भारतीय चित्रकला के इतिहास का वर्णन कीजिए।

Estimated reading: 3 minutes 65 views

भारतीय सांस्कृतिक विरासत का परिचय भारतीय कला के इतिहास से प्राप्त होता है भारतीय चित्रकला उन्नति के सर्वोच्च शिखर तक पहुँची तथा स्थानीय सांस्कृतिक प्रभावों के कारण उसमें विविध शैलियों का विकास हुआ। भारतीय कला के इतिहास तथा शैलियों का परिचय यहाँ संक्षेप में दिया जा रहा है।

(अ) प्रागैतिहासिक काल (प्रारंभ से 50 ई. तक) प्रागैतिहासिक कला को प्रदर्शित करने वाले मुख्य स्थान अग्रलिखित हैं जिनसे हमें उस काल की कला तथा संस्कृति का परिचय मिलता है

1. सिंहनपुर- मध्य प्रदेश में सिंहनपुर के निकट गेरू तथा रसराज से बने जानवरों के चित्र मिले हैं।

2. पंचमढ़ी- मध्य प्रदेश में महादेव पर्वत श्रेणियों में लगभग 50 गुफाओं में चित्र मिले हैं जिनका विषय आखेट एवं दैनिक जीवन संबंधी क्रियाएं हैंजैसे-शहद एकत्र करते हुएगाय चराते हुएवाद्य यंत्र बजाते हुएशस्त्रधारी व्यक्ति ।

3. होशंगाबाद- मध्य प्रदेश में पंचमढ़ी से लगभग 40 कि.मी. दूर नर्मदा नदी के किनारे होशंगाबाद में व्यक्तियों तथा जानवरों के चित्र मिले हैं।

4. मिर्जापुर क्षेत्र- उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद तथा बनारस के मध्य वाले मिर्जापुर में पहाड़ी अंचलों से चित्र मिले हैं। इनके विषय पशुपक्षीशिकार आदि हैं। यहाँ चित्र दीवारों तथा छतों पर बने हैं।

5. मनिकपुर क्षेत्र- उत्तरप्रदेश बांदा जिले में मनिकपुर क्षेत्र से गेरू से बने चित्र मिले हैं। इनका मुख्य विषय शिकार है।

6. भीम बेटका- मध्य प्रदेश में भोपाल से तकरीबन 40 कि.मी. दूर भीमबेटका में लगभग 500 गुफाएं प्राप्त हुई हैं। यहाँ कई पारंपरिक आभूषण तथा चित्र मिले हैं। चित्रों में लालकाला तथा सफेद रंग प्रयुक्त हुआ है। इनमें जानवरों के चित्र मुख्य हैं।

7. अलनिया- राजस्थान की अलनिया घाटी में गेरू से बने जानवरों तथा आखेट के चित्र प्राप्त हुए है। हैं

8. बिल्ला सरगम- यह स्थान मद्रास (चेन्नई) के पास है। यहाँ कुछ चित्र जादू टोनों से संबंधित है।

9. बेलारी- दक्षिण भारत में बेलारी में आखेट संबंधी चित्र मिले हैं।

10. काली बंगा- राजस्थान के काली बंगा में जो चित्र मिले हैं। ये गुफाएं 40 कि.मी. के क्षेत्र में फैली हैं। यहाँ मनुष्यपशु तथा शिकार के चित्र हैं। इनका समय 6000 ई.पू. से 3000 ई.पू. तक माना जाता है । यह कदाचित् प्रागैतिहासिक काल के प्राचीनतम चित्र हैं ।

(ब) सिंधु घाटी की कला (4000 ई.पू. से 3000 ई.पू. तक) – सिंधु घाटी तथा रावी नदी के तट पर कई नगर मिलेजिनमें मोहन जोदड़ो और हड़प्पा प्रमुख हैं। पंजाब में रोपड़ और गुजरात में लोथल में भी उसी काल के अवशेष मिले हैं। यह सभ्यता चीन से लेकर मध्य एशिया तथा संपूर्ण भारत में फैली थी। यहाँ पर मकानोंआभूषणों तथा बर्तनों के अवशेष मिले हैंबर्तन पकी मिट्टी से बने हैं। इसी कारण इसे ताराकोटा सभ्यता कहते हैं । यहाँ चित्रित मोहरे प्राप्त हुई हैं तथा खिलौनों तथा बर्तनों पर रंगीन चित्र प्राप्त हुए हैं।

