मॉडल बनाने का वर्णन कीजिए।

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मॉडल का निर्माण त्रि-आयामी कलाकृति के अंतर्गत आता है । दैनिक जीवन में हम कई वस्तु तुओं का उपयोग करते हैं तथा यह सभी त्रि-आयामी होती हैंक्योंकि उनमें लम्बाईचौड़ाई के साथ मोटाई भी होती है। इन वस्तुओं के मॉडल अथवा प्रतिकृतियाँ कई चीजोंजैसे-मिट्टीलकड़ीकागजधातु प्लास्टिक आदि से बनाए जाते हैं। मूर्तिकला एवं वास्तुकला दोनों ही त्रि-आयामी रचनाओं का अभ्यास कराते हैं। जब बालक किसी मॉडल की रचना करना शुरू करता है तो सर्वप्रथम उसे उपयुक्त सामग्री का चयन करना होता है। सामग्री के चयन करने के लिए उसे विविध वस्तुओं के भौतिक तथा रासायनिक गुणों की जानकारी जरूरी है। अपने उद्देश्य को ध्यान में रखकर वह उस सामग्री की सम्भावनाओं तथा सीमाओं की तलाश करता हैजिससे अपनी रचना को समुचित आकार दे सके। त्रि-आयामी रचनाओं में स्थान के संगठन का विशेष महत्त्व है,जो अनुपात पर आधारित होना चाहिए। मॉडल बनाने का प्रशिक्षण प्राथमिक कक्षाओं से ही शुरू करना चाहिएजिससे बालक के हस्त लाघव में ज्यादा कुशलता का विकास होगा। विभिन्न कक्षाओं में मॉडलिंग के प्रशिक्षण की योजना अग्र तरह से बनायी जानी चाहिए

1. प्राथमिक कक्षा- प्राथमिक कक्षाओं के बालक छोटे आयु के होते हैंउनमें स्नायु तंत्र ज्यादा समृद्ध नहीं होताइस कारण वे सामग्री को काफी बर्बाद भी करते हैं। इसलिए इस स्तर पर उन्हें सस्ती तथा स्थानीय सामग्री प्रदान की जानी चाहिए! मिट्टीचाककागजगत्ते आदि से निर्माण कराया जाना चाहिए । कागज को मोड़कर तथा काटकर बेले बनाना एवं गत्ते की मदद से डिब्बेफाइल कवर आदि बनाना सिखाया जाना चाहिए । मिट्टी से छोटे-छोटे खिलौनेउत्तर तरकारी आदि बनवायी जानी चाहिए ।

2. निम्न माध्यमिक कक्षा- प्राथमिक कक्षाओं की क्रियाओं को जारी रखते स्तर को उन्नत किया जाना चाहिए। रंगीन कागजों से सजावट की वस्तुएं बनानाबधाई पात्रों के विविध नमूने तैयार करनामिट्टी के ढेले को खुरच-खुरचकर मूर्ति बनानासेलखड़ी से दैनिक उपयोग की छोटी-छोटी वस्तुएं बनानाप्लाई (लकड़ी) से घनाकार वस्तुएं तैयार करना आदि सिखाया जाना चाहिए।

3. माध्यमिक कक्षा- माध्यमिक कक्षाओं के बालकों का विकास तीव्र गति से होता है तथा उनमें स्नायु तंत्र की समृद्धता के साथ-साथ मानसिक परिपक्वता का विकास भी हो रहा होता हैइसलिए इनकी त्रि-आयामी कलात्मक क्रियाओं में विविधता लायी जानी चाहिए। अब उन्हें निम्न माध्यमिक कक्षाओं की सामग्री के साथ प्लास्टिकप्लास्टर ऑफ पेरिससीमेंट तथा काँच आदि पदार्थ भी उपलब्ध कराये जा सकते हैं। उन्हें इन सामग्रियों की सीमाओं तथा सम्भावनाओं के विषय में खोज करने को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्हें इस बात की पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए कि किस वस्तु को सरलता से मोड़ा जा सकता हैकौनसी वसतु हल्की तथा कौनसी भारी हैकौनसी वस्तु ज्यादा भार सम्भाल सकती है तथा किस वस्तु से स्थान तथा प्रकाश ज्यादा मात्रा में प्राप्त होते हैं। इस तरह बालक अपने अनुभव से यह जानकारी प्राप्त करते हैं कि कौनसे स्थान पर किस सामग्री का प्रयोग उचित होगा एवं उसे किस आकार में बनाने से वह ज्यादा आकर्षक तथा उपयोगी होगा।

