प्रमुख महल एवं हवेलियाँ

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महल स्थापत्य :-

जयपुर :-

1. आमेर का महल :- आमेर की मावठा झील के पास की पहाड़ी पर स्थित महल, जिसे कच्छवाहा नरेश मानसिंह द्वारा 1592 में बनाया गया। यह महल हिन्दू-मुस्लिम शैली का समन्वित रूप हैं। महल के मुख्य प्रवेश द्वार में प्रवेश करते ही राजपूत-मुगल शैली पर बना ‘दीवान-ए-आम’ है जो चारों ओर से लाल पत्थरों के खम्भों की दोहरी पंक्तियों युक्त बरामदा घिरा हैं। ‘दीवान-ए-आम’ के सामने सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा राजप्रासादों के भीतरी भाग में जाने हेतु ‘गणेश पोल’ का निर्माण करवाया। इस विशाल द्वार को फर्ग्यूसन ने संसार का सर्वोत्कृष्ट प्रवेश द्वार बताया है।

2. शीशमहल :- आमेर महल के आकर्षण में से एक।

निर्माता :- मिर्जा राजा जयसिंह।

अन्य नाम :- ‘दीवाने खास’, जयमन्दिर।

– यह भीतरी दीवारों पर शीशे की पच्चीकारी और खुदाई के काम के कारण यह ‘शीशमहल’ के नाम से प्रसिद्ध है।

– 2 मंजिला :- भूतल पर बना भवन – जयमंदिर

प्रथम मंजिल पर बना भवन – जसमंदिर

– दीवान-ए-खास (शीश महल) में राजा अपने खास मेहमानों तथा दूसरे देशों के राजदूतों से मिलते थे।

– कवि बिहारी ने शीशमहल को दर्पण धाम कहा।

– इसके सामने बुखारा उद्यान स्थित है।

– 12 रानियों का महल शीशमहल के निकट ही आमेर दुर्ग में स्थित है।

3. सिटी पैलेस :- निर्माता :- सवाई जयसिंह

निर्देशनकर्ता :- विद्याधर भट्‌टाचार्य

निर्माण वर्ष :- 1729-34

वास्तुकार :- याकूब।

अन्य नाम :- चन्द्रमहल, सतखणा महल, राजमहल।

– यह जयपुर राजपरिवार का निवास स्थान था।

– 7 मंजिल :- 1. चन्द्र मंदिर (सबसे नीचली मंजिल) 2. सुख निवास 3. रंग मंदिर 4. शोभा निवास 5. छवि निवास 6. श्रीनिवास 7. मुकुट मंदिर।

– गंगाजलि :- चन्द्र महल के दीवाने-खास में रखे चाँदी के दो बड़े कलश।

– उदयपोल :- सिटी पैलेस में प्रवेश के लिए बने 7 द्वारों में से एक द्वार, जिसका निर्माण 1900 ई. में महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय ने करवाया था।

– सिरह-ड्योढ़ी :- सिटी पैलेस का पूर्वी प्रवेश द्वार।

– इस महल में स्थित दीवाने-आम में महाराजा का निजी पुस्तकालय (पोथीखाना) एवं शास्त्रागार है।

– इस पैलेस में रखे विश्व के सबसे बड़े चाँदी के पात्र और बीछावत पर बारीक काम (सुई से बना चित्र) विश्व प्रसिद्ध है।

– इस महल को सन् 1959 में स्व. महाराजा मानसिंह द्वितीय द्वारा संग्रहालय का रूप दिया गया।

– सर्वतोभद्र महल :- सिटी पैलेस परिसर में स्थित इस महल को दीवाने खास भी कहा जाता है। इसी के पास तालकटोरा झील के किनारे बादल महल स्थित है।

– अन्य नाम :- सबरता।

4. मुबारक महल :- सिटी पैलेस में स्थित महल।

निर्माता :- सवाई माधोसिंह द्वितीय द्वारा।

निर्देशनकर्ता :- सर स्वींटन जैकब।

समय :- 1900 ई.

इसका निर्माण रियासत के मेहमानों के ठहरने के लिए किया गया।

यह महल मुगल, यूरोपिय और राजपूत स्थापत्य कला का अद्‌भूत समन्वय है।

मुबारक महल के दक्षिण की और पूरबियां की ड्योढ़ी है।

– वीरेन्द्र पोल :- मुबारक महल के पूर्व का विशाल दरवाजा।

5. हवामहल :- जयपुर में।

निर्माता :- सवाई प्रतापसिंह (जयपुर)

वास्तुकार :- लालचन्द

समय :- 1799 ई. में।

– आकार :- श्रीकृष्ण क मुकुट के समान / पिरामिडनुमा।

– खिड़कियों की संख्या :- 953

– पाँच मंजिला :- 1. शरद मंदिर – (सबसे नीचली) 2. रतन मंदिर 3. विचित्र मंदिर 4. प्रकाश मंदिर 5. हवा मंदिर (सबसे ऊपरी)

– आनन्द पोल :- हवामहल का प्रवेश द्वार।

– इस महल की सुन्दरता एवं अलंकरण के लिए एडविन अर्नोंल्ड ने लिखा कि ‘अलादीन का जादूगर इससे अधिक मोहक निवास स्थान की सृष्टि नहीं कर सकता था और न ही पेरी बेनान का रजत मुक्ता महल इससे अधिक सुरम्य रहा होगा।’

