जीन पियाजे की बाल विकास संबंधी उपचारात्मक विधि पर प्रकाश डालिए।

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जीन पियाजे का संज्ञानात्मक और नैतिक विकास का सिद्धान्त शिक्षा मनोविज्ञान में विशेष महत्त्व रखता है। पियाजे के अनुसार बालक का संज्ञानात्मक विकास उसकी परिपक्वता के साथ-साथ वृद्धि को प्राप्त करता है। बालक के शरीर में जब तक परिपक्वता का विकास नहीं होता तब तक वह सीखने की प्रक्रिया के प्रति प्रेरित या उत्सुक नहीं होता। बालकों की सोच एवं भौतिक जगत के साथ उसके होने के अनुभव किस प्रकार ज्ञान का निर्माण करते हैं या उसमें सुधार करते हैं इसे जीन पियाजे ने उपचारात्मक विधियों को अग्रलिखित रूपों में समझाया है-

(1) संरचना का निर्माण- जीन पियाजे ने स्पष्ट किया कि बालक के मन में किसी वस्तु या विचार के प्रति अवधारणाओं और संरचनाओं का निर्माण कैसे होता है। जीन पियाजे के अनुसार सामान्यतः बालक भूल और प्रयास, पुनर्बलन तथा अभ्यास से अनेक वस्तुओं के बारे में ज्ञान प्राप्त करते हैं। अवधारणा की निर्माण प्रक्रिया को यों समझा जा सकता है । बालक के हाथ से काँच की शीशी गिर जाती है या वह स्वयं गिरा देता है तो वह शीशी टूट जाती है । बार-बार ऐसा ही करने से हर बार काँच की शीशी टूट जाती है। बार-बार ऐसा ही करने से हर बार काँच की शीशी टूटती है। इससे बालक के मस्तिष्क में यह अवधारणा विकसित हो जाती है कि काँच के बर्तन टूट सकते हैं। इसी प्रकार भौतिक जगत की सभी वस्तुओं (जैसे अग्नि) बालक का संज्ञान स्थाई रूप ले लेता है। इस प्रकार संरचना/अवधारणा का बालक से विकास होता है।

(2) सम्मिलन- पियाजे ने बताया कि बालक अपने मूर्त अनुभव/पूर्व ज्ञान के आधार पर वस्तु आदि को पहचानता है। जैसे विभिन्न जानवरों को उनकी विशेषताओं के आधार पर पूर्व ज्ञान से पहचानना । बालक पूर्व अनुभव/ज्ञान से वस्तु आदि के प्रति संश्लेषण-विश्लेषण करता है तथा तब निश्चित विचार पर पहुँचता है।

(3) समायोजन- जीन पियाजे के अनुसार बालक का समायोजन क्षमता का पूर्ण विकास परिवार, समाज, विद्यालय में होता है । इस समायोजन क्षमता से बालक प्रत्येक स्थिति में अपने आपको समायोजित करना सीखता है। बालक और बालकों को करता देख स्वयं भी अनुकरण करता है। सामाजिक वातावरण में बालक की समायोजन की क्षमता विकसित होती है ।

(4) व्यवस्थापन- पियाजे के अनुसार अगली अवस्था में बालक अर्जित ज्ञान में नए ज्ञान को प्राप्त करने की ओर बढ़ता है । वह विभिन्न वस्तुओं क्रियाओं का व्यवस्थापन करने में धीरे-धीरे सफल होने लगता है । वस्तु आदि के रूप रंग आकार आदि विशेषताओं को वह अपने मस्तिष्क में दूर कर व्यवस्थापन करता है।

(5) संतुलन- पियाजे के अनुसार सामाजिक व्यवहार, जैविक परिपक्वता और भौतिक के जगत आदि सभी संज्ञानात्मक कारक संतुलन की ओर अग्रसित होते हैं और असंतुलन की स्थिति को अधिक समय तक नहीं रखा जा सकता। अनेक प्रकार के तर्क, ज्ञान एवं चिंतन के आधार पर सत्य (वास्तविकता) तक पहुँचना और अनेक विकास संबंधी अवधारणाओं में संतुलित विकास करना ही पियाजे की संतुलन की अवधारणा को स्पष्ट करता है ।

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