मल्टीमीडिया में साउंड का वर्णन कीजिए।

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मल्टिमीडिया के विभिन्न एलीमेन्ट्स में से साउंड भी एक उपयोगी एलीमेन्ट होती है। यह प्रॉजेक्ट के बिन्दुओं को सुनाने के लिए किसी भी भाषा में अर्थपूर्ण ध्वनि होती है। यह प्रॉजेक्ट के प्रस्तुतिकरण में बैकग्राउंड के रूप में भी हो सकती है। इसके अलावा प्रॉजैक्ट के अवयवों को प्रस्तुत करने में प्रयुक्त संगीत और उच्चारित शब्दों के रूप में होती है। साउंड यूजर को एक मनमोहक प्रजेन्टेशन का आभास करवाती है जिससे प्रॉजेक्ट अथवा वेबसाइट अधिक आकर्षक हो जाती हैं। उल्लेखनीय है कि प्रजेन्टेशन में साउंड का अनुचित प्रयोग वेबसाइट अथवा प्रॉजेक्ट को अर्थहीन भी बना सकता है इसलिए साउंड का प्रयोग आवश्यक होने पर ही करना चाहिए। प्रॉजेक्ट में अत्यधिक साउंड का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए ।

साउंड का महत्व

वायु में कम्पन से ध्वनि का आभास उत्पन्न होता है, किसी स्पीकर में विद्युत तरंगों से कम्पन उत्पन्न करके साउंड की तरंग उत्पन्न की जाती हैं । कम्पन, वायुदाब और आवृत्ति से साउंड के विभिन्न प्रभाव उत्पन्न होते हैं। ध्वनि तरंगों के प्रमुख दो गुणधर्म आयाम और आवृत्ति होते हैं । फ्रीक्वेंसी को चिप भी कहते हैं । एम्पलीट्यूड और फ्रीक्वेंसी के आधार पर साउंड के विभिन्न रूप प्राप्त किये जाते हैं।

भौतिक विज्ञान की शाखा एकाउस्टिक्स में साउंड का अध्ययन किया जाता है। लाउडनेस और वॉल्यूम को प्रेशर लेवल्स कहा जाता है। प्रेशर लेवल्स अथवा वॉल्यूम को DB अथवा डैसीबल्स में व्यक्त किया जाता है। dB मेजरमेन्ट लॉगरिथमिक स्केल के रेफरेन्स पॉइन्ट और लेवल का अनुपात होता है । साउंड आउटपुट पॉवर में एक चौथाई वृद्धि करने पर 6 dB मान बढ़ता है।

स्केल मनुष्य की सुनने की क्षमता व शक्ति के अनुरूप तैयार किया जाता है। कुछ उदाहरणों के साथ डेसीवल स्केल और शक्ति का तुलनात्मक अध्ययन आगे दी गई सारणी में वर्णित है।

साउंड, ऊर्जा को हवा में एक स्थान से दूसरे स्थान में प्रेषित करने वाली तरंगों की एक व्यवस्था होती है । साउंड की मेजरमेन्ट का चुनाव आवश्यकतानुसार किया जाता है जिससे सुनने वाले यूजर को कर्ण प्रिय साउंड सुनाई जा सके। उदाहरणार्थ किसी टेलीफोन में 80 dB से अधिक की साउंड वर्जित होती है। शोधकर्ताओं के प्रयोग से यह तथ्य सामने आया है कि 45 dB तक की साउंड मनुष्य के कानों को क्षति नहीं पहुँचाती है ।

मल्टिमीडिया प्रॉजेक्ट के संदर्भ में साउंड से सम्बन्धित निम्नलिखित तथ्यों का महत्व होता है

साउंड तैयार करने की विधि

कम्प्यूटर में साउंड को रिकॉर्ड और एडिट करने की विधि

मल्टिमीडिया कार्य में साउंड का समन्वय करना

मल्टीमीडिया सिस्टम साउंड

विण्डोज ऑपरेटिंग सिस्टम को कम्प्यूटर में इंस्टॉल करने पर आजकल विभिन्न ध्वनियों का समावेश स्वतः ही हो जाता है। ये साउंड विभिन्न बीप और अलर्ट से सम्बन्धित होती हैं। मैकिन्तोष कम्प्यूटर में निम्नलिखित साउंड ऑल्ट चुने जा सकते हैं।

Chutoy           Laugh Purr

Glass           Logiam Simple Beep

Indigo           Pong 2003 Sosumi

Submarine           Voltage Temple

Uhoh

एम एस विण्डोज एक्सपी में साउंड को WAV फाइल्स में प्रयुक्त किया जाता है। WAV फाइल्स Windows के Media सबफोल्डर में उपस्थित होती हैं। विण्डोज में उपलब्ध साउंड फाइल्स निम्नलिखित होती हैं–

