श्रव्य कला तथा कलाकार का वर्णन कीजिए।

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श्रव्य कला वह कला है जो मुख से गाकर एवं अपने अंगों की भंगिमा द्वारा अपने भावों का प्रदर्शन करती है । श्रव्य कला में कलाकार जो भी व्यक्त करते हैं, वह सिर्फ तब तक रहता है जब तक वह प्रदर्शन करते हैं लेकिन दृश्य कला में चित्रकार अपने चित्र अथवा मूर्तिकार अपनी मूर्ति बनाते हैं जो बाद तक रहते हैं । श्रव्य कला के अन्तर्गत गायक, वादक, नर्तक, रंगकर्मी को दर्शकों के सम्मुख प्रदर्शन करना जरूरी है ।

विभिन्न श्रव्य कला :

श्रव्य कला के अन्तर्गत तीन प्रमुख कलाएं हैं-

1. संगीत,

2. नृत्य,

3. नृत (अभिनय)।

इनका विस्तृत वर्णन नीचे दिया जा रहा है –

1. संगीत के अन्तर्गत आते हैं-गायनवादन ।

2. नृत्य के अन्तर्गत-शास्त्रीय तथा अन्य नृत्य ।

3. नृत के अन्तर्गत-अभिनय ।

हिन्दुस्तानी संगीत– उत्तर भारतीय संगीत प्रथा को हिन्दुस्तानी संगीत कहते हैं। यह संगीत बंगलादेश, मध्य भारत एवं पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान में ज्यादा प्रचलित है । फारसी एवं हिन्दू तत्त्वों से मिलकर इस संगीत पद्धति का जन्म हुआ। हिन्दुस्तानी संगीत में सितार, तबला, सरोद एवं सारंगी, सुरबहार दिलरुबा, विचित्र वीणा, तानपुरा, संतूर, रबाब, सुमण्डल, शहनाई, मंजीरा, पखावज, मयूरी वीणा, एसरा की प्रयोग संगत होती है एवं ख्याल, गजल, ध्रुपद, धमार, तराना गाया जाता है । इसके भजन, धमार, कीर्तन, कव्वाली, लोक संगीत, स्वरमलिका भी गाया जाता है। तन्त्र संगीत में आलाप, जोड़, गत, झाला तथा धुन बजाया जाता है।

इस कला के प्रमुख गायक गुलाम अली, जगजीत सिंह, चित्रा सिंह, पंकज उदास, अदनान सामी, नूरजहाँ, आबिदा बेगम, मुन्नी बाई,शोभा गुर्टू,बेगम अख्तर, तलत अजीत, पण्डित जसराज, अल्लारक्खा खाँ, शिवकुमार, विलायत खाँ, अमजद अली खाँ, रविशंकर, जाकिर हुसैन, हुरिप्रसाद चौरसिया, जाकिर हुसैन, अमजद अली खाँ, बिसमिल्ला खाँ, कैलाश खैर, आबिदा बेगम है।

कर्नाटक संगीत- भारत के दक्षिण भाग में आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल एवं तमिलनाडु में कर्नाटक संगीत का प्रचलन है। हिन्दुस्तानी संगीत एवं परम्परागत हिन्दू संगीत में कर्नाटक संगीत का उद्गम हुआ। हालांकि उत्तर भारत में फारसी एवं इस्लामिक संगीत को ज्यादा प्रोत्साहन मिल रहा था तथापि हिन्दू संगीत को जीवित रखने हेतु कर्नाटक संगीत का जन्म हुआ। ये समस्त गीत पहले लिखे जाते हैं फिर गाये जाते हैं। यहाँ तक कि अगर इन्हें नृत्य भी करना है तो ये संगीत के श्रुति, तत्त्व एवं स्वर को नहीं त्यागते। कीर्ति (कीत्तनम) 14वीं से 20वीं शताब्दी में इसका प्रादुर्भाव हुआ। कर्नाटक संगीत गीतों के संयोजन से ही सीखा तथा सिखाया जाता है। कर्नाटक संगीत एक छोटे समूह द्वारा वायलन के संगत से मृदंग, तम्बूरा, घटम, खंजीरा, बाँसुरी, विचित्र वीणा, वीणा, आदि से संगत किया जाता है। प्रमुख कर्नाटक संगीत के गायक हैं-डी के. पट्टामट, एम.एल. वसन्तकुमारी, एम.एस. सुभलक्ष्मी आदि मुख्य हैं।

रवीन्द्र संगीत- ‘रोबीन्द्र सोंगीत’ बंगाली उच्चारण रवीन्द्र संगीत को ‘टैगोर गीत’ के नाम से भी जाता है। रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित गीतों को उन्होंने स्वयं ही संगीतबद्ध किया था । हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत तथा बंगाल के लोक गीत (बाऊल) और अन्य गीतों पर आधारित नवीन संगीत का जन्म ‘रवीन्द्र’ नाथ के नाम पर इस संगीत का नाम रखा गया। इस संगीत में मीढ़, मुर्की, आदि का प्रयोग करके संगीत में माधुर्य डाला जाता है । इन गीतों में रोमांस का पुट होता है । बंगाली लोग बड़े मन से इन गीतों को गाते हैं । रवीन्द्र संगीत के प्रमुख गायक-गायिका हैं- सुमित्रा सेन, तरुण बन्दोपाध्याय, सागर सेन, स्वागत लक्ष्मीदास गुप्ता, बनानी घोष, सतिदेव घोष, कविता कृष्णमूर्ति, सुचित्रा मित्र, रोमा बनर्जी, द्विजेन मुखोपाध्याय, पंकज मल्लिक, केएल. सहगल, कृष्णचन्द्र डे, आरती मुखोपाध्याय, सन्ध्या मुकर्जी, किशोर कुमार, गीता घटक, अमिताभ बच्चन (जुदी तोर डाक सुने) गीत गाया। करो।

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