राजस्थानी साहित्य एवं संस्कृति

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 साहित्य में प्रथम-

राजस्थानी की प्राचीनतम रचना   भरतेश्वर बाहुबलिघोर(लेखक वज्रसेन सूरि 1168 ई. के लगभग)।भाषा मारू गुर्जर विवरण – भरत औरबाहुबलि के बीच हुए युद्ध का वर्णन है।
संवतोल्लेख वाली प्रथमराजस्थानी रचना  भरत बाहुबलि रास (1184 ई.) मेंशालिभद्र सूरि द्वारा रचित ग्रंथ भारूगुर्जर भाषा में रचित रास परम्परामें सर्वप्रथम और सर्वाधिकपाठ वाला खण्ड काव्य।
वचनिका शैली कीप्रथम सशक्त रचनाअचलदास खींची री वचनिका(शिवदास गाडण)।
राजस्थानी भाषा कापहला उपन्यासकनक सुन्दर (1903 मेंशिवचन्द भरतिया द्वारा लिखित।श्री नारायण अग्रवाल का ‘चाचा’राजस्थानी का दूसरा उपन्यास है।)
राजस्थानी का प्रथम नाटक केसर विलास (1900 शिवचन्द्र भरतिया)
राजस्थानी में प्रथम कहानी विश्रांत प्रवासी (1904 शिवचन्द्र भरतियाराजस्थानी उपन्यास नाटक और कहानीके प्रथम लेखक माने जाते हैं।)
स्वातंत्र्योत्तर काल का प्रथमराजस्थानी उपन्यासआभैपटकी (1956 श्रीलाल नथमल जोशी)
आधुनिक राजस्थानी कीप्रथम काव्यकृति  बादली (चन्द्रसिंह बिरकाली)।यह स्वतंत्र प्रकृति चित्रण कीप्रथम महत्वपूर्ण कृति है।

राजस्थानी साहित्य की प्रमुख रचनाएँ

ग्रन्थ      एवं               लेखक              वर्णन

1. पृथ्वीराज रासौ (कवि चंदबरदाई) – इसमें अजमेर के अन्तिम चौहान सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय के जीवन चरित्र एवं युद्धों का वर्णन है। यह पिंगल में रचित वीर रस का महाकाव्य है। माना जाता है कि चन्दबरदाई पृथ्वीराज चौहान का दरबारी कवि एवं मित्र था।

2. खुमाण रासौ (दलपत विजय) –  पिंगल भाषा के इस ग्रन्थ में मेवाड़ के बप्पा रावल से लेकर महाराजा राजसिंह तक के मेवाड़ शासकों का वर्णन है।

3. विरुद छतहरी, किरतार बावनौ (कवि दुरसा आढ़ा) – विरुद छतहरी महाराणा प्रताप की शौर्य गाथा है और किरतार बावनौ में उस समय की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति को बतलाया गया है। दुरसा आढ़ा अकबर के दरबारी कवि थे। इनकी पीतल की बनी मूर्ति अचलगढ़ के अचलेश्वर मंदिर में विद्यमान है।

4. बीकानेर रां राठौड़ा री ख्यात (दयालदास सिंढायच) – दो खंडो के इस ग्रन्थ में जोधपुर एवं बीकानेर के राठौड़ों के प्रारंभ से लेकर बीकानेर के महाराजा सरदारसिंह के राज्याभिषेक तक की घटनाओं का वर्णन है।

5. सगत रासौ (गिरधर आसिया) – इस डिंगल ग्रन्थ में महाराणा प्रताप के छोटे भाई शक्तिसिंह का वर्णन है। यह 943 छंदों का प्रबंध काव्य है। कुछ पुस्तकों में इसका नाम सगतसिंह रासौ भी मिलता है।

6. हम्मीर रासौ (जोधराज) – इस काव्य ग्रन्थ में रणथम्भौर शासक राणा हम्मीर चौहान की वंशावली व अलाउद्दीन खिलजी से युद्ध एवं उनकी वीरता आदि का विस्तृत वर्णन है।

7. पृथ्वीराज विजय (जयानक) – संस्कृत भाषा के इस काव्य ग्रन्थ में पृथ्वीराज चौहान के वंशक्रम एवं उनकी उपलब्धियों का वर्णन किया गया है। इसमें अजमेर के विकास एवं परिवेश की प्रामाणिक जानकारी है।

8. अजीतोदय (जगजीवन भट्ट) – इसमें मारवाड़ की ऐतिहासिक घटनाओं, विशेषतः महाराजा जसवंतसिंह एवं अजीतसिंह के मुगल संबंधों का विस्तृत वर्णन है। यह संस्कृत भाषा में है।

9. ढोला मारु रा दूहा (कवि कल्लोल)  डिंगल भाषा के शृंगार रस से परिपूर्ण इस ग्रन्थ में ढोला एवं मारवणी के प्रेमाख्यान का वर्णन है।

10. गजगुणरूपक (केशवदास गाडण) – इसमें जोधपुर के महाराजा गजराजसिंह के राज्य वैभव, तीर्थयात्रा एवं युद्धों का वर्णन है। गाडण जोधपुर महाराजा गजराजसिंह के प्रिय कवि थे।

11. सूरज प्रकास (कविया करणीदान) –  इसमें जोधपुर के राठौड़ वंश के प्रारंभ से लेकर महाराजा अभयसिंह के समय तक की घटनाओं का वर्णन है। साथ ही अभयसिंह एवं गुजरात के सूबेदार सरबुलंद खाँ के मध्य युद्ध एवं अभयसिंह की विजय का वर्णन है।

12. एकलिंग महात्म्य (कान्हा व्यास) – यह गुहिल शासकों की वंशावली एवं मेवाड़ के राजनैतिक व सामाजिक संगठन की जानकारी प्रदान करता है।

13. मुहणोत नैणसी री ख्यात, मारवाड़ रा परगना री  विगत (मुहणौत नैणसी) – जोधपुर महाराजा जसवंतसिंह-प्रथम की दीवान नैणसी की इस कृति में राजस्थान के विभिन्न राज्यों के इतिहास के साथ-साथ समीपवर्ती रियासतों (गुजरात, काठियावाड़, बघेलखंड आदि) के इतिहास पर भी अच्छा प्रकाश डाला गया है। नैणसी को राजपूताने का ‘अबुल फजल’ भी कहा गया है। मारवाड़ रा परगना री विगत को राजस्थान का गजेटियर कह सकते हैं।

जसवंतसिंह का दरबारी कवि व इतिहासकार मुहणौत नैणसी (ओसवाल जैन जाति) था।

मुहणौत नैणसी ने दो ऐतिहासिक ग्रन्थ, “नैणसी री ख्यात (राजस्थान की सबसे प्राचीन ख्यात) व ‘मारवाड़ रा परगना री विगत’ लिखे।

नोट – ख्यातें 16वीं शताब्दी में लिखनी शुरू की गयी ख्यातें भाट व चारण समाज के द्वारा लिखी जाती है लेकिन नैणसी री ख्यात इसका अपवाद है।

– “मारवाड़ रा परगना री विगत” में मुहणौत नैणसी ने इतिहास का क्रमबद्ध लेखन किया। अतः “मारवाड़ रा परगना री विगत” को राजस्थान का गजेटियर कहते हैं।

– नैणसी री ख्यात व मारवाड़ रा परगना री विगत राजस्थानी भाषा में लिखे गये हैं।

– राजस्थान में मारवाड़ के इतिहास को क्रमबद्ध लिखने का सर्वप्रथम श्रेय मुहणौत नैणसी को है।

14. पद्मावत (मलिक मोहम्मद जायसी) – 1543 ई. के लगभग रचित इस महाकाव्य मेंअलाउद्दीन खिलजी एवं मेवाड़ के शासक रावल रतनसिंह के मध्य हुए युद्ध (1301 ई) का वर्णन है, जिसका कारण अलाउद्दीन खिलजी द्वारा रतनसिंह की रानी पद्मिनी को प्राप्त करने की इच्छा थी।

15. विजयपाल रासौ (नल्ल सिंह) – पिंगल भाषा के इस वीर-रसात्मक ग्रन्थ में विजयगढ़ (करौली) के यदुवंशी राजा विजयपाल की दिग्विजय एवं पंग लड़ाई का वर्णन है। नल्लसिंह सिरोहिया शाखा का भाट था और वह विजयगढ़ के यदुवंशी नरेश विजयपाल का आश्रित कवि था।