– हवा महल को 1968 ई. में संरक्षित स्मारक घोषित किया गया।

6. जलमहल :- अवस्थिति :- जयपुर-आमेर मार्ग पर मानसागर झील में स्थित।

निर्माता :- सवाई जयसिंह

यह पानी, प्रकृति और प्राचीनता का अनूठा संगम है। कहा जाता है कि सवाई जयसिंह ने अश्वमेघ यज्ञ में आमंत्रित ब्राह्मणों के भोजन व विश्राम की व्यवस्था इसी महल में करायी थी।

सवाई प्रतापसिंह ने इन महलों को आधुनिक रूप दिया।

7. सिसोदिया रानी का महल :- जयपुर में।

निर्माता :- सवाई जयसिंह (द्वितीय)।

यह सन् 1728 ई. में ‘सिसोदिया रानी चन्द्र कुंवरी’ के लिए बनाया गया।

– महल की भीतरी दीवारों पर म्यूरल पेंटिंग में शिकार के दृश्य और राधा-कृष्ण के चित्र बने हएु हैं।

– इसी महल में सिसोदिया रानी ने माधोसिंह प्रथम को जन्म दिया।

8. सामोद महल :- जयपुर से 40 Km पूर्व में स्थित इस महल का निर्माण राजा बिहारीदास ने सन् 1645 ई. से 1652 ई. के मध्य करवाया। महल का मुख्य आकर्षण शीशमहल है। शीशमहल का निर्माण रावल शिवसिंह ने 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में करवाया। सामोद में कलात्मक एवं विशाल महलों में चित्रकारी के अलावा काँच और मीनाकारी का बेमिसाल काम है। यहाँ सुल्तान महल भी दर्शनीय है। सामोद में सात बहनों का मंदिर भी है।

9. मोती डूंगरी महल :- जयपुर में

निर्माता :- सवाई माधोसिंह द्वारा।

यह प्राचीन स्कॉटिश किले के रूप में निर्मित करवाया गया, जिसे सवाई मानसिंह की तीसरी पत्नी गायत्री देवी ने सुसज्जित करवाया। यहाँ का तख्तेशाही महल प्रसिद्ध है। मोती की भाँति दिखाई देता है। इसकी तलहटी में गणेशजी का सुप्रसिद्ध मंदिर है। तख्तेशाही महल का निर्माता सवाई माधोसिंह था।

10. रामबाग पैलेस :- जयपुर में राज्य के अतिविशिष्ट व सम्मानीय अतिथियों के ठहरने के लिए सवाई रामसिंह द्वितीय द्वारा रामबाग पैलेस का निर्माण किया गया।

11. बादल महल :- जयपुर में सवाई जयसिंह द्वितीय ने 1890 में बनवाया।

12. 24 रानियों का महल :- आमेर (जयपुर) में।

13. एक समान नौ महल जयपुर के नाहरगढ़ दुर्ग में हैं। इन नौ महलों का निर्माण सवाई माधोसिंह द्वितीय ने करवाया था।

अलवर :-

1. विजय मंदिर पैलेस :- 1918 में अलवर महाराजा जयसिंह द्वारा विजयसागर झील के तट पर निर्मित।

इस महल में सीताराम का भव्य मंदिर है।

झील के निकट बने इस मनोहारी भवन की दीवारें धार्मिक एवं पौराणिक संदर्भों पर आधारित भित्ति चित्रों से अलंकृत हैं।

2. सरिस्का पैलेस :- अलवर-जयपुर सड़क मार्ग पर अलवर से 35 किमी. दूर स्थित।

निर्माता :- महाराजा जयसिंह द्वारा।

जयसिंह ने इसका निर्माण ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग की शिकार यात्रा के उपलक्ष्य में करवाया था।

वर्तमान में ‘होटल-सरिस्का पैलेस’ में परिवर्तित।

3. सिटी पैलेस (अलवर) :- इसका निर्माण अलवर राजा बख्तावरसिंह द्वारा 1793 ई. में करवाया। इस पैलेस के एक और मूसी महारानी की छतरी है तथा उसके पास ही सागर झील है। इस महल के निर्माण में मुगल व राजपूत स्थापत्य शैली का मिश्रण देखने को मिलता हैं। इस महल का चतुष्कोणीय प्रांगण बहुत ही भव्य है। इस महल में मुहम्मद गौरी, अकबर, जहाँगीर व औरंगजेब की तलवारें मुख्य आकर्षण है। इस महल में एक ऐसी म्यान है जिसमें दो तलवारें रखी जा सकती हैं।

4. सिलीसेढ़ महल :- अलवर में

महाराजा विनयसिंह द्वारा अपनी रानी शीला के लिए 1844 ई. में सिलीसेढ़ झील के किनारे निर्मित भव्य महल। 6 मंजिला इस सुन्दर महल को राजस्थान पर्यटन विकास निगम (RTdc) ने वर्तमान में एक लोकप्रिय मोटेल का रूप दे दिया है।

