मनोविज्ञान क्या है? मनोविज्ञान का शिक्षा में योगदान बतलाइए।

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यबर्न के अनुसार- मनोविज्ञान ने अरस्तू के समय में दर्शनशास्त्र के अंग के रूप में अपना जीवन शुरू किया। उस समय से लेकर सैकड़ों वर्षों तक उसका विवेचन दर्शनशास्त्र के अंग के रूप में किया गया। लेकिन जैसा कि रायबर्न ने लिखा है- “आधुनिक काल में एक परिवर्तन हुआ है। मनोवैज्ञानिकों ने धीरे-धीरे अपने विज्ञान को दर्शनशास्त्र से पृथक कर लिया है।”

मनोविज्ञान के अर्थ को निम्न तरह समझा जा सकता है-

वाटसन के अनुसार- “मनोविज्ञान, व्यवहार का निश्चित विज्ञान है।”

वुडवर्थ के अनुसार- “मनोविज्ञान, वातावरण के संबंध में व्यक्ति की क्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन है।”

स्किनर के अनुसार- “मनोविज्ञान, जीवन की सभी तरह की परिस्थितियों में प्राणी की प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है। प्रक्रियाओं या व्यवहार से अभिप्राय है- प्राणी की सब तरह की गतिविधियाँ, समायोजनाएं, क्रियाएं तथा अभिव्यक्तियाँ ।”

अगर हम उक्त दार्शनिकों के विचारों का विश्लेषण करें, तो हमें निश्चित विज्ञान के रूप में मनोविज्ञान के संबंध में निम्न तथ्य प्राप्त होते हैं-

(1) मनोविज्ञान एक विधायक विज्ञान है।

(2) मनोविज्ञान, भौतिक तथा सामाजिक दोनों तरह के वातावरण का अध्ययन करता है।

(3) मनोविज्ञान न सिर्फ व्यक्ति के व्यवहार का, वरन् पशु-व्यवहार का भी अध्ययन करता है।

(4) मनोविज्ञान, वातावरण का अध्ययन करता है, जो व्यक्ति की ज्ञानेन्द्रियों को प्रभावित करता है तथा वह अपनी कर्मेन्द्रियों द्वारा वातावरण के प्रति प्रतिक्रिया करता है।

(5) मनोविज्ञान, व्यक्ति को मन एवं शरीर से युक्त प्राणी मानते हुए, उसका अध्ययन करता है। दूसरे शब्दों मे, मनोविज्ञान, व्यक्ति को मनो-शारीरिक प्राणी मानता है।

(6) मनोविज्ञान, सभी ज्ञानात्मक क्रियाओं; जैसे-स्मरण, कल्पना, संवेदना आदि; संवेगात्मक क्रियाओं जैसे-रोना, हँसना, गुस्सा होना आदि तथा क्रियात्मक क्रियाओं; जैसे-बोलना, चलना, फिरना आदि का अध्ययन करता है।


मनोविज्ञान की परिभाषाएं
 :

मनोविज्ञान की लंबी विकास यात्रा के दौरान मनोवैज्ञानिकों तथा दार्शनिकों ने चिंतन-मनन किया एवं मनोविज्ञान के स्वरूप को निर्धारित किया। मुख्य वैज्ञानिकों ने मनोविज्ञान को निम्न तरह से परिभाषित किया है-

स्किनर के अनुसार- “मनोविज्ञान, व्यवहार तथा अनुभव का विज्ञान है।”

बोरिंग, लैंगफेल्ड तथा वेल्ड- “मनोविज्ञान, मानव-प्रकृति का अध्ययन है।”

गैरिसन तथा अन्य के अनुसार- “मनोविज्ञान का संबंध प्रत्यक्ष मानव-व्यवहार से है।”



मनोविज्ञान की प्रकृति :

