बहु–इन्द्रिय अनुदेशन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।

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इन्द्रियाँ ज्ञान का द्वार कहलाती हैं शिक्षण – अधिगम के इस बहु चर्चित सूत्र को ध्यान में रखते हए प्रभावकारी शिक्षण–अधिगम के लिए अधिक से अधिक इन्द्रियों का प्रयोग करना हमेशा ही लाभदायक रहता है। इसके अलावा एक बात और भी है कि शिक्षण – अधिगम क्षेत्र में हो रहे अनुसंधानात्मक कार्यों एवं प्रयोगों द्वारा आज यह भली भाँति सिद्ध हो गया है कि शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का आयोजन एवं संचालन उसी परिस्थिति में सबसे अच्छा होता है जिसमें किसी एक इन्द्रिय माध्यम या उपागम के स्थान पर अनेक इन्द्रियों माध्यम एवं उपागमों का सहारा लिया जाये । उदाहरण के तौर पर वह अध्यापक जो अपने शिक्षण कार्य में व्याख्यान या प्रश्नोत्तर विधि को अपनाते हुए दृश्य – श्रव्य साधनों का यथोचित उपयोग करता है, श्यामपट्ट पर लिखते हुए बोलता जाता है, वस्तुओं का प्रदर्शन करता है, क्रियाओं को करके दिखाता है एव अपने विद्यार्थियों को शिक्षण अधिगम कार्य में साझीदार बनाने के लिए मौखिक प्रश्न भी पूछता है और प्रायोगिक कार्य भी कराता है, ऐसा अध्यापक अवश्य ही उस अध्यापक से अधिक प्रभावशाली सिद्ध होगा जो सिर्फ मात्र किसी एक इन्द्रिय जनित माध्यम जैसे भाषण कला, प्रदर्शन या पाठ्यपुस्तक आदि की मदद लेकर आगे बढ़ रहा हो। इस प्रकार अनुसंधान तथा प्रायोगिक कार्यों से जन्मी शैक्षिक तकनीकी ने शिक्षक अधिगम को अधिक सशक्त, प्रभावपूर्ण और सहज बनाने के लिए आज एक नयी शिक्षापद्धति तथा उपागम को जन्म दिया है जिसे बहु–इन्द्रिय या बहु – माध्यम उपागम का नाम दिया जाता है।

इस नवीन पद्धति अथवा उपागम की विशेषता यह है कि इसमें शिक्षण अधिगम की एक विशेष परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए विभिन्न उपयुक्त तकनीकों, विधियों एवं माध्यमों का चयन करके उन्हें ऐसे संयुक्त और समन्वित रूप में अपनाया जाता है कि निश्चित शिक्षण – अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति प्रभावपूर्ण ढंग से संपन्न हो सके। एक के स्थान पर कई इन्द्रियजनित माध्यमों एवं पद्धतियों का संयुक्त तथा समन्वय रूप में प्रयोग किये जाने के कारण इसे बहु – इन्द्रिय या बहु माध्यम उपागम का नाम दिया जाता है। परिभाषा की दृष्टि से शिक्षण – अधिगम में प्रयुक्त बहु – इन्द्रिय उपागम को एक ऐसी पद्धति एवं उपागम के रूप में जाना जा सकता है जिसमें उचित एवं भली – भाँति चयनित अधिगम अनुभवों का, अनेक उपयुक्त तकनीकों,इन्द्रिय जनित माध्यम अथवा पद्धतियों के संयुक्त एवं समन्वित रूप से आवश्यकतानुसार प्रयोग द्वारा, इस तरह शिक्षण अधिगम किया जाता है कि प्रयुक्त इन्द्रिय जनित माध्यम अथवा पद्धतियाँ निर्धारित शिक्षण – अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति के कार्य में एक दूसरे को अधिक से अधिक सहयोग देती हुई दिखाई दें।

इस तरह के बहु – माध्यम या बहुइन्द्रिय उपागम अथवा पद्धति की प्रकृति तथा विशेषताओं को संक्षेप में निम्न तरह लिपिबद्ध किया जा सकता है।

1. बहु – माध्यम या बहु – इन्द्रिय उपागम में शिक्षण अधिगम कार्य को संपन्न करने के लिए किसी एक पद्धति या माध्यम का आश्रय न लेकर विभिन्न पद्धतियों, इन्द्रियों एवं माध्यमों का सहारा लिया जाता है।

2. बहु – माध्यम अथवा बहु इन्द्रिय उपागम या पद्धति शैक्षिक तकनीकी विषय में किये जा रहे उन नवीन अनुसंधानों एवं प्रयोगों का परिणाम है जिनके द्वारा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को अधिक सजीव और प्रभावशील बनाने का प्रयत्न किया जा रहा है।

3. बहु इन्द्रिय उपागम द्वारा प्रदत्त अनुदेशन में एक से अधिक इन्द्रिय जनित माध्यम या पद्धतियों का प्रयोग करने के लिए उनके उपयुक्त एवं सार्थक चुनाव पर पूरा – पूरा ध्यान दिया जाता है।

4. बहु – इन्द्रिय जनित माध्यमों का चुनाव इस प्रकार किया जाता है कि उनमें इस तरह का तालमेल तथा समन्वय संभव हो कि उनके द्वारा शिक्षण – अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति अच्छी से अच्छी तरह संभव हो सके।