ध्यातव्य है कि सिलीसेढ़ झील को ‘राजस्थान का नन्द कानन’ कहा जाता है।

5. ईटराणा की कोटी :- अलवर में।

निर्माता :- महाराजा जयसिंह।

उत्कृष्ट जाली झरोखों व तोरणनुमा टोडे से युक्त मनोहारी महल।

6. मोती की डूंगरी (अलवर) :- 1882 ई. में निर्मित।

1928 ई. तक अलवर शासकों का शाही निवास स्थान।

1928 ई. में महाराजा जयसिंह द्वारा इसका जीर्णोद्धार करवाया गया।

अजमेर :-

1. रूठीरानी का महल :- अजमेर में बीसलपुर झील के किनारे अवस्थित महल।

मुगल सम्राट जहाँगीर की बेगम नूरजहाँ जब रुठकर यहाँ चली आई तो जहाँगीर उसे मनाने के लिए 27 बार इस महल में आया। इसलिए यह ‘रुठीरानी का महल’ नाम से प्रसिद्ध हो गया।

ध्यातव्य है कि रुठीरानी के अन्य महल जयसमन्द (उदयपुर) एवं मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) में हैं। उदयपुर के रुठीरानी महल का निर्माता महाराणा जयसिंह था।

2. मानमहल :- पुष्कर (अजमेर) में आमेर के राजा मानसिंह द्वारा निर्मित।

वर्तमान में होटल सरोवर के रूप में प्रसिद्ध।

झुंझुनूं :-

खेतड़ी महल :- झुंझुनूं में।

निर्माता :- भोपालसिंह (खेतड़ी महाराजा)

महाराजा ने इस महल का निर्माण अपने ग्रीष्मकालीन विश्राम हेतु करवाया।

उपनाम :- राजस्थान का दूसरा हवामहल (खिड़कियों व झरोखों से सुसज्जित होने के कारण)

इस बहुमंजिले महल में लखनऊ जैसी भूल-भूलैया एवं जयपुर के हवामहल की झलक देखने को मिलती है।

जोधपुर :-

1. उम्मेद भवन :- महाराजा उम्मेदसिंह द्वारा निर्मित भव्य राजप्रसाद।

 इस महल की नींव 18 नवम्बर, 1929 को रखी गई और यह 1940 ई. में पूर्ण हुआ।

– यह महल छीतर पत्थर से निर्मित होने के कारण छीतर पैलेस भी कहलाता है।

– इस महला का निर्माण अकाल राहत कार्यों के तहत सम्पन्न हुआ था।

– यह भवन इंडो-डेको स्टाइल (Bealex Arts Style) में निर्मित किया गया।

– वास्तुविद् :- सर सैमुअल स्विंटन जैकब एवं विद्याधर।

– इंजीनियर :- हेनरी वॉगन लेंचेस्टर।

– यह विश्व का सबसे बड़ा रिहायशी महल है।

– वर्तमान में उम्मेद भवन में संग्रहालय, थियेटर, केन्द्रीय हॉल व उद्यान दर्शनीय है।

– इस भवन में घड़ियों का एक संग्रहालय भी है।

2. अजीत भवन :- जोधपुर में स्थित भव्य महल।

देश का पहला हैरिटेज होटल।

3. बीजोलाई के महल :- जोधपुर में कायलाना की पहाड़ियों के मध्य महाराजा तख्तसिंह द्वारा निर्मित महल।

4. एक थम्बा महल :- मंडोर (जोधपुर) में।

यह वि. स. 1775 ई. में महाराजा अजीत सिंह के शासनकाल में लाल व बलुआ पत्थरों से निर्मित तीन मंजिला महल है।

अन्य नाम :- प्रहरी मीनार।

5. जनाना व मर्दाना महल :- जोधपुर में महाराजा सूरसिंह द्वारा निर्मित महल।

6. राईका बाग पैलेस :- जोधपुर में महाराजा जसवंत सिंह प्रथम की रानी हाड़ी जी ने 1663 ई. में राईका बाग पैलेस का निर्माण करवाया। महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय इस महल में बैठकर स्वामी दयानन्द के उपदेश सुना करते थे।

7. मोतीमहल, फूलमहल, फतेहमहल, खबका महल, बिचला महल, जनाना महल, चोकेलाव महल मेहरानगढ़ दुर्ग (जोधपुर) में स्थित है।

उदयपुर :-

1. राजमहल :- पिछोला झील के तट पर स्थित राजमहल का निर्माण राणा उदयसिंह ने करवाया था।

 प्रसिद्ध इतिहासकार फर्ग्यूसन ने इन्हें ‘राजस्थान के विंडसर महलों’ की संज्ञा दी।

यह महल दो हिस्सों (मर्दाना महल एवं जनाना महल) में विभाजित है। राजमहल में मयूर चौक पर बने 5 मयूरों का सौन्दर्य अनूठा है। इसी महल में महाराणा प्रताप का वह ऐतिहासिक भाला रखा है जिससे हल्दीघाटी युद्ध में आमेर के मानसिंह पर प्रताप ने वार किया था।

2. जगनिवास पैलेस :- पिछोला झील के मध्य स्थित।

इसका निर्माण 1746 ई. में महाराणा जगतसिंह द्वितीय द्वारा करवाया गया।

एक टापू पर बने इस महल के चारों ओर पानी है।

प्राचीन महलों में संगमरमर का बना हुआ ‘धोला महल’ देखने योग्य है।

3. जगमंदिर पैलेस :- पिछोला झील के मध्य महाराणा अमरसिंह प्रथम द्वारा इस महल को बनाना प्रारम्भ किया गया जिसे महाराणा कर्णसिंह ने पूर्ण किया।

