कला संस्कृति के अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
राजस्थान कला एवं संस्कृति से संबंधित 500 महत्त्वपूर्ण तथ्य :–
- ‘रूलाने वाले फकीर’ उपनाम से प्रसिद्ध संगीतज्ञ मानतोल खाँ थे, जो अतरौली घराने से संबंधित थे।
- झंबार :- गणगौर पूजा हेतु बोए गए ‘जौ के ज्वारे’।
- मंकी नृत्य सहरिया जनजाति का लोक नृत्य है, जिसमें केवल पुरुष भाग लेते हैं।
- भँवरा दानव, बड़ल्या–हींदवा, खेतूड़ी रोई माछला आदि प्रसंग जोगी रो स्वांग से संबंधित है।
- नाथद्वारा स्थित श्रीनाथजी के मंदिर में भक्ताें द्वारा डांग नृत्य किया जाता है।
- ‘गुरड़े’ ग्रामीण पुरुषों के कान का आभूषण है।
- ‘कागी’ गान (नाक से गायन) के लिए प्रसिद्ध रूकमा मांगणियार जाति से संबंधित है।
- लेजिम गरासिया वाद्ययंत्र घन श्रेणी का वाद्ययंत्र है।
- ‘वीर विनोद’ के अनुसार हल्दीघाटी युद्ध में मुगल सेना की संख्या 80 हजार थी।
- ‘अंजुमन–खादिम–उल–इस्लाम’ की स्थापना अलवर रियासत में की गई थी।
- नान्दसा यूप स्तम्भ लेख की स्थापना सोम द्वारा की गई थी।
- राज्य की पहली बर्ड राइडर रॉक पेन्टिंग 2003 में गरदड़ा (बूंदी) में पाई गई।
- ‘जयप्रकाश यंत्र’ और ‘यंत्रराज’ सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा रचित कृतियाँ है।
- ‘हाड़ाे ले डूब्यों गणगौर’ कहावत जोधसिंह हाड़ा से संबंधित है।
- चाँदखेड़ी (झालावाड़) के प्रसिद्ध जैन मंदिरों का निर्माण कोटा के शासक किशोर सिंह हाड़ा के समय हुआ था।
- सिणगारी नटणी की कथा जालौर राज्य के कान्हड़देव के साथ जुड़ी हुई है।
- जयपुर शासक रामसिंह द्वितीय का शासनकाल संस्कृत भाषात्मक रचनाओं के लिए स्वर्ण-काल रहा।
- राजस्थान में दुर्गो की संख्या 250 से अधिक है।
- कर्नल जेन्स टॉड के अनुसार ‘व्यापारिक काफिलों के सुरक्षार्थ उपयोग’ हेतु भैंसरोड़गढ़ दुर्ग प्रसिद्ध है।
- ‘गोरा हट जा राज’ लोकगीत भरतपुर किले से संबंधित है।
- बीकानेर म्यूजियम एल. टैस्सीटोरी की देन है।
- देवनारायण जी की पूजा नीम पेड़ की पत्तियों से होती है।
- ‘राह के सहचर देवता’ के रूप में मामादेव को जाना जाता है।
- राजस्थान में छठी शताब्दी में सूर्य देवता की पूजा सर्वाधिक प्रचलित थी।
- ‘खेजड़बेरी राय भवानी’ लटियाल माता का उपनाम है।
- संत बालिन्द जी की प्रसिद्ध रचना का नाम ‘आरिलो’ है।
- अपने इष्ट देव को प्रसन्न करने हेतु ‘प्रभातिया’ व ‘आरोगणा’ नामक भक्ति गीत निष्कलंक सम्प्रदाय के अनुयायी गाते हैं।
- रागिनी भैरव एवं राग दीपक रागमाला चित्र के अंश है।
- डॉ. वशिष्ठ प्रसिद्ध चित्रकार है जिन्होंने ‘मेवाड़ की चित्रांकन परम्परा’ एवं ‘तीन बहूरानियाँ’ का चित्रांकन किया है।
- आकाश को सुनहरे छतों से युक्त बादलों से भरा हुआ बीकानेर शैली में दिखाया गया है।
- लुक कला :- लकड़ी की वस्तु पर लाख की कारीगरी।
- दोरुखी रंगाई की तकनीक 19 वीं शताब्दी में अलवर जिले में विकसित हुई।
- ‘सलमा–सितारों’ के कार्य के लिए प्रसिद्ध स्थान खण्डेला (सीकर) में है।
- ‘ढाबी’ व ‘जोड़’ उपकरण कोटा डोरिया बुनाई से संबंधित है।
- ‘सीताराम चौपाई’ (राजस्थानी रामायण) के रचयिता समय सुन्दर है।
- स्वांतत्र्योतर काल का प्रथम राजस्थानी उपन्यास :- आभै पटकी।
- आलोचक त्रयी में शामिल साहित्यकार :-1. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा 2. मुंशी देवी प्रसाद मिश्र 3. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ।
- ‘मूंछों वाले मामाजी’ कृति के लिए रचनाकार इन्द्रजीत कौशिक को शम्भुदयाल सक्सेना पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- ‘राजस्थान का कालिदास’ महाकवि माघ को कहा जाता है।
- ‘जाग मछन्दर गोरखा आया’ उपन्यास के रचयिता विश्वम्भर नाथ उपाध्याय है।
- 561 छंदो के डिंगल पर्यायवाची कोश ‘अभिधान माल/अवधान माला’ की रचना उदयराम बारहठ ने की।
- जयपुर को जर्मनी के ‘ए एल्ट स्टड़ट एलर्ग’ के आधार पर 1727 ई. में बसाया गया था, इसकी स्थापना की जानकारी बख्तराम शाह के बुद्धि विलास ग्रंथ मे मिलती है।
- वरोठी :- वर पक्ष द्वारा किया जाने वाला प्रतिभोज।
- मांडला बच्चा जन्म के अवसर पर पूजाया जाता है।
- पागडांछाक :- किसी खुशी के अवसर पर प्रस्थान के दौरान मेहमानों से की जाने वाली शराब की मनुहार।
- हेला परम्परा का संबंध संदेश आदान-प्रदान करने से है।
- चौक च्यानणी :- गणेश चतुर्थी पर बालकों द्वारा किया जाने वाला स्वांग। शेखावटी क्षेत्र में प्रसिद्ध।
- जसढोल विवाह की एक रीति है।
- राजस्थान में हैंड ग्लाइडिंग हर्ष (सीकर) की लोकप्रिय है।
- मायरा की गुफा :- गोगुन्दा (उदयपुर) में ।
- रमा वैकुण्ठनाथ मंदिर पुष्कर (अजमेर) में है, जिसमें 361 देवी-देवताओं की मूर्तियाँ विद्यमान है।
- मन्दिर शिल्प निर्माण की दृष्टि से राजस्थान का स्वर्ण युग 8वीं से 11वीं सदी का काल कहलाता है।
- लोक वाद्य यंत्र ‘भपंग’ राजस्थान के मेवात क्षेत्र से संबंधित है।
- इनसाइक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटेनिका ने सीताराम लालस को ‘राजस्थानी जुबान की मिशाल’ कहा है। बाड़मेर में जन्मे सीताराम लालस ने 10 खण्डों में ‘राजस्थान भाषा का शब्दकोश’ तैयार किया। 1986 में जोधपुर में निधन।
- गोरा बादल महल और नवलखा बुर्ज चित्तौड़गढ़ दुर्ग मंे है।
- नवल सागर तालाब बूंदी में स्थित है।
- ‘संत गुण–सागर’ एवं ‘नाम–माला’ संत दादू द्वारा रचित है।
- कौटिल्य ने चार प्रकार के दुर्ग बताये है। 1. औदुक 2. पार्वत 3. धान्व 4. वन
- सर्वाधिक स्थानीय आक्रमण सहने वाला दुर्ग :- तारागढ़ दुर्ग (अजमेर)।
- सर्वाधिक विदेशी आक्रमण सहने वाला दुर्ग :- भटनेर दुर्ग (हनुमानगढ़)।
- मुगल शैली में निर्मित राजस्थान का एकमात्र दुर्ग :- मैगजीन दुर्ग (अजमेर)।
- मैगजीन दुर्ग (अजमेर) की नींव संत दादुदयाल द्वारा रखी गयी।
- अंग्रेजों द्वारा निर्मित राजस्थान का दुर्ग – टाॅडगढ़ (अजमेर)।
- घी-तेल बावड़ी, कातण बावड़ी चित्तौड़गढ़ दुर्ग में है।
- शृंगार चंवरी मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग में है। इस मंदिर का निर्माण वेलका ने करवाया। जहाँ कुम्भा की पुत्री रमा बाई की मंडलीक से शादी हुई थी।
- चित्ताैड़ दुर्ग के नवकोठा महल में पन्नाधाय ने अपने पुत्र चंदन का बलिदान दिया था।