(स) जोगीमारा गुफा- यह गुफा मध्य प्रदेश की सरगुजा रियासत में स्थित है। इनमें की गई चित्रकारी अजंता तथा बौद्ध गुफाओं से पहले की हैं। नर्मदा नदी के किनारे रामगढ़ की पहाड़ियों में स्थित यह एक प्राकृतिक गुफा है जिसके निकट तीन गुफाएं सीता बंगड़ासीता लाहड़ा एवं लक्ष्मण बेगड़ा हैं। इनकी छतों पर सफेद पृष्ठभूमि में लाल तथा काले रंग की सीमाओं से चित्र बने हैं। चित्रों में मनुष्यपशुपक्षीबगीचे तथा नृत्य का परिदृश्य है ।

(द) बौद्धकालीन कला (50 ई. से 700 ई. तक) – बौद्ध काल को भारतीय कला का युग कहा जाता है । भित्ति चित्रों की संख्या अन्यत्र कहीं नहीं मिलती है। बौद्ध चित्र शैली के प्रमुख तीन स्थल पाये जाते हैं-अजंता की गुफाएंबाघ की गुफाएं तथा सिंगोरिया की गुफाएं।

1. अजंता की गुफाएं– महाराष्ट्र में औरंगाबाद से 68 कि.मी. दूर एवं पहूर से मील की दूरी पर ऊंची पहाड़ियों में अजंता की गुफाएं हैं। 300 फीट ऊंची पहाड़ी को काटकर गुफाओं का निर्माण किया गया है। ये संख्या में 29 थींजिनमें से सिर्फ शेष हैं-1, 2, 9, 10, 16 तथा 17। इनमें से सोलहवीं तथा सत्रहवीं गुफा के चित्र अद्वितीय हैं एवं कलाकृति की संपूर्णता के रूप में विश्वप्रसिद्ध हैं। सभी गुफा चित्रों का प्रमुख विषय भगवान् बुद्धउनका जीवन तथा कार्य है। चित्र जातक कथाओं पर आधारित हैं। चित्रों का रेखा सौष्ठवरंग विधानमुद्राएंभाव व्यंजनाअलंकारिता बहुत उच्च कोटि की है। इनमें कला के संपूर्ण तत्त्वों का समावेश है। षडांग का पूर्ण पालन किया गया है लेकिन कुछ चित्रों पर चित्रकारों के नाम नहीं हैं।

2. बाघ की गुफाएं- मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में विंध्या पर्वत की श्रृंखलाओं में बाघ नदी के किनारे ये गुफाएं स्थित हैं। यह संख्या में हैंजिनमें 7, 8, 9 ध्वस्त हो चुकी हैं। चौथी तथा पाँचवीं गुफाओं के बरामदे में बने चित्र बहुत आकर्षक हैं। चित्रों के विषय मनुष्यगायननृत्यहाथी तथा घोडों पर सवार व्यक्तिबुद्ध उपदेश करते हुए एवं स्त्रियाँ आदि हैं। चित्रों में पीलानीलालाल तथा विरोधी रंगों को प्रयोग किया गया है। प्रकृति तथा पशु चित्रण आकर्षक हैं।

3. सिंगोरिया की गुफाएं- श्रीलंका में सिंगरिया का भित्ति चित्रण दो विशाल गुफाओं में है जिनमें कुल 22 चित्र हैं। चित्रों का विषय सिर्फ नारियाँ हैं । नारी-चित्रण मनमोहक तथा भावपूर्ण हैजैसे-देव बालाएं बाघ यंत्र लिए पूजा करने निकली हो । चित्रों का रंग विधान उत्तम

(च) मध्यकालीन कला (700 ई. से 1550 ई. तक) -पूर्व मध्यकाल (700 ई. से 1000 ई. तक) – की कलाओं में बादामी गुफासिप्तनवासन गुफाएलोरा तथा एलिफेन्टा गुफाओं की चित्रकारी तथा मूर्तिकला प्रसिद्ध हैं –