5. बहु – इन्द्रिय जनित माध्यमों का चयन तथा उनके उपयोग में सबसे जरूरी यह बात अवश्य ध्यान में रखी जाती है कि किसी एक माध्यम के उपयोग से उपयोग में लाये जा रहे अन्य माध्यमों के प्रभाव में यथेष्ट वृद्धि आये एवं इस प्रकार एक दूसरे को प्रभावपूर्ण बनाते हुए बहु – इन्द्रियजनित माध्यम उपागम में प्रयुक्त सभी माध्यम समन्वित रूप से शिक्षण अधिगम उद्देश्यों की सर्वोत्तम प्राप्ति में भरपूर योगदान दे सकें।

6. अपने कार्य रूप में बहु – इन्द्रिय जनित माध्यम उपागम का उपयोग शिक्षक एवं शिक्षार्थी से यह अपेक्षा करता है कि वे शैक्षिक तकनीकी के क्षेत्र में उपलब्ध सभी प्रणाली, सॉफ्टवेयर तथा हार्डवेयर सामग्री एवं उपकरणों का अपनी शैक्षणिक परिस्थितियों और उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए भली – भाँति चयन कर बड़े ही संतुलित तथा समन्वित ढंग से उपयोग करें।

7. बहु – इन्द्रिय जनित माध्यम उपागम या पद्धति की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता उसके इस गुण में है कि इस पद्धति का प्रयोग करते हुए हमें तकनीक, विधि, माध्यम एवं विधाओं के रूप में बहुत से ऐसे साधन उपलब्ध हो जाते हैं जिनके सम्मिलित तथा उचित प्रभाव से शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया के लिए आवश्यक विचारों – भावों तथा क्रियाओं का संप्रेषण और आदान – प्रदान भली – भाँति संपन्न हो जाता है।

बहु – इन्द्रिय अनदेशन उपागम को कैसे काम में लाया जाये?

शिक्षण अधिगम मार्ग पर चलते हुए निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति को सहज बनाने में बहु – इन्द्रिय अनुदेशन पद्धति अथवा उपागम बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । इस उपागम या पद्धति में किसी एक शिक्षण – अधिगम परिस्थिति में भली – भाँति काम में आ सकने वाले विभिन्न इन्द्रिय जनित माध्यमों को इस तरह कुशलतापूर्वक समन्वित अथवा संयुक्त रूप में काम में लाया जाता है कि उनके प्रयोग से पूर्वनिर्धारित शिक्षण अधिगम उद्देश्यों को सर्वोत्तम ढंग से प्राप्ति संभव हो सके । इन विभिन्न माध्यमों को ऐसे किस तरह काम में लाया जायें तथा बहु – इन्द्रिय उपागम को शिक्षक एवं शिक्षार्थी द्वारा अपनाने से किस निर्धारित मार्ग, तरीके या कार्यप्रणाली को प्रयोग में लाया जाये इसके लिए कोई सर्वमान्य अथवा सर्वप्रचलित रास्ता बतलाना कठिन ही है क्योंकि प्रत्येक शिक्षण – अधिगम परिस्थिति अपने आप में अपूर्व होती है। जिस तरह की परिस्थिति होती है उसी के अनुरूप शिक्षण – अधिगम कार्यक्रमों का प्रवाह तथा मार्ग परिवर्तित होता चला जाता है एवं उसी के अनुरूप शिक्षक और शिक्षार्थी को अपनी शिक्षण और अधिगम प्रक्रियाओं में भी परिवर्तन लाना होता है । शिक्षण अधिगम के माध्यम तथा उनके प्रयोग में लाने के तरीके आदि सभी का स्वरूप इसलिए कभी भी सार्वभौमिक तथा एक जैसा नहीं हो सकता परंतु हाँ अगर बहु – इन्द्रिय उपागम के कुछ मान्य लक्ष्यों या उद्देश्यों को फिर एक बार ध्यान में रखने का प्रयत्न किया जाये तो उसकी प्रक्रिया एवं प्रयोग में लाने के ढंग के बारे में कुछ न कछ निश्चित धारणा बनाने में अवश्य ही सफलता मिल सकती है । इस दृष्टि से आइए एक बार फिर बहु – इन्द्रिय उपागम के उपयोग से संबंधित लक्ष्यों तथा उद्देश्यों पर नज़र डाल दी जाये। संक्षेप में इन लक्ष्यों को निम्न रूप में व्यक्त किया जा सकता है।

– बहु – इन्द्रिय उपागम के प्रयोग से शिक्षण – अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति सर्वोत्तम ढंग से संभव हो सकती है।

– अध्यापक को अपने शिक्षण संबंधी क्रियाओं को प्रभावपूर्ण ढंग से संपादित करने में पूरी – पूरी सहायता मिल सकती है।

– अधिगम अनुभवों को इस उपागम के प्रयोग द्वारा इस प्रकार आयोजित किया . जा सकता है कि अधिगम कर्ता द्वारा सीखने की प्रक्रिया में अधिक से अधिक सक्रिय सहयोग तथा योगदान का उत्तरदायित्व निभाया जा सके।

