विशेष बालकों के संदर्भ में ‘विविधता की समझ’ तथा उसके सम्मान से क्या आशय है?

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विशेष बालकों में विविधता पाई जाती है। यह विविधता शारीरिक, मानसिक संवेगात्मक व सामाजिक हो सकती है। विशेष बालकों की विविधता के रूप हैं-अस्थि बाधित (पैरों या हाथ से विकलांग) श्रवण बाधित, दृष्टिबाधित, मंदबुद्धि,प्रतिभाशाली बालक, सृजनात्मक बालक वंचित या अलाभप्रद बालक, धीमे अधिगमकर्ता इत्यादि । यह विविधता मोटे तौर पर है प्रत्येक अस्थि विकलांग भी अपने आप में विविधता लिये होते हैं। वैयक्तिक विभिन्नता तो प्रत्येक बालक में होती है । इस विविधता के कारण बालकों की शैक्षिक आवश्यकताएं भिन्न-भिन्न होती हैं। इन बालकों की शिक्षा में इस विविधता की समझ की आवश्यकता पड़ती है ताकि उसके अनुकूल शिक्षण विधियों, शिक्षण उपकरणों तथा शाला की अन्य पाठ्यसहगामी क्रियाओं आदि की व्यवस्था की जा सके।

नि:शक्त बालकों की विविधता, उनका उपहास उड़ाने, उन्हें चिढ़ाने, उन्हें अशुभ मानने, उन्हें उपेक्षित या तिरस्कृत करने,उनसे छेड़छाड़ करने,असमानता का व्यवहार करने,उनकी मिमिक्री या नकल उतारने, उनसे भेदभाव करने, उन्हें अपमानित करने, प्रताड़ित करने, आवश्यकता के समय उनकी तत्काल सहायता न करने की रुढ़िवादी विचारधारा तथा दुर्व्यवहार करने के लिए न होकर उनका सम्मान करने की सहानुभूतिपूर्ण मानवतावादी, संवेदनशील तथा सहायता करने वाले व्यवहार से परिपूर्ण होनी चाहिए। निःशक्त बालकों को हीनभावना से देखने दया का पात्र समझने से ऐसे बालकों में कुछ, आत्महीनता, संवेगात्मक व सामाजिक कुसमायोजन उत्पन्न होता है। विशेष बालकों का सम्मान ही उनमें आत्मविश्वास, समाजीकरण तथा समायोजित जीवन उत्पन्न करने में सहायक है। भारत सरकार ने निःशक्त बालकों को समान अवसर, अधिकार संरक्षण तथा पूर्व भागीदारी देने हेतु अधिनियम, 1995 लागू किया है।

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