राजस्थानी लोकोक्ति एवं कहावतें

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राजस्थान की संस्कृति ग्राम्य प्रधान संस्कृति है। प्रदेश में लोक अंचल में रहने वाले मनुष्यों का पहनावा, खान-पान आचार-विचार एवं दिनचर्या उनके काम धंधे के आधार पर निश्चित होती रही हैं प्रदेश की लोक संस्कृति में लोक कहावतें भी अपना महत्वपूर्ण योगदान रखती है जो गागर में सागर भरने का कार्य करती है समय के साथ कई कहावतें केवल किताबों में ही रह गयी वहीं अनेक कहावतें आज भी समाज में आम है। राजस्थान की कहावतें कई मायनों में सदैव सत्य ही सिद्ध होती रही वहीं इन्हीं कहावतों में कई विशेष जानकारी भी मिलती हैं।

1. अंधाधुंध की साहबी, घटाटोप को राज :- विवेकहीन शासकों के शासन में राज्य में अंधकार छा जाता है।

2. अक्कल बिना ऊँट उभाणा फिरै :- मूर्ख लोग उपहास का पात्र बन जाते हैं।

3. आक में ईख, फोग में जीरो :- बुरे कुल में सज्जन व्यक्ति का जन्म।

4. आँख्याँ देखी परसराम, कदे न झूठी होय :- आँखों से प्रत्यक्ष देखी हुई बात कभी झूठी नहीं हो सकती।

5. अणी चूकी धार मारी :- सावधानी हटते ही दुर्घटना हो जाती है।

6. अणदोखी नै दोख, बीनै गति न मोख :- जो निर्दोष पर दोष लगाता है, उसे न गति (स्वर्ग) मिलता है, न मोक्ष।

7. अठे किसा काचर खाच है :- यहाँ दाल गलने वाली नहीं है।

8. अठे गुड़ गीलो कोनी :- हमें मूर्ख मत समझना।

9. आप डुबंतो पांडियो ले डूब्यो जजमान :- मुसीबत का मारा मुखिया सबको मुसीबत में डाल देता है।

10. आप मर्‌याँ बिना सुरग कठै :- अपने हाथ से काम करने पर ही पूरा होता है।

11. आम के अणी नहीं, वैश्या के धणी नहीं :- जिसका कोई पता ठिकाना नहीं हो।

12. आम खाणा के पैड गिणना :- अपने काम से काम रखना।

13. अम्बर पटकी धरती झेली :- जिसके आगे पीछे कोई न हो।

14. आला बंचै न आपसै, सूखा बंचै न कोई के बाप सैं :- हस्तलेख खराब होना।

15. असी रातां का असां ही तड़का :- बुरे कामों का नतीजा भी बुरा ही होता है।

16. ओस चाट्यां कसो पेट भरै :-  निरर्थक प्रयास फलदायी नहीं होता।

17. ओसर चूकी डूमणी, गावै आल पाताल :- लक्ष्य से भटका हुआ व्यक्ति सार्थक कार्य नहीं कर सकता।

