड़के तथा लड़कियों में अक्ल के दाँत निकलने शुरू हो जाते हैं। ये दाँत अवस्था के अन्तिम दिनों में निकलते हैं।

3. सिर तथा मस्तिष्क- किशोरावस्था में सिर तथा मस्तिष्क का विकास लगातार जारी रहता है। सिर का पूर्ण विकास मध्य किशोरावस्था में ही हो जाता है। विद्वानों ने इसकी आयु लगभग 15 से 17 वर्ष के बीच मानी है। इस समय मस्तिष्क का भार 1200 से लेकर 1400 ग्राम के बीच में होता है।

4. अन्य भाग- इस अवस्था में माँसपेशियों में सुडौलता तथा मजबूती आनी शुरू हो जाती है। 12 वर्ष की आयु में माँसपेशियों का भार शरीर के कुल भार का लगभग 33% तथा 16 वर्ष की आयु में लगभग 44% होता है। इस अवस्था में हृदय की धड़कन में पूर्ण कमी आनी शुरू हो जाती है एवं यह एक मिनट में 72 बार होती है। लड़कों तथा लड़कियों में पुरुषत्व और स्त्रीत्व की पूर्ण विशेषताएँ प्रकट होने लगती हैं।


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