1995 में पारित विकलांगों के लिए समान अवसर, सुरक्षा, समानता हेतु कानून की विस्तृत व्याख्या कीजिए।

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1992 में चीन के बीजिंग शहर में 1 दिसंबर से 5 दिसंबर तक एशिया व प्रशांत क्षेत्रों के आर्थिक व सामाजिक मामलों के आयोग का अधिवेशन हुआ था। इसमें एक निर्णय लिया गया था कि 1993 से 2002 तक इस क्षेत्र में विकलांग व्यक्तियों के लिए दशक मनाया जाएगा। साथ ही सभी देशों में विकलांग व्यक्तियों की समाज में पूर्ण भागीदारी व समानता सुनिश्चित करने हेतु कानून बनाए जाएंगे।

भारत ने भी उपरोक्त अधिवेशन में भाग लिया था तथा इस कार्य में अपनी सहमति दी थी। इसी के तहत दिसंबर 1995 में विकलांगों के लिए समान अवसर, सुरक्षा व समानता हेतु कानून संसद में पारित किया गया, जिसे भारत के राष्ट्रपति ने मंजूरी दी । इसके साथ ही इसे सरकारी गजट में 1 जनवरी, 1996 को प्रकाशित किया गया। यह पूरे भारत में (जम्मू व कश्मीर छोड़कर) लागू किया जाएगा। इस कानून के चौदह अध्याय हैं।

पहला अध्याय : विकलांगता की परिभाषा

इस कानून के अनुसार, निम्न व्यक्ति विकलांग माने जायेंगे–

1. नेत्रहीन व्यक्ति या अत्यन्त कम दृष्टि वाले व्यक्ति ।

2. कुष्ठता के उपचार के पश्चात् ठीक व्यक्ति ।

3. बधिर व्यक्ति।

4. अस्थिर– विकलांग अर्थात् जिनके हाथ कमजोर हों या नहीं हों।

5. मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति व मानसिक विकृतियों के शिकार व्यक्ति ।

इस कानून में विभिन्न विकलांग व्यक्तियों की परिभाषा भी दी गई है–

(i) नेत्रहीन व्यक्ति उसे माना जाएगा जिसकी दृष्टि बिल्कुल नहीं हो।

(ii) जिसकी दृष्टि बेहतर आंख में 6/60 या 20/200 से कम हो (चश्मे के पश्चात्)

(iii) जो 20° से अधिक क्षेत्र तक नहीं देख सकता है।

(iv) श्रवणहीन व्यक्ति वह माना जाएगा जिसके बेहतर कान की श्रवण– क्षमता 60 डेसीबल कम हो गई हो।

(v) कुष्ठरोग के उपचार के पश्चात् व्यक्ति यदि हाथ या पैर की संवेदनशीलता कम हो गई हो तो वह विकलांग माना जाएगा।

(vi) अस्थि– विकलांग व्यक्ति वे माने जाएंगे जिनकी हड्डियाँ, जोड़ या मांसपेशियाँ ठीक प्रकार से घूम न पाती हों। यह विकृत सेरीब्रल माल्सी अर्थात् मानसिक कमजोरी के कारण हो तो वे भी इस श्रेणी में आएंगे।

(vii) मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति वे माने जाएंगे जिनका मस्तिष्क कम विकसित है |

(vi) मानसिक विकृति के शिकार वे व्यक्ति माने जाएंगे जो अन्य प्रकार की मानसिक विकृति के शिकार हों।

दूसरा अध्याय : विकलांगों के लिए केन्द्रीय समन्वय समिति :

इस कानून के दूसरे अध्याय के अनुसार, केन्द्र सरकार एक केन्द्रीय समन्वय समिति गठित करेगी, जिसमें 39 सदस्य होंगे। केन्द्रीय कल्याण मंत्री इसके पदेन अध्यक्ष होंगे । केन्द्रीय कल्याण राज्यमंत्री इसके पदेन उपाध्यक्ष होंगे। पाँच विकलांग व्यक्ति, विकलांग वर्ग तथा इस वर्ग के लिए कार्य कर रही संस्थाओं के प्रतिनिधि इस समिति के सदस्य होंगे। इनके अतिरिक्त केन्द्रीय सरकार के कल्याण शिक्षा, महिला, बाल– विकास, व्यय कार्मिक प्रशिक्षण, जन– शिकायत, स्वास्थ्य,ग्रामीण विकास, औद्योगिक विकास, शहरी विकास,रोजगार, विज्ञान व तकनीकी विभाग, कानूनी मामले, सार्वजनिक उद्योग मंत्रालयों के सचिव इसके सदस्य होंगे।