18. अंटी में आणौ :- किसी के फंदे या जाल में फँसना।

19. अकल भांग खाणी :- मूर्खता का काम करना।

20. आँख चूकणी :- लापरवाह होना या न देखना।

21. आँख/आँखियां तरसणी :- देखने के लिए आतुर होना।

22. आँख/आँखियां फाणी :- आश्चर्यचकित होना।

23. आँख रौ काजळ :- बहुत प्यारा।

24. आंधा रा तंदूरा रामदेवजी बजावै :- बेसहारा व्यक्ति की ईश्वर मदद करता है।

25. आग में घी पूळौ नांखणौ :- 1. लड़ाई-झगड़े को तीव्र करना,

 2. किसी के क्रोध को और भड़काना।

26. आटै दाळ रौ भाव ठा पड़णौ :- होश ठिकाने आना।

27. आधी नै छोड़ आखी भावै तो आधी ई जावै :- अत्यधिक लोभ नुकसानदायक होता है।

28. आपरी मां ने कुण डाकण केवै :- स्वयं में या अपने लोगों में कौन दोष निकालता है।

29. अेक नै अेक इग्यारै होवणौ :– एकता में शक्ति होती है।

30. ओसर चूक्या मैं मौसर नहीं मिलै :- अवसर चूक जाने पर दुबारा हाथ नहीं आता।

31. इसी भैण का इसा ही बीरा :- बुरे लोगों के मित्र भी बुरे होते हैं।

32. उघाड़ा मांस माथै तो माखी बैठैला ई :- जो सुरक्षित नहीं है या जिसका कोई स्वामी नहीं है, उस चीज को सभी हड़पने की कोशिश करते हैं।

33. उत्तर पातर, मैं मियां तू चाकर :- उऋण होने में जो आत्म-संतोष है, उसके संबंध में गर्वोक्ति है।

34. एक घर तो डाकण ही टालें :- बुरे से बुरे व्यक्ति को भी कहीं-न-कहीं तो लिहाज रखना ही पड़ता है।

35. कागा हंस न गधा जती :- बुरे व्यक्ति कभी अच्छे नहीं बनते।

36. कीड़ी संचै तीतर खाय, पापी को धन परलै जाय :- पाप की कमाई कभी नहीं फलती।

37. कंद कादणौ :- समूल नष्ट करना।

38. कांदा छोलणा, कांदै रा छूंतरा उतारणा :- छोटी-छोटी बातों को प्रकट करना।

39. कांन माथै जूं नीं रेंगणी :- तनिक भी ध्यान न देना।

40. कांनां रौ काचौ होणौ :- सुनी सुनाई बात या शिकायत का जल्दी विश्वास करने वाला होना।

41. कामेड़ी बाज नै कोनी जीते :- कमजोर ताकतवर को नहीं जीत सकता।

42. काळौ पीळौ होनौ :- क्रोधित होना।

43. काल मरी सासू आज आयो आँसू :- शोक का दिखावा करना।

44. किलौ जीतणौ :- कठिन कार्य पर विजय पाना।

45. कूंटौ काढ़णौ :- अटका हुआ कार्य करना।

46. कूवै भांग पड़णी :- सबकी बुद्धि मारी जाना।

47. खाय धणी को, गीत गावै बीरे का :- उचित व्यक्ति को श्रेय नहीं देना।

48. खटाई में नांखणौ :- दुविधा में छोड़ देना।

49. खाटा लारै खीचड़ौ ई आवै :- जैसे को तैसा।

50. खाटी छा नै राबड़ी सैं खोणौ :- बिगड़े हुए काम को और भी बिगाड़ना।

51. खावै सूर कुटीजै पाडा :- अपराध कोई करता है, दण्ड और किसी को मिलता है।

52. खोट वापरणौ :- मन में छल-कपट उत्पन्न होना।

53. गधा नै कांई ठा गंगाजळ कांई व्है :- मूर्ख व्यक्ति अच्छी चीज की कीमत पहचान नहीं पाता है।

54. गुण गैल पूजा :- गुणों के अनुसार प्रतिष्ठा होती है।

55. गरदन माथै जुऔ धरणौ :- जिम्मेदारी लेना।

56. गळै टूंपौ आवणौ :- संकट में पड़ना।

57. गांठ राखणी :- मन में डाह रखना।

58. गाँव तो बळै अर डूम नै तिंवारी भावै :- विपत्ति में भी लाभ नहीं छोड़ना।

59. गाँव तो बसियौ ई नीं अर मंगता आयग्या :- कोई कार्य करने से पहले लाभ की सोचना।

60. गाल बजाणा :- बढ़-चढ़कर बातें मारना।

61. गुळ-खाणौ नै गुलगुलां सूं परहेज करणौ :- बड़ी बुराई करना और छोटी बुराई से बचना।

62. गुळ दियां मरै तौ जहर क्यूं दैणो :- आसानी से काम निकलता हो तो सख्ती नहीं करनी चाहिए।

