स्मरण करने के शिक्षण का वर्णन कीजिए।

Estimated reading: 1 minute 69 views

शिक्षण एक सतत क्रियाएं :

स्मरण करना का शिक्षण ‘विचारहीन’ होता है जबकि चिन्तन करने का स्तर अधिक ‘विचारपूर्ण’ माना जाता है। चिन्तन स्तर की शिक्षण व्यवस्था तभी सम्भव हो सकती है जब स्मरण तथा बोध स्तर पर शिक्षण हो चुका है। सैद्धान्तिक दृष्टि से शिक्षण इन तीन पर करना चाहिए परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से प्राथमिक स्तर से विश्वविद्यालय स्तर तक शिक्षण स्मरण कराने तक ही सीमित रहता है। अन्य स्तरों पर शिक्षण व्यवस्था नहीं की जाती है। इसलिए शिक्षण को स्मरण कराने की प्रक्रिया करते हैं। आधुनिक शिक्षण की प्रक्रिया भी हरबर्ट की पंच नदी योजना पर ही आधारित है जिससे प्रस्तुतीकरण तथा स्मरण करने पर अधिक बल दिया जाता है। स्मरण करने की शिक्षण प्रक्रिया का यहाँ संक्षेप में वर्णन किया गया है।

स्मरण करने का शिक्षण

स्मरण करने के शिक्षण की क्रियायें ऐसे अधिगम की परिस्थितियों को उत्पन्न करती हैं जो विषय वस्तु के तथ्यों को छात्र केवल,कण्ठस्थ कर सके। विषय वस्तु जितनी अधिक सार्थक होती है उसे रटना या कण्ठस्थ करना उतना ही सरल होता है तथा अधिक समय तक उसे स्मरण रख सकते हैं। तथ्यों के कण्ठस्थ करने की क्षमता का बुद्धि से सीधा सम्बन्ध नहीं होता है । एक मन्द बुद्धि बालक भी तथ्यों को कण्ठस्थ करके अधिक समय तक याद रख सकता है तथा इसके विपरीत भी हो सकता है।

स्मरण के शिक्षण की निष्पत्ति का बुद्धि से सह – सम्बन्ध होता है परन्तु इस स्तर के शिक्षण से बौद्धिक – व्यवहार के विकास में सहायता मिलती है। समस्या के समाधान में स्मृति स्तर ही सहायक होता है । कण्ठस्थ किये गये तथ्यों का छात्रों के विकास में कम ही योगदान होता है । इस स्तर के शिक्षण में तथ्यों के प्रस्तुतीकरण तथा उनके रटने पर विशेष बल दिया है ।

साधारणतः विद्यालयों की परिस्थितियों में एक प्रभावशाली शिक्षक के पास अधिकांश अवसरों में स्मृति स्तर के शिक्षण के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं रह जाता है । जैसे गणित की सारणी, वर्तनी, संस्कृत व्याकरण, विशेष रूप से ऐतिहासिक घटनायें आदि के शिक्षण में स्मृति स्तर शिक्षण ही अधिक प्रभावशाली होता है यद्यपि शिक्षाविदों ने यह प्रयास किया है कि शिक्षण में रटने पर बल न दिया जाये अपित् पाठ्य – वस्तु के आधारभूत प्रत्ययों से अवगत कराया जाये । इसके लिए नवीन गणित का विकास किया गया तथा पाठ्यक्रम में उसे सम्मिलित किया गया जिसमें रटने की अपेक्षा प्रत्ययों के बोध पर अधिक बल दिया जाता है परन्तु इन प्रयोगों के अच्छे परिणाम नहीं उपलब्ध हुए हैं। शिक्षण में स्मृति स्तर का विशेष महत्त्व है । बोध तथा चिन्तन स्तर के शिक्षण में स्मृति स्तर निहित होता है तथा पूर्वक का कार्य करता है। स्मृति स्तर के प्रतिमान के प्रारूप का वर्णन निम्न पंक्तियों में किया गया है –

स्मरण करने के शिक्षण का प्रतिमान :

इस स्तर के प्रतिमानों को हरबर्ट ने दिया है। स्मृति स्तर के शिक्षण के प्रतिमान के प्रारूप का वर्णन चार पक्षों में किया गया है –

(1) उद्देश्य, (2) संरचना, (3) सामाजिक प्रणाली, तथा (4) मूल्यांकन प्रणाली ।

(1) उद्देश्य – स्मृति स्तर के शिक्षण का उद्देश्य छात्रों में निम्नांकित क्षमताओं का विकास करना है –

(अ) मानसिक पक्षों का प्रशिक्षण

(ब) तथ्यों का ज्ञान प्रदान करना।

(स) सीखे हुए तथ्यों को स्मरण रखना।

(द) सीखे हुए ज्ञान का प्रत्यास्मरण करना तथा पुनः प्रस्तुत करना।

इसमें शिक्षण प्रतिमान का ऐसा प्रारूप होना चाहिए जिससे इन उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सके।

(2) संरचना – इस प्रतिमान के प्रवर्तक हरबर्ट को माना जाता है। उन्होंने शिक्षण प्रक्रिया में प्रस्तुतीकरण पर अधिक बल दिया है। हरबर्ट की पंचपदी प्रणाली स्मृति स्तर के शिक्षण की संरचना का प्रारूप प्रदान करती है

(अ) योजना – शिक्षक पाठ्य – वस्तु के सार्थक विचारों को अपने चेतन मस्तिष्क में लाता है और छात्रों को उन तथ्यों के लिए अनुभव प्रदान करता है जिससे छात्र उन तथ्यों का प्रत्यास्मरण कर सकें। इसके लिए शिक्षक को प्रस्तुतीकरण से पूर्व ही तैयारी करनी होती है।

