प्रमुख मेले एवं त्यौहार

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राजस्थान के प्रमुख मेले (हिन्दू माह अनुसार)

चैत्र मास –

मेलास्थानतिथिविशेष तथ्य
बादशाह मेलाब्यावर (अजमेर)चैत्र कृष्णा प्रतिपदा
फूलडोल मेलारामद्वारा (शाहपुरा, भीलवाड़ा)चैत्र कृष्णा प्रतिपदा से पंचमी तकरामस्नेही संप्रदाय से संबंधित
धनोप माता का मेलाधनोप गाँव (भीलवाड़ा)चैत्र कृष्णा एकम् से दशमी तक
शीतला माता का मेलाशील डूँगरी (चाकसू, जयपुर)चैत्र कृष्णा अष्टमी
ऋषभदेव मेला (केसरिया नाथ जी मेला)ऋषभदेव (धुलेव, उदयपुर)चैत्र कृष्णा अष्टमी- नवमी
जौहर मेलाचित्तौड़गढ़ दुर्ग (चित्तौड़गढ़)चैत्र कृष्णा एकादशी
मल्लीनाथ पशु मेलातिलवाड़ा (बाड़मेर)चैत्र कृष्णा एकादशी से चैत्र शुक्ला एकादशी तक
घोटिया अम्बा मेलाबाँसवाड़ाचैत्र अमावस्या
विक्रमादित्य मेलाउदयपुरचैत्र अमावस्या
कैलादेवी मेलाकैलादेवी (करौली)चैत्र शुक्ला एकम् से दशमी (प्रमुख रूप से अष्टमी को)कैलादेवी मेले में भक्तों द्वारा ‘लांगुरिया’ भक्ति गीत गाये जाते हैं।
गणगौरजयपुर व उदयपुरचैत्र शुक्ला तृतीयागुलाबी गणगौर के लिए नाथद्वारा प्रसिद्ध।
घुड़ला का मेलामारवाड़ (जोधपुर)चैत्र शुक्ला तृतीयामारवाड़ शासक राव सातलदेव की याद में अायोजित मेला।
गुलाबी गणगौरनाथद्वाराचैत्र शुक्ला पंचमीनाथद्वारा वल्लभ सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र है।
श्री महावीरजी मेलामहावीरजी (करौली)चैत्र शुक्ला त्रयोदशी से वैशाख कृष्णा द्वितीया तकजैन धर्म का सबसे बड़ा मेला। जिनेन्द्र रथ यात्रा मुख्य आकर्षण
सालासर हनुमान मेलासालासर (सुजानगढ़, चूरू)चैत्र पूर्णिमाहनुमान जयंती
बीजासणी माता का मेलालालसोट (दौसा)चैत्र पूर्णिमा
वैशाख मास –
धींगागवर बेंतमार मेलाजोधपुरवैशाख कृष्णा तृतीया
गोर मेलासियावा (आबूरोड, सिरोही)वैशाख शुक्ला चतुर्थी
नारायणी माता का मेलासरिस्का (अलवर)वैशाख शुक्ला एकादशी
बाणगंगा मेलाविराटनगर (जयपुर)वैशाख पूर्णिमा
मातृकुण्डिया मेलाराशमी (हरनाथपुरा, चित्तौड़गढ़)वैशाख पूर्णिमा
ज्येष्ठ मास –
सीतामाता मेलासीतामाता (प्रतापगढ़)ज्येष्ठ अमावस्या
सीताबाड़ी का मेलासीताबाड़ी केलवाड़ा (बाराँ)ज्येष्ठ अमावस्यासहरिया जनजाति का कुंभ। हाड़ौती अंचल का सबसे बड़ा मेला।
श्रावण मास –
कल्पवृक्ष मेलामांगलियावास, अजमेरहरियाली अमावस्या
गुरुद्वारा बुड्‌ढ़ा जोहड़ मेलागंगानगरश्रावण अमावस्या
लोटियों का मेलामण्डौर (जोधपुर)श्रावण शुक्ला पंचमी
परशुराम महादेव मेलासादड़ी (पाली)श्रावण शुक्ला सप्तमी
वीरपुरी मेलामंडोर (जोधपुर)श्रावण का अंतिम सोमवार
भाद्रपद मास –
कजली तीजबूँदीभाद्रपद कृष्णा तृतीया
जन्माष्टमीनाथद्वारा (राजसमंद)भाद्रपद कृष्णा अष्टमी
गोगानवमीगोगामेड़ी (हनुमानगढ़)भाद्रपद कृष्णा नवमी
राणी सती का मेलाझुंझुनूंभाद्रपद अमावस्या
रामदेवरा का मेलारामदेवरा (रूणेचा) (पोकरण, जैसलमेर)भाद्रपद शुक्ला द्वितीय से एकादशी तकसाम्प्रदायिक सद‌्भाव का सबसे बड़ा मेला
गणेशजी का मेलारणथम्भौर (सवाईमाधोपुर)भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी
हनुमानजी का मेलापांडुपोल (अलवर)भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी व पंचमी
भोजन थाली मेलाकामां (भरतपुर)भाद्रपद शुक्ला पंचमी
सवाई भोज मेलाआसींद, (भीलवाड़ा)भाद्रपद शुक्ला अष्टमी
भर्तृहरि मेलाभर्तृहरि (अलवर)भाद्रपद शुक्ला अष्टमी
खेजड़ली शहीदी मेलाखेजड़ली (जोधपुर)भाद्रपद शुक्ला दशमीएकमात्र वृक्ष मेला
तेजाजी का मेलापरबतसर (नागौर)भाद्रपद शुक्ला दशमी
कल्याणघणी का मेलाडिग्गी (टोंक)भाद्रपद शुक्ला एकादशी
देवझूलनी मेला (चारभुजा मेला)चारभुजा (राजसमंद)भाद्रपद शुक्ला एकादशी (जलझूलनी एकादशी)
बाबू महाराज का मेलाबाड़ी (धौलपुर)भाद्रपद शुक्ला एकादशी
चारभुजा मेलाचारभुजा (उदयपुर)भाद्रपद शुक्ला एकादशी
आश्विन मास –
बजरंग पशु मेलाउच्चैन (भरतपुर)आश्विन कृष्णा द्वितीया से अष्टमी
जसवंत पशु मेलाभरतपुरआश्विन शुक्ला पंचमी से पूर्णिमा
दशहरा मेलाकोटाआश्विन शुक्ला दशमी
मीरां महोत्सवचित्तौड़गढ़आश्विन पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा)
कार्तिक मास –
अन्नकूट मेलानाथद्वारा (राजसमंद)कार्तिक शुक्ला एकम्
गरुड़ मेलाबंशी पहाड़पुर (भरतपुर)कार्तिक शुक्ला तृतीया
पुष्कर मेलापुष्कर (अजमेर)कार्तिक शुक्ला एकादशी से पूर्णिमाअंतर्राष्ट्रीय स्तर का मेला व राजस्थान का सबसे रंगीन मेला
कपिल धारा का मेलाबाराँकार्तिक पूर्णिमायह मेला सहरिया जनजाति से संबंधित है।
चंद्रभागा मेलाझालरापाटन (झालावाड़)कार्तिक पूर्णिमा
साहवा सिक्ख मेलासाहवा (चूरू)कार्तिक पूर्णिमाराज्य का सबसे बड़ा सिक्ख मेला
कपिल मुनि का मेलाकोलायत (बीकानेर)कार्तिक पूर्णिमाजांगल प्रदेश का सबसे बड़ा मेला
मार्गशीर्ष मास –
मानगढ़ धाम मेला (आदिवासी मेला)मानगढ़ धाम (बाँसवाड़ा)मार्गशीर्ष पूर्णिमाआदिवासियों का कुम्भ
पौष मास –
नाकोड़ा जी का मेलानाकोड़ा तीर्थ (मेवानगर, बाड़मेर)पौष कृष्णा दशमी
माघ मास –
श्री चौथमाता का मेलाचौथ का बरवाड़ा (सवाईमाधोपुर)माघ कृष्णा चतुर्थी
पर्यटन मरु मेलाजैसलमेर व सम (जैसलमेर)माघ शुक्ला त्रयोदशी से माघ अमावस्या तक
बेणेश्वर मेलानवाटापुरा, (बेणेश्वर, डूँगरपुर)माघ पूर्णिमायह मेला सोम-माही-जाखम नदियों के संगम पर भरता है। इसे आदिवासियों के कुंभ के नाम से जाना जाता है।
फाल्गुन मास –
शिवरात्रि मेलाशिवाड़ (सवाईमाधोपुर)फाल्गुन कृष्णा त्रयोदशी
चनणी चेरी मेलादेशनोक (बीकानेर)फाल्गुन शुक्ला सप्तमी
चन्द्रप्रभू का मेलातिजारा (अलवर)फाल्गुन शुक्ला सप्तमीजैन धर्म से संबंधित
डाडा पम्पाराम का मेलापम्पाराम का डेरा विजयनगर (गंगानगर)फाल्गुन माह
वे मेले जो वर्ष में एक बार से ज्यादा भरते हैं –
वीरातारा माता का मेलावीरातारा, बाड़मेरचैत्र, भाद्रपद व माघ शुक्ला चौदस
त्रिपुरा सुंदरी मेलातलवाड़ा (बाँसवाड़ा)नवरात्रा
करणी माता का मेलादेशनोक, बीकानेरनवरात्रा (चैत्र व आश्विन)
जीणमाता का मेलारैवासा ग्राम (सीकर)नवरात्रा (चैत्र व आश्विन)
दधिमति माता का मेलागोठ मांगलोद (नागौर)शुक्ला अष्टमी (चैत्र व आश्विन)
मनसा माता का मेलाझुंझुनूंचैत्र बदी अष्टमी व आश्विन सुदी अष्टमी
इंद्रगढ़/बीजासन माता का मेलाइंद्रगढ़ (बूँदी)चैत्र व आश्विन नवरात्रा तथा वैशाख पूर्णिमा
हीरामन बाबा का मेलानगला जहाजपुर (भरतपुर)भाद्रपद चतुर्थी, वैशाख चतुर्थी
मारकण्डेश्वर मेलाअंजारी गाँव (सिरोही)भाद्रपद शुक्ला ग्यारस एवं वैशाख पूर्णिमायह मेला गरासिया समुदाय का प्रसिद्ध मेला है।
चंद्रप्रभु मेलातिजारा (अलवर)फाल्गुन शुक्ला सप्तमी व श्रावण शुक्ला दशमी
सैपऊ महादेवसैपऊ (धौलपुर)फाल्गुन व श्रावण मास की चतुर्दशी को