जहाँगीर के विरुद्ध विद्रोह करने के बाद शाहजदा खुर्रम (शाहजहाँ) ने इसी महल में शरण ली थी।

माना जाता है कि इसी महल की भव्यता को देखकर ताजमहल का स्मारक बनाने की प्रेरणा मिली।

इसी महल में ‘बाबा गफूर की मजार’ है।

(4) सज्जनगढ़ पैलेस :- उदयपुर में फतेहसागर सागर के पीछे एक ऊँची पहाड़ी की चोटी पर स्थित सज्जनगढ़ पैलेस का निर्माण महाराणा सज्जनसिंह ने करवाया। इस महल का निर्माण महाराणा फतेहसिंह ने पूरा करवाया। इस पैलेस को ‘मानसून पैलेस’ भी कहा जाता है।

5. खुश महल :- उदयपुर में महाराणा सज्जनसिंह द्वारा निर्मित।

6. महाराज कुमार के महल :- उदयपुर में जयसमन्द झील के किनारे महाराजा फतेहसिंह द्वारा निर्मित महल।

7. मोतीमहल, धोलामहल, सात मंजिला प्रासाद उदयपुर में ही है।

झालावाड़ :-

1. काष्ठ प्रासाद :- झालावाड़ में स्थित महल।

 लकड़ी से निर्मित यह महल राव राजेन्द्रसिंह द्वारा 1936 ई. में बनवाया गया।

 यह महल लगभग 3500 वर्ग फुट में फैला हुआ है।

 गढ़ पैलेस भवन :- 1838 ई. में झाला राजा मदनसिंह द्वारा निर्मित। गढ़ पैलेस चौकोर है तथा इसके तीन द्वार हैं।

टोंक :-

1. सुनहरी कोठी :- टोंक की सुनहरी कोठी का निर्माण सन् 1824 ई. में नवाब अमीर खाँ द्वारा प्रारम्भ किया गया जो 1834 ई. में टोंक नवाब वजीरुद्दौला खाँ के समय पूर्ण हुआ।

 इस कोठी की दूसरी मंजिल का निर्माण नवाब इब्राहिम खाँ ने 1870 ई. में करवाया। इसका सबसे पहले नाम ‘जरनिगार’ रखा गया।

 सुनहरी कोठी में स्वर्ण की नक्काशी व चित्रकारी का कार्य नवाब इब्राहिम खाँ ने करवाया।

 नवाब इब्राहिम खाँ ही सुनहरी कोठी के वास्तविक निर्माता माने जाते हैं।

 सुनहरी कोठी की दीवार एवं छतों में काँच, रत्न जड़ित सोने की बेल, बूटियाँ, फूल, पच्चीकारी एवं मीनाकारी का कलात्मक स्वरूप आज भी आकर्षण है।

 यह पूर्व में ‘शीशमहल’ के नाम से जानी जाती थी।

2. मुबारक महल :- टोंक जिले में सुनहरी कोठी के दायरे में स्थित है, जिसमें बकरा ईद के अवसर पर ऊँट की कुर्बानी दी जाती थी। यह महल ऊँट की कुर्बानी के लिए प्रसिद्ध है।

3. राजमहल :- देवली (टोंक) के 12 किमी. दूर स्थित महल। यह महल बनास, खारी एवं डाई के त्रिवेणी संगम पर स्थित है।

कोटा :-

1. अभेड़ा महल :- कोटा के पास चम्बल नदी के किनारे स्थित ऐतिहासिक महल जिसे राज्य सरकार पर्यटक केन्द्र के रूप में विकसित कर रही है।

2. अबली (अमली) मीणी का महल :- मुकुन्दसिंह द्वारा अपनी चहेती पासवान अबली (अमली) मीणी के लिए बनवाया गया महल। कर्नल जेम्स टॉड ने इस महल को ‘राजस्थान का दूसरा या छोटा ताजमहल’ की संज्ञा दी।

3. कोटा का हवामहल :- कोटा दुर्ग के मुख्य प्रवेश द्वार के पास ही महाराव रामसिंह द्वितीय द्वारा निर्मित महल।

4. गुलाब महल :- महाराव जैत्रसिंह हाड़ा द्वारा कोटा में निर्मित महल।

5. छत्रविलास महल :- महाराव दुर्जनशाल द्वारा कोटा में निर्मित महल।

बूँदी :-

1. राजमहल (गढ़ पैलेस) :- राजमहल में छतरमहल, दीवाने आम, रंगविलास, अनिरुद्ध महल दर्शनीय है। यह बूँदी का राजप्रासाद है।

2. सुखमहल :- बूँदी में जैतसागर झील के निकट स्थित सुखमहल का निर्माण राजा विष्णुसिंह ने करवाया।

3. रतनदौलत दरीखाना :- बूँदी राजप्रासाद में स्थित महल, जिसमें बूँदी नरेशों का राजतिलक होता था। इसी महल के पास में चित्रशाला व अनिरुद्ध महल बने हुए हैं।