1. सिप्तनवासन गुफा- यह गुफा मद्रास (चेन्नई) के निकट पुद्दुकोटा नामक स्थान पर है। यहाँ के चित्र बौद्ध शैली के हैं लेकिन ऐश्वर्य प्रधान हैं

2. बादामी गुफाएं- ये गुफाएं मुम्बई के निकट आइट्रोल नामक स्थान पर हैजो से 8वीं शताब्दी के बीच चालुक्य वंश के राजाओं ने निर्मित कराई। यह संख्या में हैं तथा इनके विषय सांसारिक हैं। ।

3. एलोरा की गुफाएं- अजंता की गुफाओं से 50 मील दूर पहाड़ी काटकर मंदिरों के आकार में ये गुफाएं बनाई गई हैं। इनकी संख्या 34 हैं। इनमें 12 गुफा मन्दिर बौद्ध मंदिर हैं, 17 गुफा मंदिर ब्राह्मण मंदिर हैं जिनमें हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ मौजूद हैं, 5 गुफा मंदिर जैन मंदिर हैं जिनमें अब मंदिर के बाहर बरामदे के चित्र ही बाकी रह गए हैंभीतर के चित्र समय के साथ. नष्ट हो गए हैं। इनके चित्र प्रायः धार्मिक तथा पौराणिक हैं। इनकी चित्रकला अजंता की कला के समान परिपक्व नहीं हैंलेकिन ये मूर्तिकला के बेजोड़ उदाहरण हैं। ये स्थापत्य कला में अद्वितीय हैं।

4. एलिफेन्टा की गुफाएं- ये गुफाएं बंबई के निकट हैंजहाँ जलबोट से जाते हैं। गुफाओं के सामने विशाल हाथी की मूर्ति हैइसी कारण पुर्तगालियों ने इसका नाम एलिफेन्टा रखा । यह संख्या में हैं। इनमें चित्रकला कहीं नहीं हैंसुंदर मूर्तियाँ हैं जिनमें शिव के विविध रूपों को कुशलता से दर्शाया गया है।

उत्तर मध्यकालीन कला (1000 ई. से 1550 ई. तक)- इस काल में कागज का आविष्कार हो गया थाइस कारण चित्र दीवारों पर न बनाकर कागज पर बनाए गए। देश के पूर्वी भाग में पाल शैली तथा पश्चिमी भाग में जैन शैली (अपभ्रंश शैली/गुजरात शैली) के चित्र बने।

1. पाल शैली- पाल राजा बौद्ध धर्म संरक्षक थे। इनके चित्र प्रमुखतः बौद्ध ग्रंथ प्रज्ञा परिमिता‘ में अंकित हैं। पुस्तकें ताड़ पत्र पर लिखी गई हैं तथा किनारे पर बुद्ध की जातक कथाएं तथा देवी-देवताओं के चित्र अंकित हैं । कोणात्मक रेखाओं एवं सीमित रंगों का प्रयोग हुआ है । भित्ति चित्र भी उपलब्ध हैं जो बौद्ध शैली का अंतिम समय प्रगट करते हैं।

2. जैन अथवा अपभ्रंश शैली- इसे गुजरात शैली तथा पश्चिमी भारत शैली भी कहते हैं । यह चित्र पूर्णतः जैनधर्म से संबंधित नहीं हैं लेकिन यह माना जाता है कि जैन भिक्षुओं द्वारा इन्हें बनाया गया। इस शैली के चित्र बसंतविलासबालगोपाल स्तुतिगीतगोविंददुर्गासप्तमीरति रहस्य आदि में प्राप्त हैं। चित्रों में अलंकारिता हैं। इन्हें परंपरावादी चित्रण का बिगड़ा रूप कह सकते हैंकिन्तु लोक कला की सादगी है।

(छ) मुगलकालीन कला (1550 ई. से 1800 ई. तक) मुगलकालीन कला को चार शैलियों में विभक्त किया जा सकता है-ईरानी शैलीअकबरकालीन शैलीजहाँगीरकालीन शैली तथा शाहजहाँकालीन शैली ।

