कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन के बारे में लिखिए।

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कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन जैसा कि नाम से ही विदित होता है एक ऐसे अनदेशन की ओर संकेत करता है जिसे कम्प्यूटर मशीनरी की मदद से संपादित किया जाता है। अनदेशन प्रक्रिया को स्व:अनुदेशित तथा वैयक्तिक बनाने में इस प्रकार के अनुदेशन को शिक्षण मशीन द्वारा संचालित अनुदेशन से एक कदम आगे तथा अभिक्रमित पाठ्यपुस्तकों द्वारा प्रदत्त अनुदेशन से दो कदम आगे का नवाचार माना जा सकता है । इस बात की पुष्टि करते हुए हिलगार्ड एवं बाउर लिखते हैं–कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन का क्षेत्र अब इतना विस्तृत हो गया है कि अब इन्हें मात्र स्किनर द्वारा प्रतिपादित अभिक्रमित अधिगम अथवा शिक्षण मशीन के अनुप्रयोगों के रूप में नहीं समझा जा सकता।

उपरोक्त कथन यह स्पष्ट संकेत दे रहा है कि कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन एक ऐसे आधुनिकतम नवाचार को हमारे सामने लाता है जिसे मात्र शिक्षण मशीन द्वारा प्रस्तुत अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री के समकक्ष नहीं ठहराया जा सकता। उसका क्षेत्र, आयाम और अनुदेशन तकनीकें बहुत कुछ मामलों में बहुत अधिक व्यापक और विस्तृत हैं। अन्त:कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन को मात्र एक ऐसे अनुदेशन के रूप में, जिसे कम्प्यूटरों (शिक्षण मशीन से कुछ अधिक प्रगतिशील मशीनों) की सहायता से अभिक्रमित अधिगम सामग्री के प्रस्तुतीकरण हेतु काम में लाया जाता है, परिभाषित नहीं किया जा सकता।

इस सन्दर्भ में अब आगे कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन की एक अन्य परिभाषा जो भट्ट एवं शर्मा द्वारा प्रदान की गई है, की चर्चा करना उपयुक्त रहेगा। इसके अनुसार कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन को शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति की दिशा में विद्यार्थी एवं कम्प्यूटर नियन्त्रित प्रस्तुतीकरण तथा अनुक्रिया रिकॉर्डिंग उपकरण के मध्य चलने वाली अन्तःक्रिया के रूप में समझा जा सकता

उपरोक्त परिभाषा कुछ निम्न तथ्यों को हमारे सामने लाने का प्रयत्न कर रही है-

(i) कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन में किसी एक विद्यार्थी तथा कम्प्यूटर के बीच उसी प्रकार की अन्तःक्रिया चलती है जैसी कि एक ट्यूटोरियल प्रणाली में शिक्षकऔर शिक्षार्थी के बीच चलती है।

(ii) कम्प्यूटर द्वारा विद्यार्थियों को व्यक्तिगत रूप से अनुदेशन सामग्री को प्रस्तुत करना पूरी तरह सम्भव है।

(iii) जैसे ही अनुदेशन सामग्री कम्प्यूटर के मॉनीटर पर प्रस्तुत की जाती है विद्यार्थी उससे फायदा उठाकर उसके प्रति वांछित अनुक्रियाएं व्यक्त करता है। इन अनुक्रियाओं को कम्प्यूटर द्वारा भलीभाँति ग्रहण करके, विद्यार्थी को आगे क्या करना है, इस तरह के अनुदेशन प्रदान किए जाते हैं।

(iv) कम्प्यूटर और विद्यार्थी के बीच चलने वाली अन्तःक्रिया निर्धारित अनुदेशन उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक बनती है।

इस तरह उपरोक्त परिभाषा में जहाँ कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन में लगभग सभी व्यावहारिक पक्षों को स्पष्ट करने की चेष्टा की गई है वहाँ इसमें प्रदत्त अनुदेशन की प्रकृति और विशेषताओं को सामने न ला सकने वाली कमी स्पष्ट रूप से खलती है। अतः अगर इस कमी का निवारण कर लिया जाए तो संशोधित रूप में कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन को निम्न शब्दावली में परिभाषित किया जा सकता है।

कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन से अभिप्राय ऐसी अनुदेशन तकनीक या विधि से है जिसके अन्तर्गत विद्यार्थी तथा कम्प्यूटर संयंत्र (जिसमें सॉफ्टवेयर के रूप में वांछित अनुदेशनात्मक सामग्री रहती है) के बीच एक ऐसी प्रयोजनपूर्ण अन्तःक्रिया चलती रहती है जिसके फलस्वरूप विद्यार्थी विशेष को अपनी क्षमताओं तथा अधिगम गति का अनुसरण करते हुए वांछित अनुदेशनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति में समुचित सहायता प्राप्त होती रहती है।

कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन की मूल मान्यताएं वैयक्तिक स्व–अनुदेशन के निमित्त बना कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन कुछ निम्न आधारभूत मान्यताओं पर टिका हुआ है।

1. एक ही समय पर अनेक विद्यार्थियों को एक साथ अनुदेशन प्रदान करना– कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन हजारों तथा लाखों विद्यार्थियों को एक ही समय में वैयक्तिक स्व–अनुदेशन प्राप्त करने की सामर्थ्य रखता है । जो कुछ भी किसी विद्यार्थी को अपनी रुचि के क्षेत्र या विषय विशेष के प्रकरण की जानकारी हेतु चाहिए वह उसे कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन के माध्यम से अनायास ही प्राप्त होता रहता है। दूसरे इस तरह से उसे जो अभिक्रमित अधिगम सामग्री व्यक्तिगत रूप में कम्प्यूटर की सहायता से प्राप्त होती है वह प्रायः सर्वोत्तम स्तर की ही होती है । इस तरह से कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन की पहली प्रमुख मूल मान्यता यह है कि वैयक्तिक स्व अनुदेशन एक ही समय पर अनेक अधिगमकर्ताओं को बहत आसानी से प्राप्त होता रहना चाहिए।

2. विद्यार्थियों की निष्पत्ति का स्वत: ही रिकॉर्डिंग होते रहना– अनुदेशनात्मक सामग्री को प्रस्तुत किए जाने पर एक विद्यार्थी किस प्रकार की अनुक्रियाएं व्यक्त करता है ? अधिगम परिणामों की दृष्टि से विद्यार्थी विशेष का कैसा निष्पत्ति स्तर है ? इन सब बातों को कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन के अन्तर्गत स्वतः ही रिकॉर्डिंग होती रहती है। इस प्रकार की रिकार्डिग के माध्यम से विद्यार्थी को स्व–अनुदेशन हेतु आगे क्या चाहिए इस प्रकार नियोजन सम्बन्धी बातें विद्यार्थी को अधिगम पथ पर आगे बढ़ाने के लिए कम्प्यूटर सहाय अनदेशन कार्यक्रम में लगातार मिलती रहती हैं। इस तरह से विद्यार्थियों की निष्पत्ति का उत्तरोत्तर स्वचालित रिकॉर्डिंग के माध्यम र से लेखा–जोखा रखा जाना कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन की दूसरी बड़ी मूल मान्यता है।

3. विधियों एवं तकनीकों के प्रयोग में विविधता– कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन के अन्तर्गत . यह मूल धारणा कार्य करती है कि सभी विद्यार्थी एक जैसी विधि या तकनीक के माध्यम से । शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते और सभी विषय तथा प्रकरणों के अनुदेशन हेतु एक जैसी विधि या तकनीक नहीं अपनायी जा सकती। अन्तः यह अनुदेशन यह मानकर चलता है कि किसी विषय या प्रकरण के अनुदेशन हेतु विभिन्न प्रकार की तकनीकें या विधियाँ अपनाई जानी चाहिए ताकि विद्यार्थी अपने वैयक्तिकता तथा अनुदेशन सामग्री के अनुरूप अपने–अपने हिसाब से किसी एक विधि या तकनीक का चयन करके अधिगम पथ पर उचित रूप से आगे बढ़ते रहें। .. कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन को तीन विभिन्न टेक्नोलॉजी कम्प्यूटर अनुदेशन के क्रियान्वयन हेतु तीन प्रकार की विभिन्न टेक्नोलॉजी प्रयुक्त होती हैं जिन्हें हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर तथा कोर्सवेयर के नाम से जाना जाता है ।