4. रंगमहल :- बूँदी महाराव छत्रशाल द्वारा निर्मित।

 भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध महल।

 इस महल की भित्ति चित्रों में धार्मिक, ऐतिहासिक एवं शिकार संबंधी दृश्य चित्रित किये गये हैं।

 बूँदी के अन्य महलों में दुर्गमहल, उम्मेद महल, छत्रमहल, रंगविलास महल आदि प्रमुख हैं।

जैसलमेर :-

1. बादल विलास महल :- जैसलमेर के महारावलों के निवास हेतु सिलावटों द्वारा 1844 ई. में बादल विलास महल का निर्माण किया गया जिसे उन्होंने तत्कालीन महारावल वैरीशाल को भेंट कर दिया। बादल विलास में बना पाँच मंजिला ताजिया टॉवर दर्शनीय है।

 जैसलमेर के अन्य महलों में सर्वोत्तम विलास महल, राजविलास महल, जवाहर विलास महल तथा रंगमहल प्रमुख है।

डूंगरपुर :-

1. एकथम्बिया महल :- डूंगरपुर के गैबसागर झील के तट पर उदयविलास राजप्रासाद में स्थित शिवालय, जिसका निर्माण महारावल शिवसिंह द्वारा अपनी माता राजमहिषी ज्ञानकुंवरी की स्मृति में करवाया। इसे ‘कृष्ण प्रकाश’ भी कहा जाता है।

2. जूना महल :- डूंगरपुर में धन माता पहाड़ी पर निर्मित इस मंदिर की नींव 12वीं सदी के अंत में महारावल वीर सिंह ने रखी। यह महल आकर्षक भित्ति चित्रों एवं शीशे के कार्यों से अलंकृत हैं। 7 मंजिला महल के चोकोर खम्भे, छज्जे, झरोखे व बारीक काम वाली जालियाँ राजपूत स्थापत्य कला का सुन्दर नमूना पेश करती है।

3. बादल महल :- गैब सागर झील के किनारे स्थित इस महल का निर्माण महारावल वीर सिंह ने करवाया। दुमंजिले बादल महल में 6 गोखड़े व प्रवेश द्वार हैं।

4. उदयविलास पैलेस :- डूंगरपुर में गैबसागर के तट पर स्थित इस महल का निर्माण महारावल उदयसिंह ने करवाया। सफेद संगमरमर और नीले पत्थर से बना यह महल पाषाण कारीगरी का नायाब नमूना है।

बाँसवाड़ा :-

1. नृपति निवास :- महारावल पृथ्वीसिंह द्वारा बाँसवाड़ा में कागदी नदी के तट पर स्थित महल।

2. सरिता निवास :- महारावल पृथ्वीसिंह द्वारा विट्‌ठलदेव गाँव (बाँसवाड़ा) में निर्मित महल।

3. कुशलबाग महल

4. राजमंदिर :- अन्य नाम :- सिटी पैलेस। यह बाँसवाड़ा के राजाओं का शाही निवास था।

डीग (भरतपुर) :-

 डीग भरतपुर जिले का महत्वपूर्ण ऐतिहासिक नगर है। यह नगर भव्य जल महलों के लिए प्रसिद्ध है। डीग को जलमहलों की नगरी कहा जाता है। डीग के जलमहल का सर्वप्रथम 1725 ई. में राजा बदनसिंह ने करवाया।

 डीग के महलों में गोपाल भवन, केशव-भवन, किशन भवन, नंदभवन, सूरज भवन तथा सावन भादों महल प्रमुख हैं।

 इसके बाद डीग के जलमहल का निर्माण भरतपुर के जाट राजा सूरजमल ने 1755 ई. से 1765 ई. के मध्य करवाया।

(क) गोपाल भवन :- डीग के महलों में सबसे अधिक भव्य व बड़ा।

 इसका निर्माण महाराजा बदनसिंह ने शुरु करवाया जिसे महाराजा सूरजमल ने पूर्ण करवाया।

 यहाँ शाहजहाँ का संगमरमर का झुलेनुमा सिंहासन है।

– डीग के महल अपनी विशालता, उत्कृष्ट शिल्प सौन्दर्य तथा इनके बीच स्थित मुगल शैली के सुन्दर उद्यान एवं फव्वारों के लिए काफी प्रसिद्ध है।

अन्य महल स्थापत्य :-

1. सरदार निवास महल :- बनेड़ा (भीलवाड़ा) में राजा सरदार सिंह द्वारा निर्मित महल।

2. पद्‌मिनी महल :- चित्तौड़गढ़ में रावल रतनसिंह द्वारा निर्मित महल।

3. स्वरूप निवास महल :- सिरोही में महाराजा स्वरूपसिंह द्वारा निर्मित ।

4. केसर विलास महल :- सिरोही में महाराजा केसरसिंह द्वारा निर्मित।

5. झाला रानी का मालिया :- कुम्भलगढ़ में राणा कुम्भा द्वारा निर्मित।

6. मृगया महल :- बयाना (भरतपुर) में।

7. बुलानी महल :- जोधपुर में महाराजा जसवंतिसंह द्वारा निर्मित।

8. लालगढ़ पैलेस :- बीकानेर में स्थित बलुआ पत्थर से निर्मित इस इमारत का निर्माण महाराजा गंगासिंह द्वारा अपने पिता लालसिंह की स्मृति में करवाया गया। इस महल में ‘अनूप संस्कृत लाइब्रेरी’ एवं ‘सार्दुल संग्रहालय’ है। लालगढ़ पैलेस का उद्‌घाटन 24 नवम्बर, 1915 को भारत के वायसराय लॉर्ड हार्डिग्ज द्वारा किया गया। यह पैलेस दुलमेरा की खानों से लाए गए लाल पत्थर से बनाया गया है। इसकी डिजाइन सर स्विंटन जैकब ने बनाई। यहाँ 1974 ई. से लालगढ़ पैलेस होटल प्रारम्भ किया गया।