1. ईरानी शैली- ईरानी तथा भारतीय शैली के मिश्रण से जो शैली बनी वह मुगल शैली के नाम से प्रसिद्ध हुई। ईरान की हिरात शैली‘ बाबर के साथ भारत आई । इस समय के चित्रों में अलंकारिताउत्कृष्ट रंग समायोजनप्रकाश तथा छाया का प्रयोग एवं ज्यामितीय चित्रण हैं। अक्षर लेखन सुंदर तथा सुचारू हैं। इसे Indo-Percian Painting कहकर पुकारते हैं।

2. अकबरकालीन शैली- अकबर बहुत कलाप्रेमी राजा थे । उन्होंने चित्रशालाएं बनवाईसियालकोट (पंजाब) में कागज का कारखाना लगवाया। उस काल में स्वच्छंद तथा उन्मुक्त चित्रण हुआ। इस काल के चित्रों में परिप्रेक्ष्य का प्रयोग हुआ हैरंग पारदर्शक तथा चमकीले प्रयोग किए गए हैंवेशभूषा राजपूती ज्यादा है। चित्र घटना प्रधान हैं। अलंकृत हाशिएव्यक्ति चित्रणदरबारी अंकुन एवं हिन्दू तथा मुस्लिम ऐतिहासिक-धार्मिक ग्रंथों का चित्रण इस शैली की विशेषताएं हैं।

3. जहाँगीरकालीन शैली- इस काल की कला मुगलकालीन कला का सर्वोत्कृष्ट नमूना है। इसमें कला पर यूरोपियन प्रभाव मिलता हैइसी कारण यथार्थवादी अंकन हुआ है। प्रकृति के नाना रूपों का प्रदर्शनचित्रों में स्वाभाविकताछाया-प्रकाश का प्रयोगबारीक व महीन कामपरिप्रेक्ष्य का प्रयोगरंगों की तानों का प्रयोगसोने तथा चाँदी के रंगों का प्रयोग एवं मुख्य व्यक्ति चित्रण इस काल की कला की मुख्य विशेषताएं हैं।

4. शाहजहाँकालीन शैली- इस काल में भवन निर्माण शैली के उत्कृष्ट उदाहरण मिलते हैं। शाहजहाँ ने मोती मस्जिदजामा मस्जिदआगरे का लाल किला तथा ताजमहल बनवाए जो उसके कला प्रेम के प्रत्यक्ष रूप हैं। इनमें मुगल वैभव दिखाई पड़ता है । छज्जोंबरामदोंफर्शों पर मशीन कारीगरीआभूषणों पर पच्चीकारी अद्वितीय है। उसने अंतःपुर के चित्रव्यक्ति चित्र एवं कवियों तथा गायकों के चित्र भी बनवाए।

(ज) राजपूत शैली- आनंदकुमार स्वामी ने राजपूतानापंजाब एवं हिमालय की पहाड़ियों में 16वीं शताब्दी में मुगलकाल के समानान्तर विकसित होती हुई कला को राजपूत शैली नाम दिया जिसमें राजस्थानी कला तथा पहाड़ी कला आती है। यह कला मुगलकालीन कला से लाक्षणिक रूप से भिन्न हैं का।

(क) राजस्थानी चित्र शैली- राजस्थानी चित्र शैली को कई भागों में विभाजित किया जा सकता हैजैसे –

1. मेवाड़ की शैली- राजा भीम सिंह तथा जगत सिंह के समय में मेवाड़-शैली का ज्यादा उत्थान हुआ । उस समय ज्यादा हवेलीमहलमंदिर आदि चित्रित किए गएपुस्तकों के भीतर भी चित्र बने । चित्रों पर वैष्णव भक्ति का प्रभाव है। चित्रों के विषय-गीत गोविंदभागवत् पुराणरसिक प्रियाकृष्ण भक्ति तथा रामायण आदि हैं । सामाजिक जीवन संबंधी तथा घरेलू चित्र भी बनाए गए । इनमें चित्र संयोजन उत्तम हैंचमकदार रंगों का प्रयोग किया गया हैप्रकृति का चित्रण आलंकारिक हैं।