राजस्थान के विभिन्न उर्स :-

उर्सस्थानतिथि
ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती का उर्सअजमेररज्जब माह की 1 से 6 तारीख तक
गागरोन उर्सगागरोन, झालावाड़ज्येष्ठ शुक्ल एकम् (चाँद से)
नरहड़ पीर जी का मेलानरहड़, झुंझुनूंकृष्ण जन्माष्टमी
गलियाकोट का उर्सगलियाकोट, डूँगरपुरमुहर्रम-27

पर्यटन विभाग (राजस्थान) द्वारा आयोजित किये जाने वाले मेले एवं उत्सव :-

मेले एवं उत्सवस्थानमाह
ऊँट महोत्सवबीकानेरजनवरी
मरु महोत्सवजैसलमेरजनवरी-फरवरी
हाथी महोत्सवजयपुरमार्च
मत्स्य उत्सवअलवरसितम्बर-अक्टूबर
ग्रीष्म महोत्सव (समर फेस्टीवल)माउन्ट आबू एवं जयपुरमई-जून
मारवाड़ महोत्सवजोधपुरअक्टूबर
वागड़ मेलाडूँगरपुरनवम्बर
शरद महोत्सवमाउन्ट आबूदिसम्बर
बेणेश्वर मेलाडूँगरपुरफरवरी
कजली तीजबूँदीअगस्त
चन्द्रभागा मेलाझालरपाटन (झालावाड़)अक्टूबर-नवम्बर
डीग महोत्सवडीग (भरतपुर)जन्माष्टमी
थार महोत्सवबाड़मेर
मीरा महोत्सवचित्तौड़गढ़अक्टूबर
गणगौर मेलाजयपुरमार्च

राज्यस्तरीय पशु मेले :-

पशु मेलास्थानगौवंशमाह
श्री मल्लीनाथ पशु मेलातिलवाड़ा, (बाड़मेर) यह मेला लूनी नदी के किनारे भरता है।थारपारकर, कॉकरेजचैत्र कृष्णा 11 से चैत्र शुक्ला 11 (अप्रैल)
श्री बलदेव पशु मेलामेड़ता (नागौर)नागौरीचैत्र शुक्ला 1 से पूर्णिमा तक (अप्रैल)
श्री तेजाजी पशु मेलापरबतसर (नागौर)नागौरीश्रावण पूर्णिमा से भाद्रपद अमावस्या (अगस्त)
श्री गोमतीसागर पशु मेलाझालरापाटन (झालावाड़)मालवीवैशाख सुदी 13 से ज्येष्ठ बुदी 5 तक (मई)
चन्द्रभागा पशु मेलाझालरापाटन (झालावाड़)मालवीकार्तिक शुक्ला 11 से मार्गशीर्ष कृष्णा 5 तक (नवम्बर)
जसवंत पशु मेलाभरतपुरहरियाणवीआश्विन शुक्ला 5 से 14 तक (अक्टूबर)
कार्तिक पशु मेलापुष्कर (अजमेर)गीरकार्तिक शुक्ला 8 से मार्गशीर्ष 2 तक (नवम्बर)
शिवरात्रि पशु मेलाकरौलीहरियाणवीफाल्गुन कृष्णा 13 से प्रारंभ (मार्च)
सेवाड़िया पशु मेलाजालौरकाँकरेज

कुछ अन्य मेले एवं त्यौहार

– जोधपुर का धींगागवर :- जोधपुर नगर में प्रतिवर्ष होली के एक पखवाड़े बाद चैत्र शुक्ला तृतीया को गणगौर का विसर्जन करने के बाद वैशाख कृष्णा पक्ष की तृतीया तक धींगागवर की पूजा होती है। इस अवसर पर महिलाएँ बेंतमार मेला आयोजित करती हैं।

– गणगौर की सवारी, जैसलमेर :- जैसलमेर की शाही गणगौर दुनिया की निराली गणगौर है। यहाँ गणगौर की सवारी चैत्र शुक्ला तृतीया के स्थान पर चैत्र शुक्ला चतुर्थी को निकाली जाती है।

– मलूका मेला :- नृसिंह जयंती पर पाली में मलूका मेला लगता है।

– दशहरा मेला, कोटा :- कोटा का दशहरा मेला देश भर में प्रसिद्ध है। सन् 1579 में कोटा के प्रथम शासक राव माधोसिंह द्वारा स्थापित परंपरा 400 वर्षों के बाद आज भी चली आ रही है।

– सांगोद का न्हाण, कोटा :- कोटा जिले में ही ‘सांगोद का न्हाण’ भी प्रसिद्ध है। न्हाण का प्रचलन नवीं शताब्दी से माना जाता है। होली के अवसर पर मनाये जाने वाले इस उत्सव में ग्रामवासी विचित्र वेशभूषा में सज कर अखाड़े निकालते हैं। सांगोद के न्हाण का प्रचलन वीरवर सांगा गुर्जर की पुण्य स्मृति में 9वीं शताब्दी से माना जाता है।

– गौतमेश्वर का मेला, सिरोही :- सिरोही जिले में पोसालिया नदी के तट पर गौतमेश्वर में प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ला एकादशी से पूर्णिमा तक यह मेला लगता है। यह मीणा समाज का मेला है, जिसमें मीणा समाज अपने कुल देवता गौतमगुआ की पूजा करते हैं।