9. फतेह प्रकाश महल, गोरा-बादल महल चित्तौड़गढ़ दुर्ग में है।

10. खातड़ रानी का महल :- चित्तौड़गढ़ दुर्ग में पद्‌मिनी के महलों के पीछे महाराणा क्षेत्रसिंह की पासवान कर्मा खाती के महल है, जिसे ‘खातड़ रानी का महल’ कहते हैं।

11. खानपुर महल :- धौलपुर में स्थित यह महल मुगल बादशाह शाहजहाँ का आरामगाह था। इस महल के पास ही तालाब-ए-शाही झील है। इस महल का निर्माण 1622 ई. में जहांगीर के मनसबदार सुलेह खाँ खान ने शाहजहाँ हेतु करवाया।

12. रावत पैलेस :- करौली में लाल व सफेद पत्थरों से निर्मित राजमहल।

13. किशोरी महल :- भरतपुर में निर्मित।

14. जोगी महल :- रणथम्भौर (सवाईमाधोपुर) राष्ट्रीय उद्यान में निर्मित।

15. मालजी का कमरा :- चूरू में।

हवेली स्थापत्य :-

 हवेली शब्द का शाब्दिक अर्थ ‘बंद जगह’ होता है जिसका प्रयोग भारत में सामान्यत: किसी ऐतिहासिक और वास्तुकला महत्ता के निजी आवास के लिए प्रयुक्त किया जाता था।

 राजस्थान में हवेली स्थापत्य कला का विकास स्वतंत्र रूप से हुआ। हवेली निर्माण में मुख्य योगदान राजस्थान के सेठ-साहूकारों का रहा है। हवेली स्थापत्य कला का विकास विशेषकर 17वीं-18वीं सदी में हुआ। राजस्थान में हवेली के प्रमुख द्वार के अगल-बगल के कमरे, सामने चौबारा, चौबारे के अगल-बगल व पृष्ठ में कमरे होते थे। राजस्थान में मरु क्षेत्र की हवेलियाँ अपनी पत्थर की जाली व कटाई के कारण तथा पूर्वी राजस्थान व हाड़ौती की हवेलियाँ अपनी कलात्मक संगतरासी के लिए प्रसिद्ध है। शेखावटी की हवेलियाँ फ्रेस्कों पेंटिंग (भित्ति चित्रण) के लिए जानी जाती हैं। राजस्थान की हवेलियाँ अपने छज्जों, बरामदों और झरोखों पर बारीक व उम्दा नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है। राजस्थान में जैसलमेर को हवेलियों का शहर तथा बीकानेर को हजार हवेलियों का शहर कहा जाता है।

जैसलमेर की हवेलियाँ :- आकार में राजस्थान के सबसे बड़े जिले जैसलमेर को हवेलियों की नगरी के रूप में जाना जाता है। जैसलमेर की हवेलियाँ पत्थरों की कटाई एवं जालियों के लिए प्रसिद्ध है। जैसलमेर में पटवों की हवेली, सालिमसिंह की हवेली, नथमल की हवेली स्थित है।

(i) पटवों की हवेली :- जैसलमेर नगर के बीचों-बीच में स्थित पटवों की हवेली का निर्माण सेठ गुमानचन्द बापना द्वारा 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में करवाया गया। यह हवेली अपनी शिल्पकला, नक्काशी एवं पत्थर में बारीक कटाई के लिए प्रसिद्ध है। 5 मंजिला एवं 66 झरोखों से युक्त यह सबसे बड़ी हवेली है। इस हवेली में हिन्दू, ईरानी, यहूदी व मुगल स्थापत्य कला का सुन्दर समन्वय है। पटवों की हवेली विश्व की एकमात्र हवेली है जिसकी खिड़कियाँ पत्थर की बनी हुई हैं। पटवों की हवेली पाँच हवेलियों से मिलकर बनी हैं। इनकी पहली हवेली को ‘कोठारी की पटवा हवेली’ कहते है। इसकी पहली मंजिल में नाव तथा हस्ती-हौपे के आकार के गवाक्ष है, दूसरी मंजिल में मेहराबदार सुन्दर छज्जे हैं, तीसरी मंजिल पर षट्कोणीय छज्जे हैं। इसमें एक हवेली के ‘दीपघरों’ के शीशों पर ग्वालियर के मराठा शासक महादजी सिन्धिया को अंकित किया गया है।