- राजस्थान की मालवी भाषा पर मराठी प्रभाव है।
- राजस्थान पुलिस एवं माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का प्रतीक चिह्न :- विजयस्तम्भ।
- इतिहासकार फर्ग्युसन ने विजय स्तंभ की तुलना ‘राेम के टार्जन’ से की है।
- 1534–35 में गुजरात सुल्तान बहादुरशाह के चित्ताैड़ आक्रमण के समय गुजरात सुल्तान की सेना का नेतृत्व रूमी खाँ ने किया।
- चन्द्रसिंह बिरकाली की रचनाएँ :-
- बादली
- कह-मुकरणी
- लू
- सांझ
- बसन्त
- डाफर
- बाड़
- रागली
- बालसाद
- कुम्भलगढ़ दुर्ग में स्थित तिलखाना था- हाथियों का बाड़ा।
- कुम्भा ने मेर जाति के आक्रमण को रोकने के लिए मचान दुर्ग (सिरोही) का निर्माण किया था।
- तोहन दुर्ग कांकरोली (राजसमन्द) में अवस्थित है।
- किशनगढ़ दुर्ग गूंदोलाव झील के किनारे स्थित है।
- अकेलगढ़ दुर्ग कोटा में चम्बल नदी के किनारे स्थित है।
- शेरशाह के गुरु मीर सैयद की मजार शेरगढ़ दुर्ग (बारां) मंे है।
- लोहियाणा दुर्ग एवं कोटकास्तां दुर्ग जालौर में है।
- किलोण दुर्ग बाड़मेर में अवस्थित है।
- 33 करोड़ देवी-देवताओं की मूर्तियों का मंदिर बीकानेर में है जबकि 33 करोड़ देवी देवताओं की साल मण्डोर (जोधपुर) में है।
- हसन निजामी (प्रसिद लेखक) ने जालौर दुर्ग के बारे में कहा है कि ‘इस दुर्ग का दरवाजा कोई भी आक्रमणकारी नही खोल पाया’।
- वत्सराज के दरबारी विद्वान उद्योतन सूरि ने जालौर दुर्ग में कुवलयमाला ग्रंथ की रचना की।
- नटनी के छतरी जालौर दुर्ग के सामने है जबकि नटनी का चबुतरा पिछोला झील (उदयपुर) में स्थित है।
- त्रिकूट पहाड़ी जैसलमेर में है जिस पर सोनारगढ़ दुर्ग (जैसलमेर) स्थित है जबकि त्रिकूट पर्वत करौली में है जहाँ कैलादेवी का मंदिर है।
- ननद-भोजाई का कुआं तिमनगढ़/त्रिभुवनगढ़ दुर्ग (भरतपुर) में है।
- थूण दुर्ग डींग (भरतपुर) में है।
- राजस्थान में मामा-भान्जा का मंदिर अटरू (बारां) में है। जबकि मामा-भान्जा की छतरी मण्डोर (जोधपुर) में है। ध्यातव्य है कि भारत का प्रसिद्ध मामा-भान्जा मंदिर बारसुर (छतीसगढ़) में है। राजस्थान में एक अन्य मामा-भान्जा मंदिर डूंगरपुर में है।
- आंतेड़ की छतरियां अजमेर में है। यहाँ जैन धर्म के दिगम्बर सम्प्रदाय की छतरियाँ है।
- काकाजी की बावड़ी बूंदी में है जबकि काकाजी की दरगाह प्रतापगढ़ में है।
- अनारकली की बावड़ी – बूंदी
- जच्चा बावड़ी – हिण्डौन सिटी, अलवर
- मांजी की बावड़ी – आमेर
- चार घोड़ाें की बावड़ी – जोबनेर (जयपुर)
- 84 खम्भों की छतरी बूंदी में है, जबकि 84 खम्भों की मस्जिद कामां (भरतपुर) में है।
- तीर्थाें का मामा – पुष्कर (अजमेर)
- तीर्थों का भान्जा – मचकुण्ड (धौलपुर)
- तीर्थों की नानी – शाकम्भरी माता (जयपुर)
- सिंह पर सवार गणेश – बीकानेर दुर्ग
- त्रिनेत्र गणेश – रणथम्भौर दुर्ग में
- बाजणा गणेश – सिरोही में
- नाचणा गणेश – अलवर में
- खड़े गणेश – कोटा में
- गढ़ गणेश – जयपुर में
- राजस्थान का खजुराहो – किराडू (बाड़मेर)
- मेवाड़ का खजुराहो – जगत अम्बिका (उदयपुर)
- हाड़ौती का खजुराहो – शिव मंदिर (भंड देवरा, बारां)
- आगम पुराण, भादरवा री मैमा, गऊ पुराण, मूलारम की वीरता आदि ग्रंथों की रचना हरजी भाटी ने की।
- रामदेवजी की चमत्कारिक घटना – परचा।
- रामदेवजी की पंचरंगी ध्वजा – नेजा ।
- रामदेवजी का प्रतीक – पगल्या।
- रामदेवजी के भगत (भक्त) – जातरू।
- रामदेवजी का रात्रि जागरण – जम्मा।
- रामदेवजी के मेघवाल जाति के भक्त – रिखिया।
- रामदेवजी का मंदिर – थान/देवरा।
- रामदेवजी का पुजारी – भांभी।
- रामदेवजी के भजन – ब्यावले।
- कुण्डा पंथ की स्थापना 1399 ई. में राव मल्लीनाथ ने की थी।
- तिलवाड़ा सभ्यता बाड़मेर में जबकि तलवाड़ा झील हनुमानगढ़ में है।
- भीलों का चितेरा :– गोवर्धनलाल बाबा (राजसमन्द)।
- नीड़ का चितेरा :– सौभाग्यमल गहलोत (जयपुर)।
- श्वानों का चितेरा :– जगमोहन माथोड़िया (जयपुर)।
- भैंसों का चितेरा :– परमानंद चौयल (कोटा)।
- गांवो का चितेरा :– भूरसिंह शेखावत (बीकानेर)।
- फैशन फॉर डवलपमेन्ट का संबंध खादी व कोटा डोरिया के प्रचार-प्रसार से है।
- सूंठ की साड़ी सवाई माधोपुर की प्रसिद्ध है।
- भर्तृहरि की गुफा :– बघेरा (अजमेर) में।
- शिवदास गाडण के ग्रन्थ अचलदास खींची री वचनिका के अनुसार पीपा ने फिरोज तुगलक को हराया था।
- 1848 में फ्रांसीसी दार्शनिक गार्शा द तासी ने संत पीपा की जीवनी लिखी थी।
- संत कबीर ने रैदास को ‘संतों का संत’ की उपमा दी है।
- कृष्णदास पयहारी ने जुगलमैन, प्रेमतत्व नीरूपता, ब्रह्मगीता आदि ग्रन्थों की ब्रजभाषा में रचना की।
- वैदान्त परिजात सौरभ एवं दशश्लोकी निम्बार्काचार्य की रचना है।
- गोपालद्वारा :- निम्बार्क सम्प्रदाय के मंदिर।
- पूर्णप्रज्ञभाष्य नामक काव्य रचना माध्वाचार्य ने लिखी।
- निपख सम्प्रदाय के प्रवर्तक :- संत दादूदयाल।
- दादू पंथ की 5 शखाएँ :- खालसा, विरक्त, उतरादे, खाकी एवं नागा।
- दादू पंथ के पंचतीर्थ :- नरायणा, कल्याणपुरा, भैराणा, सांभर एवं आमेर।
- खण्डाणा साका :- वृक्षों हेतु बलिदान देना।
- 1604 में रामासड़ी (जाेधपुर) में कर्मा एवं गौरा ने वृक्षों की रक्षा हेतु सर्वप्रथम अपना बलिदान दिया।
- खेजड़ली दिवस :- 12 सितम्बर।
- जयपुर शासक सवाई प्रतापसिंह चरणदासजी के अनुयायी थे।
- चरणदास जी की रचना :- 1. ब्रह्म ज्ञान सागर 2. ब्रह्म चरित्र 3. भक्ति सागर 4. ज्ञान सर्वोदय
- भगवान विष्णु का कल्कि अवतार संत मावजी को माना जाता है।
- निहंग एवं घरबारी निरंजनी सम्प्रदाय की 2 शाखाएँ हैं।
- आलसिया सम्प्रदाय के प्रवर्तक :- मलूकदास जी।
- लालदासी सम्प्रदाय में दीक्षा लेने वाले का काला मुंह कर गधे पर उल्टा बिठाकर गांव में घुमाया जाता है।
- मीरा के प्रारम्भिक गुरु – चम्पाजी।
- मीरा के धार्मिक गुरु – गजाधर गौड़।
- मीरा के मुख्य गुरु – संत रैदास।
- मीरा ने वृन्दावन में दासी सम्प्रदाय चलाया। इस सम्प्रदाय में पुरुष भी स्त्रियों की वेशभूषा पहनते हैं।
- संत मीराबाई की रचनाएँ :- 1. सत्यभामा जी नू रूसणों
- 2. गीत गोविन्द की टीका 3. राग गोविन्द 4. मीरा री गरीबी
- 5. रूकमणी मंगल
- सफेद व पिंक पॉटरी पोकरण (जैसलमेर) में प्रसिद्ध है।