16. नागर समुच्चय (भक्त नागरीदास) – यह ग्रन्थ किशनगढ़ के राजा सावंतसिंह (नागरीदास) की विभिन्न रचनाओं का संग्रह है। सावंतसिंह ने राधाकृष्ण की प्रेमलीला विषयक शृंगार रसात्मक रचनाएँ की थी।

17. हम्मीर महाकाव्य (नयनचन्द्र सूरि) –  संस्कृत भाषा के इस ग्रन्थ में जैन मुनि नयनचन्द्र सूरि ने रणथम्भौर के चौहान शासकों का वर्णन किया है।

18. वेलि किसन रुक्मणि री (पृथ्वीराज राठौड़) – सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक कवि पृथ्वीराज बीकानेर शासक रायसिंह के छोटे भाई थे तथा ‘पीथल’ नाम से साहित्य रचना करते थे। इन्होंने इस ग्रन्थ में श्री कृष्ण एवं रुक्मणि के विवाह की कथा का वर्णन किया है। दुरसा आढ़ा ने इस ग्रन्थ को पाँचवा वेद व 19वाँ पुराण कहा है। बादशाह अकबर ने इन्हें गागरोन गढ़ जागीर में दिया था।

19. कान्हड़दे प्रबन्ध (पद्मनाभ)  पद्मनाभ जालौर शासक अखैराज के दरबारी कवि थे। इस ग्रन्थ में इन्होंने जालौर के वीर शासक कान्हड़दे एवं अलाउद्दीन खिलजी के मध्य हुए युद्ध एवं कान्हड़दे के पुत्र वीरमदे व अलाउद्दीन की पुत्री फिरोजा के प्रेम प्रसंग का वर्णन किया है।

20. राजरूपक (वीरभाण) – इस डिंगल ग्रन्थ में जोधपुर महाराजा अभयसिंह एवं गुजरात के सूबेदार सरबुलंद खाँ के मध्य युद्ध (1787 ई.) का वर्णन है।

21. बिहारी सतसई (महाकवि बिहारी) – मध्यप्रदेश में जन्मे कविवर बिहारी जयपुर नरेश मिर्जा राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे। ब्रजभाषा में रचित इनका यह प्रसिद्ध ग्रन्थ शृंगार रस की उत्कृष्ट रचना है।

22. बाँकीदास री ख्यात (बाँकीदास) (1838-90 ई.) – जोधपुर के राजा मानसिंह के काव्य गुरु बाँकीदास द्वारा रचित यह ख्यात राजस्थान का इतिहास जानने का स्रोत है। इनके ग्रन्थों का संग्रह ‘बाँकीदास ग्रन्थावली’ के नाम से प्रकाशित है। इनके अन्य ग्रन्थ मानजसोमण्डन व दातार बावनी भी हैं।

23. कुवलयमाला (उद्योतन सूरी) –  इस प्राकृत ग्रन्थ की रचना उद्योतन सूरी ने जालौर में रहकर 778 ई. के आसपास की थी जो तत्कालीन राजस्थान के सांस्कृतिक जीवन की अच्छी झाँकी प्रस्तुत करता है।

24. ब्रजनिधि ग्रन्थावली – यह जयपुर के महाराजा प्रतापसिंह द्वारा रचित काव्य ग्रन्थों का संकलन है।

25. हम्मीर हठ, सुर्जन चरित – बूँदी शासक राव सुर्जन के आश्रित कवि चन्द्रशेखर द्वारा रचित।

26. प्राचीन लिपिमाला, राजपुताने का इतिहास (पं. गौरीशंकर ओझा) –  पं.गौरीशंकर हीराचन्द ओझा भारतीय इतिहास साहित्य के पुरोधा थे, जिन्होंने हिन्दी में सर्वप्रथम देशी राज्यों का इतिहास भी लिखा है। इनका जन्म सिरोही रियासत में 1863 ई. में हुआ था।

27. वचनिका राठौड़ रतन  सिंह महेसदासोत री (जग्गा खिड़िया) – इस डिंगल ग्रंथ में जोधपुर महाराजा जसवंतसिंह के नेतृत्व में मुगल सेना एवं मुगल सम्राट शाहजहाँ के विद्रोही पुत्र औरंगजेब व मुराद की संयुक्त सेना के बीच धरमत (उज्जैन, मध्यप्रदेश) के युद्ध में राठौड़ रतनसिंह के वीरतापूर्ण युद्ध एवं बलिदान का वर्णन है।

28. बीसलदेव रासौ (नरपति नाल्ह) –   इसमें अजमेर के चौहान शासक बीसलदेव (विग्रहराज चतुर्थ) एवं उनकी रानी राजमती की प्रेमगाथा का वर्णन है।

29. रणमल छंद (श्रीधर व्यास) –  इसमें पाटन के सूबेदार जफर खाँ एवं ईडर के राठौड़ राजा रणमल के युद्ध (संवत् 1454) का वर्णन है। दुर्गा सप्तशती इनकी अन्य रचना है। श्रीधर व्यास राजा रणमल का समकालीन था।

30. अचलदास खींची री वचनिका (शिवदास गाडण) – सन् 1430-35 के मध्य रचित इस डिंगल ग्रन्थ में मांडू के सुल्तान हौशंगशाह एवं गागरौन के शासक अचलदास खींची के मध्य हुए युद्ध (1423 ई.) का वर्णन है एवं खींची शासकों की संक्षिप्त जानकारी दी गई है।

31. राव जैतसी रो छंद (बीठू सूजाजी) – डिंगल भाषा के इस ग्रन्थ में बाबर के पुत्र कामरान एवं बीकानेर नरेश राज जैतसी के मध्य हुए युद्ध का वर्णन है।

32. रुक्मणी हरण, नागदमण (सायांजी झूला) – ईडर नरेश राव कल्याणमल के आश्रित कवि सायांजी द्वारा इस डिंगल ग्रन्थों की रचना की गई।

33. वंश भास्कर (सूर्यमल्ल मिश्रण) (1815-1868 ई.) – बूँदी के महाराव रामसिंह के दरबारी कवि सूर्यमल्ल मिश्रण ने इस पिंगल काव्य ग्रन्थ में बूँदी राज्य का विस्तृत, ऐतिहासिक एवं राजस्थान के अन्य राज्यों का संक्षिप्त रूप में वर्णन किया है। वंश भास्कर को पूर्ण करने का कार्य इनके दत्तक पुत्र मुरारीदान ने किया था। इनके अन्य ग्रन्थ हैं- बलवंत विलास, वीर-सतसई व छंद मयूख, उम्मेदसिंह चरित्र, बुद्धसिंह चरित्र।

34. वीर विनोद (कविराज श्यामलदास दधिवाड़िया) – मेवाड़ (वर्तमान भीलवाड़ा) में 1836 ई. में जन्मे एवं महाराणा सज्जनसिंह के आश्रित कविराज श्यामदास ने अपने इस विशाल ऐतिहासिक ग्रन्थ की रचना महाराणा के आदेश पर प्रारंभ की। चार खंडों में रचित इस ग्रन्थ पर कविराज को ब्रिटिश सरकार द्वारा ‘केसर-ए-हिन्द’ की उपाधि प्रदान की गई। इस ग्रन्थ में मेवाड़ के विस्तृत इतिहास वृत्त सहित अन्य संबंधित रियासतों का इतिहास वर्णन है। मेवाड़ महाराणा सज्जनसिंह ने श्यामदास को ‘कविराज’ एवं सन् 1888 में ‘महामहोपाध्याय’ की उपाधि से विभूषित किया था।

35. चेतावणी रा चूँगट्या (केसरीसिंह बारहठ) –  इन दोहों के माध्यम से कवि केसरसिंह बारहठ

  ने मेवाड़ के स्वाभिमानी महाराजा फतेहसिंह को 1903 ई. के दिल्ली दरबार में जाने से रोका था। ये मेवाड़ के राज्य कवि थे।

