संवेगों के विकास के बारे में लिखो।

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जन्म के समय बालक में संवेगात्मक अनुक्रिया की योग्यता पायी जाती है। लेकिन इस संवेगात्मक अनुक्रिया का विकास परिपक्वता तथा अधिगम के आधार पर होता है। परिपक्वता और अधिगम आपस में एक-दूसरे के साथ इतने सम्बन्धित होते हैं कि इनके सापेक्षिक महत्त्व को समझना कठिन कार्य है।


संवेगों के विकास में परिपक्वता का कार्य

गुडएनफ ने फोटोग्राफिक विधि की मदद से दस वर्ष की एक अन्धी तथा बहरी बालिका के संवेगों के अध्ययन में मुखात्मक अभिव्यक्तियों के फोटोग्राफ्स लेकर इनकी तुलना सामान्य बालकों के संवेगों की मुखात्मक अभिव्यक्तियों के फोटोग्राफ्स से की है। उसने अपने इस अध्ययन में देखा कि क्रोध, भय, प्रेम, प्रसन्नता तथा घृणा आदि संवेगों का प्रदर्शन अन्धी-बहरी बालिका ने उसी तरह से किया जिस प्रकार से सामान्य बालक करते हैं। गुडएनफ ने अपने इन अध्ययनों से यह निष्कर्ष निकाला कि परिपक्वता संवेगों के विकास को प्रेरित करती है। जॉन्स ने भी एक अध्ययन इस सम्बन्ध में किया है। उसने अपने अध्ययन में भिन्न-भिन्न आयु के बालकों को कमरे में रखकर उनके सामने साँप छोड़कर इनमें उत्पन्न भय संवेग का अध्ययन किया है । जॉन्स ने अपने इस अध्ययन में देखा कि दो साल के बच्चे साँप से किसी भी तरह से भयभीत नहीं होते हैं, तीन साल के बच्चे साँप को देखकर थोड़ा-सा सावधान हो जाते हैं एवं चार साल के बच्चों ने साँप से भागने और बचने की प्रतिक्रिया पेश की। अपने इस अध्ययन के आधार पर जॉन्स इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि संवेगात्मक विकास परिपक्वता से प्रभावित होता है।

मॉर्गन का विचार है कि संवेगात्मक व्यवहार की परिपक्वता के लिए अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का विकसित होना जरूरी है। यह देखा गया है कि एड्रीनल ग्रन्थि जन्म के कुछ समय बाद ही आकार में छोटी हो जाती है। इस ग्रन्थि का संवेगों में प्रमुख कार्य होता है। लगभग पाँच वर्ष की अवस्था तक इस ग्रन्थि का तेज गति से विकास होता है। साथ ही साथ इस अवधि में बालक का शारीरिक विकास भी तीव्र गति से होता है। पाँच से ग्यारह वर्ष की अवस्था तक इस ग्रन्थि का तथा बालक का शारीरिक विकास अपेक्षाकृत मन्द गति से होता है। एक बार पुनः इन दोनों का विकास ग्यारह से सोलह वर्ष की अवस्था में तीव्र गति से होता है। सोलह वर्ष की अवस्था में एड्रीनल ग्रन्थि का आकार बढ़कर वही हो जाता है जो जन्म के समय होता है।


संवेगों के विकास में अधिगम का महत्त्व

अध्ययनों में यह देखा गया है कि संवेगात्मक विकास में प्रमुखता तीन तरह के अधिगम का योगदान होता है। अधिगम के ये तीन प्रकार हैं-प्रयत्न तथा भूल द्वारा सीखना, अनुकरण द्वारा सीखना तथा अनुबन्धन द्वारा सीखना। इन तीनों तरह के संवेगों का बालक के लिए सीखना तभी सम्भव है जब बालक शारीरिक तथा मानसिक रूप से परिपक्व हो एवं उसकी विभिन्न अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ भी सामान्य रूप से विकसित हुई हों।

बालक का प्रयत्न तथा भूल द्वारा सीखना बालक के पूर्व अनुभवों पर आधारित है अध्ययनों में यह देखा गया है कि इस तरह का सीखना बालक के संवेगात्मक विकास में सिर्फ अनुक्रियात्मक पक्ष को प्रभावित करता है। इस तरह के अधिगम के द्वारा बालक संवेगों को अभिव्यक्त करना सीखता है। उसकी संवेगात्मक अभिव्यक्ति का विकास इस तरह के अधिगम द्वारा अग्रोन्मुख होता है । बहुधा यह देखा गया है कि बालक उन्हीं संवेगात्मक अभिव्यक्तियों को इस विधि द्वारा ग्रहण करता है जो उसे सन्तोष प्रदान करती हैं। अध्ययनों में यह देखा गया है कि बालक संवेगात्मक अभिव्यक्ति इस विधि द्वारा बाल्यावस्था में ही अधिक सीखता है। ज्यादा बड़े होने पर अधिगम की अन्य विधियाँ अपनाता है ।

