शिक्षण के संप्रत्यय उपलब्धि प्रतिमान का वर्णन कीजिए।

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संप्रत्यय उपलब्धि प्रतिमान का विकास जे.एस. बूनर एवं उसके सहयोगिया न किया। इस प्रतिमान का उपयोग करके शिक्षक, छात्रों को प्रत्ययों की प्रकृति की सही जानकारी प्रदान करता है । इस प्रतिमान का उपयोग नवीन प्रत्ययों के स्पष्टीकरण एवं व्याख्या करने में प्रभावशाली ढंग से किया जाता है । इसमें दो या अधिक वस्तुओं के मध्य समानता एवं असमानता का बोध कराते हुए, विभिन्न प्रकार के माध्यमों से तथ्यों का एकीकरण करते हुए प्रक्रिया को पूर्ण किया जाता है।

इस प्रतिमान का विकास मुख्यतः छात्रों ने आगमन तर्क की योग्यता में वृद्धि करना होता है एवं छात्रों में संप्रत्ययों को विकसित करना होता है। डॉ. आनंद (1996) ने मानव में संप्रत्ययों की रचना के विषय में अपने विचार प्रदर्शित करते हए लिखा है, “बूनर एवं उनके सहयोगियों की यह धारणा है कि मानव जिस वातावरण में रहता है, उसमें इतनी विविधताएं हैं साथ ही उनमें इतनी जटिलताएं हैं कि मनुष्य वर्गीकरण के बिना इसे नहीं समझ सकता । इसलिए प्रत्येक मनुष्य अपने वातावरण में पाई जाने वाली वस्तुओं को समझने का प्रयास करता है तथा वस्तुओं का वर्गीकरण करता है । वस्तुओं के इस तरह से वर्गीकरण के फलस्वरूप उनमें संप्रत्यय विकसित होते हैं। ये संप्रत्यय स्वाभाविक रूप से विकसित होते हैं, फिर भी सही संप्रत्ययों के विकास के लिए प्रशिक्षण जरूरी हो जाता है। यह प्रतिमान संप्रत्यय विकसित करने का एक अच्छा साधन माना गया है।”

संप्रत्यय उपलब्धि प्रतिमान के प्रमख तत्व

संप्रत्यय उपलब्धि प्रतिमान के प्रमुख तत्वों का विवरण आगे दिया जा रहा है –

(1) उद्देश्य – इस प्रतिमान का प्रमुख उद्देश्य छात्रों की आगमन तर्क शक्ति का विकास करना है। इसका आधार मनोविज्ञान है। इसके अंतर्गत छात्र विभिन्न घटनाओं, व्यक्तियों एवं वस्तुओं आदि को अलग – अलग वर्गों में विभाजित कर चिंतन शक्ति के आधार पर विभिन्न संप्रत्ययों का ज्ञान प्राप्त करते हैं।

बूनर तथा उनके सहयोगियों ने निम्नांकित चार उद्देश्य इस प्रतिमान के दिये हैं –

(a) छात्रों को संप्रत्ययों की प्रकृति के विषय में ज्ञान प्रदान करना ताकि वे वस्तुओं के गुणों तथा उनकी विशेषताओं के आधार पर वर्गीकरण करने में दक्षता प्राप्त कर सकें।

(b) छात्रों को इस योग्य बनाना कि उनमें सही संप्रत्ययों का विकास हो सके।

(c) छात्रों में विशिष्ट संप्रत्ययों का विकास करना ।

(d) छात्रों में चिंतन संबंधी नीतियों का विकास करना।

(2) संरचना – इस संरचना में कौशलों का विकास चार सोपानों में किया जाता है ।

(a) प्रदत्तों का संकलन – छात्रों के सम्मुख किसी घटना अथवा व्यक्ति से संबंधित विभिन्न तरह के प्रदत्त (आंकड़े) पेश किये जाते हैं। छात्र इन प्रदत्तों की मदद से विभिन्न प्रत्ययों का विकास करने हेतु विभिन्न तरह के गुण इस प्रत्यय में परिसीमित करते हैं।