राजस्थान के आधुनिक साहित्यकार एवं उनकी कृतियाँ –

यादवेन्द्र शर्मा ‘चन्द्र’         उपन्यास- हूँ गोरी किण पीवरी,खम्मा अन्नदाता, मिट्टी का कलंक,जमानी ड्योढ़ी हजार घोड़ों का सवार।तासरो घर (नाटक), जमारो (कहानी)।
रांगेय राघव       उपन्यास- घरौंदे, मुर्द़ों का टीला,कब तक पुकारुँ, आज की आवाज।
मणि मधुकर      उपन्यास- पगफैरों, सुधि सपनों के तीर।रसगंधर्व (नाटक)। खेला पालेमपुर (नाटक)
विजयदान देथा (बिज्जी)उपन्यास- तीड़ो राव, मां रौ बादलौ।कहानियाँ अलेखूँ, हिटलर, बाताँ री फुलवारी।
शिवचन्द्र भरतिया  कनक सुंदर (राजस्थानी का प्रथम उपन्यास),केसरविलास (राजस्थानी का प्रथम नाटक)।
स्व.नारायणसिंह भाटीकविता संग्रह साँझ, दुर्गादास, परमवीर,ओलूँ, मीरा। बरसां रा डिगोड़ा डूँगर लांघिया।
श्रीलाल नथमल जोशीउपन्यास- आभैपटकी, एक बीनणी दो बींद।
स्व. हमीदुल्ला नाटकदरिन्दे, ख्याल भारमली। इनकानवम्बर, 2001 में निधन हो गया।
भरत व्यासरंगीलो मारवाड़।
जबरनाथ पुरोहित रेंगती हैं चींटियाँ (काव्य कृतियाँ)।
लक्ष्मी कुमारी चूँडावतकहानियाँ मँझली रात, मूमल,बाघो भारमली।
चन्द्रप्रकाश देवल पागी, बोलो माधवी।
सत्यप्रकाश जोशी बोल भारमली (कविता)।
कन्हैयालाल सेठिया         बोल भारमली (कविता)। पातळ एवं पीथळ,धरती धोरां री, लीलटांस ये चूरू निवासी थे।

राजस्थानी साहित्य

रचनाएँरचनाकार
1.सेनाणी:-मेघराज मुकुल
2.राधा (युद्ध विरोधी काव्य):-सत्यप्रकाश जोशी (1960 में प्रकाशित)
3.बोल भारमली:-सत्यप्रकाश जोशी
4.मींझर:-कन्हैयालाल सेठिया
5.बोलै सरणाटौ, हूणियै रा सोरठा, बातां में ‘भूगोल’:-हरीश भदाणी
6.अमोलक वातां, कै रे चकवा बात, मांझल रात, लव स्टोरीज ऑफ राजस्थान:-लक्ष्मी कुमारी चुंडावत
7.मैकती काया : मुलकती धरती,आँधी अर आस्था, मेवै रा रुख,अचूक इलाज:-अन्नाराम सुदामा
8.परण्योड़ी – कंवारी, धौरां रौ धोरी:-श्रीलाल नथमल जोशी
9.आदमी रौ सींग, माटी री महक,मंत्री री बेटी, बड़ी बहन जी:-करणीदान बारहठ
10.बादली, लू:-चन्द्रसिंह बिरकाली
11.गुण हरिरस, देवियाणा, वैराट, आपण, गुण-भगवन्त हंस:-भक्त कवि ईसरदास
12.बुद्धि सागर, कायम खां रासो, विरह शतक, भावशतक, मदन विनोद:-जान कवि
13.चंद्रकुंवरी री वात:-प्रतापसिंह
14.चंदन मलयागिरि की वात:-भद्रसेन
15.चाचा:-श्री नारायण अग्रवाल (राजस्थान का द्वितीय उपन्यास)
16.सागर पाखी:-कुंदन माली
17.ध्रुवतारा, तिरंगा झंडा, आधीरात, पतित का स्वर्ग, विष का प्याला:-जर्नादन राय
18.रणखार:-जितेन्द्र कुमार सोनी
19.अरावली री आत्मा, मेघदूत, गीत कथा:-डॉ. मनोहर शर्मा
20.राठौड़ रतनसिंह री वेलि:-दूदा विसराल
21.गजगुणरुपक बंध, विवेकवार्ता:-केशवदास गाडण
22.भूरजाल भूषण, मानजसोमण्डन, दातार बावनी, कुकविबतीसी, नीति मंजरी:-बाँकीदास
23.सूरज प्रकाश:-करणीदान
24.एकलिंग महात्म्य:-कान्हा व्यास
25.हम्मीर हठ, सुर्जन चरित:-चन्द्रशेखर
26.रुक्मणि हरण, नागदमण:-कवि सायांजी
27.राजिये रा सोरठा:-कृपाराम खिड़िया। (यह सीकर के राव राजा लक्ष्मणसिंह के आश्रित कवि थे)
28.पिंगल शिरोमणि, ढोला मारवणी री चौपाई:-कुशल लाभ
29.गजउद्धार, गुणसार, भावविरही, दुर्गाभाषा पाठ:-महाराजा अजीतसिंह (जोधपुर)
30.भाषा भूषण, आनन्द विलास, सिद्धान्त बोध, चन्द्र प्रबोध, नायिका भेद:-महाराजा जसवंत सिंह प्रथम (जोधपुर)
31.खुमाण रासौ:-दलपत विजय (पिंगल भाषा में रचित)
32.ब्रजनिधि ग्रंथावली:-सवाई प्रतापसिंह (जयपुर)
33.नेहतरंग:-राजा बुधसिंह (बँूदी)
34.वंश समुच्चय, यशवंत यशोभूषण:-कविराजा मुरारीदान
35.भाखर भूषण, महिषी पच्चीसी:-मोडजी आशिया
36.नाथ चरित्र, कृष्ण विलास, जलंधर चरित्र, तेजमंजरी, सेवासागर:-महाराजा मानसिंह
37.रामरासौ:-माधोदास दधवाड़िया
38.‘वृन्द सतसई’, ‘यमक सतसई’, ‘भावपंचाशिका’, ‘सत्यस्वरूप’:-कवि वृन्द
39.राजरुपक, एकाक्षरी नाममाला, भागवत प्रकाश:-वीरभाण रतनू
40.हम्मीर नाममाला, लखपत पिंगल, भरतरी शतक, भागवत दर्पण:-हम्मीरदान रत्नू
41.अजितोदय:-जगजीवन भट्ट (संस्कृत में)
42.सगती सुजस, देस दर्पण, साकेत सतर्क, भागीरथी महिमा, वखतरों बायरो:-शंकरदान सामौर
43.भारतीय प्राचीन लिपिमाला:-डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द औझा
44.लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इण्डिया:-जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन
45.वीर विनोद:-श्यामलदास (चार खण्डों में रचित)
46.प्रकाश पथ, खुले पंख:-इकराम राजस्थानी
47.पाबूजी रा सोरठा, द्रोपदी विनय, करुण बहत्तरी:-रामनाथ कविया
48.चौबोली, हरजस बावनी, राजस्थानी कहावतें:-कन्हैयालाल सहल
49.केहर प्रकाश:-राव बख्तावर
50.गाँधीशतक, हाड़ी शतक, चूंड़ा शतक:-नाथूसिंह महियारिया
51.धूणी तपे तीर, हां चाँद मेरा है:-हरिराम मीणा
52.धरती रा गीत, चेत मानखा उछालो:-रेवंतदान चारण
53.ए प्रिन्सेज रिमेम्बर्स:-गायत्री देवी
54.अवतार चरित्र:-नरहरिदास
55.जगत विलास:-नेकराम (उदयपुर महाराणा जगतसिंह द्वितीय के दरबारी कवि)
56.विश्व वल्लभ:-मिश्र चक्रपाणि
57.राज रत्नाकर:-सदाशिव नागर
58.प्रताप प्रकाश:-कृष्णदत्त
59.राग चन्द्रोदय, राग मंजरी, नर्तन निर्णय:-पुण्डरीक विट्‌ठल
60.उमादे भटियाणी रा कवित्त:-आशा बारहठ
61.गोरा बादल री चौपाई:-हेम रतन सूरि
62.वाणी, सरवंगी:-संत रज्जब जी
63.अणभैवाणी:-संत रामचरण जी
64.हम्मीरायण:-पद्‌मनाभ
65.शत्रुशाल रासौ:-डूंगरजी
66.वास्तुमंजरी:-नाथा
67.प्रबन्ध चिंतामणि:-मेरुतुंग
68.राणा रासौ:-दयाराम
69.राजवल्लभ:-मण्डन
70.महादेव पार्वती री वैलि:-कवि सायां झूला
71.गुण भाषा:-हेम कवि
72.ढोला-मारु-री-वात:-खुशालचन्द्र
73.रसराज:-मतिराम
74.रसिकप्रिया, सूडप्रबन्ध, नृत्य रत्नकोष, संगीतराज:-महाराणा कुम्भा
75.रघुनाथ रुपक:-मंछाराम सेवग
76.हम्मीरायण:-भाण्डऊ व्यास
77.रागचन्द्रिका:-द्वारका प्रसाद भट्ट
78.आमार जीबन:-रस सुन्दरी देवी

