विभिन्न पाठ्यक्रम प्रतिमान में खुले विश्वविद्यालय एवं खुले स्कूल के बारे में लिखो।

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शिक्षा विकास की प्रक्रिया है, एवं इसका प्रारूप पाठ्यक्रम पर आधारित होता है। पाठ्यक्रम के प्रमुख आधार व्यक्ति, समाज, दर्शन एवं विषय हैं। सामाजिक दृष्टिकोण, दार्शनिक विचारधाराओं एवं व्यक्तिगत मान्यताओं में परिवर्तन होता रहता है। इसलिए शिक्षा भी परिवर्तनशील है। परिवर्तन ही व्यक्ति को विकास की तरफ ले जाता है। अतः शिक्षा के समुचित विकास हेतु पाठ्यक्रम का विकास करना भी जरूरी है।

प्राचीनकाल में पाठ्यक्रम निर्माण का कोई निश्चित ढंग नहीं था। पाठ्यक्रम निर्माण का विधिवत कार्य बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ से शुरू हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शिक्षा की स्थिति बहुत डाँवाडोल हो गयी एवं शिक्षा को व्यवस्थित करने के विषय में सोचा जाने लगा। इसलिए पाठ्यक्रम विकास की संकल्पना विकसित हुई। इसके साथ-साथ कई प्रतिमान भी प्रकाश में आये।

पाठ्यक्रम प्रतिमान कई हैं लेकिन इनमें सर्वाधिक नवीन प्रगतिशील पाठ्यक्रम प्रतिमान खुले स्कूल तथा खुले विश्वविद्यालय का है। सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में खुले विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी थी। यह 1970 ई. की बात है। 1969-70 ई. के सत्र में इंग्लैण्ड में 2 लाख 19 हजार छात्र नियमित रूप से तथा 2 लाख 18 हजार छात्र भिन्न-भिन्न व्यावसायिक पाठ्यक्रमों से सम्बन्धित संस्थाओं में अध्ययन कर रहे थे। उस समय वहाँ पर शिक्षा के व्यापक प्रसार हेतु खुले विश्वविद्यालय की आवश्यकता पर विचार किया जा रहा था जिसके माध्यम से अधिक-से-अधिक व्यक्तियों को शिक्षित किया जा सके। इस जरूरत को ध्यान में रखकर ही खुला विश्वविद्यालय विकसित किया गया। शुरू में इस विश्वविद्यालय में 25 हजार व्यक्तियों को शिक्षा प्राप्त करने हेतु प्रवेश दिया गया। पहले पाठ्यक्रम की पढ़ाई 1971 ई. में प्रारम्भ हुई, जो व्यक्ति परीक्षा उत्तीर्ण न कर सके, उन्हें कहा गया कि वे दो बार परीक्षा में बैठ सकते हैं।

1972 ई. में इस मुक्त विश्वविद्यालय में तकनीकी विषय भी शुरू किये गये एवं पहला शैक्षिक कार्यक्रम आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर पेश किया गया। पाठों को डाक से गया। विज्ञान के छात्रों को विज्ञान के उपकरण दिये गये जिससे वे अपने घण्टों में छोटी-सी प्रयोगशाला

स्थापित कर सकें। 1985 ई. में छात्रों की संख्या एक लाख तक पहुँच गई । इंग्लैण्ड में इस खुले विश्वविद्यालय द्वारा 300 केन्द्र चलाये गये । इस विश्वविद्यालय की सफलता को देखकर विविध देशों में खुले विश्वविद्यालय स्थापित किये गये। भारत में 1970 से खुले विश्वविद्यालय की स्थापना का प्रयत्न किया जा रहा था एवं यह कार्य 1982 में पूरा हुआ। खुले विश्वविद्यालय की तरह ही भारत में खुले स्कूल की भी स्थापना हुई जिससे माध्यमिक स्तर तक के छात्रों को लाभान्वित किया जा सके।