- कागज जैसे पतले पत्थर पर मीनाकारी बीकानेर की प्रसिद्ध है।
- तांबे पर मीनाकारी भीलवाड़ा की प्रसिद्ध हैं।
- रामकिशोर छीपा को 2009 में बगरू प्रिन्ट के लिए पद्मश्री का अवार्ड मिला।
- हिचकी माता का मन्दिर :- सनवाड़ (भीलवाड़ा)
- मछली नृत्य बणजारा जाित का नृत्य हैं। मछली नृत्य राज्य का एकमात्र नृत्य हैं जिसका प्रारंभ खुशी से एवं अन्त दु:खी के साथ होता है।
- रूपायन संस्थान ने घुड़ला नृत्य को संरक्षण प्रदान किया।
- कालबेलिया राजस्थान का एकमात्र नृत्य है जिसे 2011 में यूनेस्कों की सूची में शामिल किया गया।
- बीकानेर में आचार्यों का चौक रम्मत के लिए प्रसिद्ध हैं।
- फागू महाराज, मनीराम व्यास, गंगादास सेवंग, गीडोजी एवं जीतमल रम्मत के कलाकार है।
- राजस्थान का राज्य वाद्य :- अलगोजा (सुषिर वाद्य)
- राज्य का सबसे छोटा वाद्य :- मोरचंग (सुषिर वाद्य)
- राजस्थानी भाषा दिवस :- 21 फरवरी
- छावली :- डूँगरजी-जवाहर जी के गीत।
- मरूवाणी नामक पत्रिका का प्रकाशन राजस्थान प्रचारिणी सभा (जयपुर) द्वारा किया जाता है।
- राजस्थानी शोध संस्थान की स्थापना 1955 में चौपासनी (जोधपुर) में की गई। यह संस्था परम्परा नामक पत्रिका निकालती है।
- राजस्थानी ज्ञानपीठ अकादमी बीकानेर में है। यह अकादमी राजस्थानी गंगा नामक पत्रिका निकालती हैं।
- लोक संस्कृति नगर श्री शोध संस्थान चुरू में हैं।
- राजस्थानी साहित्य का स्वर्ण युग :- 1650-1850 का काल।
- पृथ्वीराज रासो :- चन्द्रबरदाई की रचना।
- बीसलदेव रासो :- नरपति नाल्ह की रचना।
- खुमाण रासो :- दलपत विजय की रचना।
- क्यामखां रासो :- कवि जान/नियामत खां की रचना।
- प्रताप रासो :- जाचक जीवन की रचना।
- मानचरित्र रासो :- कवि नरोतम की रचना।
- सगत रासो :- गिरधर आशिया की रचना।
- हम्मीर रासो :- जोधराज की रचना।
- विजयपाल रासो :- नल्लसिंह की रचना।
- रतन रासो :- कुम्भकर्ण की रचना।
- शत्रुशाल रासो :- डूँगरसी की रचना।
- जवान रासो :- सीताराम रत्नू की रचना।
- बिन्हैरासो :- रावमहेशदास की रचना।
- राणरासो :- दयालदास की रचना।
- छत्रपति रासो :- काशी छंगाणी की रचना।(मतीरे की राड़ युद्ध का वर्णन)
- बीकानेर शासक पृथ्वीराज राठौड़ की रचनाएं :-
- वेलि क्रिसन रूकमणी री (दुरसा आढा ने इसे 19वें पुराण एवं 5वें वेद की संज्ञा दी है)।
- दशम भागवत रा दुहा
- गंगा लहरी
- दशरथ रवाउत
- किशोरदास द्वारा रचित राजप्रकाश ग्रन्थ हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की विजय बताता हैं।
- अन्य प्रमुख रचनाएँ :-
- गोरा-बादल चरित की रचना :- हेमरतन सूरि द्वारा
- जसवंत विलास की रचना :- दलपत मिश्र द्वारा।
- तारीख ए राजस्थान की रचना :- कालीराम कायस्थ द्वारा।
- परमार कालीन कीर्ति स्तम्भ नागौर में है।
- कानन मेला बाड़मेर में भरता है। इस मेलें का मुख्य आकर्षण गैर नृत्य है।
- गीता जयन्ती :- मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी
- फुलेरा दूज :- फाल्गुन शुक्ला द्वितीय।
- देवर भाभी की होली ब्यावर (अजमेर) की प्रसिद्ध है।
- इला नृत्य होली पर होता है। होलिका के होने वाले पति इलोजी थे। इलोजी छेड़-छाड़ वाले देवता के रूप में प्रसिद्ध है।
- राजस्थान की स्थापत्य कला का जनक ‘महाराणा कुम्भा’ को माना जाता है।
- सुप्रसिद्ध विद्वान जैकलिन कैनेडी ने मेहरानगढ़ दुर्ग को विश्व के 8वें आश्चर्य की संज्ञा दी।
- हापाकोट दुर्ग जालौर में है।
- राजस्थान का सबसे नवीन एवं सर्वाधिक निचाई पर स्थित दुर्ग :- लौहागढ़ दुर्ग (भरतपुर)।
- मुगल बादशाह शाहजहाँ के बेटे दाराशिकोह का जन्म तारागढ़ दुर्ग (अजमेर) में हुआ था।
- कंकोड़ का किला टोंक जिले में है।
- पाशीब :- किले की प्राचीर पर हमला करने के लिए रेत और अन्य वस्तुओं से निर्मित एक ऊँचा चबूतरा।
- रणथम्भौर दुर्ग को ‘चित्तौड़ दुर्ग का छोटा भाई’ कहा जाता है।
- राजस्थान के जयपुर जिले में सर्वाधिक किले है।
- अनगिनत कब्रों के लिए विख्यात दुर्ग :- बयाना दुर्ग (भरतपुर)
- रावठा तालाब :- कोटा दुर्ग में।
- राज्य की सबसे प्राचीनतम मस्जिद :- जालौर दुर्ग में।
- ‘शेखावटी की स्वर्णनगरी’ की उपमा :- नवलगढ़ (झुंझुनूं) को।
- ‘पशु गायत्री’ नामक लोक नाट्य की रचना भानु भारती ने की।
- एल.पी. टैस्सीटोरी ने ‘इन्द्रिय पराजय’ एवं ‘नचिकेता की कथा’ का इटेलियन भाषा में अनुवाद किया था। 1919 में टैस्सिटोरी का बीकानेर में निधन। डॉ. L.P. टैस्सिटोरी का जन्म 13 दिसम्बर, 1887 को उदिने (इटली) में हुआ था। इनकी कार्यस्थली बीकानेर रहा।
- चौबाली:- राजस्थान में लोक गीतों का संस्मरण।
- वल्लभ सम्प्रदाय में कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है।
- निम्बार्क सम्प्रदाय में राधा और कृष्ण की युगल रूप की सेवा करते है।
- संत पीपा की गुफा टोडा (टोंक) में है जबकि संत पीपा की छतरी गागरोण दुर्ग में है।
- ‘लश्कर संत’ के नाम से प्रसिद्ध संत :- संत बालनंदाचार्य जी।
- संत हरिदासजी को कलियुग का वाल्मिकी कहा जाता है।
- संत हरिदास जी द्वारा रचित ग्रन्थ :-
- भक्त विरदावली
- साखी
- भरथरी संवाद
- नवल सम्प्रदाय की प्रधान पीठ :- जोधपुर में ।
- तिल चौथ (माघ कृष्ण चतुर्थी) को संकट चौथ के नाम से भी जाना जाता है।
- बिलारी माता मेला चैत्र कृष्ण अष्टमी को अलवर में भरता है।
- राम-रावण मेला चैत्र शुक्ल दशमी को बड़ी सादड़ी में भरता है।
- गोला-गोली :- स्त्री-पुरूषों को दासों के रूप में रखने की परम्परा।
- कुषाणकालीन शिवलिंग की प्राप्ति :- नाँद (पुष्कर) से।
- करणी माता का प्रतीक :- सफेद चील।
- कुँवारी कन्या का मंन्दिर :- देलवाड़ा (माउण्ट आबू) से।
- ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती द्वारा रचित पुस्तके :- गुंजल असरार अनीसुल अरवाह।
- महाबोधि अशोक विहार की स्थापना 1976 में अजमेर में की गई।
- चितौड़ दुर्ग राजस्थान की एकमात्र दुर्ग है जिसमें खेती की जा जाती है।
- सावन-भादो महल :- डीग (भरतपुर)।
- सावन-भादो कड़ाईयाँ :- देशनोक (बीकानेर)।
- सावन-भादो उद्यान :- रामनिवास बाग (जयपुर)।
- सावन-भादो झरना :- जोधपुर।
- सावन-भादो झील :- अचलगढ़ (सिरोही)।
- सावन-भादो नहर :- कोटा।
- सावन-भादो बाँध :- कोटा।
- सावन-भादो परियोजना :- कोटा।