– शिक्षण – अधिगम क्रियाओं को बहु – इन्द्रिय उपागम के प्रयोग द्वारा इस तरह नियोजित और आयोजित किया जाना चाहिए कि जिसके द्वारा जहाँ एक शिक्षक को किसी भी विशेष पाठ इकाई या विषय सामग्री को अपने विद्याथियो के लिए पूरी तरह सरल, रोचक तथा स्पष्ट बनाने में पूरी – पूरी सहायता मिल सके वहां विद्यार्थियों को भी ऐसी सविधा उपलब्ध हो सके कि वे अपने स्वयं के प्रयासों एवं सामूहिक प्रयासों द्वारा अधिगम मार्ग पर सफलतापूर्वक आग बढ़ सकें।

शिक्षण अधिगम क्रियाओं के संपादन के लिए बह – इन्द्रिय उपागम में जिन इन्द्रिय जनित माध्यमों का चयन किया जाये वह इस बात पर निर्भर होना चाहिए कि उनका संयुक्त तथा समन्वित रूप में इस ढंग से उपयोग किया जा सके कि किसी विशेष शिक्षण अधिगम परिस्थिति के संदर्भ में निर्धारित उद्देश्यों की सर्वोत्तम प्राप्ति संभव हो सके।

बहु – इन्द्रिय उपागम की उपरोक्त प्रकृति तथा प्रयोग संबंधी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए सामान्यतया निम्न प्रारूप एवं सोपानों का अनुगमन बहु – इन्द्रिय अनुदेशन गतिविधियों के संचालन के लिए किया जा सकता है।

प्रथम चरण – इस प्रारंभिक अवस्था में शिक्षण अधिगम क्रियाओं की पहल अध्यापक द्वारा ही की जाती है। अपने विषय से संबंधित एक इकाई पर अध्यापक भली – भाँति पाठ योजना तैयार कर अध्यापन कार्य प्रारंभ करता है। इस कार्य के लिए वह विभिन्न इन्द्रियजनित माध्यमों के उपयोग का प्रयास कर सकता है। अधिगम सामग्री को वह अपने संपूर्ण रूप में विभिन्न विधियों जैसे व्याख्यान,प्रश्नोत्तर,व्याख्यान तथा प्रदर्शन आदि के माध्यम से पेश कर सकता है। विषय सामग्री की प्रकृति एवं उपलब्ध शिक्षण – अधिगम परिस्थितियों के संदर्भ में वह ऐसे सभी इन्द्रियजनित माध्यम,तकनीक और साधनों जैसे श्यामपट्ट,चार्ट,चित्र, मॉडल, नमूने स्लाइड,फिल्म, टेप्स, वास्तविक पदार्थ, प्रयोग एवं परीक्षण आदि का प्रयोग कर सकता है जिनके द्वारा विषय सामग्री को सहज,रोचक एवं स्पष्ट बनाने में मदद मिल सके तथा शिक्षण अधिगम उद्देश्यों को सर्वोत्तम ढंग से प्राप्त किया जा सके।

द्वितीय चरण – पहले चरण में जहाँ विषय सामग्री को ऊपरी तौर पर उसमें संपूर्ण रूप में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया जाता है । वहाँ दूसरे चरण में अधिगम इकाई की इसी सामग्री से संबंधित सूक्ष्म तथा विशिष्ट ज्ञान देने का कार्य संपन्न किया जाता है। यह विशिष्ट सचना तथा ज्ञान प्रदान करने का कार्य विभिन्न इन्द्रिय – जनित माध्यमों के द्वारा पूरा किया जा सकता है। अच्छी तरह तैयार अभिक्रमित अधिगम सामग्री, रिकार्ड की गई ऑडियो टेप्स. कार्य पुस्तिकाओं एवं संदर्शिकाओं की इस कार्य में भली – भाँति सहायता ली जा सकती है।

तृतीय चरण – बहु – इन्द्रिय उपागम को प्रयोग में लाने से संबंधित इस तृतीय चरण में अधिगम कर्ता को व्यक्तिगत रूप से निर्देशन, परामर्श तथा आवश्यक सहायता प्रदान करने का प्रयास किया जाता है ताकि वह स्वतंत्र रूप से अधिगम पथ पर अच्छी तरह अग्रसर रह सके। इस तरह की क्रियाओं का कुछ निम्न रूप हो सकता है।

(i) विद्यार्थी अपने सहपाठियों एवं अध्यापक से आवश्यक विचार विनिमय, अंतःक्रिया और वार्तालाप आदि कर सकता है।

(ii) अध्यापक अथवा विषय विशेषज्ञ के द्वारा उसे व्यक्तिगत रूप से आवश्यक परामर्श एवं अतिरिक्त सहायता दी जा सकती है।

(iii) वह अध्यापक, विषय विशेषज्ञ एवं साथी विद्यार्थियों द्वारा किये जाने वाले प्रदर्शन, प्रयोग और कार्य गतिविधियों के निरीक्षण द्वारा स्वतः प्रेरणा तथा सही दिशा, प्राप्त कर सकता है।

