प्रतिभावान बालकों में आप क्या समझते हैं? इनकी प्रमुख विशेषताएं क्या हैं? आप इसकी शैक्षिक व्यवस्था कैसे करेंगे?

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सभी बालक एक जैसे नहीं होते हैं। उनमें कई प्रकार की विभिन्नताएं पाई जाती हैं। प्रतिभाशाली बालक किसी राष्ट्र की अमूल्य निधि होते हैं । अतः प्रतिभाशाली बालकों की पहचान करना अति आवश्यक है तभी कोई विद्यालय उनके लिए समुचित शिक्षा की व्यवस्था कर सकता है |

प्रतिभाशाली बालक सामान्य बालकों से श्रेष्ठ होता है। ये बालक ऊंची बुद्धि लब्धि वाले होते हैं । यह बुद्धि लब्धि 120 से ऊपर होती है । ये बालक एक साधारण बालक से अधिक योग्य होते हैं । जो कार्य इन्हें दिया जाता है, उसे शीघ्र ही पूरा कर लेते हैं । ये बालक साधारण बालक की कक्षा में अरुचि महसूस करते हैं तथा इन्हें कक्षा में कोई उत्तेजना नहीं मिलती।

परिभाषाएं – उच्च मानसिक योग्यता वाले बालकों को इंगित करने के लिये अनेक शब्दों जैसे प्रतिभाशाली बालक, श्रेष्ठ बालक, निपुण बालक, तीव्र सीखने वाले, होशियार छात्र तथा तीव्र छात्र आदि का प्रयोग किया जाता है । ये सभी शब्द लगभग एक दूसरे के पर्यायवाची के रूप में योग्यता, उपलब्धि, क्षमता आदि में सामान्य बालकों से सार्थक रूप से अधिक योग्यता वाले बालकों के लिए प्रयुक्त किये जाते हैं । सामान्य तौर पर प्रतिभाशाली बालकों को उच्च बुद्धि के आधार पर परिभाषित किया जाता है । प्रतिभा को सामान्य बौद्धिक योग्यता अथवा विभिन्न क्षेत्रों जैसे कला, संगीत, नेतृत्व आदि से विशिष्ट योग्यता के आधार पर परिभाषित किया जा सकता है। बौद्धिक दृष्टि से प्रतिभाशाली बालकों से तात्पर्य उच्च बुद्धिलब्धि वाले बालकों से है। बुद्धिलब्धि से तात्पर्य मानसिक आयु व शारीरिक आयु के अनुपात से है जिसे 100 से गुणा करके दशमलव बिन्दु हटा दिया जाता है । अबतः

बुद्धिलिब्धि = (मानसिक आयु)/(शारीरिक आयु)×100

विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने विशिष्ट बालकों की बुद्धिलब्धि के लिए भिन्न– भिन्न सीमायें बतायी हैं। जैसे टरमैन ने 140 से अधिक बुद्धिलब्धि वाले बालकों को प्रतिभाशाली कहा है | जबकि डनलप ने 132 से अधिक बुद्धिलब्धि वाले बालकों को प्रतिभाशाली बालक माना है। कुछ विद्वान विभिन्न क्षेत्रों में उनके द्वारा किये जाने वाले असाधारण प्रदर्शन को प्रतिभा की कसौटी मानते हैं। उनके अनुसार संगीत, कला, अभिनय लेखन, गायन आदि क्षेत्रों में असाधारण योग्यता वाले बालकों को प्रतिभाशाली बालक माना जा सकता है।

परिभाषाएं

टरमन व ओडन– “प्रतिभाशाली बालक शारीरिक गठन,सामाजिक समायोजन,व्यक्तित्व के लक्षणों, विद्यालय उपलब्धि,खेल की सूचनाओं और रुचियों की बहुरूपता में सामान्य बालकों से बहुत श्रेष्ठ होते हैं।”

स्किनर एवे हैरीमैन– “प्रतिभाशाली शब्द का प्रयोग उन एक प्रतिशत बालकों के लिए किया जाता है जो सबसे अधिक बुद्धिमान होते हैं।”

