पाठ्यवस्तु (सिलेबस) तथा पाठ्यपुस्तक का अर्थ स्पष्ट करते हुए पाठ्यवस्तु (सिलेबस) तथा पाठ्यपुस्तकों में अंतर्सम्बन्धता बताइए ।

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पाठ्यपुस्तकें विभिन्न लेखकों द्वारा विषय विशेष के कक्षा विशेष की निर्धारित पाठ्यवस्तु के आधार पर लिखी जाती है। पाठ्यवस्तु रूपरेखा के रूप में होती है तथा पाठ्यपुस्तकों से विषयवस्तु को विस्तार प्राप्त होता है।

पाठ्यपुस्तकों का आशय एक स्थान पर पुस्तक के रूप में सुसंगठित ज्ञान को सुलभ कराना है । पाठ्यपुस्तक की निम्नलिखित परिभाषाओं से उसकी संकल्पना को समझा जा सकता है-

(1) हाल क्वेस्ट- पाठ्यपुस्तक शिक्षण अभिप्रायों के लिए व्यवस्थित प्रजातीय चिंतन का एक अभिलेख है।

(2) डगलस- शिक्षकों के बहुमत से अंतिम विश्लेषण के आधार पर पाठ्यपुस्तक को वे कब और किस प्रकार पढ़ाएंगे की आधारशिला माना है।

(3) बेकन- पाठ्यपुस्तक कक्षा प्रयोग के लिए विशेषज्ञों द्वारा सावधानी से तैयार की जाती है। यह शिक्षण युक्तियों में भी सुसज्जित होती हे ।

(4) लैंज- पाठ्यपुस्तक अध्ययन क्षेत्र की किसी शाखा की एक प्रमाणित किताब होती है।

पाठ्यवस्तु (सिलेबस) – पाठ्यवस्तु (सिलेबस) में निर्धारित किए गए विषयों व प्रकरणों की संक्षिप्त रूपरेखा या विवरण दिया जाता है ।

हेनरी हरेप ने लिखा है, “पाठ्यक्रम केवल छपी हुई मार्गदर्शिका है जो यह बताती है कि छात्र को क्या सीखना है।”

श्रीमती आर.के. शर्मा के शब्दों में- “पाठ्यवस्तु किसी विद्यालयी या शैक्षिक विषय की वह विस्तृत रूपरेखा है जिसमें विद्यालय शिक्षक-शिक्षाथी एवं समुदाय के उत्तरदायित्वों के निर्वहन के साथ-साथ छात्र के सर्वांगीण विकास के अध्ययन तत्त्व समाहित होते हैं।”

इस प्रकार किसी तरह की शिक्षा या प्रशिक्षण के लिए निर्धारित विषयों उपविषयों (टॉपिक्स) एवं संबंधित सामग्री की व्यवस्थित एवं सार रूप में प्रस्तुति ही पाठ्य विवरण या सिलेबस कहलाता है । पाठ्य विवरण प्रायः किसी शिक्षा परिषद (बोर्ड) द्वारा निर्धारित किया जाता है या किसी प्राध्यापक द्वारा बनाया जाता है जो उस विषय के शिक्षण की गुणवत्ता के लिए उत्तरदायी होता है। समुचित पाठ्य विवरण शिक्षा में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है ।


पाठ्यवस्तु और पाठ्य पुस्तक में अंतर्संबंध

पाठ्यवस्तु (सिलेबस) तथा पाठ्यपुस्तक पारस्परिक संबंध रखते हैं। पाठ्यवस्तु के आधार पर ही पाठ्यपुस्तकें तैयार होती हैं। पाठ्यपुस्तकें पाठ्यवस्तु के संक्षिप्त अमूर्त रूपरेखा को सविस्तारपूर्वक सुबोध और अधिगम में सहायक बनाकर प्रस्तुत करती है। इस दृष्टि से पाठ्यक्रम लक्ष्य तथा पाठ्यपुस्तक साधन हैं। छात्रों को पाठ्यवस्तु यह संकेत भर देती है कि किस विषय में किस प्रकरण का अध्ययन करना है । पाठ्य पुस्तक अध्ययन व अधिगम में छात्रों की सहायता करती है। साथ ही पाठ्यपुस्तकें शिक्षकों के शिक्षण का मार्ग व दिशा खोलती है। पाठ्यक्रम में संकेत, सारांश व रूपरेखा होती है जबकि पाठ्यपुस्तक में उनका विस्तार विवेचित होता है।


पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों का अन्तर्सम्बन्ध इन बिन्दुओं से सुस्पष्ट होता है :

1. पाठ्यक्रम क्या पढ़ना है इसकी रूपरेखा की ओर संकेत करता है पाठ्यपुस्तकें विस्तार से यह बताती हैं कि क्या पढ़ना है। पाठ्यक्रम के विस्तार को पाठ्यपुस्तक में आकार प्राप्त होता है।

2. बालक की योग्यता, रुचि, सामर्थ्य के अनुसार पाठ्य पुस्तकें तैयार होती हैं। पाठ्यपुस्तक में रोचक तरीके से पाठ्यवस्तु का क्रमबद्ध व सुव्यवस्थित आकार उपलब्ध होता है।

3. पाठ्यपुस्तकें ही पाठ्यक्रम के सविस्तार ज्ञान को सुबोध बनाकर शिक्षक छात्रों के लिए प्रस्तुत करती है।

4. पाठ्यपुस्तक बिना पाठ्यक्रम के अपूर्ण है क्योंकि यदि उचित पाठ्यवस्तु नहीं होगी तो पुस्तक का विवेचन निरर्थक होगा। पाठ्यवस्तु के अभाव में पाठ्यपुस्तक की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

5. पाठ्यपुस्तकें शिक्षक को पाठ योजनाएं बनाने, मूल्यांकन हेतु प्रश्न तैयार करने, शिक्षण हेतु सहायक शिक्षण सामग्री बनाने तथा शिक्षण विधियों को उपयोग करने में सहायता देती है। पाठ्यक्रम समय पर पूर्ण करने में भी पाठ्यपुस्तकें शिक्षक के लिए सहायक हैं।

6. बिना पाठ्यवस्तु के पाठ्यपुस्तकें शिक्षक छात्रों के लिए उतनी उपयोगी नहीं रहतीं।

अतः स्पष्ट है कि पाठ्यवस्तु तथा पाठ्यपुस्तक में घनिष्ठ अन्तर्सम्बन्ध होता है।

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