राजस्थान दर्शन (दरगाह, मस्जिदें, स्तम्भ, मीनारें, छतरियाँ व बावड़ी)

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दरगाह एवं मस्जिद

1. ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह :- अजमेर में।

– 1135 ई. में संजरी (फारस) में जन्मे ख्वाजा साहब की दरगाह कौमी एकता का सदाबहार चरचश्मा (केन्द्र) है।

– हजरत शेख उस्मान हारुनी के शिष्य ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती के इंतकाल के 231 वर्ष बाद सन् 1464 ई. में मांडू (मालवा) सुल्तान ग्यासुद्दीन मेहमूद खिलजी के द्वारा पक्की मजार एवं उस पर गुम्बद बनवाया गया।

– मुख्य प्रवेश द्वार (निजाम द्वार) पर बुलन्द दरवाजा 1469 ई. से 1509 ई. के मध्य मांडू सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी द्वारा बनवाया गया। बुलन्द दरवाजा दरगाह की सबसे पुरानी इमारत है।

– अकबर पुत्र सलीम (जहाँगीर) के जन्म के बाद फरवरी 1570 ई. को आगरा से पैदल चलकर ख्वाजा की जियारत करने आये एवं दरगाह में 1570 ई. में अकबरी मस्जिद का निर्माण करवाया।

– निजाम द्वार :- दरगाह का मुख्य प्रवेश द्वार, जिसका निर्माण हैदराबाद निजाम मीर उस्मान अली खान द्वारा करवाया गया। इसी द्वार पर अकबर द्वारा भेंट किये गये दो नगाड़े रखे हुए हैं।

– देग :- यहाँ दो देग स्थित हैं। बड़ी देग बादशाह अकबर द्वारा तैयार करवाकर 1567 ई. में भेंट की गई थी। छोटी देग बादशाह जहाँगीर द्वारा तैयार करवाकर 1613 ई. में भेंट की गई थी।

– तबर्रुक :- दरगाह में देग में पकाकर मुफ्त में बाँटी जाने वाली सामग्री।

– दरगाह में स्थित महफिलखाने का निर्माण सन् 1888-91 की अवधि में बशीरुद्दौला सर असमान जाह द्वारा करवाया गया था।

– शेख मुइनुद्दीन चिश्ती की मुख्य मजार का निर्माण 1537 ई. में मांडू सुल्तान ग्यासुद्दीन खिलजी ने करवाया था।

– बेगमी दालान :- मजार के भवन के मुख्य द्वार के बाहर स्थित। इसका निर्माण शाहजहाँ की बेटी जहाँआरा ने करवाया था। मुख्य द्वार के चारों ओर चाँदी का कटहरा जयपुर संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा बनवाया गया था।

– दरगाह में शाहजहानी मस्जिद का निर्माण शाहजहाँ द्वारा 1638 ई. में करवाया गया था। अन्य नाम :- जुमा मस्जिद। जुमा मस्जिद के निर्माण में 2.40 लाख रुपये का खर्चा आया।

– मक्का के बाद यह दरगाह मुस्लिम सम्प्रदाय का दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है।

– इसी दरगाह में हिजरी संवत् के रज्जब माह की 1 से 6 तारीख तक उर्स का आयोजन होता है।

– अजमेर :- भारत का मक्का (दरगाह के कारण)।

– जायरीन :- उर्स में आने वाले लोग।

– दरगाह के बुलन्द दरवाजे पर उर्स से एक सप्ताह पूर्व भीलवाड़ा के गौरी परिवार द्वारा झंडा चढ़ाने की रस्म बड़ी धूमधाम से पूरी की जाती है।

– ख्वाजा साहब के पिता का नाम ‘हजरत ख्वाजा सैय्यद ग्यासुद्दीन’ व माता का नाम ‘बीबी साहेनूर’ था।

– ख्वाजा साहब के बचपन का नाम ‘खुरासान’ था।

– ख्वाजा साहब पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल में 1191 ई. में मोहम्मद गौरी के साथ भारत आये व अजमेर को ही अपना कार्यस्थल बनाया।

– गौरी ने ख्वाजा साहब को ‘सुल्तान-ए-हिन्द’ की उपाधि प्रदान की।

– होली बायोग्राफी :- ख्वाजा साहब की जीवनी। लेखक :- मिर्जा वहीउद्दीन बेग।

– ख्वाजा साहब ब्रज भाषा में साहित्य रचना किया करते थे।

– बीबी हाफिज जमाल (ख्वाजा साहब की पुत्री) एवं चिमनी बेगम (शाहजहाँ की बेटी) तथा भिश्ती सुल्तान (हुमायूँ को गंगा में डुबने से बचाने वाले) की कब्र भी दरगाह क्षेत्र में ही है।

– शेख अलाउद्दीन खान का मकबरा :- 16 खम्भों पर टिका आयताकार भवन। इसमें तीन गुम्बद हैं। इसे सोला थम्बा के नाम से भी जाना जाता है। 1659 ई. में निर्मित इस मकबरे में 5 मजार हैं।

2. हजरत शक्कर पीर बाबा की दरगाह :- नरहड़ गाँव (झंुझुनूं) में।

 नरहड़ में प्रतिवर्ष कृष्ण जन्माष्टमी (भाद्रपद कृष्ण अष्टमी) को उर्स का आयोजन होता है।

– इस दरगाह में तीन दरवाजे (बुलंद दरवाजा, बसेती दरवाजा, बगली दरवाजा) है।

– इस दरगाह को साम्प्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल माना जाता है।

– नरहड़ पीर बाबा की दरगाह राजस्थान की सबसे बड़ी दरगाह है।

– हजरत शक्कर पीर बाबा को ‘बागड़ का धणी’ व ‘हाजी बाबा’ भी कहा जाता है।

– प्रसिद्ध सूफी संत शेख सलीम चिश्ती इन्हीं के शिष्य थे।

– इस दरगाह में प्रवेश करने के लिए विशाल व भव्य बुलन्द दरवाजे से गुजरना होता है। दरगाह शरीफ में आयताकार चौक में मानसिक विकृति वाले लोगों के शरीर पर पवित्र पट्‌टी रगड़ी जाती है। कहते हैं कि ऐसा करने पर उन्हें विक्षिप्तावस्था से मुक्ति मिल जाती है।

