किशोर न्याय ( बालकों की देख-रेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015

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किशोर न्याय ( बालकों की देख-रेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015- सर्वप्रथम किशोर न्याय अधिनियम 1986 में अस्तित्व में आया, जिसे देश भर में सन 2000 से लागू किया गया। इसमें सन 2006 व 2011 में कुछ संशोधन किये गए। सन 2015 में इस कानून में व्यापक परिवर्तन किये गए और यह एक नए स्वरुप में लागू किया गया। इस कानून में 112 धाराएं हैं एवं इसे 10 अध्यायों में विभाजित किया गया है। सन 2016 में इसकी नियमावली बनायीं गयी ।

इस कानून को नया स्वरुप देने के पीछे कई कारण थे, जिनमें प्रमुख रूप से संथाओं में बच्चों के साथ बढ़ती घटनाएं, अपर्याप्त सुविधायें, देख-रेख एवं पुनर्वास की गुणवत्ता, अधिक संख्या में मामलों का लंबित रहना, दत्तक गृह में विलम्ब तथा 16 साल से 18 साल के बच्चों द्वारा किये जाने वाले जघन्य अपराधों में वृद्धि थी।

किस तरह के बच्चों पर यह कानून लागू है :

यह कानून दो तरह के बच्चों- देखभाल एवं संरक्षण वाले बच्चे एवं कानून से संघर्षरत बच्चों के सर्वोत्तम हित के लिए काम करता है। इस कानून के अंतर्गत पहली स्थिति में ऐसे बच्चे शामिल होंगे, जिनके पास रहने के लिए कोई घर/ जगह/ माता-पिता/ संरक्षक नहीं है या जिनके संरक्षक/ माता-पिता द्वारा बच्चे के साथ दुर्व्यवहार/ शोषण/ मारपीट/ उपेक्षा या किसी भी तरह की हिंसा की जाती है। दूसरी स्थिति में यह कानून ऐसे बच्चों पर लागू होता है, जिनके द्वारा कोई ऐसा कृत्य किया गया है जो कानूनन अपराध की श्रेणी में आता है।

विशेष किशोर पुलिस इकाई एवं बाल संरक्षण पुलिस अधिकारी के कार्य

इस कानून के अंतर्गत हर जिले में विशेष किशोर पुलिस इकाई (स्पेशल जुविनाइल पुलिस यूनिट- एस. जे.पी.ओ.) का गठन किया गया है ।प्रत्येक जिले में गठित एस.जे.पी.यू एवं प्रत्येक थाने में नियुक्त बाल कल्याण पुलिस अधिकारी (सी.डब्लू.पी.ओ.) से यह अपेक्षित है कि बच्चों के मामलों को अविलम्ब एवं उनके सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखते हुए कार्य करें । इनके प्रमुख कार्य निमांकित हैं :