– घोटिया अम्बा मेला, बाँसवाड़ा :- यह बाँसवाड़ा जिले का सबसे बड़ा मेला है। यह प्रतिवर्ष चैत्र माह की अमावस्या को भरता है जिसमें राजस्थान, गुजरात तथा मध्यप्रदेश आदि प्रांतों से आदिवासी आते हैं।

– फूलडोल उत्सव, शाहपुरा :- भीलवाड़ा स्थित ‘शाहपुरा’ नगर अंतर्राष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के अनुयायियों का पीठ स्थल है। शाहपुरा में होली के दूसरे दिन प्रसिद्ध वार्षिक फूलडोल का मेला लगता है।

– भर्तृहरि :- भर्तृहरि के स्थान पर वर्ष में दो बार लक्खी मेला आयोजित होता है।

– रानी सती का मेला, झुंझुनूं :- झुंझुनूं में रानी सती के प्रसिद्ध मंदिर में प्रतिवर्ष भाद्रपद मास में मेला भरता है। 1988 के बाद से सती निषेध कानून के तहत इस पर रोक लगा दी है।

– ‘मारगपाली’ की सवारी :- जयपुर में अन्नकूट यानी कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा के दिन यह सवारी निकलती थी।

– सिंजारा :- गणगौर यानी चैत्र शुक्ला तृतीय के एक दिन पहले, चैत्र शुक्ला द्वितीया को सिंजारा होता है। उस दिन नववधुओं तथा बहन-बेटियों के लिए सुन्दर परिधान (विशेषत: लहरिया) तथा घेवर आदि मिष्ठान उपहारस्वरूप भेजे जाते हैं।

– धींगा गणगौर :- वैशाख कृष्णा तृतीया को उदयपुर में ‘धींगा गणगौर’ का त्यौहार मनाया जाता है। उदयपुर के महाराणा राजसिंह ने (सन् 1629-1680) अपनी छोटी महारानी के प्रीत्यर्थ यह त्यौहार प्रचलित किया था।

– वरकाणा का मेला :- पाली जिले में रानी के पास वरकाणा जैन तीर्थस्थल पर प्रतिवर्ष पौष शुक्ला दशमी को यह मेला भरता है।

– गोरिया गणगौर का मेला :- आदिवासियों का यह गणगौर मेला बाली तहसील के गोरिया ग्राम में प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ला सप्तमी को भरता है।

– चमत्कारजी का मेला :- आलनपुर (सवाईमाधोपुर) में श्री चमत्कारजी (ऋषभदेवजी) जैन मंदिर में प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा को यह प्रसिद्ध मेला लगता है।

– हुरंगा :- भरतपुर जिले के डांग व आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में होली के बाद चैत्र कृष्णा पंचमी से अष्टमी तक ‘हुरंगा’ आयोजित होता है जिसमें पुरुष एवं महिलाएँ बम ढोल तथा मांट की ताल पर सामूहिक रूप से विभिन्न प्रकार के स्वांग भरकर नृत्य करते हैं।

– डिग्गी श्री कल्याणजी का मेला :- डिग्गी (टोंक) कस्बे में श्रावणी अमावस्या, भाद्रपद शुक्ला एकादशी व वैशाख पूर्णिमा को लगता है।

– बाराँ जिले की सहरिया जनजाति का कुंभ कहा जाने वाला सीताबाड़ी मेला केलवाड़ा के निकट सीताबाड़ी में भरता है।

– खेजड़ली मेला :- विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला है।

– मातृकुण्डियाँ मेला :- चित्तौड़गढ़ जिले के राश्मी पंचायत समिति क्षेत्र में स्थित हरनाथपुरा गाँव में प्रतिवर्ष बैसाख पूर्णिमा को यह मेला भरता है।

– हेड़े की (छठ की) परिक्रमा :- जयपुर में प्रतिवर्ष भाद्रमास में परिक्रमाएँ आयोजित होती हैं। हेड़े की छह कोसी परिक्रमा पुराने घाट से प्रारम्भ होकर गोपाल जी के रास्ते में गोपाल जी के मंदिर में विसर्जित होती है।

– सलक :- दशहरे के अगले दिन जयपुर में होने वाला विशिष्ट समारोह।

– खंग स्थापन :- आश्विन शुक्ला प्रतिपदा को मेवाड़ में मनाया जाने वाला सामरिक समारोह।

– चूरू जिले में साहब का गुरुद्वारा है जिसके साथ सिक्ख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक देव एवं अंतिम गुरु ‘गुरु गोविन्द सिंह’ के आने एवं रहने की स्मृतियाँ जुड़ी हुई हैं।

– राज्य की सबसे ऊँची पर्वत चोटी गुरु शिखर (माउण्ट आबू-सिरोही) पर भगवान विष्णु के अवतार गुरु दत्तात्रेय का मंदिर स्थित है एवं यहाँ प्रसिद्ध धर्म सुधारक रामानन्द के चरण चिह्न भी स्थापित है।

– छीछ माता का मेला :- बाँसवाड़ा में।

– डोल मेला :- बारां में।

राजस्थान के प्रमुख त्यौहार

हिन्दू महीना

– राष्ट्रीय पंचांग :- भारत का राष्ट्रीय पंचांग शक संवत् पर आधारित है। ग्रिगेरियन कैलेण्डर का आधार भी शक संवत ही है। शक संवत् का पहला महीना चैत्र का एवं अंतिम महीना फाल्गुन का होता है।

 भारतीय संविधान ने शक संवत् को राष्ट्रीय पंचांग के रूप में ’22 मार्च, 1957’ को अपनाया था।

 सामान्यत: चैत्र माह का पहला दिन 22 मार्च पड़ता है, यदि अधिवर्ष है तो 21 मार्च को पड़ेगा लेकिन हमेशा ही ऐसा हो, यह आवश्यक नहीं है।

 राष्ट्रीय पंचांग के माह हैं – चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन।

– शक संवत् :- शक संवत् का प्रारम्भ 78 ई. (78A.D.) में कुषाण शासक कनिष्क के काल में हुआ था। यह ग्रिगेरियन कलैण्डर वर्ष से 78 वर्ष पीछे रहता है।

– नव संवत् (विक्रम संवत्) :- भारत में हिन्दू पंचांग विक्रम संवत् पर आधारित है। विक्रम संवत् का प्रारम्भ 57 ई. पू. (B. C.) में हुआ था। इस संवत् के वर्ष का प्रारम्भ चैत्र शुक्ला एकम् से होता है एवं समाप्ति फाल्गुन अमावस्या को होती है। यह वर्ष ग्रिगोरियन कलैण्डर वर्ष से 57 वर्ष आगे रहता है।

देशी माहअंग्रेजी माहदेशी माहअंग्रेजी माह
पौष-माघजनवरीमाघ-फाल्गुनफरवरी
फाल्गुन-चैत्रमार्चचैत्र-वैशाखअप्रैल
वैशाख-ज्येष्ठमईज्येष्ठ-आषाढ़जून
आषाढ़-श्रावणजुलाईश्रावण-भाद्रपदअगस्त
भाद्रपद-आश्विनसितम्बरआश्विन-कार्तिकअक्टूबर
कार्तिक-मार्गशीर्षनवम्बरमार्गशीर्ष-पौषदिसम्बर

श्रावण माह के त्यौहार

– निडरी नवमी (श्रावण कृष्णा नवमी) :- सांपों के आक्रमण से बचने के लिए श्रावण कृष्णा नवमी को नेवलों का पूजन किया जाता है।

– कामिका एकादशी (श्रावण कृष्णा एकादशी) :- इस व्रत में विष्णु भगवान की पूजा की जाती है। कामिका एकादशी को विष्णु का सबसे उत्तम व्रत माना जाता है।

– हरियाली अमावस (श्रावण अमावस्या) :- यह त्यौहार सावन में प्रकृति पर आई बहार की खुशी में मनाया जाता है। हरियाली अमावस्या पर पीपल के वृक्ष की पूजा एवं फेरे लिये जाते हैं तथा मालपूए का भोग बनाकर चढ़ाये जाने की परम्परा है। इस दिन मांगलियावास (अजमेर) में कल्पवृक्ष का मेला भरता है।