2. हाड़ौती (बूंदी) शैली- बूंदी चित्रण शैली में रेखाएं कोमलगतिपूर्ण तथा भाव प्रधान हैं। स्त्रियों का शरीर दुबला तथा पुरुष हृष्ट-पुष्ट दिखाए गए हैंप्रकृति का उद्दीपन रूप है। चित्रों की पृष्ठभूमि में प्रकृति चित्रण हैं । पशु-पक्षियों का चित्रण आलंकारिक है ।

3. कोटा शैली- राजा उम्मेद सिंह ने जंगलों एवं शिकार के चित्र बनवाए। इसके अलावा भागवत् पुराणरामायणमहाभारतरसिक प्रिया आदि विषयों पर चित्र बनाए गए । इन चित्रों में पुरुषों को घंटाकार पायजामा पहनाया गया हैभारी दाढ़ी तथा चौड़ा माथा है। स्त्रियों का गोल मुख तथा लंबी बाहें हैं। प्रकृति चित्रों में वृक्षों पर मोरतोते आदि बने हैं। रंग उष्ण एवं शीतल दोनों तरह के हैं। सलेटी रंग की प्रधानता है।

4. किशनगढ़ शैली- किशनगढ़ शैली पर मुगल प्रभाव है । शुरू में आखेट तथा दरबार के चित्र बनेबाद में राधाकृष्ण (बन्नो का प्रदर्शन) प्रमुख विषय रहा । गीत गोविंदभागवत पुराण तथा बिहारी चन्द्रिका पर भी चित्र बने । चित्रों में चटक रंग तथा भावपूर्ण रेखाएं हैं। नारी सौंदर्य का चुंबकीय अंकन है । राधा-कृष्ण का आत्मा-परमात्मा के रूप में प्रतीकात्मक चित्रण है।

5. जयपुर शैली- राजा भगवानदास ने उद्यानों की छतरियों पर चित्रकारी करायी तथा बाद में सवाई जयसिंह तथा महाराणा प्रताप के चित्रों की प्रमुखता है। अन्य चित्रों के विषय लोक-जीवनबारह मासाकृष्ण-लीलागीतगोविंद आदि हैं। महलोंमंदिरों आदि पर भित्ति चित्र बने हैं। चित्रों के रंग चमकदार हैं एवं सोने तथा चाँदी के रंगों का प्रयोग हुआ है। चित्रण प्रतीकात्मक है। पुरुष तलवार लिए हैं जिनकी मूंछे हैंदाढ़ी नहीं। स्त्रियाँ स्वस्थ तथा मध्यम कद की हैं। पशु-पक्षी चित्रण सजीव तथा भावपूर्ण हैं।

6. बुंदेलखण्ड की चित्रकला- यहाँ की चित्रकला पर मराठी एवं राजस्थानी चित्रण शैली का प्रभाव है । चित्रों के विषय राग माला,चित्रावलीरसराज,बिहारी सतसई तथा कृष्ण-लीला। परंपरागत चित्रण शैली में पीली पट्टी पर चित्र बने हैंकुछ चित्र चमड़े पर भी बने हैं। गहरी पृष्ठभूमि पर सफेद रंग मिलाकर चित्रण किया गया है। चित्रों के ऊपर काव्य पंक्तियाँ लिखी हैंकुछ चित्रों के शीर्षक उर्दू में भी हैं। रंग योजना सरल है। पशु-पक्षियों का सुंदर चित्रण है।

7. बीकानेरी शैली- राजा राय सिंह ने मेघदूत‘ पर आधारित चित्र बनवाए एवं राजा रतन सिंह ने भवन निर्माण में रुचि ली तथा दरवाजों पर कृष्ण-लीला के चित्र बनवाए । चित्रों के अन्य विषय-रागमालाबारहमासारसिप्रियाभागवत् पुराण तथा धार्मिक चित्र हैं। चित्रों में पहनावा जोधपुरी है । रंग कोमलता लिये हैं तथा उनका संयोजन सरल है । भवनों में खिड़कीझरोखे तथा गुंबद हैं। दृश्य चित्रण में झाड़ीकमलबिजली तथा सरोवर का आकर्षक चित्रण।