Stast.wav           logoff.wav

notify.wav

chines.wav           recycle.wav

chord.wav           toda.wave

dind.wav           microsoft soundd.wav

विण्डोज के आरम्भ होने पर स्टार्टअप के समय Microsoft sound.wav फाइल प्ले होती है। माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस एक्सपी को इंस्टॉल करने पर निम्नलिखित साउंड फाइल कम्प्यूटर से जुड़ जाती हैं–

applause.wav           type.wav           whose.wav

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camera.wav           chiness.wav           explode.wav

carbrake.wav           clap.wav           glass.wav

laser.wav           driveby.wav           gunshot.wav

projector.wav           recorder.wav

cashreg.wav drumrolt.wav

साउंड रिकॉर्ड और एडिट करना

विण्डोज ऑपरेटिंग सिस्टम में आप अपनी आवाज को या किसी भी तरह की आवाज को माइक के द्वारा इनपुट करके उसे एक वेब फाइल में स्टोर कर सकते हैं। इसके अलावा उसकी एडिटिंग भी कर सकते हैं। दूसरी वेब फाइल को इस नई फाइल में जोड़ सकते हैं।

यह भी मल्टिमीडया का एक बुनियादी एप्लिकेशेन है । आवाज रिकॉर्ड करने के लिए आपके कम्प्यूटर के साउंड कार्ड में माइक का लगा होना आवश्यक है। जब आप एसेसरीज में इंटरटेनमेंट के तहत दिए हुए साउंड रिकॉर्डर नामक विकल्प पर क्लिक करेंगे तो यह आपके सामने आ जाएगा।

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अब आपको यहाँ पर आवाज रिकॉर्ड करने के लिए सबसे दायीं ओर दी हुई रिकॉर्ड बटन पर क्लिक करना है। यह बटन स्क्रीन पर लाल रंग के गोल बटन के रूप में चमकते हुए दिखाई देगी। आप माइक को हाथ में लेकर इस बटन पर क्लिक कर दें। आपकी आवाज रिकॉर्ड होने लगेगी।

जब आप आवाज रिकॉर्ड कर लें तो फिर स्टॉप बटन पर क्लिक करके प्रक्रिया को रोकें । इसके बाद इस आवाज का दोबारा सुनने के लिए प्ले बटन पर क्लिक कर दें। कम्प्यूटर के स्पीकरों के द्वारा आपको यह आवाज सुनाई देने लगेगी।

इस रिकॉर्ड की हुई आवाज को फाइल के रूप में सेव करने के लिए आप फाइल मेन्यू में दिए हुए सेव या सेव ऐज नामक कमाण्ड पर क्लिक कर दें। आपके सामने इसका ऑप्शन डायलॉग बॉक्स आएगा। यहाँ पर आप फाइल का नाम टाइप करके सेव बटन पर क्लिक करें। आपके द्वारा रिकॉर्ड की हुई आवाज निर्धारित फाइल में स्टोर हो जाएगी। अब यदि इस फाइल को दोबारा सुनना है तो आप ओपन कमाण्ड पर क्लिक करके इसे खोल सकते है और प्ले बटन के द्वारा इसे सुन सकते है।

आवाज की क्वालिटी बदलना

आवाज की गुणवत्ता में परिवर्तन करने के लिए आपको साउंड रिकार्डर के फाइल मेन्यू में दिए हुए प्रॉपर्टीज नामक कमाण्ड पर क्लिक करें। इससे प्रॉपर्टीज नामक डायलॉग बॉक्स प्रदर्शित होगा।

यहाँ पर आपको सबसे पहले आवाज फाइल की समस्त जानकारी मिलेगी। इस जानकारी में फाइल का आकार, उसका ऑडियो फॉर्मेट और उसमें कितने सेकेंड की आवाज रिकॉर्ड है यह सब शामिल है।

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अब यदि आप फाइल की गुणवत्ता बदलना चाहते हैं तो फॉर्मेट कन्वर्जन के तहत दिए हुए कन्वर्जन नामक बटन पर क्लिक करें। ऐसा करने से स्क्रीन पर साउंड सिलैक्शन नामक ऑप्शन बॉक्स दिखाई देने लगेगा।

इसमें आप नेम विकल्प विण्डो से दी हुई क्वालिटी में से किसी एक का चुनाव करके ओके बटन पर क्लिक कर दें। फाइल अपने आप परिवर्तित हो जाएगी।

