वातावरण का अर्थ बताकर बालक पर वातावरण के प्रभाव का वर्णन कीजिये।

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वातावरण शब्द के स्थान पर पर्यावरण को प्रयुक्त किया जाने लगा है, अगर हम वातावरण शब्द की सन्धि के आधार पर व्याख्या करें तो इसका अर्थ परि + आवरण यानी चारों तरफ से घेरने वाला अथवा ढंकने वाला होगा। इसलिए हम कह सकते हैं कि वातावरण वह वस्तु है जो व्यक्ति को चारों तरफ से ढककर आकर्षण पैदा करती है। अगर व्यक्ति के व्यक्तित्व में आकर्षण पैदा नहीं होता है, तो उसे हम वातावरण नहीं कहते हैं । अतः बालक के विकास हेतु वातावरण की जरूरत पर विशेष बल दिया गया है

विभिन्न मनोवैज्ञानिकों तथा शिक्षाशास्त्रियों ने वातावरण का अध्ययन किया एवं उसे निम्न रूप से परिभाषित किया है-

“वातावरण वह हर वस्तु है, जो व्यक्ति के जीन्स के अलावा हर वस्तु को प्रभावित करती है।”  एनास्टसी

“वातावरण में वे सभी बाह्य तत्त्व आ जाते हैं; जिन्होंने व्यक्ति को अपना जीवन शुरू करने के समय से प्रभावित किया है।”

“एक व्यक्ति के वातावरण से अभिप्राय उन सभी उत्तेजनाओं के योग से है, जिनको वह जन्म से मृत्यु तक ग्रहण करता है”

उपर्युक्त विद्वानों के मतों से स्पष्ट होता है कि व्यक्ति को प्रभावित करने वाली सभी उत्तेजनाएँ, जो व्यक्ति के विकास तथा सम्वर्द्धन में मददगार होती हैं, वातावरण कहलाती हैं।

बालक पर वातावरण का प्रभाव

वर्तमान मनोवैज्ञानिकों तथा शिक्षाविदों ने यह सिद्ध कर दिया है कि वंशानुक्रम के साथ-साथ वातावरण का भी प्रभाव बालक के विकास पर पड़ता है। इसलिए यहाँ पर उन पक्षों पर विचार करेंगे जो वातावरण से प्रभावित होते हैं-

1. वातावरण का मानसिक विकास पर प्रभाव- बालक का मानसिक विकास केवल बुद्धि से ही निश्चित नहीं होता है, उसमें बालक की ज्ञानेन्द्रियाँ, मस्तिष्क के सभी भाग, ग्राह्य तथा मानसिक क्रियाएँ आदि शामिल होती हैं। इसलिए बालक वंश से जो कुछ लेकर पैदा होता है, उसका विकास उचित वातावरण से ही हो सकता है । वातावरण से बालक की बौद्धिक क्षमता में तेजी आती है एवं मानसिक प्रक्रिया का सही विकास होता है । ये दोनों ही बच्चे के विकास में सहयोग देते हैं । कैण्डोल, गोर्डन तथा क्रीमैन आदि विद्वानों ने अपने-अपने अध्ययनों से स्पष्ट किया है कि अच्छा वातावरण बच्चों के मानसिक विकास में सहयोग देता है। ‘इवोवे विश्वविद्यालय’ में 150 बच्चों का अध्ययन किया गया। इनका पालन-पोषण 6 वर्ष तक पालनगृह में हुआ था। इसलिए पालन-गृह की अच्छी व्यवस्था तथा सुन्दर वातावरण ने उनकी बुद्धिलब्धि 117 तक बढ़ा दी।

2. वातावरण का व्यक्तित्व विकास पर प्रभाव- व्यक्ति का गठन या विकास आन्तरिक क्षमताओं के विकास तथा नवीनताओं को ग्रहण करके किया जाता है। इन दोनों ही परिस्थितियों हेतु उपयुक्त वातावरण को उपयोगी माना गया है। कूल महोदय ने यूरोप के 71 साहित्यकारों का अध्ययन किया एवं पाया कि उनके व्यक्तित्व का विकास अच्छे वातावरण में पालन-पोषण के द्वारा हुआ।

3. वातावरण का शिक्षा पर प्रभाव- बालक की शिक्षा बुद्धि, मानसिक प्रक्रिया तथा सुन्दर वातावरण पर निर्भर करती है। शिक्षा का उद्देश्य बालक का सामान्य विकास करना होता है। अतः शिक्षा के क्षेत्र में सभी बच्चों का सही विकास हो सके, यह उपयुक्त शैक्षिक वातावरण पर ही निर्भर करता है । दैनिक रूप से यह पाया जाता है कि उच्च बुद्धि वाले बच्चे भी सही वातावरणं के बगैर उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं। भारतीय मनोवैज्ञानिकों ने सन् 1971 ई. में आई.ए.एस. में उत्तीर्ण छात्रों का अध्ययन किया तथा पाया कि 44% छात्रों ने पब्लिक स्कूलों में शिक्षा पायी थी उनके परिवार की मासिक आय एक हजार रुपये अथवा उससे ज्यादा थी। इससे स्पष्ट होता है कि अच्छा वातावरण ही इनको आई.ए.एस. पद पर आसीन कराने में सक्षम हुआ।

4. वातावरण का सामाजिक गुणों का प्रभाव- बालक का समाजीकरण उसके सामाजिक विकास पर निर्भर होता है। समाज का वातावरण उसे सामाजिक गुण तथा विशेषताओं को धारण करने के लिए उन्मुख करता है। न्यूमैन, क्रीमैन तथा होलिंजगर ने 20 जोड़े बच्चों पर अध्ययन किया। आपने जोड़े के एक बच्चे को गाँव में एवं दूसरे बच्चे को नगर में रखा । बड़े होने पर गाँव के बच्चे में अशिष्टता, चिन्ताएँ, भय, हीनता तथा कम बुद्धिमता आदि विशेषताएँ पायी गयीं जबकि शहर के बच्चे में शिक्षित व्यवहार, चिन्तामुक्त, भयहीन तथा निडरता एवं बुद्धिमता आदि विशेषताएँ पायी गयीं। इसलिए स्पष्ट होता है कि वातावरण सामाजिक गुणों पर प्रभाव डालता है।

5. वातावरण का बालक के सर्वांगीण विकास पर प्रभाव- शिक्षा का परम उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास करना है। यह विकास तभी सम्भव हो सकता है, जब उन्हें अच्छे वातावरण में रखा जाय। यह वातावरण ऐसा हो जिसमें बालक की वंशानुक्रमीय विशेषताओं का सही प्रकाशन हो सके। भारत एवं विदेशों में जिन बच्चों को जंगली जानवर उठाकर ले गये एवं उनको मारने के स्थान पर उनका पालन-पोषण किया। कुछ समय बाद वे पकड़े गये। उनका सम्पूर्ण विकास जानवरों जैसा था, बाद में उनको मानवीय वातावरण देकर सुधार लिया गया। अतः स्पष्ट होता है कि वातावरण ही बालक के सर्वांगीण विकास में सहयोगी होता है। जैसा कि स्टीफैन्स ने लिखा है- “एक बालक जितना ज्यादा समय उत्तम वातावरण में रहता है, वह उतना ही ज्यादा इस वातावरण की तरफ उन्मुख रहता है।”

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