कम्प्यूटर अपने मशीनी रूप से हार्डवेयर टेक्नोलॉजी का उपयोग करता है। मशीन की तरह इसके विभिन्न कलपुर्जे तथा काम करने वाले विभिन्न भाग या अवयव होते हैं। हम अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप ही कम्प्यूटर मशीनरी खरीदते हैं। अन्य मशीनों की तरह कम्प्यूटरों को उन्हें सम्भालने तथा कोई खराबी आने पर सुधारने के लिए हार्डवेयर टेक्नोलॉ तथा टेक्नीशियन की जरूरत पड़ती रहती है। इस प्रकार कम्प्यूटर में उनका मशीनी रूप में संचालन तथा देखभाल इन दोनों कार्यों हेतु हार्डवेयर टेक्नोलॉजी का प्रयोग आवश्यक होता है।

विद्यार्थियों को किसी भी प्रकार का अनुदेशन देने में कम्प्यूटर का मशीनी रूप तब तक कुछ नहीं कर सकता जब तक कि मशीन को संचालित करने में समर्थ सॉफ्टवेयर का उसमें इस्तेमाल न हो । सॉफ्टवेयर एक तरह से ऐसे प्रोग्राम होते हैं जो एक ओर तो कम्प्यूटर मशीन को संचालित करने हेतु मशीनी भाषा में कम्प्यूटर को आदेश देते हैं तो दूसरी ओर कोर्सवेयर टेक्नोलॉजी द्वारा बनाए गए अनुदेशन कार्यक्रमों को विद्यार्थियों के सामने प्रस्तुत करने की क्षमता रखते हैं। इन दोनों प्रकार के सॉफ्टवेयरों को सिस्टम सॉफ्टवेयर तथा एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर की संज्ञा दी जाती है। कोई भी कम्प्यूटर मशीन इस तरह सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी के बिना न तो क्रियाशील ही हो सकती है और न उससे कोई उपयोगी कार्य अनुदेशन आदि ही कराया जा सकता है।

कम्प्यूटरों में प्रयुक्त तीसरे प्रकार की टेक्नोलॉजी कोर्सवेयर टेक्नोलॉजी का कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन से लाभ उठाने वाले विद्यार्थियों से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता। इस प्रकार की टेक्नोलॉजी की सेवाओं की जरूरत सॉफ्टवेयर प्रोग्राम तैयार करने वाले प्रोग्रामर्स को होती है। क्योंकि ये प्रोग्रामर्स ही ऐसे प्रोग्राम तैयार करते हैं जिनसे वांछित अभिक्रमित अनुदेशन विद्यार्थियों को प्राप्त होते रहते हैं। माना एक नवीं कक्षा का विद्यार्थी रसायन शास्त्र के तत्त्व, यौगिक और मिश्रण उपविषय पर स्व–अनुदेशन प्राप्त करना चाहता है । इस तरह की अनुदेशन सेवाएं उपलब्ध कराने हेतु हार्डवेयर के रूप में एक कम्प्यूटर मशीन को सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी की सेवाएं लेनी होंगी। जो सॉफ्टवेयर प्रोग्राम मशीन को चलाने तथा अनुदेशन प्राप्त कराने हेतु कम्प्यूटर मशीन में डाले जाएंगे उन्हें सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर्स द्वारा बनाया जायेगा।

परन्तु यहाँ अनुदेशन विशेष पर सॉफ्टवेयर का निर्माण करने हेतु सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर्स को कोर्सवेयर टेक्नोलॉजिस्ट की जरूरत पड़ेगी। कोर्सवेयर टेक्नोलॉजिस्ट्स के रूप में जो भी एक विशेषज्ञ तथा विशेषज्ञों की टीम यहाँ सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर्स की सहायता करेगी उसे निम्न क्षेत्रों में आवश्यक निपुणता शामिल होनी चाहिए।