कॉलसनिक के अनुसार, “वह प्रत्येक बालक जो अपनी आयु– स्तर के बालकों में किसी योग्यता में अधिक हो और जो हमारे समाज के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण नई देन हो।”

पॉल विट्टी– “प्रखर बुद्धि बालक वह है जो किसी कार्य को करने के प्रयास में निरन्तर उच्च स्तर बनाये रखता है।”

प्रतिभावान बालकों की पहचान

प्रत्येक कक्षा में प्रतिभावान बालक होते हैं। अतः यह आवश्यक है कि ऐसे बालकों का पता लगाकर उनका अधिकतम विकास किया जाये । प्रतिभावान बालक राष्ट्र व समाज की अमूल्य निधि व सम्पत्ति होते हैं। इनका पता लगाने के लिए अध्यापक को विभिन्न प्रविधियों का प्रयोग करना पड़ता है।

प्रतिभावान बालकों की पहचान व चयन करने के लिए निम्नलिखित प्रविधियों का प्रयोग किया जा सकता है–

1. बुद्धि परीक्षण– प्रतिभावान बालकों की पहचान के लिए व्यक्तिगत बुद्धि– परीक्षण उत्तम साधन है । इन परीक्षाओं के द्वारा व्यक्तिगत रूप से बालक की बुद्धि का पता लगाया जाता है। इन बुद्धि परीक्षाओं को अध्यापक व्यक्तिगत तौर पर या समूहों में कर सकता है।

2. उपलब्धि परीक्षण– बुद्धि परीक्षा के अतिरिक्त परीक्षण द्वारा भी प्रतिभावान बालकों की पहचान की जा सकती है। उच्च स्तर की उपलब्धि बालकों के प्रतिभावान होने की आशा जाग्रत करती है । परन्तु उपलब्धि अंक जितने उच्च होंगे,बालक उतना ही प्रतिभाशाली होगा यह आवश्यक नहीं है।

3. शिक्षक अवलोकन– बालक शिक्षक के सम्पर्क में रहते हैं। वह उनका दैनिक अवलोकन करता है। वह छात्रों में दैनिक क्रियाकलापों परीक्षा परिणामों आदि के आधार पर प्रतिभावान बालकों का पता लगा लेते हैं।

4. सम्बन्धित व्यक्तियों से सूचनायें – प्रतिभावान बालकों के व्यक्तित्व के बारे में अन्य व्यक्तियों से भी सूचनायें एकत्रित कर सकता है। सम्बन्धित व्यक्तियों से अध्यापक छात्रों की रुचियों आदि का ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। वह उनकी रुचियों के अनुसार अपने शिक्षण कार्य में आवश्यक परिवर्तन एवं सुधार ला सकता है।

इसके अतिरिक्त विद्यालयी प्रगति रिकॉर्ड, साक्षात्कार कक्षा व्यवहार व कार्य प्रणाली द्वारा भी प्रतिभावान बालकों की पहचान की जा सकती है।

प्रतिभावान बालकों की विशेषतायें

प्रतिभावान बालकों की मुख्य विशेषतायें निम्नलिखित हैं–

1. प्रतिभावान बालकों की बुद्धिलब्धि 120 के ऊपर होती है।

2. प्रतिभावान बालकों का शारीरिक, मानसिक एवं भावात्मक विकास अन्य बालकों की तुलना में जल्दी व उच्च कोटि का होता है।

3. ये बच्चे कठिन कार्यों में रुचि लेते हैं।

4. ये बालक किसी घटना का बारीकी से निरीक्षण करते हैं।

5. इन बच्चों का शब्द कोष विस्तृत होता है।

6. बुद्धि की व्यक्तित्व परीक्षा में उच्च स्थान प्राप्त करते हैं।

7. किसी विषय का गहन अध्ययन करते हैं।

8. इन बालकों का सामान्य ज्ञान उच्च स्तर का होता है।

9. इन बालकों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है।

10. ये बालक अपने से बड़ों के साथ दोस्ती करने में झिझक महसूस नहीं करते हैं।

11. प्रतिभावान बालकों की रुचियों में पर्याप्त विभिन्नता होती है। ये बालक अनेक प्रकार के कार्यों में रुचि लेते हैं। अपनी रुचि के कार्यों में बड़ी लगन तथा धैर्य के साथ कार्य करते हैं।

