विशेष बालकों की मूल्यांकन प्रणाली में अनुकूलन की धारणा को स्पष्ट कीजिए।

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विशेष आवश्यकता वाले बालकों द्वारा पाठ्यक्रम के विषयों के अर्जित ज्ञान, अवबोध क्षमता (बालक की यह क्षमता कि वह सीखी हुई बातों को कितनी प्रकार से व्याख्या कर सकता है), व्यवहार परिवर्तन, अर्जित कौशल, क्रियान्वयन क्षमता, अभिवृत्ति, रुचि, चरित्र, मूल्य, सामाजिक विकास, शारीरिक स्वास्थ्य आदि के आकलन हेतु तथा बालक शैक्षिक उद्देश्य किस सीमा तक अर्जित कर पाया इसकी जाँच हेतु उसका समग्र मूल्यांकन दिया जाता है । मूल्यांकन से यह ज्ञात होता है कि विशेष बालक ने क्या सीखा, कितना सीखा तथा क्या नहीं सीखा। इस मापन के साथ ही मूल्यांकन बालक के विकास के लिए मार्गदर्शन का कार्य भी करता है। जिन क्षेत्रों में बालक उपलब्धि कम प्राप्त कर पाया है उन क्षेत्रों में शिक्षण अधिगम विधि में सुधार भी मूल्यांकन के परिणामों के उपयोग से संभव है।

विशेष बालकों के लिए मूल्यांकन व्यवस्था को उनके अनुकूल बनाने हेतु निम्नलिखित तथ्यों का ध्यान रखा जाना आवश्यक है-

(1) विशेष बालक की उपलब्धि (निष्पत्ति) का मूल्यांकन उसी बालक की पिछली उपलब्धियों से कर यह ज्ञात करना चाहिए कि प्रगति की दशा व दिशा कैसी है। सामान्य बालकों की उपलब्धि के साथ विशेष बालक की स्थिति की तुलना उचित नहीं है क्योंकि विशेष बालकों के सीखने की गति एवं समझ सामान्य बालकों के समान नहीं है। यदि विशेष बालक की तुलना अन्य विशेष बालकों से की जा सकती है।

(2) मूल्यांकन केवल पाठ्यक्रम के निर्धारित विषयों की निष्पत्ति के मापन तक सीमित न होकर बालक के व्यक्तित्व के अन्य पक्षों-सामाजिक, शारीरिक, सांस्कृतिक, क्रियात्मक गतिविधियों से संबंधित होना चाहिए। अर्थात् विशेज बालक का समम मूल्यांकन होना चाहिए।

(3) मूल्यांकन केवल मापन के लिए न होकर मूल्यांकन के परिणामों का उपयोग विशेष बालक के वैयक्तिक शिक्षण में सुधार के लिए होना चाहिए। मूल्यांकन में कमजोर पाए गए पाठ्य विषयों में सुधार लाने हेतु विशेष बालक की उपचारात्मक तथा निदानात्मक कक्षाएं ली जानी चाहिए।

(4) मूल्यांकन के परिणामों के आधार पर विशेष बालक को निर्देशन व परामर्श भी दिया जाना चाहिए।

(5) मूल्यांकन से यह ज्ञात करना चाहिए कि विशेष बालक न्यूनतम अधिगम स्तर प्राप्त कर पाया है या नहीं।

(6) विशेष बालकों को उत्तीर्ण अनुत्तीर्ण घोषित न किया जाए क्योंकि अनुत्तीर्ण होने वाले बालक हताश हो सकते हैं। इसके स्थान पर श्रेणी पद्धति (प्रेडिंग सिस्टम) A, B, C, D, E लागू की जानी चाहिए।

(7) विशेष बालकों के मूल्यांकन से उनकी विशेष समस्याओं तथा विशेष आवश्यकताओं का पता लगाना चाहिए ताकि उनके निराकरण के उपाय किये जाने चाहिए।

(8) विशेष बालकों का मूल्यांकन क्रियात्मक विधि से भी किया जाना चाहिए।

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