- वर्ष 2008 में घटित मेहरानगढ़ दुखान्तिका की जाँच के लिए चौपड़ा आयोग का गठन किया गया। इस जाँच आयोग के अध्यक्ष जसराज चौपड़ा है।
- ‘रणथम्भौर की कुंजी’ झाईन दुर्ग को कहा जाता है।
- राजेश्वरी देवी :- भरतपुर के जाट राजवंश की कुल देवी।
- नाना साहब का झालरा :- तारागढ़ दुर्ग (अजमेर) में।
- 1968 में राजस्थान सरकार ने तारागढ़ दुर्ग (अजमेर) को संरक्षित स्मारक घोषित किया गया।
- बाला दुर्ग (अलवर) को बावनगढ़ का लाड़ला कहा जाता है।
- ‘तेलिन का महल’ फतेहपुर दुर्ग में निर्मित है।
- हिन्दु कारीगरों द्वारा मुस्लिम आदर्शों के अनुरूप बने भवनों को फर्ग्यूसन ने ‘इंडो सोरसेनिक शैली’ की संज्ञा दी हैं।
- हाल ही में मूर्ति तस्करी के कारण तिमनगढ़ किला (करौली) चर्चा में रहा।
- बहादुरपुर दुर्ग (करौली) को दस्युओं की शरण-स्थली माना जाता है।
- रूडयार्ड किपलिंग ने शेरगढ़ दुर्ग (बाराँ) के बारे में कहा है कि ‘‘यह दुर्ग मानव द्वारा नहीं बल्कि प्रेतों द्वारा बनाया गया लगता है”।
- देवरा बावड़ी एवं सुनार बावड़ी बेगूं (चितौड़गढ़) में है।
- हजरत दीवान शाह की दरगाह :- कपासन (चितौड़गढ़) में है।
- अमीर अलीशाह पीर की मस्जिद :- दूदू (जयपुर) में।
- औरगजेब द्वारा निर्मित जामा मस्जिद शाहबाद (बाँरा) में है।
- सैयद बादशाह की दरगाह :- शिवगंज (सिरोही) में।
- बीबी जरीना का मकबरा :- धौलपुर।
- हजरत शेखशाह की दरगाह :- दौसा में ।
- पीर मस्तान की दरगाह :- सोजत (पाली) में।
- सुआनाथ की छतरी :- सिरे मंदिर (जालौर) में।
- राजा जोधसिंह की छतरी :- बदनौर में।
- शेरगढ़ दुर्ग (बारां) में हाल ही में पाषाण युग के अवशेष मिले है।
- चितावानी जोग :- संत पीपाजी द्वारा रचित ग्रन्थ।
- साध सम्प्रदाय के प्रवर्तक :- वीरभान, वीरलाल एवं ऊदादास। यह आचरण प्रधान सम्प्रदाय है।
- इस सम्प्रदाय में 12 नियमों का पालन करना होता है।
- राजस्थान में सबसे अधिक ईसाइयों की संख्या बांसवाड़ा में निवास करती है।
- उमराव कँवर देश की पहली साध्वी है, जिन पर डाक टिकट जारी किया गया है। (2011 में)
- देवनारायणजी को राज्य क्रांति का जनक माना जाता हैं।
- मेंवाड़ शासक महाराणा सांगा के आराध्य देव देवनारायण जी थे।
- थाली नृत्य पाबुजी के अनुयायियों द्वारा किया जाता है।
- पंचमुखा पहाड़ी :- तल्लीनाथजी का पूजा स्थान।
- जाखड़ समाज के कुलदेवता :- बिग्गाजी।
- शुद्धि आन्दोलन चलाने वाले लोकदेवता :- रामदेवजी।
- फताजी की समाधि :- साँथू (जालौर) में ।
- ‘आँख देने वाले बाबा’ की उपमा :- कृष्णानन्द जी।
- ‘पितरजी का प्रतीक :- पाँच बिन्दियाँ।
- मावलिया :- सात देवियों का समूह।
- दादू के 52 स्तम्भ :- दादू के प्रधान 52 शिष्य ।
- बड़े उदर वाली माता (मोदरा माता) का मंदिर :- मौदरा (जालौर)।
- जीजी बाई :- आई माता के बचपन का नाम।
- रिद्धि बाई :- करणीमाता के बचपन का नाम।
- आदमाता (मरमर) :- झालावंश की कुल देवी।
- कंठेसरी माता :- आदिवासियों की लोक देवी।
- आमजा माता :- भीलों की कुल देवी।
- संत रज्जबजी को द्वितीय शंकराचार्य भी कहा जाता है।
- श्री कृष्ण: शरणं गम: मंत्र वल्लभ सम्प्रदाय का है।
- तेरापंथ सम्प्रदाय के आचार्य महाप्रज्ञ का जन्म टमकोर (चुरू) में हुआ।
- परनामी सम्प्रदाय को ‘नारद सम्प्रदाय’ भी कहा जाता है।
- सांझी की माता पार्वती माता को माना जाता है।
- मोरनी मांडना लोक चित्रकला मीणा जनजाति से संबंधित है।
- मेवाड़ शैली के प्रथम चित्र श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णि (1260 ई.) का चित्रकार कमलचन्द्र था।
- बणी-ठणी चित्र का आकार :- 48.8×36.6 सेमी.।
- भारत में आलागीला पद्धति अकबर के काल में इटली से भारत आई।
- ‘कठपुतलियों की जादूगर’ नाम से प्रसिद्ध :- दादी पदमजी।
- नरोत्तम शर्मा पिछवाई कला के प्रसिद्ध कलाकार है।
- श्री उमेशचन्द्र शर्मा का सम्बन्ध बातिक कला से है।
- बगरू के छीपों की छपाई का स्वर्णकाल :- 1976-79
- रंगाई-छपाई हेतु प्रसिद्ध स्थल ‘पुर’ भीलवाड़ा जिले में है।
- पॉटरी को 800°C तक ताप में पकाया जाता है।
- मूण :- पश्चिमी राजस्थान में बनाये जाने वाले बड़े मटके।
- लाल पत्थर की मूर्तियां थानागाजी (अलवर) की प्रसिद्ध है।
- खाल्या :- छोटे बच्चों की जूतियां।
- श्रीनाथ जी के पाने सर्वाधिक कलात्मक पाने होते है जिन पर 24 शृंगारों का चित्रण पाया जाता हैं।
- राजस्थान हस्तशिल्प एंव हथकरघा विकास बोर्ड का गठन फरवरी 2011 में किया गया।
- मिरर वर्क के लिए प्रसिद्ध जिला :- जैसलमेर।
- अल्लपंख :- एक पंखयुक्त हाथी का चित्र।
- दोरूखी रंगाई की तकनीक 19वीं सदी में अलवर जिले में विकसित हुई।
- श्रीधर व्यास द्वारा रचित ग्रन्थ :- दुर्गाशप्तशती, सप्तशती, भागवत, पुराण, कवित्त भागवत।
- महाराजा जसवंतसिंह के ग्रन्थ :- 1. भाषा भूषण 2. सिद्धान्त बोध 3. सिद्धान्त सार 4. अनुभव प्रकाश 5. आनंद विलास 6. चन्द्रप्रबोध 7. अपरोक्ष सिद्धान्त
महिला संत | संबंधित स्थान |
A. सहजो बाई | अलवर, दिल्ली। |
B. अलारख बाई | उदयपुर (मेवाड़)। |
C. कर्मठी बाई | बांगड़ । |
D. करमेती बाई | खंडेला (सीकर)। |
E. ज्ञानमती बाई | जयपुर। |
F. रानी अनूप कुंवरी | किशनगढ़। |
G. भोली गुर्जरी | करौली। |
H. भूरी बाई ‘अलख’ | सादरगढ़ (उदयपुर)। |
I. फतेह कुंवरी | बांगड़। |
J. ताज बैगम | कोटा। |
K. राना बाई | हरनावां (नागौर)। |
- शिवचन्द्र भरतिया की काव्य रचना :-
- नाटक :- केसर विलास, फाटका जंजाल, बुढ़ापा की सगाई
- कहानी :- विश्रांत प्रवास
- उपन्यास :- कनक सुन्दर (प्रथम राजस्थानी उपन्यास)।
- कर्नल जेम्स टॉड (स्कॉटलैंड निवासी) को राजस्थानी इतिहास लेखन का पितामह कहा जाता है। कर्नल टॉड ने ‘ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इंडिया’ नामक ग्रन्थ अपने गुरू यति ज्ञानचन्द्र को समर्पित किया।
- भारतीय प्राचीन लिपिमाला नामक ग्रन्थ डाॅ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा द्वारा लिखा गया।
- डॉ. एल.पी. तैस्सिटोरी के अनुसार डिंगल साहित्य का हैरोस :- पृथ्वीराज राठौड़ (बीकानेर)।
- मुंशी देवीप्रसाद द्वारा रचित ग्रन्थ :- 1. राजा भारमल 2. रूठी रानी
3. महिला मृदुवाणी 4. कवि रत्नमाला 5. राज रसनामृत