स्पष्ट है कि मनोविज्ञान एक विज्ञान है क्योंकि मनोविज्ञान की विषय सामग्री में वे सब तत्व विद्यमान हैं, जिनके आधार पर किसी विषय को विज्ञान की श्रेणी में रखा जा सकता है। मनोविज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक इसलिए कही जाती है क्योंकि मनोविज्ञान में विज्ञान के निम्न प्रमुख तत्व पाये जाते हैं-

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1. वैज्ञानिक विधियाँ- किसी भी विषय को विज्ञान तभी कहा जा सकता है जबकि उस विषय की अध्ययन विधियाँ वैज्ञानिक हों। मनोविज्ञान की ज्यादातर विधियाँ वैज्ञानिक हैं। मनोविज्ञान की समस्याओं के अध्ययन में प्रयोगात्मक विधि के अतिरिक्त निरीक्षण विधि, सांख्यिकीय विधि, गणितीय विधि, मनोयिति विधि आदि का प्रयोग किया जाता है । मनोविज्ञान की समस्याओं का अध्ययन वैज्ञानिक विधियों से किये जाने से मनोविज्ञान की विषय सामग्री वैज्ञानिक है तथा यह विषय विज्ञान है।

2. प्रामाणिकता- किसी भी विषय को विज्ञान मानने का दूसरा प्रमुख तत्व प्रामाणिकता है। मनोविज्ञान की विषय सामग्री प्रामाणिक है क्योंकि इसकी समस्याओं का अध्ययन वैज्ञानिक विधियों के द्वारा किया जाता है।

3. वस्तुनिष्ठता- किसी भी विषय को विज्ञान मानने हेतु आवश्यक है कि उसमें वस्तुनिष्ठता हो। वस्तुनिष्ठता का अर्थ यह है कि जब किसी समस्या का अध्ययन कई अध्ययनकर्ता कर रहे हों तथा वे सभी एक ही निष्कर्ष पर पहुँचे तो कहा जा सकता है कि प्राप्त निष्कर्ष वस्तुनिष्ठ हैं । मनोविज्ञान की समस्याओं और संबंधित घटनाओं का अध्ययन उनके साम्य रूप में ही किया जाता है एवं अध्ययनकर्ता के परिणाम पर पड़ने वाले प्रभावों को नियंत्रित करके अध्ययन किया जाता है। अध्ययनकर्ता नियंत्रण के लिए कई प्रविधियों का सहारा लेता है, अतः मनोविज्ञान की समस्याओं के अध्ययन से जो परिणाम प्राप्त होते हैं, वे वस्तुनिष्ठ होते हैं ।

4. भविष्यवाणी की योग्यता- किसी भी विषय को विज्ञान मानने के लिए उसमें भविष्यवाणी की योग्यता का होना भी आवश्यक है। भविष्यवाणी की योग्यता का अर्थ यह है कि किसी भी व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करने के आधार पर यह बताना कि भविष्य में उसका व्यवहार कैसा होगा? यह भविष्यवाणी तभी की जा सकती है जब अध्ययन पूर्ण रूप से वैज्ञानिक हो। मनोविज्ञान की समस्याओं का अध्ययन वैज्ञानिक विधियों के द्वारा वैज्ञानिक ढंग से किये जाने से इन अध्ययनों के आधार पर भविष्यवाणी भी की जा सकती है।

5. सार्वभौमिकता- किसी भी विषय को विज्ञान तभी माना जा सकता है जबकि उसके सिद्धांत तथा नियम सार्वभौमिक हों। यदि किसी विषय के सिद्धांतों एवं नियमों का अध्ययन वैज्ञानिक विधियों के द्वारा किया जाता है तथा ये सिद्धांत व नियम प्रामाणिक, वस्तुनिष्ठ और भविष्यवाणी करने की क्षमता रखते हैं, तो वे निश्चित ही सार्वभौमिक भी होते हैं । चूँकि मनोविज्ञान के सिद्धांतों एवं नियमों का अध्ययन वैज्ञानिक विधियों के द्वारा किया जाता है तथा इसकी विषय वस्तु में प्रामाणिकता, वस्तुनिष्ठता और भविष्यवाणी करने के गुण पाये जाते हैं अत: इसके सिद्धांत तथा नियम सार्वभौमिक भी होते हैं।