(व) प्रस्तुतीकरण – शिक्षक नवीन तथ्यों को छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करता है। नवीन ज्ञान के प्रस्तुत करने में यह ध्यान रखा जाता है कि उसका छात्रों के पूर्व ज्ञान से सम्बन्ध स्थापित किया जा सके। प्रस्तुतीकरण में निम्नांकित बातों को ध्यान में रखना चाहिए

(क) शिक्षक के कार्य सुनिश्चित होने चाहिए।

(ख) शिक्षक को पाठ्य – वस्तु के स्वरूप को निश्चित करना चाहिए।

(ग) शिक्षक को विशिष्ट पाठ्य – वस्तु को प्रस्तुत करना चाहिए।

इस प्रस्तुतीकरण के प्रारूप की तीन प्रमुख विशेषतायें होती हैं –

(1) सुनिश्चितता – प्रस्तुतीकरण में पाठय – वस्त का रूप निश्चित होता है।

(2) पर्वकथनीयता – प्रस्ततीकरण द्वारा किसी प्रकार का ज्ञान प्रदान किया जायगा, इसका कथन पहले ही कर लिया जाता है।

(3) ज्ञान का स्वरूप देखा जा सके – ज्ञान के विशिष्ट रूप का प्रस्तुतीकरण ऐसा हो जिसका अवलोकन हो सके।

(स) तुलना एवं समरूपता – यदि शिक्षक प्रथम दो सोपानों का अनुसरण भली प्रकार कर चका है तब छात्र नवीन तथ्यों की समानता की तलना कर सकते हैं । नये तथा पुरान विचारा में सम्बन्ध भी स्थापित कर सकते हैं और उनमें सम्मिलित तथ्यों का चयन भा कर सकते है |

(द) सामान्यीकरण – इस सोपान के अन्तर्गत छात्र दो या दो से अधिक तथ्यों में सम्मिलित तत्त्वों को बताने का प्रयास कर सकता है और उनके आधार पर कोई सिद्धान्त निकाल सकता है, जिसको सामान्यीकरण कहते हैं।

(य) उद्योग – नवीन सीखे हुए ज्ञान एवं सिद्धान्तों का अन्य तथ्यों अथवा समस्याओं के समाधान में प्रयोग होता है। अतः शिक्षक को ऐसी समस्यायें प्रस्तुत करनी चाहिए जिसमें छात्र सीखे हुए ज्ञान का प्रयोग कर सकें।

(3) सामाजिक प्रणाली – शिक्षण एक सामाजिक एवं व्यावसायिक प्रक्रिया है । इसमें सामाजिक अवस्था का विशेष महत्त्व है। छात्र और शिक्षक इसके सदस्य होते हैं । स्मृति स्तर पर शिक्षक अधिक क्रियाशील रहता है। शिक्षक का व्यवहार अधिकार पूर्ण रहता है । शिक्षक का मुख्य कार्य पाठ्य – वस्तु का प्रस्तुतीकरण करना, छात्रों की क्रियाओं को नियन्त्रित करना उनको अभिप्रेरण प्रदान करता है । छात्र का स्थान शिक्षण में गौण होता है, वह केवल श्रोता का कार्य करता है और शिक्षक को आदर्श मानकर उसका अनुसरण करता है । स्मृति स्तर पर अभिप्रेरण का बाह्य रूप ही अधिक प्रयुक्त किया जाता है । शाब्दिक प्रेरणा, पुरस्कार आदि विशेष रूप से प्रयुक्त किये जाते हैं।

(4) सहायक प्रणाली – स्मृति स्तर के शिक्षण का मूल्यांकन मौखिक तथा लिखित परीक्षाओं द्वारा किया जाता है। परीक्षा में भी रटने की क्षमता पर ही अधिक बल दिया जाता है। इसके लिए वस्तुनिष्ठ परीक्षण में प्रत्यास्मरण पद, अभिज्ञान पद आदि का प्रयोग किया जाता है। निबन्धात्मक परीक्षा अधिक उपयोगी नहीं है।

स्मरण करने के लिए सुझाव :

निम्नांकित परिस्थितियों में स्मृति स्तर से शिक्षण को प्रभावशाली ढंग से प्रयुक्त किया जा सकता है –

(1) पुनरावृत्ति एक लय में की जानी चाहिए।

(2) प्रत्यास्मरण तथा पुनः प्रस्तुतीकरण का अधिक अभ्यास किया जाना चाहिए।

(3) थकान के समय शिक्षण नहीं करना चाहिए।

(4) समग्र – पद्धति का ही प्रयोग करना चाहिए।

(5) पाठ्य – वस्तु सार्थक अथवा अर्थपूर्ण होनी चाहिए।

(6) शिक्षण के सभी बिन्दुओं को समग्र रूप में प्रस्तुत करना चाहिए।

(7) पाठ्य – वस्तु को क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत करना चाहिए।

(8) सुनिश्चित – पुनर्बलन प्रणाली का प्रयोग किया जाना चाहिए।

(9) ज्ञान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही प्रयुक्त करना चाहिए।

(10) कक्षा में अभ्यास के द्वारा प्रत्यास्मरण में वृद्धि की जा सकती है।

स्मृति स्तर का शिक्षण तथ्यों को रटने तथा ज्ञान उद्देश्यों की प्राप्ति की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है अपित बोध तथा चिन्तर स्तर के शिक्षण में सहायक होता है तथा उनके लिए यह आधार प्रदान करता है।


Leave a Comment

CONTENTS