अनुकरण के द्वारा भी बालक संवेगों को अभिव्यक्त करना सीखता है । वह दूसरे लोगों के संवेगों को जिस तरह व्यक्त होते देखता है, ठीक उसी तरह वह भी संवेगों को अभिव्यक्त करना सीख लेता है। अनुकरण के द्वारा बालक संवेगात्मक प्रतिमान के उद्दीपक तथा अनुक्रिया । दोनों पक्षों को सीखता है। अर्थात् किस तरह के उद्दीपक की उपस्थिति में किस तरह की अनुक्रिया करनी है, यह बालक अनुकरण के द्वारा सीखता है।

अनुबन्धन या उद्दीपक-अनुक्रिया के मध्य साहचर्य द्वारा भी बालक में संवेगों का विकास होता है । अनुबन्धन का प्रमुखतः सम्बन्ध संवेगात्मक प्रतिमान के उद्दीपक पक्ष से ज्यादा है। वाटसन ने अपने अध्ययनों के आधार पर बताया कि भय, क्रोध आदि संवेगों को अनुबन्धन के द्वारा पैदा किया जा सकता है। उसने अपने एक-अध्ययन में अलबर्ट नामक नौ माह के बालक में भय संवेगों को अनुबन्धन के द्वारा पैदा किया। यह बालक एक खरगोश से खूब खेलता था, एक बार जब वह खरगोश से खेल रहा था तब पीछे से भय पैदा करने वाली एक तीव्र ध्वनि उत्पन्न की गई। इस ध्वनि को सुनकर ही बालक चौंककर मुँह के बल गिर पड़ा। दूसरी बार जब वह खरगोश के साथ खेल रहा था तो पुन: वह पहले तरह की डरावनी ध्वनि उत्पन्न की गई, इस बार यह देखा गया कि बालक मदद के लिए रोया। जब बार-बार इस परिस्थिति को बालक के साथ दुहराया गया तो कुछ प्रयत्नों के बाद यह देखा गया कि बालक जिस खरगोश के साथ आनन्द से खेलता था, उस खरगोश को सिर्फ देखकर ही डरने लगा। वाटसन ने अपने इस अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि अनुबन्धन के द्वारा बालकों में संवेगों को पैदा किया जा सकता है ।

संवेगों के विकास में अधिगम तथा परिपक्वता, दोनों का ही कार्य बहुत महत्त्वपूर्ण । इन दोनों में से ही एक की अनुपस्थिति में संवेगों का विकास सम्भव नहीं है। परन्तु अगर अधिगम तथा परिपक्वता के सापेक्षिक महत्त्व का संवेगात्मक विकास में अध्ययन किया जाए तो यह कहा जा सकता है कि परिपक्वता की बजाय अधिगम का कार्य ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। अधिगम कार्य इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि इसको पूर्णत: नियन्त्रित किया जा सकता है तथा इसके आधार पर बालकों को विभिन्न संवेगों की अभिव्यक्ति को सिखाया जा सकता है, विशेष रूप से उन अभिव्यक्तियों को, जो बालक के लिए सुखदायक हैं तथा समाज द्वारा मान्य हैं।


ब्रिजेज का सिद्धान्त

ब्रिजेज ने विकासात्मक संवेग सिद्धान्त का प्रतिपादन कर वाटसन के सिद्धान्त का खण्डन किया है । वाटसन ने यह माना है कि शिशुओं में जन्म से ही भय, क्रोध तथा प्रेम संवेग पाये जाते हैं। लेकिन ब्रिजेज ने अपने प्रयोगात्मक अध्ययनों के आधार पर यह सिद्ध किया कि नवजात शिशुओं में जन्म से कोई भी संवेग नहीं पाये जाते हैं। इस अवस्था में सिर्फ उनमें उद्दीप्तावस्था ही पायी जाती है। उसने अपने प्रयोगों में यह देखा कि जब बालकों को किसी बाह्य उत्तेजना द्वारा उत्तेजित किया जाता है तो बालक भूख-प्यास अथवा पीड़ा आदि की आन्तरिक अनुभूति करते हैं लेकिन इस प्रकार उद्दीप्त करने पर उनमें कोई स्पष्ट व्यवहार प्रतिमान, दृष्टिगोचर नहीं होता है, सम्पूर्ण शरीर क्रियाशील दिखाई देता है, उनकी क्रियाशीलता अस्पष्ट होती है ब्रिजेज का विचार है कि संवेगों का विकास परिपक्वता के साथ-साथ होता है । संवेगों में स्पष्टता परिपक्वता बढ़ने के साथ-साथ बढ़ती जाती है। उसने अपने अध्ययनों के आधार पर यह भी निष्कर्ष निकाला कि लगभग दो वर्ष की अवस्था तक बालक में भी सभी प्रमुख संवेगों का विकास प्रारम्भ हो जाता है। आयु तथा अनुभवों के बढ़ने के साथ-साथ संवेगात्मक अभिव्यक्ति में परिवर्तन तथा स्पष्टता आती-जाती है। उसने अपने सिद्धान्त में यह भी स्वीकार किया है कि संवेगों में परिवर्तन और परिवर्द्धन परिपक्वता और अधिगम के आधार पर भी होते हैं।

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