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विज्ञान के ये सभी पाँचों तत्व मनोविज्ञान की विषय सामग्री में मौजूद हैं, इसलिए कहा जा सकता है कि मनोविज्ञान विज्ञान है। व्यवहार का अध्ययन करने वाला यह विषय शुद्ध विज्ञान है की श्रेणी में आता है।

जेम्स ड्रेवर के शब्दों में“मनोविज्ञान एक शुद्ध विज्ञान है जो मानव एवं पशु व्यवहार का अध्ययन करता है, यह व्यवहार उसके अंतर्जगत के मनोभावों और विचारों को अभिव्यक्त करता है।”

मनोविज्ञान की आधारभूत विशेषताओं को निम्न तरह व्यक्त किया जा सकता है-

1. मनोविज्ञान व्यवहार का विज्ञान है। इसमें मानव एवं पशु दोनों के व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है।

2. मनोविज्ञान विधायक विज्ञान है। इसमें क्रिया-प्रतिक्रिया, कार्य-कारण एवं उद्दीपक-प्रतिक्रियाओं का विवेचन वैज्ञानिक विधि से किया जाता है।

3. मनोविज्ञान में ज्ञानात्मक क्रियाओं यथा-स्मृति, विस्मृति, कल्पना, संवेग, संवेदना आदि का अध्ययन किया जाता है।

4. मनोविज्ञान व्यक्ति का अध्ययन मनो-दैहिक प्राणी के रूप में करता है।

5. मनोविज्ञान का संबंध पर्यावरण से है, अत: यह पर्यावरण के प्रति अनुक्रिया का भी अध्ययन करता है।

मनोविज्ञान का क्षेत्र :

मनोवैज्ञानिक मनोविज्ञान के क्षेत्र में व्यवहार के संपूर्ण क्षेत्र को शामिल मानते हैं । इस में आधार पर मनोविज्ञान का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है क्योंकि जहाँ जीवन है, वहीं व्यवहार है एवं जहाँ व्यवहार है, वहीं मनोविज्ञान का अध्ययन क्षेत्र भी है। मनोविज्ञान में मनुष्यों, पशुओं तथा पक्षियों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है एवं प्राणियों में सभी आयु के प्राणियों का ही अध्ययन नहीं होता बल्कि सामान्य एवं असामान्य, साधारण तथा विशिष्ट सभी तरह के प्राणियों की समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। मनोविज्ञान की संपूर्ण विषय-वस्तु को कई क्षेत्रों या शाखाओं में बाँट दिया गया है। मनोविज्ञान के प्रमुख क्षेत्र अथवा शाखाएं निम्न तरह हैं-

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1. सामान्य मनोविज्ञान- मनोविज्ञान की इस शाखा में मानव के सामान्य व्यवहार का सामान्य परिस्थितियों में अध्ययन किया जाता है।

2. असामान्य मनोविज्ञान- मनोविज्ञान की इस शाखा में मानव के असामान्य व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है। मानव के व्यक्तित्व की असामान्यताओं से संबंधित समस्यायें इसके विषय क्षेत्र में आती हैं।

3. मानव मनोविज्ञान- इस मनोविज्ञान में सिर्फ मानव के व्यवहारों का ही अध्ययन किया जाता है।

4. पशु-मनोविज्ञान- इस मनोविज्ञान में पशुओं के व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है।

5. शुद्ध मनोविज्ञान- मनोविज्ञान की यह शाखा मनोविज्ञान के सैद्धांतिक पक्ष से संबंधित है। इसके अंतर्गत मनोविज्ञान के सामान्य सिद्धांतों, पाठ्यवस्तु आदि का ज्ञान प्राप्त किया जाता है ।

