पूर्व बाल्यावस्था अनुभवों के आगामी व्यक्तित्व पर प्रभाव के बारे में लिखो।

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बच्चे के पूर्व बाल्यावस्था के अनुभव उसके बाद के व्यक्तित्व को भी प्रभावित करते हैं । जो बच्चे पूर्व बाल्यावस्था में संयुक्त परिवारों में रहते हैं, उनके मित्रों एवं भाई-बहनों के साथ अच्छे संबंध होते हैं। ऐसे बच्चों का किशोर एवं प्रौढ़ावस्था में सामाजिक विकास अच्छा होता है। उनमें नेतृत्व क्षमता पायी जाती है एवं विविध समारोहों में आने जाने में कोई परेशानी नहीं होती है। इसके विपरीत एकाकी परिवारों में रहने वाले बालक किशोरावस्था एवं प्रौढ़ावस्था में अन्तर्मुखी हो जाते हैं एवं उनका सामाजिक विकास उचित तरह से नहीं हो पाता है।

पूर्व बाल्यावस्था में अस्वस्थ तथा बीमारी तथा शारीरिक रुप से निर्बल रहने वाले बच्चे भी किशोरावस्था एवं प्रौढ़ावस्था में एकाकी रहना ज्यादा पसन्द करते हैं जबकि खेलकूद में भाग लेने वाले स्वस्थ बच्चे आगामी जीवन में भी स्वास्थ्य मूल्य को समझते हैं।

पूर्व बाल्यावस्था में प्रभुत्वशाली परिवारों में बच्चों का बाद में व्यक्तित्व दब्बू तरह का बनता है जबकि स्वतन्त्र वातावरण में अभिभावक स्वीकृत व्यवहार के साथ पले-बढ़े बच्चों का बाद का व्यक्तित्व आत्मनिर्भर एवं आत्मविश्वासी प्रकार का बनता है। पूर्व बाल्यावस्था में माता-पिता की अभिवृत्तियाँ भी बालक के बाद के व्यक्तित्व पर बहुत प्रभाव डालती हैं। किशोरावस्था में वह बालक नेता नहीं बन सकता है जो निर्देश देता है तथा दूसरों को अपनी आज्ञा मानने के लिए बाध्य करता है हो वरन् वही नेता बनता है जो शान्तिपूर्वक अपने निर्देशों को उनके समक्ष प्रस्तुत करता है एवं उन्हें भावी कल्याण और सफलता का मार्ग बाध्यता से नहीं वरन् सहानुभूति से सिखाता है। वह स्वयं प्रत्यक्ष रुप से बालकों को निर्देश नहीं देता बल्कि किसी दूसरे बालकों को जो उसके आदर्श को अक्षरशः मानता हो, नेतृत्व करने हेतु प्रेरित करता है तथा उसके माध्यम से अपने विचारों को दूसरों से मनवाता है ।

पूर्व बाल्यावस्था बहुत संवेदनशील अवस्था होती है तथा इस अवस्था में बालक बहुत ही भावुक होता है एवं वह इस अवस्था के अनुभवों को अपने जीवन में सँजोकर रखता है। यह अनुभव संचित राशि की तरह उसके व्यक्तित्व को सम्पूर्ण जीवन प्रभावित करते हैं ।

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