3. शेख हमीमुद्दीन नागौरी की दरगाह :- नागौर में।

– ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य।

– 1192 ई. में मुहम्मद गौरी के साथ भारत आये।

– ख्वाजा साहब ने नागौरी को ‘सुल्तान-ए-तारिकीन (संन्यासियों का सुल्तान)’ की उपाधि से नवाजा था।

– 1274 ई. में इनका इंतकाल हुआ।

– इनकी मजार शफीक गिनाणी नामक तालाब के किनारे बनी हुई है। राज्य में अजमेर के बाद यहाँ दूसरा सबसे बड़ा उर्स का आयोजन होता है।

– इस मस्जिद का निर्माण फैजुल्ला खाँ के पुत्र बहराम खाँ की देखरेख में बादशाह मोहम्मद अकबर शाह द्वितीय के समय हुआ।

4. सैय्यद फखरुद्दीन की दरगाह :- गलियाकोट (डूंगरपुर) में।

– परमार राजाओं से संबंधित एवं माही नदी तट पर स्थित गलियाकोट दाऊदी बोहरा सम्प्रदाय के सैय्यद फखरुद्दीन की मस्जिद के लिए प्रसिद्ध है।

– गलियाकोट दाऊदी बोहरा सम्प्रदाय का प्रधान तीर्थस्थल है। इसे मजार-ए-फखरी भी कहा जाता है।

5. हजरत सैय्यद ख्वाजा फखरुद्दीन की दरगाह :- सरवाड़ (अजमेर) में।

– ख्वाजा फखरुद्दीन ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती के बड़े पुत्र थे।

– यहाँ वर्षभर हजारों जायरीनों का तांता लगा रहता है।

– ध्यातव्य है कि कालू मीर की मजार भी सरवाड़ (अजमेर) में ही स्थित है।

6. हजरत दीवानशाह की दरगाह :- कपासन (चित्तौड़) में।

 प्रख्यात सूफी संत की दरगाह के बुलंद दरवाजे की गगनचुंबी मीनारें दूर से ही दिखाई देती हैं।

 बाबा दीवानशाह की यह दरगाह कौमी एकता की मिशाल कायम करती है।

7. अब्दुल्ला खाँ का मकबरा :- अजमेर में।

 1710 ई. में सफेद संगमरमर से निर्मित।

 इस मकबरे के सामने अब्दुल्ला खाँ की बीबी का मकबरा निर्मित है, जो उत्कृष्ट स्थापत्य का नमूना है।

8. अढ़ाई दिन का झौंपड़ा :- अजमेर में।

– यह हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य का उत्कृष्ट उदाहरण है। प्रारम्भ में यहाँ चौहान शासक बीसलदेव ने एक संस्कृत महाविद्यालय 1153 ई. में बनवाया था। इस संस्कृत महाविद्यालय का नाम सरस्वती कंठाभरण महाविद्यालय था।

– 1206-1210 में इस महाविद्यालय को कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा तुड़वाकर मस्जिद में तब्दील कर दिया गया था।

– यहाँ पर प्रतिवर्ष मुस्लिम फकीर पंजाब शाह का अढ़ाई दिन का उर्स लगने के कारण इसे अढ़ाई दिन का झौंपड़ा कहते हैं।

9. संत अब्दुल्ला पीर का मकबरा :- भगवानपुरा (बाँसवाड़ा)।

 यह राजस्थान में दाऊदी बोहरा सम्प्रदाय का दूसरा महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।

10. जामा मस्जिद :- भरतपुर में। महाराजा बलवंत सिंह द्वारा निर्मित।

 इस मस्जिद की इमारत का निर्माण दिल्ली की जामा मस्जिद के नक्शे पर आधारित है।

11. जामा मस्जिद :- शाहबाद (बारां) में। इस मस्जिद का निर्माण मुगल सम्राट औरंगजेब के समय मुगल फौजदार मकबूल द्वारा करवाया गया था।

 ध्यातव्य है कि शाहबाद को मुगल बादशाह शाहजहाँ ने बसाया था।

12. मीरा साहब की दरगाह :- बूँदी में। (जैतसागर के निकट पहाड़ी पर)

13. मीरान साहब की दरगाह :- अजमेर के तारागढ़ दुर्ग में।

 संत मीरान साहब तारागढ़ के प्रथम गवर्नर थे।

 मूल नाम :- मीर सैय्यद हुसैन खिंगसवार

 इन्होंने 1202 में दुर्ग की रक्षार्थ हेतु प्राणों की आहुति दे दी।

 दुर्ग में हजरत मीरान साहब के दरगाह परिसर में उनके घोड़े की मजार है जो सम्पूर्ण भारत में केवल अजमेर में ही है। कहा जाता है कि घोड़े की मजार पर चने की दाल चढ़ाने वालों की मनोकामना अवश्य ही पूर्ण होती है।

14. मलिक शाह की दरगाह :- जालौर दुर्ग में।

 इस दरगाह में मलिक शाह की मजार पर नाथ पंथ के साधु भी उर्स के अवसर पर चादर चढ़ाते हैं।

 यह हिन्दू व मुस्लिम सम्प्रदाय के लिए आस्था व श्रद्धा का केन्द्र है।

15. तोपखाना मस्जिद :- जालौर दुर्ग में।

 यह प्रारम्भ में प्रसिद्ध परमार वंशी शासक राजा भोज द्वारा बनवाई गई ‘सरस्वती कंठाभरण’ शाला थी। 1311-12 में अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर विजय के बाद इस शाला को तुड़वाकर मस्जिद के रूप में बदल दिया। कालान्तर में इस मस्जिद का उपयोग तोपखाना के रूप में असला व बारुद रखने के लिए किया जाने लगा और इस प्रकार यह मस्जिद तोपखाना मस्जिद कहलाने लगी। निर्माण के आधार पर यह राज्य की सबसे प्राचीन मस्जिद है।

16. काकाजी की दरगाह :- प्रतापगढ़ जिले में स्थित।

 उपनाम :- कांठल का ताजमहल।

 प्रतापगढ़ में स्थित अन्य दरगाह व मस्जिद :-

 1. सैय्यद मूसा शहीद दरगाह

 2. अल्लाह रक्खीबाई की मस्जिद

 3. कुमेदान शाह बाबा की दरगाह

 4. मदार चिल्लाह दरगाह

17. लैला-मजनूं की मजार :- अनूपगढ़ (श्रीगंगानगर) में।

18. कबीरशाह की दरगाह :- करौली में। उत्कृष्ट शिल्प कला का नमूना।

 इस दरगाह का निर्माण स्वयं कबीरशाह द्वारा अपने जीवनकाल में ही करा दिया गया था। सादिक अली ने अपने गुरु कबीरशाह को इसी में दफनाया था।