63. घट्‌टी पीसणी :- कड़ा परिश्रम करना।

64. घर आयां नै छोड़ नै बांबी पूजण जाय :- घर वाले या नजदीकी योग्य व्यक्ति की कम पूछ होती है, बाहर वाले की अधिक।

65. घर फूट्या रावण मरै :- घर में फूट होने से शक्तिशाली व्यक्ति को भी परास्त होना पड़ता है।

66. घर में ऊंदरा इग्यारस करै :- घर में नितांत भूखमरी होना।

67. घाट-घाट रौ पांणी पीणौ :- बहुत अनुभव हासिल करना।

68. घिस-घिस नै गोळ होणौ :- किसी काम को करते रहने से उसमें निपुण होना।

69. घूँट पीणौ :- बरदाश्त करना।

70. घोड़ा बेच’र सोवणौ :- बिल्कुल निश्चित होकर सोना।

71. घोड़ी तो ठाण बिकै :- गुणी की उपयुक्त जगह पर ही कीमत होती है।

72. चंदण उतारणौ :- बेवकूफ बनाकर माल हड़पना।

73. चंदण लगाणौ :– खर्चा करवाना।

74. चळू भर पांणी में डूबणौ :- लज्जा के मारे मर जाना।

75. चाँद माथै थूकणौ :- निर्दोष पर कलंक लगाना।

76. चादर देख नै पग पसारणा :- अपनी सामर्थ्य के अनुसार काम करना।

77. चाबी भरणी :- किसी के विरुद्ध भड़काना।

78. चिड़ी फंसाणी :- अपने स्वार्थ के लिए किसी को चिकनी-चुपड़ी बातों से वश में करना।

79. चिलम भरणी :- खुशामद करना, जी हजूरी करना।

80. चीकणा घड़ा माथै पांणी नीं ठहरणौ :- मूर्ख पर किसी प्रकार का असर न पड़ना।

81. चूलै में ऊंदरा दौड़णा :- खाने को बिल्कुल न मिलना।

82. चोटी रौ पसीनौ अेडी तांई आणौ :- कठिन परिश्रम करना।

83. चौकी फेरणौ :- घर की सब सम्पत्ति को बर्बाद कर देना।

84. छठी रौ दूध याद आणौ :- भारी संकट पड़ना।

85. छाती पर सवार होणौ :- तंग करने के लिए सदैव सामने रहना।

86. छाती बैठणी :- अधिक खर्च होने की आशंका से घबराहट हो जाना।

87. छाती माथै झेलणौ :- आपत्ति को अपने ऊपर लेना।

88. छींकौ टूटणौ :- अनायास कोई लाभ होना।

89. छींटा नांकणा :- चुभती बात कहना।

90. छोटै मूंडै मोटी बात :- अपनी हैसियत से अधिक बात करना।

91. जंवाई रौ घोड़ौ अर सासू सरणाटा करै :- किसी पराए के धन-वैभव पर अन्य द्वारा गर्व किया जाना।

92. जखम ताजौ होणौ :- भूली हुई विपत्ति या बात फिर से याद आ जाना।

93. जणी गेलै नीं जाणौ वणी नै क्यूं पूछणौ :- जिस कार्य को नहीं करना है, उससे सरोकार रखने से क्या प्रयोजन।

94. जणी रूंखड़ा री छाया बैठै वणी री जड़ खोदै :- जिसका आश्रय ले रखा है, उसका ही अहित करना।

