कला के मूल्यांकन या समीक्षा का वर्णन कीजिए ।

Estimated reading: 1 minute 71 views

 संसार में जितनी भी सभ्यताएं विकसित हुईउनके विकास का मूल कारण सुख की अभिलाषा और उसकी प्राप्ति है । सुख की खोज में मनुष्य ने जो भी कदम बढ़ायेवही सभ्यता और संस्कृति बन गये । जीवन का मुख्य लक्ष्य सुख की प्राप्ति हैइस अभिलाषा का कभी अन्त नहीं होता। ज्यों-ज्यों संघर्ष की स्थिति में जो इससे मुक्त होना चाहता है वह संसार छोड़ देता है और वैराग्य धारण कर लेता है परन्तु हम और तुम जैसे प्राणी इसी सुख की लालसा में संघर्ष मोल लेते रहते हैं। इसी को जीवित रहने की कला कह सकते हैं-“कला काम करने की वह शैली हैजिसमें हमें सुख एवं आनन्द की प्राप्ति होती है।” सुख की प्राप्ति के लिये मानव ने आदिकाल से प्रयास किये और आज भी उन्हीं में उलझा हुआ है ।

जिस कार्य की उपलब्धि होती है वही कार्य सुन्दर होता है । इसी को हम् कला कहते हैं । सत्य ही जीवन का सुख है और सत्य की खोज को ही कला कहते हैंजिससे हमें अपूर्व सुख मिलता है और सौन्दर्यानुभूति होती है । कला जीवन संगिनी हैचिर-सहधर्मिणी हैका जीवन से अतुलनीय सम्बन्ध है । जीवन जीने का नाम ही कला है । कला द्वारा भावी जीवन के लिये तैयारी करना हमारे शिक्षण का उद्देश्य होना चाहिये। जीवन कला के शिक्षण से सह-सम्बन्धित होना चाहिये । जीवन जीना ही कला हैजीवन का विनाश कला नहीं। प्रकृति चित्रकार की प्रेयसी होती हैजिसकी गोद में वह प्रत्येक क्षण छिपा रहता है । वह प्रकृति में जीवन का सुख और सत्य खोजता है । यदि कोई प्रकृति का विनाश करने पर उतारू हो तो चित्रकार पहला व्यक्ति होगा जो उसका अन्तिम क्षण तक विरोध करेगा क्योंकि प्रकृति ही उसका जीवन है। जीवन सुखमय रहे यही कला का लक्ष्य है। अतः जीवन के क्षेत्र में वे सभी कार्य जिनसे कला आत्मिक सुख की प्राप्ति होती हैकला माने जा सकते हैं । छात्रों को कला शिक्षा द्वारा इसी तथ्य होती हो तभी कला का अर्थ सार्थक होगा और जीवन से कला का सहसम्बन्ध स्थापित हो का ज्ञान देना चाहिए कि वहवे ही कार्य करेंजिससे उसे आत्मक सुख मिलता होसौन्दर्यानुभूति सकेगा। कलाओं द्वारा सौन्दर्यानुभूति के अन्तर्गत व्यक्ति कला में सौन्दर्य को पहचानते हैं और अपने अवकाश के समय का प्रयोग अच्छे कार्यों में लगाते हैं। सृजन भी करते हैंप्रयोग भी करते हैं तथा संस्कृति और कला के विकास में भागीदार भी बनते हैं। यदि कोई व्यक्ति अवकाश के क्षणों का उपयोग सृजनात्मकता के लिए करता हैजैसे-काल्पनिक चित्र बनानागाना-गानाअभिनय करनाकविता लिखनाअन्य रचनात्मक कार्य करना एवं सीखना सृजनात्मकता एवं रचनात्मकता के अतिरिक्त मानव समाज की सेवाअहिंसा एवं सत्यता का प्रचार एवं प्रसार का कार्य भी अवकाश के समय में करता है तो वह अपनी कलात्मक क्रियाओं द्वारा सौन्दर्य की अनुभूति करता है।

अध्यापकों द्वारा अपने विद्यार्थियों की कलाओं द्वारा सौन्दर्यानुभूति के लिये विभिन्न प्रकार के सुझाव देने चाहिये ताकि विद्यार्थी अपने जीवन में सौन्दर्य मूल्यों का महत्त्व और विभिन्न कलाओं का उपयोग करना सीखें। इसके लिए विद्यार्थियों को स्वतन्त्र रूप से सृजनात्मक कार्य करने के लिए प्रेरित करना चाहिए, उन्हें अपने अवकाश के समय का सदुपयोग लेख लिखना, कविता लिखने का अभ्यास करना एवं काल्पनिक चित्र बनाना, वाद्य यन्त्र बजाना, अनुपयोगी सामग्री से कोई कलात्मक रूप सृजित करना, अभिनय करना एवं सीखना, घर को सुन्दर सजाने के लिए प्रयत्न करना,घर में पेड़-पौधे लगाना, गमले में फूल उगाना,विभिन्न प्रकार की शिल्पकारी करना; जैसे-कपड़े सीना, किताबों पर जिल्द चढ़ाना आदि करना चाहिये । उदाहरण के लिये, एक नवीं कक्षा के छात्र ने ग्रीष्मावकाश में स्वयं अपने कमरे की सफाई कर सफेदी की और कमरे में अपने हाथ से रद्दी कागजों को चिपकाकर दो रंगीन चित्र तैयार किये और लगाये, काटकर तारीख का कलैण्डर बनाया, अपना बिस्तर स्वयं साफ कर कमरे में बिछाया, कमरे के लिये रस्सी का गलीचा बुनकर तैयार किया, अपनी किताबों पर जिल्द चढ़ाई एवं क्रमानुसार किताबों की मूवी बनायी। अपने कमरे के बाहर तक हरी घास लगायी और चार गमलों में फूलों के पौधे लगाये। शाम को पड़ोस के पाँच-छ: निरक्षर व्यक्तियों को साक्षर बनाने का कार्यक्रम आरंभ किया। उस छात्र के इन कार्यक्रमों को देखकर सभी ने प्रशंसा की और उससे समय का सदुपयोग करने की प्रेरणा भी ली।

Leave a Comment

CONTENTS