शैक्षिक अवसरों की असमानताएं और अलाभान्वित बालक पर संक्षिप्त टिप्पणी (शॉर्ट नोट) लिखिए-

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भारत में शैक्षिक असमानता कई जातियों,वर्गों तथा संप्रदायों में पाई जाती है। राष्टीय शिक्षा नीति 1986 में शैक्षिक विषमताओं का विवरण कर उन्हें इन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है-

(1) बालिकाएं/महिलाएं, (2) अनुसूचित जनजाति, (3) अनुसूचित जाति, (4) पिछड़ा वर्ग, (5) अल्पसंख्यक, (6) विकलांग, (7) निरक्षर प्रौढ़। इन वर्गों की साक्षरता तथा शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों का प्रतिशत अन्य तुलनात्मक वर्ग से कम है जिसमें वृद्धि करने हेतु शैक्षिक अवसरों की समानता हेतु राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास जारी हैं।

अलाभान्वित बालकों से आशय उन बालकों से है जिनकी पूर्व पीढ़ियों ने अशिक्षा और अज्ञान का सदियों से अंधकार देखा है । इस अलाभान्वित या वंचित वर्ग में कुछ उल्लेखित शैक्षिक असमानता वाले वर्गों के बालक सम्मिलित हैं। प्रथम पीढ़ी में शिक्षा प्राप्त करने वाले बालक झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाले निर्धनता के शिकार बालक,खेती बाड़ी तथा उद्योग धंधों में कार्यरत श्रमिक वर्ग के बालक भी अलाभान्वित या वंचित वर्ग के बालक हैं। प्रारंभिक स्तर की प्रारंभिक तथा माध्यमिक शिक्षा भी इन बालकों हेतु दुर्लभ रही है, उच्च शिक्षा की बात दूर है।

इन अलाभान्वित बालकों हेतु अब 14 वर्ष तक की आयु सीमा तक अनिवार्य तथा निःशुल्क शिक्षा का अधिनियम प्रभावी है । अलाभान्वित बालकों को शिक्षा देने हेतु ग्रामों-टोलों में प्रत्येक किलोमीटर पर शासकीय प्राथमिक शालाएं तथा प्रत्येक 5 किलोमीटर पर माध्यमिक शालाएं स्थापित की गई हैं । दर्ज संख्या वृद्धि अभियान चलाए गए हैं। विभिन्न वर्गों के लिए आश्रम (प्राथमिक स्तरीय आवासीय विद्यालय) तथा छात्रावास प्रारंभ किए गए हैं। शालाओं में रोके रखने हेतु तथा दैनिक उपस्थिति बढ़ाने हेतु मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम (MDM) लागू किया गया है। इसके अतिरिक्त निःशुल्क पाठ्य पुस्तक वितरण, गणवेश (स्कूल यूनिफॉर्म) वितरण, छात्रवृत्ति प्रदाय, साइकिल प्रदाय योजना तथा अन्य शिक्षा प्रोत्साहन योजनाएं लागू की गई है। 14 वर्ष की आयु तक शिक्षा को शुल्क मुक्त किया गया है।

इन विविध प्रयासों से अलाभान्वित वर्ग के शिक्षा के अवसरों में वृद्धि हुई है।

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