स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित पुस्तकें :-

1.मेवाड़ राज्य का वर्तमान शासन, पछीड़ा:-माणिक्यलाल वर्मा
2.जैसलमेर का गुण्डाराज, आजादी के दीवाने:-सागरमल गोपा
3.प्रत्यक्ष जीवनशास्त्र (आत्मकथा),प्रलय-प्रतीक्षा नमो-नमो:-पण्डित हीरालाल शास्त्री
4.प्रताप चरित्र, दुर्गादास चरित्र, रुठी रानी, चेतावणी रा चूंग्ट्या:-केसरीसिंह बारहठ
5.भारत में अंग्रेजी राज:-पण्डित सुन्दरलाल
6.शुद्र मुक्ति, स्त्री मुक्ति, महेन्द्र कुमार:-अर्जुनलाल सेठी
7.राजस्थान रोल इन द स्ट्रगल 1857:-नाथूलाल खड़गावत
  • कर्नल जेम्स टॉड – इंग्लैंड निवासी जेम्स टॉड सन् 1800 में पश्चिमी एवं मध्य भारत के राजपूत राज्यों के पॉलिटिकल एजेंट बनकर भारत आये थे। 1817 में वे राजस्थान की कुछ रियासतों के Political Agent बनकर उदयपुर आये। उन्होंने 5 वर्ष के सेवाकाल में राज्य की विभिन्न रियासतों में घूम-घूमकर इतिहास विषयक सामग्री एकत्रित की एवं इंग्लैण्ड जाकर 1829 ई. ‘Annals and antiquities of Rajasthan’ (Central and Western Rajpoot States of India) ग्रन्थ लिखा तथा 1839 ई. में ‘Travels in Western India’ (पश्चिमी राजस्थान की यात्रा) की रचना की। इन्हें राजस्थान के इतिहास लेखन का ‘पितामह’ कहा जाता है।
  • सूर्यमल्ल मिश्रण – संवत् 1815 में चारण कुल में जन्मे श्री सूर्यमल्ल मिश्रण बूँदी के महाराव रामसिंह के दरबारी कवि थे। इन्होंने वंशभास्कर, वीर सतसई, बलवन्त विलास एवं छंद मयूख ग्रंथों की रचना की। इन्हें आधुनिक राजस्थानी काव्य के नवजागरण का पुरोधा कवि माना जाता है। उन्होंने अंग्रेजी शासन से मुक्ति प्राप्त करने हेतु उसके विरुद्ध जनमानस को उद्वैलित करने के लिए अपने काव्य में समयोचित रचनाएँ की है। अपने अपूर्व ग्रन्थ वीर-सतसई के प्रथम दोहे में ही वे ‘समय पल्टी सीस’ की उद्घोषणा के साथ ही अंग्रेजी दासता के विरुद्ध बिगुल बजाते हुए प्रतीत होते हैं। उनके एक-एक दोहे में राजस्थान की भूमि के लिए मर-मिटने वाले रणबाँकुरों के लिए ललकार दिखाई देती है। सूर्यमल्ल मिश्रण डिंगल भाषा के अंतिम महान कवि थे। डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी के अनुसार ‘सूर्यमल्ल’ अपने काव्य और कविता को ‘Lay of the last minstral’ बना गए और वे स्वयं बने “Last of the Giants’
  • डॉ. जयसिंह नीरज – राजस्थान के अलवर जिले के एक छोटे से ग्राम तोलावास में 11 फरवरी, 1929 को साधारण राजपूत परिवार में जन्मे डॉ. जयसिंह नीरज बचपन से ही विद्यानुरागी थे। उन्होंने एक ओर अपने सृजनात्मक लेखन से हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान बनाया वहीं दूसरी ओर राजस्थान की संस्कृति, चित्रकला संगीत और पुरातत्व आदि को अपनी अद्भुत मेधा का संस्पर्श देकर नये आयाम प्रस्तुत किये। उन्हें के.के. बिड़ला फाउण्डेशन द्वारा 25 अप्रैल, 1992 को प्रथम बिहारी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ‘Splendour of Rajasthan Paining’, राजस्थानी चित्रकला, राजस्थान की सांस्कृतिक परम्परा आदि उनके द्वारा रचित प्रमुख ग्रंथ है। 2 मार्च, 2002 को इनका निधन हो गया।
  • गौरीशंकर हीराचन्द ओझा – डॉ. ओझा का जन्म 14 सितम्बर, 1863 को सिरोही जिले के रोहिड़ा गाँव में हुआ था। उन्होंने राजस्थान के इतिहास के अलावा राजस्थान के प्रथम इतिहास ग्रंथ ‘मुहणोत नैणसी री ख्यात’ का सम्पादन किया। हिन्दी में पहली बार भारतीय लिपि का शास्त्र लेखन कर अपना नाम गिनीज वर्ल्ड बुक में अंकित किया। कर्नल जेम्स टॉड की ‘एनल्स एंड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान’ नामक बहुप्रसिद्ध कृति का हिन्दी में अनुवाद किया और उसमें रह गई त्रुटियों का परिशोधन किया।
  • डॉ. एल.पी. टैस्सीटोरी – इटली के एक छौटे से गाँव उदिने में 13 दिसम्बर, 1887 को जन्मे टैस्सीटोरी 8 अप्रैल, 1914 को मुम्बई (भारत) आए व जुलाई, 1914 में (जयपुर, राजस्थान) पहुँचे। बीकानेर उनकी कर्मस्थली रहा। बीकानेर का प्रसिद्ध व दर्शनीय म्यूजियम डॉ. टैस्सीटोरी की ही देन है। उनकी मृत्यु 22 नवम्बर, 1919 को बीकानेर में हुई। उनका कब्र स्थल बीकानेर में ही है। बीकानेर महाराजा गंगासिंह जी ने उन्हें राजस्थान के चारण साहित्य के सर्वेक्षण एवं संग्रह का कार्य सौंपा था जिसे पूर्ण कर उन्होंने पर रिपोर्ट दी तथा ‘राजस्थानी चारण साहित्य एवं ऐतिहासिक सर्वे’ तथा ‘पश्चिमी राजस्थान का व्याकरण’ नामक पुस्तकें लिखी थी। इन्होंने रामचरित मानस, रामायण व ऐतिहासिक सर्वे’ तथा ‘पश्चिमी राजस्थानी का व्याकरण’ नामक पुस्तकें लिखी थी। इन्होंने रामचरित मानस, रामायण व कई भारतीय ग्रन्थों का इटेलियन भाषा में अनुवाद किया था। ‘बेलि किसन रूकमणी री’ और ‘छंद जैतसी रो’ डिंगल भाषा के इन दोनों ग्रंथों को संपादित करने का श्रेय उन्हें ही जाता है। सरस्वती और द्वषद्वती की सूखी घाटी में कालीबंगा के हड़प्पा पूर्व के प्रसिद्ध केन्द्र की खोज करने का सर्वप्रथम श्रेय डॉ. टैस्सीटोरी को ही जाता है। डॉ. टैस्सीटोरी ने पल्लू, बड़ोपल, रंगमहल, रतनगढ़, सूरतगढ़ तथा भटनेर आदि क्षेत्रों सहित लगभग आधे बीकानेर क्षेत्र की खोज की।

साहित्यिक शब्दावली

  • कक्का– कक्का उन रचनाओं को कहते हैं, जिनमें वर्णमाला के बावन वर्ण में से प्रत्येक वर्ण से रचना का प्रारम्भ किया जाता है।
  • ख्यात– ख्यात संस्कृत भाषा का शब्द है। शब्दार्थ की दृष्टि से इसका आशय ख्यातियुक्त, प्रख्यात, विख्यात, कीर्ति आदि है अर्थात् ख्याति प्राप्त, प्रसिद्ध एवं लोक विश्रुत पुरुषों की जीवन घटनाओं का संग्रह ख्यात कहलाता है। ख्यात में विशिष्ट वंश के किसी पुरुष या पुरुषों के कार्य़ों और उपलब्धियों का वर्णन मिलता है। ख्यातों का नामकरण वंश, राज्य या लेखक के नाम से किया जाता रहा, जैसे-राठौड़ाँ री ख्यात, मारवाड़ राज्य री ख्यात, नैणसी री ख्यात इत्यादि

–  इतिहास के विषयानुसार और शैली की दृष्टि से ख्यातों को दो भागों में बाँटा जा सकता है-(i) संलग्न ख्यात-ऐसी ख्यातों में क्रमानुसार इतिहास लिखा हुआ होता है, जैसे-दयालदास की ख्यात। (ii) बात-संग्रह – ऐसी ख्यातों में अलग-अलग छोटी या बड़ी बातों द्वारा इतिहास के तथ्य लिखे हुए मिलते हैं, जैसे-नैणसी एवं बाँकीदास की ख्यात।

