विविधता समायोजन का वर्णन कीजिए।

Estimated reading: 1 minute 63 views

किसी भी शाला की किसी कक्षा में पढ़ने वाली छात्र-छात्राएं विभिन्नताएं या विविधताएं रखती हैं। यह विविधता या असमानता निम्नलिखित रूपों में होती है- (1) वैयक्तिक भिन्नता, (2) भाषा संबंधी विविधता, (3) क्षेत्रीय विविधता, (4) धर्म संबंधी विविधता, (5) जाति संबंधी विविधता, (6) जनजातीय विभिन्नता,(7) जेंडर संबंधी विविधता,(8) निःशक्त छात्रों की विविधता इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-

(1) वैयक्तिक विविधता- प्रायः प्रत्येक छात्र अपने में विभिन्नता या असमानता लिए होता है । कुछ विद्यार्थी बुद्धिमान तथा कुछ कम बुद्धि के होते हैं। कुछ बालक ज्ञान को शीघ्र ग्रहण कर लेते हैं परन्तु कुछ जल्दी नहीं सीख पाते । कुछ बालक सामान्य और कुछ असामान्य होते हैं। छात्रों की इस वैयक्तिक तथा शैक्षिक विविधता का प्रभाव उनकी अधिगम क्षमता पर पड़ता है। शिक्षक से कक्षा शिक्षण के समय इन वैयक्तिक भिन्नताओं को ध्यान में रखते हुए शिक्षण के समय इन वैयक्तिक भिन्नताओं को ध्यान में रखते हुए शिक्षण अपेक्षित होता है। बल्कि कम उपलब्धि वाले छात्रों के लिए अतिरिक्त समय में अलिखित कक्षा लगाने की आवश्यकता भी पड़ती है तब ऐसे बालकों का समायोजन होता है।

(2) भाषा संबंधी विविधता- कुछ बालक कक्षा में हिन्दी भाषी न होकर बंगला, मराठी, पंजाबी आदि भाषा बोलने वाले होते हैं । अतः हिन्दी या अंग्रेजी के छात्रों के ज्ञान में विविधता पाई जाती है। शिक्षक बालकों के लहजे (उच्चारण) तथा शब्दोच्चारण से इस विविधता का अनुमान लगा लेते हैं। कुछ बच्चे शिक्षा के माध्यम की भाषा संबंधी अल्पज्ञान के कारण विषय शिक्षण व भाषा शिक्षण को पूर्णतः समझ पाने में असमर्थ रहते हैं। इनके समायोजन हेतु विषय शिक्षकों को बालकों हेतु अपनी भाषा, शिक्षण विधि व कक्षा अन्तक्रिया में कुछ बदलाव होता है। कमजोर भाषा ज्ञान वाले छात्रों को अन्य बालकों के समकक्ष लाने हेतु वाचन, लेखन, भाषण आदि के अभ्यास आवश्यक होते हैं।

(3) क्षेत्रीय विविधता- क्षेत्रगत असमानता के कारण शिक्षा या ज्ञान अर्जित करने में प्रायः ग्रामीण क्षेत्र को आए छात्र होते हैं-उनकी उपलब्धि नगरीय क्षेत्र के बालकों से अपेक्षाकृत कम पाई जाती है। इसका कारण ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा संसाधन, टेक्नोलॉजी, योग्य शिक्षक आदि की निरंतर कमी होना है। विविध विषयों की पाठ्यपुस्तकें भी ग्रामीण क्षेत्र के बालकों को सुलभ नहीं हो पाती है। प्रायः ग्रामीण क्षेत्रों के बालक के माता-पिता अशिक्षित या अल्पशिक्षित होते हैं। क्षेत्रगत इस विविधता के समायोजन के लिए संसाधनों का विकास, पुस्तकालयों का विकास तथा अच्छे योग्य शिक्षकों से शिक्षण आवश्यक है।

