कुसमायोजित बालक पर संक्षिप्त टिप्पणी (शॉर्ट नोट) लिखिए-

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कुसमायोजन’ शब्द के + समायोजन से निर्मित है जिसका अर्थ है बुरा संतुलन । सामान्य बालक का व्यवहार संतुलित होता है जबकि कुसमायोजित बालक का व्यवहार नकारात्मक स्वरूप का होता है। शकेन सोवन के अनुसार, “सामान्य रूप से कुसमायोजन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यावहारिक तथा मानसिक दोनों ही प्रकार की प्रतिक्रियाएं रहती हैं जिनके द्वारा अभाव, तनाव, भग्नाशा आदि के कारण व्यक्ति का व्यवहार बाह्य परिस्थिति के प्रति असंतुलित हो जाता है।” टाइसन के मतानुसार, “ग्राह्या की अयोग्यता, स्नेह प्राप्त करने की असमर्थता, असंतुलित जीवन, अनुभवों से लाभ न उठा पाना, असहनशीलता, भग्नाशा तथा आत्मनिष्ठा आदि बातें कुसमायोजन के लक्षण हैं ।” एलेक्जेंडर व स्लीडर्स का विचार है- “कुसमायोजन का संबंध अभाव व अतृप्ति, भग्नाशा व तनाव का सामना करने में अक्षमता, मन की अशांत अवस्था से है जिसके कारण कोई बालक दूसरे बालकों के साथ संतुलन नहीं बना पाता ।”

कुसमायोजित बालक की प्रमुख विशेषताएं हैं-अभावग्रस्त होना, नकारात्मक व्यवहार, चिड़चिड़ापन, झगड़ने की प्रवृत्ति, विद्यालय जाने में आनाकानी, कानून विरोधी क्रियाएं, तनाव, चिंता, सांवेगिक मनोविकार, हीनता की ग्रंथि, पढ़ाई में मन न लगना, अपशब्द बकना, दूसरों को हानि पहुँचाना आदि।

कुसमायोजित बालकों हेतु परामर्शदाता (काउंसलर) मनोविश्लेषक, चिकित्सक की सेवाएं ली जानी चाहिए। ऐसे बालक को कुशल प्रशिक्षित शिक्षकों द्वारा शिक्षा दी जानी चाहिए। दृश्य श्रव्य सहायक सामग्री की सहायता से ऐसे बालक में अध्ययन के प्रति रुचि उत्पन्न की जानी चाहिए। ऐसे बालकों का धैर्य, सहानुभूति के साथ मनोवैज्ञज्ञनिक उपचार किया जाना चाहिए। ऐसे बालकों को व्यावसायिक शिक्षा तकनीकी शिक्षा भी लाभप्रद है।

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