दहेज निषेध अधिनियम 1961

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दहेज निषेध अधिनियम 1961 (संशोधित 1986)– दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 2 को दहेज (निषेध) अधिनियम 1984 और 1986 के अंतर्गत दहेज लेने, देने या इसके लेन-देन में सहयोग करना दोनों अपराध है। दहेज लेने-देने, या इसके लेन-देन में सहयोग करने पर 5 वर्ष की कैद और 15,000 रूपये के जुर्माने का प्रावधान है।

दहेज लेने और देने या दहेज लेने और देने के लिए उकसाने पर या तो 6 महीने का अधिकतम कारावास है या 5000 रूपये तक का जुर्माना अदा करना पड़ता है। वधु के माता-पिता या अभिभावकों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दहेज की मांग करने पर भी यही सजा दी जाती है। बाद में संशोधन अधिनियम के द्वारा इन सजाओं को भी बढाकर न्यूनतम 6 महीने और अधिकतम दस साल की कैद की सजा तय कर दी गयी है। वहीं जुर्माने की रकम को बढ़ाकर 10,000 रूपये, ली गयी, दी गयी या मांगी गयी दहेज की रकम, दोनों में से जो भी अधिक हो, के बराबर कर दिया गया है। हालाँकि अदालत ने न्यूनतम सजा को कम करने का फैसला किया है लेकिन ऐसा करने के लिए अदालत को जरूरी और विशेष कारणों की आवश्यकता होती है (दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3 और 4) दंडनीय है- दहेज देना, दहेज लेना, दहेज लेने और देने के लिए उकसाना एवं वधु के माता-पिता या अभिभावकों से सीधे या परोक्ष तौर पर दहेज की मांग करना।

भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए निर्ममता तथा दहेज के लिए उत्पीड़न, 304 बी इससे होने वाली मृत्यु और 306 भादसं- उत्पीड़न से तंग आकर महिलाओं द्वारा आत्महत्या के लिए प्रेरित करने वाली घटनाओं से निपटने के लिए कानूनी प्रावधान है ।

यदि किसी लड़की की विवाह के सात साल के भीतर असामान्य परिस्थितियों में मौत होती है और यह साबित कर दिया जाता है कि मौत से पहले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता था, तो भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी के अंतर्गत लड़की के पति और रिश्तेदारों को कम से कम सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।

इस अधिनियम के अंतर्गत दहेज, उपहार और स्त्रीधन को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है:

दहेजः प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर दी गयी कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति सुरक्षा या उसे देने की सहमति”:

  • विवाह के एक पक्ष के द्वारा विवाह के दूसरे पक्ष को या
  • विवाह के किसी पक्ष के अभिभावकों द्वारा या
  • विवाह के किसी पक्ष के किसी व्यक्ति के द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को या
  • शादी के वक्त, या उससे पहले या उसके बाद कभी भी जो कि उपरोक्त पक्षों से सम्बंधित हो जिसमें मेहर की रकम सम्मिलित नहीं की जाती, अगर व्यक्ति पर मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत) लागू होता हो।

इस प्रकार दहेज से सम्बंधित तीन स्थितियां हैं-

  • विवाह से पूर्व या
  • विवाह के अवसर पर या
  • विवाह के बाद या

स्त्रीधन : शादी के वक्त जो उपहार और जेवर को लड़की को दिए जाते हैं, वे स्त्रीधन कहलाते हैं। इसके अलावा लड़के और लड़की दोनों के कॉमन उपयोग के सामान जैसे फर्नीचर, टीवी, आदि स्त्रीधन में आते हैं।

उपहारः लड़की शादी में जो सामन अपने साथ लेकर आती है या उसके पति को या उसके पति के रिश्तेदारों को दिया जाता है वह उपहार के दायरे में आता है।

अधिनियम से जुडी प्रमुख धाराएं :

  • धारा 2- दहेज का मतलब है कोई सम्पति या बहुमूल्य प्रतिभूति देना या देने के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से
  • धारा 3- दहेज लेने या देने का अपराध
  • धारा 4- दहेज की मांग के लिए जुर्माना
  • धारा 4ए- किसी भी व्यक्ति द्वारा प्रकाशन या मिडिया के माध्यम से पुत्र-पुत्री के शादी के एवज में व्यवसाय या सम्पत्ति या हिस्से का कोई प्रस्ताव
  • धारा 6- कोई दहेज विवाहिता के अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति द्वारा धारण किया जाना
  • धारा 8ए- घटना से एक वर्ष के अन्दर शिकायत
  • धारा 8बी- दहेज निषेध पदाधिकारी की नियुक्ति

2009 में राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस अधिनियम में कुछ परिवर्तन प्रस्तावित किये थे। जिसके अनुसार, घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के लिए नियुक्त किये गए सुरक्षा अधिकारियों को दहेज सुरक्षा अधिकारियों के दायित्व भी निभाने के लिए अधिकृत किया जाए।

महिला जहाँ कहीं भी स्थायी या अस्थायी तौर पर रह रही है वहीं से दहेज की शिकायत दर्ज करने की अनुमति दी जाए।

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