(ii) सालिमसिंह की हवेली :- जैसलमेर के प्रधानमंत्री सालिमसिंह द्वारा 18वीं सदी में निर्मित की गई। 5 मंजिला हवेली अपनी पत्थर की नक्काशी एवं महीन जालियों के लिए प्रसिद्ध हैं। इसकी पाँचवी मंजिल को मोतीमहल या जहाज महल कहते है। सबसे ऊपरी मंजिल पर रथाकार झरोखे हैं। मोतीमहल के ऊपर लकड़ी की दो मंजिलें और भी बनाई गयी थी जो क्रमश: शीशमहल और रंगमहल कहलाती थीं लेकिन राजकीय कोप के कारण तुड़वा दिया गया था। इसे 9 खण्डों वाली हवेली भी कहते हैं।

(iii) नथमल की हवेली :- 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में पीले रंग के पत्थरों से निर्मित 5 मंजिली हवेली। इस हवेली का निर्माण महारावल बैरीसाल के समय हुआ है। इस हवेली के शिल्पकार ‘हाथी’ एवं ‘लालू’ थे। हवेली के प्रवेश द्वार के दोनों छोरों पर दो अलंकृत हाथी बने हुए हैं।

 जैसलमेर की सभी हवेलियों में शिल्पकारों द्वारा चौरस गोलाकार, अर्द्धचन्द्राकार, अष्टकोण, षटकोण, पंचकोण एवं त्रिकोणीय खुदाई का शानदार काम किया जाता है। पीले पत्थरों पर कमल, लता, वल्लरी वृक्ष, कलश आदि आकृतियाँ देखने को मिलती हैं। सभी जालियों में एक ही पत्थर का प्रयोग तथा ज्यामितिक आकारों की प्रधानता जैसलमेर हवेलियों की विशेषताएँ हैं।

बीकानेर की हवेलियाँ :-

(i) बच्छावतों की हवेली :- बीकानेर की सबसे पुरानी हवेली।

 इस हवेली का निर्माण 1593 ई. में कर्णसिंह बच्छावत ने करवाया था।

 लाल पत्थर से निर्मित।

(ii) रामपुरिया की हवेलियाँ :- ये हवेलियाँ रामपुरिया मोहल्लों की एक गली में क्रमबद्ध रूप से निर्मित है। यह हवेलियाँ अपने विशाल आँगन और स्थापत्य कला के करण विश्व विख्यात है। बच्छावतों की हवेलियों में सेठ भंवरलालजी रामपुरिया की हवेली, हीरालाल रामपुरिया की हवेली, माणिकचंद रामपुरिया की हवेली प्रमुख है।

 मोहता, मूंदड़ा, डागा, गुलेच्छा, बागड़ी, रिखजी, कोठारी, सेठिया, बांठिया, ओसवाल एवं माहेश्वरी की हवेलियाँ बीकानेर की महत्वपूर्ण हवेलियाँ हैं।

– लक्ष्मीनारायण डागा की हवेली को गोल्डन किंग की हवेली के रूप में जाना जाता है।

– सेठ चाँदमल ढड्‌ढा की हवेली बीकानेर में है।

– रिखजी बागड़ी की हवेली (3 मंजिला) बीकानेर में है।

– पूनमचंद जी कोठारी की हवेली बीकानेर में है। यह हवेली तितलीनुमा है। इस हवेली में सारा पत्थर दुलमेरा का है। इस हवेली के निर्माता भूधर जी चलवा थे।

– भैरोंदान जी कोठारी की हवेली (बीकानेर में) शाहजहाँ कालीन मुगल इमारतों की याद को ताजा कर देती है।

– बीकानेर के लाखोटिया चौक की हवेली में सेठ मुरलीधर मोहता की हवेली, हनुमानदास मोहता की हवेली, शिवदास जी माणकलाल जी बिन्नाणी की हवेली प्रमुख है।

– सेठ रामगोपाल गोवर्धनदास मेहता की हवेली बीकानेर में है।

 बीकानेर की हवेलियों की सजावट में मुगल, किशनगढ़, यूराेपीय चित्र शैली का प्रयोग किया गया है। बीकानेर की हवेलियों में ज्यामितीय शैली की नक्काशी है एवं आधार को तराश कर बेल-बूटे, फूल, पत्तियाँ आदि उकेरे गये हैं।

 वर्ष 2012 में बीकानेर की हवेलियों को ‘वर्ल्ड मोन्यूमेंट वाच’ कार्यक्रम में शामिल किया गया था।

जोधपुर की हवेलियाँ :- जोधपुर की हवेलियों में पुष्य हवेली, पाल हवेली, बड़े मियां की हवेली, पोकरण की हवेली, पच्चीसा हवेली, राखी हवेली प्रमुख है।

 पुष्य हवेली विश्व का ज्ञात एकमात्र ऐसा भवन है जो एक ही नक्षत्र पुष्य नक्षत्र से बना है।

 पुष्य हवेली का निर्माण महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय के कामदार रघुनाथमल जोशी (भूरजी) ने करवाया था।

 खीचन (जोधपुर) में लाल पत्थरों की गोलेच्छा एवं टाटिया परिवारों की हवेलियाँ कलात्मक दृष्टि से अनुपम है।

शेखावटी की हवेलियाँ :- शेखावटी की हवेलियों का निर्माण भारतीय वास्तुकाल की हवेली शैली स्थापत्य कला की विशेषताओं के अनुरूप हुआ है। रामगढ़, नवलगढ़, मण्डावा, मुकुन्दगढ़, पिलानी आदि कस्बों की उत्कृष्ट हवेलियां हैं जो अपने भित्ति चित्रण के लिए विश्व विख्यात है।