- बांकीदास की रचनाएं :- 1. सूर छतीसी 2. कुकवि बत्तीसी
3. कृष्ण दर्पण 4. बिदूर बत्तीसी 5. कायर बावनी
- जसवंत जसो-भूषण के लेखक :- मुरारीदान।
- राजस्थान में पत्रकारिता का भीष्म पितामह :- पं. झाबरमल्ल शर्मा।
- विजयदान देथा द्वारा 1946 में प्रकाशित काव्य संग्रह :- ऊषा
- विजयदान देथा को वर्ष 2011 में नोबल पुरस्कार के लिए नामित किया गया।
- प्रताप कुंवरी बाई की रचनाएँ – ज्ञानसागर, ज्ञान प्रकाश, हरिजस, रामचन्द्र नाम महिमा, प्रेम सागर आदि।
- विजयदान देथा की कथाओं पर बनी फिल्में –
1. चरणदास चोर (1975) :– निर्देशक –श्याम बेनेगल।
2. परिणति (1989) :- निर्देशक – प्रकाश झा।
3. दुविधा (1973) :- निर्देशक – मणिकौल।
4. पहेली (2005) :- निर्देशक – अमोल पालेकर।
- बुद्धि रासो – जानकवि की रचना।
- अबलाओं का इंसाफ नामक उपन्यास 1927 में अम्बिकादत्त व्यास द्वारा लिखा गया।
- जॉर्ज मेकलिस्टर – राजस्थान में प्रथम भाषा सर्वेक्षक।
- धमाल – राजस्थान में होली के अवसर पर गाये जाने वाले गीत।
- सर छोटूराम स्मारक संग्रहालय – 1968 में हनुमानगढ़ में स्थापित।
- गुड़ियाओं का संग्रहालय – 1979 में जयपुर में स्थापित।
- मीरा संग्रहालय – उदयपुर में।
- महाराणा प्रताप संग्रहालय – हल्दीघाटी (राजसमंद) में।
- एल्बर्ट हॉल म्यूजियम – सवाई रामसिंह के समय जयपुर में 1876 ई. में स्थापित राजस्थान का प्रथम संग्रहालय।
- जनजाति संग्रहालय – उदयपुर में।
- लोकवाद्यों का संग्रहालय – जोधपुर में।
- भवानी परमानंद राजकीय पुस्तकालय – झालावाड़ में।
- अम्बेडकर पीठ – जयपुर 2007 में स्थापित।
- बदराना पशु मेला – नवलगढ़ (झुंझुनूं) में आयोजन।
- सेबड़िया पशु मेला – चैत्र शुक्ल एकादशी को रानीवाड़ा (जालौर) में आयोजन।
- भलका चौथ – चैत्र शुक्ल चतुर्थी। (मेवाड़ में)
- वत्स चतुर्थी – श्रावण कृष्ण चतुर्थी।
- तिल चौथ – माघ कृष्ण चतुर्थी। (इसे संकट चौथ भी कहते है)
- पवित्रार्पण द्वादशी – श्रावण शुक्ला द्वादशी।
- गाँव बोरण रसोई नामक लोक परम्परा के अवसर पर इन्द्र की पूजा की जाती है।
- शास्त्र ग्रंथों में गौर्या तिथि श्रावण शुक्ला तृतीया को आती है।
- भोलावणीजी – चैत्र शुक्ला तृतीया को ईसर और गवर का जुलूस निकालना।
- दीवड़ा – डूंगरपुर जिले में दीपावली के दिन से 15 दिन का पितृपूजन का पखवाड़ा।
- रथ सप्तमी – माघ शुक्ला 7
- लोकगीत सम्बन्धित जिला
- ढोला मारू सिरोही
- झोरावा जैसलमेर का विरह गीत
- मूमल जैसलमेर का श्रृंगारिक गीत
- लांगुरिया करौली में कैलादेवी (अंजनीदेवी) की अराधना में गाये जाने वाले गीत।
- घुड़ला मारवाड़ क्षेत्र
- चिरमी मालवा क्षेत्र
- पंछीड़ा ढूंढाड़ व हाड़ौती क्षेत्र
- कुकड़ी गीत – रात्रि जागरण का अंतिम गीत।
- फलसड़ा गीत – विवाह के अवसर पर अतिथियों के आगमन पर गाये जाने वाले गीत।
- चौबाली – राजस्थान के लोकगीतों का संस्मरण।
- कालबेलिया नृत्यांगना गुलाबों को 26 जनवरी 2016 को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया।
- मछली नृत्य बाड़मेर का प्रसिद्ध है।
- आँबौ – पुत्री की विदाई पर गाया जाने वाला एक लोकगीत।
- ‘हर का हिंडोला’ – वृद्ध की मृत्यु पर गाया जाने वाला गीत।
- अजमौ – गर्भावस्था के आठवें मास में गाया जाने वाला गीत।
- धोधे खाँ प्रसिद्ध अलगोजा वादक है।
- सनकादिको की लीलाओं के लिए प्रसिद्ध – घोसूंडा एवं बस्सी।
- मलूक मेला – वैशाख शुक्ल चतुर्दशी (नृसिंह चतुर्दशी) को जोधपुर में
- नौटंकी में 9 प्रकार के वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया जाता है।
- भरतपुर में हाथरस शैली की नौटंकी प्रसिद्ध है।
- होली के दूसरे दिन उदयपुर में तेली लोगों की डाकी की सवारी निकाली जाती है।
- राजस्थान में सबसे पहले रासधारी नाटक मेवाड़ में मोतीलाल जाट द्वारा लिखा गया।
- राजस्थान में रासलीला के प्रवर्तक – हित हरिवंश।
- भारतीय बैले के जनक – उदयशंकर। (उदयपुर में जन्म)
- ‘गौरीमा’ राग के सजृनकर्ता – पं. विश्वमोहन भट्ट।
- वितत वाद्य – ताररहित वाद्य।
- ब्रिचेस – पुरुषों का कमर से नीचे का वस्त्र।
- ‘एक कतरा खून’ नामक प्रसिद्ध नाटक लिखने वाले प्रसिद्ध रंगकर्मी जे.डी. अश्वत्थामा अजमेर निवासी थे।
- नारेली जैन तीर्थ – अजमेर
- आपेश्वर महादेव मन्दिर – जालौर
- काकूनी मंदिर समूह – बारां
- नेकनाम बाबा की दरगाह – बारां
- गेपरनाथ शिवालय – कोटा
- लोहार्गल तीर्थ – झुंझुनूं
- ताजिया टॉवर :- जैसलमेर।
निहाल टॉवर :- धौलपुर।
- कौल्वी की बौद्ध गुफाएँ :- झालावाड़ में।
- काकोली पुरास्थल :- बारां में ।
- गेटोलाव की छतरियाँ :- दौसा में ।
- रंगनाथजी का मंदिर पुष्कर में द्रविड़ शैली में निर्मित भव्य मंदिर जो मूलत: एक विष्णु मन्दिर हैं।
- कालू मीर की मजार :- सरवाड़ (अजमेर)।
- अंगारों की होली केकड़ी (अजमेर) में खेली जाती है।
- डीकर (अलवर) से आदिमानव के बनाए हुए शैल चित्र मिले है।
- ईटराणा की कोठी :- अलवर में (महाराणा जयसिंह द्वारा निर्मित)।
- फतेहजंग का मकबरा :- अलवर में (5 मंजिला)
- ‘आँख वाला किला’ की उपमा :- बाला दुर्ग (अलवर)।
- कालिंजरा मंदिर :- बासवाड़ा में ।
- अर्थूणा (बांसवाड़ा) :- परमारों की राजधानी।
- नन्दिनी माता तीर्थ :- बाड़ोदिया (बाँसवाड़ा)
- भीलवाड़ा का ‘माच का ख्याल’ प्रसिद्ध है। भीलवाड़ा के बगसूलाल अजमेरा को ‘माच ख्याल का जनक’ कहते है।
- भीलवाड़ा जिले के मांडल में ‘नारों का स्वांग’ बहुत प्रसिद्ध है।
- चनणी चेरी मेला फाल्गून सुदी सप्तमी को देशनोक (बीकानेर) में भरता है।
- भट्टापीर उर्स भाद्रपद शुक्ल 8-10 को गजनेर (बीकानेर) में भरता है।
- अंता देवी का मंदिर बीकानेर में है। इस मंदिर में ऊँट पर आरूढ़ देवी की प्रतिमा है।
- सूसानी देवी का जैन मंदिर :- मोरखाणा (बीकानेर)।
- करणी संग्रहालय :- बीकानेर में ।
- हडूला लोक उत्सव बूँदी जिले के मियाँ गाँव में मनाया जाता है।
- वीनौता की बावड़ी चितौड़गढ़ जिले में है।
- मौनी बाबा की मजार धौलपुर में है।
- नीला पानी का मैला कार्तिक शुक्ला चौदस को हाथोड़ (डूंगरपुर) में भरता है।
- संत मावजी द्वारा रचित ग्रन्थ :- न्याय, ज्ञान भंडार, अकलरमण, सुरानंद, ज्ञान रत्नमाला, कालिंगा-हरण आदि।
- अकबरी मस्जिद राजा भारमल ने 1569 में आमेर में बनवाई।