19. राती थेड़ी :- सूफी संत शेख फरीद को ‘थड़ी वाले बाबा’ कहा जाता था। राती थेड़ी नामक स्थल को वर्तमान में करणपुर के नाम से जाना जाता है।

राजस्थान की अन्य प्रसिद्ध दरगाहें व मस्जिदें :-

 1. चलफिरशाह की दरगाह :- चित्तौड़ में।

 2. हजरत शेख अब्दुल अजीज मक्की की दरगाह :- केशोरायपाटन में।

 3. संत मीठेशाह की दरगाह :- गांगरोण दुर्ग में।

 4. पीर हाजी निजामुद्दीन की दरगाह :- फतेहपुर (सीकर) में।

 5. गुलाब खाँ का मकबरा :- जोधपुर में।

 6. नौंगजा पीर की मजार :- चित्तौड़गढ़ दुर्ग में।

 7. गैबी पीर की दरगाह :- जहाजपुर (भीलवाड़ा) में।

 8. जार जरीना मकबरा :- धौलपुर में।

 9. बाबा गफूर की मजार :- जगतमन्दिर (उदयपुर) में।

 10. कमरुद्दीन शाह की दरगाह :- झुंझुनूं में।

 11. हसामुद्दीन चिश्ती की दरगाह :- सांभर में।

 12. हसनपीर की दरगाह :- आंधी (जयपुर) में।

 13. पीर सदरुद्दीन की दरगाह :- रणथम्भौर दुर्ग में। अलाउद्दीन खिलजी द्वारा निर्मित।

 14. पीर मस्तान की दरगाह :- सोजत (पाली) में।

 15. हजरत शेखशाह / जमाल बाबा की दरगाह :- दौसा में।

 16. तनापीर की दरगाह :- मण्डौर (जोधपुर) में।

 17. सैय्यद पीर दुलेशाह की मजार :- केरला (पाली) में

 18. नलियासर मस्जिद :- सांभर में।

 19. अकबरी मस्जिद :- आमेर (जयपुर) में। भारमल द्वारा निर्मित।

 20. उषा मस्जिद :- बयाना (जयपुर) में।

 21. फतेहगज गुंबद मस्जिद :- अलवर में।

 22. ईदगाह मस्जिद :- जयपुर में।

 23. पठान गुलाम कलन्दर की मस्जिद :- मण्डौर (जोधपुर) में।

 24. इकमीनार मस्जिद :- जोधपुर में।

 25. अलाउद्दीन मस्जिद :- जालौर में।

 26. लाल मस्जिद :- अमरसर (जयपुर) में।

 27. जनाना मस्जिद :- अमरसर (जयपुर) में।

 28. सैय्यद बादशाह की दरगाह :- शिवगंज (सिरोही) में।

 29. अलाउद्दीन आलमशाह का मकबरा :- तिजारा (अलवर) में।

 30. गजरा का मकबरा :- धौलपुर में। राजा भगवंतसिंह द्वारा निर्मित।

 31. मौनी बाबा की मजार :- धौलपुर में।

अन्य तथ्य :-

1. भट्टा पीर का उर्स गजनेर (बीकानेर) में भादवा शुक्ल पक्ष की 8-10 तक भरता है।

2. नवाब रुहेल खाँ का मकबरा झुंझुनूं में है।

3. नेहरु खाँ की मीनार कोटा जिले में है।

4. बड़े पीर की दरगाह नागौर में है। यह सूफियों की कादरिया शाखा के जन्मदाता सैय्यद सैफुदीन अब्दुल वहाब की दरगाह है।

5. मलंग सरकार (हजरत गुलाम रसूल साहब रहमतुल्ला अलैह) की मजार बीकानेर में है। मलंग सरकार को ‘तोप वाले बाबा’ भी कहा जाता है।

6. गमतागाजी मीनार :- जोधपुर में है।

प्रमुख स्तम्भ

1. विजय स्तम्भ :-

 निर्माता :- महाराणा कुम्भा

 सारंगपुर युद्ध (1437 ई.) में विजय के उपलक्ष्य में।

 निर्माण समय :- 1440-1448 ई. तक।

 शिल्पी :- जैता, नापा, पूंजा व पोमा।

 यह स्तम्भ 9 मंजिला व 122 फुट ऊँचा हैं।

 उपनाम :- कीर्ति स्तम्भ, हिन्दू मूर्तिकला का अनमोल खजाना, हिन्दू मूर्तिकला का अजायबघर एवं भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोष (डॉ. गोट्ज के अनुसार)।

– इसके मुख्यद्वार पर विष्णु भगवान की मूर्तियां लगी हुई हैं।

– भगवान विष्णु को समर्पित।

– उपेन्द्रनाथ ने विष्णुध्वजगढ़ की उपमा दी।

– ऊँचाई :- 120 फीट। चौड़ाई (आधार) :- 30 फीट।

– विजय स्तम्भ में कुल 157 सीढ़ियाँ हैं।

– विजय स्तम्भ की तीसरी मंजिल पर नौ बार अरबी भाषा में ‘अल्लाह’ नाम अंकित है।

– विजय स्तम्भ की 8वीं मंजिल पर कोई प्रतिमा नहीं है।

– विजय स्तम्भ को बनाने में कुल 90 लाख रुपये खर्च हुए।

– महाराणा स्वरूपसिंह के काल में इसका पुनर्निर्माण करवाया गया।

– फर्ग्यूसन ने इसकी तुलना ‘रोम के टार्जन’ से की।

– यह राजस्थान की प्रथम इमारत है जिस पर 15 अगस्त 1949 को एक रुपये का डाक टिकट जारी किया गया।

– विजय स्तम्भ राजस्थान पुलिस का प्रतीक चिह्न है।

– डॉ. गोपीनाथ शर्मा ने विजय स्तम्भ को ‘हिन्दू देवी-देवताओं से सजाया हुआ एक व्यवस्थित संग्रहालय’ की उपमा दी।

– गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने विजय स्तम्भ को ‘पौराणिक देवताओं के अमूल्य कोष’ की संज्ञा दी है।

– प्रसिद्ध क्रांतिकारी संगठन ‘अभिनव भारत’ के संविधान के अनुसार प्रत्येक नए सदस्य को मुक्ति संग्राम से जुड़ने के लिए विजय स्तम्भ के नीचे शपथ लेनी पड़ती थी।

2. जैन कीर्ति स्तम्भ :- प्रथम जैन तीर्थकर आदिनाथ को समर्पित।

 निर्माण :- 12वीं सदी में दिगम्बर जैन महाजन जीजाक द्वारा।

 7 मंजिला स्तम्भ।

 ऊँचाई :- 75 फीट।

 चित्तौड़गढ़ दुर्ग में अवस्थित।

 अन्य नाम :- आदिनाथ स्मारक

 कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति लेखक :- अत्रि एवं महेश।

3. ईसरलाट (सरगासूली) :-

 निर्माता :- ईश्वरीसिंह

 समय :- 1749 ई. में

 ईश्वरीसिंह ने यह इमारत राजमहल युद्ध में मराठों पर विजयी होने के उपलक्ष्य में बनवाई।

 7 मंजिला भव्य इमारत जयपुर में त्रिपोलिया गेट के निकट स्थित है।

4. पृथ्वीराज स्मारक :- अजमेर में तारागढ़ पहाड़ी पर निर्मित स्मारक।

 13 जनवरी, 1996 को राष्ट्र को समर्पित।

5. जुबली क्लॉक टॉवर :- अजमेर रेल्वे स्टेशन के सामने संगमरमर का यह कलात्मक जुबली क्लॉक टॉवर महारानी विक्टोरिया की स्वर्ण जयंती के स्मृति स्वरूप सन् 1888 ई. में निर्मित किया गया।

6. निहाल टॉवर :- धौलपुर में। 8 मंजिला घंटाघर, जिसका निर्माण 1880 ई. में राजा निहालसिंह द्वारा प्रारम्भ किया गया, जो 1910 ई. में महाराजा रामसिंह के काल में पूर्ण हुआ। यह भारत का सबसे बड़ा घंटाघर है। इसकी घड़ी का निर्माण इंग्लैण्ड में हुआ था।

7. हाड़ी रानी का स्मारक :- सलूम्बर में।

8. धर्मस्तूप :- चूरू में लाल पत्थरों से निर्मित।

 सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी स्वामी गोपालदास ने 1925 ई. में रामनवमी के दिन इस स्तूप का निर्माण करवाया।

 धर्मस्तूप के अंदर भगवान कृष्ण, बुद्ध, महावीर, गुरु नानक, जगदम्बा व शंकराचार्य की मूर्तियाँ लगी हैं।

 उपनाम :- लाल घण्टाघर।

9. वेली टावर घंटाघर :- कोटा में।

 महाराव उम्मेदसिंह द्वितीय के समय निर्मित।

 इसे कोटा की प्रथम एवं आधुनिक इमारत बताया गया है।

10. अमर जवान ज्योति स्मारक :- जयपुर में।

11. अधर स्तम्भ :- गोठ मांगलोद (नागौर) में।

12. अशोक स्तम्भ :- जयपुर में।

प्रमुख छतरियाँ

1. एक खम्भे की छतरी :- रणथम्भौर (सवाईमाधोपुर) में

2.  शृंगार चंवरी की छतरी :- चित्तौड़ दुर्ग में राणा कुंभा द्वारा निर्मित चार खम्भों की छतरी।

3. गोराधाय की छतरी :- जोधपुर में महाराजा अजीतसिंह द्वारा अपनी धायमाता गोराधाय की स्मृति में निर्मित चार खम्भों की छतरी।

4. बजारों की छतरी :- लालसोट (दौसा) में स्थित 6 खम्भों की छतरी। छठी सदी में निर्मित।

5. राणा सांगा की छतरी :- माण्डल (भीलवाड़ा) अशोक परमार द्वारा 8 खम्भों पर निर्मित है।

6. राणा प्रताप की छतरी / 8 खम्भों की छतरी :- बाण्डोली (उदयपुर) में महाराणा अमरसिंह द्वारा निर्मित।

7. रैदास की छतरी :- मीराबाई के आध्यात्मिक गुरु संत रैदास की 8 खम्भों पर स्थित छतरी चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित है।

8. नैड़ा की छतरियाँ :- अलवर के सरिस्का वन क्षेत्र के समीप नैड़ा अंचल में स्थित छतरियाँ। इसमें दशावतार का चित्रण किया गया है जिसमें काले और कत्थई वानस्पतिक रंग प्रयुक्त किये गये हैं। इनमें ‘मिश्रजी की छतरी / 8 खम्भों की छतरी’ विशेष प्रसिद्ध है जिसे 1432 ई. के आसपास बनाया गया है।

9. उड़ना पृथ्वीराज की छतरी (12 खम्भों की छतरी) :- कुम्भलगढ़ दुर्ग में निर्मित मेवाड़ के पृथ्वीराज सिसोदिया की छतरी। इस छतरी के खम्भों पर विभिन्न प्रकार से नारियों के चित्र अंकित हैं।

10. 20 खम्भों की छतरी/सिंघवियों की छतरियाँ :- जोधपुर नरेश भीमसिंह के सेनापति सिंघवी अखैराज की छतरी प्रमुख है। 20 खम्भों की बनी यहाँ की छतरियाँ नक्काशी के लिए प्रसिद्ध हैं। अहाड़ा हिगोला की छतरी तथा जैसलमेर रानी की छतरी भी जोधपुर में स्थित है।

11. अमरसिंह की छतरी (16 खम्भों की छतरी) :- वीर अमरसिंह राठौड़ की 16 खम्भों की छतरी नागौर दुर्ग में स्थित है।

12. मामा-भान्जा की छतरी :- जोधपुर दुर्ग में महाराजा अजीतसिंह द्वारा 10 खम्भों पर निर्मित छतरी। इसे ‘धन्ना-भियां की छतरी’ भी कहा जाता है।