– श्रावणी तीज या छोटी तीज (श्रावण शुक्ला तृतीया) :- छोटी तीज ही अधिक प्रसिद्ध है। ‘तीज त्यौहारां बावड़ी, ले डूबी गणगौर’ अर्थात् तीज त्यौहारों को लेकर आती है जिनको गणगौर अपने साथ वापस ले जाती है। तीज का त्यौहार मुख्यत: बालिकाओं और नवविवाहिताओं का त्यौहार है। एक दिन पूर्व बालिकाओं का सिंजारा (शृंगार) किया जाता है। छोटी तीज ‘पार्वती’ का प्रतीक मानी जाती है। जयपुर की तीज की सवारी विश्व प्रसिद्ध है।

– नाग पंचमी (श्रावण शुक्ला पंचमी) :- इस दिन नाग देवता या सर्प की पूजा की जाती है। उन्हें दूध से स्नान कराया जाता है। इस दिन अष्ट नागों की पूजा की जाती है। जोधपुर में इस दिन नाग पंचमी का मेला लगता है।

– रक्षाबंधन :- भाई-बहन के स्नेह का त्यौहार। इस दिन घर के प्रमुख द्वार के दोनों ओर श्रवण कुमार के चित्र बनाकर पूजन करते हैं।

 भारत के प्रसिद्ध तीर्थ अमरनाथ में बर्फ का शिवलिंग रक्षाबन्धन के त्यौहार पर ही अपने पूर्ण आकार को प्राप्त करता है।

भाद्रपद के त्यौहार

– बड़ी तीज / सातुड़ी तीज / कजली तीज (भाद्रपद कृष्णा तृतीया) :- यह त्यौहार अखंड सुहाग व मनोनुकूल वर की कामना से जुड़ा हुआ है। इस पर्व पर सत्तू से बने विशेष व्यंजनों का आदान-प्रदान होता है। इस दिन नीम की पूजा की जाती है। बँूदी की ‘कजली तीज की सवारी’ बड़ी प्रसिद्ध है।

– हल  षष्ठी (भाद्रपद कृष्णा षष्ठी) : यह त्यौहार भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन हल की पूजा की जाती है व गाय के दूध ओर दही का प्रयोग वर्जित होता है। इस व्रत को पुत्रवती माताएँ ही करती हैं।

– ऊब छठ (भाद्रपद कृष्णा षष्ठी) :- ऊब छठ का व्रत और पूजा विवाहित स्त्रियां पति की लम्बी आयु व कुंवारी लड़कियां अच्छे पति की कामना के लिए करती हैं। इस व्रत को ‘चंदन षष्ठी व्रत’ भी कहा जाता है।

– कृष्ण जन्माष्टमी (भाद्रपद कृष्णा अष्टमी) :- यह भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव है। इस दिन मंदिरों में श्रीकृष्ण के जीवन से संबंधित झाँकियाँ सजाई जाती हैं। पूरे दिन उपवास के बाद रात के बारह बजे श्रीकृष्ण का जन्म होने पर श्रीकृष्ण की आरती व विशेष पूजा-अर्चना करके भोजन ग्रहण किया जाता है।

– गोगा नवमी (भाद्रपद कृष्णा नवमी) :- इस दिन लोकदेवता गोगाजी की पूजा की जाती है। हनुमानगढ़ जिले में ‘गोगामेड़ी’ नामक स्थान पर मेला भरता है।

– बछबारस (भाद्रपद कृष्णा द्वादशी) :- इसे वत्स द्वादशी भी कहते है। यह व्रत संतान की लम्बी आयु व उसके उज्जवल भविष्य के लिए किया जाता है। इस दिन गाय व बछड़े का पूजन किया जाता है तथा महिलाएँ चाकू से कटी भोजन सामग्री का उपयोग नहीं करती। इस दिन गाय के दूध, दही ओर इससे निर्मित पदार्थों तथा गेहूँ का सेवन वर्जित है।

– हरतालिका तीज (भाद्रपद शुक्ला तृतीया) :- इस दिन रेत के शंकर-पार्वती बनाकर उन्हें फूलों से सजाया जाता है। यह निर्जल, निराहार व्रत है जो सुहागिनों द्वारा उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। यह व्रत अखंड सौभाग्य का वर देता है।

– शिवा चतुर्थी (भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी) :- इस दिन स्त्रियाँ उपवास करती हैं तथा अपने सास-ससुर को घी, गुड़, लवण आदि से बना भोजन कराती हैं।

– ‘चतड़ा/चतरा चौथ’, गणेश चतुर्थी (भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी) :- भगवान गणेश के जन्मदिन के उत्सव को गणेश चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। गणेश-चतुर्थी का उत्सव 10 दिन के बाद अनन्त चतुर्दशी के दिन समाप्त होता है। यह दिन गणेश विसर्जन के नाम से जाना जाता है। यह त्यौहार ‘चतरा चाैथ’ के नाम से भी जाना जाता है। चतरा चौथ के दिन नवविवाहित युवकों को सिंजारा भेजा जाता है। यह बालकों का विशेष त्यौहार हैं। गणेश चतुर्थी से दो दिन पूर्व बच्चों का सिंजारा दिया जाता है।

– ऋषि पंचमी (भाद्रपद शुक्ला पंचमी) :- इस दिन गंगा स्नान का विशेष महात्म्य है। इस दिन विशेष रूप से सप्त ऋषियों का पूजन किया जाता है। माहेश्वरी समाज में राखी इसी दिन मनाई जाती है।

– राधाष्टमी (भाद्रपद शुक्ला अष्टमी) :- कृष्ण जन्माष्टमी के 15 दिन बाद राधाजी के जन्म के रूप में मनाया जाता है। इस दिन अजमेर की निम्बार्क पीठ ‘सलेमाबाद’ में मेला भरता है।

– डोलग्यारस एकादशी/जलझूलनी/देवझूलनी एकादशी (भाद्रपद शुक्ला एकादशी) :- आज के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार का व्रत व पूजन किया जाता है।

– अनंत चतुर्दशी (भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशी) :- इसे ‘अनंत व्रत’ भी कहते है जिसका अनुष्ठान स्त्री-पुरुष दोनों ही करते हैं। अनंत देव भगवान विष्णु का एक विशेषण है। अनंत व्रत के प्रभाव से ही पांडव महाभारत युद्ध में विजयी हुए।

– श्राद्धपक्ष (भाद्रपद पूर्णिमा) :- भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक सनातन धर्मियों में पितरों के दिन माने जाते हैं।

– साँझी :- इस त्यौहार में 15 दिन (भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या) तक कुँवारी कन्याएँ भाँति-भाँति की संझ्याएं बनाती है व पूजा करती हैं।

आश्विन माह के त्यौहार

– नवरात्रा :- हिंदू धर्म में दो नवरात्र क्रमश: बासंतीय नवरात्र एवं शारदीय नवरात्र के नाम से प्रचलित है। प्रथम नवरात्र चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से और द्वितीय नवरात्र आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होते है। शक्ति उपासना के लिए नवरात्र सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है।

– अहोई अष्टमी :- कार्तिक कृष्णा अष्टमी। इस दिन पुत्रवती स्त्रियाँ निर्जल व्रत रखती है।

– दुर्गाष्टमी (आश्विन शुक्ला अष्टमी) :- अष्टमी के दिन नौ कन्याओं को भोजन करवाया जाता है। दुर्गाष्टमी का त्यौहार बंगालियों के लिए बहुत बड़ा पर्व समझा जाता है।

– दशहरा (आश्विन शुक्ला दशमी) :- दशहरा (विजय दशमी या आयुध पूजा) हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। दशहरे के दिन जगह-जगह रावण, कुंभकर्ण व मेघनाथ के पुतले जलाये जाते हैं। भारत में मैसूर तथा कुल्लू का दशहरा प्रसिद्ध है। राजस्थान में कोटा का दशहरा मशहूर है। दशहरे पर शमी वृक्ष (खेजड़ी) की पूजा की जाती है और लीलटास पक्षी का दर्शन शुभ माना जाता है।