पाठ्यक्रम विकास के विशिष्ट प्रतिमान

खुला विश्वविद्यालय

खुला विश्वविद्यालय शिक्षण का एक विशिष्ट पाठ्यक्रम प्रतिमान है । उच्च शिक्षा को अधिक अवसर देने एवं शिक्षा को जनतान्त्रिक बनाने की दृष्टि से खुले विश्वविद्यालय की प्रणाली प्रारंभ की गई है। इन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सन् 1985 में स्थापित इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय खुला विश्वविद्यालय को सुदृढ़ किया गया। इस प्रबल साधन का विकास तथा विस्तार सावधानी से और सोच-समझकर किया गया।

खुला विश्वविद्यालय से तात्पर्य उन विश्वविद्यालयों से है जो उन सभी के लिए है जो शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं। इस विश्वविद्यालय में प्रवेश पाने हेतु किसी डिग्री अथवा डिप्लोमा की जरूरत नहीं होती है। इसके लिए आयु की भी कोई सीमा नहीं होती है। प्रवेश लेने वाला किसी भी क्षेत्र का निवासी हो सकता है। इसमें समय की बाध्यता भी नहीं है । इसका कोई परिसर भी नहीं होता है । उक्त तथ्यों से यह नहीं समझ लेना चाहिए कि इस विश्वविद्यालय में परीक्षा नहीं होगी, उपाधि नहीं दी जाएगी अथवा कोई पाठ्यक्रम नहीं होगा। परम्परागत विश्वविद्यालय के समान ही इसमें भी ये कार्य होंगे, लेकिन इसकी कार्य-प्रणाली एवं स्वरूप में परम्परागत विश्वविद्यालय से अन्तर होगा। खुले विश्वविद्यालय के विविध केन्द्रों में अध्ययन का समय छात्रों की सुविधा को ध्यान में रखकर निर्धारित किया जाएगा। छात्रों के शिक्षण हेतु आधुनिक तकनीकों-टी.वी., रेडियो आदि का प्रबन्ध एवं प्रयोग अध्ययन केन्द्रों पर ही किया जाएगा। टी.वी. पाठों के प्रसारण हेतु सरकार इस तरह व्यवस्था करती है जिससे सम्पूर्ण राष्ट्र में इस विद्यालय में अध्ययन करने वाले छात्र लाभान्वित हो सकें । इस विश्वविद्यालय में छात्रों का मूल्यांकन तीन रूपों में किया जाता है

1. छात्र द्वारा स्व-मूल्यांकन,

2. ट्यूटर द्वारा मूल्यांकन,

3. विश्वविद्यालय द्वारा मूल्यांकन ।

पाठ्यक्रम की अवधि पूरी होने पर उसके अध्ययन केन्द्रों पर ही परीक्षा ली जाती है तथा सफल होने पर विश्वविद्यालय द्वारा उपाधि या प्रमाण-पत्र दिये जाते हैं।

मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना – श्री क्राउथर ने जुलाई 1969 में खुले विश्वविद्यालय के खुलेपन के अग्रलिखित बिन्दुओं का उल्लेख किया है-

1. व्यक्ति की दृष्टि में स्वतन्त्रता- परम्परागत विश्वविद्यालयों की तरह मुक्त विश्वविद्यालयों में प्रवेश का कोई पूर्व निर्धारित मापदण्ड नहीं होता है।

खुले विश्वविद्यालय में अग्रलिखित व्यक्ति प्रवेश लेते हैं-

(i) ऐसे वयस्क जो अपनी किशोरावस्था में उच्च शिक्षा ग्रहण करने से वंचित रह गये हों।

(ii) वे कार्यरत व्यक्ति जो अपने क्षेत्र अथवा विभाग की दृष्टि से स्वयं को नवीनतम विचारों से अवगत कराने हेतु पुनः प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहते हैं।

 (iii) ऐसे व्यक्ति जो भावी जीवन में और ज्यादा प्रगति करना चाहते हैं।

(iv) वे महिलाएं जो विवाह हो जाने से उच्च शिक्षा ग्रहण करने से वंचित रह गयी है।

(v) ऐसे व्यक्ति जिन्होंने पहले जो शिक्षा प्राप्त की थी, वह अब काल बाह्य हो गयी है।

2. स्थान की दृष्टि से स्वतन्त्रता- इस तरह के विश्वविद्यालय में किसी स्थान या परिसर का कोई बन्धन नहीं होता है। यह समस्त देश के नागरिकों हेतु खुला है।

