विशेष बालकों के अभिभावकों तथा शाला के शिक्षकों की साझेदारी की आवश्यकता और प्रासंगिकता बताइए।

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विशेष बालक की प्रगति अभिभावक तथा शिक्षकों के संयुक्त प्रयत्नों से संभव है। जॉर्ज टामिसन ने अभिभावक-शिक्षक के सहयोग को उनकी (बालकों की) शिक्षा हेतु प्रासंगिक बताते हुए लिखा है, “सदा याद रहे कि अभिभावकों तथा अध्यापकों में किसी भी प्रकार का टकराव सदैव छात्रों के अहित में होता है । परस्पर सामंजस्यपूर्ण बर्ताव ही वांछित परिणाम दे सकता है।”

शिक्षक के संपर्क में विशेष बालक पाँच-छह घंटे ही रहते हैं तथा शेष समय वह घर में अभिभावकों के साथ बिताते हैं। दोनों पक्षों के विचार-विमर्श से अपंग बालकों की शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक तथा सामाजिक समस्याओं की अच्छी समझ होती है । डॉ. एस.एन. मुखर्जी के अनुसार, “गृह विद्यालय सहयोग माता-पिता और शिक्षकों के मध्य द्विपक्षीय संप्रेषण (टू वे ट्रेफिक) है । यह तभी प्रभावपूर्ण हो सकता है जब माता पिता, जो कुछ विद्यालय उनके बच्चों के लिए करने का प्रयास कर रहा है, जानने का कष्ट करें। इसके बदले में विद्यालय यह ध्यान रखे कि बच्चा घर पर किस प्रकार जीवन बिताता है।”

शिक्षक तथा विशेष बालकों की साझेदारी से बालक को प्रेरणा प्राप्त होती है। इससे शिक्षा संबंधी कठिनाइयों को दूर करने में सहायता मिलती है । समावेशी शालाओं में समावेशन हेतु भी विशेष बालक के माता-पिता तथा विद्यालय के शिक्षकों में साझेदारी आवश्यक है । दोनों पक्ष मिलकर लाचार अपंग बालक की वैशाखी बन जाते हैं।

विशेष बालक निम्नलिखित प्रकारों की समस्याएं प्रायः देखी गई हैं जिनके निराकरण हेतु आज अभिभावक व शिक्षक साझेदारी की प्रासंगिकता बढ़ जाती है-

(1) शारीरिक समस्याएं- चलने-फिरने, हाथ उंगलियों के उपयोग की कठिनाई, देखने, सुनने में कठिनाई इन असमर्थताओं के प्रतिशत का ज्ञान माता-पिता व शिक्षक दोनों के लिए आवश्यक है।

(2) मानसिक समस्याएं- समझने में कठिनाई, तेज गति से बोले गए शिक्षक के व्याख्यान को समझने में असमर्थता, धीमी स्मरण शक्ति, चिंतन शक्ति का अभाव, ध्यान केन्द्रित न होना, असामान्य व्यवहार करना।

(3) संवेगात्मक समस्याएं- हीन भावना, आत्म विश्वास की कमी, अतिक्रियाशीलता, अत्यधिक क्रोध तथा तोड़-फोड़ करना या लड़ाई झगड़ा करना, चाकू छुरी रखना आदि।

(4) सामाजिक समस्याएं- मित्रों के साथ समायोजन का अभाव, एकांत में रहना, दूसरों के बात करने में झिझकना, शाला से तड़ी मारना, दूसरे बालकों के सामान चुराना, सामाजिक कुसमायोजन आदि।

विशेष बालकों में पाई जाने वाली इन समस्याओं को शिक्षक व अभिभावक मिलकर सुलझाने का प्रयास करें तो छात्र के व्यक्तित्व का समुचित विकास संभव है।

निम्नलिखित प्रयासों से शिक्षक-अभिभावक साझेदारी में सहायता प्राप्त होती है-

(1) अभिभावक दिवस आयोजन- माह में एकबार छात्रों के अभिभावकों को शाला में नियंत्रित किया जाना चाहिए तथा बालक के कक्षा शिक्षक के साथ उसकी बैठकें होनी चाहिए।

इसमें अभिभावक अपनी शिकायत भी रख सकेंगे तथा शिक्षक छात्र को प्रगति की सूचना व आगे के लिए सुझाव दे सकेंगे।

(2) शिक्षक अभिभावक संघ- विद्यालय में शिक्षकों व अभिभावकों के संघ का गठन होना चाहिए जिसकी समय-समय पर नियमित बैठकें हों। यह संघ विद्यालय के भविष्य की प्रगति के साथ बालकों की प्रगति तथा समस्याओं के निपटारे के लिए भी आवश्यक है।

(3) शाला वार्षिकोत्सव, प्रदर्शनी का आयोजन – विद्यालय में होने वाले वार्षिकोत्सव में छात्रों की सांस्कृतिक, साहित्यिक कला संबंधी गतिविधियों को देखने हेतु अभिभावकों को भी निमंत्रण पत्र भेजकर आमंत्रित करना चाहिए । विशेष छात्रों में विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्धि लाने वाले बालकों को इस अवसर पर पुरस्कृत भी किया जाना चाहिए। प्रदर्शनी में छात्रों की कलाकृतियों, चित्रकला की बनाई वस्तुओं आदि को प्रदर्शित करना चाहिए।

(4) विद्यालय पत्रिका का प्रकाशन- विद्यालयीन पत्रिका में उपलब्धि लाने वाले विशेष बालकों के द्वारा चित्र, उनकी रचनाएं, कविता, कहानी, चुटकुले, लेख आदि को स्थान दिया जाना चाहिए।

(5) विशेष बालकों के प्रगति पत्र- प्रत्येक विशेष बालक के शाला में प्रवेश से लेकर विभिन्न गतिविधियों में उसकी भागीदारी, उसके आचरण, विभिन्न विषयों के मासिक परीक्षण में प्राप्तांक की प्रगति शिक्षकों के रिमार्क के साथ उनके अभिभावकों की जानकारी हेतु भेजी जानी चाहिए।

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