–  ख्यातों का लेखन मुगल बादशाह अकबर (1556-1605 ई.) के शासनकाल से प्रारम्भ माना जाता है, जब अबुल फजल द्वारा अकबरनामा के लेखन हेतु सामग्री एकत्र की गई, तब राजपूताना की विभिन्न रियासतों को उनके राज्य तथा वंश का ऐतिहासिक विवरण भेजने के लिए बादशाह द्वारा आदेश दिया गया था। इसी संदर्भ में लगभग प्रत्येक राज्य में ख्यातें लिखी गई।

–  ख्यातों का लेखन प्राचीन बहियों, समकालीन ऐतिहासिक विवरणों, बड़वा भाटों की वंशावलियों, श्रुति परम्परा से चली आ रही इतिहासपरक बातों, पट्टों-परवानों के आधार पर किया गया था। ख्यातों से समाज की राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक, नैतिक एवं सांस्कृतिक प्रवृत्तियों का दिग्दर्शन होता है।

  • झमाल– झमाल राजस्थानी काव्य का मात्रिक छन्द है। इसमें पहले पूरा दोहा, फिर पाँचवें चरण में दोहे के अंतिम चरण की पुनरावृत्ति की जाती है। छठे चरण में दस मात्राएँ होती हैं। इस प्रकार दोहे के बाद चान्द्रायण फिर उल्लाला छन्द रखकर सिंहावलोकन रीति (धीरे-धीरे) से पढ़ा जाता है। राव इन्द्रसिंह री झमाल प्रसिद्ध है।
  • झूलणा– झूलणा राजस्थानी काव्य का मात्रिक छन्द है। इसमें 24 अक्षर के वर्णिक छन्द के अंत में यगण होता है। अमरसिंह राठौड़ रा झूलणा, राजा गजसिंह रा झूलणा, राव सुरतांण-देवड़े रा झूलणा आदि प्रमुख झूलणें हैं।
  • टब्बा और बालावबोध– मूल रचना के स्पष्टीकरण हेतु पत्र के किनारों पर टिप्पणियाँ लिखी जाती है उन्हें टब्बा कहते हैं और विस्तृत स्पष्टीकरण को बालावबोध कहा जाता है।
  • दवावैत– गद्य-पद्य में लिखी गई तुकान्त रचनाएँ ‘दवावैत‘ कहलाती है। गद्य के छोटे-छोटे वाक्य खण्डों के साथ पद्य में किसी एक घटना अथवा किसी पात्र का जीवन वृत्त ‘दवावैत‘ में मिलता है। अखमाल देवड़ा री दवावैत महाराणा जनवानसिंह री दवावैत, राजा जयसिंह री दवावैत आदि प्रमुख दवावैत ग्रंथ हैं।
  • दूहा– राजस्थान में वीर तथा दानी पुरुषों पर असंख्य दोहे लिखे गये हैं जिनसे उनके साहस, धैर्य, त्याग, कर्त्तव्यपरायणता, दानशीलता तथा ऐतिहासिक घटनाओं की जानकारी मिलती हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से अखैराज सोनिगरै रा दूहा, अमरसिंघ गजसिंघोत रा दूहा, करण सगतसिंघोत रा दूहा, कान्हड़दे सोनिगरै रा दूहा आदि प्रमुख हैं।
  • धमाल– राजस्थान में होली के अवसर पर गाये जाने वाले गीतों को धमाल कहा जाता है। होली के अवसर पर गाई जाने वाली एक राग का नाम भी धमाल है।
  • परची– संत महात्माओं का जीवन परिचय जिस पद्यबद्ध रचना में मिलता है उसे राजस्थानी भाषा में परची कहा गया है। इनमें संतों के नाम, जाति, जन्मस्थान, माता-पिता एवं परिवार के अन्य सदस्यों का नाम एवं उनकी साधनागत उपलब्धियों का वर्णन मिलता है। संत साहित्य के इतिहास अध्ययन के लिए ये कृतियाँ उपयोगी हैं संत नामदेव की परची, कबीर की परची, संत रैदास की परची, संत पीपा की परची, संत दादू की परची, मीराबाई की परची आदि प्रमुख परची रचना हैं।
  • प्रकास– किसी वंश अथवा व्यक्ति विशेष की उपलब्धियों या घटना विशेष पर प्रकाश डालने वाली कृतियों को ‘प्रकास‘ कहा गया है। प्रकाश ऐतिहासिक दृष्टि से उपयोगी है। किशोरदास का राजप्रकास, आशिया मानसिंह का महायश प्रकास, कविया करणीदास का सूरज प्रकास, रामदान लालस का भीमप्रकास, मोडा आशिया का पाबूप्रकास, किशन सिढ़ायच का उदयप्रकास, बख्तावर का केहर प्रकास, कमजी दधवाड़िया का दीप कुल प्रकास इत्यादि महत्वपूर्ण प्रकास ग्रंथ हैं।
  • प्रशस्ति– राजस्थान में मंदिरों, दुर्गद्वारों, कीर्तिस्तम्भों आदि पर प्रशस्तियाँ उत्कीर्ण मिलती है। इनमें राजाओं की उपलब्धियों का प्रशंसायुक्त वृत्तान्त मिलता है इसलिए इन्हें ‘प्रशस्ति‘ कहते हैं। मेवाड़ में प्रशस्तियाँ उत्कीर्ण करने की परम्परा रही है। प्रशस्तियों में राजाओं का वंशक्रम, युद्ध अभियानों, पड़ौसी राज्यों से संबंध, उनके द्वारा निर्मित मंदिर, जलाशय, बाग-बगीचों, राजप्रासादों आदि का वर्णन मिलता है। इनसे उस समय के बौद्धिक स्तर का भी पता चलता है। प्रशस्तियों में यद्यपि अतिश्योक्तिपूर्ण वर्णन मिलता है, फिर भी इतिहास निर्माण में ये उपयोगी है। नेमिनाथ मंदिर की प्रशस्ति, सुण्डा पर्वत की प्रशस्ति, राज प्रशस्ति, रायसिंह प्रशस्ति, कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति, कुम्भलगढ़ प्रशस्ति इत्यादि प्रमुख  प्रशस्तियाँ हैं जो तत्कालीन समय की राजनैतिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक दशा का ज्ञान कराती हैं।
  • बही– एक विशेष प्रकार की बनावट के रजिस्टर को बही कहते हैं, जिसमें इतिहास सम्बन्धी कई उपयोगी सामग्री दर्ज की हुई मिलती हैं। राव व बड़वे अपनी बही में आश्रयदाताओं के नाम और उनकी मुख्य उपलब्धियों का ब्यौरा लिखते थे। इसी प्रकार ‘राणी मंगा‘ जाति के लोग कुँवरानियों व ठकुरानियों के नाम और उनकी संतति का विवरण अपनी बही में लिखते थे। यह कार्य पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता था। चित्तौड़-उदयपुर पाटनामा रही बही, पाबूदान रही बही, जोधपुर राणी मंगा रही बही इत्यादि प्रमुख बहियाँ हैं।
  • बात– ऐतिहासिक घटनाओं, इतिहास प्रसिद्ध पात्रों और पौराणिक आख्यानों को लेकर अनेक छोटी-छोटी बातें लिखी गई हैं। प्रारम्भ में बाते मौखिक ही रही, लेकिन बादमें याद रखने की सुविधा व राजा-महाराजाओं के पठनार्थ बातों को लिखा गया। ये बातें तत्कालीन समाज की विभिन्न प्रवृत्तियों की जानकारी देती हैं। बातें काल्पनिक भी होती थी। कथानक, विषय, भाषा, रचना-प्रकार, शैली और उद्देश्य की दृष्टि से बातें अनेक प्रकार की मिलती हैं। तत्कालीन समय में बातों के माध्यम से ही समाज को आवश्यक ज्ञान दिया जाता था। बातों में बाल-विवाह, बहुविवाह, पर्दा, दहेज एवं सती प्रथा का भी चित्रण मिलता है। राणा प्रताप री बात, राव मालदेव री बात, अचलदास खींची री बात, राजा उदयसिंह री बात, वीरमदे सोनगरा री बात, राव चन्द्रसेन री बात इत्यादि प्रमुख बाते हैं।

–  बात का एक उदाहरण इस प्रकार मिलता है– ‘पिंगल राजा सावंतसी देवड़ा नूं आदमी मेल कहायौ-अबै थै आणौ करौ। तद सावंतसी घणों ही विचारियौ पण बात बांध कोई वैसे नहीं, कुंवरी नै ऊझणों दे मेलीजे। तद ऊठ घोड़ा, रथ, सेजवाल, खवास, पासवान, साथे हुआ सो उदैचंद खमैं नहीं।‘

