उत्तरपाठ्यचर्या प्रतिरूप/प्रतिमान (मॉडल) क्या है ? इसके प्रमुख वर्ग बताइए।

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  प्रतिमान/प्रतिरूप का अंग्रेजी पर्याय शब्द Model है जिसका शब्दकोषीय अर्थ नमूना, ढाँचा, प्रतिरूप (पैटर्न) या आदर्श है। प्राय: प्रदर्शनियों में किसी बड़े आकार की संरचना का छोटे आकार का मिट्टी/प्लास्टर ऑफ पेरिस से बना ढाँचा प्रदर्शित होता है जो उस बड़ी संरचना की सभी विशेषताओं से पूर्ण आनुपातिक लघु रूप होता है। जैसे किसी विशाल भवन का मॉडल (प्रतिरूप) उस भवन के आकार, माप, विशेषता, बनावट, नक्शे, रंगरूप का प्रतिनिधि होता है। पाठ्यचर्या में प्रतिमान या प्रतिरूप आदर्श भी होते हैं जो उसी जैसी संरचना के निर्माण में मार्गदर्शी होते हैं। इस प्रकार पाठ्यचर्या के प्रतिमान वे मार्गदर्शी आदर्श हैं जो विभिन्न विषयों की पाठ्यचर्या के निर्माण में सहायक हैं।

हेनरी सीसिल वील्ड ने प्रतिमान की परिभाषा इस रूप में दी है-“किसी विशेष आदर्श में या डिजाइन के अनुसार व्यवहार या क्रिया करने या क्रिया की ओर निर्देशित करने का रूप प्रतिमान है।”

पाठ्यचर्या शब्द के साथ प्रतिमान का अर्थ पाठ्यचर्या के स्वरूप से है जो शैक्षिक लक्ष्यों पर आधारित है। इस प्रकार पाठ्यचर्या प्रतिमान से आशय शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु पाठ्यचर्या के निर्माण या इसके लिए दिशा निर्देशन की प्रक्रिया के स्वरूप निर्धारण से है।

पाठ्यचर्या प्रतिमान के रूप- पाठ्यचर्या में उद्देश्य, प्रक्रिया और परिस्थिति इन तीन तथ्यों को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जाता है इस आधार पर पाठ्यचर्या विकास के प्रतिमान में भी परिवर्तन होते रहते हैं। वर्तमान पाठ्यचर्या प्रतिमानों को इन तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है-

1. पाठयचर्या का उद्देश्य प्रतिमान;

2. पाठ्यचर्या का प्रक्रिया प्रतिमान;

3. पाठ्यचर्या का परिस्थिति प्रतिमान।

(1) उद्देश्य प्रतिमान- उद्देश्य प्रतिमान में शिक्षा के उद्देश्यों को महत्त्व दिया जाता है क्योंकि पाठ्यचर्या ही उद्देश्यों की प्राप्ति का साधन है। बी.एस. ब्लूम ने उद्देश्य प्रतिमान में मूल्यांकन/परीक्षा/परीक्षण में सुधार पर बल दिया है क्योंकि शैक्षिक उद्देश्यों की सफलता का आंकलन छात्र के मूल्यांकन से ही संभव है। मूल्यांकन से यह ज्ञात होता है कि उद्देश्य किस सीमा तक छात्रों द्वारा अर्जित किये गए हैं तथा छात्रों में उद्देश्यों के अनुसार व्यवहार परिवर्तन हुआ है अथवा नहीं। उद्देश्य प्रतिमान को ही उद्देश्य मूल्यांकन प्रतिमान भी कहा जाता है।

(2) प्रक्रिया प्रतिमान- पाठ्यचर्या के इस प्रतिमान में विषय व विषयवस्तु के ज्ञान को ध्यान में रखा जाता है। शिक्षक पाठ्यवस्तु की सहायता से ही छात्रों में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन कर पाते हैं। पाठ्यवस्तु की सहायता से ही मानवीय गुणों का विकास छात्रों में संभव है। इसलिए प्रक्रिया प्रतिमान (पाठ्यचर्या के विकास की प्रक्रिया) को मानववादी पाठ्यचर्या भी कहते हैं। इस प्रक्रिया प्रतिमान में शिक्षक की केन्द्रीय भूमिका होती है क्योंकि शिक्षण, नियोजन, व्यवस्था, नियंत्रण, परामर्श, मार्गदर्शन आदि प्रक्रिया प्रबंधन का कार्य शिक्षक ही करता है।

(3) परिस्थिति प्रतिमान- पाठ्यचर्या विकास के इस प्रतिमान में शिक्षा व पाठ्यचर्या को प्रभावित करने वाली आंतरिक तथा बाह्य परिस्थितियों को महत्त्व दिया जाता है। आंतरिक व बाह्य परिस्थितियों का विश्लेषण कर उनमें प्रभावी घटकों की पहचान की जाती है। आंतरिक घटक में कक्षा शिक्षण, शिक्षण विधियों, विषय से संबंधित दृश्य श्रव्य सामग्री, विषयाश्रित पाठ्य सहगामी क्रियाएं आती हैं तथा बाह्य घटकों में समाज से संबंधित परिस्थिति प्रतिमान आते हैं। परिस्थिति प्रतिमान के आधार पर विषयकेन्द्रित, बालकेन्द्रित, कोर पाठ्यचर्या आदि का विकास होता है।

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