– शरद पूर्णिमा (आश्विन पूर्णिमा) :- इसे ‘कोजागरी पूर्णिमा’ या ‘रास पूर्णिमा’ भी कहते है।

कार्तिक माह के त्यौहार

– करवा चौथ (कार्तिक कृष्णा चतुर्थी) :- करवा चौथ को कर्क चतुर्थी भी कहा जाता है। सधवा महिलाएं अपने पति के सौभाग्य के लिए यह त्यौहार मनाती है। इस दिन करक चतुर्थी के व्रत का विधान है जो रात्रि को चंद्र दर्शन व चंद्र अर्घ्य के बाद ही खोला जाता है।

– तुलसी एकादशी (कार्तिक कृष्णा एकादशी) :- तुलसी एकादशी को रमा एकादशी भी कहते है। इस दिन तुलसी का व्रत व पूजन किया जाता है। तुलसी को विष्णु प्रिया भी माना जाता है।

– धनतेरस (कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी) :- प्रचलित कथा के अनुसार कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी के दिन समुद्र मंथन से आयुर्वेद के जनक भगवान धनवंतरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। अत: इस दिन को भगवान धनवंतरी के जन्म दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।

– रूप चतुर्दशी (कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी) :- इसे ‘नरक चतुर्दशी’ भी कहते है क्योंकि यह माना जाता है कि आज जो व्यक्ति स्नान-ध्यान व दीपदान करता है उसे नरक नहीं जाना पड़ता है। विष्णु पुराण के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने नरकासुर का वध किया।

– दीपावली (कार्तिक अमावस्या) :- यह हिन्दुओं का सबसे बड़ा त्यौहार है। हिंदू मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान श्रीराम चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लंका पर विजय प्राप्त करके अयोध्या आये तो घर-घर घी के दीप जलाये गये। सिक्खों की मान्यता है कि जहांगीर ने गुरु हरगोविंद को इसी दिन कैद से मुक्त िकया। इस पर्व को दीपोत्सव के रूप में मनाया जाता है। सुंदर नयनाभिराम पटाखें छोड़ना इसी का एक भाग है। इस दिन आर्य समाज संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती एवं भगवान महावीर का निर्वाण दिवस भी मनाया जाता है।

– गोवर्धन पूजा व अन्नकूट (कार्तिक शुक्ला प्रतिप्रदा) :- दीपावली की अगली सुबह गोवर्धन पूजा होती है। इस दिन गायों की पूजा की जाती है। मान्यता है कि गाय देवी लक्ष्मी का स्वरूप है। राजस्थान में नाथद्वारा का अन्नकूट प्रसिद्ध है।

– भैयादूज (कार्तिक शुक्ला द्वितीया) :- यह पर्व दीपावली के दो दिन बाद मनाया जाता है। यह भाई-बहन के प्यार का प्रतीक है। इसे यम द्वितीया के रूप में भी मनाया जाता है।

– गोपाष्टमी (कार्तिक शुक्ला अष्टमी) :- यह हमारी कृषि संस्कृति की देन है। गायें सामाजिक प्रतिष्ठा एवं धन सम्पत्ति की मापदंड मानी जाती थी। अत: गायों के आदर सत्कार व शृंगार हेतु यह पर्व मनाया जाता है।

– आँवला नवमी/अक्षय नवमी (कार्तिक शुक्ला नवमी) :- इसे ‘धात्री नवमी’ या ‘कूष्माण्ड नवमी’ भी कहते हैं। इस दिन आँवले के वृक्ष का पूजन कर उसकी परिक्रमा की जाती है।

– देवउठनी ग्यारस (कार्तिक शुक्ला एकादशी) :- इसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहते है। कहा जाता है इस दिन भगवान विष्णु चार माह उपरांत जागे थे। अत: इस दिन से ही समस्त मांगलिक कार्य/शादी-विवाह शुरू किये जाते हैं। महिलाएँ इस दिन तुलसी और शालिग्राम के विवाह का आयोजन भी करती हैं। इसे ‘तुलसी एकादशी’ भी कहा जाता है।

– देव दीपावली (कार्तिक पूर्णिमा) :- इस दिन भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किये जाने के कारण इसे ‘त्रिपुरा पूर्णिमा’ भी कहते हैं। इस दिन पुष्कर (अजमेर) में मेला भरता है। इस दिन भगवान का मत्स्य अवतार हुआ था।

– मकर संक्रांति :- यह पर्व माघ मास में कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को जब सूर्य मकर राशि में प्रविष्ट होता है उस दिन मनाया जाता है। सामान्यत: त्यौहार 14 जनवरी को मनाया जाता है। संक्रांति के एक दिन पूर्व तिल के लड्‌डू, पपड़ी, बरफी, फीनी इत्यादि बनाये जाते हैं। इस दिन दान पुण्य का विशेष महत्व होता है। इस दिन सधवा स्त्रियाँ सुहाग की तेरह वस्तुएँ कलप कर सुहागिन स्त्रियों को देती हैं। इस दिन रूठी सास को मनाए जाने की भी प्रथा है।

माघ माह के त्यौहार

– तिल चाैथ (माघ कृष्णा चतुर्थी) :- इसे संकट चौथ, वक्रतुण्डी चतुर्थी तथा तिलकुटा चौथ भी कहते हैं। इस दिन सवाईमाधोपुर में चौथ माता का भव्य मेला भरता है।

– षट्‌तिला एकादशी (माघ कृष्णा एकादशी) :- इस दिन 6 प्रकार के तिलों का प्रयोग किया जाता है जिसके कारण इसका नामकरण षट्‌तिला एकादशी है। यह व्रत दरिद्र विनाश, धन वैभव व सौभाग्य प्राप्ति हेतु किया जाता है। इसके अधिष्ठाता देव भगवान विष्णु है।

– मौनी अमावस्या (माघ अमावस्या) :- इस दिन मौन व्रत रखा जाता है। यह दिन मनु के ‘जन्म दिवस’ के रूप में भी मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदी खासतौर पर गंगा का जल अमृत बन जाता है। अत: माघ स्नान के लिए मौनी अमावस्या को बहुत ही खास बताया गया है।

– बसंत पंचमी (माघ शुक्ला पंचमी) :- बसंत पंचमी को ज्ञान की देवी सरस्वती और प्रेम के देवता रतिदेव (कामदेव) का पूजन करने की परम्परा रही है। इस दिन लोग पीले वस्त्र पहनते हैं। यह दिन ऋतुराज बसंत के आगमन का प्रथम दिवस माना जाता है।

– अचला सप्तमी / सौर सप्तमी / भानु सप्तमी / बसंत सप्तमी (माघ शुक्ला सप्तमी) :- भगवान सूर्य नारायण को प्रसन्न करने के लिए अचला सप्तमी का व्रत किया जाता है। जयपुर का सूर्य सप्तमी का मेला सारे राजस्थान में प्रसिद्ध था।

– माघ पूर्णिमा :- स्नान पर्वों का यह अंतिम पर्व है। इस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर विष्णु पूजन, पितृ श्राद्ध कर्म तथा गरीबों को दान देने का विशेष महत्व है। इस दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व होता है। इस दिन बेणेश्वर धाम में विशाल मेला भरता है।

फाल्गुन माह के त्यौहार

– महाशिवरात्रि (फाल्गुन कृष्णा चतुर्दशी) : इसी दिन भगवान शिव का ब्रह्मा से रूद्र रूप में अवतरण हुआ था। महाशिवरात्रि शिव के लिंग रूप में उद्‌भव का भी दिन माना जाता है। समुद्र मंथन से निकले कालकूट नामक विष को सृष्टि को बचाने के लिए इसी दिन अपने कंठ में रखा। इस दिन शिव की दुग्ध व बिल पत्रों से पूजा-अर्चना की जाती है।