3. शिक्षण-विधियों की स्वतन्त्रता- इस तरह के विश्वविद्यालय में शिक्षण-विधियों की दृष्टि से भी खुलापन है। इसमें बहुमाध्यम, उपागम एवं विभिन्न तरह की प्रविधियों पर बल दिया जाता है।

4. विचारों की दृष्टि से स्वतन्त्रता- खुले विश्वविद्यालय को विचारों की दृष्टि से भी स्वतन्त्रता रहती है। इसमें स्वतन्त्र विचारों का, नवाचारों का हमेशा स्वागत किया जाता है। यह लगातार नये-नये प्रयोगों को प्रोत्साहित करता रहता है।

5. आर्थिक दृष्टि से स्वतन्त्रता- इस विश्वविद्यालय में छात्रों पर आर्थिक भार बहुत कम होता है क्योंकि प्रति व्यक्ति व्यय परम्परागत विश्वविद्यालयों की तुलना में बहुत कम होता है।

खुले विश्वविद्यालयों की विशेषताएं

1. मुक्त विश्वविद्यालय एक ऐसी शैक्षिक संस्था है जिसमें स्वतन्त्र, स्व-प्रशासित प्रशासन होता है एवं जो छात्रों को अपनी डिग्रियाँ, डिप्लोमा तथा सर्टिफिकेट प्रदान करती है।

2. मुक्त विश्वविद्यालयों में प्रवेश हेतु अर्हता परीक्षा अथवा प्रवेश परीक्षा की जरूरत नहीं होती है।

3. मुक्त विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए कोई आयु सीमा निर्धारित नहीं होती है।

4. मुक्त विश्वविद्यालयों में शिक्षण अधिगम हेतु कोई औपचारिक परिसर नहीं होता है।

5. मुक्त विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्रदान करने हेतु पत्राचार के साथ-साथ बहुसंचार माध्यमों का संयुक्त रूप से प्रयोग होगा है, जैसे-रेडियो (आकाशवाणी), दूरदर्शन, कम्प्यूटर आदि।

6. मुक्त मुक्त विश्वविद्यालयों में परीक्षाएं उत्तीर्ण करने हेतु कोई समय सीमा नहीं होती है।

7. मुक्त विश्वविद्यालय व्यक्ति, समय, स्थान, पारम्परिक मानकों, शिक्षण विधियों, विचारों, योग्यता की दृष्टि से खुले होते हैं।

8. सूचना तकनीकी के तीव्र गति से प्रसार के कारण मुक्त विश्वविद्यालयों की दूरस्थ पद्धति पर ऑनलाइन सेवाओं, इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क, वर्ल्ड वाइड वेब एवं इण्टरनेट आदि का विशेष प्रभाव पड़ता है।

9. आजकल मुक्त विश्वविद्यालयों में रचनात्मकतावादी अधिगम पर विशेष बल देने के कारण कम्प्यूटर की मध्यस्थता से अनुदेशन का प्रचलन शुरू हो गया है।

खुला विश्वविद्यालय का शिक्षण प्रतिमान

खुले विश्वविद्यालय का शिक्षा प्रतिमान

(1) शिक्षण विधियाँ

(2) कार्य विधि

(3) कार्यान्वयन की व्यूह रचना

(4) मूल्यांकन का स्वरूप

(1) शिक्षण विधियाँ- खुले विश्वविद्यालय में अग्रलिखित शिक्षण विधियों एवं साधनों को अपनाया जाता है-

(अ) दृश्य-श्रव्य उपकरणों का प्रयोग, यथा- (i) दूरदर्शन कार्यक्रम, (ii) अन्य साधनों का प्रयोग-टेपरिकॉर्डर, ग्रामोफोन, आकाशवाणी संयन्त्र, (iii) लघु चलचित्र ।

(ब) डाक- छात्रों को डाक द्वारा सुझाव भेजे जाते हैं।

(स) लिखित उत्तर- कुछ विशिष्ट विषयों पर छात्रों से लिखित उत्तर माँगे जाते हैं।

(द) स्थानीय शिक्षण व्यवस्था- कभी-कभी स्थानीय समूहों की मदद से स्थानीय शिक्षण की भी व्यवस्था की जाती है।