एक फाइल के साथ दूसरी फाइल को जोड़ना

यदि आपने एक फाइल को खोला हुआ है और उसमें पहले से बनी एक और साउंड फाइल को जोड़ना चाहते हैं तो आपको एडिट मेन्यू में दिए हुए इन्सर्ट फाइल नाम कमाण्ड पर क्लिक करना पड़ेगा। इससे आपके सामने फाइल का चुनाव करने के लिए विकल्प मेन्यू आ जाएगा।

यहाँ आप उस साउंड फाइल को चुनाव कर लें जिसे खुली हुई फाइल से जोड़ना है। इसके बाद ओपन बटन पर क्लिक करें। फाईल जुड़ जाएगी और सेकेंडों में उसकी लंबाई परिवर्तित हो जाएगी। यह तो था फाइल को जोड़ना। अगर आप एक फाइल को दूसरी फाइल में मिलाना चाहते हैं तो आप एडिट मेन्यू में दिए गए मिक्स विद् फाइल नाम कमाण्ड का प्रयोग करें। आवाज में कुछ प्रभाव इस्तेमाल करने के लिए साउंड रिकॉर्डर नामक सॉफटवेयर में इफैक्ट मेन्यू होता है। जिसके द्वारा आवाज को बढ़ा सकते हैं, उसे घटा सकते हैं, उसकी गति को बढ़ा और घटा सकते हैं तथा उसमें ईको और रिवर्स जैसे प्रभाव प्रयोग कर सकते हैं। इस तरह से आप विण्डोज ऑपरेटिंग सिस्टम में इस छोटे से एप्लिकेशन को इस्तेमाल करके अपनी आवाज को डिजिटल फार्मेट में रिकॉर्ड कर सकते हैं।

मल्टीमीडिया सिस्टम साउंड

जब आप अपने कम्प्यूटर को ऑन करते हैं तो विंडो के लोड होते समय आपको कुछ आवाजें सुनाई देती हैं । यदि आप मैक प्रयोगकर्ता हैं तो भी आपको कुछ आवाजें सुनाई देंगी। आप आवाजों के सुनाई देने के स्तर में परिवर्तन कर सकते हैं और किस समय कौन–सी आवाज सुनाई दे यह भी अपने पसंद के अनुसार निर्धारित कर सकते हैं। विंडोज़ के कंट्रोल पैनल में जाकर जब आप साउंड प्रॉपर्टीज को खोलेंगे तो आपके सामने इसका डायलॉग बॉक्स चित्र की तरह से आ जाएगा–

आप यहां पर इवेंट नामक विंडो में दिए गए विकल्पों को क्लिक करके स्लेक्ट कर सकते हैं और फिर विकल्प के लिए आवाज का चुनाव साउंड नामक भाग से कर सकते हैं। यदि आपको सुनना है कि यह आवाज कैसी हो तो प्रिव्यू बटन पर क्लिक करके इसे सुना भी जा सकता है।

विंडोज़ में साउंड सिस्टम WAV फाइलों का प्रयोग करता है। यह फाइलें C:\Windows\Media नामक सब–डायरेक्टरी में होती हैं। इनके नाम आपको start.wav, tada.wav की तरह से दिखाई देंगे। जब विंडो ऑपरेटिंग सिस्टम लोड होता है तो आपके सामने डेस्कटॉप आता है तो यह आवाज अपने आप प्ले होती है। यदि आपने अपने कम्प्यूटर में एमएस–ऑफिस को इंस्टाल किया है तो आपको और भी ज्यादा आवाज से संबंधित फाइलें मिलेंगी।

ज्यादातर आवाज से संबंधित फाइलें डिजिटली रिकार्ड की गई होती हैं या फिर Midi (म्यूजिकल इंस्ट्रूमेन्ट डिजिटल इंटरफेस) म्यूजिक होती हैं ।

डिजिटल ऑडियो

डिजिटल ऑडियो का निर्माण तब होता है जब आप आवाज की तरंग अर्थात साउंड वेब को नम्बरों में बदल देते हैं। नम्बरों में बदलने की यह प्रक्रिया डिजिटलाइजिंग कहलाती है । आप आवाज को डिजिटल करने के लिए माइक्रो फोन, सिंथसाइज़र,टेप रिकार्डिंग या सीडी का प्रयोग कर सकते हैं । डिजिटलाइज्ड सांउड Sampled साउंड होती है। सेकेंड का प्रत्येक nth फ्रैक्शन एक सेम्पल होता है और यह डिजिटल इंफॉर्मेशन को बिट तथा बाइट में स्टोर करता है |

डिजिटल रिकार्डिंग की क्वालिटी इस बात पर निर्भर करती है कि आवाज का सेम्पलिंग रेट क्या है। सेम्पलिंग रेट को फ्रिक्वेंसी भी कहा जाता है कि इसे किलोहर्ट्ज (kHz.) में मापते हैं। आम बोलचाल की भाषा में एक सेंकेड के लिए गए एक हजार सेम्पल 1 kHz होते हैं ।