95. जतनां दही जमणौ :- बुद्धिमानी से ही कार्य अच्छा होता है।

96. जमीन आसमान अेक करणौ :- किसी कार्य के लिए अत्यधिक परिश्रम करना।

97. जीभ रै ताळौ लागणौ :- बोलती बंद होना।

98. जीवती माखी गिटणी :- जानबूझकर अनुचित कार्य करना।

99. जुग फाट्यां स्यार मरै :- संगठन टूटने से ही नाश होता है।

100. झाडू फेरणौ :- बिल्कुल नष्ट कर देना।

101. टाँग ऊपर राखणी :- अपने विचारों को प्राथमिकता देना।

102. टांटिया रै छत्तै में हाथ घालणौ :- 1. कष्टप्रद स्थिति पैदा कर लेना।

 2. कठिन कार्य हाथ में लेना।

103. टेक राखणी :- बात को निभा लेना, इज्जत रख लेना।

104. टेडी आँख सूं देखणौ :- शत्रुता की दृष्टि से देखना।

105. टोपी उतारणी :- 1. बेइज्जत करना, 2. कंगाल करना।

106. ठंडौ छांटौ नांखणौ :- कोई आश्वासन देना।

107. ठार-ठार नै खाणौ :- हर कार्य में धैर्य रखना नितांत आवश्यक है।

108. ठोकरा खातौ फिरणौ :- इधर-उधर मारा-मारा फिरना।

109. डाकण नै किसौ माळवौ दूर है :- समर्थ और प्रबल के लिए कोई कार्य मुश्किल नहीं होता है।

110. डूबती नाव पार लगाणी :- दुख या विपत्ति से बचाना।

111. डूबतै नै था’ मिळणी :- संकट में सहारा मिलना।

112. डोकरी रै कहवण सूं खीर कुण रांधै :- साधारण व्यक्ति के सुझावों पर ध्यान नहीं दिया जाता है।

113. डौड चावळ री खीचड़ी पकाणी :- अपने विचारों को सबसे अलग रखना।

114. ढक्या ढकण न उघाड़णौ :- रहस्य प्रकट करना।

115. ढाई दिन री बादसाहत करणी :- थोड़े समय के लिए खूब ऐश्वर्य पाना।

116. ढोल में पोल :- अधिक बोलने वाले आदमियों की बातें पक्की नहीं हुआ करती हैं।

117. तळवा चाटणा :- खूब खुशामद करना।

118. ताळी मिळाणी :- सांठ-गांठ करना।

119. तिणौ मेलियां आग उठै :- थोड़ी-सी ही बात पर क्रोधित होना।

120. तिलक उधड़णौ :- किसी के कपट का धीरे-धीरे पता चलना।

121. तेल काढणौ, तेल पाड़णौ :- परेशान करना।

122. तेल तिला री धार देखणी :– सोच-समझ कर कार्य करना।

123. ताखड़ी आगै साच है / ताखड़ी धरम जांणै नै जात :- तराजू में तुलने पर सत्य सामने आ जाएगा अर्थात् जाँच करने पर सत्य का पता चल जाएगा।

124. तूं डाल-डाल म्हैं पात-पात :- विरोधी से ज्यादा सक्षम होना।

125. ताळी लाग्यां ताळो खुलै :- युक्ति से ही काम होता है।

126. तीज तिंवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर :- श्रावक शुक्ला तृतीया से त्योहार प्रारंभ होते हैं और चैत्र शुक्ला तृतीया गणगौर के साथ समापन हो जाता है।

127. तिल देखो तिलां री धार देखो :- वक्त की नजाकत को देखकर कार्य करो। कुछ अनुभव हासिल करो।

128. थोथा चिणा बाजै घणा :- जिनमें गुण नहीं होते वे ही बढ़-चढ़कर बातें करते हैं।

129. थारा कांटा तनै ई भागैला :- तुम्हारे बोए हुए काँटे तुम्हें ही चुभेंगे। अर्थात् बुरा करने पर स्वयं का भी बुरा ही होता है।

130. थावर कीजे थरपना बुध कीजे बोपार :- शनिवार की स्थापना और बुधवार को व्यापार करना शुभ माना जाता है।

131. देस जिस्यो भेस :- जैसा देश वैसा वेश। स्थान व समयानुसार परिवर्तन कर लेना।

132. देसी गधी पूरबी चाल :- आडंबर करना।

133. दोनूं हाथांऊँ ताळी बाजै :- दोनों हाथों से ताली बजती है। अर्थात् लड़ाई/समझौता दोनों पक्षों द्वारा प्रयास करने पर ही होता है।

134. दान री बाछी रा दांत कोनी गिणीजै :- दान की बछिया के दाँत नहीं गिने जाते। मुफ्त की वस्तु गुण-दोष नहीं देखे जाते।