(i) विषय विशेष पर स्वामित्व

(ii) विषय विशेष के शिक्षण में विशेषज्ञ होना

(iii) अनुदेशनात्मक टेक्नोलॉजी में पारंगत होना

(iv) अनुदेशनात्मक सामग्री के निर्माण एवं प्रयोग में प्रवीण होना।

इस तरह की निपुणताओं से युक्त कोर्सवेयर टेक्नोलॉजिस्ट जो भी अनुदेशन सामग्री तथा अनुदेशन विधियों एवं तकनीकों से युक्त कोर्सवेयर सामग्री तैयार करेगा, सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजिस्ट द्वारा उसे कम्प्यूटर मशीन (हार्डवेयर) में प्रयुक्त करने हेतु आवश्यक सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों में बदल दिया जाएगा।

इस प्रकार से उपरोक्त तीनों प्रकार, हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर तथा कोर्सवेयर टेक्नोलॉजी और इनसे सम्बन्धित टेक्नोलॉजिस्ट्स सभी के तालमेल से कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन हेतु ऐसी आवश्यक अनुदेशनात्मक सामग्री का निर्माण सम्भव होता है जिसे वैयक्तिक स्व–अनुदेशन हेतु ठीक तरह से काम में लाया जा सके।

कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन के विभिन्न प्रकार या रूप जिस तरह की परिस्थितियाँ होती हैं, जैसा प्रयोजन सिद्ध करना होता है और जैसा वैयक्तिक स्व–अनुदेशन अधिगमकर्ता को प्राप्त करना होता है, इन बातों के परिप्रेक्ष्य में कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन के विविध प्रकार एवं रूप देखने को मिल सकते हैं। इनके कुछ प्रमुख प्रकारों या रूपों की चर्चा हम नीचे कर रहे हैं।

1. सूचनात्मक कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन– इस प्रकार का कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन विद्यार्थी को वांछित सूचनाएं प्रदान करने में सहायक सिद्ध होता है । यहाँ कम्प्यूटर एक अच्छे पूछताछ अधिकारी की भूमिका बड़े ही प्रभावशाली ढंग से निभाता है। जो कुछ उससे पूछा जाता है अपनी संग्रहित सूचना सामग्री की मदद से वह वांछित सूचना पूछने वाले को तुरन्त ही प्रदान करने की चेष्टा करता है। वैसे तो इस प्रकार के अनुदेशन का एकमात्र उद्देश्य संप्रत्यय निर्माण और कौशल अर्जन हेतु आवश्यक सूचनाएं ही प्रदान करना होता है परन्तु पूछताछ प्रक्रिया और खोजपूर्ण दृष्टिकोण का अनुसरण होने के कारण इस प्रकार का अनुदेशन विद्यार्थी को अधिगम अर्जन में पर्याप्त आत्मनिर्भर बनाकर स्व–अधिगम के नए–नए रास्ते ढूँढ़ने में यथेष्ट मदद कर सकता है।

2. ड्रिल तथा अभ्यास कार्यक्रमों से सम्बन्धित अनुदेशन– इस प्रकार के अनुदेशन कार्यक्रम में विद्यार्थियों को पहले से ही अर्जित अधिगम अनुभवों को स्थायी एवं व्यवहार में लाने योग्य बनाने हेतु आवश्यक ड्रिल तथा अभ्यास करने सम्बन्धी अवसर प्रदान किए जाते हैं। विभिन्न प्रकार के कौशलों के समुचित अर्जन में इस प्रकार के अभ्यास कार्यक्रमों का काफी महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है । उदाहरण के लिए अगर विद्यार्थियों को गणा करने सम्बन्धी गणितीय काशल का अभ्यास कराना हो तो कम्प्यूटर के स्क्रीन पर एक विद्यार्थी को निम्न प्रकार की समस्या देखने को मिलेगी।