– ढूँढ (फाल्गुन शुक्ला एकादशी) :- बच्चा होने पर ढूँढ होली से पहले वाली ग्यारस को पूजते हैं।

– आंवल / आमलकी एकादशी (फाल्गुन शुक्ला एकादशी) : आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु के निवास के कारण इसकी एकादशी को पूजा की जाती है।

– होली (फाल्गुन पूर्णिमा) :- रंगों का त्यौहार होली दो दिन मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन हिरण्यकश्यप की आज्ञा पर उसकी बहन होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हुई थी लेकिन प्रहलाद बच जाता है व होलिका जल जाती है। फाल्गुन मास में मनाये जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते है।

चैत्र माह के त्यौहार

– धुलंडी (चैत्र कृष्णा प्रतिप्रदा) :- होली के दूसरे दिन धुलंडी मनायी जाती है। इसी दिन गणगौर पूजन प्रारम्भ, बसन्तोत्सव, बादशाह मेला (ब्यावर) व फूलडोल मेला (शाहपुरा) मनाये जाते हैं।

 भिनाय की कौड़ामार होली, केकड़ी की अंगारों की होली, ब्यावर की देवर-भाभी होली, श्री महावीर जी की लट्‌ठमार होली, बाड़मेर की पत्थरमार होली एवं ईलोजी की सवारी, मेवाड़ के आदिवासी लोगों की भगोरिया होली, कोटा के आवां का न्हान एवं शेखावाटी का गींदड़ नृत्य आदि प्रसिद्ध है।

– घुड़ला का त्यौहार (चैत्र कृष्णा अष्टमी) :- यह त्यौहार राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में चैत्र कृष्णा अष्टमी से लेकर चैत्र शुक्ला तृतीया तक मनाया जाता है। इस त्यौहार पर चैत्र सुदी तीज को मेला भरता है।

– शीतलाष्टमी (चैत्र कृष्णा अष्टमी) :-  इस दिन शीतला माता का व्रत व पूजन किया जाता है। शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें भाेग लगाने के लिए बासी खाने का भोग यानि बसौड़ा तैयार किया जाता है। शीतलाष्टमी के दिन चाकसू (जयपुर) में शीतला माता का विशाल मेला भरता है।

– नवसंवत्सर (चैत्र शुक्ला प्रतिप्रदा) :- नया विक्रम संवत् का पहला दिन। हिन्दुओं का नववर्ष इसी दिन से प्रारम्भ होता है। महाराष्ट्र में इस दिन ‘गुडी पड़वा’, आंध्र प्रदेश में उगादि (युगादि), कश्मीर में ‘नवरेह’ के नाम से नववर्ष मनाया जाता है। ऐतिहासिक दृष्टि से सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने इसी दिन शकों पर विजय प्राप्त की थी।

– अरुन्धती व्रत (चैत्र शुक्ला प्रतिप्रदा) :- यह व्रत चैत्र शुक्ला की प्रतिपदा से आरम्भ होता है और चैत्र शुक्ला तृतीया को समाप्त होता है।

– सिंजारा (चैत्र शुक्ला द्वितीया) :- यह त्यौहार पुत्री और पुत्रवधु के प्रति प्रेम का प्रतीक है। गणगौर व तीज के एक दिन पूर्व सिंजारा भेजा जाता है जिसमें साड़ी, शृंगार की सामग्री, चूड़ी, मेहंदी, रोली, मिठाई आदि पुत्री तथा पुत्रवधू के लिए भेजी जाती है।

– गणगौर (चैत्र शुक्ला तृतीया) :- यह ‘सौभाग्य तृतीया’ के रूप में भी प्रसिद्ध है। यह सुहागिन स्त्रियों का सर्वाधिक प्रिय त्यौहार है। यह शिव व पार्वती के अखंड प्रेम का प्रतीक पर्व है। गणगौर में ‘गण’ महादेव का व ‘गौर’ पार्वती का प्रतीक है।

 इस दिन गणगौर माता की सवारी निकाली जाती है। जयपुर व उदयपुर की गणगौर प्रसिद्ध हैं। गणगौर के मेले में ऊँटों व घोड़ों की दौड़ मुख्य रूप से होती हैं।

 गणगौर का त्यौहार राजस्थानी त्यौहारों में सबसे अधिक गीतों वाला त्यौहार हैं।

– अशोकाष्टमी (चैत्र शुक्ला अष्टमी) :- इस दिन अशोक के वृक्ष का पूजन किया जाता है।

– रामनवमी (चैत्र शुक्ला नवमी) :- भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में यह त्यौहार मनाया जाता है। महाकवि तुलसीदास ने भी इसी दिन रामचरितमानस की रचना प्रारंभ की।

– हनुमान जयंती (चैत्र पूर्णिमा) :- इस दिन हनुमानजी का जन्म हुआ माना जाता है। सभी मंदिरों में इस दिन रामचरित मानस एवं हनुमान चालिसा का पाठ होता है।

वैशाख माह के त्यौहार

– आखा तीज / अक्षय तृतीया (वैशाख शुक्ला तृतीया) :- इस तिथि को सतुआतीज, परशुराम जयंती एवं देव-पितृतारिणी पर्व भी मनाया जाता है। आर्यसमाजी अक्षय तृतीया को दीक्षा पर्व, ज्ञानपर्व तथा ज्योतिपर्व के रूप में मनाते हैं। राजस्थान में यह पर्व नई फसल के स्वागत का अवसर होता है।

 सम्पूर्ण वर्ष में यह एकमात्र अबूझ सावा है। इस दिन राज्य में हजारों विवाह विशेषत: बाल विवाह सम्पन्न होते हैं। यह दिन बीकानेर का स्थापना दिवस भी है। इस दिन से सतयुग एवं त्रेतायुग का प्रारम्भ माना जाता है।

– पीपल पूर्णिमा :- यह वैशाख पूर्णिमा (बुद्ध पूर्णिमा) को मनाई जाती है।

ज्येष्ठ माह के त्यौहार

– वट सावित्री व्रत या बड़मावस (ज्येष्ठ अमावस्या) :- यह सौभाग्यवती स्त्रियों का प्रमुख पर्व है। इस व्रत के अंतर्गत स्त्रियाँ वट वृक्ष की पूजा करती है। इस दिन वे सत्यवान सावित्री की कथा सुनती है।

– गंगा दशहरा (ज्येष्ठ शुक्ला दशमी) :

 निर्जला एकादशी (ज्येष्ठ शुक्ला एकादशी) :- सम्पूर्ण एकादशियों में यह सर्वोत्तम है। इसका व्रत करने से अन्य सभी एकादशियों का पुण्य फल प्राप्त हो जाता है।

आषाढ़ माह के त्यौहार

– योगिनी एकादशी (आषाढ़ कृष्णा एकादशी) :- इस एकादशी का व्रत करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

– देवशयनी एकादशी (आषाढ़ शुक्ला एकादशी) :- इस दिन से चार महीनों तक भगवान विष्णु क्षीर सागर में अन्नत शैया पर शयन करते है। इसलिए इस दिन से चार महीने तक कोई भी मांगलिक कार्य विवाहादि सम्पन्न नहीं किये जाते हैं।

– गुरु पूर्णिमा (आषाढ़ पूर्णिमा) :- इस दिन गुरु-पूजन की विशेष महत्ता है। इस दिन गुरु-पूजन होता है। इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं।

मुस्लिम समाज के त्यौहार

– हिजरी सन् :- हिजरी सन् चन्द्रमा पर आधारित होता है। हिजरी सन् का पहला महीना मुहर्रम तथा अंतिम महीना जिलहिज होता है। हिजरी सन् के 12 माह है –

