खोजपूर्ण प्रश्न कौशल से आप क्या समझते हैं ? उसके तत्त्वों की चर्चा करें।

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शिक्षक जब कक्षा में पाठ के विकास के लिए प्रश्न पूछता है या छात्रों के पूर्व ज्ञान की जाँच के लिए प्रश्न करता है, तब छात्र उत्तर देने में समर्थ नहीं होते हैं, ऐसी स्थिति में शिक्षक छात्रों से सही उत्तर निकालने के लिए कुछ खोजपूर्ण प्रश्नों की सहायता लेता है जिससे छात्रों को सही उत्तर ढूँढ़ने में सहायता मिलती है। खोजपूर्ण प्रश्न छात्रों को पूर्व ज्ञान से नवीन ज्ञान की ओर ले जाने में सहायक होते हैं। शिक्षक इस तरह के प्रश्न पाठ्यपुस्तक की बोधगम्यता में अधिक वृद्धि के लिए पूछता है । इस प्रकार के सभी प्रश्न खोजपूर्ण प्रश्न के अन्तर्गत आते हैं।

इस कौशल की विशेषता यह है कि छात्रों के उत्तरों के आधार पर अनेक खोजपूर्ण प्रश्न पूछे जाते हैं ताकि छात्र अपने उत्तरों के सही होने का कारण भी समझ सकें।

इस कौशल के निम्न तत्त्व हैं –

(i) अनुबोधन क्रिया

(ii) अधिक सूचना प्राप्ति प्रविधि

(iii) पुनर्केन्द्रण तकनीक

(iv) पुनर्निर्देशन प्रविधि

(v) समीक्षात्मक अभिज्ञता वृद्धि प्रविधि ।

इस सभी तत्त्वों के उपयोग का उद्देश्य है कि –

(अ) छात्रों को अनुत्तरता की स्थिति से मुख्य एवं उचित उत्तर की ओर एक – एक करके ले जाया जाये।

(ब) उत्तर के प्रति छात्रों की बोध क्षमता को अपने निर्दिष्ट करना ।

(स) विस्तृत दृष्टिकोण से छात्रों को अपने उत्तर को समझने का अवसर प्रदान करना ।

(द) अधिक से अधिक छात्रों को विचार – विमर्श में सम्मिलित करना।

(य) छात्रों में समीक्षात्मक अभिज्ञान की वृद्धि करना।।

इस कौशल का महत्त्व इसी में है कि छात्रों के उत्तरों के सहारे से उनसे खोजपूर्ण प्रश्न पूछते हुए उनके ज्ञान का विस्तार किया जाये। अब एक – एक घटक को लेकर उस पर विचार करना उचित होगा।

(i) अनुबोधन क्रिया – छात्र जब उत्तर देने में हिचकिचाता है अथवा आधा उत्तर देकर रुक जाता है तो अध्यापक उसकी सहायता हेतु उत्तर देने हेतु मुख्य संकेत देता है – थोड़ा उत्तर स्वयं देते हुए आगे बताने हेतु प्रोत्साहित करता है। यदि छात्र फिर भी उत्तर न दे पाये तो वह सरल प्रश्न पूछकर उसे आगे बढ़ाने का प्रयत्न करता है। अनुबोधन का उपयोग तभी किया जाता है जब छात्र कहे कि मुझे नहीं आता या उत्तर देते हुए हिचकिचाये। जब उसका उत्तर पूर्णतया सही न हो या कमजोर हो तब इसी प्रक्रिया के सहारे उसे सही उत्तर की ओर प्रेरित किया जा सकता है। अध्यापक छात्र को निरुत्साहित नहीं करते हैं।

(ii) अधिक सूचना प्राप्ति – यदि छात्र का पूर्व उत्तर अधूरा है अथवा आंशिक रूप से गलत है तब अध्यापक स्पष्टीकरण, व्याख्या और विस्तारपूर्वक विचार करने की प्रक्रिया का सहारा लेकर उसका उत्तर पूर्ण कराता है.। अध्यापक को अधिक सूचना निकलवानी पड़ती है और अधिक स्पष्टीकरण हेतु उसे कुरेदना पड़ता है। इस प्रकार छात्र को सही उत्तर तक लाने हेतु अध्यापक को अधिक सूचना प्राप्ति हेतु प्रयत्न करने पड़ते हैं।

(iii) पुनर्केन्द्रण तकनीक – जब छात्र सही उत्तर देता है तब इस तकनीक का सहारा लेकर अध्यापक पूर्व घटित अथवा पढ़ी हुई स्थिति का उदाहरण लेकर छात्र का ध्यान उस पर पुन केन्द्रित कर जानना चाहता है । इससे यहाँ भी पता चलता है कि छात्र पूर्व समझदारी से उत्तर दे रहा है या कि रटा रटाया अथवा संयोग वश उसका उत्तर सही है । इस विधि द्वारा छात्र को अन्य समान परिस्थितियों में अपने उत्तर की जाँच करनी होती है। इस प्रकार छात्र अपने उत्तर को विभिन्न परिस्थितियों के परिपेक्ष्य में समझता है।

(iv) पुनर्निदेशन प्रविधि – एक ही प्रश्न विभिन्न छात्रों से पूछा जाता है ताकि अधिक से अधिक छात्रों की सहभागिता प्राप्त की जा सके । एक ही प्रश्न विभिन्न छात्रों से पूछा जाता है अथवा उसी प्रश्न के छोटे – छोटे प्रश्न बनाकर विभिन्न छात्रों से पूछे जाते हैं फिर मुख्य प्रश्न पर आया जाता है। यदि अनुबोधन के उपरान्त भी कोई छात्र प्रश्न का उत्तर न दे सके तो वह प्रश्न छात्र या छात्रों से पूछा जाना भी पुनर्निर्देशन कहलाता है।

(v) समीक्षात्मक अभिज्ञता वृद्धि – छात्रों द्वारा लिये गये सही उत्तरों पर जब “क्यों” और “कैसे” जैसे प्रश्न पूछे जाते हैं तो अध्यापक अपेक्षा करता है कि इससे छात्रों की समीक्षात्मक अभिज्ञता की वृद्धि होगी। छात्रों को अपने सही उत्तरों के पीछे जो तर्क है उसे समझने में सहायता मिलेगी।

खोजपूर्ण प्रश्न कौशल अध्यापक के लिये बहुत ही सहायक सिद्ध होता है। इस कौशल के पर्यवेक्षण हेतु निम्न दो अनुसूचियाँ काम आती है –

खोजपूर्ण प्रश्नों की निरीक्षण सूची :

छात्राध्यापक का विवरण तथा निरीक्षण का नाम अंकित कर लिया जाता है यह निरीक्षण सूची शिक्षण/ पुनर्शिक्षण में प्रयुक्त की जाती है।

निरीक्षण के समय प्रति मिनट में शिक्षण तत्त्वों के प्रयोग करने की आवृत्ति लगाई जाती है। सूक्ष्म शिक्षण 10 मिनट किया जाता है तब प्रत्येक मिनट के होने पर आवृत्ति की जाती है |

छात्राध्यापक की विवरण तथा निरीक्षण का नाम लिखा जायेगा यह मूल्यांकन सूची, शिक्षण, पुनः शिक्षण में प्रयुक्त की जाती है। प्रत्येक तत्त्व का मूल्यांकन सात अनुस्थतियों बिल्कुल नहीं से 0 से अत्यधिक 6 में किया जाता है। इनमें किसी अनुस्थिति में स्तर अनुरूप कौशल तत्त्व का स्तरीकरण किया जाता है।

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