बालक के प्रारम्भिक सामाजिक अनुभवों के महत्त्व के बारे में लिखो।

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  सामाजिक तथा असामाजिक व्यवहार प्रतिमान को बालक अपने जीवन के प्रारsम्भिक काल में ही ग्रहण कर लेता है। इसलिए बालक के प्रारम्भिक सामाजिक अनुभव इस बात का निर्धारण करते हैं कि वह किस तरह का सामाजिक प्राणी बनेगा। बालक के प्रारम्भिक सामाजिक अनुभवों में परिवार का वातावरण सर्वाधिक कारक है । जीवन के प्रारम्भिक काल में अगर परिवार का वातावरण सामाजिक प्रत्याशाओं के अनुसार रहा है तो बहुत कुछ सम्भावना है कि बड़ा होकर बालक एक सामाजिक व्यक्ति ही बनेगा। बालक के प्रारम्भिक अनुभवों को परिवार का आकार जिसमें बालक पलता है, भी महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभवित करता है। बालक का परिवार में क्या स्थान है, बालक से परिवार के सदस्य किस तरह का व्यवहार करते हैं, बालकों के लालन-पालन की कौन-सी विधियाँ अपनाई गई हैं, बालक के माता-पिता बालक से क्या प्रत्याशा रखते हैं, इस तरह के कारण बालक के प्रारम्भिक सामाजिक अनुभवों को ज्यादा महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करते हैं। एक परिवार के सदस्य अगर बालक का तिरस्कार करते हैं तो इस अवस्था में उसमें जो सामाजिक अनुभव विकसित होंगे, वे विपरीत तरह के होंगे। इस तरह के बालक का व्यवहार अन्तर्मुखी तरह का हो सकता है, लेकिन अगर बालक को परिवार से अच्छा ट्रीटमेण्ट मिलता है, उसे प्यार किया जाता है, तो वह बहिर्मुखी तरह का व्यक्ति हो सकता है। इस अवस्था में उसमें सामाजिकता का गुण ज्यादा मात्रा में होगा। परिवार के सदस्य अगर बालक से अच्छी एवं सामान्य प्रत्याशाएँ करते हैं तो इस अवस्था में वह परिवारीजनों की प्रत्याशाओं के अनुसार व्यवहार करके यह सीख सकता है कि परिवार के लोग तभी स्वीकार करेंगे जब उनकी प्रत्याशाओं के अनुसार व्यवहार होगा। अगर बालक के लालन-पालन में माता-पिता द्वारा प्रभुत्वशाली व्यवहार अपनाया गया है तो निश्चय ही बालक शान्त तथा निर्विरोधी प्रकृति का होगा। अध्ययनों में यह देखा गया है कि परिवार में जब बालक के संबंध अच्छे होते हैं तो वह घर के बाहर के लोगों के साथ भी संबंधों का आनन्द लेता है तथा इस अवस्था में उसमें समाज एवं उसके व्यक्तियों के प्रति स्वस्थ अभिवृत्तियाँ निर्मित होती हैं। वह अपने साथी समूह में भी लोकप्रिय रहता है तथा इस समूह की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।

बालक के प्रारम्भिक सामाजिक अनुभवों पर परिवार के अलावा अन्य कारकों का प्रभाव भी पड़ता है। उदाहरण के लिए, अगर उसके साथियों एवं पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध हैं तो निश्चय ही उसमें सामान्य तथा धनात्मक सामाजिक अभिवृत्तियों एवं सामाजिक व्यवहार का विकास होगा। अध्ययनों (M. Olpin and K.L. Kagan, 1969; J. Kagan and A.A. Moss, 1962) में देखा गया है कि बालक के प्रारम्भिक सामाजिक अनुभव उसकी सामाजिक सहभागिता को बाल्यावस्था तथा आगे की अवस्थाओं में महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करते हैं। इन अध्ययनों में यह भी देखा गया है कि जिस बालक के प्रारम्भिक सामाजिक अनुभव सामान्य तथा सुन्दर नहीं रहे हैं वह सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेने से कतराता है। एक बालक सामाजिक कार्यक्रमों को कितना पसन्द करेगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि अन्य बालक उसको कितना स्वीकार करते हैं। एक अध्ययन (W. Emmerich, 1966) में यह देखा गया है कि स्कूल में वे बच्चे स्कूली कार्यक्रमों में ज्यादा भाग लेते हैं जो ज्यादा लोकप्रिय होते हैं सामाजिक कार्यक्रमों तथा समाज के व्यक्तियों के प्रति बालक में एक बार जो अभिवृत्तियाँ निर्मित हो जाती हैं वे सभी आयु समूहों में स्थिर-सी रहती हैं। एक बार बालक का सामाजिक व्यवहार परिवर्तित हो सकता है लेकिन सामाजिक अभिवृत्तियाँ नहीं। एक अध्ययन (R.R. Sears, 1970) में यह देखा गया है कि बालक के जो प्रारम्भिक सामाजिक अनुभव होते हैं, वे बालक के व्यक्तित्व को भी महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करते हैं। यह भी देखा गया है कि जिसके प्रारम्भिक सामाजिक अनुभव अच्छे रहे होते हैं, उस बालक में आत्म के प्रति धनात्मक अभिवृत्तियाँ निर्मित होती हैं। इसलिए बालक के जीवन के प्रारम्भिक काल में जो सामाजिक व्यवहार प्रतिमान एक बार बन जाते हैं वह बने ही रहते हैं। आक्रामकता, प्रभुत्व, स्वतंत्रता, आश्रितता आदि गुणों की शुरुआत जीवन के प्रारम्भिक काल में ही हो जाती हैं। बालक के यह गुण अगर उसके सामाजिक समायोजन एवं विकास में सहायक होते हैं, तो यह उसके लिए अच्छे होते हैं अन्यथा नहीं।

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