(य) व्याख्यान/भाषण- खुले विश्वविद्यालय के सुयोग्य प्राध्यापकों के भाषण अथवा व्याख्यान दूरदर्शन पर दिखाये जाते हैं तथा आकाशवाणी पर भी इनका प्रसारण होता है।

(र) पत्राचार शिक्षण- खुले विश्वविद्यालय द्वारा पत्राचार शिक्षण-विधि भी अपनायी जाती है। पत्राचार पाठ्यक्रम के बाद छात्रों को डाक के द्वारा प्रेषित किये जाते हैं एवं उत्तरों को प्राप्त करने की भी व्यवस्था है तथा कभी-कभी देश के विभिन्न स्थानों पर सम्पर्क कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। इस तरह के कार्यक्रम एक माह में दो बार या वर्ष में दो या तीन बार आयोजित किये जाते हैं तथा अध्यापक शिक्षण प्रदान करते हैं। खुले विश्वविद्यालय पत्राचार हैं विश्वविद्यालयों से बिल्कुल अलग होते हैं।

(2) कार्य विधि

1. विद्वानों के द्वारा पाठ तैयार किये जाते हैं। हर पाठ में कुछ पाठों का कार्य-भार छात्रों को सौंपा जाता है।

2. छात्र-छात्राओं का मूल्यांकन निरन्तर किया जाता है।

3. छात्रों के लिए सम्पर्क व्याख्यानों का आयोजन किया जाता है।

4. शिक्षण प्रत्येक मूल्यांकित पाठ अपने सुझावों के साथ छात्रों को लौटा देते हैं।

5. सम्पर्क व्याख्यानों द्वारा छात्रों के व्यक्तिगत शिक्षण दिया जाता है तथा उनकी समस्याओं को दूर किया जाता है।

6. विविध कार्यक्रमों हेतु योग्य व्यक्तियों का चुनाव किया जाता है। इन योग्य व्यक्तियों की देख-रेख में सभी कार्य होते हैं।

7. खुले विश्वविद्यालयों में आमतौर पर शिक्षण पत्राचार के माध्यम से होता है।

8. छात्रों को विभिन्न उपकरणों की सुविधा प्रदान करने हेतु हर क्षेत्र में एक अध्ययन केन्द्र स्थापित किया जाता है। इन केन्द्रों में टेपरिकॉर्डर, आकाशवाणी संयन्त्र तथा दूरदर्शन संयन्त्र की व्यवस्था रहती है।

9. शिक्षक मुक्त विश्वविद्यालय के पूर्णकालिक कर्मचारी होते हैं। बी.सी.सी. लन्दन के उन्मुक्त विश्वविद्यालय हेतु लगभग 300 दूरदर्शन तथा 300 आकाशवाणी कार्यक्रम होते हैं।

10. छात्र इनका चयन स्वयं करते हैं-(क) भाषा का माध्यम, (ख) पाठ्यक्रम, (ग) सहायक उपकरणों का चयन । (3) कार्यान्वित की व्यूह रचना- मुक्त विश्वविद्यालय की व्यूह रचना अग्र तरह है

1. यह कार्यक्रम 1987 से शुरू कर दिया गया है।

2. 1988 से स्नातक पाठ्यक्रम प्रारम्भ कर दिये गये हैं।

3. दूरदर्शन पर शैक्षिक कार्यक्रमों का प्रसारण अलग चैनल द्वारा किया जाता है।

4. शिक्षकों तथा महिलाओं हेतु अभिनव पाठ्यक्रम निकाले गये हैं।

5. यह कार्यक्रम मॉड्यूलर पैटर्न एवं केडिट प्रणाली के आधार पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की मदद से पूरा किया जाता है।

6. राष्ट्रीय स्तर पर पाठ्यक्रम के मूल्यांकन के मानक स्थापित किये गये हैं।

7. प्रादेशिक स्तर पर खुले विश्वविद्यालय राष्ट्रीय स्तर पर क्रियाशील खुले विश्वविद्यालयों से मार्ग-दर्शन प्राप्त करेंगे।

(4) मूल्यांकन का स्वरूप- खुले विश्वविद्यालयों में मूल्यांकन का स्वरूप कुल अग्र तरह है-