केन्द्र सरकार विकलांगों के लिए मुख्य आयुक्त नियुक्त करेगी और वह भी इसका सदस्य होगा। रेलवे बोर्ड का अध्यक्ष, श्रम, रोजगार व प्रशिक्षण निर्देशालय का महानिदेशक, एन.सी.ई.आरटी. का निदेशक, दो लोकसभा सदस्य तथा एक राज्यसभा सदस्य, विकलांगों के लिए कार्य कर रही चार सरकारी संस्थाओं के निदेशक, राज्य सरकारों के क्रमवार चार प्रतिनिधि इसके सदस्य होंगे। केन्द्र सरकार के कल्याण मंत्रालय का संयुक्त सचिव इसका सदस्य सचिव होगा।

यह लंबी– चौड़ी कमेटी 6 माह में कम से कम एक बार बैठेगी तथा राष्ट्रीय स्तर पर विकलांगों के कल्याण हेतु नीति निर्धारित करेगी।

सामान्य कार्यों के अलावा यह विभिन्न सरकारी विभागों द्वारा विकलांगों के कल्याण के लिए चलाई जा रही योजनाओं की नियमित समीक्षा करेगी तथा एक राष्ट्रीय योजना तैयार करेगी। केन्द्र सरकार को विकलांगों के लिए नीतियाँ कार्यक्रम, कानून व योजना बनाने के लिए सलाह देगी। साथ में इस वर्ग के लोगों के उद्देश्य की पूर्ति हेतु संबंधित विभागों, अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा तैयार की गई नीतियों व कार्यक्रमों को लागू कराने में प्रमुख भूमिका अदा करेंगी। विकलांग वर्ग के लिए दान करने वाली संस्थाओं के कार्य के प्रभाव की भी समीक्षा करेगी।

विकलांगों के लिए सार्वजनिक स्थानों, स्कूलों व संस्थानों में किसी प्रकार का प्रतिरोध न हो यह सुनिश्चित करेगी। समय– समय पर विकलांगों की समाज में समान भागीदारी के लिए लागू की जा रही योजनाओं पर नजर रखेगी । इस समिति का कार्यकाल 3 वर्षों का होगा कार्यकाल समाप्त होने पर इसके सदस्य दोबारा भी नामित हो सकते हैं।

केन्द्रीय समन्वय समिति जिन नीतियों को बनाएगी उन्हें लागू कराने के लिए केन्द्रीय सरकार एक केन्द्रीय कार्यपालक समिति का गठन करेगी। कुल 23 सदस्य होंगे जो इस प्रकार है –

1. भारत के कल्याण मंत्रालय का सचिव।

2. विकलांगों के लिए नियुक्त मुख्य आयुक्त।

3. स्वास्थ्य सेवाओं का महानिदेशक ।

4. रोजगार व प्रशिक्षण विभाग का महानिदेशक ।

5. ग्रामीण विकास, शिक्षा कल्याण, जनशिकायत व पेंशन, शहरी विकास, रोजगार, विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग के संयुक्त सचिव स्तर के 6 सदस्य।

6. कल्याण मंत्रालय का आर्थिक सलाहकार ।

7. रेलवे बोर्ड का सलाहकार।

8. केन्द्र सरकार द्वारा नामित चार प्रतिनिधि क्रमवार राज्य सरकारों का प्रतिनिधित्व करेंगे।

9. केन्द्र सरकार का एक प्रतिनिधि।

10. कल्याण मंत्रालय का संयुक्त सचिव इस केन्द्रीय कार्यपालक समिति का सदस्य सचिव होगा।

यह समिति तीन मास में कम से कम एक बार बैठेगी। यह केन्द्रीय समन्वय समिति द्वारा बनाई गई सभी नीतियों व कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार होगी। इसका प्रतिनिधि केन्द्रीय समन्वय समिति की कार्यवाही में भाग भी ले सकेगा। इसके सदस्य को भी इसकी बैठक में भाग लेने के लिए भत्ता मिलेगा।

तीसरा अध्याय : राज्यों के विकलांगों के लिए समन्वय समिति व कार्यपालक समिति

केन्द्र सरकार की तरह राज्य सरकारें भी अपने– अपने राज्यों में राज्य समन्वय समितियाँ गठित करेंगी जो इस कानून के अनुसार अपने कार्य करेंगी।

राज्य समन्वय समिति के निम्न सदस्य होंगे:

1. राज्य का समाज कल्याण मंत्री– अध्यक्ष ।

2. राज्य का समाज कल्याण राज्यमंत्री– उपाध्यक्ष ।

3. राज्य सरकार के कल्याण, शिक्षा, महिला व बाल– विकास, व्यय, प्रशिक्षण व, जन– शिकायत, स्वास्थ्य ग्रामीण विकास, औद्योगिक विकास, शहरी मामलों, रोजगार, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, सार्वजनिक क्षेत्र के विभागों के सचिव।