नोट:- मामा-भांजा की मजार :- पल्लू (हनुमानगढ़)।

 मामा-भांजा का मंदिर :- अटरु (बारां)।

13. 18 खम्भों की छतरी (राजसिंह चम्पावत की छतरी) :- जोधपुर में।

14. 32 खम्भों की छतरी (रणथम्भौर की छतरी) :- रणथम्भौर की छतरी का निर्माण हम्मीरदेव ने अपने पिता जैत्रसिंह की स्मृति में करवाया था। यह छतरी धौलपुर के लाल पत्थर से निर्मित तथा 32 खम्भों पर टिकी है।

 अन्य नाम :- न्याय की छतरी।

15. जगन्नाथ कच्छवाहा की छतरी (32 खम्भों की छतरी) :- मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) में।

 शाहजहाँ द्वारा निर्मित यह छतरी हिन्दू व मुस्लिम स्थापत्य का अनूठा उदाहरण है।

16. रानी सूर्यकंवरी की छतरी :- 32 खम्भों पर टिकी यह छतरी पंचकुण्ड (जोधपुर) में है।

17. जोधसिंह की छतरी :- 32 खम्भों पर निर्मित जोधसिंह की छतरी बदनौर (भीलवाड़ा) में स्थित है।

18. 80 खम्भों की छतरी / मूसी महारानी की छतरी :- अलवर में।

 निर्माता :- महाराजा विनयसिंह।

– 2 मंजिला इस छतरी की पहली मंजिल लाल पत्थर व दूसरी मंजिल श्वेत संगमरमर से निर्मित है।

– यह छतरी इंडो-इस्लामिक शैली में निर्मित है।

– इस छतरी की ऊपरी मंजिल में मुख्य छतरी के अन्दर बने रामायण और महाभारत के भित्ति चित्र व संगमरमर पर उत्कीर्ण लघुफलक तत्कालीन समय की चित्र परम्परा व मूर्तिकला को प्रदर्शित करते हैं।

19. 84 खम्भों की छतरी :- बूँदी में देवपुरा नामक स्थान पर इस छतरी का निर्माण राव राजा अनिरुद्ध सिंह ने धाबाई देवा गुजर की स्मृति में करवाया। 1683 ई. में निर्मित यह तीन मंजिला छतरी 84 खम्भों पर टिकी हुई हैं।

20. कुत्ते की छतरी :- यह छतरी रणथम्भौर दुर्ग के निकट कुक्कराज की घाटी में स्थित है।

21. कपूरबाबा की छतरी :- यह छतरी उदयपुर शहर के मध्य जगमंदिर के समीप स्थित है। इस छतरी का निर्माण शाहजहाँ ने कपूर बाबा के सम्मान में करवाया था।

22. अकबर की छतरी :- बयाना दुर्ग के समीप (भरतपुर)।

23. गुसाइयों की छतरियाँ :- मेड़ गाँव (विराटनगर – जयपुर) के समीप 16वीं व 18वीं सदी में निर्मित तीन छतरियाँ।

24. आँतेड़ की छतरियाँ :- अजमेर में स्थित दिगम्बर जैन सम्प्रदाय की छतरियाँ।

25. राजा मानसिंह की छतरी :- आमेर में। राजस्थान में पाये गये भित्ति चित्रों में इस छतरी के चित्र प्राचीनतम (जहाँगीर कालीन) कहे जाते हैं।

26. सन्तोष बावला की छतरी :- पुष्कर (अजमेर) में।

27. टहला की छतरियाँ :- अलवर जिले के टहला कस्बे की छतरियाँ मध्यकालीन छतरी निर्माण तथा भित्ति चित्रकला की जीती-जागती प्रतिमाएँ हैं।

28. मिश्रजी की छतरी :- नैड़ा अंचल (अलवर) में 1489 ई. में निर्मित छतरी की भित्तियों पर दसों अवतारों के साथ सहस्त्रबाहु का परशुराम द्वारा वध, अर्द्धनारीश्वर, समुद्र मंथन, रामलीला के प्रसंग चित्रित किये गये हैं। यहाँ चित्रकारी ‘कड़ा लिपाई’ विधि के तहत की गई है। छतरी का स्थापत्य राजपूत शैली के अनुसार है।

29. थानेदार नाथूसिंह की छतरी :- शाहबाद (बारां) में कोटा महाराव उम्मेदसिंह द्वारा निर्मित छतरी।

30. गंगाबाई की छतरी :- गंगापुर (भीलवाड़ा) में।

31. देवीकुण्ड की छतरियाँ :- बीकानेर राजपरिवार की छतरियाँ।

 यहाँ राव कल्याणमल से लेकर महाराजा डूंगरसिंह तक की छतरियाँ बनी हुई हैं।

 महाराजा रत्नसिंह द्वारा निर्मित महाराजा सूरजसिंह की छतरी की प्रतिष्ठा 26 फरवरी, 1836 को की गई।

32. क्षारबाग (केसरबाग) की छतरियाँ :- बूँदी राजपरिवार की छतरियाँ। 66 छतरियाँ। इनमें सबसे प्राचीन छतरी राव दूदा की एवं सबसे नवीन छतरी महाराव राजा विष्णुसिंह की है। राव राजा शत्रुशाल की मृत्यु होने पर उनकी 64 रानियों ने यहीं उनकी चिता में आहुति दी थी। यह बाग वीरत्व के दृष्टांतों को उजागर करने के दृष्टिकोण से बेजोड़ है।

33. गैटोर की छतरियाँ :- नाहरगढ़ दुर्ग (आमेर) की तलहटी में बनी गैटोर की छतरियाँ जयपुर शासकों का शाही श्मशान घाट है। महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय से लेकर महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय तक के राजाओं और उनके पुत्रों की स्मृति में ये छतरियाँ पचायतन शैली में निर्मित हैं। गैटोर में केवल सवाई ईश्वरीसिंह की छतरी नहीं है।

34. सवाई ईश्वरीसिंह की छतरी :- सिटी पैलेस (जयपुर) में सवाई माधोसिंह द्वारा निर्मित छतरी।

35. महारानी की छतरी :- रामगढ़ (जयपुर) में स्थित छतरी।

36. बड़ाबाग की छतरियाँ :- जैसलमेर राजपरिवार की छतरियाँ।

 यहाँ सर्वप्रथम जैसलमेर शासक रावल जैतसिंह तृतीय की छतरी का निर्माण उनके पुत्र महारावल लूणकरण ने 1528 ई. में करवाया।

