दृष्टि बाधित बालक कौन है? इनकी पहचान कैसे की जा सकती है?

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विश्व के बारे में मनुष्य अपनी इन्द्रियों द्वारा ही जानता है अधिकतर सूचनाएं दृष्टि द्वारा मस्तिष्क में पहुँचती हैं दृष्टि मानव की अमूल्य विधि है इसके दोषपूर्ण होने पर या न होने पर व्यक्ति स्वयं को अपूर्ण समझता है। अतः दृष्टि की छोटी सी अक्षमता भी अत्यन्त मायने रखती है । दृष्टि संबंधी दोष बालक के मानसिक, शारीरिक,संवेगात्मक, शैक्षिक तथा व्यावसायिक क्षेत्रों पर प्रभाव डालता है अतः दृष्टि से सम्बन्धित सभी दोषों को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिये साथ ही साथ नेत्र सम्बन्धित दोषों से युक्त बालकों के विकास हेतु प्रयत्न करना चाहिये।

दृष्टि अक्षम बालकों के प्रकार

दृष्टि अक्षम बालक सामान्य से कम, निम्ब या शून्य दृष्टि वाले होते हैं और इनको यद्यपि पूर्णरूप से दृष्टि अक्षम बालकों में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता, तथापि मोटे रूप से इन्हें तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है। ये इस प्रकार हैं–

ऐसे बालक, जो औसत दृष्टि वाले बालकों से भिन्न हैं, परन्तु जिनका मेडिकल रूप से इलाज हो सकता है। ये सामान्य बालकों के साथ पढ़ सकते हैं ।

ऐसे बालक जिनमें कि अत्यन्त गम्भीर दृष्टि दोष है । इनका उपचार मेडिकल सहायता तथा चश्मे से करने पर भी वे सामान्य बालकों के साथ पढ़कर यथोचित लाभ नहीं उठा सकते । फिर भी उनके पास इतनी दृष्टि है कि वे उन साधनों से उचित लाभ नहीं उठा सकते जो कि अन्य बालकों को दिये जाते हैं।

ऐसे बालक, जो कि मेडिकल इलाज तथा चश्मे की सहायता मिलने पर भी शैक्षिक तथा व्यावसायिक रूप से अंधे हैं। चूँकि पहले भाग वाले बालक औसत बालकों के साथ पढ़ सकते हैं, दूसरे तथा तीसरे भाग के बालकों के लिए विशेष शिक्षा की आवश्यकता है।

बहुत कम देखने वाले बालक वे हैं जो कि यद्यपि दृष्टि से गम्भीरतापूर्वक अक्षम हैं तथापि वे पढ़ सकते हैं। इस समूह के बालकों को चार भागों में विभक्त किया जा सकता है

(i) ऐसे बालक जिनकी दृष्टि एक्यूटी 20/70 तथा 20/200 के बीच है।

(ii) ऐसे बालक, जो गम्भीर तथा बढ़ने वाली दृष्टि सम्बन्धी कठिनाइयों से पीड़ित

(iii) ऐसे बालक जो नेत्र सम्बन्धी रोगों से पीड़ित हैं या ऐसे रोगों से, जो दृष्टि को प्रभावित करते हैं।

(iviv) ऐसे बालक, जो कि उपरोक्त बालकों में सम्मिलित नहीं है और जिनके पास औसत मस्तिष्क है तथा जो डॉक्टरों शिक्षाशास्त्रियों के अनुसार कम देखने वाले बालकों को दिये गये साधनों तथा सामान द्वारा अधिक लाभान्वित हो सकते है |

बालकों की पहचान

(अ) इसकी सबसे अच्छी विधि है कि सभी बालकों का अच्छा मेडिकल परीक्षण लिया जाये। साथ ही आंखों का भी परीक्षण हो। ये परीक्षण स्कूल में प्रवेश से पहले लेना चाहिए। प्रवेश के उपरान्त भी लेना चाहिए।

(ब) जहाँ उपर्युक्त विधि नहीं अपनायी जा सकती, वहाँ पर दृष्टि अनुवीक्षण भी ली जा सकती है। यह कार्य डॉक्टर, नर्स, अध्यापक कर सकते हैं। यह स्कूल स्वास्थ्य सेवा विभाग का कर्तव्य है कि अनुवीक्षण की व्यवस्था कराये। इसे देखना चाहिए कि अनुवीक्षण ठीक दशाओं में हो रहा है या नहीं। चार्ट अवश्य बनाना चाहिए। बच्चे की प्रतिक्रिया भी देखनी चाहिए।

माता– पिता को भी चाहिए कि अपने बच्चे का चेक– अप करा लें। यदि वे ऐसा नहीं करते तो स्कूल और बच्चों का व्यापक स्वास्थ्य परीक्षण करायें।

दृष्टि अक्षमता के कारण

नेत्र रोग विशेषज्ञों के विभिन्न कारणों से उत्पन्न दृष्टि अक्षमता उपचारोपरान्त दृष्टि अक्षमता के सामान्य कारण लापरवाही, उचित उपचार न करवाना एवं बीमारी सुनिश्चित सावधानियाँ न कर सकना आदि है। धूल, धूप व धुआं भी दृष्टि अक्षमता के सामान्य कारणों में से एक है जो आंशिक अन्धता. रतौंधी एवं रंग अन्धता को जन्म देते हैं. दृष्टि अक्षमता के प्रमुख कारण निम्न हैं–

(1) संक्रामक रोग–प्रायः 60% से 70% तक बालक संक्रामक रोगों में असावधानी के कारण दृष्टि अक्षमता अवस्था को प्राप्त होते हैं। रक्त के प्रकार भी अन्धता का कारण बन जाते हैं।

(2) दुर्घटना एवं चोट– सुरक्षा एवं निर्देशन के अभाव में,मारपीट या दुर्घटना के कारण नेत्र में लगी घातक चोट भी दृष्टि अक्षमता का कारण बन जाती है।

(3) वंशागत प्रभाव– कभी– कभी बालक में होने वाली दृष्टि से सम्बन्धित समस्यायें आनुवांशिकता का परिणाम होती है।

(4) साधारण रोग– विभिन्न नेत्र रोग अन्य शारीरिक बीमारियों का भी परिणाम हो सकते हैं।

(5) Effect of Poisons : कभी– कभी विष के प्रभाव से भी नेत्रों से संबंधित समस्यायें उत्पन्न हो जाती हैं।

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