संसद और विधान मंडल की तुलना (विधेयक के सन्दर्भ में)

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धन विधेयक को इस तुलना में इसलिए नहीं रखा जा रहा है क्योंकि धन विधेयक में लोक सभा और विधान सभा को ही समस्त वास्तविक अधिकार है. इसलिए इस को लेकर लोक सभा और राज्य सभा, विधान सभा और विधान परिषद्‌ के बीच कोई गतिरोध उत्पन्न नहीं होता. राज्य सभा या विधान परिषद्‌ को केवल 14 दिन तक रोक सकती है. चौदह दिन बाद वह स्वत: पारित समझा जाता है.

संसद और विधान मंडल की तुलना (धन विधेयक से भिन्न अन्य विधेयकों के सन्दर्भ में)

संसद की तुलना

  1. एक 01 संसद के दोनों सदनों – राज्य सभा या ल्रोक सभा में से किसी सदन में भी प्रारम्भ किया जा सकता है.
  2. जब किसी ऐसे विधेयक को दोनों सदन (राज्य सभा और ल्रोक सभा) उस विधेयक के मूल रूप में या संशोधनों सहित पारित कर देते हैं तब वह संसद दवारा पारित समझा जाता है.
  3. एक सदन में पारित होने के बाद दूसरे सदन में छः महीने के भीतर विधेयक पारित/अस्वीकार होकर आ जाना चाहिए.
  4. लोक सभा दूवारा पारित होने के बाद विधेयक यदि राज्य सभा द्वारा —
    • अस्वीकार कर दिया जाता है या
    • ऐसे संशोधनों सहित प्रस्ताव किया जाता है जिनसे दूसरा सदन सहमत न हो, या
    • Bill प्राप्ति के छः महीने के भीतर पारित करके न भेजा जाये तो दोनों सदनों में असहमति मानी जाती है.
  5. असहमति होने पर राष्ट्रपति संसद के दोनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाता है. इस संयुक्त अधिवेशन का निर्णय अंतिम होता है.

विधान मंडल की तुलना

  1. ठीक उसी प्रकार दूसरी तरफ, एक विधेयक को राज्य विधान मंडल के दोनों सदनों यानी विधान सभा या विधान परिषद्‌ में से किसी भी सदन में प्रारम्भ किया जा सकता है.
  2. दूसरी तरफ यदि विधेयक विधान परिष में शुरू होता है तो विधान सभा उस विधेयक को अस्वीकार कर दे या ऐसे संशोधन कर दे जो कि विधान परिष को स्वीकार नहीं है तो वह वहीं समाप्त हो जायेगा.
  3. दूसरी तरफ विधान सभा में पारित Bill विधान परिषद्‌ में भेजा जाता है जहाँ से उसे तीन महीने के अन्दर वापस आ जाना चाहिए.
  4. यदि विधान सभा द्वारा पारित विधेयक जब विधान परिषद्‌ को भेजा जाता है तो विधान परिषद्‌ –
    • विधेयक को अस्वीकार कर सकती है या
    • Bill को ऐसे संशोधनों के साथ पारित कर सकती है जिनसे विधान मंडल सहमत नहीं है, या
    • विधेयक को प्राप्ति के बाद तीन महीने में वापस नहीं करती, तो दोनों सदनों में असहमति मानी जाती है.
  5. संविधान में उन व्यक्तियों की नागरिकता का भी विवेचन किया गया है जो पकिस्तान से भारत आये हैं. संविधान के अनुसार वे व्यक्ति जो 19 जुलाई, 1948 ई. के पूर्व पाकिस्तान से भारत आये हैं, भारत के नागरिक समझे जायेंगे. जो व्यक्ति 19 जुलाई, 1948 के बाद पकिस्तान से भारत आये और जिन्होंने भारत में कम-से-कम 6 महीने रहने के बाद उचित अधिकारी के समक्ष नागरिक बनने के लिए प्रार्थना-पत्र देकर संविधान लागू होने के पूर्व अपना नाम रजिस्टर्ड करा लिया, उन्हें भी नागरिकता का अधिकार प्रदान कर दिया गया.

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