शारीरिक, संज्ञानात्मक, सामाजिक, संवेगात्मक, नैतिक तथा भाषागत विकास में संबंधों के बारे में लिखो।

Estimated reading: 1 minute 102 views

 विविध मनोवैज्ञानिकों ने ऐसा माना है कि शारीरिक विकास अगर उत्तम होता है तो मानसिक तथा बौद्धिक विकास भी उत्तम होता है। अस्वस्थ शरीर से मानसिक तथा बौद्धिक तन्त्र भी प्रभावित होता है। इस तरह इन दोनों के मध्य संबंध होता है। जिस बालक का शारीरिक तथा बौद्धिक स्वास्थ्य अच्छा होता है वह स्वस्थ शरीर एवं मस्तिष्क होता है, वह सामाजिक गतिविधियों में भाग लेता है, बहिर्मुखी व्यक्तित्व होता है, सभा-सोसाइटी में जाना पसन्द करता है, उनमें नेतृत्व की क्षमता पायी जाती है। इस तरह उसका सामाजिक विकास भी अच्छा होता है। उत्तम शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक क्षमता युक्त बालक अपने संवेगों पर नियंत्रण रखना जानता है। शारीरिक परिवर्तनों से ही संवेग पैदा होते हैं, संवेगों पर नियंत्रण रखना एक अच्छे संवेगात्मक स्वास्थ्य की निशानी होती है। रोग, अस्वास्थ्य की स्थिति में व्यक्ति चिड़चिड़ा एवं क्रोधी हो जाता है, वह बात-बात पर झगड़ता है तथा अपने संवेगों पर नियंत्रण न रख सकने से किसी भी व्यक्ति से उसकी नहीं बनती है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति अकेला पड़ जाता है तथा अन्तर्मुखी व्यक्तित्व का बन जाता है । शारीरिक परिवर्तनों से ही संवेग पैदा होते हैं जिससे उचित तथा अनुचित के मध्य व्यक्ति को भेद करना पड़ता है । स्वतन्त्र मानसिक स्थिति होने पर बौद्धिक क्षमताएँ सक्रिय होती हैं, व्यक्ति सही निर्णय लेता है एवं इस तरह वह उचित तथा अनुचित में आसानी से भेद कर लेता है एवं उसका नैतिक विकास भी उत्तम होता है । ज्यादातर झोंपड़-पट्टियों में रहने वाले बालक संवेगात्मक रुप से अधिक अस्थिर, अस्वास्थ्यकर स्थितियों में जीवन-यापन करने के कारण बीमार एवं नैतिक दृष्टि से निम्न स्तर के होते हैं। चोरी, लूटमार, भीख माँगना, जेब कुतरना, ड्रग्स लेना, मदिरापान करना आदि कार्य करने से उनका नैतिक चरित्र और गिर है । स्वस्थ शारीरिक एवं मानसिक स्थिति से ही साहित्य पढ़ने की रुचि पैदा होती है, कल्पना शक्ति का विकास होता है । कहानीकार, चित्रकार एवं कवि बनकर बच्चे अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं। प्रेम पत्र लिखते समय उनमें भावुकता का मिश्रण होने से भाषा-सौन्दर्य प्रस्फुटित होता है । एक-एक शब्द अपने स्थान पर सार्थक होता है । किशोरों का शब्दकोश भी धीरे-धीरे विस्तृत होता जाता है । अस्वस्थ अथवा लम्बी बीमारी की स्थिति में भाषा विकास भी पिछड़ जाता है।

स्मिथ के अनुसार, लम्बी बीमारी (विशेष रुप से पहले दो वर्षों में) के कारण भाषा विकास दो मास हेतु पिछड़ जाता है। कुछ मनोवैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि हकलाना (भाषा दोष) मानसिक अव्यवस्था के कारण होता है। इससे स्पष्ट होता है कि भाषा विकास एवं मानसिक, बौद्धिक विकास का संबंध होता है । शारीरिक विकास एवं संवेगों का भी घनिष्ठ संबंध होता है। कई बार बाहरी एवं आन्तरिक शारीरिक कमियाँ कई तरह की संवेगात्मक कठिनाइयाँ पैदा कर देती हैं। कई बच्चे अपनी बीमारी के कारण संवेगात्मक रुप से अस्थिर होते हैं। सामाजिक विकास हेतु ग्रन्थियों की सामान्य कार्य कुशलता बहुत जरुरी है। सामाजिक विकास एवं संवेगात्मक विकास में भी गहरा संबंध होता है। दोनों विकास एक-दूसरे पर आश्रित होते हैं। अगर बच्चा सामाजिक रुप से विकसित है तो वह संवेगात्मक रुप से भी विकसित होगा। सामाजिक रुप से कुसमायोजित बालकों को विविध तरह की संवेगात्मक समस्याओं पर सामना करना पड़ता है।

इसलिए यह कहा जा सकता है कि शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, सामाजिक, संवेगात्मक, नैतिक एवं भाषागत विकास एक-दूसरे से घनिष्ठ रुप से अन्तर्सम्बन्धित हैं।

Leave a Comment

CONTENTS