लिंग आधारित सामाजिक वर्ग-समूहों का वर्णन करो।

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लिंग आधारित सामाजिक-वर्ग समूह निम्न हैं-

बुद्धिमत्ता- समाज परंपरागत रूप से भिन्न भूमिकाओं को प्रदान करता है जो लड़कों तथा लड़कियों के लिए उचित माने जाते हैं। ये भूमिकाएं उन खिलौनों तथा खेलों में प्रदर्शित होती हैं जो बच्चों को उपलब्ध कराए जाते हैं तथा उम्मीद किए गए व्यवहार में भी प्रदर्शित होती है। साथ ही जैविकीय अंतरों से भी लड़कों तथा लड़कियों के दो समूहों में मनोवैज्ञानिक भिन्नताएं प्राप्त होती हैं।

अध्ययन समाज में महिलाओं की निम्न प्रास्थिति को बताते हैं। उदाहरण के लिए ब्रिटेन ने उस सीमा को निर्धारित करने के लिए 16 रीडिंग श्रृंखलाओं का परीक्षण किया जिस तक महिलाएं गैर-कैरियर भूमिकाओं में रखी जाती थीं। पूर्व प्राथमिक से दसवें ग्रेड के टैक्स्ट तक 4,144 कहानियों में से 2,434 (58%) में पुरुषों ने प्रमुख भूमिका निभाई जबकि इसके विपरीत महिलाओं ने सिर्फ 631 (14%) में प्रमुख भूमिका निभाई। इस तथ्य के बावजूद की महिलाएं कार्यकारी शक्ति की लगभग आधी हैं, उन्हें सिर्फ 471 कहानियों में कैरियर भूमिकाओं में प्रदर्शित किया गया जबकि पुरुषों को 2,623 कहानियों में कैरियर भूमिकाओं में रखा गया (पाँच गुना ज्यादा)

सामान्य बुद्धिमत्ता में लैंगिक भिन्नता को आकार में नाममात्र का रिपोर्ट किया गया है। अवलोकित भिन्नताएं बुद्धि के विभिन्न अवयवों के कारण हो सकती हैं जिनमें लड़कों तथा लड़कियों में फर्क होता है (वोकेब्यूलरी, शाब्दिकं फ्लूएन्सी, याददाश्त, भौगोलिक तथा संख्यात्मक क्षमताएं)। विशिष्ट बोधगम्य कार्यों के संदर्भ में लिंगों के बीच में अंतर बढ़ते या घटते हैं जब बच्चे बड़े होते हैं। लड़कों की तुलना में लड़कियों को समस्या समाधान कार्यों के साथ ज्यादा कठिनाई होती हैं।

कुछ शोध दिखाते हैं कि लड़के-लड़कियों की तुलना में I.Q. के संदर्भ में ज्यादा विचलन दिखते हैं तथा वितरण के दोनों सिरों पर चरम स्कोरों के ज्यादा भाग को प्राप्त करते हैं। अध्ययन यह भी दिखाते हैं कि स्कूल के पहले के वर्षों में लड़कियाँ बुद्धि परीक्षणों में ज्यादा नंबर लाती हैं जबकि माध्यमिक स्कूल के दौरान लड़के ऐसे परीक्षणों में ज्यादा नंबर लाते हैं।

शाब्दिक समता के फ्लूएन्सी उपायों पर, लड़कियाँ प्रायः लड़कों से बेहतर करती हैं लड़कियाँ बातचीत करना, वाक्यों का प्रयोग करना तथा शब्दों की ज्यादा विविधता का प्रयोग करना थोड़ा जल्दी सीखती हैं। वे ज्यादा स्पष्ट भी बोलती हैं, पहले पढ़ती हैं तथा स्पेलिंग तथा व्याकरण की परीक्षाओं में लड़कों से निरंतर बेहतर करती हैं। लेकिन शाब्दिक रीजनिंग, शाब्दिक कॉम्प्रिहेन्सन तथा वोकेब्यूलरी में, निरंतर महिला उत्कृष्टता नहीं पाई जाती।

विद्यालयी क्षमताएं- सामान्यत: स्कूल की उपलब्धियों के अध्ययन इस बात पर सहमत हैं कि लड़कियाँ लड़कों की तुलना में निरंतर बेहतर करती हैं (विशेषकर प्रारंभिक स्कूल में) लड़कियाँ कम बाधित पढ़ने वाली व उच्चारण करने वाली होती हैं तथा वे कम हकलाती भी हैं।

लड़कों तथा लड़कियों के बीच में उनके IQ स्कोरों में बहुत अंतर शायद ही कभी देखा जाता है। ज्यादा विशिष्ट शैक्षिक क्षमताओं में अंतर कई बार पाए जाते हैं। ये अंतर प्रायः बहुत कम होते हैं। लड़कियाँ शाब्दिक बातचीत में बेहतर पाई जाती हैं।