प्रत्येक सेम्पल के मान को कितने नम्बर रि–प्रजेन्ट करते हैं इससे साउंड की बिट डेप्थ और सेम्पल साइज़ तथा रेजोल्यूशन का निर्धारण होता है । इसे आवाज की डायनॉमिक रेंज़ भी कहा जाता है। यदि एक सम्पूर्ण प्रक्रिया को सीधे–सीधे शब्दों में समझा जाए तो आवाज की क्वालिटी पूरी तरह से उसकी रिकार्डिंग पर निर्भर होती है। जब आवाज अच्छे उपकरण के द्वारा रिकार्ड होगी तभी उसे स्पष्ट रूप से प्ले करके सुना जा सकता है।

यहां पर प्ले करने वाले उपकरण पर आवाज की क्वालिटी निर्भर नहीं होती है बल्कि रिकार्ड करने वाले उपकरण पर यह निर्भर होती है। डिजिटल ऑडियो को डिवाइस इनडिपेंडेंट भी कहते हैं।

मल्टिमीडिया के अंतर्गत तीन सेम्पलिंग फ्रिक्वेंसियों को प्रयोग किया जाता है। यह सीडी क्वालिटी 44.1 kHz. 22.05 kHz, और 11.25 KHz होती हैं। सेम्पल साइज या तो 8–बिट होता है या फिर 16–बिट । बड़ा सेम्पल साइज़ रिकार्ड की गई आवाज के लिए ज्यादा डेटा उपलब्ध कराता है । 8–बिट सेम्पल साइज 256 यूनिटों के बराबर एम्पलीटयूड या डायनॉमिक रेज़ को प्रयोग करता है । जबकि 16–बिट सेम्पल साइज़ 65356 की डायनॉमिक रेज़ को उपलब्ध कराता है।

डिजिटल ऑडियो फाइल तैयार करना

डिजिटल ऑडियो फाइल को तैयार करने के लिए आप किसी भी तरह की आवाज को कम्प्यूटर के द्वारा पढ़े जाने वाले डिजिटल मीडिया पर क्लिक करें। उदाहरण के तौर पर यदि आपके पास किसी कैसेट में कोई गाना रिकार्ड है तो आप उसे प्ले करके कम्प्यूटर में रिकार्ड करें। इससे डिजिटल ऑडियो फाइल का निर्माण होगा। डिजिटल आवाज रिकार्ड करने के लिए आपको दो तथ्यों का विशेष ध्यान रखना होगा–

आवाज की क्वालिटी के अनुसार आपके कम्प्यूटर में RAM और हार्डडिस्क में खाली जगह का होना अनिवार्य है। इसका अर्थ यह है कि जितनी बेहतर क्वालिटी की आवाज होगी वह RAM और हार्डडिस्क में उतनी ही ज्यादा जगह लेगी।

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रिकार्ड लेवल की सही सेटिंग ही आपको उत्कृष्ट डिजिटल ऑडियो प्रदान करती है।

ऑडियो रेजोल्यूशन जो आप या तो 8–बिट रख सकते हैं या 16–बिट, पूरी तरह से आपकी जरूरत पर निर्भर होता है लेकिन ज्यादा बड़ा सेम्पल साइज़ अर्थात 16–बिट ऑडियो रेजोल्यूशन आपको वास्तविक आवाज प्रदान करेगा।

रिकार्डिंग करते समय स्टीरियो मोड का चुनाव आपको वास्तविक आवाज प्रदान करता है क्योंकि हमें ईश्वर ने दो कान प्रदान किए हैं। इसलिए हमें मोनो के बजाय स्टीरियो आवाज ज्यादा वास्तविक लगती है । इसी लॉजिक के अनुसार आप यह बात भी समझ सकते हैं कि मोनो की अपेक्षा स्टीरियो साउंड फाइल को दुगुनी जगह की आवश्यकता होती है । दी गई तालिका में आप इसे और स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं–

