आधुनिक तकनीकी साधनों द्वारा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में निभाई जाने वाली भूमिका संक्षिप्त रूप से किस तरह व्यक्त की जा सकती है?

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शिक्षण में आधुनिक तकनीकी के उपयोग :

आधुनिक तकनीकी साधनों द्वारा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में निभाई जाने वाली भूमिका . को संक्षिप्त रूप से निम्न तरह व्यक्त किया जा सकता है –

1. दृश्य – श्रव्य ज्ञानेन्द्रियों का प्रभावपूर्ण उपयोग – ज्ञानेन्द्रियों को ज्ञान का द्वार कहा जाता है। शैक्षिक तकनीकी साधनों के प्रयोग से दो महत्वपूर्ण ज्ञानेन्द्रियों – चक्षु तथा श्रवणेन्द्रियों का उपयोग कर (देखकर एवं सुनकर) ज्ञान प्राप्त करने के बहुमूल्य अवसर मिलते हैं।

2. एक उत्तम अभिप्रेरणा स्त्रोत का कार्य करना – बालक स्वभाव से ही क्रियाशील होते हैं तथा उन्हें वस्तुओं एवं प्रक्रियाओं को देखने – सुनने में रुचि होती है। इस तरह शैक्षिक तकनीकी साधनों की मदद से पढ़ना – पढ़ाना उनकी मूल प्रवृत्तियों, स्वाभाविक रुचियों, बुनियादी प्रेरणा स्त्रोतों एवं प्रयोजनों से मेल खाता है तथा इस तरह शैक्षिक तकनीकी साधन शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में एक बहुत ही प्रभावपूर्ण अभिप्रेरणा स्त्रोत सिद्ध हो सकते हैं।

3. उचित बिम्ब तथा प्रभाव छोड़ने में सहायक – सीखने की प्रक्रिया में बालकों को जो . अनुभव होते हैं तथा उनके द्वारा कैसे मानस प्रतिबिम्ब बनते हैं या कैसा प्रभाव उनके ऊपर छोड़ा जाता है यह बात अधिगम परिणामों की दृष्टि से बहुत महत्व रखती है। शैक्षिक तकनीकी साधन यथेष्ट प्रभाव तथा अनुभूत मानस बिम्बों के रूप में अपने पीछे स्थायी चिन्ह छोड़ने का कार्य करते हैं जिनके द्वारा स्थायी तथा प्रभावपूर्ण अधिगम अनुभव प्राप्ति में बहुत मदद मिलती है ।

4. रुचि तथा ध्यान को बढ़ाने में मददगार – शैक्षिक तकनीकी साधनों का प्रयोग शिक्षण – अधिगम के नीरस वातावरण में एक विचित्र तरह की ताजगी तथा रस भर देता है जिसके कारण छात्र कठिन से कठिन बातों को सीखने – समझने में पर्याप्त रुचि तथा उत्साह दिखाते हैं । इस तरह की रुचि तथा उत्साह उन्हें पढ़ने में पूरा ध्यान केन्द्रित करने की प्रक्रिया में भरपूर सहयोग देता है एवं परिणामस्वरूप सीखने – सिखाने के क्षेत्र में बहुत ही प्रभावपूर्ण परिणाम सामने आते है |

5. अधिगम तथा प्रशिक्षण के सकारात्मक स्थानान्तरण में सहायक – छात्रों द्वारा एक समय में शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया के दौरान जो कुछ भी सीखा जाता है उसका पूरा – पूरा लाभ तभी मिलता है जब वे उसे अन्य विषयों अथवा क्षेत्रों से संबंधित बातों को सीखने या जीवन में वास्तविक रूप में उसका प्रयोग कर सकने में समर्थ हो सकें। यह कार्य तभी हो सकता है, जबकि बालकों में एक परिस्थिति में सीखी हुई बातों को दूसरी परिस्थितियों में स्थानान्तरण करने की क्षमता विकसित हो जाय । शैक्षिक तकनीकी सामग्री का प्रयोग इस क्षमता के उचित विकास में बहुत ही उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

6. अधिगमकर्ताओं को पुनर्बलन प्रदान करना – अधिगम प्रक्रिया में अधिगमकर्ता को उचित पुनर्बलन प्रदान करने की दृष्टि से भी शैक्षिक तकनीकी साधनों का विशेष महत्व है । स्व – शिक्षा एवं आत्म – अनुदेशन से संबंधित सभी शिक्षण उपकरण एवं सामग्री यही भूमिका निभाते हैं। अधिक्रमित अधिगम सामग्री, शिक्षण मशीन, कम्प्यूटर आदि का प्रयोग अधिगमकर्ता को अधिगम प्रक्रिया में यथेष्ट पुनर्बलन प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसी तरह बालक जो पुस्तकों में पढ़ता है या अध्यापक द्वारा जो कुछ मौखिक रूप से उसे पढ़ाया जाता है, उन्हीं बातों को जब वह विभिन्न शैक्षिक तकनीकी साधनों के माध्यम से देखता है तो जो कुछ उसने पहले सीखा होता है उसके उचित अभ्यास, परीक्षण तथा उपयोग के रूप में उसे अपने अधिगम अनुभवों के पुनर्बलन हेतु उचित अवसर प्राप्त होते रहते हैं।