चतुथे चरण – यह चरण विस्तृत तथा गहन अध्ययन से संबंधित है। यहाँ विद्यार्थी ने जो कुछ पहले अनुभव या अध्ययन किया होता है उसी के बारे में विस्तार से जानने तथा गहराई में उतरने का प्रयत्न करता है। अतः इस अवस्था में इस कार्य में सहायक इन्द्रिय – जनित माध्यमों तथा साधनों का प्रयोग किया जा सकता है । विद्यार्थी पुस्तकालय में जाकर सहायक पाठ्य – पुस्तकों विशेष तथा संदर्भित पुस्तकों एवं अच्छे तरह की अध्ययन सामग्री का अच्छी तरह अध्ययन कर सकते हैं।

अभिक्रमित पाठ्य – पुस्तकों, पैकेज्ड सामग्री, प्रदत्त कार्य, शिक्षण मशीन एवं कंप्यूटर सह – अनुदेशन आदि माध्यमों की सहायता से इस अवस्था की अधिगम क्रियाओं के संचालन में पर्याप्त सहायता मिल सकती है।

पंचम चरण – किसी भी विषय इकाई के शिक्षण अधिगम से संबंधित यह पाँचवीं अवस्था अर्जित न तथा कुशलताओं को व्यावहारिक रूप में प्रयोग में लाने का अभ्यास कराती है । अतः यहाँ क्रियात्मक कार्यों एवं प्रयोगशाला कार्य पर अधिक जोर देने की जरूरत होती है । इस चरण पर शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया के आयोजन में जिन उपयुक्त इन्द्रिय जनित माध्यमों एवं साधनों का सहारा लिया जा सकता है उनमें प्रयोगशाला में कार्य करना,कार्यशालाओं में व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करना, उत्पादन एवं सृजनात्मक क्रियाओं और क्रिया कलापों में रत रहना, वास्तविक जीवन की गतिविधियों में प्राप्त ज्ञान तथा कुशलताओं के प्रयोग का प्रशिक्षण लेना आदि बातें सम्मिलित हैं, जिन्हें विषय विशेष की प्रकृति एवं उपलब्ध परिस्थितियों के संदर्भ में यथानुसार अपनाया जा सकता है।

छटा चरण – इस अंतिम चरण में शिक्षण क्रियाओं का संचालन काफी ऊंचे स्तर पर संपन्न होने की अपेक्षा करता है। ज्ञान के मनन, सृजन, विश्लेषण, मूल्यांकन जैसी बातें इसी अवस्था में संपन्न होती है। अत: इन्द्रिय – जनित माध्यमों तथा साधनों का चयन और उपयोग उसी संदर्भ में किया जाना ठीक रहता है। साधारणतया निम्न तरह के माध्यम और शिक्षण अधिगम क्रियाओं का समावेश इस स्तर पर किया जाता है:

(i) विद्यार्थी वर्ग समूह क्रियाओं जैसे समूह चर्चा, वादविवाद तथा पारस्परिक विचार विनिमय, सेमीनार, पेनल वार्ता, सभा समितियों एवं कार्यशालाओं में भाग ले सकता है।

(iiii) स्वतंत्र लेखन, स्वाध्याय, सृजन एवं निर्माण कार्य,प्रयोग एवं परीक्षण कार्य आदि के आधार पर विश्लेषण, समालोचना, मनन और सृजन क्रियाओं में संलग्न रह सकता है।

(iii) अपने स्वयं के कार्यों, प्रयासों एवं उपलब्धियों का मूल्यांकन किया जा सकता है और सहपाठियों के कार्य तथा गतिविधियों की निष्पक्ष ढंग से समालोचना तथा मूल्यांकन किया जा सकता है।

इस प्रकार से किसी अधिगम इकाई से संबंधित अनुदेशन कार्य को संपन्न करने के लिए जो शिक्षण अधिगम क्रियायें की जा सकती हैं उनमें संचालन के लिए विभिन्न इन्द्रिय जनित माध्यमों तथा साधनों का प्रयोग उपरोक्त चरणों में यथानुसार इस समन्वित एवं संयुक्त ढंग से किया जा सकता है कि उससे अध्यापक एवं विद्यार्थी दोनों को ही अपने उत्तरदायित्वों को भली – भाति निभाने में पर्याप्त सहायता मिल सके।