मोनोफोनिक रिकार्डिंग के लिए निम्नलिखित फॉर्मूले को प्रयोग किया जाता है–

सेम्पलिंग रेट x रिकार्डिंग का समय (सेकेंडों में)x (बिज रेज़ोल्यूशन/8) x 1

स्टीरियो रिकार्डिंग के लिए यह फॉर्मूला बदलकर इस तरह से हो जाता है–

सेम्पलिंग रेट x रिकार्डिंग का समय (सेकेंडों में)x (बिज रेजोल्यूशन/8) x 2

रिकार्डिंग लेवल

रिकार्डिंग करते समय यदि आपने रिकार्डिंग का स्तर सही समय से सेट नहीं किया है तो आपको स्पष्ट और वास्तविक आवाज प्राप्त नहीं होगी। इसलिए यदि आप माइक्रोफोन के द्वारा रिकार्डिंग कर रहे हैं तो सबसे पहले संबंधित सॉफ्टवेयर में जाएं और रिकार्डिंग के स्तर को सही तरह से बैलेंस करके सेट करें। इस प्रक्रिया में आप आवाज रिकार्ड करके और उसे प्ले करके सनें । जब आपको अपनी सेटिंग सही लगे तभी आप मल्टीमीडिया के लिए आवाज को रिकार्ड करें। प्रत्येक रिकार्डिंग सॉफ्टवेयर में माइक्रोफोन के लिए कई स्तर होते हैं। आप कभी भी अधिकतम स्तर को प्रयोग न करें। यदि आप सीमा को पार करेंगे तो आपको अच्छी आवाज प्राप्त नहीं होगी। इसी तरह से न्यूनतम स्तर पर भी न जाएं, बीच में ही स्तर को सेट करें।

डिजिटल रिकार्डिंग की एडिटिंग करना

विंडो के अंतर्गत यदि आपने आवाज को रिकार्ड किया है तो आप देखेंगे कि साउंड रिकार्डर में किस तरह से डिजिटल ऑडियो फाइल आपको तरंगों के रुप में दिखाई दे रही है। आप साउंड रिकॉर्डर नामक विंडो की यूटीलिटी से आवाज रिकार्ड कर सकते हैं और उसे कुछ हद तक एडिट कर सकते हैं। लेकिन इस कार्य के लिए आप साउंड फोर्ज विशेष साउंड एडिटिंग सॉफ्टवेयर ही प्रयोग करें। क्योंकि इन्हीं सॉफ्टवेयरों पर विशेष प्रभावों को आवाज में जोड़ा जा सकता है। साउंड एडिटिंग में जिन मुख्य ऑपरेशनों का प्रयोग होता है वह निम्नलिखित हैं–

मल्टीपल ट्रैक– डिजिटल साउंड में आपको अनेक ट्रेक मिलेंगे। इनमें म्यूजिक का टैक अलग होगा। वॉयस ओवर का ट्रैक अलग होगा और साउंड इफेक्ट का ट्रैक अलग होगा। आप इन्हें आपस में मिलाकर एक सिंगल ऑडियो फाइल का निर्माण कर सकते हैं। आप संगीत अलग रिकार्ड करके रख सकते हैं, आवाज अलग रिकार्ड करके रख सकते हैं और फिर इन दोनों में से जिसमें भी विशेष प्रभाव लगाने हों, उन्हें लगाकर अलग ट्रैक में रख सकते हैं । आवश्यकता पड़ने पर तीनों ट्रैकों को मिलाकर एक सम्पूर्ण ऑडियो फाइल का निर्माण किया जा सकता है ।

ट्रिमिंग– ऑडियो फाइल में डैड एयर अर्थात खाली स्थान को हटाने की प्रक्रिया ट्रिमिंग कहलाती है । इसके अतिरिक्त आप अनचाही आवाज को ही इसी प्रक्रिया के तहत ट्रैक से निकाल सकते हैं। यह कार्य ज्यादातर माउस के द्वारा ड्रैग करके किए जाते हैं।

स्पलाइसिंग एंड असेम्बली– इस प्रक्रिया के तहत आप डिजिटल ऑडियो फाइल से उन आवाजों को निकाल सकते हैं जिनकी जरूरत आपको नहीं है। पुराने जमाने में यह कार्य मैग्नेटिक टेप को वास्तविक रूप में काट कर किया जाता था। इसे टचअप प्रोसेस भी कहते हैं।

वॉल्यूम एडजस्टमेंट– इस प्रक्रिया में आप आवाज के किसी भी तत्व को घटा या बढ़ा सकते हैं। उदाहरण के लिए यदि आपने संगीत रिकार्ड किया गया है और उसमें बांसुरी, तबला तथा हारमोनियम जैसे उपकरणों का प्रयोग किया गया है और आप बांसुरी की आवाज को सबसे ज्यादा रखना चाहते हैं तो यह कार्य इस प्रोसेस के द्वारा सम्पन्न होता है।

फॉर्मेट कंवर्जन– इस प्रोसेस के तहत आप डिजिटल ऑडियो फाइल के फॉर्मेट को बदल सकते हैं जिससे उसे दूसरे सिस्टमों और प्लेटफॉर्म पर आसानी से प्रयोग किया जा सके। उदाहरण के तौर पर wav फॉर्मेट को बदलकर MP3 फॉर्मेट में ले जाना।