6. व्यावहारिक मनोविज्ञान- व्यावहारिक मनोविज्ञान में ऐसी समस्याओं का अध्ययन किया जाता है जो व्यक्ति के जीवन से संबंधित आवश्यकताओं से संबंधित होती हैं तथा जो उसके जीवन हेतु वैज्ञानिक ज्ञान की दृष्टि से उपयोगी होती हैं। मनोविज्ञान की यह शाखा मनोविज्ञान का व्यावहारिक पक्ष है।

7. बाल मनोविज्ञान- बालक तथा प्रौढ़ में अंतर होता है। उनके व्यवहार में, आचरण में, विकास में, आदतों में भिन्नता होती है, इसलिए बालकों के शारीरिक, मानसिक, गायक, भाषायी, संवेगात्मक, सामाजिक तथा चारित्रिक विकास एवं उनके व्यवहार आदि का अध्ययन हम जिस विषय में करते हैं, उसे बाल मनोविज्ञान कहा जाता है ।

8. समाज मनोविज्ञान- एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति, एक समुदाय के दूसरे समुदाय तथा एक व्यक्ति के समुदाय के साथ संबंधों का विवेचन समाज मनोविज्ञान में किया जाता है। इन सामाजिक संबंधों का परिणाम यह होता है कि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के व्यवहारों से प्रभावित होता है एवं कुछ अपना प्रभाव भी उन पर छोड़ता है। प्रचार, जनमत, नेतृत्व, सामाजिक संघर्ष, सामाजिक क्रांति आदि समाज मनोविज्ञान के प्रमुख विषय हैं ।

9. शिक्षा मनोविज्ञान- शिक्षा को सर्वप्रथम वैज्ञानिक रूप देने का श्रेय शिक्षा मनोविज्ञान को ही जाता है। मनोविज्ञान की इस शाखा में मनोविज्ञान की विषय-वस्तु का उपयोग शैक्षणिक समस्याओं के समाधान करने हेतु किया जाता है। शिक्षा मनोविज्ञान विशेष तौर से विद्यार्थियों के व्यवहार परिवर्तनों का अध्ययन करता है ।

10. शारीरिक मनोविज्ञान- शारीरिक मनोविज्ञान मानसिक क्रियाओं से संबंधित शारीरिक क्रियाओं का अध्ययन करता है। मानसिक क्रियाओं का शारीरिक क्रियाओं से घनिष्ठ संबंध है। वास्तव में प्रत्येक मानसिक क्रिया की उत्पत्ति में शारीरिक क्रिया अनिवार्य रूप से मौजूद रहती है। शारीरिक मनोविज्ञान शरीर विज्ञान की तरह शरीर के विभिन्न भागों का अलग-अलग अध्ययन नहीं करता वरन् यह तो शारीरिक क्रियाओं का समग्र रूप में अध्ययन करता है ।

11. औद्योगिक मनोविज्ञान- मनोविज्ञान की इस शाखा में उद्योग की परिस्थितियों में व्यक्तियों के व्यवहार का अध्ययन, विभिन्न उद्योगों के लिए व्यक्तियों के चयन, उत्पादन में वृद्धि करने वाली परिस्थितियों, उद्योगों में अरुचि, मकान, क्रय-विक्रय, विज्ञापन, दुर्घटनायें आदि से संबंधित समस्याओं का अध्ययन किया जाता है ।