7. प्रत्यक्ष अनुभव प्रदान करने का सर्वोत्तम विकल्प – अनुभव को सबसे अच्छा शिक्षक माना जाता है। लेकिन बहत बार न तो प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करना सम्भव हो पाता है तथा न ऐसा करना समय, शक्ति एवं धन की दृष्टि से विवेकपूर्ण ही माना जा सकता है। इस दृष्टि से प्रत्यक्ष अनुभव जैसे ही वैकल्पिक अनुभव देने हेतु शैक्षिक तकनीकी साधन बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा इस तरह शिक्षण तथा अधिगम को अधिक से अधिक यथार्थ, सार्थक एवं जीवन्त बनाने का प्रयास करते हैं।

8. विषय – वस्तु की स्पष्टता – विभिन्न विषयों से संबंधित बहुत से ऐसे संप्रत्ययों, विचारों, प्रक्रियाओं आदि को जिन्हें पुस्तकों से पढ़कर समझना या व्याख्यान विधि द्वारा पढ़ाना काफी मुश्किल होता है, शब्दों के माध्यम से उन्हें स्पष्ट रूप से समझना अथवा समझाना विद्यार्थी तथा अध्यापक दोनों के लिए एक समस्या पैदा कर देता है। इस स्थिति में शैक्षिक तकनीकी साधन सहायक होते हैं । इनके प्रयोग से कठिन से कठिन विषय – वस्तु भी सरल, स्पष्ट तथा सार्थक बन जाता है। उदाहरण के लिए जलपम्प.साइकल पम्प, आँख,कान आदि की रचना तथा कार्य – प्रणाली का अध्ययन करते समय यदि इनके चित्र, मॉडल, फोटोग्राफ या फिल्मस्ट्रिप आदि का प्रयोग किया जाय तो सीखने – सिखाने के कार्य को बहत ही स्पष्ट तथा सार्थक बनाया जा सकता है।

9. व्यक्तिगत विभिन्नताओं की संतष्टि में सहायक – अभिगम अनुभव अर्जित करने की पष्ट स छात्री में बहुत ज्यादा विभिन्नताएँ देखने को मिल सकती हैं। कोई सनकर ठीक तरह साखता ह तो कोई देखकर। किसी को व्यक्तिगत रूप से स्वयं अथवा किसी के निर्देशन में अकेले पढ़ने में सुविधा होती है तो किसी को समूहगत या कक्षा अध्ययन में पढ़ना ठीक लगता है । कोई बहुत धीरे – धीरे सीखता है तो कोई अति शीघ्र । इस तरह की वैयक्तिक विभिन्नताओं की अधिगम संबंधी माँग को शैक्षिक तकनीकी सामग्री, साधन तथा स्वशिक्षण से जुड़े हुए उन्नत उपकरणों जैसे शिक्षण मशीन तथा कम्प्यूटर आदि से अच्छी तरह पूरा किया जा सकता है।

10. शिक्षण सूत्रों के उपयोग में सहायक – शिक्षण के सूत्र जैसे ‘सरल से कठिन की तरफ’, ‘स्थूल से सूक्ष्म की तरफ’ ‘ज्ञात से अज्ञात की तरफ’, ‘करो और सीखो’ इत्यादि शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया को सरल तथा प्रभावशाली बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभात ह । एक अध्यापक को अपने शिक्षण में इस तरह के शिक्षण – सूत्रों का उपयोग करने में शैक्षिक तकनीकी साधनों के प्रयोग से बहत मदद मिलती है। वह कठिन – से – कठिन, सूक्ष्म – से – सूक्ष्म अज्ञात रहस्या को इन साधनों के माध्यम से सार्थक तथा सजीव अनुभव प्रदान कर सरल और स्वाभाविक ढंग से बालकों के मस्तिष्क में बिठा सकता है।

11. भाषागत अभिव्यक्ति की कमियों को दूर करना – शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया में विचार सम्प्रेषण का विशेष महत्व है। इस सम्प्रेषण में मौखिक एवं लिखित रूप में सम्पन्न भाषागत अभिव्यक्ति बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लेकिन मात्र शब्दों तथा संकेतों के माध्यम से सम्पन्न यह अभिव्यक्ति शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया में ज्यादा प्रभावशाली सिद्ध नहीं होती । भाषागत अभिव्यक्ति का यह उपयोग कई बार ऐसी समस्याएँ जैसे पढ़ने – पढ़ाने में अरुचि, बिना अर्थ जाने उसे ज्यों की त्यों पेश करने तथा जो कुछ भी पढ़ा जाता है उसे भूल जाने या प्रयोग न कर सकने आदि को जन्म देता है। इन सभी समस्याओं को पैदा न होने देने हेतु शैक्षिक तकनीकी साधनों का उपयोग काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

12. कक्षा में उचित अन्तःसंबंध तथा शैक्षिक वातावरण बनाने में सहायक – शिक्षण – अधिगम कार्य की सफलता कक्षागत स्वस्थ अन्तः संबंधों तथा अनुकूल कक्षा वातावरण पर निर्भर करती है । शैक्षिक तकनीकी साधनों के उपयोग से कक्षा का वातावरण सजीव हो उठता है। उसमें निष्क्रियता एवं बोझिलपन नहीं रह पाता। छात्र तथा अध्यापकों और स्वयं छात्रों के परस्पर विचारों के आदान – प्रदान तथा स्वस्थ अन्तःक्रियाओं के ज्यादा अनुकूल अवसर प्राप्त होते हैं तथा कक्षा का वातावरण शैक्षिक दृष्टि से ज्यादा उपयुक्त बन जाता है।


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