मॉडल बनाने के अलावा छात्रों को प्रदर्शनी लगानेनाटक स्टेज तैयार करने एवं कठपुतली शो आदि के लिए स्टेज बनाने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए। इससे वह नाटकों एवं फोटोग्राफी के समय प्रकाश की व्यवस्था की जानकारी प्राप्त करेंगे एवं सजावट हेतु त्रिआयामी कलात्मक सामग्री के प्रयोग का अनुभव ग्रहण करेंगे। बालकों को पुरानी वस्तुओं को नवीन प्रयोग के लिए उनमें सुधार करके ज्यादा उपयोगी बनाने हेतु भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

4. उच्च कक्षा- उच्च कक्षाओं में मॉडलिंग की शिक्षा में व्यावसायिक पहलू की प्रधानता होनी चाहिएजिससे छात्र सामाजिक आवश्यकताओं के अनुरूप त्रि-आयामी रचनाएं करके उपयोगी सामग्री का सृजन कर सकें,तथा अर्थालाभ भी प्राप्त कर सकें । आज मूर्तिकला,वास्तुकला तथा स्थापत्य कला में स्थान के संगठन की नवीन विचारधारा देखने को मिलती है। बीस वर्ष पूर्व जो कलात्मक संगठन तथा व्यवस्था के नियम थेवह आज ज्यादा वैध नहीं माने जाते हैं । विषय तथा सिद्धान्त भूतकाल के विषय में जानकारी प्राप्त हेतु सीखे जा सकते हैंलेकिन ये भविष्य की नवीन समस्याओं का सामना करने में सफलता का कोई आश्वासन नहीं देते । हर समय कलाकार एक नवीन उद्देश्य पर कार्य करता हैजिसमें वह आकृतियों को पूर्णता एवं उनके एक-दूसरे से सम्बन्ध को अनुभव करता है। आज का कलाकार वस्तुओं का मध्य के स्थान से बहुत अधिक सम्बन्धित है एवं इसका महत्त्व वस्तुओं तथा आकृतियों के समान हो गया हैक्योंकि कलाकार स्थान को संगठन का साधन समझता है । नवीन विचारधारा के कारण हम वस्तु के भीतरी तथा बाहरी भाग को अनुभव करते हैं। शीशे की दीवारों वाला घर ऐसा ही भ्रम पैदा करता है।

वस्तुतः
आज स्थान की धारणा त्रि-आयामी के स्थान पर बहु-आयामी है । ठोस चीजों को हल्के तथा हवाई आकार दिये जा रहे हैं। पत्थर के पुल अब धागे की तरह के केवल-पुल में बदल रहे हैं। ईटों की दीवारें शीशे की दीवारों का रूप ले रही हैं तथा यहाँ तक कि पूरा भवन शीशे की दीवारों से बना हो सकता है। धारा प्रवाह की चीजों में हमारी रुचि बढ़ रही है । हम स्पेस-टाइम वस्तुओं के निर्माण में रुचि ले रहे हैं लेकिन हम स्थान सम्बन्धी इन नवीन विचारों को तब तक नहीं समझ सकते जब तक कि स्वयं इन पर प्रयोग न करें। इसलिए कलात्मक ज्ञान की समृद्धि के लिए छात्रों को उद्योगों, भवनों, कारखानों के उपकरण, घरों के नक्शे व मॉडल, शहरों के नक्शे तथा मॉडल, सड़कों की रचनाओं के संगठन तथा पार्कों की संरचना के मॉडल आदि बनाने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए, जो इनकी रचनात्मकता के साथ-साथ कल्पना शक्ति का भी विकास करेगा।
 

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