विद्यार्थी से आशा की जाएगी कि वह की–बोर्ड को सम्बन्धित कुन्जियों को दबाकर इस समस्या के प्रति अपनी अनुक्रिया व्यक्त करे। अगर वह गलत उत्तर देता है तो कम्प्यूटर स्क्रीन पर तुरन्त ही WRONG (गलत) लिखा हआ दिखाई देगा। परन्तु अगर उसका उत्तर सही है तो उसे एक और ऐसी अन्य समस्या अभ्यास कार्य के लिए मिल जाएगी। इस तरह विद्यार्थी को अनेक समस्याएं अभ्यास कार्य हेत प्राप्त होती रहेंगी और सही–गलत का निर्णय तुरन्त ही कम्प्यूटर द्वारा प्रदान करते रहने से विद्यार्थी को तत्काल प्रतिपुष्टि बहुत शीघ्र मिलती रहेगी। कम्प्यूटर जवाब देने में कोई देर नहीं करता और न उसे अपने से संग्रहित अभ्यास समस्याओं के प्रस्तुतीकरण में देर लगती है। उसमें गजब की चुस्ती, फुर्ती तथा असीमित संयम होता है । वह विद्यार्थी के उत्तर की बहत देर तक प्रतीक्षा कर सकता है और जब वह चाहे तभी अभ्यास समस्याओं को उसके सामने प्रस्तुत करके उसके अभ्यास कार्य को उसी की गति तथा निहित योग्यता के अनुसार चलाने में समर्थ हो सकता है । कम्प्यूटरों की स्मरणशक्ति भी काफी तीव्र होती है अन्तः वे कभी भी एक समस्या को दुबारा पुनरावृत्ति नहीं करते तथा जो गलती विद्यार्थी करते हैं उन्हें करने की अनुमति नहीं देते । इसी कारण कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन को ड्रिल तथा अभ्यास कार्य हेतु अक्सर ही प्रयोग में लाया जाता रहता है ।

3. ट्यूटोरियल प्रकार का कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन– इस प्रकार के कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन में कम्प्यूटरों के द्वारा ट्यूटरों की भूमिका निभाते हुए वास्तविक शिक्षण कार्य किया जाता है । ट्यूटरों की भाँति ही वे विद्यार्थियों से व्यक्तिगत रूप से संवाद तथा अन्तःक्रिया स्थापित करते हुए शिक्षण अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति में पूरा योगदान देते हैं । विभिन्न विषयों से सम्बन्धित इकाइयों तथा प्रकरणों पर ट्यूटोरियल प्रणाली पर आधारित काफी सॉफ्टवेयर प्रोग्राम आज उपलब्ध हैं। इन प्रोग्रामों के द्वारा पहले तो विद्यालय पाठ्यक्रम से सम्बन्धित विभिन्न विषयों जैसे न्यूटन के गति के नियम, चन्द्रग्रहण तथा सूर्यग्रहण, मौसम और उनके प्रभाव, कर्त्तव्य और अधिकार पर संवाद प्रणाली तथा अन्य उचित तकनीकों की सहायता लेते हुए विषय सामग्री प्रस्तत की जाती है तथा फिर पढ़ाए हुए पाठ की उचित पुनरावृत्ति तथा अभ्यास का कार्य कराया जाता है। विद्यार्थियों के द्वारा क्या ग्रहण किया गया इसकी जाँच की जाती है तथा उनकी कठिनाइयों का निवारण करके उन्हें अपनी गति से अधिगम पथ पर आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित किया जाता है। जब कोई विद्यार्थी किसी एक इकाई या पाठयांश पर स्वामित्व स्थापित कर लेता है तो फिर उसे दूसरी इकाई या पाठ्यांश पर ले जाया जाता है। असफलता मिलने पर तुरन्त ही उपचारात्मक अनुदेशन प्रदान करने का प्रावधान भी इस प्रकार के अनदेशन में विद्यार्थियों को उचित रूप से उपलब्ध रहता है।

4. शैक्षिक गेम्स के रूप में उपलब्ध अनुदेशन– इस प्रकार के कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन में विद्यार्थियों को विविध प्रकार के सुनियोजित कम्प्यूटर गेम्स खेलने का अवसर दिया जाता है। इन गेम्स की प्रकृति और प्रयोजन पूरी तरह शैक्षिक हो यानी इनके द्वारा निर्धारित शिक्षण–अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति अवश्य हो, ऐसा कोई बन्धन नहीं । सामान्यतया इस प्रकार के गेम्स का उद्देश्य विद्यार्थियों में अपने पर्यावरण तथा अध्ययन क्षेत्रों के प्रति जिज्ञासा तथा मौतहल के भाव पदा करना होता है तथा उन्हें कुछ जानने–समझने हेत कळ बौद्धिक चनौतिया के सामने रखना हाता ह ताकि उनका शिक्षण–आंधगम के प्रति एक स्वाभाविक रुझान विकसित। कई बार इस प्रकार के गम्स का उपयोग विद्यार्थियों को शिक्षण–अधिगम प्रक्रिया के दौरान कुछ अतिरिक्त अभिप्रेरणा, प्रोत्साहन तथा पुनर्बलन प्रदान करने या पढ़े हुए पाठों की समीक्षा, पुनः अवलोकन तथा मूल्यांकन आदि करने के लिए भी हि जाता है।