- झिर की बावड़ी :- झिर (जयपुर) में बुधसिंह कुम्भणी द्वारा स्थापित 3 मंजिली बावड़ी।
- प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री डॉ. C.V. रमन ने जयपुर शहर को ‘आईलैण्ड ऑफ ग्लोरी’ कहा था।
- लोद्रवा मूमल एंव महेन्द्र की दंत कथाओं के लिए प्रसिद्ध है।
- ‘पिंगल शिरोमणी’ नामक ग्रंथ की रचना महारावल हरिराज ने की। एक अन्य पिंगल शिरोमणि नामक ग्रन्थ के लेखक कुशललाभ है।
- कोटकास्तां दुर्ग :- भीनमाल (जालौर) में। इसे नाथों का दुर्ग भी कहा जाता है।
- खेजड़ी के संबंध में कन्हैयालाल सेठिया की कविता ‘मीझंर’ बहुत प्रसिद्ध हैं।
- सिंधिया जनरल अप्पाजी की छतरी :- ताऊसर गाँव (नागौर)।
- महान कवि वृन्द नागौर निवासी थे।
- भँवरमाता का मेला छोटीसादड़ी (प्रतापगढ़) में प्रतिवर्ष चैत्र एवं आश्विन नवरात्रों में भरता है।
- जोनागढ़ किला प्रतापगढ़ में है।
- राधानगरी के रूप में प्रसिद्ध :- प्रतापगढ़।
- नवल सम्प्रदाय की प्रधान पीठ :- जोधपुर।
- प्रसिद्ध साहित्यकार गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का जन्म सिरोही जिले के रोहिड़ा गाँव में हुआ था।
- अधर देवी का मन्दिर :- माउण्ट आबू (सिरोही)।
- कोलरगढ़ दुर्ग :- सिरोही स्थित परमार शासकों का प्राचीन दुर्ग।
लाहिणी बावड़ी :- सिरोही में।
- चारबैत लोक गायन टोंक की विशिष्ट गायन शैली है।
- सरड़ा रानी की बावड़ी :- टोडा (टोंक) में ।
भंडग जी की गुफा :- निवाई (टोंक) में।
- प्रताप जयन्ती :- ज्येष्ठ सुदी 3
- ‘तोपवाले बाबा’ की उपमा :- हजरत गुलाम रसूल साहब रहमतुल्ला अलैह (मलंग सरकार)
- हाड़ी रानी का स्मारक :- सलूम्बर (उदयपुर)।
- जावर के विष्णु बाई का मंदिर का निर्माता :- रमाबाई (महाराणा कुम्भा की पुत्री)।
- नौगजा पीर की दरगाह :- टोंक ।
- खुदाबक्श बाबा की दरगाह :- सादड़ी (पाली)।
- तना पीर की दरगाह :- मण्डोर (जोधपुर)।
- राजस्थान में बाड़ोली का शिव मन्दिर एवं औसियां का हरिहर मन्दिर पंचायतन शैली के मन्दिर के उदाहरण है।
- नगरी (चितौड़) में पूर्व गुप्तकालीन बिना छत वाले वैष्णव मंदिरों के अवशेष हैं।
- राजस्थान में जैसलमेर जिले में ‘युद्ध संग्रहालय’ की स्थापना अगस्त 2015 में की गई।
- तारकीन का दरवाजा :- नागौर में।
- राजस्थान का अजमेर शहर राष्ट्रीय विरासत शहर विकास एवं संवर्द्धन योजना में शामिल किया गया है।
- महाराणा मेवाड़ चैरीटेबल फाउण्डेशन का मुख्यालय :- उदयपुर।
- तालाब-ए शाही (धौलपुर) का निर्माण जहाँगीर के मनसबदार सुलेह खाँ ने करवाया था।
- गुड़िया संग्रहालय :- जयपुर में।
- बाड़ोली की छतरी (महाराणा प्रताप की छतरी) का निर्माता :- महाराणा अमरसिंह
- अंजनी माता का मन्दिर :- करौली में ।
- ‘हीरो का नाग’ उदयपुर के एकलिंगजी मंदिर में चढ़ाया जाता है।
- तापी बावड़ी :- जोधपुर में।
- मेवाड़ का अमरनाथ :- गुप्तेश्वर महादेव।
मेवाड़ का हरिद्वार :- मातृकुण्डिया (चितौड़)।
मेवाड़ का अयोध्या :- घोड़ास का हनुमान मंदिर।
मेवाड़ की वैष्णोदेवी :- नीमज माता।
- मेवाड़ महाराणा उदयसिंह की छतरी :- गोगुन्दा में।
- वेश्याओं का मंदिर :- नेमिनाथ मंदिर (रणकपुर)।
- राजपुताना म्यूजियम :- अजमेर में 1908 में AGG काल्विन द्वारा।
- गंगा गोल्डन जुबली म्यूजियम :- बीकानेर में। (15 नवम्बर 1937)
- मेजर हार्वे का सम्बन्ध अलवर संग्रहालय से है।
- सार्दुल राजस्थान रिसर्च इन्स्टीट्यूट (बीकानेर) की स्थापना दशरथ शर्मा ने की।
- सरस्वती प्रकाश पुस्तकालय :- फतेहपुर (सीकर)।
- पोथीखाना संग्रहालय :- जयपुर।
- कुम्भलगढ़ दुर्ग के बादल महल में 9 मई 1540 ई. को महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था।
- पीर सदरूद्दीन की दरगाह :- रणथम्भौर (स. माधोपुर) ।
पदमला तालाब :- रणथम्भौर (स. माधोपुर) में।
- ‘भंवराथल’ नामक स्थान अचलगढ़ दुर्ग (सिरोही) में स्थित है।
- पृथ्वीराज ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘वेलि क्रिसन रूकमणि री’ का लेखन कार्य गागरोण दुर्ग (झालावाड़) में किया।
राजबुर्ज एवं ध्वजबुर्ज गागरोण दुर्ग (झालावाड़) की विशाल बुर्जे है।
- वीर शिरोमणी अमरसिंह राठौड़ के पराक्रम एवं स्वाभिमान से जुड़ा नागौर दुर्ग 28 विशाल बुर्जो के लिए प्रसिद्ध है।
- दुर्ग जिला
असीरगढ़ दुर्ग : टोंक
करणसर दुर्ग : जयपुर
केसरोली दुर्ग : अलवर
खण्डार दुर्ग : स. माधोपुर
उटगिरी दुर्ग : करौली (अन्य नाम:-उटनगर, अवन्तगढ़)
वैरगढ़ दुर्ग : अलवर
मालकोट दुर्ग : नागौर
इंदोर दुर्ग : अलवर
बनेड़ा दुर्ग : भीलवाड़ा (अभी तक मूल स्वरूप में यथावत है)
गूमट दुर्ग : धौलपुर
नवल खाँ दुर्ग : झालरापाटन (झालावाड़) (पृथ्वीसिंह द्वारा नीव)
काकोड़ दुर्ग : टोंक
इन्द्रगढ़ दुर्ग : बूँदी
ऊटाँला किला : उदयपुर
किलोणगढ़ दुर्ग : बाड़मेर।
सोढ़लगढ़ दुर्ग : सूरतगढ़ (श्रीगंगानगर)
- हजरत गद्दनशाह पीर की मजार :- तिजारा (अलवर)
- विश्ववल्लभ :- महाराणा प्रताप के काल में चक्रपाणि मिश्र द्वारा लिखा गया ग्रंथ। 9 अध्यायाें में वर्गीकृत।
- गौराबादल पद्मनी चरित चौपाई, सीता चौपाई, महिपाल चौपाई अमर कुमार चौपाई आदि जैन मुनि हेमरत्न सूरि द्वारा रचित ग्रंथ है।
- डेसा गाँव की बावड़ी डूंगरपुर में है। (माणक दे द्वारा निर्मित)।
- हरि पिंगल के लेखक :- कवि जयदेव।
हरिभूषण महाकाव्य के लेखक :- गंगाराम भट्ट।
प्रताप प्रशस्ति के लेखक :- कवि कल्याण।
- ‘श्रीनाथ विलास’ के लेखक :- सुरति मिश्र।
- चाडिया :- डामोर समाज में होली के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम।
- पेपरवेट संग्रहालय :- जयपुर में।
- संत पीपा के अनुसार मोक्ष का साधन :- भक्ति।
- जसनाथी सम्प्रदाय का उद्गम कत्तरियासर (बीकानेर) में माना जाता है।
- रायसिंह प्रशस्ति बीकानेर शासक रायसिंह के समय संस्कृत भाषा में जैता मुनि द्वारा लिखी गई थी।
रचनाएँ | लेखक |
पृथ्वीराज विजय : | जयानक |
हम्मीर महाकाव्य : | नयनचन्द्र सूरी |
राजवल्लभ : | शिल्पी मण्डन (14 अध्याय) |
राजविनोद : | भट्ट सदाशिव (16 वीं सदी) |
कर्मचन्द्र वशोकीर्तन काव्यम : | जयसोम। |
अमरसागर : | पंडित जीवाधर। |
अजितोदय : | जगजीवन भट्ट |
एकलिंग महात्म्य : | महाराणा कुम्भा द्वारा प्रारम्भ जबकि कान्ह व्यास द्वारा पूर्ण |
अमीरनामा : | मुंशी भुसावनलाल |