 1. मुहर्रम मुल हराम – नवम्बर

 2. सफी उल सफर – दिसम्बर

 3. रबी उल अव्वल – जनवरी

 4. रबी उलसानि – फरवरी

 5. जमादि उल अव्वल – मार्च

 6. जमादि उलसानि – अप्रैल

 7. रज्जब उल मुज्जबर – मई

 8. शाबान उल मुहाज्जम – जून

 9. रमजान उल मुबारक – जुलाई

 10. सव्वाल उल मुर्करम – अगस्त

 11. जिल्काद – सितम्बर

 12. जिलहिज – अक्टूबर

– मोहर्रम :- यह इस्लामी वर्ष यानि हिजरी सन् का पहला महीना है। इसे ‘अल्लाह का महीना’ कहा जाता है। इस माह में हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 अनुनायियों ने सत्य और इंसाफ के लिए यजदी की फौज से लड़ते हुए कर्बला के मैदान में शहादत पाई थी लेकिन धर्म विरोधियों के अागे सिर नहीं झुकाया था। उसी की याद में मोहर्रम माह की 10 तारीख को मनाया जाता है। इस दिन को ‘अशुरा’ कहा जाता है। इस दिन ताजिए निकाले जाते हैं। इन ताजियों को कर्बला के मैदान में दफनाया जाता है।

– इद-उल-मिलादुलनबी (बारावफात) (रबी उल-अव्वल माह की 12वीं तारीख) :- यह त्यौहार पैगम्बर हजरत मोहम्मद के जन्मदिन की याद में मनाया जाता है।

 मोहम्मद साहब का जन्म 570 ई. में मक्का (सउदी अरब) में हुआ था। यह दिन इबादत दान-पुण्य, भलाई और पैगम्बर साहब की नेकियों पर मनन करने और उन्हें जीवन में उतारने का दिन है।

– इद-उल-फितर (मीठी ईद) (सव्वाल माह की पहली तारीख) :- इसे ‘सिवैयों की ईद’ भी कहा जाता है। ‘ईद’ शब्द का अर्थ ‘खुशी’ या ‘हर्ष’ होता है। मुस्लिम लोग रमजान के पवित्र माह में 30 दिन तक रोजे करने के बाद शुक्रिया के तौर पर इस त्यौहार को मनाते हैं। मीठी सिवैयाँ व अन्य पकवान बनाकर खिलाये जाते हैं। यह भाईचारे का त्यौहार है।

– इदुलजुहा (जिल्हिज की 10वीं तारीख) :- इसे ‘बकरीद’ के नाम से भी जाना जाता है। यह कुर्बानी का त्यौहार है जो पैगम्बर हजरत इब्राहीम द्वारा अपने लड़के हजरत इस्माइल की अल्लाह को कुर्बानी देने की स्मृति में मनाया जाता है। इदुलजुहा के माह में ही मुसलमान हज करते हैं।

– शबे बारात :- यह त्यौहार शाबान माह की 14वीं तारीख की शाम को मनाया जाता है। यह माना जाता है कि इस दिन हजरत मुहम्मद साहब की आकाश में ईश्वर से मुलाकात हुई थी।

– शबे कद्र :- यह रमजान की 27वीं तारीख को मनाया जाता है। इस्लाम के मुताबिक अकीदत और ईमान के साथ कद्र की शब (रात) में इबादत करने वालों के पिछले गुनाह माफ कर दिये जाते हैं। इस दिन कुरान उतारा गया था।

– चेहल्लुम :- यह मोहर्रम के चालीस दिनों के बाद सफर मास की बीसवीं तारीख को मनाया जाता है। हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में शाहदत के 40वंे दिन चहेल्लुम मनाया जाता है।

– हजरत ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती का जन्मदिवस :- हिजरी सन् के जमादि उलसानि माह की 8 तारीख को मनाया जाता है।

विभिन्न उर्स (मेले)

उर्स गरीब नवाज-अजमेर :- ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती का 1256 ई. में एकांत वास में 6 दिन की प्रार्थना के पश्चात् स्वर्गवास हो गया। अजमेर में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की मृत्यु की बरसी के रूप में 1 से 6 रज्जब तक ख्वाजा का उर्स मनाया जाता है। दरगाह, अजमेर के ऐतिहासिक बुलंद दरवाजे पर झंडा चढ़ने के साथ ही उर्स की अनौपचारिक शुरुआत होती है। उर्स में देश-विदेश से लाखों जायरीन आते हैं। अजमेर में उर्स के दौरान सामाजिक सद्भाव व राष्ट्रीय एकता का अनूठा संगम दिखाई देता है।

तारकीन का उर्स-नागौर :- नागौर में सूफियों की चिश्ती शाखा के संत काजी हमीदुद्दीन नागौर की दरगाह है जहाँ अजमेर के बाद सबसे बड़ा उर्स भरता है।

गलियाकोट का उर्स-डूँगरपुर :- माही नदी के निकट स्थित गलियाकोट दाऊदी बोहरों का प्रमुख तीर्थ स्थान है। यहाँ फखरुद्दीन पीर की मजार है। यहाँ प्रतिवर्ष उर्स आयोजित किया जाता है।

नरहड़ की दरगाह का मेला-झुंझुृनूं :- झुंझुनूं जिले के नरहड़ गाँव में ‘हजरत हाजिब शक्कर बादशाह’ की दरगाह है जो शक्कर पीर बाबा की दरगाह के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ कृष्ण जन्माष्टमी के दिन विशाल मेला लगता है। जायरीन दरगाह में स्थित जाल वृक्ष पर अपनी मिन्नतों के डोरे बाँधते हैं।

जैन धर्म के पर्व

दशलक्षण पर्व :- प्रतिवर्ष चैत्र, भाद्रपद व माघ माह की शुक्ला पंचमी से पूर्णिमा तक दिसम्बर जैनों में दशलक्षण पर्व मनाया जाता है। यह पर्व किसी व्यक्ति से संबंधित न होकर आत्मा के गुणों से संबंधित है।

– पर्युषण पर्व :- जैन धर्म में पर्युषण पर्व महापर्व कहलाता है। पर्युषण का शाब्दिक अर्थ है निकट बसना। दिगम्बर परम्परा में इस पर्व का नाम दशलक्षण के साथ जुड़ा हुआ है। जिसका प्रारंभ भाद्रपद सुदी पंचमी से होता है और समापन चतुर्दशी को। श्वेताम्बर परम्परा में इस पर्व का प्रारम्भ भाद्रपद कृष्णा बारस से होता है व समापन भाद्रपद शुक्ला पंचमी को होता है। इसके दूसरे दिन अर्थात आश्विन कृष्णा एकम को क्षमापणी पर्व मनाया जाता है तथा जैन समाज के सभी लोग आपस में अपनी गलतियों के लिए क्षमा याचना करते हैं।

– सोलह कारण :- भाद्रपद कृष्णा प्रतिपदा से प्रारंभ होकर आश्विन कृष्णा तक सोलह कारण का उत्सव मनाया जाता है।

– ऋषभ जयन्ती :- प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण नवमी को ऋषभ जयन्ती पर्व मनाया जाता है। इस दिन जैन समाज के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ) का जन्म हुआ था।

– महावीर जयन्ती :- जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्मदिन चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को महावीर जयन्ती के रूप में मनाते हैं। इस दिन भगवान महावीर के जीवन से संबंधित झाँकियाँ निकाली जाती हैं। श्री महावीर जी (करौली) में इस दिन विशाल मेला भरता है।

– सुगंध दशमी पर्व (भाद्रपद शुक्ल की दशमी) :- सुगंध दशमी के अलावा इसे धूप दशमी भी कहा जाता है।

रोट तीज :- भाद्रपद शुक्ला तृतीया को जैन मतानुयायी रोट तीज का पर्व मनाते हैं जिसमें खीर व रोटी (मोटी मिस्सी रोटियाँ) बनाई जाती है।

– रत्नत्रय :- भाद्रपद शुक्ला त्रयोदशी से पूर्णमासी तक रत्नत्रय का त्यौहार मनाया जाता है। इन तीन दिनों में सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र के स्वरूप पर प्रकाश डाला जाता है।

अष्टाह्रिका :- जैनी लोग प्रति चौथे माह आषाढ़, कार्तिक एवं फाल्गुन शुक्ल पक्ष में अष्टमी से पूर्णमासी तक अष्टाह्रिका का त्यौहार मनाते हैं। इस अवसर पर 52 जिन चैत्यालयों की उपासना भी की जाती हैं।