(4) कर्म संबंधी विविधता- कक्षा में हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, सिख आदि विभिन्न धर्मों के विद्यार्थी पढ़ते हैं जिनमें जीवन जीने की भिन्न शैली तथा उपासना की भिन्न पद्धतियाँ दिखाई देती हैं। कुछ धार्मिक संप्रदायों विशेषतः अल्पसंख्यकों में पूर्व से ही शिक्षा के प्रति अपेक्षित जागरुकता न होने का उनकी शिक्षा पर कुप्रभाव पड़ा है । ऐसे अभिभावकों के बालकों में शाला पढ़ना छोड़ देने (ड्रॉप आउट) की समस्या भी देखी गई है । ऐसे बालकों को शाला में समायोजित करने हेतु शासन के विभिन्न प्रोत्साहनकारी कार्यक्रम व योजनाएं जैसे छात्रवृत्ति, निःशुल्क शिक्षा, मेरिट स्कॉलरशिप का लाभ दिया जाता है। ऐसे छात्रों को बिना भेदभाव के उनकी धार्मिक मान्यताओं का उपहास किये बिना शाला व कक्षा में समायोजित किया जाना चाहिए।

(5) जाति व जनजाति संबंधी विभिन्नता – आदिवासी तथा अनुसूचित जाति के लोगों में भी शिक्षा का प्रतिशत अन्य उन्नत जातियों से कम है। सदियों की अशिक्षा तथा अज्ञान का बोझ ढोने वाले इन जातियों की अध्ययन योग्य नई पीढ़ी के कई बालक-बालिकाएं प्रथम बार शालाओं में शिक्षा प्राप्त करते देखे गए हैं । शाला छोड्ने (पढ़ाई से ड्रॉप आउट लेने) को समस्या विशेषतः बालिकाओं में इस जाति-जनजाति के बालकों की अपेक्षा अधिक पाई जाती है । इन वंचित वर्ग के जातिगत संस्कारों का प्रभाव भी कुछ बालकों को भाषा, लड़ाई-झगड़ा करने, . अपशब्द बोलने आदि के रूप में दिखाई देता है। शाला तथा कक्षा में इन विविधता वाले वर्ग की शिक्षा के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। शासन की निःशुल्क पाठ्य पुस्तकें, स्टेशनरी, गणवेश (पोशाक) दोपहर का भोजन देने, छात्रवृत्ति, छात्रावास आदि सुविधा का लाभ भी इस श्रेणी के छात्रों हेतु प्रोत्साहनकारी है।

(6) जेंडर संबंधी विविधता- सहशिक्षा वाले विद्यालयों में बालकों के साथ बालिकाएं भी शिक्षा प्राप्त करती हैं अत: बालिकाओं के साथ किसी प्रकार का दुर्व्यवहार न हो इसका शाला प्रशासन को ध्यान रखना चाहिए । बालिकाओं का शिक्षा का प्रतिशत बालकों के शिक्षा के स्तर से निम्न पाया गया है । कई बालिकाएं कुछ कक्षाएं पढ़कर छेड़छाड़, बाल विवाह, सगाई, अनुत्तीर्ण होने, पढ़ाई में मन न लगने, अभिभावकों द्वारा शाला से ड्रॉप लेने की प्रवृत्ति के कारण आगे पढ़ना त्याग देतो हैं । शासन द्वारा बालिकाओं की हितैषी कई योजनाएं बालिका प्रोत्साहन योजना, साइकिल प्रदाय योजना आदि इन बालिकाओं को शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए दी जा रही है। विद्यालय तथा शिक्षकों को बालिकाओं की शिक्षा की ओर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

(7) नि:शक्तजनों की विविधता- नि:शक्त बालक-बालिकाएं उक्त उल्लेखित किसी भी वर्ग की विविधता को हो सकती है। स्वयं बालक/ छात्र को नि:शक्तता भी बहुरूपात्मक व विविधता भरा है । इन विशेष बालकों में (1) शारीरिक रूप से निःशक्त-दष्टिबाधित. श्रवण बाधित अस्थि बाधित, वाणि बाधित, (2) मानसिक रूप से विशिष्ट बालक अतिप्रतिभाशालो, सृजनशील, मंदबुद्धि, (3) शैक्षिक रूप से विशिष्ट बालक-धीमे अधिगमकर्ता, जिसके बालक तथा (4) सामाजिक रूप से विशिष्ट बालक-कुसमायोजित, समस्यात्मक, तिरस्कृत इस श्रेणी में आते है। निःशक्त विशिष्ट बालकों की विशेष शैक्षिक आवश्यकताएं होती हैं । निःशक्त बालकों को भेदभाव रहित, समाज की मुख्य धारा में सम्मिलित करने वाली, समावेशी शिक्षा प्रदान कर समायोजित किया जा रहा है।

Leave a Comment

CONTENTS