  • बारहमासा– बारहमासा में कवि वर्ष के प्रत्येक मास की परिस्थितियों का चित्रण करते हुए नायिका का विरह वर्णन करते हैं। बारहमासा का वर्णन प्रायः आषाढ़ से प्रारम्भ होता है।
  • मरस्या– मरस्या से तात्पर्य ‘शोक काव्य‘ से है। राजा या किसी व्यक्ति विशेष की मृत्योपरान्त शोक व्यक्त करने के लिए ‘मरस्या‘ काव्यों की रचना की जाती थी। इसमें उस व्यक्ति के चारित्रिक गुणों के अलावा अन्य क्रिया-कलापों का जिक्र भी किया जाता था। यह कृतियाँ समसामयिक होने के कारण उपयोगी हैं। ‘राणे जगपत रा मरस्या‘ मेवाड़ महाराणा जगतसिंह की मृत्यु पर शोक प्रकट करने के लिए लिखा गया था।
  • रासो– मध्यकालीन राजपूत शासकों ने विद्वानों और कवियों को राज्याश्रय प्रदान किया। उन विद्वानों ने शासकों की प्रशंसा में काव्यों की रचना की, जिनमें इतिहास विषयक सामग्री मिलती है। ऐसे काव्यों को ‘रासो‘ कहा जाता है। मोतीलाल मेनारिया के अनुसार, “जिस काव्य ग्रन्थ में किसी राजा की कीर्ति, विजय, युद्ध, वीरता आदि का विस्तृत वर्णन हो, उसे रासो कहते हैं।“ हिन्दी साहित्य कोश के अनुसार रासो नाम से अभिहित कृतियाँ दो प्रकार की हैं- पहली गीत-नृत्य परक जो राजस्थान तथा गुजरात में रची गई और दूसरी छन्द-वैविध्य परक जो पूर्वी राजस्थान में लिखी गई। रासो ग्रन्थों में चन्द्रबरदाई का पृथ्वीराजरासो, नृपति नाल्ह का बीसलदेव रासो, कविजान का क्यामखां रासो, दौलत विजय का खुमाण रासो, गिरधर आसियाँ का सगतरासो, राव महेशदास का बिन्है रासो, कुम्भकर्ण का रतन रासो, डूंगरसी का शत्रुशाल रासो, जोधराज का हम्मीर रासो, जाचिक जीवन का प्रतापरासो, सीताराम रत्नु का जवान रासो प्रमुख हैं।
  • रूपक– किसी वंश अथवा व्यक्ति विशेष की उपलब्धियों के स्वरूप को दर्शाने वाली काव्य कृतियों का नाम रूपक रखा गया है। गजगुणरूपक, रूपक गोगादेजी रो, राजरूपक आदि प्रमुख रूपक काव्य हैं।
  • वंशावली/पीढ़ियाँवली– वंशावलियों में विभिन्न वंशां की सूचियाँ मिलती हैं। इन सूचियों में वंश के आदिपुरुष से विद्यमानपुरुष तक पीढ़ीवार वर्णन मिलता है। वंशावलियाँ और पीढ़ियाँवलियाँ अधिकतर ‘भाटों‘ द्वारा लिखी गई हैं। प्रत्येक राजवंश तथा सामन्त परिवार भटों का यजमान होता था। राजवंश की वंशावली तैयार करना, शासकों तथा उनक परिवार के सदस्यों के कार्यकलापों का विस्तृत विवरण रखना उनका मुख्य कार्य होता था। वंशावलियाँ और पीढ़ियाँवालियाँ शासकों, सामन्तों, महारानियों, राजकुमारों, मंत्रियों, नायकों के वंशवृक्ष के साथ-साथ मुख्य घटनाओं का वर्णन भी उपलब्ध करवाती हैं। फलतः इतिहास के व्यक्तिक्रम, घटनाक्रम और संदर्भक्रम की दृष्टि से वंशावलियाँ उपयोगी हैं। अमरकाव्य वंशावली, सूयवंश वंशावली, राणाजी री वंशावली, सिसोद वंशावली आदि महत्वपूर्ण वंशावलियाँ हैं।
  • वचनिका– वचनिका शब्द संस्कृत के वचन से बना है। राजस्थानी साहित्य में गद्य-पद्य मिश्रित काव्य को वचनिका की संज्ञा दी गई है। वचनिका के दो भेद होते हैं- (i) पद्यबद्ध तथा (ii) गद्यबद्ध।
  • –  पद्यबद्ध में आठ-आठ अथवा बीस-बीस मात्राओं के तुकयुक्त पद होते हैं जबकि गद्यबद्ध में मात्राओं का नियम लागू नहीं होता है। इन कृतियों से स्थानीय योद्धाओं का वर्णन प्राप्त होता है। अचलदास खींची री वचनिका, वचनिका राठौड़ रूपसिंहजी री, वचनिका राठौड़ रतनसिंघजी महेसदासौत री आदि प्रमुख वचनिकाएँ हैं।
  • विगत– विगत में किसी विषय का विस्तृत विवरण होता है। इसमें इतिहास की दृष्टि से शासक, शासकीय परिवार, राज्य के प्रमुख व्यक्ति अथवा उनके राजनीतिक, सामाजिक व्यक्तित्व का वर्णन मिलता है। आर्थिक दृष्टि से विगत में उपलब्ध आंकड़े तत्कालीन आर्थिक-सामाजिक परिस्थितियों को जानने के लिए उपयोगी स्रोत हैं।

–  नैणसी की मारवाड़ रा परगनां री विगत में प्रत्येक परगने की आबादी, रेख, भूमि किस्म, फसलों का हाल, सिंचाई के साधन आदि की जानकारियाँ मिलती हैं।

  • विलास– विलास काव्य कृतियों में राजनीतिक घटनाओं के अलावा आमोद-प्रमोद विषयक पहलुओं का भी वर्णन मिलता है। राजविलास, बुद्धिविलास, वृत्तविलास, विजय विलास, भीम विलास इत्यादि महत्वपूर्ण विलास ग्रन्थ हैं।
  • वेलि– वेलि का अर्थ वेल, लता व वल्लरी है। वल्लरी संस्कृत शब्द है, जिसका अपभ्रंश रूप वेल अथवा वेलि है। ऐतिहासिक वेलि ग्रंथ ‘वेलियों‘ छन्द में लिखे हुए मिलते हैं। इन वेलि ग्रन्थों से राजनीतिक घटनाओं के साथ-साथ सामाजिक एवं धार्मिक मान्यताओं की जानकारी भी मिलती है। दईदास जैतावत री वेलि, रतनसी खीवावत री वेल तथा राव रतन री वेलि प्रमुख वेलि ग्रंथ हैं।
  • सबद– सन्त काव्य में ‘सबद‘ से तात्पर्य ‘गेय पदों से‘ है। ‘सबद‘ में प्रथम पंक्ति ‘टेक‘ अथवा स्थायी होती है, जिसको गाने में बार-बार दोहराया जाता है। ‘सबद‘ का शुद्ध रूप शब्द होता है। सभी सन्त कवियों ने शब्दों की रचनाएँ की हैं जिन्हें विभिन्न लौकिक और शास्त्रीय रागों में गाया जाता है।
  • साखी– साखी का मूल रूप साक्षी है। साक्षी का अर्थ ‘आँखों देखी बात का वर्णन करना‘ अर्थात् ‘गवाही देना‘ होता है। साखी परक रचनाओं में सन्त कवियों ने अपने अनुभूत ज्ञान का वर्णन किया है। साखियों में सोरठा छन्द का प्रयोग हुआ है। चौपाई, चौपई, छप्पय आदि का प्रयोग कम हुआ है। कबीर की साखियाँ प्रसिद्ध हैं।
  • सिलोका– संस्कृत के श्लोक शब्द का बिगड़ा रूप सिलोका है। राजस्थानी भाषा में धार्मिक, ऐतिहासिक और उपदेशात्मक सिलोके लिखे मिलते हैं। कुछ सिलोके प्रख्यात वीरों एवं कुछ ऐतिहासिक घटनाओं को लेकर लिखे गए हैं। सिलोका साधारण पढ़े-लिखे लोगों द्वारा लिखे गये हैं, इसलिए ये जनसाधारण की भावनाओं का दिग्दर्शन कराते हैं। राव अमरसिंह रा सिलोका, अजमालजी रो सिलोको, राठौड़ कुसलसिंह रो सिलोको, भाटी केहरसिंह रो सिलोको इत्यादि प्रमुख सिलोके हैं।
  • स्तवन– स्तुतिपरक काव्यों को स्तवन कहा जाता है। ऐसे काव्यों को स्तुति, स्तोत्र, विनती और नमस्कार भी कहते हैं। इनका संबंध तीर्थंकरों, महापुरुषों, तीर्थाें, साधुओं और महासतियों आदि से होता है।
  • हकीकत– हकीकत का अर्थ वास्तविकता से है। इन लघु कृतियों का उद्देश्य किसी घटना, स्थान विशेष या राजवंश के बारे में सही जानकारी का बोध कराना है। मनसब री हकीकत, बीकानेर री हकीकत, हाड़ा री हकीकत इत्यादि महत्वपूर्ण हकीकत ग्रंथ हैं।