4. यदि राज्य सरकार आवश्यक समझे तो किसी अन्य विभाग का सचिव भी सदस्य हो सकता है।

5. ब्यूरो ऑफ पब्लिक एंटरप्राइजेज का अध्यक्ष ।

6. जहाँ तक संभव हो पाँच विकलांग व्यक्ति, जो विकलांग वर्ग व इसके लिए कार्य कर रही संस्थाओं का प्रतिनिधित्व कर सके।

7. राज्य विधानमंडल के तीन सदस्य।

8. राज्य का आयुक्त (विकलांगों के लिए)

9. राज्य सरकार के कल्याण मंत्रालय का सचिव इसका सचिव होगा।

केन्द्रशासित प्रदेशों के लिए राज्य समन्वय समिति का गठन नहीं किया जाएगा। केन्द्रीय समन्वय समिति अपने अधिकारों को पूर्णत: या आंशिक रूप से किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को दे सकती है।

राज्य समन्वय समिति का कार्यकाल तीन वर्ष का होगा। इसके सदस्य दोबारा नामित किए जा सकते हैं। इस समिति की बैठक भी छ: महीने में कम से कम एक बार होगी।

यह समिति राज्य में विकलांगों के लिए नीतियों और कार्यक्रमों का निर्धारण करेगी। यह राज्य सरकार के सभी विभागों के बीच में इस तरह का तालमेल करेगी ताकि विकलांगों को अधिकतम राहत मिल सके। यह सरकार को विकलांगों के लिए नीति– निर्धारण व कानून बनाने में समय– समय पर सलाह देगी। यह विभिन्न सहायता देने वाली एजेंसियों के बीच इस तरह तालमेल करेगी ताकि विकलांगों को राहत मिल सके। यह सार्वजनिक स्थलों, जनसुविधाओं, स्कूलों व अन्य संस्थाओं में उन संभी अवरोधों को दूर करेगी जो विकलांगों को कष्ट पहुँचाते हैं । यह समिति उन नीतियों व कार्यक्रमों का मूल्यांकन करेगी जो विकलांगों को बराबरी व पूर्ण भागीदारी दिलाने में सहायक हो ।

केन्द्र सरकार की तरह राज्य सरकार भी समन्वय समिति द्वारा बनाए गए कार्यक्रमों को लागू कराने के लिए राज्य कार्यपालक समिति का गठन करेगी। इसमें निम्न सदस्य होंगे–

1. राज्य के समाज कल्याण विभाग का सचिव।

2. राज्य का आयुक्त (विकलांगों के लिए) ।

3. राज्य सरकार के स्वास्थ्य, वित्त, ग्रामीण विकास, शिक्षा, कल्याण, जन– शिकायत, शहरी मामले, श्रम व रोजगार, विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग के संयुक्त सचिव स्तर के 9 प्रतिनिधि।

4. राज्य सरकार यदि आवश्यक समझे तो किसी अन्य विभाग का प्रतिनिधि।

5. जहाँ तक संभव हो 5 विकलांग व्यक्ति जो विकलांग वर्ग के लिए कार्य कर रही संस्थाओं का प्रतिनिधित्व कर सके। यह प्रयत्न किया जायेगा कि ये पाँच व्यक्ति अलग– अलग विकलांगता के शिकार हों। सरकार इनमें एक महिला व । एक अनुसूचित जाति के विकलांग को रखेगी।

राज्य सरकार के,कल्याण विभाग का संयुक्त सचिव,जो विकलांगों से संबंधित विभाग – का प्रभारी हो, इसका सचिव होगा। यह समिति राज्य समन्वय समिति द्वारा लिए गए निर्णयों के अनुपालन कराने के लिए जिम्मेदार होगी।

यदि राज्य सरकार के निर्देश, केन्द्रीय समिति के निर्देशों के अनुरूप नहीं हैं तो ऐसी । स्थिति में केन्द्र सरकार हस्तक्षेपं करेगी।

केन्द्रीय समन्वय समिति व राज्य कार्यपालक समितियों में यदि कोई स्थान खाली है या किसी नियुक्ति में कोई विवाद है तो इससे पूरी समिति के निर्णयों की वैधता पर कोई असर नहीं पड़ता।

चौथा अध्याय : विकलांगता रोकने के उपाय

सरकार व स्थानीय प्रशासन अपनी आर्थिक क्षमता व विकास योजनाओं के अनुसार विकलांगता को रोकने के लिए निम्न प्रयास करेंगे–

(1) सरकार सर्वेक्षण, जाँच व अनुसंधान करेगी ताकि विकलांगता के जन्म लेने के कारणों का पता चल सके।

(2) सरकार विकलांगता को रोकने हेतु सभी उपाय करेगी।

(3) सरकार सभी बच्चों की कम से कम साल में एक बार जाँच कराएगी ताकि उन्हें विकलांगता के संभावित खतरों से बचाया जा सके।