1. छात्र स्वयं अपना मूल्यांकन करेंगे।

2. ट्यूटर छात्रों की उपलब्धि का मूल्यांकन अपने स्व-मूल्यांकन के आधार पर करेगा।

3. अन्तिम मूल्यांकन विश्वविद्यालय करेगा।

इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय

इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना 1985 में संसद में पारित एक अधिनियम के द्वारा हुई है। इस विश्वविद्यालय के विजिटर भारत के राष्ट्रपति हैं । यह पद पदेन होता है । इस विश्वविद्यालय का अध्यक्ष कुलपति होता है। इसकी व्यवस्था हेतु प्रबन्ध समिति, योजना परिषद् , विद्या परिषद् वित्त समिति एवं बोर्ड ऑफ रिकग्नीशन होते हैं । कुलपति की मदद हेतु प्रति कुलपति एवं डायरेक्टर्स होते हैं। इस विश्वविद्यालय का एक कुल सचिव एवं वित्त अधिकारी भी होता है । इसका केन्द्रीय कार्यालय नई दिल्ली में है।

1. स्वरूप- मुक्त विश्वविद्यालय का स्वरूप सामान्य विश्वविद्यालयों में भिन्न है शिक्षक के स्थान पर (1) दृश्य-सामग्री, (2) श्रव्य उपकरण, (3) दूरदर्शन, (4) सम्पादित पाठ्य-सामग्री, (5) पत्राचार, (6) सम्पर्क कार्यक्रम आदि द्वारा शिक्षा प्रदान की जाती है। सम्पर्क कार्यक्रम हेतु किसी एक स्थान को चयनित कर समूह मार्गदर्शन एवं वैयक्तिक मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है । को-ऑर्डिनेटर इस कार्यक्रम के संचालन में मदद देते हैं।

2. शिक्षण कार्यक्रम- इस मुक्त विश्वविद्यालय में (1) डिप्लोमा इन मैनेजमेंट, (2) डिप्लोमा इन डिस्टेन्स एजूकेशन चलाये गये। वर्तमान समय में बी.ए., बी.एस-सी., बी.कॉम, डिप्लोमा इन क्रियेटिव राइटिंग, डिप्लोमा इन न्यूट्रीशन शिक्षा कार्यक्रम, मैनेजमेंट स्टडीज, लोकल सेल्फ गवर्नमेंट, बैंकिंग, एनर्जी रिसोर्सेस एवं बागवानी आदि पाठ्यक्रम चलाये जा रहे हैं। इन कार्यक्रमों में प्रवेश योग्यता इण्टरमीडिएट एवं समकक्ष है लेकिन जिन्होंने कोई परीक्षा उत्तीर्ण नहीं की है, वे इस विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर पाठ्यक्रम में प्रवेश ले सकते हैं। 3. क्षेत्रीय केन्द्र- मुक्त विश्वविद्यालय के कार्य को ज्यादा गतिशील बनाने के लिए क्षेत्रीय केन्द्र बनाये गये हैं। इस केन्द्र का एक निदेशक होता है। राज्य सरकारें इस केन्द्र को भवन तथा अन्य प्रदान करती हैं। इनका कार्य अन्य शैक्षिक संस्थाओं में समन्वय स्थापित करना है। क्षेत्रीय केन्द्र में पुस्तकालय, शिक्षण सामग्री एवं अन्य सुविधाएं होंगी।

4. पाठ्यक्रम- देश के स्वीकृत मानकों के अनुसार तीन वर्षीय पाठ्यक्रम बी.ए. , बी.कॉम एवं बी.एस-सी. चलता है। कोई भी छात्र आठ वर्ष में यह पाठ्यक्रम पूरा कर सकता है।

इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद कुछ राज्यों ने भी राज्य मुक्त विश्वविद्यालयों की स्थापना की है।

भारतवर्ष में इस समय 9 राज्य मुक्त विश्वविद्यालय हैं-

1. बी.आर. अम्बेडकर मुक्त विश्वविद्यालय, हैदराबाद (आन्ध्र प्रदेश)।

2. नालन्दा मुक्त विश्वविद्यालय, नालन्दा (बिहार)

3. कोटा मुक्त विश्वविद्यालय, कोटा (राजस्थान)

4. यशवन्त राव चव्हाण महाराष्ट्र मुक्त विश्वविद्यालय, नासिक (महाराष्ट्र)

5. मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय, भोपाल (मध्य प्रदेश)

6. अम्बेडकर मुक्त विश्वविद्यालय, अहमदाबाद (गुजरात)

7. कर्नाटक राज्य मुक्त विश्वविद्यालय, मैसूर (कर्नाटक)

8. नेताजी सुभाषचन्द्र मुक्त विश्वविद्यालय, कोलकाता (पश्चिम बंगाल)

9. राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय, इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश)


खुला स्कूल

केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने औपचारिक शिक्षा प्रणाली की पूर्ति हेतु सन् 1979 में एक राष्ट्रीय खुला विश्वविद्यालय एक विशिष्ट प्रतिमान पर आधारित अपने ढंग का नई दिल्ली में स्थापित किया। 23 नवम्बर, 1989 में इसको एक स्वायत्त सोसायटी के रूप में पंजीकृत किया गया। यह विद्यालय मानव संसाधन मन्त्रालय के शिक्षा विभाग से सम्बन्धित है। सन् 1990 में भारत सरकार ने इसकी एक प्रस्ताव द्वारा उपाधि-पूर्व स्तर के कोर्स हेतु परीक्षा तथा प्रमाण देने की सत्ता सौंप दी। यह विद्यालय ग्रामीण/शहरी/स्त्री/अनुसूचित जाति तथा जनजातियों के बच्चों/रोजगारों में लगे व्यक्तियों/बीच में विद्यालय छोड़ जाने वाले युवाओं आदि के लिए +2 की शिक्षा की व्यवस्था कर रहा है।

राष्ट्रीय खुले विद्यालय ने सबके लिए शिक्षा प्रदान करने हेतु 341 विद्यालय स्थापित किये हैं, जो इस कार्य में उसकी मदद करते हैं। ये विद्यालय मान्य विद्यालय कहलाते हैं।

संरचना- इस विद्यालय में 302 सामान्य शिक्षा 39 व्यावसायिक शिक्षा के कोर्स हैं। वर्ष 1994-95 पद से यह कृषि तथा प्राविधिक कोर्सी की भी व्यवस्था कर रहे हैं। वर्ष 1993-94 में इस विद्यालय ने सेकेण्डरी एवं सीनियर सैकेण्डरी स्तर हेतु 60 हजार छात्रों को प्रवेश देने का लक्ष्य निर्धारित किया है। वर्ष 1993-94 में इसने 56,000 छात्रों की परीक्षा मई 1993 में ली थी।

पुस्तकों का प्रकाशन- यह विद्यालय पुस्तकों का भी प्रकाशन करता है। इसने वर्ष 1993-94 में 25 लाख से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन किया है। विद्यालय ने इन पुस्तकों को अपने छात्रों को वितरित भी किया है।


मुक्त पाठ्यक्रम प्रतिमान से लाभ

1. इसका कोई निर्धारित स्वरूप न होने से बालक बहुत-सी मौलिक बातें सीख सकता है । शिक्षा का मुख्य उद्देश्य भी यही है।

2. इसमें किसी भी तरह की निर्धारित सीमाएं न होने से शैक्षिक प्रयास ज्यादा विस्तृत एवं एकीकृत होंगे।

3. इस पाठ्यक्रम प्रतिमान में शिक्षा एवं शिक्षण में स्पष्टता रहेगी। कोई भी ऐसी संकल्पना नहीं है जिसे समझ पाना कठिन हो।

4. इसमें व्यक्तिगत प्रयासों को समुचित मान्यता मिलती है, इसलिए इस तरह के पाठ्यक्रम से प्रतिभाओं को विकसित होने के समुचित अवसर मिल सकेंगे।


मुक्त पाठ्यक्रम प्रतिमान की सीमाएं

1. इस पाठ्यक्रम में महत्त्वपूर्ण ज्ञान एवं आधारित कुशलताओं की उपेक्षा हो सकती है।

2. इसके लिए जरूरी अधिगम सामग्री एवं स्रोत पूरी तरह से उपलब्ध नहीं हो सकेंगे।

3. इससे शिक्षकों का कार्यभार बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा।

4. ज्यादातर शिक्षकों तथा छात्रों को इससे असुविधा होगी।

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