रि–सेम्पलिंग या डाउन सेम्पलिंग– इस प्रक्रिया में आप आवाज को बिट को घटाते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि आपने आवाज 16–बिट पर रिकार्ड की है और आपको जरूरत 8–बिट की है तो इस प्रक्रिया के तहत आप यह कार्य कर सकते हैं।

फेड–इन–एंड फेडआउट– इस प्रक्रिया के तहत आवाज को स्मूथ किया जाता है और यदि आवाज स्मथ है तो उसे तीक्ष्ण बनाने का कार्य भी इसी के अंतर्गत होता है।

इक्वलाइजेशन– वर्तमान समय में प्रयोग होने वाले साउंड एडिटिंग सॉफ्टवेयर डिजिटल इक्वलाइजेशन अर्थात EQ की क्षमता से लैस होते हैं। जिसकी वजह से साउंड फ्रिक्वेंसी में मनचाहा परिवर्तन करके आवाज को प्रभावित किया जा सकता है।

टाइम स्ट्रेचिंग– इस प्रक्रिया के अंतर्गत साउंड फाइल की पिच को बदले बिना उसकी लेंथ अर्थात समय में परिवर्तन किया जाता है । यह बहुत ही उपयोगी सुविधा होती है लेकिन कई बार इसका प्रयोग आवाज की क्वालिटी पर भी असर डालता है ।

डिजिटल सिगनल प्रोसेसिंग – इस प्रक्रिया के अंतर्गत आप आवाज में डिले, कोरस, फ्लैंज और इसी तरह के दूसरे विशेष प्रभाव लगा सकते हैं। अच्छे ऑडियो एडिटिंग सॉफ्टवेयरों में यह सुविधा निहित होती है।

रिवर्सिंग साउंड– इस साधारण से प्रोसेस के द्वारा आप आवाज को पूरी तरह से रिवर्स कर सकते हैं और जब आप फाइल को प्ले करेंगे तो वह दूसरे सिरे से प्ले होना प्रारंभ होगी।

ऑडियो फाइल फॉर्मेट

जब आप किसी मल्टिमीडिया प्रोजेक्ट की रचना करते हैं तो आपको इसमें अनेक फाइल फॉर्मेटों को प्रयोग करना होता है । इसके अलावा टेक्स्ट,ट्रांसलेटर, साउंड,इमेज, एनीमेशंस और डिजिटल वीडियो क्लिप भी इसमें शामिल होते हैं। साउंड फाइल का फॉर्मेट डिजिटल साउंड डेटा को बिट और बाइट के रूप में डेटा फाइल में अर्गनाइज़ करने की एक ऐसी विधि है जिससे उसे सरलतापूर्वक पहचाना जा सके। निम्न तालिका में आप वर्तमान समय में प्रयोग होने वाले साउंड फाइल फॉर्मेटों को पढ़ सकते हैं–



डिजिटल साउंड के रूप में

मैकंटोश कम्प्यूटर में डिजिटल साउंड एक डेटा फाइल के रूप में स्टोर होती है। उदाहरण के तौर पर AIF और SDII इसके जाने –माने फॉर्मेट हैं। इसके अतिरिक्त यह SND फॉर्मेट में भी स्टोर होती है। मैकंटोश एक विशिष्ट डुयेल फोर्क फाइल स्ट्रक्चर प्रयोग करता है। जिसकी वजह से ऑडियो फाइलों को प्रयोग करना आसान हो जाता है।

विंडोज़ ऑपरेटिग सिस्टम में डिजिटल साउंड ज्यादातर WAV फाइलों में स्टोर होती है लेकिन इंटरनेट में कुछ नए फॉर्मेटों को प्रयोग किया जाता है ।

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कम्प्यूटर वैज्ञानिकों ने बिट और बाइट के रूप में वेव फॉर्म साउंड को स्टोर करने के कई तरीके इजाद किए हैं। इनमें रेड बुक ऑडियो फाइल लीनियर पल्स कोड मॉडयूलेशन पर आधारित है । CD में स्टोर ऑडियो इसी विधि का पालन करती है। एक ऑडियो सीडी में लगभग 80 मिनट का डेटा स्टोर होता है । बदलती हुई तकनीक ने CD–ROM/XA अर्थात एक्सटेंडेड आर्कीटेक्चर फॉर्मेट को इज़ाद किया जिसकी वजह से रि–राइटेबल सीडी चलन में आई।