  • बच्चों के संपर्क में आने वाले बाल कल्याण पुलिस अधिकारी जहां तक संभव हो सादा कपड़ों में रहेंगे और वर्दी में नहीं रहेगे।
  • बालिकाओं के साथ संपर्क के लिए महिला पुलिस कर्मियों को ड्यूटी पर लगाया जाएगा
  • बाल कल्याण पुलिस अधिकारी बच्चों से विनम्र और सौम्य तरीके से बात करेगा।
  • बच्चों को असहज बना देने वाले सवालों को विनम्रता एवं बुद्धिमतापूर्वक पूछा जायेगा बच्चे के प्रति होने वाले अपराध की एफ.आई.आर की कॉपी शिकायतकर्ता और पीड़ित बच्चे को सौंपी जायेगी। अन्वेषण की प्रति भी शिकायतकर्ता को भेजी जायेगी।
  • किसी भी अभियुक्त या संभावित अभियुक्त को बच्चों के संपर्क में नहीं लाया जायेगा। जहां पीड़ित और कानून का उल्लंघन करने वाले, दोनों बच्चे हैं, उन्हें एक दूसरे के संपर्क में लाया जायेगा।
  • एस.जे.पी.यू के पास किशोर न्याय बोर्ड, बाल कल्याण समिति और बाल देखरेख संस्थाओं एवं उपयुक्त सुविधाओं की सूचि होगी। सभी सदस्यों के नाम एवं संपर्क ब्योरे प्रमुख भाग में प्रदर्शित किये जायेंगे।
  • एस.जे.पी.यू जिला बाल संरक्षण इकाई, बोर्ड, समिति और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के निकट समन्वय से कार्य करेगी।
  • जब विधि का उल्लंघन करने के लिए पुलिस किसी बच्चे को निरुद्ध / पकड़ती है: (किशोर न्याय अधिनियम-8)
  • बच्चे के माता-पिता/ अभिभावक को सूचित किया जाएगा।
  • सम्बंधित परिवीक्षा अधिकारी को सूचित किया जाएगा, ताकि बच्चे की सामाजिक पृष्ठभूमि एवं अन्य महत्तवपूर्ण जानकारी प्राप्त हो सके।
  • 24 घंटे के भीतर उसे किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष बाल कल्याण पुलिस अधिकारी/ एस.जे.पी.यू द्वारा प्रस्तुत किया जायेगा।
  • बाल कल्याण पुलिस अधिकारी/ एस.जे.पी.यू निरुद्ध किये गए बच्चे को हवालात में न भेजकर सम्प्रेषण गृह में भेज सकता है।
  • बच्चे को हथकड़ी, जंजीर या बेड़ी नहीं पहनाया जायेगा, तथा बच्चे पर बल का प्रयोग नहीं किया जाएगा।
  • बच्चे को उन आरोपों की जानकारी तुरंत उसके अभिभावक के माध्यम से दी जाएगी। यदि प्राथमिकी दर्ज की जाती है या सामाजिक पृष्ठभूमि रिपोर्ट, तो उसकी कॉपी बच्चे को या अभिभावक को दी जाएगी।
  • बच्चे को उपयुक्त चिकित्सीय सहायता, दुभाषिए या विशेष शिक्षक की सहायता दी जायेगी।
  • बाल अनुकूल वातावरण में, बच्चे से उसके अभिभावकों की उपस्थिति में, बातचीत की जाएगी तथा किसी प्रकार का दबाव नहीं डाला जायेगा।
  • बच्चे से किसी कथन पर हस्ताक्षर करने को नहीं कहा जायेगा।
  • जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सहयोग से बच्चे को निःशुल्क विधिक सेवा दी जाएगी।

सामाजिक पृष्ठभूमि रिपोर्ट

  • बाल कल्याण पुलिस अधिकारी द्वारा, बच्चे की सामजिक पृष्ठभूमि रिपोर्ट (सोशल बैकग्राउंड रिपोर्ट- एस.बी.आर-प्रारूप 1) बच्चे की किसी अपराध में शामिल होने पर तैयार कर किशोर न्याय बोर्ड को भेजी जायेगी।
  • जिले के सभी बाल कल्याण पुलिस अधिकारियों, बाल कल्याण अधिकारियों, परिवीक्षा अधिकारियों, पैरालीगल स्वयंसेवियों की इस रिपोर्ट के बारे में समझ होना चाहिए।

बच्चों एवं महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों को रेखांकित किया गया है व उनके संरक्षण हेतु बनाए गए कानूनी प्रावधानों एवं प्रक्रियाओं में पुलिस की विशेष भूमिका सुनिश्चित की गयी है। जब भी किसी बच्चे या महिला के प्रति कोई अपराध की घटना होती है या किसी बेसहारा महिला या बच्चे को पाया जाता है तब सबसे पहले, पुलिस से ही इनका संपर्क होता है। ऐसे में यह बेहद जरूरी हो जाता है कि पुलिस कर्मी और विशेष रूप से बाल संरक्षण पुलिस अधिकारी, एवं महिला पुलिस अधिकारी बाल एवं महिलाओं से जुड़े कानूनी प्रावधानों से परिचित हों, प्रक्रियाओं के बारे में दक्ष, उनके प्रति संवेदनशील एवं उनको समुचित संरक्षण दिलाने में समर्थ हों।

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