राजस्थानी भाषा के रूप

  • डिंगल – अपभ्रंश मिश्रित पश्चिमी राजस्थानी (मारवाड़ी) के साहित्यिक रूप को ही डिंगल कहा जाता है। चारण साहित्य इसी श्रेणी में आता है। डिंगल साहित्य प्रधानतः वीर रसात्मक है।
  • पिंगल – ब्रजभाषा एवं पूर्वी राजस्थानी के अपभ्रंश मिश्रित साहित्यिक रूप को पिंगल कहा जाता है।

राजस्थान में साहित्यिक विकास हेतु कार्यरत संस्थाएँ

1.  राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर – राजस्थान में साहित्य की प्रोन्नति तथा साहित्यिक संचेतना के प्रचार-प्रसार हेतु 28 जनवरी 1958 को स्थापित। अकादमी द्वारा राजस्थानी क्षेत्र में दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार मीरा-पुरस्कार है। संस्थान की पत्रिका-मधुमति।

2.  राजस्थान संस्कृत अकादमी, जयपुर – संस्कृत भाषा को लोकप्रिय बनाने, संस्कृत मौलिक लेखन को प्रोत्साहन देने, संस्कृत साहित्य को प्रकाशित करने तथा नवोदित प्रतिभाओं को प्रकाश में लाने हेतु वर्ष 1980 में राजस्थान संस्कृत अकादमी की स्थापना की गई। माघ पुरस्कार इस अकादमी द्वारा दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है। पत्रिका -स्वर मंगला

3.  राजस्थान ब्रजभाषा अकादमी, जयपुर – ब्रजभाषा के सम्यक प्रचार-प्रसार एवं विकास हेतु वर्ष 1985-86 में स्थापित।

4.  राजस्थान सिंधी अकादमी, जयपुर – सिंधी साहित्य के प्रचार-प्रसार एवं विकास हेतु इस अकादमी की स्थापना की गई।

5.  राजस्थान उर्दू अकादमी, जयपुर – उर्दू भाषा एवं साहित्यिक कार्यकलापों को प्रोत्साहित करने हेतु सन् 1979 में स्थापित। पत्रिका – नखलिस्तान।

6.  राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर – हिन्दी में विश्वविद्यालय स्तरीय मानक पाठ्य पुस्तकों एवं संदर्भ ग्रंथों के निर्माण, प्रकाशन तथा हिन्दी भाषा के उन्नयन हेतु 15 जुलाई, 1969 को स्थापित।

7.  राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर– जनवरी, 1983 में राजस्थानी भाषा एवं साहित्य के विकास हेतु इस अकादमी की स्थापना बीकानेर में की गई।  पत्रिका – जागती जोत, पुरस्कार – सूर्यमल्ल मिश्रण शिखर पुरस्कार।

8.  मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी-फारसी शोध संस्थान, टोंक – अरबी-फारसी भाषा एवं साहित्य के शोध एवं विकास हेतु 4 दिसम्बर, 1978 को अरबी-फारसी शोध संस्थान की स्थापना टोंक में की गई। इसके भवन का नाम ‘कसरे इल्म’ है।

राजस्थान का साहित्य

(अ) संस्कृत साहित्य

पुस्तकलेखकविशेष विवरण
1. पृथ्वीराज विजय         जयानकदिल्ली व अजमेर के चौहान शासकोंका राजनीतिक व सांस्कृतिक इतिहास
2. हम्मीर महाकाव्य         नयनचन्द्र सूरीरणथम्भौर के चौहानों व अलाउद्दीनखिलजी के आक्रमण की जानकारी
3. राज वल्लभ  मण्डन  15वीं सदी की स्थापत्य कला
4. राज विनोद    सदाशिव भट्ट16वीं सदी के समाज का रहन-सहन
5. एकलिंग महात्म्यकान्ह व्यास व कुम्भागुहिल वंश की जानकारी
6. अमरसार      पं.जीवाधरमहाराणा प्रताप व अमरसिंहके बारे में जानकारी
7. राज रत्नाकर  सदाशिव भट्टराजसिंह (उदयपुर) के बारे में
8. अमरकाव्य    रणछोड़ भट्टमेवाड़ का सामाजिक वधार्मिक जीवन वंशावली
9. अजीतोदय    जगजीवन भट्टमारवाड़ के जसवन्त सिंहव अजीत सिंह के बारे में

(ब) राजस्थानी साहित्य

पुस्तकलेखकविवरण
1. पृथ्वीराज रासो          चन्दवरदाईपृथ्वीराज चौहान तृतीयके विषय में
2. बीसलदेव रासोनरपति नाल्ह     विग्रहराज चतुर्थ(बीसलदेव) के विषय
3. हम्मीर रासो   सारंगधर  (जोधराज)        हम्मीर (रणथम्भौर)के विषय में
4. खुमाण रासो   दलपति विजय 
5. वंश भास्कर   सूर्यमल्ल मिश्रण बूँदी के राजाओं कावंशाक्रमानुसार इतिहास
6. सूरज प्रकाशकरणीदानअभयसिंह (जोधपुर)के विषय में
7. वीर सतसई   सूर्यमल्ल मिश्रण 
8. वीर विनोद    श्यामल दास 
9. राज रूपक    वीरभाण 
10. गुण रूपक   केशवदास 
11. गुण भाष्य    हेमकवि 
12. कान्हड़दे प्रबंध          पद्मनाभअलाउद्दीन खिलजी केजालौर आक्रमणके विषय में
13. अचलदास खींची री वचनिकाशिवदास गाडण    
14. वेलि क्रिसन रुकमणि री       पृथ्वीराज राठौड़ 
15. राम रासो    माधोदास 
16. मुहता नेणसीरी ख्यातमुहणोत नेणसी 
17. राजिये रा सोरठा         कृपाराम 
18. चेतावनी राचुंगट्याकेसरी सिंह बारहठ 

अन्य :-

– राजस्थानी साहित्य के विकास में संवत् 15वीं से 17वीं सदी के समय को उत्कर्षकाल तथा सन् 17वीं से 19वीं सदी तक के समय को ‘राजस्थानी साहित्य का स्वर्णकाल’ कहा गया।

– कुवलयमाला :- उद्योतन सूरि (जालौर) की काव्य-रचना।

– गवरीबाई को ‘बागड़ की मीरां’ कहा जाता है।

– जैन साहित्य की प्रमुख रचनाएँ :-

 धूर्ताख्यान :- हरिभद्र सूरी की रचना।

 अष्टक प्रकरण वृत्ति व चैतन्य वंदक :- जिनेश्वर सूरि की रचना।

 पंचग्रंथी व्याकरण :- बुद्धिसागर सूरि की रचना।

– राजस्थान में आड़ी, पाली, हीयाली आदि शब्द ‘पहेली’ के लिए प्रचलित है।

– राजस्थान के वागड़ क्षेत्र (डूंगरपुर-बाँसवाड़ा) में ‘गलालैग’ नामक लोक कविताओं में लोक देवी-देवताओं को देवता के रूप में प्रस्तुत कर उनके गुणों और कर्मों को चमत्कार की तरह वर्णित किया जाता है।

– गद्य साहित्य :- वात, वचनिका, ख्यात, दवावैत, वंशावली, पट्टावली, विगत आदि।

 पद्य साहित्य :- दूहा, सोरठा, गीत, कुण्डलिया, छंद, रासो, रास, चर्चरी, चोढ़ालिया, वेलि, धवल, बारहमासा, बावनी, कुलक, संझाय आदि।