8. जोधपुर शैली- मारवाड़ी शैली का मुख्य केन्द्र जोधपुर रहा। राजा मानसिंह के समय में यह शैली परिपक्वता को प्राप्त हुई। चित्रों के विषय रामायणशिवपुराणदुर्गा चरित आदि ग्रंथों पर आधारित हैं। पुरुष बनी दाढ़ी तथा मूंछों वाले हैं एवं स्त्रियों की आकृति लंबी तथा मस्तक आगे निकला हुआ बना है । चटक रंगों का प्रयोग किया गया है। भवनों पर सफेद रंग से लिखा गया है। मयूर चित्रण है तथा प्रकृति में काले मेघबिजली एवं स्वर्णिम आभास की छटा है।

(ख) पहाड़ी चित्रण शैली- पहाड़ी शैली में राजस्थानी तथा मुगलकालीन कला का मिश्रण है। 17वीं शताब्दी में वैष्णव धर्म का प्रचार-प्रसार पहाड़ी क्षेत्रों में हुआ तथा कई शैलियाँ विकसित हुई

1. बसोहली (बसौली) की चित्रकला- जम्मू राज्य की सीमा में आने वाली तहसील बसौली की चित्र शैली परंपरागत है। इस पर बाह्य शैलियों का प्रभाव नहीं पड़ा है। चित्रों के विषय धार्मिक हैं। रसम जरीगीतगोविंद तथा कृष्ण-लीला पर आधारित चित्र हैं। चित्र प्रतीकात्मक हैं। स्त्रियाँ सुनहरी किनारी की धोती पहनेपुरुष चादर ओढ़े हैं। चित्रों में सुसज्जित भुवनपर्देकालीनअलंकृत आकृतियाँ हैं । श्रृंगारिक चित्र भी हैं जिन पर कहीं-कहीं दोहे लिखे

2. कांगड़ा शैली- पंजाब की पहाड़ियों में स्थित कांगड़ा की चित्र शैली पुर मुगलराजस्थानी तथा पाश्चात्य कलाओं का मिश्रित प्रभाव है। यहाँ के चित्र प्रणय प्रधान हैं। चित्रों में रेखाएं बारीक तथा संवेदनशील हैं। रंगों की इन्द्रधनुषी छटा है । दुमकते रंगों का प्रयोग हुआ है । नारी का प्रभावपूर्ण चित्रण है। आकृतियों के साथ प्रकृति चित्रण है । कलापूर्ण भवनकविता एवं चित्रकला का सुखद मिश्रण है। प्रकृति चित्रण में सांसारिकता एवं आध्यात्मिकता का मिश्रण ।

3. चंबा की चित्रकला- हिमाचल प्रदेश में स्थित चंबा की सांस्कृतिक थाति बहुत प्राचीन है। यहाँ के हरिहरनाथ मंदिर एवं श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर का शिल्प उत्तरगुप्तकालीन शैली का है। मध्य काल में यहाँ कई काष्ठ मंदिरों का निर्माण हुआ। यहाँ के चित्रों पर मुगल शैली तथा बसौली शैली का प्रभाव है। चित्रों के विषय भागवतपुराणरामायणदुर्गा सप्तसतीरुक्मिणी मंगल आदि पर आधारित हैं। चित्रों में रेखाएं बारीकरंग शीतल तथा चटक हैं । नीला रंग ज्यादा प्रयुक्त हुआ है । मानव आकृतियाँ लंबी एवं स्वस्थ हैंधोती तथा उत्तरीय पहने हुए हैंकुछ की वेशभूषा मुगलकालीन हैं। स्त्रियाँ लहंगा एवं आंचल पहने हैं। हल्की पृष्ठभूमि पर गहरी रेखाओं से प्रकृति चित्रण किया गया है । यहाँ भवनों के चित्र त्रिआयामी हैं जबकि बसोहली के चित्र द्विआयामी हैं।