135. दूखै ज़कै रै पीड़ हुवै :- जिसके पीड़ा होगी उसी के दर्द होगा।

136. दूध रो दूध, पांणी रो पांणी  :- दूध का दूध, पानी का पानी। सही-सही न्याय करना।

137. दूर रा ढोल सुहावणा लागै :- दूर के ढोल सुहावने लगते हैं। कोई चीज दूसरे के पास ही अच्छी लगती है।

138. दमड़ी री डोकरी नै टकौ सिर मुंडाई रौ :- कम मूल्य की वस्तु पर अधिक व्यय।

139. दांत खाटा करणा :- परास्त करना।

140. दांतां लोही लागणौ :- चश्का लग जाना, आदी हो जाना।

141. दाई सूं पेट छिपाणौ :- जानकार से कोई बात गुप्त नहीं रखी जा सकती है।

142. दिन घरै आणा (होणा) :- अनुकूल समय आना।

143. दिन में तारा दिखाणा :- बहुत कष्ट देना।

144. दुनियां परायै सुख दूबळी :- दुनियां दूसरों के सुख को देखकर ईर्ष्या करती है।

145. दूज रौ चाँद :- दर्शन दुर्लभ होना।

146. दूध लजाणौ :- अपने वंश की प्रतिष्ठा खत्म करना।

147. दूबला नै दो असाढ़ :- आपत्ति पर आपत्ति आना।

148. दोनूं हाथ मिलायां ही धुपै :- दोनों ओर से कुछ झुकने पर ही समझौता होता है।

149. धरम री गाय रा दांत कांई देखणा :- दान में अथवा मुफ्त मिली हुई वस्तु के गुण-अवगुण नहीं देखना चाहिए।

150. धूप में बाळ पकाणा :- बिना अनुभव प्राप्त किए आयु बिता देना।

151. धोरां किण रा अहसांन राखै :- योग्य तथा बड़े आदमी किसी का अहसान नहीं रखते हैं।

152. धौळै दिन दीवाळी करणी :- अनहोनी बात करनी।

153. धौळौ दिन करणौ :- महत्त्वपूर्ण कार्य करना।

154. न कोई की राई में, न कोई दुहाई में :- वह अपने काम से काम रखता है।

155. नांव जिसाई गुण :- जैसा नाम वैसे गुण।

156. ना सावण सुरंगो, ना भादवो हरयो :- ना सावन रंगीन न भादो हरा। सदा एक समान होना।

157. नेकी कर कूवै में न्हांक :- नेकी कर दरिया में डाल। अच्छा काम करके भूल जाना।

158. नकटा देव सूंमड़ा पूजारी :- जैसा को तैसा।

159. नगारा रौ ऊँट :- निर्लज्ज, ढीठ।

160. नाक रै चूनौ लगाणौ :- किसी की इज्जत के बट्‌टा लगाना।

161. नींद बैच ओजकौ मोल लैणौ :- बेमतलब समस्या मोल लेना।

162. नैणां में जेठ असाढ़ लागणौ :- आंसुओं की झड़ी लग जाना।

163. नौ – नौ ताळ कूदणौ :- थोड़ी-सी खुशी या लाभ का अत्यधिक प्रदर्शन करना।

164. पड़ पड़ कै ई सवार होय है :- गलती करते – करते ही मनुष्य होशियार हो जाता है।

165. पर नारी पैनी छुरी, तीन ओड सै खाय,

 धन छीजै, जोबन हडै, पत पंचा में जाय।

 :- पर नारी पैनी छुरी के समान है। वह तीन ओर से खाती है – धन क्षीण होता है, यौवन का नाश करती है और लोकोपवाद होता है।

166. पाप री पांण आये बिन कोनी रैवे :- पाप अपना असर अवश्य दिखलाता है।

167. पईसा धूळ में राळणा :- धन की व्यर्थ बरबादी करना।

168. पगड़ी उछाळणी :- बेइज्जती करना।

169. पग तोड़णा :- बहुत परिश्रम करना।

170. पग फूँक-फूँक’र दैणौ :- 1. बहुत विचार कर कार्य करना, 2. बहुत सतर्कतापूर्वक चलना।

