शिक्षण में आधुनिक तकनीकी के मनोवैज्ञानिक उपयोगों का वर्णन कीजिए।

Estimated reading: 1 minute 72 views

आधुनिक तकनीकी साधनों द्वारा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में निभाई जाने वाली भूमिका को संक्षिप्त रूप से निम्न तरह व्यक्त किया जा सकता है –

1. दृश्य – श्रव्य ज्ञानेन्द्रियों का प्रभावपूर्ण उपयोग – ज्ञानेन्द्रियों को ज्ञान का द्वार कहा जाता है। शैक्षिक तकनीकी साधनों के प्रयोग से दो महत्वपूर्ण ज्ञानेन्द्रियों – चक्षु तथा श्रवणेन्द्रियों का उपयोग कर (देखकर एवं सुनकर) ज्ञान प्राप्त करने के बहुमूल्य अवसर मिलते हैं।

2. एक उत्तम अभिप्रेरणा स्रोत का कार्य करना – बालक स्वभाव से ही क्रियाशील होते हैं तथा उन्हें वस्तुओं एवं प्रक्रियाओं को देखने – सुनने में रुचि होती है । इस तरह शैक्षिक तकनीकी साधनों की सहायता से पढ़ना – पढ़ाना उनकी मूल प्रवृत्तियों, स्वाभाविक रुचियों, बुनियादी प्रेरणा स्रोतों तथा प्रयोजनों से मेल खाता है एवं इस तरह शैक्षिक तकनीकी साधन शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में एक बहुत ही प्रभावपूर्ण अभिप्रेरणा स्रोत सिद्ध हो सकते हैं।

3. उचित बिम्ब तथा प्रभाव छोड़ने में सहायक – सीखने की प्रक्रिया में बालकों को जो अनुभव होते हैं एवं उनके द्वारा कैसे मानस प्रतिबिम्ब बनते हैं या कैसा प्रभाव उनके ऊपर छोड़ा जाता है यह बात अधिगम परिणामों की दृष्टि से बहुत महत्व रखती है । शैक्षिक तकनीकी साधन यथेष्ट प्रभाव एवं अनुभूत मानस बिम्बों के रूप में अपने पीछे स्थायी चिह्न छोड़ने का कार्य करते हैं जिनके द्वारा स्थायी तथा प्रभावपूर्ण अधिगम अनुभव प्राप्ति में बहुत मदद मिलती है।

4. रुचि तथा ध्यान को बढ़ाने में सहायक – शैक्षिक तकनीकी साधनों का प्रयोग शिक्षण – अधिगम के नीरस वातावरण में एक विचित्र तरह की ताजगी एवं रस भर देता है जिसके परिणामस्वरूप छात्र कठिन से कठिन बातों को सीखने – समझने में पर्याप्त रूचि और उत्साह दिखाते हैं। इस तरह की रुचि एवं उत्साह उन्हें पढ़ने में पूरा ध्यान केन्द्रित करने की प्रक्रिया में भरपूर सहयोग देता है तथा परिणामस्वरूप सीखने – सिखाने के क्षेत्र में बहुत ही प्रभावपूर्ण परिणाम सामने आते हैं।

5. अधिगम तथा प्रशिक्षण के सकारात्मक स्थानांतरण में सहायक – छात्रों द्वारा एक समय में शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया के दौरान जो कुछ भी सीखा जाता है उसका पूरा – पूरा लाभ तभी मिलता है जब वे उसे अन्य विषयों या क्षेत्रों से संबंधित बातों को सीखने या जीवन में वास्तविक रूप में उसका प्रयोग कर सकने में समर्थ हो सकें। यह कार्य तभी हो सकता है जबकि । बालकों में एक परिस्थिति में सीखी हुई बातों को दूसरी परिस्थितियों में स्थानांतरण करने की क्षमता विकसित हो जाये । शैक्षिक तकनीकी सामग्री का प्रयोग इस क्षमता के उचित विकास में बहुत ही उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