12. प्रतिभाशाली बालकों में सहयोग, सहिष्णुता, ईमानदारी, दयालुता तथा परोपकार जैसे मानवीय गुण अपेक्षाकृत अधिक होते हैं।

13. ये बच्चे बड़े होकर पारिवारिक जीवन में अपेक्षाकृत अधिक सुखी होते हैं।

14. प्रतिभाशाली बालकों का मानसिक स्वास्थ्य उत्तम होता है।

15. ये बालक खेलकूद में अधिक भाग नहीं लेते हैं। यदि वे भाग लेते हैं तो सफलता प्राप्त करते हैं। खेलकूद की अपेक्षा अपने से बड़ों के साथ मानसिक चिन्तायुक्त वाद– विवादों में भाग लेना अधिक पसंद करते हैं।

16. ये बच्चे बड़े होकर अपने व्यवसाय में अपेक्षाकृत अधिक सफलता प्राप्त करते है |

17. ये बच्चे समय को बर्बाद करना पसंद नहीं करते।

18. इन बच्चों में तर्क– शक्ति पर्याप्त होती है।

19. ये बच्चे चिन्तन प्रधान होते हैं।

20. अधिकांशतः विनोदप्रिय होते हैं।

प्रतिभावान बालकों की समस्यायें

प्रतिभावान बालक की अपनी अलग समस्यायें होती हैं। उनकी तरफ भी ध्यान देना आवश्यक है–

1. सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि प्रतिभावान बालक को पहचान लिया जाये। कभी– कभी ऐसे बालकों को शिक्षक नहीं पहचानता है और उन्हें पिछड़े बालक मान लेता है जिससे उनका उचित विकास नहीं हो पाता।

2. साधारण कक्षाओं में पढ़ने पर प्रतिभावान बालक को अपनी क्षमता का पूर्ण विकास करने का अवसर नहीं मिल पाता है। इस कारण उसकी प्रतिभा कुण्ठित हो जाती है।

3. ऐसे बालक की मानसिक क्षमता अधिक होने के कारण वह वर्ष भर के कार्य को कम समय में ही समाप्त कर लेता है। परन्तु उसे साधारण बच्चों की गति से ही चलना पड़ता है, इसलिए उसकी सीखने की गति उसकी योग्यताओं के अनुपात में नहीं हो पाती। इस कारण उसका समायोजन उचित प्रकार से नहीं हो पाता है।

4. सामान्य कक्षा में पढ़ने पर प्रतिभावान बालकों को अपनी विशेष योग्यता का शीघ्र पता चल जाता है। इस कारण उसमें अहम् भाव विकसित हो जाता है तथा अन्य बालकों को हेय दृष्टि से देखता है। इस कारण उनका सामाजिक एवं संवेगात्मक समायोजन समाप्त होने लगता है।

5. सामान्य कक्षा में प्रतिभाशाली बालकों के रटने से सामान्य बालक उनसे सदैव पीछे रहते हैं तथा उन्हें अपनी सम्प्राप्ति पर दुख एवं निराशा होती है। इस कारण उनका मानसिक समायोजन नहीं हो पाता है।

6. कभी– कभी ऐसे बालक अध्यापक का निरादर, झगड़ा तथा दोषारोपण करते रहते हैं। इस कारण इनकी तरफ विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि उनकी संख्या कम होती है। इसलिए अध्यापक इनकी तरफ आसानी से ध्यान दे सकता है। ये बालक समाज के विकास में उचित योगदान कर सकते हैं।

7. प्रतिभावान बालकों का घर में भी उचित समायोजन नहीं हो पाता क्योंकि वे यह चाहते हैं कि उनको साधारण बच्चों से अधिक प्रतिष्ठा मिले। इस कारण माता– पिता तथा इन बच्चों में लड़ाई– झगड़े होते रहते हैं।

