विकलांगिक अक्षमता क्या है ? इसके क्या कारण हैं?

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किसी भी बालक की वह अवस्था जिसमें किसी प्रकार की शारीरिक निर्योग्यता के कारण वह औसत बालक की भाँति स्कूल के कार्यकलापों विशेष उन्नति नहीं कर पाता। इस शारीरिक निर्योग्यता विशेष को नियंत्रित करने के लिये इन बालकों को अतिरिक्त उपकरण या विशिष्ट शिक्षण की आवश्यकता होती है। मेडिकल साइंस में इन्हें विकलांगिक अक्षमता नाम दिया गया है। यह निम्न के होते हैं–

(1) लूले– लंगड़े, हथकटे, (2) लकवा, (3) पाँवफिरा, (4) मेरुदण्ड का वक्र, (5) प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात, (6) विकृत नितम्ब, (7) मेरुदण्डीय द्विशाखी, (8) माँसपेशीय डायस्ट्रोफी।

इन सभी प्रकारों में प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात अधिकतर अपंग बालकों में पाया जाता है इसका कारण मस्तिष्क में किसी प्रकार की चोट लगना है। इस प्रकार की मस्तिष्कीय चोट प्रायः गर्भावस्था में लगती है इसमें ऐच्छिक गामक क्रियाप्रणाली गड़बड़ा जाती है जिसकी मात्रा हर व्यक्ति में अलग– अलग होती है यह मात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि मस्तिष्क का कौनसा भाग कितना प्रभावित हुआ है। यह प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात तीन प्रकार के होते हैं–

(1) मस्तिष्क– संस्तभ्य

(2) एथिटोसिस

(3) एटासिया।

प्रथम प्रकार मस्तिष्क– संस्तम्भ में अकस्मात व झटकेदार गति होती है।

द्वितीय प्रकार एथिटोसिस में धीमी व बार– बार होने वाली गति होती है। इसमें प्रायः गले और मुँह की माँसपेशियों में नियन्त्रण नहीं रहता जिसके कारण निम्नलिखित लक्षण देखने को मिलते हैं–

(1) मुँह से लार टपकती रहती है।

(2) चेहरे माँसपेशियों का लटक जाना।

(3) बोलने में कठिनाई

तृतीय प्रकार एटासिया में अंगों में सामंजस्य व सन्तुलन नहीं रहता है ।

प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात के प्रभाव–

(i) मानसिक रूप से पिछड़ापन, (ii) अधिगम . अक्षमता, (iii) दृष्टि दोष, (iv) श्रवण दोष, (v) श्रवण दोष, (vi) वाक दोष, (vii) भाषा दोष ।

इन सभी दोषों का कारण मस्तिष्क का प्रभावित होना है, मस्तिष्क का कौनसा भाग प्रभावित हुआ है यह बात निश्चित करती है कि कौनसा दोष बालक में होगा और मस्तिष्क का कितना भाग प्रभावित हुआ है। इससे यह भी निश्चित होता है कि दोष कितनी मात्रा में होता है |

प्रमस्तिष्कीय चोट या बीमारी के कारण एक या इससे अधिक अंगों का लकवा हो जाता है या पाँव फिरा जिससे पाँव टेढ़ा या उल्टा हो जाता है।

मेरुदण्ड का वक्र मेरुदण्ड के किन्हीं कारण से झुक जाने के कारण होता है।

विकृत नितम्ब जन्म से ही होता है। इस विकृति का कारण गर्भाशय में विकास में किसी प्रकार की रुकावट या बीमारी का होना है।

मेरुदण्डीय द्विशाखी में मेरुदण्ड केशेरुका से पूर्णतया ढकी नहीं रहती यह एक जन्म दोष है।

माँसपेशीय डायसुटोकी एक निरंतर उत्तरोत्तर विकृति होती है जिसमें मस्तिष्कीय माँसपेशियाँ क्षीण हो जाती हैं।

लूलापन या लंगड़ापन या हाथ का कटा होना प्रायः किसी दुर्घटना के शिकार हो जाने के कारण होता है।

वास्तव में लकवा,प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात, माँसपेशीय डायसट्रोफी में आधारभूत कारण मानसिक विकलांगता होती है जिसके कारण बालक शारीरिक रूप से विकलांग हो जाता है । यह मानसिक विकलांगता भी कहलाती है।

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