समराइच्च कहा : | जैन आचार्य हरिभद्रसूरि |
तारीख-ए-शेरशाही : | अब्बास खाँ सरवानी |
हुमायूँनामा : | गुलबदन बेगम। |
बादशाहनामा : | अब्दुल हमीद लाहौरी |
भक्तमाला : | वीठू ब्रह्मदास |
अजीतचरित : | बालकृष्ण दीक्षित |
जयसिंह कल्पद्रुम : | रत्नाकर भट्ट पुण्डरीक |
राजप्रकाश :- | किशोरदास |
महायश प्रकाश :- | आशिया मानसिंह |
सूरज प्रकाश :- | कविया करणीदान |
पाबु प्रकाश :- | मोडा आशिया |
उदय प्रकाश :- | किशन सिढ़ायच |
केहर प्रकाश :- | बख्तावर जी |
दीपक कुल प्रकाश :- | कमजी दधवाड़िया |
जमी हुई झील :- | सावित्री परमार |
राग रत्नाकर :- | राधाकृष्ण |
मैकती काया मुळकती धरती :- | अन्नाराम ‘सुदामा’ |
राजविलास :- | मानकवि |
परमार्थ विचार, प्रलय वीणा, अनुभव प्रकाश:- | चतुरसिंह |
रेगती हैं चींटियाँ :- | जबरनाथ पुराेहित |
गुलिस्ता :- | शेख सादी |
रुक्मणी-हरण, नागदमण :- | सांयाजी |
चौबोली, हरजस बावनी :- | कन्हैयालाल सहल |
प्रतापचरित, रूठीरानी, दुर्गादास चरित, जसवंत चरित :- | केसरीसिंह बारहठ |
महावीर का अर्थशास्त्र, नया मानव, नया विश्व :- | आचार्य महाप्रज्ञ |
घर तो एक नाम है भरोसै रो :- | अर्जुनदेव चारण |
धूणी तपे तीर :- | हरिराम मीणा |
मूंछों वाले मामाजी :- | इन्द्रजीत कौशिक |
हम्मीर महाकाव्य : | नयनचन्द्र सूरी। |
हम्मीर रासौ : | जोधराज। |
हम्मीर हठ : | चन्द्रशेखर। |
हम्मीरायण : | भाण्डऊ व्यास। |
हम्मीर मदमर्दन : | जयसिंह सूरी। |
- किशोरदास रचित राजप्रकाश ग्रंथ से मेवाड़ राजवंश की उत्पत्ति राम के ज्येष्ठ पुत्र लव से बताई गई है।
- कन्हैयालाल सेठिया ने ‘पीथल एवं पाथल’ काव्य की रचना की जिसमें ‘पीथल’ पृथ्वीराज राठौड़ (बीकानेर) एवं ‘पाथल’ महाराणा प्रताप को कहा है।
- राजस्थान भाषा का उद्भव शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ। मोतीलाल मेनारिया, डाॅ. के.एम. मुंशी एवं एल.पी. टैस्सिटोरी राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति गुर्जरी अपभ्रंश से मानते हैं।
- दादूपंथ का अधिकांश साहित्य ढूँढाड़ी बोली में लिपिबद्ध है।
- संत लालदास, चरणदास, दयाबाई एवं सहजोबाई की रचनाएँ मेवाती बोली में है।
- कवि जोधराज का ‘हम्मीर रासो’ एवं शंकरराव का ‘भीम विलास’ अहीरवाटी बोली में है।
- मुंशी देवीप्रसाद ने मुहणोत नैणसी को ‘राजपुताने के अबुल फजल’ की संज्ञा दी है।
- सूर्यमल्ल मिश्रण के वंश भास्कर में मूलत: बूंदी के हाड़ा चौहानों का इतिहास है।
- मेवाड़ महाराणा अरिसिंह ने ‘रसिक चमन’ नामक लघुकृति की रचना की।
- बीकानेर शासक जोरावरसिंह ने संस्कृत भाषा में ‘वैद्यकसार’ एवं ‘पूजा पद्धति’ नामक ग्रंथ लिखे।
- गुमानीराम कायस्थ ने ‘आइने अकबरी’ का ढूंढाड़ी भाषा में अनुवाद किया।
- सोमनाथ (महाराजा सूरजमल का दरबारी) की रचनाएँ :-
1. नवाब विलास
2. संकाम दर्पण
3. रस पीयूष विधि
4. शृंगार विलास
- कवि जोधराज का जन्म अलवर में हुआ था। (ग्रन्थ:- हम्मीर रासो)
- 1760 ई. में भीखणजी ने तेरापंथ की स्थापना की।
- कफूर सागर जलाशय :- अचलगढ़ (सिरोही) में
- विजयगढ़ी :- जयगढ़ दुर्ग के भीतर स्थित लघु दुर्ग।
- जूनागढ़ दुर्ग की आकृति:- चतुर्भुजाकार। (उपनाम-जमीन का जेवर, रातीघाटी)।
- हरविलास शारदा ने अजमेर के तारागढ़ दुर्ग को भारत का प्राचीनतम गिरि दुर्ग माना है।
- तारागढ़ दुर्ग (अजमेर) में पानी पहुचाने के लिए रहट का निर्माण राजा मालदेव (जोधपुर) ने करवाया। यह दुर्ग मालदेव की पत्नी ‘रूठी रानी’ (उमादे) का निवास स्थान था।
- जिनभद्र सूरि ग्रंथ भंडार :- सोनारगढ़ दुर्ग में (जैसलमेर)।
- दुर्ग बुर्जो की संंख्या
जैसलमेर दुर्ग :- 99
भटनेर दुर्ग (हनुमानगढ़) :- 52
जूनागढ़ दुर्ग (बीकानेर) :- 37
नागौर दुर्ग :- 28
बाला किला (अलवर) :- 15 (काबुल, खुर्द, नौगुजा)
तारागढ़ दुर्ग (अजमेर) :- 14 (घूंघट, गूगड़ी, नक्कारची, पीपली आदि)
लौहागढ़ दुर्ग (भरतपुर) :- 8
- इब्राहिम लोदी के शासनकाल में निर्मित ‘लाेदी मीनार’ बयाना दुर्ग (भरतपुर) मंे है।
- हवामहल की 5 मंजिलाें के नाम :-
1. शरद मंदिर (सबसे नीचली)
2. रतन मंदिर
3. विचित्र मंदिर
4. प्रकाश मंदिर
5. हवा मंदिर (सबसे ऊपरी)
- अबली मीणी का महल कोटा में है जो कोटा के शासक मुकुन्दराव द्वारा अपनी पासवान अबली मीणी के लिए बनवाया था।
- भिति चित्रों के लिए प्रसिद्ध ‘मालजी का कमरा’ चुरू जिले में स्थित है।
- राजाओं की छतरियँ स्थल :- सम्बन्धित जिला
गैटोर :- जयपुर
जसवंत थड़ा :- जोधपुर
छात्रविलास बाग :- कोटा
देवीकुण्ड :- बीकानेर
बड़ा बाग :- जैसलमेर
क्षार बाग :- बूंदी
- बंजारो की छतरी :- लालसोट (दौसा) (6 खम्भों की छतरी)
गोपालसिंह की छतरी :- रामगढ़ (जैसलमेर) में।
जगन्नाथ कछवाहा की छतरी :- माण्डल (भीलवाड़ा) में।
- कामेश्वर मंदिर :- आउवा (पाली) में स्थित।
मुछाला महावीर मन्दिर :- घाणेराव (पाली) में स्थित। 954 ई. में बना मन्दिर।
- भूमिज शैली :- नागर शैली की उपशैली। भूमि शैली का सबसे प्राचीन मन्दिर पाली जिले में सेवाड़ी का जैन मन्दिर (1010-20 ई.) हैं।
भूमिज शैली के अन्य उदाहरण 1. सूर्य मंदिर (रणकपुर)
2. अद् भतनाथ मंदिर (चित्तौड़)
- चितौड़ जिले का ‘बस्सी’ गाँव लकड़ी की कलात्मक वस्तुओं के निर्माण के लिए प्रसिद्ध हैं।
- कावड़ :- मदिरनुमा काष्ठ कलाकृति।
- राजसमन्द जिले का ‘मोलेला’ गाँव मृण शिल्प के लिए विख्यात हैं।
- सांझी कुंवारी कन्याओं द्वारा श्राद्ध पक्ष में बनाई जाती है।
- राजस्थानी चित्रकला की जन्मभूमि :- मेदपाट (मेवाड़)।
- राजस्थानी चित्रकला का स्वर्णयुग :- 17-18 वीं सदी।
- नाथद्वारा चित्रकला शैली की मौलिक देन :- पिछवई चित्रण।
- चितेरो की ओवरी :- मेवाड़ शासक जगतसिंह प्रथम के समय राजमहल में स्थापित कला विद्यालय। इसे ‘तस्वीरां रो कारखानों’ में स्थापित से भी जाना जाता है।
- जर्मन कलाविद् हरमन गोएट्ज का संबंध बीकानेर चित्रशैली से हैं।
- वेश्याओं के चित्र केवल अलवर शैली में ही बने है।
- उणियारा शैली चित्रकार :- धीमा, मीरबक्स, काशी, रामलखन, भीम।
- ब्लू पॉटरी के कलाकार :- स्व. कृपालसिंह, स्वर्गीय नाथीबाई, दुर्गालाल, हनुमान सहाय, गिरिराज।
- मीनाकारी के लिए ‘पद्मश्री’ से सम्मानित कलाकार :- कुदरतसिंह।