वर्तमान समय में विंडोज़ और मैक दोनों ही मिडी फाइलों को प्रयोग करते हैं। जहां पर्सनल कम्प्यूटर में प्रयोग होने वाले साउंड बोर्ड में मिडी इंटरफेस इनबिल्ट होता है वही मैकंटोश में इसके लिए मिडी एडैप्टर की आवश्यकता होती है जिसके द्वारा मिडी इंस्ट्रूमेंट से इनपुट और आउटपुट प्राप्त किया जा सके । दोनों ही प्लेटफॉर्मों पर मिडी साउंड को .mid एक्सटेंशन वाली फाइलों में स्टोर किया जाता है।

मिडी का विकास 1980 के दशक में हुआ था। मिडी फाइल के अंतर्गत टाइम स्टैम्प्ड कमांडों की एक सूची होती है जो वास्तव में म्यूजिकल एक्शनों की रिकार्डिंग से युक्त होती है । जब इन्हें मिडी प्ले बैक डिवाइस पर भेजा जाता है तो परिणामस्वरूप आवाज प्राप्त होती है । यह मिडी मैसेज़ ही जटिल और क्रमबद्ध आवाज को किसी इंस्ट्रूमेंट या सिंथेसाइज़र पर प्ले करते हैं। इसीलिए मिडी फाइल का आकार छोटा होता है। मिडी डेटा के विपरीत डिजिटल ऑडियो डेटा आवाज का वास्तविक रिप्रजेंटेशन होता है । इसमें यह हजारों व्यक्तिगत नम्बरों के रूप में स्टोर होता है इन्हें सैम्पल्स कहते हैं । यह डिवाइस डिपेंडेंट नहीं होता है इसीलिए डिजिटल ऑडियो साउंड चाहे जितनी बार प्ले किया जाए वह एक जैसी ही रहती है। शायद यही एक कारण है कि जिस फाइल में डिजिटल ऑडियो स्टोर होता है उसका आकार हमेशा बड़ा रहता है। डिजिटल आडियो को म्यूजिक सीडी तथा MP3 फाइलों के लिए प्रयोग किया जाता है । MP3 फाइल में इसका आकार घटकर कम हो जाता है।

मिडी साउंड के फायदे

मिडी डेटा को यदि हम इमेज से तुलना करके समझना चाहें तो यह वेक्टर इमेज के समान है तथा डिजिटल ऑडियो बिटमैप ग्राफिक्स के समान है। मिडी फाइलों को प्रयोग करने के निम्नलिखित फायदे हैं–

1. डिजिटल ऑडियो फाइलों की तुलना में इनका आकार छोटा होता है। आमतौर पर यह डिजिटल ऑडियो फाइल से 200 से लेकर 1000 टाइम तक छोटी होती है।

2. आकार में छोटा होने की वजह से यह RAM, हार्डडिस्क और सीपीयू में कम जगह लेती है।

3. आकार में छोटा होने की वजह से इसे वेब पेजों में लोड करके प्ले करना असान होता है।

4. कई बार मिडी साउंड सोर्स को प्रयोग करने से आपको उच्च गुणवत्ता वाली आवाज़ प्राप्त होती है और यह डिजिटल ऑडियो फाइलों से भी बेहतर होती है |

5. आप मिडी फाइल की लम्बाई को कभी भी परिवर्तित कर सकते हैं। इसके लिए म्यूजिक की पिच बदलने की आवश्यकता नहीं है और इसमें ऑडियो क्वालिटी भी खराब नहीं होती है। मिडी डेटा पूरी तरह से एडिट किया जा सकता है और आप इसकी न्यूनतम डिटेल को अपनी आवश्यकता के अनुसार परिवर्तित कर सकते हैं।

मिडी डेटा वास्तव में आवजा को रि–प्रजेंट न करके केवल म्यूजिकल इंस्ट्रमेंट को कंट्रोल करता है। इसलिए यदि मिडी प्लेबैक डिवाइस नहीं है तो हम साउंड सुनने में असमर्थ होंगे। इसके अलावा मिडी को बोलने वाले डायलॉग बॉक्स के रूप में सरलता से प्रयोग नहीं किया जाता है क्योंकि यह तकनीकी रूप से बहुत ही जटिल और खर्चीली प्रक्रिया है ।

इन बातों का ध्यान रखें–

1. यदि आपके कम्प्यूटर में RAM की मात्रा ज्यादा नहीं है तो डिजिटल ऑडियो फाइल को प्ले करने में परेशानी होगी। इसके अलावा हार्डडिस्क में खाली स्थान यदि पर्याप्त मात्रा में है तभी इस फाइल को स्टोर किया जा सकता है।

2. मिडी साउंड के संबंध में एक बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए कि इसकी साउंड क्वालिटी बहुत ही उच्च स्तर की होती है। लेकिन इसके लिए आपको अत्यंत उच्च क्वालिटी का मिडी प्लेबैक हार्डवेयर भी चाहिए होता है।