6. अधिगमकर्ताओं को पुनर्बलन प्रदान करना – अधिगम प्रक्रिया में अधिगमकर्ता को उचित पुनर्बलन प्रदान करने की दृष्टि से भी शैक्षिक तकनीकी साधनों का विशेष महत्व है। स्व – शिक्षा एवं आत्म – अनुदेशन से संबंधित सभी शिक्षण उपकरण और सामग्री यही भूमिका निभाते हैं। अभिक्रमित अधिगम सामग्री शिक्षण मशीन, कंप्यूटर आदि का प्रयोग अधिगsमकर्ता को अधिगम प्रक्रिया में यथेष्ट पुनर्बलन प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । इसी तरह बालक जो पुस्तकों में पढ़ता है या अध्यापक द्वारा जो कुछ मौखिक रूप से उसे पढ़ाया जाता है उन्हीं बातों को जब वह विभिन्न शैक्षिक तकनीकी साधनों के माध्यम से देखता है तो जो कुछ उसने पहले सीखा होता है उसके उचित अभ्यास, परीक्षण तथा उपयोग के रूप में उसे अपने अधिगम अनुभवों के पुनर्बलन के लिए उचित अवसर प्राप्त होते रहते हैं।

7. प्रत्यक्ष अनुभव प्रदान करने का सर्वोत्तम विकल्प – अनुभव को सबसे अच्छा शिक्षक माना जाता है । लेकिन बहुत बार न तो प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करना संभव हो पाता है और न ऐसा करना समय, शक्ति तथा धन की दृष्टि से विवेकपूर्ण ही माना जा सकता है। इस दृष्टि से प्रत्यक्ष अनुभव जैसे ही वैकल्पिक अनुभव देने हेतु शैक्षिक तकनीकी साधन बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं एवं इस तरह शिक्षण और अधिगम को अधिक से अधिक यथार्थ, सार्थक तथा जीवन्त बनाने का प्रयत्न करते हैं।

8. विषय – वस्तु की स्पष्टता – विभिन्न विषयों से संबंधित बहुत से ऐसे संप्रत्ययों, विचारों, प्रक्रियाओं आदि को जिन्हें पुस्तकों से पढ़कर समझना या व्याख्यान विधि द्वारा पढ़ाना काफी मुश्किल होता है, शब्दों के माध्यम से उन्हें स्पष्ट रूप से समझना या समझाना विद्यार्थी तथा अध्यापक दोनों के लिए एक समस्या उत्पन्न कर देता है। इस स्थिति में शैक्षिक तकनीकी साधन मददगार होते हैं। इनके प्रयोग से कठिन से कठिन विषय – वस्तु भी सरल,स्पष्ट एवं सार्थक बन जाती है। उदाहरण के लिए,जलपंप,साइकिल पंप,आंख,कान आदि की रचना तथा कार्य – प्रणाली का अध्ययन करते समय अगर इनके चित्र, मॉडल, फोटोग्राफ या फिल्मस्ट्रिप आदि का प्रयोग किया जाये तो सीखने – सिखाने के कार्य को बहुत ही स्पष्ट और सार्थक बनाया जा सकता है ।

9. व्यक्तिगत विभिन्नताओं की संतुष्टि में सहायक – अधिगम अनुभव अर्जित करने की दृष्टि से छात्रों में बहुत अधिक विभिन्नताएं देखने को मिल सकती हैं। कोई सुनकर ठीक प्रकार सीखता है तो कोई देखकर। किसी को व्यक्तिगत रूप से स्वयं या किसी के निर्देशन में अकेले पढने में सुविधा होती है तो किसी को समूहगत या कक्षा अध्ययन में पढना ठीक लगता है।

कोई बहुत धीरे – धीरे सीखता है तो कोई अति शीघ्र । इस तरह की वैयक्तिक विभिन्नताओं की अधिगम संबंधी माँग को शैक्षिक तकनीकी सामग्री, साधन तथा स्वशिक्षण से जुड़े हुए उन्नत उपकरणों जैसे शिक्षण मशीन एवं कंप्यूटर आदि से अच्छी तरह पूरा किया जा सकता है।