4. गुलेर की शैली- कांगड़ा की एक शाखा गुलेर राज्य के रूप में विकसित हुई । यहाँ की कला पर बसोहली चित्र शैली का प्रभाव रहा। चित्रों के विषय-रामायणमहाभारत रहे । दरबारी चित्रण एवं नायिका चित्रण भी हुआ है । कुछ व्यक्तिगत चित्र भी बने। 5. कुल्लू की चित्रकला- यहाँ प्रारंभ में बसोहली एवं बाद में कांगड़ा शैली में चित्र बने । चित्रों के विषय धार्मिक के अलावा लोक विषय एवं दरबारी क्रियाएं भी थीं। यहाँ के चित्रों में धड़ की अपेक्षाकृत सिर छोटे तथा अण्डाबार बने हैं। चित्रों के हाशिएलालपीलीमटियाली पट्टी से बने हैं।

6. मण्डी की चित्रकला- यह कुल्लू के समीप है। यहाँ बसोहली शैली में वृहदकाय चित्र प्राप्त हैं। मंदिरों में भित्ति चित्रों का निर्माण हुआ है। अंग्रेजी अधिकार में आने के बाद यहाँ की कला पर पाश्चात्य प्रभाव पड़ा।

7. जम्मू की शैली- यह उत्तरी पहाड़ियों का सबसे बड़ा राज्य था । यहाँ पहले बसोहली शैली में चित्र बनेंफिर उन पर श्रृंगारिक प्रभाव पड़ा तथा बाद के चित्रों पर कांगड़ा शैली का प्रभाव पड़ा । मानव चित्रों की शैली बसोहली तथा चंदा शैली की तरह हैलेकिन आकार नुकीले न होकर गोलाई लिए हैं। चित्रों में रंग तथा वेशभूषा वसोहली शैली में तथा मुगल शैली में हैं। 8. पु छ की शैली- यहाँ के चित्रों में महल का अंत:पुर कांगड़ा शैली में चित्रित हैअन्य प्रारम्भिक चित्र गुलेरी शैली में हैं। बाद के चित्रों में स्थानीय प्रभाव देखने को मिलता है। जैसे-स्त्रियों को टोपी लगाए दिखाया गया हैजो मुगल छाप छोड़ता है। अन्य पहाड़ी राज्यों में मुगल नहीं थे ।

9. टिहरी गढ़वाल की शैली– इस पर कांगड़ा शैली का प्रभाव है। इनके चित्रों के विषय-नायिका भेद चित्रणधार्मिक चित्रराधा-कृष्ण के चित्र हैं । व्यक्ति चित्रण भी हुआ है तथा घरेलू दृश्य भी चित्रित किए गए हैं। चित्रों में गहरे रंग के पत्र विहीन वृक्षनदी में पड़ी बेलेंवर्षास्त्रियों के माथे पर तिलकछाया तथा प्रकाश का प्रयोग हुआ है। रेखाएं भावपूर्ण तथा मधुरता लिए हैं। राधा-कृष्ण के चित्रों की अधिकता है।

10. काश्मीर शैली- काश्मीरी चित्रकला का स्वतंत्र विकास नहीं हुआ। इस पर राजस्थानीपहाड़ी तथा मुगल शैलियों का प्रभाव पड़ा। इसके अलावा हिन्दूबौद्ध एवं जैन धर्मों की उदारता का भी यहाँ की कला पर प्रभाव पड़ा। चित्रों के विषय प्रमुखतः रामायण तथा कृष्ण-लीला पर आधारित हैं जिन पर संस्कृत में श्लोक भी लिखे हैं। रागमाला‘ एवं जैन पोथी शीलभद्र चरित‘ के चित्र भी काश्मीर शैली के हैं। चित्रों में ज्यादातर पीलेलाल तथा सिंदूरी रंग का प्रयोग हुआ है। पुरुष पुरुषत्वपूर्ण एवं स्त्रियाँ ओजपूर्ण तथा सुंदर हैं। इन चित्रों में आकृतियों को धोतीउत्तरीय एवं आभूषण पहनाए गए हैं।