अन्य अवलोकन यह है कि लड़के गणित में लड़कियों से बेहतर होते हैं। प्रारंभिक स्कूल के वर्षों में, लड़के तथा लड़कियां गणित की समस्याओं को हल करने में समान रूप से अच्छे होते हैं लेकिन उच्च स्कूल के प्रथम वर्ष के दौरान गणित के समस्या समाधान में लड़कियों के ऊपर लड़कों को बढ़त मिल जाती है। लड़के गणितीय अवधारणाओं तथा प्रक्रियाओं का अनुप्रयोग विज्ञान तथा खेल में गतिविधियों में करते हैं, लड़कियाँ उनका अनुप्रयोग गतिविधियों जैसे टाइपिंग, सीने तथा अंतर्वैयक्तिक संबंधों में करती है। यह अवलोकन किया जाता है कि शाब्दिक तथा गणितीय निष्पादनों में लैंगिक अंतर न सिर्फ बहुत कम होते हैं बल्कि हाल के वर्षों में सिकुड़ भी रही है। लड़के तथा लड़कियाँ शैक्षिक निष्पादन में वृद्धिगत ज्यादा समान बन रहे हैं।

मिश्रित परिणाम पाए जाते हैं जब समस्या समाधान, सृजनात्मकता, विश्लेषणात्मक कुशलता तथा बोधगम्य शैलियों का परीक्षण किया जाता है। पुरुषों में समस्या समाधान में तय विधियों’ को तोड़ने या नए दृष्टिकोणों को आजमाने की बेहतर क्षमता पाई जाती है। वे प्रायः ज्यादा फील्ड स्वतंत्र होते हैं अर्थात् इस संदर्भ के प्रभावों से स्वतंत्र जिसमें समस्या अवस्थित होती है ।

अन्य क्षेत्रों में लैंगिक भिन्नता :

(1) भौतिक तथा मोटर कुशलताएं- भौतिक तथा मोटर कुशलताओं में लैंगिक अंतर प्रारंभिक स्कूल वर्षों के दौरान साधारणतः कम होता है। ये अंतर ज्यादातर आनुवंशिक कारकों की बजाय पर्यावरणीय कारकों के कारण होता है।

इन अंतरों में लंबाई तथा शक्ति में लड़के आगे होते हैं।

(2) व्यक्तित्व की विशेषताएं- सभी आयु के लड़के लड़कियों से भौतिक रूप से ज्यादा आक्रामक अवलोकिन किए जाते हैं। लड़कियाँ भी ज्यादा गुप्त तरीकों तथा कम भौतिक तरीकों में आक्रामकता दिखती है। जहाँ लड़के आक्रामक होते हैं, वहाँ लड़कियाँ ज्यादा भावुक होती हैं। वे एक दूसरे के साथ नजदीकी तथा ज्यादा आत्मीय संबंध विकसित करती हैं। उनके युवावस्था के दौरान फील्ड निर्भर होने की ज्यादा संभावना होती है। उन्हें अन्य विद्यार्थियों के साथ सहकारिता समूह कार्य से ज्यादा फायदा होता है

(3) उपलब्धि के लिए अभिप्रेरणा- लड़के तथा लड़कियों दोनों को स्कूल में उपलब्धि के लिए अभिप्रेरित पाया जाता है, उनमें सिर्फ दिशा का विभेद होता है। लड़कियाँ स्कूल उपलब्धि में ज्यादा रुचि रखती हैं, वे कठिन परिश्रम करती हैं तथा ऊंचे ग्रेड्स पाती हैं। वे पढ़ने, साहित्य, कला तथा संगीत में अच्छा करने के लिए विशेषकर अभिप्रेरित होती हैं। लड़के गणित, विज्ञान, मशीन कुशलताओं तथा एथलेटिक्स में अच्छा करने के लिए अभिप्रेरित होते हैं।

(4) आत्म-गौरव- शोध बताती है कि लड़कों में दुनिया को नियंत्रित करने तथा समस्याओं को हल करनेकी उनकी क्षमता में आत्म-विश्वास होने की ज्यादा संभावना होती है लड़कियों के स्वयं को सामाजिक संबंधों में सक्षम देखने की ज्यादा संभावना होती है। वे स्वयं को चिंता करने वाले तथा संवेदनशील व्यक्ति के रूप में देखती हैं जो दूसरे की चिंता करता है लैंगिक भिन्नता को गणित तथा विज्ञान में रिपोर्ट किया जाता है।

(5) सफलता तथा असफलता के लिए कारण-परिणाम स्पष्टीकरण- लड़के तथा लड़कियाँ उनकी सफलता तथा असफलता को भिन्न तरह से मानते हैं। लड़के जो एक कार्य में सफल होते हैं, वे उनकी सफलता का कारण उनकी क्षमता को मानते हैं। उदाहरण के लिए एक लड़का कह सकता है कि उसने अच्छा किया है क्योंकि वह स्मार्ट है या वह फुटबाल को इतना अच्छा इसलिए खेलता है कि वह एथलीट पैदा हुआ था। जब वे (लड़के) असफल होते हैं वे इसका कारण प्रयत्न की कमी बताते हैं । वे कहते हैं कि उन्होंने कठिन परिश्रम नहीं किया। अतः वे असफल हुए। यह भविष्य में बढ़े प्रयत्न के साथ अच्छा करने की गुंजाइश छोड़ता है जिसका परिणाम सफलता होता है। लड़कियाँ उनकी सफलता को कठिन परिश्रम के कारण बताती हैं । लेकिन जब वे असफल होती हैं तो वे इसका कारण क्षमता की कमी बताती हैं।

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