छात्र व्यवहार अभिज्ञान कौशल से आप क्या समझते हैं ? सफल शिखण में इसका ‘प्रयोग क्यों आवश्यक है?

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अध्यापक कक्षा में पढ़ाते समय कथन, व्याख्या अथवा भाषण देता है। अध्यापक तभी सफल माना जाता है जब छात्र कुछ सीखें । सीखने के लिए आवश्यक है कि अध्यापक विषयवस्तु में तो पारंगत हो ही साथ ही वह पाठ से छात्रों के ध्यान को आकर्षित कर स्थायी रख सके। ध्यानाकर्षण के साथ – साथ अध्यापक छात्रों के व्यवहार को देखकर अन्दाज लगा सके कि कौन – कौन से छात्र उचित ध्यान दे रहे हैं और कौन मात्र नाटक कर रहे हैं। जिनका ध्यान पाठ की ओर नहीं है उन्हें वह पाठ में भाग लेने हेतु प्रेरित करें।

कुछ छात्र पाठ में दत्तचित्त रहते हैं, कुछ साधारण ध्यान देते हैं, कुछ ऐसे भी होते हैं जो बिल्कुल ध्यान नहीं देते। अध्यापक इन सबको पहचान सके व प्रत्येक छात्र को पाठ में उचित ध्यान देने पर प्रेरित कर सके। यह कौशल छात्र व्यवहार अभिज्ञान कहलाता है –

इस कौशल के घटक हैं –

(1) छात्रों के अवधान व्यवहार का पुरस्करण – जो छात्र कक्षा में पाठ में ध्यान देते हैं अध्यापक उन्हें शाबाश, ठीक बहुत अच्छे आदि कहकर पुरस्कृत करता है । इससे इन छात्रों को तो प्रेरित किया ही जाता है, अन्य छात्रों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है और वे भी पाठ में ध्यान देने लगते हैं। इस प्रकार के उचित व्यवहार की प्रशंसा अध्यापक को अन्य छात्रों से सहयोग दिलाने में सहायक होती है । अध्यापक के प्रश्न पूछने पर छात्र तुरन्त उसका उत्तर देते हैं, दत्तचित्त रहते हैं । कुछ के लिए प्रश्न दोहराना पड़ता है जो इस बात का सूचक है कि उनका पूरा ध्यान कक्षा में नहीं था।

(2) निर्देशन – अध्यापक छात्रों पर अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए छात्रों को पाठ्यवस्तु पर ध्यान देने का आदेश देता है । जो छात्र ध्यान नहीं देते वह उनकी आलोचना भी करता है। अध्यापक का कहना – चुप रहो, ध्यान दो आदि इसी श्रेणी में आता है। यदि कोई छात्र पूछे गये प्रश्न का उत्तर देने में अटकता है तो अध्यापक का कहना कि ध्यान नहीं देते हो, यह ठीक नहीं है इसी प्रक्रिया का अंग है।

(3) प्रश्न पूछना – अध्यापक छात्रों के अवधान की जाँच के लिए मूल्यांकन प्रश्न पूछता है। कई बार ऐसा लगता है कि छात्र ध्यान दे रहा है फिर भी अध्यापक उसकी वास्तविकता जानने के लिए प्रश्न पूछता है। इससे छात्र पाठ में ध्यान देते हैं क्योंकि अध्यापक कभी भी किसी से प्रश्न पूछ लेता है।

कई बार छात्र पाठ में रुचि नहीं ले पाते क्योंकि पाठ्यबिन्दु ही ऐसा होता है । अध्यापक को ऐसी स्थिति को पहचान कर तुरन्त अपना व्यवहार बदल देना चाहिए । वह कथन को छोड़कर प्रश्नों पर आ जाता है या कहानी कटकर रुचि उत्पन्न करता है।

(4) छात्रों की भावनाओं, विचारों को स्वीकार करना – पाठ विषय के सम्बन्ध में छात्रों को अपने विचार धारणाएं,शंकाएं एवं भावनाएं होती हैं, अध्यापक को उनका आदर करना चाहिए और उचित धारणाओं को स्वीकार करना चाहिए।

यदि छात्र अध्यापक की बात से सहमत नहीं होवे तो उनके चेहरे के हाव – भाव से अध्यापक उनकी भावना जान ले और उन्हें अपनी बात कहने का अवसर दें । उचित बात को वीकार भी किया जाए। कई बार छात्र अध्यापक द्वारा की गई गलती की ओर ध्यान दिलाते हैं। अध्यापक को इसका बुरा नहीं मानना चाहिए, अपितु छात्रों के इस पर ध्यान देने की प्रशंसा करनी चाहिए।

(5) मौन एवं अशाब्दिक संकेतों का उपयोग – अध्यापक छात्रों के अवधान व्यवहार का ध्यान रखता है और जानकर मौन व अन्य संकेतों का इस प्रकार उपयोग करता है कि जिससे पता लगे कि उसे ज्ञात है – कौन – कौन छात्र पाठ में ध्यान दे रहा है और कौन नहीं दे रहा है । जो छात्र ध्यान दे रहा है वह उसकी ओर देखकर मुस्कुराता है और जो ध्यान नहीं देता उसकी ओर वह घूरकर देखता है।

उपरोक्त सभी बातों का उद्देश्य पाठ में दिए जाने वाले ज्ञान को प्रभावी बनाता है।

इस कौशल के घटकों की आवृत्ति अंकन अनुसूची व मूल्यांकन अनुसूची निम्नानुसार है –

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