5. अनुरूपित प्रकार का अनदेशन– इस प्रकार के कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन में विद्यार्थियों को वांछित प्रशिक्षण अवसर प्रदान करने के लिए अनुरूपण प्रविधि की सहायता ली जाती है ! उचित रूप से तैयार किए गए सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों की मदद से विद्यार्थियों को समस्याओं से जूझने हेतु वास्तविक और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियाँ प्रदान की जाती हैं । इस प्रकार की अनुरूपित परिस्थितियों में कहीं वे लड़ाई के मैदान में अपने आपको हाथ में राइफल लिए हुए दुश्मनों से घिरा पाते हैं तो कहीं उनको बियाबान जंगली जीव जन्तुओं से घिरे हुए जंगल में एक शिकारी की भूमिका निभानी होती है, या एक गोताखोर के रूप में समुद्री दुनिया की सैर करनी होती है, पायलट बनकर अपने विमान को सुरक्षित उड़ाना होता है,या प्रयोगशाला में तरह–तरह के रसायनों को मिलाकर विभिन्न परीक्षण करने होते हैं अथवा किसी खेल विशेष का अनुरूपित परिस्थितियों में अभ्यास करना होता है आदि–आदि । अनुरूपित प्रकार का ऐसा अनुदेशन विद्यार्थियों के लिए विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण अनुभव प्राप्त कराने का एक बहुमूल्य साधन है जहाँ कम खर्चे तथा सीमित साधनों में बिना जोखिम उठाए हुए बहुत कुछ सीखा जा सकता है। .

6. समस्या समाधान प्रकार का अनुदेशन– इस प्रकार के कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन में कम्प्यूटर स्वयं किसी समस्या का समाधान नहीं बताते बल्कि विद्यार्थी की समस्या समाधान प्रयत्नों में रत रहने के अवसर प्रदान करके उन्हीं से प्रस्तुत समस्याओं का समाधान चाहते हैं । यहाँ इस कार्य हेतु ऐसे सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों का उपयोग किया जाता है जिनसे विद्यार्थियों की समस्या समाधान हेतु आवश्यक सोपानों को व्यवस्थित रूप से अनुसरण करते हुए समस्याओं से निपटने के लिए आवश्यक चिन्तन–मनन, विश्लेषण–व्यवस्थापन,सामान्यीकरण आदि प्रक्रियाओं से गुजरना पड़े। इस प्रकार के एक सॉफ्टवेयर के उदाहरण के रूप में हम लोगो का नाम ले सकते हैं जो समस्या समाधान प्रक्रिया के उचित अनुदेशन हेतु भलीभाँति काम में लाया जा सकता है। यह जीन पियाजे के बौद्धिक विकास सिद्धान्तों से अनुप्रेरित अधिगम सिद्धान्तों पर आधारित है। प्रगति के इस तूफानी दौर में आज हमें ऐसे विविध प्रकार के सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं जिनके उपयोग से विद्यार्थियों में आवश्यक चिन्तन, कौशलों तथा समस्या समाधान योग्यताओं का समुचित विकास करने में यथेष्ट सहायता मिल सकती है।

7. क्रियात्मक कार्यों के संपादन से सम्बन्धित अनुदेशन– इस प्रकार के कम्प्यूटर सहाय अनदेशन में ऐसे सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों का उपयोग किया जाता है कि जिनसे विद्यार्थियों को विभिन्न प्रकार के प्रयोगशाला एवं कार्यशाला सम्बन्धी परीक्षणों,प्रयोगों तथा क्रियात्मक कार्यों के संपादन सम्बन्धी जीवंत अनुभव कम्प्यूटर स्क्रीन पर देखने अथवा करने को मिल जाएं। इस तरह विद्यार्थी को जो अनुभव आगे प्रयोगशाला, कक्षा के कमरे तथा कार्यशाला में प्राप्त करने होते हैं उनकी विधिवत पूर्व जानकारी इस प्रकार के अनुदेशन से प्राप्त हो जाती है और फिर उन्हें इस प्रकार के अधिगमों के अर्जन में विद्यालय में कोई विशेष दिक्कत नहीं आती।