37. जोगीदास की छतरी :- उदयपुरवाटी (झुंझुनूं) में।

 इस छतरी में चित्रकार देवा द्वारा चित्रित भित्ति चित्र शेखावटी के प्राचीनतम भित्ति चित्र है।

38. जसवंतथड़ा :- महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय की स्मृति में उनके पुत्र महाराजा सरदारसिंह द्वारा 1899 में सफेद संगमरमर से निर्मित भव्य स्मारक। यहाँ जोधपुर के शासकों की छतरियाँ भी हैं।

 उपनाम :- राजस्थान का ताजमहल।

39. मंडोर की छतरी :- मंडोर में स्थित छतरियों में ब्राह्मण देवता की छतरी, कागा की छतरी, मामा-भांजा की छतरी, गोराधाय की छतरी प्रमुख हैं। कागा की छतरियों के मध्य प्रधानमंत्री की छतरी है। महाराजा जसवंतसिंह की प्राण रक्षा हेतु प्रधानमंत्री राजसिंह कूंपावत द्वारा आत्म बलिदान दिये जाने की स्मृति में प्रधानमंत्री की छतरी का निर्माण किया गया।

40. पद्‌मापीर की छतरी :- कोटा में।

41. महाराव बैरिसाल की छतरी :- सिरोही में दूधिया तालाब के किनारे महाराव बैरिसाल की छतरी स्थित है। इस तालाब के किनारे सिरोही के राजाओं तथा राजपरिवार के सदस्यों की छतरियाँ बनी हुई हैं।

42. महासतियाँ :- आहड़ (उदयपुर) में मेवाड़ महाराणाओं का श्मशान स्थल। महाराणा प्रताप के बाद के राणाओं की अंत्येष्टि इसी स्थान पर हुई। महाराणा अमरसिंह प्रथम की छतरी यहाँ स्थित छतरियों में सबसे पुरानी हैं।

43. जोधपुर के रानियों की छतरियाँ :- पंचकुण्ड (मण्डाेर, जोधपुर) में। 49 छतरियाँ, जिसमें रानी सूर्यकंवरी की छतरी 32 खम्भों पर स्थित सबसे बड़ी छतरी है।

44. दीवान दीपचंद की छतरी :- कागा (जोधपुर) में।

45. ब्राह्मण देवता की छतरी :- पंचकुण्ड (मण्डोर, जोधपुर) में।

46. कीरतसिंह सोढ़ा की छतरी :- मेहरानगढ़ दुर्ग (जोधपुर) में।

47. सेनापति की छतरी :- नागौरी गेट (जोधपुर) में।

48. बख्तावर सिंह की छतरी :- अलवर के राजा बख्तावर सिंह की छतरी मंडोर (जोधपुर) तथा अलवर में है।

49. सिंधुपति महाराजा दाहरसेन का स्मारक :- अजमेर में।

50. खाण्डेराव की छतरी :- गागरसौली (भरतपुर) में।

51. बदनौर की छतरियाँ :- जोधपुर में।

52. जयमल व कल्ला राठौड़ की छतरी :- चित्तौड़गढ़ दुर्ग में।

53. चेतक की छतरी :- हल्दीघाटी (राजसमन्द) में।

54. राव जैतसी की छतरी :- हनुमानगढ़ में।

55. लाछा गुजरी की छतरी :- नागौर में।

56. राव शेखा की छतरी :- परशुरामपुरा (झुंझुनूं) में।

57. रसिया की छतरी :- टोंक।

58. वीर दुर्गादास की छतरी :- उज्जैन (मध्यप्रदेश) में।

59. क्षारबाग (छत्रविलास) :- कोटा राजपरिवार का शाही श्मशान स्थल जहाँ कोटा राजपरिवार की छतरियाँ हैं।

60. अजीतसिंह का देवल :- जोधपुर में।

61. राणा उदयसिंह की छतरी :- गोगुन्दा में।

62. अप्पाजी सिंधिया की छतरी :- ताउसर (नागौर) में।

63. राव कल्याणमल की छतरी :- बीकानेर।

64. पीपाली की छतरी :- चित्तौड़गढ़ में।

प्रमुख बावड़ी / तालाब / झील / सागर

बावड़ियों का शहर :- बूँदी।

1. नीमराणा की बावड़ी :- नीमराणा  (अलवर) में इस 9 मंजिली बावड़ी का निर्माण राजा टोडरमल ने करवाया था।

2. औस्तीजी की बावड़ी :- शाहबाद (बारां) में।

3. तपसी की बावड़ी :- शाहबाद (बारां) में।

4. बड़गाँव की बावड़ी :- बड़गाँव (अंता, बारां) में कोटा रियासत के तत्कालीन शासक शत्रुशाल की पटरानी जादौण द्वारा निर्मित।

5. चमना बावड़ी :- शाहपुरा (भीलवाड़ा) में स्थित भव्य और विशाल तिमंजिली बावड़ी जिसका निर्माण वि. स. 1800 में महाराजा उम्मेदसिंह प्रथम ने चमना नामक गणिका की इच्छा पर करवाया था।

6. रानीजी की बावड़ी :- यह बूँदी नगर में स्थित है जो बावड़ियों का सिरमौर है। इस अनुपम बावड़ी का निर्माण 1699 ई. में राव राजा अनिरुद्ध की रानी लाडकंवर नाथावती ने करवाया था। इस कलात्मक बावड़ी के तीन तौरणद्वार हैं। यह बावड़ी करीब 300 फीट लम्बी व 40 फीट चौड़ी है। यह एशिया की सर्वश्रेष्ठ बावड़ियों में से एक है। अलंकृत तोरण द्वारों की महराबे लगभग 30 मीटर ऊँची हैं।

7. अनारकली की बावड़ी :- छत्रपुरा क्षेत्र (बूँदी) में रानी नाथावती की दासी अनारकली द्वारा निर्मित बावड़ी।

8. काकीजी की बावड़ी :- इन्द्रगढ़ (बूँदी) में स्थित इस बावड़ी का निर्माण इन्द्रगढ़ के अधिपति सरदारसिंह की पत्नी महारानी आली ने करवाया था।