औपचारिक शिक्षण अधिगम गतिविधियों के अलावा अनौपचारिक एवं अन्य विशेष परिस्थितियों के शिक्षण अधिगम जैसे प्रौढ़ शिक्षा, दूर शिक्षा, पत्राचार शिक्षा, सृजनात्मक बालकों की शिक्षा, विकलांग बालकों की शिक्षा आदि में भी बहु – इन्द्रिय उपागम का उपयोग काफी प्रभावशाली सिद्ध हो सकता है। उदाहरण के लिए पत्राचार अथवा दूर शिक्षा को ही लीजिए। इस शिक्षा से संबंधित शिक्षार्थी को अपने पढ़ने वाले विषय की सभी अधिगम इकाइयों पर भली – भाँति तैयार की गई पठन सामग्री प्राप्त होती रहती है। यह सामग्री अभिक्रमित अधिगम एवं स्व – अनुदेशन के सिद्धांतों को ध्यान में रखकर तैयार की जाती है। इस लिखित सामग्री के साथ ऑडियो तथा वीडियो टेप में संग्रहित सामग्री भी उपलब्ध कराई जा सकती है । इस प्रकार इन्द्रियाँ जनित माध्यमों के उपयोग का दायरा विस्तृत होता जाता है। विद्यार्थी लिखित सामग्री तथा माध्यम के अलावा टेप्स के रूप में उपलब्ध दश्य – श्रव्य सामग्री का उपयोग कर उचित अधिगम अनुभव प्राप्त करने में सफल हो सकता है। जनसंपर्क शिक्षण साधनों जैसे डिया, टेलीविजन, समाचारपत्र, पत्रिकाओं आदि इन्द्रिय जनित माध्यमों का उपयोग भी दूर शिक्षा के शिक्षाथियों के लिए अब भली – भाँति किया जा सकता है। आगे चलकर कुछ अन्य विशष इन्द्रय जन्य माध्यमों एवं साधनों जैसे शिक्षण मशीन, बंद पथ टेलीविजन, कंप्यूटर सह – अनुदेशन आदि का सहारा भी लेना उचित रहता है ताकि विद्यार्थी सामहिक या स्वतंत्र रूप से अपने अधिगम पथ पर लगातार आगे बढ़ सके। आगे के चरण में विद्यार्थियों को अपने – अपने अर्जित अधिगम अनुभवों का स्व – मूल्यांकन करने को प्रोत्साहित किया जा सकता है। इस कार्य के लिए अच्छी तरह तैयार किये गये प्रदत्त कार्यों एवं प्रश्नपत्रों आदि की मदद ली जा सकती है । व्यावहारिक अनुभव प्रदान कराने की चेष्टा भी विभिन्न इन्द्रिय – जन्य माध्यमों की मदद से की जा सकती है । उन्हें पुस्तकालयों में अध्ययन करने के लिए संदर्भ पुस्तकें एवं विशेष सामग्री सुझाई जा सकती है। प्रयोग तथा परीक्षण करने की सलाह दी जा सकती है। दैनिक जीवन में अपने ज्ञान का उपयोग कर सकने की बात समझाई जा सकती है एवं इस तरह सैद्धांतिक और व्यवहारात्मक ज्ञान का संबंध करने एवं गहराई और विस्तार से बातों को जानने समझने के लिए विभिन्न संसाधन केन्द्रों की स्थापना इस तरह की जा सकती है कि ऐसे बालकों की उन तक भली भाँति पहुँच संपन्न हो सके। इस तरह पत्राचार एवं इस शिक्षा के विद्यार्थियों को उचित अधिगम अनुभव अर्जित करने में बहु – इन्द्रिय जनित माध्यम उपागम का उपयोग बहुत मददगार सिद्ध हो सकता है |

बहु – इन्द्रिय उपागम का उपयोग सभी तरह की शिक्षण अधिगम परिस्थितियों, औपचारिक एवं अनौपचारिक में तो संभव है ही साथ ही सभी तरह के अधिगमकर्ताओं औसत, औसत से कम तथा औसत से अधिक सभी को हर तरह से अनुकूल सिद्ध हो सकता है। एक तरफ इसे जहाँ मंद बुद्धि या मंद गति के सीखने वाले शिक्षार्थियों को शैक्षिक गतिविधियों के सफल संचालन के लिए काम में लाया जा सकता है तो दूसरी तरफ अति प्रतिभाशाली एवं सजनशाली बालकों की शिक्षा के लिए भी इसका प्रोग काफी हितकारी सिद्ध हुआ है। सजनशील बालकों की शिक्षा में जिस रूप में इसका प्रयोग संभव है उसकी रूप रेखा हम उदाहरण के तौर पर यहाँ रखना चाहेंगे। संक्षेप में इस काम के लिए निम्न प्रकार के इन्द्रिय जनित माध्यम तथा साधनों का सहारा लिया जा सकता है।

– अध्यापक एवं विद्यार्थियों के उपयोग के लिए संदर्शिकायें एवं कार्य – पुस्तकें जैसे “सृजनात्मक कार्य हेतु मार्गदर्शन” और सृजनात्मक कार्य हेतु कार्य पुस्तक आदि ।

– विचार पुस्तकों का उपयोग जिनके सृजनात्मक चिंतन के विकास में सहायक आवश्यक बौद्धिक कौशलों के प्रशिक्षण पर जोर दिया जाता है। ऐसी पुस्तकों के उदाहरण रूप में क्या तुम कल्पना कर सकते हो? ‘सोचो और करो’ आदि नामवाली पुस्तकों नधा पहेली, बूझ, कथात्मक एवं ऐसे नाट्य आदि साहित्य आदि को उद्धृत किया जा सकता है जिससे सृजनात्मक चिंतन को प्रोत्साहन मिले।

– भली, भाँति सोच समझकर तैयार की गई अनुदेशन सामग्री का उपयोग । इसमें मुद्रित एवं रिकार्ड की गई ऐसी सामग्री शामिल हो सकती है, जिसमें सृजनात्मक चिंतन प्रक्रिया का सजीव चित्रण और वर्णन हो जैसे “खोज के सुनहरे मौके” “अन्वेषण के अविस्मरणीय क्षण” “सृजनशीलता के सुनहरे पल” आदि ।