वेब के लिए साउंड

आप मिडी फाइल और डिजिटल ऑडियो फाइल दोनों को वेब पर सरलतापूर्वक प्रयोग कर सकते हैं। यदि वेबसाइट पर इनमें से किसी भी तरह की साउंड फाइल है और आप इसे प्ले करना चाहते हैं तो इसका सबसे सरल व सुरक्षित तरीका है कि पहले फाइल को पूरी तरह से अपने कम्प्यूटर में डाउनलोड करें और फिर इसे प्ले करें। वेबसाइट में साउंड के ट्रैक जोड़ने के लिए आप माइक्रोमीडिया फ्लैश नामक सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर सकते हैं। इसके लिए यह सॉफ्टवेयर आपको एक विशेष सुविधा प्रदान करता है जिसका प्रयोग करके आप बड़ी फाइल को छोटी फाइल में बदलकर वेबसाइट से जोड़ सकते है। लेकिन इस प्रक्रिया में आवाज की क्वालिटी घट जाती है।

मल्टीमीडिया प्रोजेक्ट में साउंड जोड़ने से संबंधित नियम :

1. सबसे पहले आप यह सुनिश्चित करें कि जिस साउंड फाइल को मल्टीमीडिया प्रोजेक्ट से जोड़ना है उसका फॉर्मेट मल्टीमीडिया ऑथरिंग टूल्स ग्रहण करेगा या नहीं।

2. साउंड फाइल की प्ले बैक क्षमता की पूरी जानकारी रखें कि इसके लिए कौन से प्लग–इन्स की जरूरत होगी।

3. यह भी सुनिश्चित करें कि आपको किस तरह की आवाज चाहिए। उदाहरण के तौर पर सामान्य बैकग्राउंड म्यूजिक, साउंड इफेक्ट या केवल बोले हुए डायलॉग। प्रोजेक्ट में किस जगह पर आवाज को प्रयोग किए जाएगा। इसकी पूरी जानकारी आपके पास स्टोरी बोर्ड में मौजूद होनी चाहिए।

डिजिटल साउंड स्टैण्डर्ड

डिजिटल साउंड की गुणवत्ता बनाये रखने हेतु जो मानकीकरण किया गया है उसे ISO 10149 का दर्जा दिया गया है। इसे कम्प्यूटर वैज्ञानिक रेड बुक स्टैंडर्ड भी कहते हैं । इसका डिजिटल ऑडियो सेम्पल साइज़ 16–बिट और सेम्पलिंग रेट 44.1 kHz होता है । कुछ उच्च स्तर के ऐसे साउंड बोर्ड या साउंड कार्ड भी उपलब्ध हैं जिसमें सेम्पलिंग रेट 48kHz तक हो जाता है । साउंड फाइल द्वारा हार्डडिस्क में लिया गया स्पेस इस फॉर्मूले पर निर्भर होता है–

(सेम्पलिंग रेट x बिट्स पर सेम्पल)/8 = बाइट पर सेकेंड

यदि आप बाइट की जगह किलोबाइट प्रयोग करना चाहते हैं तो सूत्र को इस तरह से प्रयोग करें–

सेम्पल रेट x सेम्पल साइज़/8x सेकेंड x 2 (स्टीरियो) = फाइल साइज़

उदाहरण के तौर पर यदि आप 60 सेकेंड की स्टीरियो साउंड की रेड बुक ऑडियो फॉमेंट में रिकार्ड करेंगे तो ऊपर दिए हुए सूत्र के अनुसार इसके द्वारा हार्डडिस्क के घेरे जाने वाले स्पेस की गणना इस तरह से होगी–

44.1 X 16/8 X 60 x 2 = 10584KB = 10.59 MB

इस क्वालिटी की साउंड को यदि आप मल्टिमीडिया प्रोजेक्ट में जोड़ना चाहते हैं तो इसकी रिकार्डिंग के लिए साउंड स्टूडियो का प्रयोग करें। बाजार में DAT अर्थात डिजिटल ऑडियो टेप आसानी से उपलब्ध हैं जिन पर इसी क्वालिटी की आवाज को रिकार्ड किया जा सकता है और उसे प्ले किया जा सकता है। यदि आवाज में किसी तरह की खरखराहट अर्थात Noises हैं तो इसे साउंड एडीटर के द्वारा निकाल दें।

यदि आप इंटरनेट पर किसी वेबसाइट पर उपलब्ध साउंड ट्रैक को मल्टीमीडिया प्रोजेक्ट में प्रयोग करना चाहते हैं तो इसके लिए वेबसाइट की अनुमति लेनी आवश्यक होती है। अन्यथा कॉपीराइट एक्ट का उल्लंघन होता है।

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