प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा

प्रतिभाशाली बालकों के लिए कौन– कौन से विशेष शैक्षिक प्रयास किये जाने चाहिए, यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। प्रायः प्रतिभाशाली बालकों की शैक्षिक उपलब्धि अच्छी होती है तथा अध्ययन की दृष्टि से उनकी समस्यायें नहीं होती हैं। यही कारण है कि प्रायः कहा जाता है कि ऐसे बालकों की शिक्षा की चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। वे स्वयं अपनी पढ़ाई ठीक ढंग से कर लेंगे। दरअसल प्रतिभाशाली बालकों में शारीरिक दृष्टि से विकलांग बालकों जैसे गूंगे, बहरे, अंधे आदि की तरह से अथवा मानसिक दृष्टि से पिछड़े बालकों की तरह से अपनी ओर विशिष्ट ध्यान आकर्षित करने की संवेगात्मक अपील नहीं होती यही कारण है कि पहले प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा के लिए विशिष्ट शैक्षिक कार्यक्रमों के विचार को हतोत्साहित किया जाता रहा था, परन्तु विगत कुछ वर्षों में विज्ञान तथा तकनीकी के क्षेत्र में हुए आविष्कारों तथा उनमें प्रतिभाशाली व्यक्तियों के द्वारा किए गए योगदान को ध्यान में रखकर अब प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा पर ध्यान देने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। प्रतिभाशाली बालकों के लिए उपयोगी तथा प्रभावशाली शैक्षिक व्यवस्था करने के लिए अनेक विधियों का प्रयोग किया जा सकता है । प्रतिभाशाली बालकों के वांछित सर्वांगीण विकास को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक विशिष्ट कक्षाओं आदि का प्रयोग किया जा सकता है। विद्यालयों में विद्यालयों बालकों की शिक्षा को निम्न ढंग से प्रोत्साहित किया जा सकता है।

1. विशिष्ट कक्षायें– प्रतिभाशाली बालकों के लिए “विशिष्ट कक्षा विशिष्ट पाठ्यक्रम अभिगमन” एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विधा है। इसके अन्तर्गत प्रतिभाशाली बालकों को अधिक व्यापक तथा विस्तृत पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है जिससे उनकी विशिष्ट योग्यताओं का अधिक से अधिक विकास हो सके।

2. तीव्र गति– तीव्र गति से तात्पर्य प्रतिभाशाली बालकों को प्रारम्भ से ही तीव्र गति से शैक्षिक प्रक्रिया से गुजारना है। विद्यालय में जल्दी प्रवेश दिलाकर तथा तीव्र गति से विद्यालयी शिक्षा समाप्त करके बालकों का प्रतिभा का विकास किया जा सकता है । वर्ष में एक से अधिक बार कक्षा उन्नति के द्वारा ऐसे बालकों को शैक्षिक गति को तीव्रता प्रदान की जा सकती है।

3. संपुष्ट कार्यक्रम– संपुष्ट कार्यक्रम से तात्पर्य प्रतिभाशाली बालकों को अधिक पुष्ट. व्यापक तथा विस्तृत अनुभव कराने से है । प्रतिभाशाली बालकों को पुस्तकालय भ्रमण की विशेष सुविधायें देकर उनके ज्ञानार्जन में सहायता की जा सकती है।

4. व्यक्तिगत ध्यान– अध्यापकों तथा अभिभावकों को प्रतिभाशाली बालकों के प्रति व्यक्तिगत रूप से ध्यान देना चाहिए। इन बालकों को उचित परामर्श तथा निर्देश देकर उनकी विशिष्ट योग्यताओं का अधिकाधिक विकास करने का प्रयास किया जाना चाहिए।

5. श्रेष्ठ अध्यापक– प्रतिभाशाली बालकों को शिक्षा प्रदान करने के लिए श्रेष्ठ अध्यापकों की आवश्यकता होती है। सुयोग्य अध्यापकों के सम्पर्क में आने पर ही वे अपनी क्षमताओं व योग्यताओं का विकास कर सकते हैं। प्रतिभाशाली बालकों के अध्यापकों को ऐसे बालकों के मनोविज्ञान का ज्ञान भी होना चाहिए।

6. प्रोत्साहन– प्रतिभाशाली बालकों के अध्यापकों को अपनी योग्यता का अधिकतम विकास करने के लिए प्रोत्साहित होती हे । परिवार,विद्यालय तथा समाज को प्रतिभाशाली बालकों के विकास में प्रारम्भ से ही रुचि लेनी चाहिए तथा ऐसे अवसर प्रदान करने चाहिए जिससे ऐसे बालकों का सर्वांगीण विकास हो सके।