– सृजनात्मक शिक्षण तथा अधिगम में सहायक विभिन्न प्रकार की दृश्य – श्रव्य सामग्री और उपकरणों का प्रयोग विशेषकर इस कार्य के लिए विशेष रूप से तैयार की गई वीडियो फिल्म, स्लाइड्स, आडियो टेप्स, चलचित्र शिक्षण मशीन तथा कंप्यूटर पर प्रयुक्त स्व – अध्ययन सामग्री आदि का उपयोग काफी प्रभावपूर्ण सिद्ध हो सकता है |

– सृजनात्मकता के शिक्षण अधिगम से जुड़े हुए विभिन्न प्रकार के पैकेज्ड कार्यक्रमों का उपयोग । इन कार्यक्रमों के अंतर्गत ऐसी सामग्री को इकट्ठे रूप में पेश किया जाता है जो शिक्षक तथा अध्यापक दोनों को ही अपने – अपने कार्यों में आगे बढ़ने में भरपूर सहायता दे सकती है। जो सामग्री ऐसे कार्यक्रमों में प्रयोग में लाई जाती है उनमें उल्लेखनीय है – अनुदेशन मेनुअल,सृजनात्मक चिंतन के विभिन्न पहलुओं एवं पक्षों से जुड़े हुए ग्रंथ एवं पुस्तकें, पोस्टर्स, चित्र एवं फोटोग्राफ, आडियो तथा वीडियो टेप्स एवं कैसेट एवं अन्य दृश्य – श्रव्य ऐसी सामग्री जो सृजनात्मकता के शिक्षण अधिगम में विशेष रूप में मददगार सिद्ध हो सकती है।

– स्व – अनुदेशन में सहायक ऐसे अनुदेशन कार्यक्रमों का उपयोग जो सृजनात्मकता की शिक्षा में विशेष रूप से सहायक हो जैसे रहस्य तथा रोमांच से भरपूर ऐसी सृजनात्मक समस्याओं एवं आविष्कारों का विवरण जिसे स्व – अधिगम तथा स्व – अनुदेशन के सिद्धांतों को ध्यान में रखकर अच्छी तरह तैयार किया गया हो एवं जिनमें सृजनशीलता के सभी पक्षों को अच्छी तरह चित्रित किया जा सकता हो ।

– सृजनात्मक चिंतन तथा सृजनशीलता की वृद्धि में सहायक विभिन्न तरह की नवीन तकनीकों जैसे मस्तिष्क उद्वेलन; मारफोलोजीकल एनेलाइसिस एट्रीब्यूट लिस्टिंग एवं विभिन्न मनोअभिनयात्मक उपागमों जैसे भूमिका निर्वाह, पूछताछ प्रशिक्षण और शब्द साहचर्य आदि तकनीकों का उपयोग।

बहु – इन्द्रिय उपागम के लाभ तथा उपयोग :

शिक्षण अधिगम क्षेत्र में बहु – इन्द्रिय उपागम अथवा पद्धति को अपनाने से जो भी लाभ उठाये जा सकते हैं उन्हें संक्षिप्त रूप में निम्न तरह वर्णित किया जा सकता है।

1. शिक्षा प्रक्रिया को रुचिकर, सार्थक तथा प्रभावपूर्ण बनाना – बहु – इन्द्रिय अनुदेशन द्वारा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को रुचिकर, सार्थक एवं प्रभावपूर्ण बनाने में बहुत अधिक सहायता मिल सकती है। ऐसा होना निम्न कारणों की वजह से जरूरी हो जाता है –

– किसी एक इन्द्रिय जनित माध्यम, विधि अथवा तरीके जैसे भाषण, पठन तथा प्रदर्शन विधि आदि द्वारा पढ़ते रहने से शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया नीरस तथा बोझिल – सी बन जाती है। अगर विभिन्न इन्द्रिय जनित साधनों, उपकरणों, विधियों या माध्यमों का प्रयोग समय – समय पर परिस्थिति अनुसार किया जाता रहे तो यही प्रक्रिया तथा उसका वातावरण काफी सरस, रुचिपूर्ण एवं सजीव बन सकता है।

– बहु– माध्यम उपागम में जो विभिन्न तरह के साधन, उपकरण तथा सामग्री काम में लाई जाती है उससे विभिन्न ज्ञानेन्द्रियों जैसे आंख, कान, नाक, जीभ तथा त्वचा द्वारा प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करके सार्थक ज्ञान तथा कौशल प्राप्त करने के अवसर बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं।

– बहु – माध्यम पद्धति को अपनाने में शिक्षक तथा शिक्षार्थी दोनों को ही आवश्यक रूप से सक्रिय रहना पड़ता है एवं उनकी शिक्षण अधिगम क्रियाओं का दायरा भी बढ़ जाता है। इससे निष्क्रियता एवं नीरसता से तो छुटकारा मिलता ही है साथ ही प्रत्यक्ष अवलोकन,स्व – अनुभव और निजी सक्रियता के कारण जो भी अधिगम अनुभव प्राप्त होते हैं वे काफी सार्थक तथा लाभकारी सिद्ध होते हैं।

– बहु – माध्यम पद्धति का प्रयोग एक अध्यापक को अपनी अध्यापन कला एवं अधिगम कर्ता को अपने सीखने के ढंग को अच्छे से अच्छा बनाने का अवसर प्रदान करता है।