8. अधिगम से जुड़ी हुई विभिन्न बातों का प्रबन्धन सम्बन्धी अनुदेशन– इस प्रकार के कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन सॉफ्टवेयर प्रोग्राम विद्यार्थियों द्वज्ञरा की जाने वाली विविध अधिगम क्रियाओं के समुचित प्रबन्धन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जैसे विद्यार्थी शिक्षण–अधिगम प्रक्रिया के फलस्वरूप जो कुछ भी सीखते हैं उसका उचित मूल्यांकन करके उनकी उपलब्धियों, कठिनाइयों तथा कमजोरियों का सही निदान करने में सहायता करते हैं और उसके आधार पर जिस विद्यार्थी को जिस प्रकार के उपचारात्मक अनुदेशन की आवश्यकता होती है उसका निर्धारण करते हैं। वे यह भी बताते हैं कि अमुक विद्यार्थी को किस प्रकार का अनुदेशन किस ढंग से दिया जाना ठीक रहेगा। विद्यार्थियों को दिए जाने वाली विविध अधिगम क्रियाओं के समचित प्रबन्धन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जैसे विद्यार्थी शिक्षण–अधिगम प्रक्रिया के फलस्वरूप जो कुछ भी सीखते हैं उसका उचित मूल्यांकन करके उनकी उपलब्धियों कठिनाइयों तथा कमजोरियों का सही निदान करने में सहायता करते हैं और उसके आधार पर जिस विद्यार्थी को जिस प्रकार के उपचारात्मक अनदेशन की आवश्यकता होती है उसका निर्धारण करते हैं । वे यह भी बताते हैं कि अमुक विद्यार्थी को किस प्रकार का अनुदेशन किस ढंग से दिया जाना ठीक रहेगा। विद्यार्थियों को दिए जाने वाले अधिन्यासों में सहायता करते हैं. अधिन्यासों की जांच करते हैं तथा गलतियों का निवारण करते हैं। विद्यार्थियों की प्रगति रिपोर्ट तैयार करते हैं। अध्यापकों को शिक्षण तथा अनुदेशन हेत् मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

माता–पिता तथा अभिभावकों से विद्यार्थियों के कल्याण हेतु उचित सहयोग प्राप्त करने में सहायता करते हैं। विद्यालय में पुस्तकालय तथा सूचना केन्द्र को व्यवस्थित तथा आधुनिक बनाने में सहायता करते है । विद्याथिया को पाठांतर क्रियाओं के उचित आयोजन में मदद करते हैं। ऐसे विषय जिनमें आंकड़े या गणना सम्बन्धी कार्य काफी पेचीदा होता है जैसे गणित, भौतिक शास्त्र, सांख्यिकी आदि उसमें कम्प्यूटरों द्वारा जो सेवा प्रदान की जाती है उसका कोई मुकाबला नहीं। एक छोटा सा कम्प्यूटर बड़ी–बड़ी गणक मशीनों के काम को चटकी मात्र में कर देता है। यही बात अपंग बालकों की शिक्षा को लेकर है । जहाँ सभी साधन हार मान लेते हैं वहाँ कम्प्यटर सहाय अनदेशन के माध्यम से गँगे. बहरे तथा मानसिक मंदन से ग्रस्त बालकों को सुगमता से बहुत कुछ सिखाया–पढ़ाया जाना अच्छी तरह सम्भव हो जाता है । इस प्रकार से कम्प्यूटर सहाय अनदेशन न केवल शिक्षण अधिगम प्रक्रिया से सम्बन्धित मामलों के उचित प्रबन्धन में पूरी तरह सहयोगी सिद्ध होता है बल्कि शिक्षा जगत के सभी क्षेत्रों और आयामों के प्रबन्धन में इसकी उल्लेखनीय भूमिका रहती है।

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