171. पगां नै कुल्हाड़ी बांणौ :- अपने हाथ अपना नुकसान करना।

172. पलक बिछाणी :- अत्यंत प्रेम से स्वागत करना।

173. पसीना रौ खून करणौ :- अथक परिश्रम करना।

174. पहाड़ टूटणौ, पहाड़ टूट पड़णौ :- एकाएक भारी आफत आ जाना।

175. पहेली बुझाणौ :- घुमा-फिरा कर कहना।

176. पांचू आंगळी घी में होणी :- चारों ओर से लाभ होना। सुख से दिन कटना।

177. पांणी उतरणौ :- अपमानित होना या लज्जित होना।

178. पांणी ऊपरा कर फिरणौ :- काबू से बाहर हो जाना।

179. पांणी पिछांणणौ :- वास्तविकता समझना।

180. पांणी पी’र जात पूछणी :- स्वार्थ सिद्धि के बाद औचित्य पर ध्यान देना।

181. पाटी में आणौ :- किसी के सिखाने में आना।

182. पाप रो घड़ौ फूटणौ :- किसी के अत्याचारों या कुकर्मों का भंडाफोड़ होना।

183. पीळा चावळ दैणा (मेलणा) :- किसी शुभ अवसर पर सम्मिलित होने के लिए निमंत्रण देना।

184. फूटी आँख नीं सुहावणौ :- अत्यन्त अप्रिय लगना।

185. फूट्यो ढोल होणौ :- नितांत मूर्ख होना।

186. बिल्ली रै भाग रो छींको टूटग्यो :- बिल्ली के भाग्य से छींका टूट गया। अयोग्य व्यक्ति को भी अचानक लाभ होना।

187. बंबी में बड़तां तौ साप ईं सीधौ व्है :- समय आने पर धूर्त व कपटी को भी सरल व सीधा होना पड़ता है।

188. बांदरै आळी पंचायती :- दूसरों के झगड़े में अपना लाभ उठाना।

189. बादळ देख घड़ौ फोड़णौ :- झूठी बात पर काम करना।

190. बा रै घाट रौ पांणी पीणौ :- अनुभवी होना।

191. बाळ ई बांकौ नीं होणौ :- जरा भी हानि न होना।

192. बींटा बांधणा :- रवाना होने की तैयारी करना, पलायन करना।

193. बीड़ौ उठाणौ, बीड़ौ चाबणौ, बीड़ौ झेलणौ, बीड़ी लैणौ :– किसी कार्य का उत्तरदायित्व लेना, कार्य के प्रति कटिबद्ध होना।

194. बावै सो लूणे :- जो जैसा बोता है, वैसा काटता है।

195. भरोसै री भैंस पाडो ल्याई :- जिस कार्य में विशेष लाभ की आशा हो लेकिन वैसा लाभ न हो पाए।

196. भूखां मरतां नै राब सीरै जिसी लागै :- भूखे व्यक्ति को राबड़ी  हलुवे जैसी लगती है।

197. भैंस रै आगे बीण बजाई, गोबर रो इनाम :- भैंस के आगे वीणा बजाई तो गोबर का इनाम मिलेगा। गुण ग्राहक ही गुणों की कद्र कर सकता है।

198. भूंड रो ठीकरौ कोई नीं लिया करै :-  बदनामी किसी को स्वीकार्य नहीं होती है।

199. मियां मरग्या कै रोजा घटग्या :- अभी भी देर नहीं हुई है।

200. मन रा लाडुवां सूं भूख नीं भाग्या करै :- कल्पना के लड्डुवों से भूख शांत नहीं हो सकती।

201. मूंछ्या रा चावळ राखणा :- अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखना।

202. मोर्‌यौ नाच कूद’र पगां सांमी देखै :- व्यक्ति को अपनी गलतियों का अहसास अंत में होता है।