– विभिन्न साधनों तथा माध्यमों के समयानुसार उचित उपयोग से विषय वस्तु को स्पष्ट,रोचक, और सरल बनाने में काफी मदद मिलती है और इसी कारण अध्यापक एवं विद्यार्थी दोनों को ही अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में काफी आसानी हो जाती है |

– बहु – माध्यम उपागम में प्रयुक्त विभिन्न उपयुक्त माध्यमों की मदद से अधिगमकर्ता को विभिन्न प्रकार की कुशलताओं के अर्जन तथा प्रशिक्षण में काफी सहायता मिल सकती है।

– बहु-माध्यम पद्धति के उपयोग से विद्यार्थियों के भावात्मक व्यवहार क्षेत्र जैसे रुचियों, अभिरुचियों, अभिवृत्तियों, आदतों आदि में वांछित परिवर्तन लाने का कार्य Sअच्छी तरह किया जा सकता है।

– बहु-माध्यम पद्धति में प्रयुक्त साधनों तथा माध्यमों का सावधानी से भली भाँति प्रयोग किया जाए तो विद्यार्थी के संपूर्ण व्यवहार यानी ज्ञानात्मक, क्रियात्मक एवं भावात्मक व्यवहार के सभी पक्षों में संतुलित रूप से आवश्यक परिवर्तन लाये जा सकते हैं तथा इस तरह अनुदेशनात्मक उद्देश्यों की भली भाँति प्राप्ति का रास्ता इस पद्धति के प्रयोग द्वारा काफी सहज हो जाता है।

2. विद्यार्थी की आवश्यकताओं की पूर्ति में मददगार – बहु – माध्यम पद्धति के प्रयोग द्वारा सभी तरह के अधिगमकर्ताओं की बौद्धिक एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति भली – भाँति संभव है। विभिन्न माध्यमों एवं साधनों का उपयोग ऐसे अवसर स्वतः ही प्रदान कर देता है जिनमें विद्यार्थियों की सभी तरह की जिज्ञासा को शांत करने तथा उनकी रचनात्मक, निर्माणात्मक, सृजनात्मक एवं अन्वेषणात्मक शक्तियों को विकसित करने में मदद मिल सके। इन माध्यमों द्वारा प्रदत्त अनुभवों के द्वारा उन्हें सोचने, विचारने, चिंतन मनन करने और क्रियात्मक अभ्यास करने के पर्याप्त अवसर प्राप्त हो जाते हैं। संवेगों के उचित प्रशिक्षण तथा संवेगात्मक शक्ति के प्रवाह को उचित दिशा प्रदान करने में भी बहमाध्यम पद्धति का प्रयोग काफी सहायक सिद्ध होता है । बहुमाध्यम पद्धति की एक खास विशेषता इस बात में भी है कि इसमें साधनों एवं माध्यमों की प्रचुरता होती है तथा इससे यह भली भाँति संभव हो सकता है कि प्रत्येक शिक्षार्थी अपनी – अपनी रुचि एवं स्तर के हिसाब से किसी एक या अनेक माध्यमों का अपने शिक्षण अधिगम के लिए चयन कर सके । यही कारण है कि बहु – माध्यम पद्धति को अपनाने से पिछड़े हुए छात्रों, धीमी गति से सीखने वाले छात्रों, मेधावी छात्रों एवं समस्या युक्त या अपराधी बालकों सभी को अपने उपयुक्त रास्तों पर लाने और अधिगम पथ पर आगे बढ़ाने में पर्याप्त मदद मिल सकती है।

3. अधिगम को व्यक्तिगत एवं आत्म निर्भर बनाने में सहायक – शिक्षा अधिगम में बहुइन्द्रिय जन्य पद्धति का उपयोग इसे आवश्यक रूप से पूर्ण व्यक्तिगत तथा स्वावलम्बी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। सरल सॉफ्टवेयर सामग्री जैसे चार्ट, चित्र, मॉडल आदि के उपयोग से लेकर पेचीदा हार्डवेयर उपकरणों जैसे शिक्षण मशीन तथा कंप्यूटर के उपयोग तक सभी पुराने बहु – माध्यमी साधन अपनी – अपनी तरह से एक विद्यार्थी को उसकी स्वयं की गति, रुचियों और योग्यता के हिसाब से अधिगम पथ पर आगे बढ़ने में पूर्ण मदद करते हैं एवं इसके प्रयोग से धीरे – धीरे अधिगमकर्ता को अपने ऊपर इतना विश्वास हो जाता है कि वह अध्यापक तथा अध्यापक की देखरेख के बगैर स्वतंत्र रूप से अधिगम ग्रहण कर सके।