9. भावलदेवी बावड़ी :- बूँदी में स्थित इस भव्य बावड़ी का निर्माण महाराव भावसिंह की पत्नी भावलदेवी ने करवाया था। अंग्रेजी के ‘L’ अक्षर के आकार में निर्मित इस बावड़ी की लम्बाई 155 फीट एवं चौड़ाई 22 फीट 5 इंच है।

10. गुल्ला बावड़ी :- बूँदी में।

11. नांदरघूस की बावड़ी :- बूँदी में।

12. धाबाई जी की बावड़ी :- नानकपुरिया (बूँदी) में।

13. नाग सागर कुण्ड :- बूँदी में बूँदी शासक राव राजा रामसिंह की पत्नी रानी चन्द्रभान कंवर द्वारा निर्मित बावड़ी।

14. रंडी की बावड़ी :- बूँदी में।

15. कालाजी की बावड़ी, गुल्ला की बावड़ी, पठान की बावड़ी :- बूँदी में।

16. वीनौता की बावड़ी :- सादड़ी (चित्तौड़गढ़) में स्थित इस बावड़ी का निर्माण स्थानीय जागीरदार सूरजसिंह शक्तावत ने करवाया था।

17. राजाजी की बावड़ी :- बारां में।

18. सूर्यकुण्ड :- चित्तौड़गढ़ में मानमोरी द्वारा निर्मित बावड़ी।

19. खातन की बावड़ी :- चित्तौड़गढ़ में।

20. नौलखा बावड़ी :- डूँगरपुर में।

निर्माणकर्ता :- प्रीमल देवी (महारावल आसकरण की पत्नी)

निर्माण :- 1602 ई. में।

बावड़ी का मुख्य शिल्पी :- लीलाधर (जयवंत का पुत्र)।

21. केला बावड़ी :- डूँगरपुर में।

निर्माणकर्ता :- रानी गुमानकंवरी (महारावल जसवंतसिंह राठौड़ की पत्नी)

22. डेसा गाँव की बावड़ी :- डूँगरपुर में।

निर्माण :- रानी माणक दे (रावल कर्मसिंह की पत्नी) द्वारा 1936 में।

23. पन्ना मीणा की बावड़ी :- आमेर (जयपुर) में। यह बावड़ी मिर्जा राजा जयसिंह के काल में 17वीं सदी में निर्मित करवाई गई।

24. झिर की बावड़ी :- जयपुर-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर झिर गाँव में स्थित 3 मंजिली बावड़ी का निर्माण बांसखो के सामन्त बुधसिंह कुम्भाणी ने करवाया।

25. मेड़तणीजी की बावड़ी (झुंझुनूं) :- झुंझुनूं के शासक शार्दुलसिंह की मृत्यु के पश्चात इनकी पत्नी बखत कंवर मेड़तणी द्वारा अपने दिवंगत पति की स्मृति में निर्मित बावड़ी। 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में बनी यह बावड़ी 250 फीट लम्बी, 55 फीट चौड़ी और लगभग 100 फीट गहरी है।

26. लवाण की बावड़ी (डकणियों की बावड़ी) :- लवाण (झुंझुनूं) में निर्मित बावड़ी।

अन्य नाम :- गढ़ बावड़ी / डकणियों (दक्षणियों) की बावड़ी एवं मराठों का कुआं।

यह बावड़ी बाहर से एक कुएँ जैसी है किन्तु इसके नीचे भीतर किले जैसी संरचना है, जिसका रास्ता अत्यन्त संकड़ा है।

27. तुलस्यानों की बावड़ी, चेतनदास की बावड़ी :- झुंझुनूं में।

28. आभानेरी की चाँदबावड़ी :- दौसा में। आभानेरी गुर्जर-प्रतिहार काल की कला का एक बेजोड़ नमूना है। आभानेरी का हर्षमाता मंदिर, चाँद बावड़ी, तक्षणकला और मूर्तिकला, शिल्प सौष्ठव का अनुपम उदाहरण है। चाँद बावड़ी का निर्माण गुर्जर – प्रतिहार काल में निकुंभ क्षत्रिय ‘चाँद’ द्वारा करवाया गया था। 9वीं सदी में निर्मित बावड़ी। यह बावड़ी अपने तिलिस्म स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध है। यह विश्व की सबसे गहरी बावड़ी मानी जाती है। यह बावड़ी चारों तरफ से 35 मीटर चौड़ी है। यह बावड़ी ‘हर्षत माता मंदिर’ के सामने स्थित है।

29. नौ चौकी :- राजसमन्द झील का उत्तरी किनारा (पाल), जिसका निर्माण राणा राजसिंह सिसोदिया द्वारा गोमती नदी के प्रवाह को रोककर किया गया। पाल की लम्बाई 999 फीट और चौड़ाई 99 फीट है। प्रत्येक सीढ़ी 9 इंच चौड़ी और 9 इंच ऊँची है। इस पाल के निर्माण में उस समय 1 करोड़, 50 लाख, 7 हजार, 608 रुपये व्यय हुए थे।

30. त्रिमुखा बावड़ी :- उदयपुर में महाराणा राजसिंह की पत्नी रामरसदे द्वारा निर्मित बावड़ी।

इसमें तीन और से सीढ़ियाँ बनी हैं और प्रत्येक दिशा में ये सीढ़ियाँ तीन खण्डों में विभक्त हैं। इसमें प्रत्येक खण्ड में 9 सीढ़ियाँ हैं और 9 सीढ़ियों के समाप्त होने पर एक चबूतरा बना है, इस चबूतरे पर स्तम्भयुक्त मण्डप है। इस बावड़ी का मुख्य शिल्पी नाडू गौड़ था।

31. वीरूपुरी बावड़ी :- लगभग 300 वर्ष पूर्व वीरू नामक रानी द्वारा उदयपुर में निर्मित बावड़ी।

32. एक चट्टान की बावड़ी :- सातवीं सदी में मण्डोर (जोधपुर) में एक चट्टान को काटकर निर्मित की गई अंग्रेजी के ‘L’ आकार की बावड़ी। स्थानीय भाषा में इस बावड़ी को ‘रावण की चंवरी’ के नाम से भी जाना जाता है।

33. जोहड़े :- शेखावटी क्षेत्र में निर्मित कच्चे कुएँ। चूरू के जोहड़े बड़े प्रसिद्ध है जिसमें सेठना का जोहड़ा, पथराला जोहड़ा, पीथाणा जोहड़ा प्रसिद्ध है।