(4) सरकार इस कार्य के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों के कर्मचारियों के प्रशिक्षण के लिए समस्त सुविधाएं जुटाएगी।

(5) सरकार सामान्य स्वास्थ्य, सफाई के लिए जनजागरण अभियान चलाएगी तथा पहले से चलाए जा रहे अभियानों को प्रोत्साहन देगी।

(6) माता व बच्चों को जन्म से पूर्व, जन्म के दौरान व जन्म के पश्चात् देख– रेख की व्यवस्था करेगी।

पाँचवाँ अध्याय : विकलांगों के लिए शिक्षा

विकलांगों के लिए शिक्षा के लिए अनेक प्रावधान किए गए हैं–

(1) इन प्रावधानों के अनुसार, सरकार प्रत्येक विकलांग विद्यार्थी के लिए 18 वर्ष की आयु तक मुफ्त शिक्षा का उपाय करेगी।

(2) सरकार यह भी प्रयास करेगी कि विकलांग छात्र यथासंभव सामान्य छात्रों के साथ घुलमिल सके।

(3) सरकार स्वयं तथा निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित ऐसे विशेष स्कूल स्थापित करेगी जिनमें विकलांग छात्र, चाहे वे देश के किसी भी हिस्से के हों, दाखिल हो सके।

(4) सरकार इन विशेष स्कूलों को विकलांगों के विशेष प्रशिक्षण के लिए आवश्यक साज– सामान्य प्रदान करेगी।

इसके अलावा सरकार व स्थानीय प्रशासन ऐसी योजनाएं चलाएंगे जिनसे–

(1) विकलांग छात्र, जो पाँचवीं कक्षा तक पढ़ाई कर चुके हैं तथा आगे पूर्णकालिक पढ़ाई करने में अक्षम हों, को अंशकालिक पढ़ाई की सुविधा मिल सके।

(2) 16 वर्ष से अधिक उम्र के विकलांग विशेष अंशकालिक क्लासों के जरिये कामकाज योग्य साक्षरता प्राप्त कर सके।

(3) ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध, जनशक्ति का इस्तेमाल करते हुए विकलांगों को गैर– पारंपरिक शिक्षा प्रदान की जा सके।

(4) विकलांगों को खुले स्कूलों व विश्वविद्यालयों के जरिये शिक्षा प्रदान की जा सके।

(5) इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व अन्य संचार माध्यमों के जरिये, कक्षाओं व गोष्ठियों का आयोजन करके विकलांगों को शिक्षा प्रदान की जा सके।

(6) प्रत्येक विकलांग छात्र को विशेष किताबें व सामान्य निःशुल्क प्रदान किए जा सकें।

सरकार स्वयं सरकारी एजेंसियों व गैर सरकारी एजेंसियों के जरिये ऐसे अनुसंधान करेगी ताकि विकलांग व्यक्तियों के काम आने वाले उपकरण,पढ़ाने में उपयुक्त उपकरण व सामग्री आदि विकसित हो सके ताकि विकलांग छात्र को पढ़ने के लिए समान अवसर मिल सके।

सरकार पर्याप्त संख्या में शिक्षक प्रशिक्षण– संस्थान खोलेगी तथा राष्ट्रीय संस्थानों व स्वयंसेवी संस्थाओं को प्रेरित करेगी ताकि विकलांगों को प्रशिक्षण देने के लिए विशेष रूप में प्रशिक्षित व्यक्तियों की बड़ी टीम तैयार हो सके।

इसके अतिरिक्त सरकार एक वृहद योजना तैयार करेगी जिसमें ये प्रावधान होंगे–

(1) विकलांग छात्रों को स्कूल आने जाने के लिए यातायात के साधन मिलें या उनके माता– पिता को इतनी आर्थिक सहायता मिले ताकि ये बच्चे सुविधापूर्वक स्कूल पहुँच सकें।

(2) स्कूलों, कॉलेजों व व्यावसायिक शिक्षा केन्द्रों में ऐसे अवरोध, जो विकलांगों के आवागमन में बाधा बनते हों, दूर किए जा सकें।

(3) विकलांग छात्रों को पुस्तकें, वर्दी व अन्य सामान आसानी से मिल सकें।

(4) विकलांग छात्रों को छात्रवृत्ति मिले।

(5) विकलांग छात्रों के अभिभावकों को परेशानियों के निवारण हेतु जरिया बने ।

(6) परीक्षा– पद्धति में ऐसे परिवर्तन ताकि नेत्रहीन विद्यार्थियों को शुद्ध गणित के सवाल हल में दिक्कत न हो।

(7) बधिर छात्रों के लिए पाठ्यक्रम में ऐसे सुधार हों ताकि वे एक भाषा की जानकारी से पढ़ाई कर सकें।