10. शिक्षण सूत्रों के उपयोग में मददगार – शिक्षण के सूत्र जैसे ‘सरल से कठिन की ओर’, ‘स्थूल से सूक्ष्म की ओर’, ‘ज्ञात से अज्ञात की ओर’, ‘करो और सीखो’ इत्यादि शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया को सरल तथा प्रभावशाली बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है । एक अध्यापक को अपने शिक्षण में इस तरह के शिक्षण – सूत्रों का उपयोग करने में शैक्षिक तकनीकी साधनों के प्रयोग से बहत सहायता मिलती है। वह कठिन – से – कठिन,सूक्ष्म – से – सूक्ष्म अज्ञात रहस्या को इन साधनों के माध्यम से सार्थक तथा सजीव अनुभव प्रदान कर सरल एवं स्वाभाविक ढंग से बालकों के मस्तिष्क में बिठा सकता है।

11. भाषागत अभिव्यक्ति की कमियों को दर करना – शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया में विचार संप्रेषण का विशेष महत्व है। इस संप्रेषण में मौखिक एवं लिखित रूप में संपन्न – भाषागत अभिव्यक्ति बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लेकिन मात्र शब्दों एवं संकेतों के माध्यम से संपन्न यह अभिव्यक्ति शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया में ज्यादा प्रभावशाली सिद्ध नहीं होती। भाषागत अभिव्यक्ति का यह उपयोग कई बार ऐसी समस्याएं जैसे पढ़ने – पढ़ाने में अरुचि, विना अर्थ जाने उसे ज्यों की त्यों प्रस्तुत करने एवं जो कुछ भी पढ़ा जाता है उसे भूल जाने अथवा प्रयोग न कर सकने आदि को जन्म देता है । इन सभी समस्याओं को उत्पन्न न होने देने हेतु शैक्षिक तकनीकी साधनों का उपयोग काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

12. कक्षा में उचित अंत:संबंध तथा शैक्षिक वातावरण बनाने में मददगार – शिक्षण – अधिगम कार्य की सफलता कक्षागत स्वस्थ अंतःसंबंधों तथा अनुकूल कक्षा वातावरण पर निर्भर करती है । शैक्षिक तकनीकी साधनों के उपयोग से कक्षा का वातावरण सजीव हो उठता है। उसमें निष्क्रियता एवं बोझिलपन नहीं रह पाता। छात्र तथा अध्यापकों और स्वयं छात्रों के परस्पर विचारों के आदान – प्रदान एवं स्वस्थ अंत:क्रियाओं के अधिक अनुकूल अवसर प्राप्त होते हैं तथा कक्षा का वातावरण शैक्षिक दृष्टि से अधिक उपयुक्त वन जाता है।

13. विशिष्ट विद्यार्थियों की आवश्यकता पूर्ति में सहायक – सामान्य कक्षा शिक्षण द्वारा प्रायः सामान्य बालकों की ही अधिगम संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है, लेकिन शैक्षिक तकनीकी साधनों के प्रयोग द्वारा इस दिशा में अति विशिष्ट बालकों को भी लाभ पहुँचाया जा सकता है। जिन बच्चों को सुनाई नहीं देता उनके लिए दृश्य साधनों पर अधिक जोर दिया जा सकता है तथा जिन्हें दिखाई नहीं देता उन्हें टेपरिकॉर्डर, रेडियो आदि साधनों के प्रयोग से पर्याप्त अधिगम अनुभव अर्जित कराये जा सकते हैं। मंद बुद्धि बालकों को आवश्यक बातें समझने में सरल तथा स्पष्ट शैक्षिक तकनीकी सहायक सामग्री का प्रयोग किया जा सकता है एवं कुशाग्र बुद्धि वालों को शैक्षिक तकनीकी सामग्री के माध्यम से ऐसे अधिगम अनुभव अर्जित कराये जा सकते हैं जिनसे उनके बौद्धिक स्तर को विकसित करने में सहायता मिल सके।