 रामगढ़ शेखावटी धनाढ्य सेठों की नगरी कहलाती है। शेखावटी की हवेलियों के भित्ति चित्रण में पौराणिक, ऐतिहासिक विविध विषयों का चयन, स्वर्ण व प्राकृतिक रंगों का प्रयोग तथा फ्रेस्कों बुनों, फ्रेस्को सेको व फ्रेस्को सिम्पल विधियों का प्रयोग किया गया है।

 झुंझुनूं की इसरदास मोदी की हवेली शताधिक खिड़कियों के लिए विश्वविख्यात है।

नवलगढ़ :- झुंझुनूं का शहर जिसमें निम्नलिखित हवेलियाँ हैं –

 (i) पौद्दारों की हवेली

 (ii) भगतों की हवेलियाँ

 (iii) टीबड़े वाला की हवेलियाँ

 (iv) बघेरियों की हवेलियाँ। भगेरियां की हवेली।

 (v) आठ हवेली कॉम्प्लेक्स

 (vi) चौखानी परिवार की हवेली

 (vii) रुपनिवास महल हवेली

 (viii) खुर्रेदार चबूतरों की हवेलियाँ

 (ix) मोरारका की हवेली

 ध्यातव्य है कि नवलगढ़ को हवेलियों का नगर अथवा शेखावटी की स्वर्ण नगरी कहा जाता है।

बिसाऊ (झुंझुनूं) :-

 (i) नाथूराम पोद्दार की हवेली

 (ii) सेठ जयदयाल केड़िया की हवेली

 (iii) सीताराम सिगतिया की हवेली

 (iv) सेठ हीरालाल – बनारसीलाल की हवेली।

महनसर :- (i) सोने-चाँदी की हवेली।

मण्डावा :- (i) सागरमल लाडिया की हवेली

 (ii) रामदेव चौखाणी की हवेली

 (iii) रामनाथ गोयनका की हवेली।

पिलानी (झुंझुनूं) :- बिरला हवेली।

डूंडलोद (झुंझुनूं) :- (i) सेठ लालचन्द गोयनका की हवेली।

मुकुन्दगढ़ (झुंझुनूं) :- (i) सेठ राधाकृष्ण की हवेली।

 (ii) केसरदेव कानोड़िया की हवेली।

चिड़ावा (झुंझुनूं) :- (i) बागड़ियों की हवेली।

 (ii) डालमिया की हवेली।

सीकर :-

श्रीमाधोपुर :- (i) पंसारी की हवेली।

लक्ष्मणगढ़ :- (i) केड़िया की हवेली

 (ii) राठी की हवेली

 (iii) रोनेड़ी वालों के चौक की हवेली

 (iv) जिजोड़िया हवेली

 (v) शिवनारायण मिर्जामल कायला की हवेली

 (vi) तोलाराम परशुराम पुरिया की हवेली

रामगढ़ :- (i) बैजनाथ रुइयाँ की हवेली

 (ii) ताराचन्द रुइया की हवेली

 (iii) खेमका सेठों की हवेलियाँ

 सीकर में बिनाणियों की हवेली एवं नई हवेली समकालीन भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध है।

चूरू :-

 1. मालजी का कमरा :- मालचंद कोठारी द्वारा निर्मित।

 2. रामनिवास गोयनका की हवेली

 3. मंत्रियों की हवेली

 4. सुराणों की हवेली :- चूरू की इस हवेली में 1100 से ज्यादा दरवाजे एवं खिड़कियाँ हैं।

 दानचंद चोपड़ा की हवेली सुजानगढ़ (चूरू) में स्थित है।

उदयपुर :-

 1. बागौर की हवेली :- उदयपुर में पिछौला झील के निकट बागौर की हवेली का निर्माण ठाकुर अमरचंद बड़वा ने करवाया। इस हवेली में 138 कमरे बने हुए हैं। 1986 में यहाँ पर पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र को स्थापित किया गया है। इसी हवेली में विश्व की सबसे बड़ी पगड़ी रखी हुई है।

 2. बाफना की हवेली

 3. मोहनसिंह जी की हवेली

 4. पीपलिया की हवेली।

कोटा :-

 1. बड़े देवता की हवेली :- इसे देवता श्रीधरजी की हवेली भी कहा जाता है।

 2. झालाजी की हवेली :- जालिमसिंह द्वारा निर्मित हवेली।

जयपुर :-

 1. पुरोहित जी की हवेली

 2. नाटाणियों की हवेली

 3. ख्वास जी की हवेली

 4. धाबाईजी की दीवान साहब की हवेली।

 5. रत्नाकर पुण्डरीक की हवेली

 6. चूड़सिंह की हवेली (आमेर में)।

 7. नानाजी की हवेली।

झालावाड़ :-

 1. काले बाबू की हवेली

 2. सात खाँ की हवेली

 3. गुलजार हवेली

 4. दीवान साहब की हवेली

अजमेर :-

 1. बादशाह की हवेली। (अकबर के समय निर्मित)

टोंक :-

 1. सुनहरी कोठी (बकरा ईद पर ऊँट की बलि देने के लिए प्रसिद्ध)

 निर्माता :- वजीरुद्दौला खाँ।

करौली :-

 1. वंशी पत्थर की हवेली।

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