छठा अध्याय : विकलांगों के लिए रोजगार

(i) इस अध्याय के प्रावधानों के अनुसार, सरकार अपने उपक्रमों में ऐसे पदों की पहचान करेगी जो विकलांगों के लिए सुरक्षित किए जा सकें।

(ii) समय– समय पर इन पदों की समीक्षा की जाएगी साथ ही तकनीकी विकास को ध्यान में रखते हुए इस सूची में और पद जोड़े जाएंगे।

सरकार व स्थानीय प्रशासन विकलांगों के लिए पदों में से कम से कम तीन प्रतिशत पद विकलांगों के लिए आरक्षित करेंगे। इनमें से एक प्रतिशत पद नेत्रहीनों या कम दृष्टिवालों के लिए, एक प्रतिशत श्रवणहीन व्यक्तियों के लिए तथा एक प्रतिशत अस्थि विकलांगों अर्थात जिनके हाथ पैर न हों या हों तो कमजोर हों, के लिए आरक्षित करेगी। सरकार ऐसे निर्देश जारी करेगी ताकि प्रत्येक विभाग एक निश्चित अन्तराल के बाद अपने यहाँ होने वाली रिक्तियों की सूचना विशेष रोजगार कार्यालय को देगा।

यदि किसी वर्ष विकलांगों के लिए सुरक्षित पद पर उपयुक्त उम्मीदवार के न होने से भर्ती न हो तो वह रिक्ति अगले वर्ष विकलांग व्यक्ति द्वारा ही भरी जाएगी। यदि अगले वर्ष भी उपयुक्त व्यक्ति नहीं मिलता है तो अन्य प्रकार के विकलांग व्यक्ति द्वारा यह पद भरा जाएगा। यदि अन्य प्रकार का विकलांग व्यक्ति भी उपलब्ध न हो तभी यह पद सामान्य व्यक्ति द्वारा भरा जाएगा।

सरकार व स्थानीय प्रशासन अपने आर्थिक स्रोतों को ध्यान में रखते हुए नियोक्ताओं के लिए ऐसी प्रोत्साहन– योजनाएं बनाएंगे ताकि सार्वजनिक व निजी क्षेत्र में कम से कम पाँच प्रतिशत पद विकलांगों को मिल सकें ।

सातवाँ अध्याय : सकारात्मक उपाय

सरकार समय– समय पर ऐसी योजनाएं बनाएगी जिससे विकलांगों जिससे विकलांगों को सहायक उपकरण मिल सके।

सरकार व स्थानीय प्रशासन विकलांग व्यक्तियों के लिए ऐसी योजनाएं तैयार करेंगे कि निम्न उद्देश्यों के लिए उन्हें रियायती दरों पर भूमि उपलब्ध हो सके:

(1) मकान के लिए

(2) व्यवसाय स्थापित करने के लिए।

(3) विशेष मनोरंजन केन्द्र स्थापित करने के लिए

(4) विशेष स्कूल स्थापित करने के लिए।

(5) अनुसंधान केन्द्र स्थापित करने के लिए

(6) विकलांग उद्यमियों द्वारा कारखाना स्थापित करने के लिए।

आठवाँ अध्याय : विकलांगों के लिए यातायात आदि की सुविधा

परिवहन क्षेत्र अपने आर्थिक संसाधनों को ध्यान में रखते हुए ऐसे विशेष उपाय करेगा, ताकि रेल के डिब्बों, बसों, पानी के जहाजों व हवाई जहाजों में विकलांग व्यक्ति आराम से प्रवेश पा सकें। साथ ही इनमें व प्रतीक्षा केन्द्रों में शौचालय इस प्रकार के हों ताकि विकलांग व्यक्ति व्हीलचेयर के जरिये भी इनका इस्तेमाल कर सकें।

सरकार व स्थानीय प्रशासन अपने आर्थिक संसाधनों को ध्यान में रखते हुए निम्न उपाय करेंगे–

(1) सडकों पर रेड लाइट के साथ ध्वनि संकेत का इंतजाम।

(2) उपयुक्त स्थानों पर कटाव व ढाल आदि ताकि व्हीलचेयर का इस्तेमाल किया जा सके।

(3) सड़कों पर पैदल यात्रियों के लिए जेब्रा कॉसिंग पर एनग्रेविंग करना ताकि नेत्रहीनों को भी सरलता से कॉसिंग का पता चल जाए।

(4) रेलवे प्लेटफॉर्म पर किनारे एनग्रेविंग करना ताकि नेत्रहीनों को समझ में आ जाए।

(5) जगह– जगह पर चेतावनी– चिन्ह बनाना ।

इसके साथ– साथ सरकार अपनी आर्थिक शक्ति अनुसार सार्वजनिक भवनों में रैप तैयार करेगी, शौचालय को व्हीलचेयर इस्तेमाल करने वालों के योग्य बनाएगी, लिफ्टों में ध्वनि– यंत्रों व ब्रेल संक्रेतों को लगाएगी तथा अस्पतालों, प्राथमिक स्वास्थ्य व पुनर्वास केन्द्रों में रैप का निर्माण करेगी।