203. म्यांऊँ रो मूंडौ पकड़णौ :- खतरे का सामना करना।

204. रीस रै आंख्यां नी हुया करै :- क्रोध में व्यक्ति विवेकहीन हो जाता है।

205. रांडां रोती रै नै पामणा जीमता रै :- दूसरों के कहने की कुछ भी परवाह नहीं करना।

206. लाठी हाथ मैं तो सगळा साथ मै :- लाठी हाथ में तो सभी साथ में होते हैं। शक्तिशाली का सभी साथ देते हैं।

207. लेवण गई पूत गमा आई खसम :- लाभ के बदले पूँजी भी गंवा देना।

208. लकीर रौ फकीर होणौ :- रूढ़ियों का अंधानुकरण करना।

209. लरड़ी माथै ऊन कुण राखै :- गरीब का शोषण सब करते हैं।

210. लोभ गळौ कटावै :- अधिक लाभ की इच्छा रखने वाले को कभी-कभी नुकसान उठाना पड़ता है।

211. सगळै ई चोखै कामां मै बिघन आया करै :- अच्छे कार्यों में हर जगह विघ्न आया करते हैं।

212. सावळ करतां कावळ पड़ै :- भलाई करते हुए भी बुराई हाथ लगती है।

213. सौ-सौ ऊंदरा खाय मिन्नी हज करबा चली :- बड़े पाखंडी द्वारा भले बनने का बाह्याडंबर करना।

214. सांभर में लूण रौ टोटौ :- किसी वस्तु के विशाल भंडार के स्थान पर भी उस वस्तु की कमी अनुभव करना।

215. सौ सोनार री अेक लुवार री :- बलवान की एक ही चोट पर्याप्त होती है।

216. सोनै के काट कोन्या लागै :- सज्जन के कलंक नहीं लगता।

217. हांसी में खांसी हो ज्याय :- हँसी-हँसी में लड़ाई हो जाया करती है।

218. हथेळी माथै जांन राखणी :- जोखिम का काम करना, जान हाथ में रखना।

219. हवन करतां हाथ बळणा :- 1. भला करने पर भी बुराई मिलना,

 2. उपकार का बदला उपकार।

220. हवा होणौ :- अत्यंत तीव्र भागना, चंपत हो जाना।

राजस्थानी मुहावरे

अक्कल लारै लट्ठ लियां फिरणौ– मुर्खता पूर्ण काम करना
अंगूठौ दिखावणौ – कुछ नहीं देना
आंख दिखावणी– गुस्से सूं देखणौ
आंख्या खुलणी– असलियत से चकित होना
आग लगावणो– झगड़ा करवाना
आडा हाथां लेवणौ– खरी खरी कहना
आसमान सूं बातां करणी– अहंकार करना
कमर टूटणौ– निराश होना
काळजौ ठंडौ करणौ– संतुष्ट करना
कान भरणा– किसी के खिलाफ दूसरे को बात कहना           
काम आवणौ– युद्ध में शहीद होना
कुए भांग घुळणौ– सभी की बुद्धि खराब होना
गळौ काटणौ– नुकसान करना
गोडा देवणौ– दूसरे का नुकसान करना
गोडा टेकणा– हार मान जाना
चुड़िया पैरणी– डरपोक होना
झक मारणौ– समय खराब करना
ठिकाणै लगावणौ – मार देना
डकार जावणौ– माल हड़प लेना
तूं-तूं मैं-मैं करणौ– झगड़ना
थूक’र चाटणौ– कह कर मना कर देना
दिन काटणा– समय को ऐसे ही बिताना
नाक रगड़नौ– खुशामद करना
नाक राखणौ– इज़्ज़त बचाना
पाँचौं उंगलियां घी में– आनन्द में रहना
बात बणावणौ– झुठी बात करना
मन रा लाडू खावणा– केवल कल्पना करना
हाथ पसारणौ– सहायता के लिये प्रार्थना करना
हाथ पीळा करना  – बेटी की शादी करना
रफुचक्कर होवणौ– गायब होना

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