14. अनुशासनहीनता की समस्या के समाधान में मददगार – अनुशासनहीनता की समस्या बहुत कुछ सीमा तक परिस्थिति तथा वातावरणजन्य होती है। बालकों में कार्य करने की अपार शक्ति होती है लेकिन अगर इस शक्ति का सही उपयोग न हो तो उनमें उपद्रव, तोड़फोड़,शैतानी आदि अनुशासनहीन गलत कार्यों की ओर मुड़ने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। अगर छात्रों को निष्क्रिय रूप से ज्ञान ग्रहण करने के लिए मजबूर किया जाए और ज्ञान प्राप्ति में स्वयं अनुभव करने के लिए कुछ भी प्रदान नहीं किया जाए तो ऐसे नीरस तथा ऊब भरे वातावरण में उनकी शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया के प्रति विद्रोह स्वाभाविक ही है । शैक्षिक तकनीकी साधनों के उपयोग से जहां कक्षा का वातावरण सजीव तथा रुचिकर बनता है वहाँ छात्रों को शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया में सक्रिय सहयोगी बनकर अपनी शारीरिक और मानसिक शक्तियों के उपयोग के रचनात्मक अवसर प्राप्त होते रहते हैं। परिणामस्वरूप अनुशासनहीनता से संबंधित समस्याओं के पैदा होने की संभावनाएं बहुत कम हो जाती हैं।

15. मानसिक शक्तियों के विकास में मददगार – कक्षा में अध्यापक द्वारा जब मौखिक रूप से पढ़ाया जाता है या छात्रों द्वारा पुस्तकों की सहायता से पढ़ा जाता है तो इस तरह के पढ़ने – पढ़ाने से छात्रों की मानसिक योग्यताओं तथा शक्तियों का उचित विकास नहीं हो पाता। इस तरह का शिक्षण बालकों में केवल रटने की प्रवृत्ति को जन्म दे सकता है । शैक्षिक तकनीकी साधनों के प्रयोग से शिक्षण – अधिगम को अधिक सजीव बनाकर छात्रों की कल्पना शक्ति, निरीक्षण शक्ति, तर्क – शक्ति, विचार – शक्ति, एकाग्रता आदि को विकसित करने के बहुमूल्य अवसर मिलते हैं। इनके अतिरिक्त छात्रों में मौलिकता, अन्वेषणशीलता, सृजनात्मकता आदि उच्च मानसिक योग्यताओं तथा क्षमताओं के पोषण एवं विकास हेतु भी शैक्षिक तकनीकी साधनों के प्रयोग से समुचित अवसर प्राप्त होते हैं।

16. वैज्ञानिक अभिवृत्ति एवं खोज प्रवृत्ति को बढ़ावा देने में सहायक – शैक्षिक तकनीकी साधनों का प्रयोग छात्रों में वैज्ञानिक अभिवृत्ति एवं खोज प्रवृत्ति को विकसित करने में पर्याप्त सहयोग दे सकता है।

17. उन्नत शिक्षण विधियों तथा तकनीक के उपयोग का अवसर प्रदान करना – अध्ययन – अध्यापन की उन्नत शिक्षण विधियों तथा तकनीकों में वैज्ञानिक ढंग से शिक्षा प्रदान करने एवं बालकों और परिस्थितियों को मनोवैज्ञानिक रूप से समझकर शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया को संचालित करने पर बल दिया जाता है। शैक्षिक तकनीकी साधनों का प्रयोग इन दोनों ही कार्यों में यथेष्ट सहयोग प्रदान करता है। यहाँ छात्रों को वस्तुओं तथा क्रियाओं का उपयुक्त निरीक्षण, परीक्षण तथा प्रयोग कर स्वयं परिणाम निकालने का अवसर मिल सकता है

और उनकी मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की संतुष्टि भी हो सकती है एवं परिणामस्वरूप शैक्षिक तकनीकी साधनों का प्रयोग उन्नत शिक्षण विधियों एवं परिष्कृत शिक्षा तकनीक के लाभकारी उपयोग की संभावना को बढ़ाने में सहयोगी सिद्ध हो सकता है।

Leave a Comment

CONTENTS