4. अध्यापकों को अपने नियमित उत्तरदायित्वों से मुक्त करने में मददगार – बहु इन्द्रिय – माध्यम उपागम का प्रयोग अध्यापकों को अपने शैक्षिक उत्तरदायित्वों के निर्वाह में कई तरह से लाभकारी सिद्ध होता है। साधनों तथा माध्यमों का उचित प्रयोग एक ओर तो उनके शिक्षण कार्य की जटिलताओं को कम करके उन्हें पर्याप्त रूप में मानसिक एवं व्यावसायिक संतुष्टि प्रदान करता है तो दूसरी तरफ उनके प्रयोग से समय एवं शक्ति की भी काफी बचत हो सकती है । जिस विषय वस्तु के स्पष्टीकरण और जिन कौशलों को सिखाने में उन्हें ज्यादा मेहनत करनी पड़ती थी, साधनों तथा माध्यमों का उपयोग अब उन्हीं बातों को अधिक सहज, रुचिकर तथा बोधगम्य बना देता है। अतिरिक्त समय और बची शक्ति का उपयोग अब अध्यापक अन्य छात्र कल्याण कार्यों में करने के काबिल बन जाते हैं । स्व – अधिगम के लिए प्रयुक्त प्रभावी माध्यम जेसे स्लाइड, फिल्म, आडियो टेप्स, शिक्षण मशीन, अभिक्रमित अधिगम पाठ्य – पुस्तक और पैकेज्ड सामग्री एवं कंप्यूटर सह – अनुदेशन आदि कार्यक्रमों द्वारा विद्यार्थियों की अध्यापकों पर निर्भरता कम होती चली जाती है।

परिणामस्वरूप अध्यापकों के परंपरागत एवं नियमित शैक्षिक उत्तरदायित्वों के निर्वाह का कार्य बहुत कुछ इन साधनों तथा माध्यमों के जरिए संपन्न हो जाता है तथा वे स्वयं को निर्देशन, परामर्श, व्यक्तिगत संपर्क एवं सहायता आदि अन्य छात्रोपयोगी कार्यों को करने के लिए पर्याप्त रूप से स्वतंत्र पाते हैं।

5. जन साधारण में चेतना तथा शिक्षा के प्रसार में सहायक – बहुइन्द्रिय – माध्यम उपागम का प्रयोग ऐसे साधन तथा माध्यमों के उचित उपयोग के अवसर प्रदान करने में सक्षम है जिनके द्वारा एक ही समय में एक जैसी शिक्षा तथा सूचनाएं बहुत सारे व्यक्तियों को एक साथ उनकी अपनी सुविधा के अनुसार प्रदान कर दी जायें। रेडियो, टेलीविजन, समाचार पत्र, पत्रिकाओं, मुद्रित सामग्री उपग्रह प्रसारण चल चित्र तथा वीडियो फिल्में आदि इसी प्रकार के माध्यम हैं जिन्हें जन शिक्षा एवं जन साधारण अभियान हेतु अच्छी तरह से प्रयोग में लाया जा सकता है। इतने अधिक बड़े पैमाने पर दर दराज बैठे हए अनगिनत शिक्षाथियो मे शिक्षा के प्रसार का काये बहुमाध्यम उपागम में शामिल ऐसे ही साधनों तथा माध्यमों के द्वारा सुचारु रूप से संपन्न हो सकता है।

6. सामूहिक तथा व्यक्तिगत दोनों तरह के शिक्षण अधिगम प्राप्त कराने में मददगार – बहु इन्द्रिय जनित – माध्यम उपागम के प्रयोग द्वारा व्यक्तिगत तथा सामूहिक दोनों तरह की शिक्षण अधिगम प्रक्रियाओं का संचालन अच्छी तरह से संभव है। अभिक्रमित अधिगम एवं पैकेज्ड सामग्री कंप्यूटर सह – अनुदेशन, विद्यार्थी नियंत्रित अनुदेशन, शिक्षण मशीन पर दिये जा रहे स्व – अधिगम कार्य, आडियो तथा वीडियो पर रिकार्ड की गई सामग्री, प्रयोगशाला कार्यशाला तथा जीवन की वास्तविक परिस्थितियों में व्यक्तिगत रूप से संपन्न किये जाने वाले प्रायोगिक कार्य और अनुभव आदि सभी इस तरह से साधन तथा माध्यम हैं जिनके द्वारा व्यक्तिगत रूप से स्वतंत्र चिंतन, मनन, स्वाध्याय एवं स्व – अधिगम अच्छी तरह संभव है। दूसरी ओर बहमाध्यम उपागम का उपयोग ऐसे सभी माध्यमों एवं साधनों के प्रयोग के लिए भी उचित अवसर प्रदान करता है जिनकी सहायता से सामूहिक रूप से सुनने – सुनाने, देखने – दिखाने, चर्चा करने और मिल – जुलकर काम करने अधिगम अनुभव अर्जित करने के बहुमूल्य अवसर प्राप्त होते हैं । व्याख्यान एवं प्रदर्शन विधि का उपयोग रेडियो, टी.वी. तथा फिल्मों के प्रसारण का सामूहिक प्रदर्शन, सेमीनार वाद विवाद, भाषण, गोष्ठी, पैनल वार्तालाप, कार्यशाला आदि का संचालन सामूहिक रूप से अधिगम अनुभव प्राप्त कराने के ऐसे ही साधन हैं । इस प्रकार से बहुइन्द्रिय जनित पद्धति में माध्यमों तथा साधनों का ऐसा प्रचुर खजाना निहित रहता है जिसके द्वारा व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों प्रकार के शिक्षण अधिगम का उचित प्रभावकारी नियोजन संभव हो सकता है |


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