व्यक्तित्व सम्बन्धी फ्रॉयड का मनोविश्लेषणवादी उपागम का वर्णन कीजिए।

Estimated reading: 1 minute 87 views

व्यक्तित्व के सम्बन्ध में फ्रॉयड ने अपने विचार लक्षणवाद तथा संरचनावाद से भिन्न करते हुए मनोविश्लेषणवाद पर आधारित किये हैं। उन्होंने अपने विचारों के आधार पर यह सिद्ध किया है कि मानव व्यक्तित्व चेतना, अर्ध चेतना एवं अवचेतना पर निर्भर करता है। ये तीनों चेतना के स्तर होते हैं। द्वितीय तथ्य के रूप में व्यक्तित्व संगठन के लिए फ्रायड इदं, अहं तथा अत्यहम् का वर्णन करते हैं। इसके द्वारा मानव व्यक्तित्व का व्यवस्थित रूप प्रदर्शित होता है अर्थात् मानव व्यवहार का अध्ययन फ्रॉयड ने चेतना तथा संगठन के आधार पर किया है फ्रॉयड के व्यक्तित्व सिद्धान्त के प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं-

1. इदम् – फ्रॉयड के अनुसार व्यक्तित्व संगठन का यह वह स्तर होता है जो जन्मजात तथा मानव संरचना में निश्चित रूप से पाया जाता है। यह मानव व्यवहार को अपनी आवश्यकता पूर्ति के द्वारा सुख प्राप्त करना होता है। इसका नियन्त्रण नैतिकता तथा आदर्श मूल्यों से सम्भव नहीं होता है।

2. अहम् – अहम् के द्वारा जीवन की यथार्थता तथा प्रतिमाओं में विभेद करना चाहिए। अहम् इड का ही एक भाग होता है जो इड एवं बाहरी संसार के मध्य माध्यम का कार्य करता है । अहम् के द्वारा वातावरण के बीच सामंजस्य की स्थिति बनाये रखने का कार्य होता है। इस तरह यह स्पष्ट हो जाता है कि अहम् के द्वारा व्यवहार में यथार्थता का प्रदर्शन होता है। कोई व्यक्ति अपनी आवश्यकता पूर्ति यथार्थ व्यवहार के माध्यम से ही करता है तथा जब तक उसकी आवश्यकता की पूर्ति नहीं होती है एवं उसका तनाव दूर नहीं होता है ।

3. अत्यहम् – अत्यहम् के सम्बन्ध में फ्रायड का कहना है कि व्यक्ति में अपने अभिभावकों पर निर्भरता के कारण होता है। अभिभावकों द्वारा अपने बालक पर विशेष स्थायी छाप छोड़ी जाती है जो अहम् के भीतर एक विशेष स्थान बना लेती है यही अत्यहम् के रूप में जानी जाती है। अभिभावकों द्वारा छोड़ा गया यह प्रभाव बालक के व्यक्तित्व में कहीं न पर स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है क्योंकि माता-पिता द्वारा अपने बालक पर अपने विचार किसी न किसी रूप में आरोपित किये जाते हैं जिनका थोड़ा अथवा बहुत अंश बालक के व्यक्तित्व में बना रहता है। इस कार्य के लिए माता-पिता बालक को दण्ड देते हैं तथा पुरस्कार भी देते हैं। अतः इन कार्यों के द्वारा अत्यहम् के विकास में अपना पूर्ण योगदान देते हैं।

4. अचेतन- फ्रॉयड के अनुसार मानव मस्तिष्क 9/10 भाग अचेतन अवस्था में रहता है एवं 1/10 भाग चेतन अवस्था में रहता है। अचेतन अवस्था का अध्ययन एक जटिल कार्य है, इसका पता लगाना अन्तर्दर्शन द्वारा भी सम्भव नहीं होता है। अचेतन भाग में वे सभी इच्छाएं एकत्रित हो जाती हैं जिनको समाज द्वारा स्वीकार नहीं किया जाता है। वे दमित इच्छाएं होती हैं। कभी-कभी ये इच्छाएं इतनी ज्यादा तीव्र हो जाती हैं कि विस्फोटक रूप में सामने आती हैं जो मानव व्यवहार तथा व्यक्तित्व को असामान्य बना देती हैं । इसके कारण मानव का सुप्तावस्था में चलना, हकलाना, हाथों को लगातार साफ करना तथा वामहस्तता जैसी असामान्य प्रवृत्ति पैदा हो जाती है । चेतन अवस्था का प्रत्यक्ष सम्बन्ध मानव व्यवहार से होता है, जो कि मानव व्यक्तित्व को निर्धारित करता है। अत: चेतन तथा अचेतन अवस्था दोनों ही मानव व्यक्तित्व को प्रभावित करती हैं।

इस तरह यह स्पष्ट हो जाता है कि फ्रॉयड मानव व्यक्तित्व को असामान्य स्थिति हेतु अचेतन अवस्था को उत्तरदायी मानता है। इसलिए दमन की प्रवृत्ति मानव के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं होने देती है। इसके आगे फ्रॉयड यह भी स्पष्ट करता है कि इदम् एवं अत्यहम् पूर्व कल्पना से होता है तथा अहम् का सम्बन्ध हमारे जीवन की यथार्थ परिस्थिति से होता है।

Leave a Comment

CONTENTS