दूसरे शब्दों में इस चरण में छात्रों को सूचनायें प्रदान की जाती हैं जिससे कि छात्र उदाहरणों के माध्यम से प्रत्ययों की जानकारी प्राप्त कर सकें।

(b) नीति विश्लेषण – इस चरण में छात्र प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण करते हैं। अधिकतर यह विश्लेषण या सामान्य से विशिष्ट की ओर सूत्र पर आधारित होता है ।

(c) प्रस्तुतीकरण – इस सोपान में छात्र अपनी आयु तथा अनुभव के आधार पर विभिन्न तरह के प्रत्ययों और गुणों का विश्लेषण करता है एवं इस विश्लेषण की रिपोर्ट लिखित रूप में प्रस्तुत करता है।

(d) अभ्यास – इस सोपान में छात्र सीखे हुए प्रत्यय का उपयोग तथा अभ्यास करना, उसका व्याख्या करना तथा असंगठित सूचनाओं के आधार पर संप्रत्यय की रचना करना शामिल है |

(3) सामाजिक प्रणाली – इसमें शिक्षक, छात्रों को प्रेरित करते हैं तथा प्रत्ययों के निर्माण एवं विश्लेषण में मार्ग – दर्शन करते हैं। शिक्षक का इस प्रतिमान में महत्वपूर्ण स्थान होता है क्योंकि वही छात्रों के सामने विभिन्न प्रदत्त रखता है,योजना बनवाता है तथा छात्रों को निर्देशित करता है । इसमें शिक्षक का मुख्य उद्देश्य छात्रों को प्रत्यय निर्माण में सहायता देना होता है।

(4) मूल्यांकन प्रणाली – इस प्रतिमान के मूल्यांकन में निबंधात्मक एवं वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं की मदद ली जाती है तथा इनके द्वारा मूल्यांकन, सुधार तथा परिवर्तन के माध्यम से नवीन प्रत्ययों के विषय में सूचना दी जाती है।

इस प्रतिमान के अंतर्गत छात्रों को पूर्व प्रत्ययों की निष्पत्ति (उपलब्धि) करनी होती है न कि नवीन प्रत्ययों की खोज । प्रत्ययों के समुचित बोध के लिए मूल्यांकन प्रणाली अत्यंत उपादेय है।

संप्रत्यय – उपलब्धि प्रतिमान की विशेषताएं :

(1) उदाहरणों के आधार पर जब प्रत्ययों को सीखने तथा समझने का प्रयास किया जाता है, तब यह प्रतिमान अधिक उपादेय होता है।

(2) सामान्यीकरण को बढ़ाने हेतु तथ्यों का ज्ञान देने के लिए तथा ‘क्यों’ का उत्तर देने के लिए और कारण बताने के लिए इस प्रतिमान का प्रयोग नहीं किया जा सकता।

(3) यह प्रतिमान भाषा सीखने में ज्यादा उपयोगी होता है।

(4) यह गणित एवं विज्ञान के आधारभूत सिद्धांतों को सरलता और सुगमता से समझाने का प्रयत्न करता है।

(5) यह प्रतिमान उन सभी विषयों में जिनमें प्रत्यय निर्माण के अवसरं अधिक होते हैं, अधिक उपादेय सिद्ध होता है।

इस प्रतिमान का प्रयोग सभी विषयों के शिक्षण में सफल पाया गया है। यह प्रतिमान सभी स्तरों पर उपयोगी सिद्ध हुआ है। छोटे बच्चों में इसके प्रयोग के समय सरल संप्रत्ययों एवं उनके आसान उदाहरणों का प्रयोग करना चाहिए। इस प्रतिमान का प्रयोग नवीन जानकारी देने के लिए नहीं किया जाता, नये ज्ञान देने के लिए तो अन्य सूचना प्रक्रिया प्रतिमानों का प्रयोग करना ज्यादा उपयोगी रहेगा।

यह प्रतिमान सभी विषयों के शिक्षण के लिए प्रयोग किया जाता है लेकिन इसकी उपादेयता भाषा के सीखने में, भाषा में संप्रत्यय – उपलब्धि प्राप्त करने में एवं भाषा – विज्ञान के क्षेत्र में अधिक पायी गयी हैं।


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