नवा अध्याय : विकलांगता रोकने के लिए अनुसंधान

सरकार व स्थानीय प्रशासन ऐसे अनुसंधान को प्रोत्साहन व सहायता देंगे जिससेः

(1) विकलांगता पर रोक लग सके।

(2) विकलांगों का पुनर्वास हो सके।

(3) विकलांगों के लिए मनोवैज्ञानिक व सामाजिक सहायता उपकरणों का विकास हो सके।

(4) रोजगार की पहचान हो सके।

(5) कार्यालयों व कारखानों में उपयुक्त परिवर्तन हो सके।

दसवाँ अध्याय : विकलांगों के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं की मान्यता

इस अध्याय में विकलांगों के लिए कार्य कर रही संस्थाओं की यथोचित मान्यता– संबंधी प्रावधान है । प्रत्येक राज्य सरकार इस उद्देश्य के लिए एक सक्षम अधिकारी नियुक्त करेगी। कोई व्यक्ति इस सक्षम अधिकारी के पास पंजीकृत कराने के बाद ही विकलांगों के कल्याण के लिए कोई संस्था बना सकेगा। जो व्यक्ति यह कानून बनाने से पूर्व ही ऐसी संस्थाएं चला रहे थे उन्हें भी यह कानून बनने के छ: महीने के अंदर उक्त सक्षम अधिकारी के पास पंजीकरण हेतु आवेदन दायर कर देना होगा। इस उद्देश्य के लिए दिए गए आवेदन राज्य सरकार के अधीन निर्धारित तरीके से सक्षम अधिकारी द्वारा निपटाए जाएंगे। आवेदन प्राप्त करने के पश्चात् सक्षम अधिकारी पूरी जाँच करेगा और उचित पाए जाने पर पंजीकरण प्रमाणपत्र देगा। उक्त अधिकारी यदि आवेदन में दी गई सूचनाओं से संतुष्ट नहीं है तो आवेदन निरस्त भी कर सकता है। इससे पूर्व यह आवेदक की पूरी बात सुनेगा और आवेदन निरस्त करने की स्थिति में भी आवेदक को सूचना दी जाएगी।

जिन संस्थाओं के बारे में सक्षम अधिकारी संतुष्ट होगा कि वे आवश्यक सुविधाएं । जुटा सकती है। तथा सरकार द्वारा निर्धारित पैमानों के अनुसार काम कर सकती है, उन्हीं को पंजीकरण प्रदान किया जाएगा।

एक बार पंजीकरण होने के बाद निरस्त होने तक या सरकार द्वारा निर्धारित अवधि तक प्रभावी रहेगा। साथ में इसे समय– समय पर नवीनीकृत कराने के लिए आवेदन इसकी अवधि के समाप्त होने के कम से कम सात दिन पूर्व करना होगा।

पंजीकृत संस्था को इस प्रमाणपत्र को प्रमुख स्थान पर लगाना होगा। यदि सक्षम अधिकारी को विश्वास हो कि संस्था ने पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त करने या नवीनीकृत करने के दौरान, झूठी सूचनाएं दी हैं या निगमों का उल्लंघन किया है तो यह प्रमाणपत्र निरस्त किया जा सकता है। निरस्त किए जाने से पूर्व आवेदक को अपनी बात कहने का उचित मौका दिया जाएगा। जिस संस्था का प्रमाणपत्र निरस्त हो जाएगा, उसे उस तारीख से कार्य करने का अधिकार नहीं रहेगा।

आवेदक को उस निर्णय के खिलाफ सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के तहत अपील करने का अधिकार होगा।

ग्यारहवाँ अध्याय : अत्यन्त विकलांगता के शिकार व्यक्तियों के लिए

इस अध्याय के तहत सरकार अत्यंत विकलांगता के शिकार व्यक्तियों के लिए संस्थाएं स्थापित करेगी तथा उन्हें चलाएगी। सरकार यदि उचित समझेगी तो विकलांगों के कल्याण के लिए पंजीकृत किसी संस्था को अत्यंत विकलांगता के शिकार व्यक्तियों के लिए संस्था मान सकती है। इस संस्था को सरकार द्वारा निर्धारित शर्ते पूरी करनी होंगी। इस नियम के तहत अत्यंत विकलांगता की परिभाषा के अनुसार 80 प्रतिशत या उससे अधिक विकलांगता वाले व्यक्तियों के लिए ये संस्थाएं कार्य करेगी।