– अचलदास खींची री वचनिका (शिवदास गाडण) गद्य एवं पद्य दोनों में है।

– राजस्थानी साहित्य में ‘राष्ट्रीय धारा’ की स्पष्ट छाप सर्वप्रथम सूर्यमल्ल मिश्रण के ग्रंथों में दिखाई देती है। मिश्रण ने अपने ग्रंथ ‘वीर सतसई’ में अंग्रेजी दासता के विरुद्ध बिगुल बजाया।

– सूर्यमल्ल मिश्रण (बूँदी) को ‘राजस्थानी साहित्य नवजागरण के पहले कवि’ के रूप में माना जाता है।

– विजयदान देथा (विज्जी) का बातां री फुलवारी ग्रन्थ 14 खण्डों में विभाजित हैं।

– ‘राजस्थानी शब्द-कोश के रचनाकार’ :- सीताराम लालस।

– नागर-समुच्चय :- किशनगढ़ शासक सावंतसिंह (नागरीदास) रचित ग्रन्थ।

– नागरीदास (सावंतसिंह) की प्रमुख रचनाएँ :- सिंगार, सागर, गोपी प्रेम प्रकाश ब्रजसार, भाेरलीला, विहार चन्द्रिका, गोधन आगमन, गोपीबन विलास ब्रज नाममाला आदि।

– कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 1919 ई. में सुजानगढ़ (चूरू) में हुआ था। कन्हैयालाल सेठिया को उनके ‘लीलटास’ काव्य संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया। वर्ष 2012 में राजस्थान रत्न पुरस्कार दिया गया था।

– कोमल कोठारी :- 1929 में कपासन गाँव में जन्म।

 1952 में जोधपुर से प्रकाशित मासिक ‘ज्ञानोदय’ एवं उदयपुर से प्रकाशित साप्ताहिक ‘ज्वाला’ का संपादन किया।

 1983 में पद्‌मश्री एवं 1984 में ‘पद्‌म भूषण’ से सम्मानित।

 2004 में निधन। मरणोपरान्त 2012 में इन्हें राजस्थान रत्न पुरस्कार-2012 से सम्मानित किया गया।

– बिहारी मिर्जा राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे।

– दुरसा आढ़ा को अकबर ने लाख पसाव दिया। दुरसा आढ़ा अकबर के दरबारी कवि थे।

– हाला-झाला री कुण्डलियाँ ईश्वरदास द्वारा रचित वीर रस प्रधान ग्रन्थ है।

– दुरसा आढ़ा ने पृथ्वीराज राठौड़ द्वारा रचित ‘वेलि क्रिसन रुक्मणि री’ को ‘पाँचवे वेद’ की उपमा दी। डॉ. एल. पी. टैस्सिटोरी ने पृथ्वीराज राठौड़ (बीकानेर) को ‘डिगंल का हैरोस’ कहा है।

– राजस्थान के प्रेमाख्यान :- ढोला-मारु, जेठवा ऊजली, खीवों आभल, महेन्द्र-मूमल, जसमा-ओडण, नाग-नागमति की कथा।

– ‘एक और मुख्यमंत्री’ उपन्यास यादवेन्द्र चन्द्र ‘शर्मा’ द्वारा लिखा गया।

परीक्षाओं में पूछे गए महत्वपूर्ण तथ्य :-

1. पंचतंत्र के लेखक :- विष्णु शर्मा

2. एल. पी. टैसीटोरी संबंधित है :- चारण साहित्य से।

3. केसरीसिंह बारहठ द्वारा रचित ‘चेतावणी रा चूग्टयां’ के माध्यम से महाराणा फतेहसिंह को दिल्ली दरबार में जाने से रोका था।

4. ‘ढोला मारु रा दुहा’ कवि कल्लोल की रचना है।

5. अलभ्य एवं दुर्लभ साहित्य का अप्रितम खजाना ‘सरस्वती पुस्तकालय’ फतेहपुर (सीकर) में है।

6. संस्कृत महाकाव्य ‘शिशुपाल वध’ के रचयिता महाकवि माघ का सम्बन्ध भीनमाल से है।

7. ‘हम्मीर मर्दन’ के लेखक :- जयसिंह सूरि।

8. ‘बीकानेर के राठौड़ की ख्यात’ के लेखक :- दयालदास।

9. राजस्थान में पोथीघर अध्ययन केन्द्र जापान की सहायता से खोले जाएंगे।

10. हम्मीर रासा पिंगल भाषा का ग्रन्थ है।

11. ‘सुन्दर विलास’ के रचयिता :- सुन्दरदास।

12. राव ‘जैतसी रो छन्द’ के रचयिता :- बीठू सुजाजी।

13. ‘राजस्थान के गजेटियर’ की उपमा :- मारवाड़ रा परगना री विगत (मुहणौत नेणसी द्वारा रचित)।

14. राजपुताना का अबुल फजल मुहणोत नैणसी को कहा जाता है।

15. ‘गलालैग’ वीर काव्य की स्थापना अमरनाथ जोगी ने की।

16. रुसी कथाओं के राजस्थानी अनुवाद ‘गजबण’ के लिए सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार लक्ष्मी कुमारी चूण्डावत को दिया गया।

17. नेमिनाथ बारहमासा :- जैन कवि पाल्हण द्वारा रचित।

18. पृथ्वीराज रासौ पिंगल में रचित वीर रस का महाकाव्य है।

19. दुर्गा सप्तशती एवं रणमल छन्द श्रीधर व्यास की प्रमुख रचनाएँ हैं।

20. ‘पृथ्वीराज विजय’ के लेखक :- जयानक।

21. ‘विजयपाल रासौ’ के लेखक :- नल्लसिंह। (पिंगल भाषा में)

22. ‘वीरमायण’ के लेखक :- बादर ढाढ़ी।

23. ‘रावरिणमल रो रूपक’ एवं ‘गुण जोधायण’ गाडण पसाइत की प्रमुख रचनाएँ हैं।

24. पद्‌मनाभ जालौर के चौहान अखैराज के आश्रित कवि थे। इन्होंने ‘कान्हड़दे प्रबन्ध’ की रचना की।

25. ‘पाबूजी रा छंद’ ‘गोगाजी रा रसावला’ ‘करणी जी रा छंद’ अादि बीठू मेहाजी की रचनाएँ हैं।

26. करणीदान कविया जोधपुर महाराजा अभयसिंह के आश्रित कवि थे।

27. जयपुर महाराजा प्रतापसिंह ‘ब्रजनिधि’ नाम से कविता लिखते थे।

28. 1857 की क्रान्ति का स्पष्ट व विस्तृत वर्णन सूर्यमल्ल मिश्रण के ‘वीर सतसई’ ग्रन्थ में मिलता है।

29. कर्नल जेम्स टॉड (स्कॉटलैण्ड निवासी) को ‘राजस्थान के इतिहास लेखन का पितामह’ कहा जाता है।

30. डॉ. एल. पी. टेस्सीटोरी का जन्म इटली के उदीने नगर में हुआ था। बीकानेर उनकी कर्मस्थली रहा।

31. कन्हैयालाल सेठिया का प्रथम काव्य संग्रह :- वनफूल।

32. पंडित झाबरमल शर्मा को ‘पत्रकारिता का भीष्म पितामह’ के रूप में जाता जाता है।

33. आधुनिक राजस्थान का ‘भारतेन्दु हरिश्चन्द्र’ :- शिवचन्द्र भरतिया।

34. चारण कवियों द्वारा प्रस्तुत राजस्थानी भाषा का साहित्यिक रूप :- डिंगल।

35. राजस्थानी साहित्य अकादमी :- उदयपुर में।

36. ‘ललित विग्रहराज’ का रचयिता सोमदेव चौहान शासक विग्रहराज चतुर्थ (कवि बान्धव) का दरबारी था।

37. स्वामी दयानन्द सरस्वती के ग्रन्थ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ का प्रकाशन अजमेर में हुआ।

38. महाराणा कुम्भा द्वारा रचित ग्रंथ ‘संगीत राज’ 5 कोषों में विभक्त हैं।

39. राजस्थानी साहित्य का वीरगाथा काल :- वि. स. 800 से 1460 तक।

40. राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान :- जोधपुर में। (1951 में स्थापित)

41. रास्थान राज्य अभिलेखागार :- बीकानेर में (1955 में स्थापित)।

42. राजस्थानी पंजाबी भाषा अकादमी :- श्रीगंगानगर (2006 में स्थापित)।

43. पण्डित झाबरमल्ल शोध संस्थान :- जयपुर (2000 ई. में स्थापित)।

44. रिहाण :- राजस्थान सिंधी अकादमी (जयपुर) की वार्षिक साहित्यिक पत्रिका।

45. संस्कृत दिवस :- श्रावण पूर्णिमा।

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