12. प्रयोगात्मक मनोविज्ञान- प्रयोगात्मक मनोविज्ञान वैज्ञानिक ढंग से किये गये प्राणियों के अनुभवों तथा व्यवहारों के अध्ययन का विज्ञान कहा जा सकता है। मनोविज्ञान की इस शाखा में नियंत्रित अवस्थाओं में प्राणी के अनुभवों, व्यवहारों एवं प्रतिक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। वैज्ञानिक रूप प्राप्त करने हेतु यंत्रों का भी प्रयोग किया जाता है। प्रदत्तों को संख्यासूचक अभिव्यक्ति दी जाती है जिससे प्राप्त निष्कर्ष वैज्ञानिक होते हैं, उनमें विश्वसनीयता तथा वैधता पायी जाती है।

13. वैयक्तिक मनोविज्ञान- मनोविज्ञान की इस शाखा में मुख्यतः वैयक्तिक लक्ष्यों के क्षेत्र में वैयक्तिक भिन्नताओं की प्रकृति तथा उत्पत्ति से संबंधित समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।

14. परा मनोविज्ञान- मनोविज्ञान की इस शाखा के अंतर्गत मनोवैज्ञानिक अतीन्द्रिय तथा इन्द्रियेतर प्रत्यक्षों का अध्ययन करते हैं।


मनोविज्ञान का महत्व :

मनोविज्ञान का महत्व वर्तमान समय में जीवन के हर क्षेत्र में है। मनोविज्ञान हमें प्राणी तथा वातावरण के पारस्परिक व्यवहार को बतलाता है। साथ ही वातावरण में उसने किस तरह समायोजन किया है इसकी जानकारी भी देता है। मनोविज्ञान के महत्व को निम्न बिन्दुओं द्वारा समझा जा सकता है-

1. सामान्य तथा असामान्य व्यवहार को समझने और जानने में महत्व- मनोविज्ञान मनुष्यों के सामान्य जीवन के व्यवहार की व्याख्या करता है। साथ ही यह बताता है कि समूह अथवा समाज में रहकर व्यक्ति का व्यवहार क्या है। असाधारण तथा असामान्य व्यवहार का अध्ययन, कारण और उपचारों का भी विश्लेषण मनोविज्ञान के द्वारा किया जाता है।

2. विकास की प्रक्रिया समझने में- मनोविज्ञान मनुष्य के सामाजिक, मानसिक,शारीरिक तथा संवेगात्मक विकास का समझने में महत्वपूर्ण है।

3. कंपनियों तथा संस्थानों के लिए महत्वपूर्ण- व्यावसायिक चयन परीक्षाओं में उचित चयन के लिए मनोवैज्ञानिक परीक्षाओं का वर्तमान समय में अत्यधिक महत्व है। वर्तमान दौर में सभी प्रतिष्ठित कंपनियाँ तथा संस्थान उम्मीदवारों के चयन हेतु मनोवैज्ञानिक परीक्षण का प्रावधान रखते हैं।

4. शिक्षा के क्षेत्र में महत्व- मनोविज्ञान का शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण स्थान है । मनोविज्ञान शिक्षा के क्षेत्र में उन मनोवैज्ञानिक समस्याओं का अध्ययन करता है जो एक बालक एवं उसके स्कूल के अध्यापक तथा अध्यापन कार्य से संबंधित हैं । मनोविज्ञान में योग्यता मापन, शिक्षण विधियों में सुधार, निम्नतम तथा उत्तम योग्यता वाले बालक, छात्रों की रुचि एवं अभिरुचि से संबंधित परीक्षणों का निर्माण आदि का भी अध्ययन किया जाता है ।

5. औद्योगिक क्षेत्र में महत्व- प्रत्येक उद्योग में मानवीय तत्वों का समावेश होता है जिसका अध्ययन मनोविज्ञान की एक शाखा औद्योगिक मनोविज्ञान के अंतर्गत किया जाता है। औद्योगिक मनोवैज्ञानिक के श्रमिकों के चयन हेतु परीक्षण प्रशिक्षण के लिए विषय एवं श्रमिक तथा मालिकों की परस्पर समस्याओं के समाधान के लिए परिस्थितियाँ पैदा करना आदि अध्ययन विषय बन जाते हैं । इस क्षेत्र में विशेषज्ञ के शोधकार्य बाजार एवं उपभोक्ता से संबंधित समस्याओं का हल निकालने में भी होते हैं। जनता में किस तरह के विज्ञापन के आधार पर कौन से माल की बिक्री अधिक हो सकती है जिससे उद्योग की क्षमता को बढ़ाया जा सके इत्यादि समस्याओं का उत्तर एक औद्योगिक मनोवैज्ञानिक ही दे सकता है।