बारहवाँ अध्याय : विकलांगों के लिए मुख्य आयुक्त व राज्यों में आयुक्त

केन्द्र सरकार विकलांगों के लिए एक मुख्य आयुक्त नियुक्त करेगी। इस पद पर नियुक्त होने वाले व्यक्ति को विकलांगों के पुनर्वास के लिए आवश्यक ज्ञान व व्यावहारिक अनुभव होना आवश्यक है। मुख्य आयुक्त को सरकार द्वारा निर्धारित वेतन व अन्य सुविधाएं मिलेंगी। साथ ही उन्हें कार्य को अंजाम देने के लिए विभिन्न स्तर के अधिकारी व कर्मचारी प्रदान किए जाएंगे। ये लोग मुख्य आयुक्त के मातहत कार्य करेंगे। इन्हें भी सरकार द्वारा निर्धारित वेतन व सुविधाएं मिलेंगी।

मुख्य आयुक्त के दायित्व निम्न होंगे–

(1) वह राज्यों द्वारा नियुक्त आयुक्तों के कार्यों के तालमेल में उचित भूमिका अदा करेगा।

(2) वह सरकार द्वारा आवंटित धनराशि का उचित इस्तेमाल सुनिश्चित करेगा।

(3) विकलांगों के अधिकारों व सुविधाओं को सुरक्षित रखने का कार्य करेगा।

(4) वह केन्द्र सरकार के कानून के इस्तेमाल– संबंधी ब्यौरा देगा।

मुख्य आयुक्त अन्य कार्यों के अलावा स्वयं या शिकायत होने पर निम्न मामलों में कार्यवाही करेगा–

(1) जहाँ विकलांग व्यक्ति के अधिकारों का हनन हो रहा है।

(2) जहाँ सरकार या स्थानीय प्रशासन द्वारा लागू किए गए विकलांगों के कल्याण– संबंधी कानून, नियम, आदेश, निर्देश लागू न हो रहे हों।

केन्द्र सरकार की तरह राज्य सरकार भी अपने– अपने राज्यों में आयुक्त नियुक्त करेगी। इन पदों पर विकलांगों के पुनर्वास की जानकारी व व्यावहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्तियों की ही नियुक्ति की जाएगी। ये आयुक्त विकलांगों के लिए सरकार द्वारा बनाए गए कार्यक्रमों व योजनाओं का ठीक प्रकार से निष्पादन कराने के लिए विभिन्न विभागों के बीच तालमेल करेंगे। ये राज्य सरकारों द्वारा इस पद के लिए निर्धारित धन के इस्तेमाल पर नजर रखेंगे। ये विकलांगों के अधिकारों व सुविधाओं को सुरक्षित रखने में सक्रिय भूमिका अदा कनेंगे।

तेरहवाँ अध्याय : विकलांगों के लिए सामाजिक सुरक्षा

सरकार व स्थानीय प्रशासन अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार सभी विकलांगों के पुनर्वास का दायित्व लेने वालों को सहायता देंगे।

इस उद्देश्य के लिए सरकार व स्थानीय प्रशासन गैर– सरकारी संस्थाओं को भी आर्थिक सहायता देंगे। सरकार व स्थानीय प्रशासन विकलांगों के पुनर्वास की नीति निर्धारित करते समय इन गैर सरकारी संस्थाओं से परामर्श भी करेंगे।

सरकार अधिसूचना जारी करके अपने विकलांग कर्मचारियों के लिए बीमा योजना तैयार करेगी। सरकार इनके लिए बीमा योजना बनाने के बजाय वैकल्पिक सामाजिक सुरक्षा की योजना भी तैयार कर सकती है।

सरकार अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार विशेष रोजगार कार्यालय में दो वर्ष से पंजीकृत विकलांग बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देने की योजना बनाएगी।

चौदहवाँ अध्याय : विविध

यदि कोई व्यक्ति विकलांगों के लिए सुरक्षित लाभों को धोखा देकर लेता है या लेने की कोशिश करता है तो उसे दो वर्ष तक की केन्द्र या 20 हजार रुपये तक का जुर्माना किया जा सकता है। दोनों सजाएं एक साथ भी दी सकती है।

विकलांगों के लिए नियुक्त मुख्य आयुक्त, आयुक्त तथा अन्य अधिकारी व कर्मचारी लोकसेवक माने जाएंगे। इस कानून को लागू करने में इन अधिकारी द्वारा सद्भावना में किए गए कामों के लिए कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।

यह कानून वर्तमान में चल रहे नियम व आदेशों के अतिरिक्त होगा तथा किसी भी परिस्थिति में वर्तमान प्रावधानों में नहीं करेगा।

सरकार इस कानून के तहत बनाई योजनाओं, निगमों को शीघ्रातिशीघ्रअधिकतम संसद सत्र के तीस दिनों के अन्दर सदन में रखेगी। सदन द्वारा अनुमति देने पर योजना या नियम भविष्य में प्रभावी होंगे।