34. मोराकुण्ड :- नादौती (सवाईमाधोपुर) में।

35. बाटाडू का कुआँ :- बाड़मेर में रावल गुलाब सिंह द्वारा निर्मित।

उपनाम :- रेगिस्तान का जलमहल।

36. चाँद बावड़ी (चौहान बावड़ी) :- जोधपुर में इस बावड़ी का निर्माण महाराजा जोधा की सोनगरी रानी चाँद कुंवरी ने करवाया था।

37. नाजरजी की बावड़ी, तापी बावड़ी, जालप बावड़ी :- जोधपुर में।

38. तुंवरजी का झालरा :- जोधपुर में महाराजा अभयसिंह की रानी तुंव जी द्वारा निर्मित।

39. भीकाजी की बावड़ी :- अजमेर में।

40. जच्चा की बावड़ी :- हिण्डौन सिटी में।

41. भोपन का कुआँ :- कैथून (कोटा) में।

42. मांजी की बावड़ी :- आमेर में।

43. पन्ना मीणा की बावड़ी :- आमेर (जयपुर) में।

44. राजा रसालू की बावड़ी :- दौसा में।

45. चूली बावड़ी :- सरजोली (जमवारामगढ़, जयपुर) में।

46. चार घोड़ों की बावड़ी :- जोबनेर (जयपुर) में।

47. लाभूजी कटला की बावड़ी :- बीकानेर में।

48. लाखोलाव तालाब :- मूण्डवा (नागौर) में स्थित।

49. प्रतापबाव बावड़ी :- देवलिया (प्रतापगढ़) में।

50. बुड्‌ढा जोहड़ झील :- श्रीगंगानगर में।

51. प्रीतमपुरी झील :- रैवासा (सीकर) में।

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य :-

– दूध बावड़ी :- माउण्ट आबू (सिरोही) में।

– लाहिणी बावड़ी :- बसंतगढ़ (सिरोही) में स्थित बावड़ी, जिसका निर्माण परमारों की रानी लाहिणी ने करवाया था।

– मृगा बावड़ी :- सिराेही में।

– सरडा रानी की बावड़ी :- टोडा रायसिंह (टोंक) में स्थित कलात्मक बावड़ी।

– खारी बावड़ी व फुटी बावड़ी :- निवाई (टोंक) में।

– बड़ली तालाब :- उदयपुर में महाराणा राजसिंह द्वारा अपनी माँ जनादे की स्मृति में बनवाया गया तालाब।

 अन्य नाम :- जियान सागर।

 – यहाँ देश का प्रथम मत्स्य अभयारण्य विकसित किया जा रहा है।

 डिग्गी तालाब :- अजमेर में।

 डाइला तालाब :- बाँसवाड़ा में।

 आठ तीवण का कुआँ (अलखसागर कुआं) :- बीकानेर में (लच्छीराम द्वारा निर्मित)

 माधोसागर, सेंथलसागर एवं कालखो सागर :- दौसा में।

 दमोह जल प्रपात :- धौलपुर में।

 पुंजेला झील :- डूँगरपुर में।

 निर्माता :- महारावल पुंजराज।

 जीर्णोद्वार :- महारावल विजयसिंह।

 चूंडावाड़ा की झील, पटेला झील :- डूँगरपुर में।

 तलवाड़ा झील :- हनुमानगढ़ में।

 बुबानिया कुण्ड :- आभानेरी (दौसा) में।

 भाण्डारेज की बावड़ियाँ :- आभानेरी (दौसा) में।

 देवरा बावड़ी, नाथजी की बावड़ी, सुनार की बावड़ी, झालर बावड़ी :- बेगूं (चित्तौड़गढ़)

 पाताल तोड़ (लम्बी बावड़ी) :- धौलपुर में।

 मन्दाकिनी कुण्ड :- अचलदेव (सिरोही) में।

 मामादेव कुण्ड :- कुम्भलगढ़ (राजसमन्द) में।

 पन्नालाल शाह का तालाब :- खेतड़ी (झुंझुनूं) में।

 तालाबशाही :- धौलपुर में स्थित झील।

 मूल सागर (अमर सागर / गजरुप सागर) :- जैसलमेर में।

 महारावल गजसिंह द्वारा निर्मित।

 राणीसर तालाब :- जाेधपुर में 1459 ई. में राव जोधा की पटरानी जसमादे द्वारा निर्मित। राणीसर तालाब में तीन बेरियाँ हैं – शंकर बेरी, जिया बेरी एवं पाट बेरी।

 कायलाना झील :- जोधपुर में जोधपुर प्रशासक सर प्रतापसिंह द्वारा निर्मित झील।

 गैब सागर तालाब :- डूँगरपुर में महारावल गोपालसिंह द्वारा निर्मित।

 डगसागर तालाब :- झालावाड़ में।

 प्रार्थना का जाेरा (जोहड़ा) :- चूरू में।

 नवलखाँ तालाब :- बारां।

 नवल सागर :- बूँदी में। (राजा उम्मेदसिंह द्वारा निर्मित)।

उद्यान :-

1. सहेलियों की बाड़ी :- उदयपुर में राणा संग्रामसिंह द्वितीय द्वारा निर्मित।

 पुनर्निर्माण :- महाराणा फतेहसिंह द्वारा।

2. शिमला बाग (कम्पनी बाग) :- अलवर में महाराजा श्योदान सिंह द्वारा 1868 में निर्मित।

3. कमल का फूल बाग :- धौलपुर में। बाबर द्वारा अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-बाबरी’ में इस बाग का उल्लेख किया गया है।

4. जयनिवास उद्यान :- जयपुर में महाराजा जयसिंह द्वारा निर्मित राजप्रासाद।

5. दौलत बाग :- अजमेर में आनासागर झील के किनारे मुगल सम्राट जहाँगीर द्वारा निर्मित बाग। इसे सुभाष उद्यान के नाम से जाना जाता है।

6. हरसुख विकास उद्यान :- करौली में महाराव छत्रसाल द्वारा निर्मित।

 यह करौली में सफेद चन्दन के वृक्षों का महकने वाला उद्यान है।

7. राईका बाग :- जोधपुर में महाराजा जसवंत सिंह की पत्नी जसवंत दे ने 1646 ई. में इसका निर्माण करवाया।

8. नीमड़ी माता का बाग :- बाड़मेर में।

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