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6. सामाजिक क्षेत्र में महत्व– मानव व्यवहार प्रमुख रूप से समूह एवं अपनी संस्कृति से अधिक प्रभावित होता है। मनुष्य अपने समाज में क्रिया प्रतिक्रियायें करता है जिनमें सामाजिक प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इन क्रिया, प्रतिक्रियाओं का अध्ययन मनोविज्ञान का विषय है। इसके अलावा प्रकार, अभिशक्तियाँ, नेतृत्व, फैशन, भीड़ एवं सामाजिक प्रेरणाओं आदि का भी अध्ययन मनोविज्ञान में किया जाता है। मनोविज्ञान का कार्य क्षेत्र यहाँ तक बढ़ गया है कि मानसिक बीमारियों के सामाजिक कारणों का भी पता लगाया जाता है।


मनोविज्ञान का शिक्षा में योगदान :

मनोविज्ञान ने शिक्षा के क्षेत्र में कई वैचारिक तथा व्यावहारिक परिवर्तन किये हैं शिक्षा के क्षेत्र में लगे लोगों की प्राचीन धारणाओं को तोड़ा है, नवीन अवधारणाओं को विकसित किया है। मनोविज्ञान का शिक्षा के क्षेत्र में निम्न तरह योगदान है-

1. बालक का महत्व- सर्वप्रथम शिक्षा, विषय-प्रधान तथा अध्यापक-प्रधान थी। उसमें बालक को तनिक भी महत्व नहीं दिया जाता था। उसके मस्तिष्क को खाली बर्तन समझा जाता था, जिसे ज्ञान से भरना शिक्षक का मुख्य कर्तव्य था । मनोविज्ञान ने बालक के प्रति इस दृष्टिकोण में आमूल परिवर्तन करके, शिक्षा को बालकेन्द्रित बना दिया है। अब शिक्षा बालक हेतु है, न कि बालक शिक्षा हेतु।

2. बालकों की विभिन्न अवस्थाओं का महत्व- प्राचीन शिक्षा-पद्धति में सभी आयु के बालकों हेतु एकसी शिक्षण-विधियों का प्रयोग किया जाता था। मनोवैज्ञानिकों ने इन दोनों बातों को अनुचित तथा दोषपूर्ण सिद्ध कर दिया है। उनका कहना है कि बालक जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है, वैसे-वैसे उसकी रुचियाँ तथा आवश्यकताएं बदलती जाती हैं; उदाहरणार्थ, बाल्यावस्था में उसकी रुचि खेल में होती है, लेकिन किशोरावस्था में वह खेल तथा कार्य में अंतर समझने लगता है। इस बात को ध्यान में रखकर, बालकों को बाल्यावस्था में खेल द्वारा तथा किशोरावस्था में अन्य विधियों द्वारा शिक्षा दी जाती है। साथ ही, उनकी शिक्षा के स्वरूप में भी अंतर दिखाई देता है।

3. बालकों की रुचियों तथा मूल-प्रवृत्तियों का महत्व- प्राचीन काल की किसी भी शिक्षा-योजना में बालकों की रुचियों तथा मूल-प्रवृत्तियों का कोई स्थान नहीं था। उन्हें ऐसे कई विषय पढ़ने पढ़ते थे, जिनमें उनकी तनिक भी रुचि नहीं होती थी तथा जिनका उनकी मूल-प्रवृत्तियों से कोई संबंध नहीं होता था। मनोविज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि जिस कार्य में बालकों की रुचि होती है, उसे वे जल्दी सीखते हैं। इसके अलावा वे कार्य करने में अपनी मूल-प्रवृत्तियों से प्रेरणा प्राप्त करते हैं। अत: अब बालकों की शिक्षा का आधार उनकी रुचियाँ तथा मूल-प्रवृत्तियाँ हैं।

4. बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं का महत्व- शिक्षा की प्राचीन शिक्षण विधियों में बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं पर ध्यान नहीं दिया जाता था। अतः सबके लिए समान शिक्षा का आयोजन किया जाता था। मनोविज्ञान ने इस बात पर सदैव बल दिया है कि बालकों की रुचियों, रुझानों, क्षमताओं, योग्यताओं आदि में अंतर होता है । अतः सभी बालकों हेतु समान शिक्षा का आयोजन सर्वथा अनुचित है। इस बात को ध्यान में रखकर मंद-बुद्धि, पिछड़े तथा शारीरिक दोष वाले बालकों हेतु अलग-अलग विद्यालयों में अलग-अलग तरह की शिक्षा की व्यवस्था की जाती है।

5. पाठ्यक्रम में सुधार- प्राचीन काल में पाठ्यक्रम के सभी विषय, सभी बालकों हेतु अनिवार्य होते थे। इसके अलावा वह पूर्ण रूप से पुस्तकीय तथा ज्ञान प्रधान था। मनोविज्ञान ने पाठ्यक्रम के इन दोनों दोषों की कटु आलोचना की है। यह इस बात पर बल देता है कि पाठ्यक्रम का निर्माण बालकों की आयु, रुचियों तथा मानसिक योग्यताओं को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। यही कारण है कि आठवीं कक्षा के पश्चात् पाठ्यक्रम को साहित्यिक, वैज्ञानिक आदि वर्गों में विभाजित कर दिया गया है ।

6. पाठ्य-सहगामी क्रियाओं पर बल- प्राचीन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बालक का मानसिक विकास करना था। अत: पुस्तकीय ज्ञान को ही महत्व दिया जाता था तथा पाठ्य-सहगामी क्रियाओं का कभी विचार भी नहीं किया गया। मनोविज्ञान ने बालक के सर्वांगीण विकास हेतु इन क्रियाओं को बहुत महत्वपूर्ण बताया है। यही कारण है कि आजकल विद्यालयों है में खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि की विशेष रूप से व्यवस्था की जाती है।

7. सीखने की प्रक्रिया में उन्नति- पहले शिक्षकों को सीखने की प्रक्रिया का कोई ज्ञान नहीं था। वे यह नहीं जानते थे कि एक ही बात को एक बालक देर में तथा दूसरा बालक जल्दी क्यों सीख लेता था। मनोविज्ञान ने सीखने की प्रक्रिया के संबंध में खोज करके कई अच्छे नियम बनाये हैं। इनका प्रयोग करने से बालक कम समय में तथा ज्यादा अच्छी तरह से सीख सकता है।

8. शिक्षण-विधियों में सुधार- प्राचीन शिक्षा-पद्धति में शिक्षण-विधियाँ मौखिक थीं तथा बालकों को स्वयं सीखने का कोई अवसर नहीं दिया जाता था। वे मौन श्रोताओं के समान शिक्षक द्वारा कही जाने वाली बातों को सुनते थे तथा फिर उनको कंठस्थ करते थे। मनोविज्ञान ने इन शिक्षण-विधियों में आमूल परिवर्तन कर दिया है। उसने ऐसी विधियों का आविष्कार किया है, जिनसे बालक स्वयं सीख सकता है। इस उद्देश्य से ‘करके सीखना’ खेल द्वारा सीखना’,रेडियो पयर्टन, चलचित्र आदि को शिक्षण-विधियों में स्थान दिया जाता है।

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