(झ) पटना शैली- 18वीं शताब्दी के खत्म होने के साथ ही मुगलराजस्थानी तथा पहाड़ी शैलियाँ भी खत्म हो गई। अंग्रेजों के आगमन के बाद भारतीय तथा पाश्चात्य कला के मिश्रण से जो शैली पनपी उसे पटना शैली कहा गया। कुछ लोग इसे कंपनी शैली‘ भी कहते हैं। इस समय बने चित्रों में भारतीयों की दीन-हीन दशा का चित्रण है । कागज के अलावा हाथी दाँत पर भी चित्रकारी की गई है। चित्रों में रेखाएं बारीक हैं,रंगों को हल्का करके प्रकाश छाया दिखाई गई है। रंग सीमित हैंकहीं-कहीं सिर्फ काले रंग से चित्र बने हैं। वेशभूषा भारतीय है। पाश्चात्य शैली में चित्रण करने वालों में राजा रवि वर्मा सर्वाधिक प्रसिद्ध रहे हैं।

(ङ) कालीघाट की चित्रकला- कुछ चित्रकारों ने काली-घाट‘ तथा काली मंदिर के भक्तों के मार्ग पर चित्र बनाए । ये चित्र पाश्चात्य शैली के हैं। टैम्परा माध्यम से चित्र बनाए गए हैं। रंग सपाट, गहरे तथा चमकीले हैं एवं इनका प्रयोग सीमित है। कहीं-कहीं सिर्फ काले रंग

से चित्र बने हैं। चित्रों के विषय धार्मिक तथा सामाजिक हैं। ज्यादातर बंगाली बाबुओं के जीवन-चरित्र को चित्रित किया गया है

(त) आधुनिक भारतीय चित्रकला (19वीं शताब्दी से आज तक)-अंग्रेजों द्वारा 1850 में पाश्चात्य कला शिक्षा के लिए तीन महानगरों (कोलकाताचेन्नईमुंबई) में कला संस्थान खोले गए। परिणामस्वरूप कला जगत् में एक नवीन आंदोलन का सूत्रपात हुआजिसे पुनर्जागरण काल के नाम से जानते हैं। आधुनिक कला को दो भागों में विभक्त कर सकते हैं

1. पुनर्जागरण काल

(क) बंगाली शैली अथवा ठाकुर शैली।

(ख) बंगाली शैली से हटकर नई शैली में काम करने वाले कलाकार।

(क) बंगाल आंदोलन- कलकत्ता कला संस्थान में नियुक्त प्राचार्य ईवी. हैवेल ने अवनीन्द्रनाथ टैगोर को भारतीय कलाओं की तरफ आकृष्ट किया । अवनीन्द्रनाथ टैगोर ने प्राचीन भारतीय कला का पुनरुद्धार किया तथा अपने शिष्यों में भारतीय कला के प्रति जागृति पैदा कीजिससे बंगाल आंदोलन का सूत्रपात हुआ । इस शैली के मुख्य चित्रकार हैं-अवनीन्द्रनाथ टैगोरनंदलाल बसुअसित कुमार हल्दारदेवी प्रसाद राय चौधरीक्षितीन्द्र नाथ मजूमदारअब्दुर्रहमान चुगताई एवं उकील बंधु।

(ख) बंगाल शैली से अलग नवीन पद्धति में कार्य करने वाले मुख्य चित्रकार हैं-यामिनी रायरवीन्द्रनाथ टैगोरअमृता शेरगिलगगनेन्द्रनाथ टैगोर।

2. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की कला- प्रयोगवादी कला अथवा आधुनिक काल की प्रचलित शैली विकृति हैजिसमें चित्रों को वास्तविक आकार न देकर कुछ बड़ा अथवा छोटा कर दिया जाता है ।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के कुछ मुख्य चित्रकार हैं-नारायण श्रीधर बेन्द्रेके.के. हेब्बरमकबूल फिदा हुसैनश्यावक्ष चावड़ासतीश गुजरालरामकुमारके.एच. आगसैयद हैदर रजाफ्रांसिस न्यूटन सुजालक्ष्मण पईजे. स्वामीनाथन आदि ।

Leave a Comment

CONTENTS