– पड़वा ढोक :- यह दिगम्बर जैन समाज का क्षमायाचना पर्व है जो आश्विन कृष्णा प्रतिपदा (एकम) को मनाया जाता है।

सिंधी समाज के पर्व

– थदड़ी या बड़ी सातम (भाद्रपद कृष्णा सप्तमी) :- इस दिन सिंधी समाज के लोग बासोड़ा मनाते हैं व पूरे दिन गर्म खाना नहीं खाते।

– चालीहा महोत्सव :- सिंध प्रांत के बादशाह मृखशाह के जुल्मों से परेशान होकर सिन्धी समाज के लोगों ने 40 दिन तक व्रत किया तथा चालीसवें दिन झूलेलाल का अवतार हुआ। इसी की स्मृति में प्रतिवर्ष सूर्य के कर्क राशि में आ जाने पर 16 जुलाई से 24 अगस्त तक की अवधि में चालीहा महोत्सव मनाया जाता है।

– चेटीचण्ड या झूलेलाल जयन्ती :- सिंध प्राप्त के थट्‌टा नगर में झूलेलाल जी का चैत्र माह में जन्म हुआ। झूलेलाल वरुण के अवतार माने जाते हैं। सिंधी समाज द्वारा उनका जन्मदिवस ‘चेटीचण्ड’ के पर्व के रूप में मनाया जाता है।

– असूचंड पर्व :- फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशी के दिन भगवान झूलेलाल के अंतर्धान होने पर यह पर्व मनाया जाता है।

सिक्ख समाज के पर्व

– लोहड़ी :– लोहड़ी का त्यौहार मकर संक्रान्ति की पूर्व संध्या पर 13 जनवरी के दिन मनाया जाता है।

– वैशाखी :- सिक्खों के 10वें गुरु गोविन्द सिंह द्वारा आनन्दपुर साहिब, रोपड़ (पंजाब) में खालसा पंथ की स्थापना 13 अप्रैल, 1699 ई. को की गई थी। तभी से 13 अप्रैल को यह त्यौहार मनाया जाता है।

– गुरुनानक जयन्ती :- सिक्ख धर्म के प्रवर्तक।

– गुरु गोविन्द सिंह जयन्ती :- गुरु गोविन्द सिंह सिक्खों के 10वें व अंतिम गुरु थे। पौष शुक्ला सप्तमी को इसका जन्म दिवस मनाया जाता है।

ईसाई धर्म के त्यौहार

– क्रिसमस :- 25 दिसम्बर को ईसा मसीह का जन्मदिन क्रिसमस के रूप में मनाया जाता है।

– नववर्ष दिवस :- ईस्वी सन् की पहली जनवरी को नववर्ष मनाया जाता है।

– ईस्टर :- ईसाईयों की मान्यता है कि इस दिन ईसा मसीह पुनर्जीवित हुए थे।

– गुड फ्राइडे :- ईस्टर के रविवार के पूर्व वाले शुक्रवार को यह त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन ईसा मसीह को सूली पर लटकाया गया था।

– असेन्सन डे :- ईस्टर के 40 दिन बाद ईसा मसीह के स्वेच्छा से पुन: स्वर्ग लौट जाने के उपलक्ष्य में ईसाई समाज द्वारा हर्षोल्लास के साथ यह दिन मनाया जाता है।

– नवरोज :- पारसियों के नववर्ष का प्रारम्भ नवरोज से होता है।

बौद्ध धर्म के त्यौहार

– बौद्ध पूर्णिमा :- वैशाख पूर्णिमा को गौतम बुद्ध की जयंती के रूप में मनाया जाता है।

अन्य तथ्य :-

– चुंघी तीर्थ मेला :- जैसलमेर में।

– तीर्थराज मेला :- मचकुण्ड (धौलपुर) में।

– चारभुजा का मेला :- राजसमन्द में। (भाद्रपद शुक्ल एकादशी)।

– श्री जगदीश महाराज का मेला :- गोनेर (जयपुर)।

– ख्वाजा नजमुद्दीनशाह का उर्स :- फतेहपुर (सीकर)।

– भद्रकाली मेला, पल्लू मेला :- हनुमानगढ़ में।

– जैसलमेर में गणगौर पर केवल गवर की पूजा की जाती है, ईसर की नहीं।

– मुगधणा :- भोजन पकाने के लिए लकड़ियाँ, जो विनायक स्थापना के पश्चात लाई जाती है।

– गणगौर त्यौहार 18 दिन की अवधि तक मनाया जाता है।

– सोमवती अमावस्या पौष अमावस्या को मनायी जाती है तथा इस दिन पीपल वृक्ष की पूजा की जाती है।

– वरकाणा का मेला जैन धर्म से सम्बन्धित है।

– धींगा गवर बेंतमार मेला :- वैशाख कृष्णा तृतीया।

– सारणेश्वर मेला :- सिरोही में (भाद्रपद शुक्ला 11-12)

– कपिल धारा मेला सहरिया जनजाति से संबंधित है।

– बैलून महोत्सव :- बाड़मेर में।

– गरुड़ मेला :- बंशी जहाजपुर (भरतपुर) – कार्तिक माह में।

– राष्ट्रीय जनजाति मेला :- डूंगरपुर में।

– देव सोमनाथ मेला :- डूंगरपुर में।

– गधों का मेला :- भावगढ़ बंध्या (लूणियावास, जयपुर)

– प्रताप जयन्ती :- ज्येष्ठ शुक्ला तृतीया।

– हिण्डोला उत्सव :- रंगजी के मंदिर (पुष्कर) में श्रावण मास में छोटी तीज से बड़ी तीज तक आयोजित उत्सव।

– बदराना पशु मेला :- शेखावटी का प्रसिद्ध पशु मेला, जो नवलगढ़ (झुंझुनूं) में आयोजित होता है।

– राजस्थान में 10 राज्य स्तरीय पशु मेले आयोजित किये जाते हैं।

– तेरूंदा :- मकर संक्रांति के अवसर पर 13 वस्तुएं दान में देने का रिवाज।

– वैशाख कृष्णा तृतीया के दिन उदयपुर में ‘धींगा गणगौर’ महाराणा राजसिंह के काल में मनाना शुरू किया गया।

– ढूँढ :- शिशु के जन्म के बाद होली से पहले वाली ग्यारस को होने वाला पूजन।

– षट्‌तिला एकादशी को भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।

– साँझी त्यौहार ‘कुँवारी कन्याओं से’ संबंधित है।

– शेखावटी में उब छठ को चाना छठ कहा जाता है।

– बादशाह मृखशाह का संबंध सिंधी समाज से है।

– राजस्थान में 6वीं शताब्दी में सूर्य की पूजा लोकप्रिय थी।

– सुइयाँ मेला पोष अमावस्या को बाड़मेर में आयोजित होता है।

– फुलेरा दूज :- फाल्गुन शुक्ला द्वितीया।

– भलका चौथ :- चैत्र शुक्ल चतुर्थी को मेवाड़ में मनाई जाती है।

– राजस्थान में सांझी बनाने की परम्परा वृन्दावन से आई।

– वोळावणी :- गणगौर त्यौहार का अन्तिम दिन।

– राजस्थान के हाड़ौती क्षेत्र में दीपावली के अवसर पर हीड़ पूजन की प्रथा है। हीड़ का अर्थ होता है – प्रकाश।

– गीता जयन्ती :- मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी।

– शीतला माता मेले को ‘बेलगाड़ी मेला’ भी कहा जाता है।

– डोलचीमार होली :- बीकानेर में।

– 12 भाईयों का मेला :- बाड़ी (धौलपुर) में।

– नीलापानी का मेला :- हाथोड़ (डूंगरपुर) में।

– राज्य में सर्वाधिक मेले :- डूंगरपुर में (21 मेले)।- राज्य में सर्वाधिक पशु मेले :- नागौर में।

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