- बंधेज कला ‘टाई & डाई’ नाम से प्रसिद्ध हैं।
- मोम का दाबू प्रिन्ट :- सवाई माधोपुर।
मिट्टी का दाबू प्रिन्ट:- बालोतरा ।
गेहूँ के बींधण का दाबू प्रिन्ट :- सांगानेर व बगरू।
दाबू प्रिन्ट के लिए प्रसिद्ध स्थान :- आकोला (चित्तौड़गढ़)।
- मुन्नालाल गोयल ने सागानेरी प्रिंट को विदेशों में भी लोकप्रिय बनाया।
- जयपुर के अयाज अहमद लाख के काम के लिए प्रसिद्ध हैं। लाख से बनी चूडियां मोकड़ी (भोफड़ी) कहलाती है।
- कुट्टी के काम के लिए जयपुर विख्यात है।
- दरी निर्माण के मुख्य केन्द्र :- सालावास (जोधपुर), टांकला (नागौर), टोंक, भीलवाड़ा, शाहपुरा, केकड़ी और मालपुरा।
- बुनकरों का गाँव :- कैथून (कोटा)।
- जाजम की छपाई के लिए प्रसिद्ध जिला :- चित्तौड़गढ़।
- ख्यात संस्कृत भाषा का शब्द है।
- बारहमासा नामक काव्य रचना शैली में बारहमासा का वर्णन प्राय: आषाढ़ माह से प्रारम्भ होता है।
- तोरावाटी ढूँढाड़ी बोली की उपबोली हैं।
- खैराड़ी एवं बागड़ी मारवाड़ी बोली की उपबोलियाँ हैं।
- कल्याणजी (मालपुरा, टोंक) को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।
- कालबेलिया नृत्य भर्तृहरि मेले (अलवर) का मुख्य आकर्षण है।
- श्री महावीर जी का मैला करौली जिले की हिण्डौन तहसील में गंभीरी नदी के तट पर स्थित चंदन गाँव में चैत्र शुक्ला 13 से वैशाख कृष्णा प्रतिपदा तक भरता है।
- शील की डूँगरी (चाकसू, जयपुर) में चैत्र सप्तमी-अष्टमी को भरने वाले शीतलामाता के मेले को ‘बेलगाड़ी मेले’ के नाम से भी जाना जाता है।
- राज्य सरकार द्वारा राज्य में प्रतिवर्ष 10 पशु मेलों का आयोजन किया जाता है।
- सांख्य दर्शन के प्रणेता कपिल मुनि की तपोस्थली कोलायत (बीकानेर) में प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा को मेला भरता है।
- श्रृंगारिक त्योहार के नाम से प्रसिद्ध :- छोटी तीज (श्रावण शुक्ला तृतीया)।
- नृत्य सम्बन्धित जनजाति/जाति
गवरी, नेजा, रमणी, युद्ध, हाथीमन्ना, घूमरा :- भील
वालर, लूर, गौर, जवारा, मोरिया, कूद, मादंल :- गरासिया
इण्डोणी, बागड़िया, पणिहारी, शंकरिया :- कालबेलिया
चारी, झूमर नृत्य :- गुर्जर
मछली नृत्य :- बन्जारा
चकरी व धाकड़ नृत्य :- कंजर
शिकारी नृत्य :- सहरिया
मावलिया नृत्य :- कथौड़ी जनजाति
- नानालाल गन्धर्व :- तुर्रा-कलंगी ख्याल के प्रसिद्ध कलाकार।
- नत्थाराम की मण्डली का सम्बन्ध नौंटकी से है।
- बप्पादित्य, राजस्थान का भीष्म नामक रचनाओं के लेखक :- अवनीन्द्रनाथ ठाकुर।
- धूमल, गूमर, बंजारी एवं गोहाड़ी :- प्रसिद्ध राजस्थानी लोकगीत।
- राजस्थान में धार्मिक आन्दोलन का श्रीगणेश करने का श्रेय संत धन्ना को जाता है।
- जाम्भोजी (विश्नोई सम्प्रदाय के प्रवर्तक) की रचनाएँ :-
1. जम्भ संहिता
2. जम्भसागर शब्दावली
3. विश्नोई धर्मप्रकाश
4. जम्भ सागर
- गोरखमालिया (बीकानेर) नामक स्थान का सम्बन्ध संत जसनाथजी से है, जहाँ उन्होंने 12 वर्ष तक तप-साधना की।
- दिल्ली सुल्तान सिकन्दर लोदी ने संत जसनाथजी को कतरियासर (बीकानेर) के पास भूमि भेंट की थी।
- ‘राजस्थान के कबीर’ के उपनाम से प्रसिद्ध एवं संत ब्रह्मनन्द के शिष्य संत दादूदयाल ने सन् 1585 में फतेहपुर सीकरी में मुगल बादशाह अकबर से मुलाकात की ।
- संत लालदासजी जन्म से मुसलमान थे और इन्होंने मुस्लिम फकीर गद्दन चिश्ती से दीक्षा ली। ये अकबर एवं दादू के समकालीन थे।
- पूंजपुर, बेणेश्वर, दालावाला, शेषपुर एवं बांसवाड़ा का पालोदा गाँव आदि स्थानों का सम्बन्ध संत मावजी से है।
- नवलखां बुर्ज :- चित्तौड़गढ़ दुर्ग में।
नवलखां भण्डार :- चित्तौड़गढ़ दुर्ग में।
नवलखां दरवाजा :- रणथम्भौर दुर्ग में।
नवलखां बावड़ी :- डूंगरपुर में (निर्माता-प्रीमल देवी)
नवलखां मन्दिर :- पाली में ।
नवलखां तीर्थ :- पाली में।
नवलखां महल :- उदयपुर में।
नवलखां झील :- बूंदी में।
नवलखां झालरा :- जोधपुर में।
नवलखां दुर्ग :- झालारापाटन (झालावाड़) में। (निर्माता-झाला पृथ्वीसिंह)
नवलखां बाग :- वैर (भरतपुर)।
नवलखां सरोवर :- बारां।
देवता | पिता का नाम | माता का नाम | पत्नी का नाम |
गोगाजी | जेवरजी | बाछल देवी | केलम दे |
तेजाजी | ताहड़जी | रामकुँवरी | पैमलदे |
देवनारायणजी | भोजा | सेंदू गुजरी | पीपलदे |
रामदेवजी | अजमालजी | मैणादे | नेतलदे |
पाबुजी | धांधलजी | कमलादे | फूलमदे |
- राजस्थान में पर्यटन विभाग की स्थापना 1956 ई. में तथा 1989 में पर्यटन को उद्योग का दर्जा दिया गया।
- चिन्तामणि पार्श्वनाथ का जैन मन्दिर :- लोद्रवा (जैसलमेर)।
- रेगिस्तान का जलमहल :- बाटाडू का कुआं (बाड़मेर)।
- दाढ़ी-मूँछ युक्त हनुमानजी का मंदिर :- सालासर (चुरू)।
- कमरूद्दीन शाह की दरगाह, नवाब रूहेल खाँ का मकबरा, चंचलनाथ का टीला झुंझुनूं जिले में है।
- टॉड रॉक व नन रॉक नाम की चट्टानें माउण्ट आबू में नक्की झील के पास अवस्थित हैं।
- जमदग्नि ऋषि की तपस्थली सिरोही में हैं।
- जैन श्वेताम्बर तेरापंथ आचार्य श्री शिक्षु का निर्वाण सिरियारी (पाली) में हुआ था।
- जालन्धरनाथ की तपोभूमि ‘निवाई’ (टोंक) नाथ सम्प्रदाय का केन्द्र है।
- रानी लक्ष्मी कुमारी चूण्डावत को 1979 में रूसी कथाओं के राजस्थानी अनुवाद ‘गजबण’ के लिए सौवियत लैण्ड पुरस्कार दिया गया था।
- मशहूर गजल गायक जगजीतसिंह का जन्म 1941 में श्रीगंगानगर जिले में हुआ था। 2011 में निधन। 2003 में पद्मभूषण सम्मान। जगजीतसिंह को ‘गजल किंग’ भी कहा जाता है।
- फहीमुद्दीन डागर (उदयपुर) प्रसिद्ध ध्रुपद गायक थे। 2012 में पद्मश्री से सम्मानित किये गये।
- फिल्म निर्देशक मणिकौल का जन्म 1944 में जोधपुर में हुआ था। 2011 में निधन। मणिकौल ने उसकी रोटी, आषाढ़ का एक दिन, सतह से उठता आदमी नामक फिल्मों का निर्देशन किया।
- ब्लू पॉटरी चित्रकार कृपालसिंह शेखावत का जन्म सीकर जिले के मउ ग्राम में 1922 में हुआ। 1974 में पद्मश्री से सम्मानित कृपालसिंह शेखावत का निधन 15 फरवरी, 2008 को हुआ।
- कन्हैयालाल सेठिया :-
जन्म :- 11 सितम्बर 1919 सुजानगढ़ (चुरू)
साहित्यिक रचनाएँ :- वनफूल (पहला काव्य संग्रह, 1941)
लीलटांस (साहित्य अकादमी पुरस्कार)
निर्ग्रन्थ (मूर्ति देवी पुरस्कार 1988)
सबद (सूर्यमल्ल मीसण पुरस्कार 1987)
अन्य :- धरती धोरा री एवं ‘पाथल’ और ‘पीथल’