विकलांग कानून– 1995 से प्राप्त अधिकार

(1) इस कानून से विकलांगों को सामान्य व्यक्तियों के बराबर अधिकार मिल गए

(2) विकलांगों को अपने कानूनी अधिकार की रक्षा का अधिकार है।

(3) विकलांगों को सामान्य व्यक्तियों की तरह जीवन के हर क्षेत्र में भाग लेने का अधिकार है।

(4) इस कानून के विकलांगों को कानूनी रूप से एक दर्जा मिल गया है और विभिन्न प्रकार की विकलांगताओं को कानूनी रूप से परिभाषित किया गया है।

(5) इस कानून के बनने से विकलांगों को अधिकार मिला है कि उनकी सही रूप से देखरेख की जाए और उनका पुनर्वास करके उन्हें समाज की मुख्य धारा में लाया जाए। इस कानून में सरकार, विभिन्न अधिकारियों और संस्थानों की यह जिम्मेदारी है कि वे कानून के अनुसार विकलांगों के लिए काम करे।

(6) केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों की यह जिम्मेदारी है कि वह ऐसे प्रयास करें ताकि विकलांगता की संख्या में रही बढ़ोतरी रुक जाए और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के कर्मचारियों को पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाए। स्वच्छता के लिए विशेष उपाय किये जाएं। बच्चों की कम से कम एक बार जाँच की जाए और खतरे वाले मामलों की पहचान की जाए।

(7) विकलांगता से पीड़ित हर बच्चे को 18 वर्ष की आयु तक उचित वातावरण में निःशुल्क शिक्षा दी जाए। सरकार को विशेष शिक्षा देने के लिए विशेष विद्यालयों की स्थापना करनी होगी। विकलांग छात्रों को सामान्य स्कूलों में समायोजित करना, विकलांग छात्रों को व्यावसायिक शिक्षा के अवसर प्रदान कराना भी इस कानून के तहत आवश्यक है।

(8) विकलांग छात्र, जो पाँचवीं कक्षा तक शिक्षा हासिल कर चुके हैं, खुले स्कूलों, खुले विश्वविद्यालयों के जरिए आगे शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं और इसके लिए उन्हें विशेष पुस्तकें और उपकरण आदि निःशुल्क प्रदान किए जाने चाहिए।

(9) यह सरकार का दायित्व है कि वह उपकरणों, शिक्षण में सहायक उपकरणों विशेष शिक्षण– सामग्री आदि का विकास करे ताकि विकलांग बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र के समान अवसर मिल सकें।

(10) सरकारी पदों, जो विकलांगों के लिए अनुकूल हों, में विकलांगों के लिए कम से कम प्रतिशत आरक्षण होगा। इसमें एक प्रतिशत नेत्रहीनों तथा एक प्रतिशत श्रवणहीनों के लिए और एक प्रतिशत अस्थि विकलांग के लिए आरक्षित होंगे।

(11) विकलांगों को रोजगार देने के लिए विशेष रोजगार केन्द्रों को और सशक्त किया जाएगा।

(12) सभी सरकारी शिक्षण– संस्थान व सरकारी सहायता प्राप्त शिक्षण– संस्थान 3% स्थान विकलांगों के लिए आरक्षण किया जाएगा।

(13) विकलांगों को प्राथमिकता के आधार पर और रियायती दरों पर मकान और पुनर्वास हेतु जमीन दी जाएगी।

(14) विकलांगों के साथ यातायात, ट्रैफिक संकेत, आंतरिक वातावरण में किसी किस्म का भेदभाव नहीं बरता जाएगा। जैसी सुविधाएं औरों को मिलती हैं वैसी ही सुविधाएं विकलांगों को मिलेगी, भले ही इसके लिए सरकार को अतिरिक्त खर्च करना पड़े।

(15) सरकार विकलांगों और गंभीर विकलांगता के शिकार व्यक्तियों के लिए कार्य कर रही संस्थाओं को मान्यता देते समय उन पर नियंत्रण करेगी।

(16) मुख्य आयुक्त व राज्यों के आयुक्त विकलांगों के अधिकारों के हनन के मामलों की शिकायतों का निपटारा करेंगे।

(17) सरकार और स्थानीय विकलांगों के कल्याण की योजनाएं बनाएंगे, इस उद्देश्य के लिए गैर– सरकारी संस्थाओं को सहायता देंगे। विकलांग कर्मचारियों के लिए बीमा योजनाएं तैयार करेंगे।

(18) जो व्यक्ति विकलांगों के लिए आरक्षित सुविधाओं का गलत ढंग से इस्तेमाल करेगा, उसे 20,000 रुपये तक का जुर्माना या 2 वर्ष तक की केन्द्र या दोनों सजाएं हो सकती हैं।

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