7. विशेष विद्यालय एवं पाठ्यक्रम– प्रतिभावान बालकों की शिक्षा के लिए विशेष विद्यालयों की व्यवस्था की जानी चाहिए। इनके लिए सामान्य पाठ्यक्रम के अतिरिक्त कुछ विशेष पाठ्यक्रम की व्यवस्था की जानी चाहिए। परन्तु इस बात का ध्यान रखा जाये कि पाठ्यक्रम इतना विस्तृत न हो जाये कि वह उन पर बोझ स्वरूप हो जाये।

8. अच्छे पुस्तकालय और प्रयोगशाला– प्रतिभावान बालक के लिए अच्छे पुस्तकालय व प्रयोगशालाओं का होना अति आवश्यक है जिससे वह ज्ञानार्जन कर सके तथा अपना और अधिक विकास कर सके।

9. विशेष शिक्षण विधि– प्रतिभाशाली बालकों को पढ़ाने के लिए विशेष शिक्षण विधि की आवश्यकता होती है। ऐसे छात्रों की प्रयोगात्मक कार्य, रचनात्मक कार्य एवं शोध कार्य आदि में रुचि होती है अतः इनकी शिक्षण विधियों में प्रोजेक्ट विधि, अभिनय विधि, स्वतन्त्र अध्ययन. शोध विधि, पर्यटन विधि एवं नवीन उपकारणों का प्रयोग करना चाहिए।

10. पाठ्यक्रम सहगामी क्रियायें– प्रतिभावान बालकों का पूर्ण विकास करने के लिए उन्हें खेल, खेल प्रतियोगिताओं, नाटक, संगीत, नृत्य, भाषण एवं अन्य सामूहिक क्रियाओं में लगाना आदि।

11. प्रतिभाशाली अध्यापक– प्रतिभाशाली बालकों को पढ़ाने के लिए प्रतिभाशाली अध्यापकों का चयन करना भी आवश्यक है । इन अध्यापकों में उत्कृष्ट वृद्धि, समृद्ध व्यक्तित्व, अभिप्रेरणा प्रदान करने की क्षमता, सहानुभूति, आलोचना सहन करने की शक्ति ज्ञान के प्रति प्रेम, सामाजिक उत्तरदायित्व एवं सामान्य ज्ञान होना अति आवश्यक है।

12. नेतृत्व का प्रशिक्षण– ऐसे बच्चों को नेतृत्व का प्रशिक्षण देना चाहिए क्योंकि हम ऐसे बालकों से नेतृत्व की आशा करते हैं, इसलिए उनको विशिष्ट परिस्थितियों में नेतत्व का अवसर और प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

प्रतिभाशाली बच्चों की विशिष्ट आवश्यकता को ध्यान में रखकर भारत सरकार ने गतिनिर्धारक स्कूल स्थापित किए हैं। नई शिक्षा नीति में प्रावधान किया गया है कि देश के प्रत्येक जिले में एक नवोदय विद्यालय खोला जाएगा जिसमें योग्यता के आधार पर छात्रों का चयन करके उन्हें निःशुल्क आवासीय शिक्षा जो कि उच्च गुणवत्ता वाली होगी,प्रदान की जायेगी। नवोदय विद्यालयों की विस्तृत चर्चा माध्यमिक शिक्षा नामक अध्याय में की जा चुकी है । इसलिए उसकी पुनरावृत्ति की आवश्यकता नहीं है । यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित मेधावी छात्रों की शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न स्तरों पर अनेक प्रकार की योग्यता छात्रवृत्तियाँ भी प्रदान की जाती हैं । निःसंदेह देश की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करने तथा उसे आगे बढ़ाने के लिए मेधावी छात्रों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए जिससे हमें उच्च कोटि के वैज्ञानिक चिंतक तथा आविष्कर्ता मिल सकें। इसके लिए मेधावी. बालकों की शिक्षा पर प्रारम्भ से ही ध्यान देना समाज तथा राष्ट्र का पुनीत कर्त्तव्य है।

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